ठीक छ: बजे उसने शबनम को फोन किया ।
उसने एक गुमनाम से रेस्टोरेन्ट में खाना खाया था और फिर कार को एक उजाड़ जगह पर खड़ी करके उसके भीतर लेटा रहा था । बड़ी मुश्किल से उसने छ: बजाये थे।
शबनम लाइन पर आई ।
"अभी दस मिनट पहले मनोहर का फोन आया था " उस ने बताया - "वह तुम्हें होटल रूपमहल के बार में मिलेगा।"
"ठीक है" - विकास बोला - "शुक्रिया ।”
"विकी" - एकाएक वह बड़े अपरिचित स्वर में बोली - "मुझ से एक बार फिर मिलोगे ?"
“जरूर । क्यों नहीं मिलूंगा ? क्या बात है ? ऐसे क्यों बोल रही हो ?"
"मैं नहीं चाहती कि तुम मुझे कभी फोन करके ही अलविदा कह दो | हमेशा के लिए ।"
" शबनम, तुम बार-बार मुझे क्यों यूं जताती हो जैसे मैं तुम्हारे साथ दगा करके चुपचाप कहीं खिसक जाने की फिराक में हं ?"
"मैं ऐसा कुछ नहीं जता रही। मैं तुमसे सिर्फ यह प्रार्थना कर रही हूं कि मुझसे मिल कर बिछुड़ना ।"
"फिर वही भावुकता वाली बातें ।”
“मिलोगे न एक बार ?"
मिलूंगा ।" "जरूर मिलूंगा, यार । एक बार क्या, हजार बार
"शुक्रिया । और भगवान के लिऐ मुझ पर खफा मत हो।"
फिर लाइन कट गई ।
विकास ने भी बड़े भारी मन से रिसीवर हुक पर टांग दिया। वह महसूस कर रहा था कि उसे शबनम के साथ तल्खी से नहीं बोलना चाहिए था । कोई वजह न होने के बावजूद वह भी पता नहीं क्यों अपने आपको शबनम का गुनहगार महसूस कर रहा था ।
वह कार पर सवार हुआ और होटल रूपमहल पहुंचा ।
वह बार में पहुंचा।
बार लगभग खाली था ।
मनोहर लाल बार काउन्टर पर बैठा बारमैन से बातें कर रहा था । उस वक्त वह कर्नल की यूनीफार्म में नहीं था ।
बार में दाखिल होते ही विकास ने बारमैन को कहते सुना - "ऐसे तो बात कुछ बनी नहीं, साहब । मेरे ख्याल से आप कुछ गलत कर रहे हैं । "
मनोहर के चेहरे पर उस वक्त ऐसे भाव थे जैसे अक्ल से उसका कोई दूरदराज का ही रिश्ता था । उसके माथे पर बल पड़े हुए थे और लगता था जैसे वह दिमाग पर बहुत जोर दे रहा हो - "भाई, मैंने वैसे ही कहा है जैसे किसी ने मुझे कहा था । सुनो, मैं फिर कहता हूं। मैं तुमसे दस रुपये की शर्त लगाता हूं कि अगर तुम मुझे बीस रुपये दोगे तो मैं तुम्हें पचास रुपये दूंगा । पहले भी मैंने यही नहीं कहा था ?"
"कहा तो आपने यही था साहब, लेकिन इस तरह से आपको शर्त जीत कर भी बीस रुपये का घाटा है। तभी तो मैं कह रहा हूं कि आप कुछ गलत कह रहे हैं।"
मनोहर फिर यूं सोच में पड़ गया जैसे उसे बारमैन की ही बात ठीक लग रही हो ।
विकास काउन्टर पर पहुंचा।
“यस, सर !" - बारमैन उससे बोला ।
विकास ने विस्की का आर्डर दिया ।
मनोहर की तरफ उसने आंख भी उठाकर नहीं देखा ।
बारमैन ने उसे विस्की सर्व कर दी फिर मनोहर के पास पहुंचा ।
“अगर आपको गारन्टी है, साहब" - बारमैन मनोहर से बोला - "कि आप ठीक कह रहे हैं तो आप पचास रुपये निकालिये ।”
मनोहर ने अपना पर्स निकाला । उसमें से एक पचास का नोट छांट कर उसने अपने सामने काउन्टर पर रख दिया ।
“यह पचास का नोट आप मुझे मेरे बीस के नोट के बदले में देंगे” - बारमैन अविश्वासपूर्ण स्वर में बोला - "इसी बात की दस रुपये की शर्त है न ?"
"हां ।" - मनोहर बोला ।
"यह नोट नकली तो नहीं । "
"तुम खुद परख लो इसे । "
बारमैन ने नोट उठा लिया। उसने उसे खूब अच्छी तरह परखा और फिर सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से । सिर हिलाते हुए उसे वापिस मनोहर के सामने रख दिया ।
“अब लग जाये शर्त ?" - मनोहर बोला ।
“आप घाटे में रहेंगे, साहब ।" - बारमैन बोला ।
"तुम्हें क्या ? तुम बोलो शर्त लगाते हो या नहीं ?"
बारमैन ने फिर मन ही मन हिसाब लगाया और फिर मनोहर की अक्ल पर तरस खाते हुए दस का नोट निकाला और अपने और मनोहर के बीच काउन्टर पर रख दिया ।
मनोहर ने उसके नोट के ऊपर अपना दस का नोट रख दिया |
“अब शर्त यह है" - मनोहर बोला "कि तुम मुझे बीस का नोट दोगे, बदले में तुम्हें मैं पचास का नोट दूंगा । जो शर्त जीते वह दस के ये दोनों नोट ले जाये । ठीक है । " =
बार मैन ने सहमति में सिर हिलाया ।
"अब बीस का नोट निकालो । "
बारमैन ने एक बीस का नोट निकाल कर मनोहर को दिया। और बोला - “अब आप मुझे पचास का नोट दीजिये ।”
मनोहर ने वह बीस का नोट अपनी जेब में डाल लिया । फिर उसने अपना पचास का नोट भी उठा कर जेब में डाल लिया और खेदपूर्ण स्वर में बोला - “च-च-च । मैं शर्त हार गया। दोनों दस के नोट तुम्हारे हुए, तुम शर्त जीत गये हो ।”
बारमैन उल्लुओं की तरह पलकें झपकाता हुआ उसे देखता रहा ।
फिर उसने बेमन से दस-दस के दो नोट उठा लिये ।
"यानी कि शर्त जीत कर भी मैं दस रुपये घाटे में रहा ।" - वह बोला ।
"जाहिर है - " - मनोहर बड़े इतमीनान से बोला । -
"खैर कोई बात नहीं । मैंने एक नया सबक सीखा । इन दस रुपयों की कसर तो मैं आप ही की तरह शर्त लगा कर किसी भी ग्राहक से निकाल लूंगा ।"
"जरूर ।"
"दस की ही कसर क्यों, मैं किसी से सौ की शर्त लगा सकता हूं कि कोई मुझे दो सौ रुपये देगा तो मैं उसे पांच सौ रुपये दूंगा ।”
"ऐसा भूलकर भी मत करना, मेरे भाई । "
"क्यों ?"
"छोटी-मोटी रकम के नुकसान को लोग मजाक में ले सकते हैं । दस रुपये की शर्त में बेवकूफ बनने में वे अपनी अक्ल को कोसेंगे लेकिन सौ रुपये की रकम में बेवकूफ बनने पर वे सारे सिलसिले को मजाक में नहीं लेंगे फिर वे इसे ठगी और धोखाधड़ी की संज्ञा देंगे और अपनी रकम वापिस मांगने लगेंगे । तुम रकम वापिस नहीं दोगे तो झगड़े फसाद की नौबत आ जायेगी। फिर मालिक अगर ग्राहक का पक्ष लेगा तो तुम्हें पैसे वापिस करने पड़ेंगे, तुम्हारा पक्ष लेगा तो ग्राहक खफा हो जायेगा और फिर न केवल दोबारा यहां कभी नहीं आयेगा बल्कि और लोगों में भी तुम्हारे बार को बदनाम कर देगा कि यहां तो ठगी होती है । "
"ओह !" - वह कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला "लेकिन दस रुपये की शर्त तो मैं कई लोगों से लगा सकता हूं।"
"हां । दस रुपये के नुकसान को लोग मजाक में उड़ा देंगे।"
"ठीक है ।"
“एक जाम तुम मेरे साथ पिओगे ?”
"मैं काफी चाहता हूं, साहब । यहां ड्यूटी के वक्त में बारमैन को पीने की इजाजत नहीं है ।"
"ओह ! और मुझे अकेले पीने में मजा नहीं आ रहा ।"
"साहब को साथी बना लीजिये ।" - बारमैन विकास की तरफ इशारा करता हुआ बोला ।
"अच्छी सलाह दी तुमने" - मनोहर बोला । फिर वह विकास से सम्बोधित हुआ - "एक ड्रिंक मेरे साथ हो जाये, नौजवान ।"
"क्यों नहीं ?" - विकास बोला- "मैं खुद अकेले पीता बोर हो जाता हूं।"
"यह की न मेरे दिल की बात । फिर तो चलो उधर टेबल पर चल कर इतमीनान से बैठते हैं । ... बारमैन, अगला राउन्ड मेरी तरफ से। उधर टेबल पर।"
बारमैन ने सहमति में सिर हिला दिया ।
दोनों ने अपने-अपने गिलास उठाये और एक मेज पर आ बैठे ।
विकास ने जेब से चली हई गोली निकाली और उसे चुपचाप मनोहर की हथेली में सरका दिया ।
“महाजन के घर में पैंतालीस कैलीवर की रिवाल्वर मुझे मिल गई थी । यह उसी में से चली हुई टैस्ट बुलेट है । अब तुम किसी तरह पुलिस के पास मौजूद घातक गोली से इसका मिलान करवाओ।"
"अगर पुलिस ने मुझसे यह पूछा कि मेरे पास गोली कहां से आई तो मैं इसका क्या जवाब दूंगा ?”
"पुलिस और तुम्हारे विनोद पुरी नाम के उस प्रैस रिपोर्टर दोस्त को यह बात पहले से ही मालूम है कि तुम मनोहर कहानियां के लिये महाजन के कत्ल की सत्यकथा तैयार करने के लिये मैटीरियल जमा कर रहे हो । यह बात और लोगों को भी मालूम हो सकती है। तुम कह सकते हो किसी ने यह गोली लिफाफे में बन्द करके तुम्हारे होटल के कमरे में डाल दी थी और तुम्हें एक गुमनाम टेलीफोन काल करके कहा था कि वह गोली घातक गोली से मिलती-जुलती हो सकती थी। उसी ने तुम्हें कहा था कि तुम गोली को पुलिस के बैलस्टक एक्सपर्ट से चैक करवाओ। वह तुम्हें कल फोन करके पूछेगा कि गोली मिली थी या नहीं । अगर गोली मिलती हुई पाई गई तो वह तुम्हें यह भी बता देगा कि घातक गोली चलाने वाली रिवाल्वर कहां थी । खलीफा, खुदा ने यही तो सबसे बड़ा गुण दिया है तुम्हें कि लोग तुम्हारी बात पर विश्वास कर लेते हैं। पुलिस गोली की यह कहानी जब तुम्हारे मुंह से सुनेगी तो देख लेना, कोई इस बारे में तुमसे सवाल तक नहीं करेगा । उलटे वे तुम्हें सहयोग देंगे कि शायद मर्डर वैपन तक वे तुम्हारे माध्यम से पहुंचने में कामयाब हो जायें ।"
“अच्छी बात है ।”
“अगर यह गोली घातक गोली से मिलती हुई हो तो तुम्हें रिवाल्वर वापिस महाजन के घर में पहुंचाने में मेरी मदद करनी होगी ।”
"वह रिवाल्वर तुम्हारे पास है ?"
"हां । इस वक्त वह मेरी किराये की कार में मौजूद है। मैं उसे यथास्थान रखने के लिए कोठी पर वापिस गया था तो पाया था कि वहां सुनयना लौट चुकी थी और तुम्हें भी वह अपने साथ लेकर आई थी । मुझे कोठी में दोबारा दाखिल होने का मौका ही नहीं मिला । "
"लेकिन तुम तो रिवाल्वर में से टैस्ट बुलेट कोठी में ही चलाने वाले थे।"
"मेरा ऐसा इरादा था लेकिन दिन दहाड़े कोठी में गोली चलाना मुझे बहुत खतरनाक लगा था इसलिए मैं रिवाल्वर के साथ बहुत दूर कहीं निकल गया था। इसीलिए मैं रिवाल्वर कोठी में वापिस रखकर नहीं आ सका था । "
"ओह !"
"सुनयना के साथ कैसी पटी ?"
"छोड़ो । शरीफ लोग ऐसे सवाल नहीं करते।”
"शरीफ लोग कौन है यहां ? मैं शरीफ या तुम शरीफ हो या वह बार मैन शरीफ है जो तुमसे ठगी का लटका सीखकर आगे अपने ग्राहकों को थूक लगाने की तैयारी कर रहा है । "
मनोहर ने जवाब नहीं दिया ।
बोला । “बात बहरहाल सुनयना की हो रही थी।" - विकास
"हां"
"तुम्हारा रोब उस पर गालिब हो गया था, वह तो इसी बात से जाहिर था कि वह तुम्हें घर लेकर आई थी । केस से ताल्लुक रखती कुछ बातें भी हुई थी या..."
"बहुत बातें हुई । " - मनोहर जल्दी से बोला ।
“अच्छा !"
"हां । लेकिन कोई सैन्सेशनल बात नहीं मालूम हो सकी। अलबत्ता उसने इस बात का जिक्र जरूर किया था कि उसके पति के पास एक पैंतालिस कैलीबर की रिवाल्वर थी जो उसके पति को मिल नहीं रही थी।”
"मिल नहीं रही थी, क्या मतलब ?"
"यह बात उसने उस शाम के जिक्र के दौरान कही थी जब उनके लैटर बक्स में वह कत्ल की धमकी वाली चिट्टी पड़ी पाई गई थी । वह चिट्ठी पढते ही महाजन पर पहली प्रतिक्रिया यही हुई थी कि वह अपनी रिवाल्वर निकालने चल पड़ा था । लेकिन रिवाल्वर उसे अपनी मेज के दराज में वहां नहीं मिली थी जहां वह हमेशा होती थी ।”
"क्या पता वह झूठ बोल रही हो ।”
"भई, मुझे तो वह झूठ बोलती नहीं लगी थी ।"
“रिवाल्वर के बारे में तुमने उससे और कुछ पूछा था ?"
"न । मैंने तो पहले भी अपनी तरफ से कुछ नहीं पूछा था। मैं पूछता तो वह मुझ पर शक करती कि मुझे कैसे मालूम था कि महाजन के पास वैसी कोई रिवाल्वर थी । रिवाल्वर के बारे में उसने जो कुछ कहा था खुद ही कहा था । महाजन को मिली धमकी भरी चिट्ठी के सन्दर्भ में रिवाल्वर का जिक्र आना स्वाभाविक था । "
"खलीफा, इस बात में कोई भेद है । "
"कैसा भेद ?"
"लगता है कि वह विशेष रूप से इस बात को लोगों की जानकारी में लाने की इच्छुक है कि कत्ल से पहली रात को महाजन की रिवाल्वर गायब हो गई थी । आखिर तुम्हें वह मनोहर कहानियां का प्रतिनिधि समझ रही थी । उसकी निगाह में जो कुछ वह तुम्हें बता रही थी, वह सब छपना था । इसीलिये उसने रिवाल्वर गायब होने की बात खास तौर से तुम्हें बताई । लेकिन मैंने रिवाल्वर वहीं पड़ी पाई थी जहां कि वह होनी चाहिए थी । गुरु, उसे रिवाल्वर का जिक्र करने की क्या जरूरत थी ? जरूर ऐसा उसने यह जताने के लिए किया था कि अपने पति के कत्ल में इस्तेमाल के लिए रिवाल्वर उसे उपलब्ध नहीं थी । "
"लेकिन यह तो आ बैल मुझे मार वाली बात हो गई । अगर उसने अपने पति का कत्ल किया था तो उसके लिये यह बेहतर बात नहीं थी कि वह रिवाल्वर के बारे में एकदम खामोश ही रहती ?"
“जरूर रिवाल्वर वाली बात उसके जहन पर हावी थी । उसकी गिल्टी कांशस ने ही उसे ऐसा कहने के लिए मजबूर किया मालूम होता है। गुरु, हत्यारे के अलावा यह बात और किसी को नहीं मालूम हो सकती कि महाजन की रिवाल्वर का केस से कोई रिश्ता था ।”
"देखो, तुम उसे हत्यारी समझ रहे हो, इसलिये तुम्हें उसकी हर बात शक के काबिल लगती है। लेकिन फर्ज करो कि वह बेगुनाह है, फिर... "
तभी उनकी ड्रिंक्स लेकर खुद बारमैन वहां पहुंचा।
मनोहर खामोश हो गया ।
बारमैन ने बड़े यत्न के साथ दोनों को ड्रिंक्स सर्व की और वहां से चला गया ।
"यह ड्रिंक्स लेकर खुद क्यों आया ?" - विकास सन्दिग्ध भाव से बोला- "किसी वेटर को क्यों नहीं भेजा इसने ?”
"वेटर उपलब्ध नहीं होगा ।"
"कहीं यह मेरी सूरत अच्छी तरह से देखने के लिए ही तो यहां नहीं आया था ?”
"सूरत तो वह तुम्हारी तब भी देख सकता था जब तुम काउन्टर पर बैठे हुए थे।"
“तब उसका सारा ध्यान तुम्हारी तरफ था । तुमसे बीस रुपये जीतने की उम्मीद जो कर रहा था वह । और फिर यहां के मुकाबले में वहां रोशनी भी कम थी ।"
"तुम्हारे दिल में चोर है इस लिये तुम्हें वहम लग रहा है । उसने तुम्हारी तरफ उतनी ही तवज्जो दी थी जितनी मेरी तरफ ।”
"मुमकिन है । वैसे तुम्हें तो यह उम्र भर यार रखेगा । बेचारे गरीब आदमी को खामखाह दस रुपये की थूक लगा दी
“प्रैक्टिस बनी रहनी चाहिये, बरखुरदार, और फिर जो आदमी हराम के पैसे का लालच करे, वह न बेचारा होता है और न गरीब । "
"तुम्हारे मोटे बकरे का क्या हाल है ? हलाल हुआ या नहीं ?"
"कौन सा मोटा बकरा ?"
"काटजू ।"
"यह नाम तुम्हें कैसे मालूम हुआ ?" - मनोहर तीखे स्वर में बोला ।
"बस हो गया ।"
“जरूर शबनाम ने बताया होग।"
"नहीं । वह तुम्हारी चेली है । तुम्हारे धन्धे से ताल्लुक रखती कोई बात न वह मुझे बताती है, न मैं उससे पूछता हूं |"
"तो फिर... ओह ! याद आया ! उस रोज डायनिंग हाल में तुम उसके पीछे ही तो बैठे हुये थे | जरूर तुमने शबनम और काटजू का वार्तालाप सुना होगा ।"
विकास तनिक धूर्ततापूर्ण ढंग से हंसा ।
- "बकरे का हाल अच्छा है" - इस बार मनोहर बड़े इत्मीनान से बोला- "बहुत जल्दी हलाल होने वाला है। सच पूछो तो वह तो हलाल होने के लिये तड़प रहा है । हमीं उसे थोड़ी ढील दे रहे हैं । "
"क्यों ?"
“तुम्हारा झमेला जो निपटाना है। काटूज का माल पीटने के बाद हमने इस शहर से कूच कर जाना है । और तुम्हें मंझधार में छोड़ कर हम यहां से जाना नहीं चाहते ।”
"शुक्रिया ।"
मनोहर ने अपना विस्की का गिलास उठा कर अपने होंठों की तरफ बढाया । एकाएक उसका हाथ रास्ते में ही ठिठक गया ।
"क्या हुआ ?" - विकास बोला ।
"वह बारमैन" - मनोहर धीरे से बोला- "कहां गया ? काउन्टर के पीछे दिखाई नहीं दे रहा वो । ऐसे बार छोड़कर वह जा तो नहीं सकता कहीं ।"
विकास तुरन्त चौकन्ना हो गया ।
उसने भी बार काउन्टर की तरफ देखा ।
बार का वातावरण एकाएक उसे बेहद खामोश और ब्लेड की धार जैसा पैना लगने लगा ।
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