“ मैं... मैं नहीं जानती आप किस चीज की बात कर रहे हैं। "
“नर्वस होने की जरूरत नहीं है। हमने राजप्रकाश के साथ एक फैसला किया है जिसके बदले में वह उस चीज को हमें दे रहा है। अब आप ही बताइए कि अगर वह हमें वह चीज दिलवाना न चाहता होता तो वह हमें बताता ही क्यों कि उसने आपको कुछ दिया है।"
कला कुछ क्षण हिचकिचाई और फिर बड़े अनिश्चय के साथ उसने एक मुड़ा-तुड़ा कागज पर्स में से निकाला और सुनील को सौंप दिया।
सुनील ने कागज खोलकर फैलाया, वह नम्बरों की एक लंबी लिस्ट थी। उसने दिनकर को इशारा किया। दिनकर समीप आ गया। सुनीन ने कागज को इस प्रकार पकड़ा कि काफी रोशनी उस पर पड़े ।
"दिनकर।" - सुनील बोला- "इसके दो-तीन फोटो ले लो।"
दिनकर क्षण भर कैमरा फोकस करता रहा फिर उसने शटर दबा दिया। उसने अगला नम्बर लाने के लिए नाब घुमाई लेकिन लिस्ट में नम्बर नहीं आया।
"सुनील साहब, यह आखिरी चित्र था, जौहरी पता नहीं कहां-कहां शटर दबाता फिरा है। एक ही तस्वीर से काम नहीं चलेगा क्या ?"
"क्या और रील नहीं है ?"
"है तो, लेकिन लोड करने में देर लगेगी।"
"तुम करो, कोई बात नहीं।"
दिनकर कैमरा लोड करने में व्यस्त हो गया। सुनील उसे बातों में उलझाये रहा ।
दिनकर ने कैमरा लोड करके सुनील को संकेत किया, सुनील ने कागज उसके सामने कर दिये। उसने दो-तीन चित्र और लिये और कैमरा बन्द कर दिया ।
"मुझे यह सब पसन्द नहीं।" - कला उससे प्रभावित होकर बोली ।
सुनील उसकी ओर ध्यान दिए बिना ही कागज पर लिखे नम्बर पढ़ता रहा ।
यकायक कला ने उसके हाथ से कागज झपट लिया ।
"अगर ।" - वह बोली- “राजप्रकाश से तुम्हारी कोई सौदेबाजी हुई है तो तुम उसी से कागज मांगना । मैं ऐसी... वह आ रहा है।"
राजप्रकाश ने कपड़े बदल लिए थे। जौहरी और रमाकान्त उसके साथ थे।
"राज ।" - कला राजप्रकाश को सम्बोधित करके बोली- "क्या तुमने सुनील को मुझसे कागज ले लेने के लिए कहा था ?"
"कौन-सा कागज ?" - राजप्रकाश सख्ती से बोला ।
"वही जो..." - कला सहमकर चुप हो गई।
"मैं किसी कागज के विषय में नहीं जानता... और मिस्टर सुनील... तुम जयनारायण की हत्या मेरे सिर पर नहीं मढ़ सकते। उसकी हत्या की रात को मैं कला के साथ था, क्यों कला ?"
कला क्षण भर सकपकाई और फिर सिर हिला दिया ।
"तुम अपनी बदमाशियों में इस गरीब लड़की को क्यों फंसा रहे हो ? तुम अपने साथ-साथ कला को भी बदनाम करना चाहते हो... अच्छा बताओ तुमने परसों की रात कहां गुजारी थी कला के साथ ?"
"इसके घर में।" - राजप्रकाश बोला ।
"नहीं, होटल में।" - कला ने प्रतिवाद किया।
"कौन-से होटल में ?" - सुनील ने कला से • पूछा।
"मुझे... मैं..." - वह चुप हो गई ।
'अब तुम बताओ।" - सुनील राजप्रकाश की ओर मुड़ा- "होटल में या उसके घर में ?"
“उसके घर में ।"
"नहीं राजप्रकाश ।" - कला याचनापूर्ण स्वर में बोली "तुम इन्हें सचसच बता दो। मेरे घर का नाम मत लो । "
"मैं सच ही तो बोल रहा हूं, तुम घबराती क्यों हो ?"
"राजप्रकाश ।" - सुनील हंसकर बोला "तुम गधे हो, उसने तुम्हें इतनी बार इशारा किया है कि तुम घर का नाम मत लो। उस रात कला के घर में कोई और आया हुआ होगा... क्यों कला ?" -
"मेरी मां वापिस आ गई है।" - कला सिर झुकाये हुए बोली ।
सुनील की हंसी निकल गई।
राजप्रकाश चिढ़कर जीप की ओर बढ़ते हुए बोला “आओ कला चलें । "
"रोकूं उसे ।" - जौहरी आस्तीन चढ़ाता हुआ बोला ।
"जाने दो यार।" - सुनील ने राजप्रकाश को सुनाकर कहा- "मच्छर है, मर जाएगा ।"
जौहरी निराश हो गया । मार-पिटाई का मौका हाथ से निकल जाने पर वह बहुत दुःखी होता था ।
"रमाकान्त ।" सुनील बोला- "इन तस्वीरों के प्रिन्ट निकलवाने का फौरन इन्तजाम करो। क्यों दिनकर, तस्वीरें ठीक आयेंगी न ?"
"पहली रील की आखिरी तस्वीर का तो मैं दावा नहीं करता।" - दिनकर बोला- "लेकिन दूसरी रील की तस्वीरें शर्तिया बढ़िया आयेंगी ।"
"क्या था ?" - रमाकान्त ने पूछा ।
"नम्बरों की लिस्ट थी ।" - सुनील बोला- "हो सकता है कोई गुप्त सन्देश हो ।"
"अबे रमाकान्त ।" - सुनील एकदम उछलकर बोला "बेटा, वह नम्बरों की लिस्ट साले पुलिस के पास जो सौ-सौ रुपये के पांच हजार रुपये के नोटों के नम्बर हैं, वह वही लिस्ट थी । " -
"असम्भव ।" - रमाकान्त बोला- "करोड़ों में से एक चांस नहीं है। उन नम्बरों की लिस्ट पुलिस के सबसे गुप्त रहस्यों में से है। उसे केवल सीक्रेट सर्विस का चीफ ही जानता है और राजप्रकाश का सीक्रेट सर्विस से कोसों का भी सम्बन्ध नहीं है । "
"लेकिन फिर भी मेरा दावा है कि वे नोटों के नम्बर थे । खैर... तुम प्रिन्ट निकलवाने का इन्तजाम करो।"
"मेरा एक फोटोग्राफर यार है। उसी के पास चलते हैं । वह जल्दी काम कर देगा। अब इन लोगों की जरूरत है ? "
"फिलहाल नहीं ।"
रमाकान्त ने कैमरा ले लिया और जौहरी और दिनकर को वापिस जाने के लिए कह दिया।
सुनील और रमाकान्त भी कार में बैठे। रमाकान्त ने कार शहर की ओर मोड़ दी।
"रमाकान्त ।" - सुनील बोला- "जरा डाक्टर स्वामी के क्लिनिक में भी चलेंगे।"
"क्यों ?"
"शायद वह राजप्रकाश के विषय में कुछ जानता हो
"पहले फोटोग्राफर के यहां न चलें ?"
"नहीं, डॉक्टर के पास पांच मिनट से अधिक नहीं लगेंगे।"
“अच्छा ।”
रमाकान्त चुपचाप कार चलाता रहा, फिर वह सुनील को सम्बोधित करते हुए बोला- "सुनील यह तो बताओ कि तुम जयनारायण के घर की खिड़की से किसको इशारा कर रहे थे ?"
"किसी को भी नहीं । "
"तुमसे प्रभुदयाल नहीं, रमाकान्त पूछ रहा है। नहीं बताना चाहते तो मत बताओ, झूठ तो मत बोलो।"
“रमाकान्त, विश्वास करो मैं किसी को इशारा नहीं कर रहा था।"
"उंह ।" - रमाकान्त रुष्ट स्वर में बोला ।
"भाई मेरे, तुम यह क्यों नहीं सोचते कि मैं खिड़की के रोलर में कुछ छिपा रहा था ।”
"क्या ?" - रमाकान्त हैरान होकर बोला ।
"मेरे पास कोई ऐसी चीज थी जो मुझे कभी फंसवा सकती थी। मुझे जयनारायण की कोठी में जाकर उसकी
भयानकता का पता लगा। मैंने खिड़की का ड्रैप नीचे खींचा, उसमें उसे रखा और ड्रैप वापिस अपनी जगह पर पहुंचा दिया । राकेश ने समझा कि मैं किसी को सिगनल कर रहा था । "
"अगर ऐसी बात है तो तुम समझ लो कि वह चीज इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल के हाथ में पहुंच गई।"
"कैसे ?"
"प्रभुदयाल एक एक्सपैरीमेंट-सा करने जयनारायण की कोठी पर गया था। वह यह देखना चाहता था कि ड्रैप से किसी को सिगनल किया भी जा सकता है या नहीं और खिड़की में इतनी रोशनी होती है या नहीं कि वहां खड़े आदमी को पहचाना जा सके। उसने अपने एक आदमी को राकेश की जगह खड़ा किया और स्वयं तुम्हारे वाला एक्शन दोहराया, ऐसे में उसे तुम्हारी रखी चीज जरूर ही दिखाई दे गई होगी।"
"प्रभुदयाल को क्या मिला वहां से ?"
"जो तुमने रखा था...लेकिन हैरानी यह है कि प्रभुदयाल ने वहां से कुछ मिलने की रिपोर्ट नहीं दी है। "
“अच्छा ?"
"हां।"
"रमाकान्त, यह भारतीय पुलिस है, क्या पता वहां से प्रभुदयाल को कोई ऐसी चीज मिली हो जिसे वह अपने लिए ज्यादा जरूरी समझता हो ।”
"प्रभुदयाल ऐसा अफसर नहीं है।"
"लेकिन नावां देखकर बड़े-बड़ों का मन डोल जाता है
"तो तुमने वहां रुपये रखे थे ?"
"हां, पन्द्रह सौ रुपये, प्रभुदयाल की कई महीनों की तनख्वाह ।"
"सुनील, प्रभुदयाल ऐसा आदमी नहीं है, अगर उसने यह बात छुपा भी रखी है तो केवल इसलिए कि वह तुम पर बम-सा छोड़ना चाहता होगा। वह ऐसे मौके पर यह बात आउट करेगा जब तुम्हें अपनी गर्दन बचाना मुहाल हो जाएगा 1"
"देखेंगे प्यारे ।"
***
डॉक्टर स्वामी क्लिनिक में मौजूद था। वेटिंग रूम में तीन-चार मरीज अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठे हुए थे।
सरोज, डाक्टर की नर्स वेटिंगरूम में खड़ी थी। सुनील को देखकर वह बोली "आप डॉक्टर से मिलने आए हैं ?"
"हां।" - सुनील ने उत्तर दिया ।
"मेरे पीछे-पीछे आइये ।" - सरोज बोली ।
अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठे हुए मरीज उन्हें पहले जाते देखकर चिढ़ गए और बड़बड़ाकर अपना असंतोष प्रकट करने लगे ।
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