कराची

जावेद अब्बासी के फोन की घंटी बजी।

दूसरी तरफ से एक जानी पहचानी आवाज को सुनकर वह पूरे जोश से बोला, “कैसे हो प्रोफेसर यानी उस्मान मियाँ।”

“अस्सलाम वालेकुम, मेजर अब्बासी। अच्छा हूँ और खुदा के फज़ल से खैरियत से भी हूँ। आपको यह बताना था कि चिड़िया हमारा फेंका हुआ दाना चुग गयी है। कादिर मुस्तफा को वे लोग हमारे कहे मुताबिक कुपवाड़ा में लाने के लिए राज़ी हो गए हैं। वहाँ से आगे अब आपको संभालना है। वे लोग जनाब कादिर मुस्तफा को एक बार कश्मीर की वादियों में आपके हवाले कर देंगे उसके बाद... ” उस्मान की बात बीच में ही रह गयी।

“उसके बाद मैं खुद उसे मुजफ्फराबाद से यहाँ कराची में लेकर आऊँगा। तुम इस बात की चिंता मत करो। हमारे प्लान का दूसरा हिस्सा कैसे कामयाब होगा?” जावेद अब्बासी ने बड़ी व्यग्रता से पूछा।

“हमारे प्लान के मुताबिक रुपया मुंबई के पोर्ट से मॉरीशस के लिए रवाना हो जाएगा। फिर मॉरीशस से हमारे लोग उसे लश्कर के आदमियों तक पहुँचा देंगे। अब की बार माल ज्यादा है इसलिए ये बखेड़ा करना पड़ रहा है। हवाला के जरिये से हमारे लोग पहले भी अपने साथियों को माली इमदाद पहुँचाते रहें है लेकिन दौलत अब की बार सरकारी है इसलिए वे लोग इसे हाथ लगाने को राज़ी नहीं है। उन्हें नेटवर्क के एक्सपोज होने का खतरा है।” उस्मान ने जवाब दिया।

“ठीक है। मॉरीशस कौन सा दूर है। जितनी देर में कादिर यहाँ पर पहुँचेगा उतनी देर में वह सारी दौलत हमारे कब्जे में होगी। उसके बाद मोर्चा फतह। हमारे इस सारे इंतजामात में कोई ख़लल ड़ाल सकता है तो वह एक ही वाहिद नामाकूल शख़्स है... अभिजीत देवल।” जावेद अब्बासी ने दाँत पीसते हुए कहा।

एक कर्णभेदी अट्टहास जावेद के कानों से इस तरह टकराया कि उसे एक बारगी तो फोन अपने कानों से दूर करना पड़ा।

“उस कमजर्फ को तो अबकी बार समझ नहीं आ रहा होगा कि करे तो क्या करे। सरकार बचाए, नीलेश को छुड़ाए, विस्टा के बाकी आदमियों को बरामद करे या ‘पर्ल रेसीडेंसी’ से हिंदुस्तानियों की लाशों को बरामद करे या डेढ़ हजार करोड़ रुपया बचाए।” उस्मान ख़ान की हँसी से उखड़ती आवाज के बीच जावेद को सुनाई दिया।

“अबकी बार बड़ी शानदार प्लानिंग रही तुम्हारी, उस्मान खान। दुश्मन को बहुत गहरी चोट दी है तुमने।” जावेद की आवाज में उसकी होने वाली जीत की खुशी ख़लक़ रही थी।

“ये तो अँधे के हाथ बटेर लग गयी, जावेद साहब। वो अपना लड़का है ना, राहुल तात्या उर्फ जमाल शेख, वो इस खेल का तुरुप का इक्का साबित हुआ। नीलेश समेत विस्टा के आदमियों को उठाने की सुपारी दिलावर टकले को मिली थी। जिन आदमियों को दिलावर ने यह काम सौपा उसमें अपना फर्माबरदार जवान जमाल शेख उर्फ राहुल भी शामिल था। उसने यह बात मुझ तक पहुँचाई और मुझे इसमें नहले पर दहला मारने का मौका मिला। बहुत उछलते हैं ये काफिर कि हमने सर्जिकल स्ट्राइक में ये किया, हमने सर्जिकल स्ट्राइक में वो किया। अबकी बार हमने वो काम किया कि सरकार तो जाएगी ही और साथ में हमें इतना पैसा मिल जाएगा कि हम घाटी को पूरी तरह नेस्तनाबूद कर देंगे।” उस्मान खान की आवाज में होने वाली जीत का सुरूर साफ झलक रहा था।

“क्या खूब तुमने मौका देखा है, उस्मान मियाँ। अगर हमारा यह दाँव कामयाब रहा तो यकीनन हम अपने मकसद को हासिल कर लेंगे। ये बेचारे हिंदुस्तानी, ‘भाई’ को हिंदुस्तान में वापस लाने की कहानी पर फिल्म पर फिल्म बनाते रह गए और हमने वो कारनामा हकीकत में अंजाम दे दिया। नीलेश को वे लोग अभी हिंदुस्तान में ढूँढ रहें हैं और हमारे एजेंट किसी मँझे हुए खिलाड़ी की तरह उस नेता के ‘बेबी’ को वहाँ से यहाँ इस तरह ले आये कि हिंदुस्तान की हवाओं को भी खबर नहीं हुई।” जावेद अब्बासी उस्मान के सुर में सुर मिलाता हुआ बोला।

“अब तो बस जनाब कादिर मुस्तफा के रिहा होने का इंतजार है। बहुत दिन हो गए उनसे रूबरू हुए।” उस्मान के मुँह से एक आह निकली।

“इंशाअल्लाह। हमारी मुराद जल्दी ही पूरी होगी और हमारी मुहिम घाटी में एक बार फिर पूरे जलाल पर होगी।” जावेद ने आसमान की तरफ हाथ उठाते हुए कहा।

तभी उस्मान के फोन पर एक मैसेज नमूदार हुआ। उस मैसेज को पढ़कर उसकी बाँछें खिल गयी। वह मैसेज तबरेज आलम का था।

तबरेज आलम ने सूचना दी थी कि हिंदुस्तानी कादिर मुस्तफा को कुपवाड़ा में उनके हवाले करने जा रहे थे और डेढ़ हजार करोड़ रुपया भी उन्हें मिलने वाला था।

उसने तुरंत यह खबर अपने पाकिस्तानी आका जावेद अब्बासी को सुनाई।

“बहुत खूब। बड़े दिनों के बाद कोई कारआमद और मुक़द्दस खबर सुनने को मिली है। इस बात की ताकीद उन हिंदुस्तानियों को जरूर कर देना की किसी किस्म की चालाकी न करें वरना नीलेश पासी और उसके दोस्तो की लाशों को नुमाइश पूरे वर्ल्ड में होगी। इस सरकार को मुँह छिपाने की जगह भी नहीं मिलेगी।” जावेद अब्बासी से अपनी खुशी छुपाई नहीं जा रही थी।

उस्मान ने उसकी बात सुनकर बड़ी ज़ोर का ठहाका लगाया और अब्बासी ने भी साथ दिया।

“और ये कमबख्त योगराज अभी तक क्या कर रहा है? उसने अभी तक सरकार से समर्थन वापस क्यों नहीं लिया ?” जावेद अब्बासी भुनभनाया।

“मैं उसके भी तार हिलाता हूँ, जनाब। अबकी बार आपके खादिम ने वो गोटियाँ फिट की हैं कि सब कुछ हमारे इशारे पर होगा। इंशाल्लाह, जल्द ही आपको वो सब सुनने को मिलेगा जिसकी आपको तमन्ना है। समझ लो हिंदुस्तान की सरकार गयी।” उस्मान ख़ान ने बड़े इत्मीनान से कहा।

“आमीन।” और इसके बाद लाइन कट गयी।

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मुंबई

श्रीकांत और नैना गेमिंग सिस्टम को लेकर कमिश्नर के ऑफिस में पहुँचे। वहाँ ऑफिस में मौजूद शाहिद रिज़्वी उनसे बड़ी गरमजोशी से मिला।

“कितने दिनों के बाद मिले हो तुम दोनों। लगता है यहाँ पर भी पूरे जलाल पर हो। श्री, पर्ल में अच्छा काम किया तुमने।” शाहिद खुश होते हुए बोला।

“लेकिन इस मसले की जड़ तो अभी भी ज्यों की त्यों है। हम सिर्फ़ एक मोर्चा जीते हैं पर पूरी लड़ाई अभी बाकी है।” श्रीकांत ने जवाब दिया।

“तुम्हारे पास इस बॉक्स में क्या है?” शाहिद ने श्रीकांत के हाथ में थामे हुए बॉक्स को देखते हुए कहा।

“इसे नैना ने चंडुवाड़ी चाल से तब बरामद किया जब यह एक लीड पर काम करते हुए वहाँ पर पहुँची थी। इसके थ्रू किसी भाषा में संदेशों का आदान-प्रदान हो रहा था। वो लेंगुएज तो हमें समझ नहीं आयी। अब इसमें क्या खिचड़ी पक रही थी, इसी बात का तुम्हें पता लगाना है।” श्रीकांत ने बात का खुलासा करते हुए कहा।

“इसमें मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ?” शाहिद ने सवालिया नजरों से नैना की तरफ देखते हुए कहा।

“जरा इस भाषा को ध्यान से देखो। उर्दू तो मैं थोड़ा बहुत समझ लेती हूँ लेकिन ये... मेरी समझ से बाहर है।” नैना ने सिस्टम को ऑन करते हुए कहा।

शाहिद और श्रीकांत की नजरें स्क्रीन पर जा टिकी। स्क्रीन पर एक वार-गेम चल रहा था जिसमें गोलियाँ लगातार सामने सैनिकों पर बरसाई जा रही थी। नैना ने उस गेम का लॉगिन कोड ब्रेक करते हुए गेम जॉइन कर लिया। उस स्क्रीन पर कई चैट रूम खुल गए थे जो ज़्यादातर अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग कर रहे थे। लेकिन एक चैट रूम कुछ अलग भाषा का था। नैना ने उस चैट रूम को जॉइन किया।

कुछ देर के बाद एक बीप की साउंड हुई। एक मैसेज बॉक्स स्क्रीन पर दिखाई देने लगा।

“ये लोग पश्तो भाषा में बात कर रहें हैं। क्या हम उनकी चैट में भाग लें?” शाहिद ने पूछा।

“नहीं। पहले ये देखो कि उन लोगों के बीच क्या बात हो रही है?” नैना ने स्क्रीन पर आँखें गड़ाए हुए कहा।

तभी एक और मैसेज स्क्रीन पर दिखाई देने लगा।

“ये लोग तो किसी हॉस्पिटल के बारे में बात कर रहें हैं। किसी चिराग के जलते रहने की दुआ माँग रहे हैं जो आज बुझने वाला है।” शाहिद ने मैसेज पढ़ते हुए कहा।

“हॉस्पिटल? चिराग? क्या मतलब हुआ इसका?” श्रीकांत ने अपनी पेशानी पर बल डालते हुए कहा।

“चिराग? क्या ये लोग नीलेश की बात कर रहें हैं?” नैना जैसे अपने आप से बात करते हुए बुदबुदाई।

“नीलेश तो उन लोगों के कब्जे में है ही! उसको मारना तो इनके लिए बड़ा आसान है। उसके लिए ये लोग यहाँ पर माथापच्ची क्यों करेंगे?” श्रीकांत ने जैसे अपने आप से सवाल किया।

“तो फिर ये लोग आखिर करना क्या चाहते हैं? अगर ये चिराग नीलेश नहीं है तो फिर कौन है ?” शाहिद के हाथ में फिर एक सिगरेट नाचने लगी थी।

“फिर ऐसा कौन है जो इस वक्त हमारे कब्जे में है। कौन है ‘चिराग’ जिसे ये मारने के तमन्नाई हैं?” श्रीकांत बोला।

“होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ में तो सभी घुसपेठिए मारे गए थे। उनमें से तो कोई हमारी हिरासत में नहीं है। प्रदीप! प्रदीप कहाँ पर है? कहीं वह तो उन लोगों के निशाने पर नहीं है?” नैना ने आशंका जाहिर की।

“प्रदीप ‘मलकानी हॉस्पिटल’ में भर्ती है जो ‘पर्ल रेसीडेंसी’ के बिल्कुल पास में है। वह उनके लिए क्या खतरा बनेगा? ज्यादा से ज्यादा उन लोगों के कब्जे से एक आदमी कम हो गया। इससे उन्हें क्या फर्क पड़ता है ?” शाहिद ने अपनी राय प्रकट की।

“हम इस तरह हाथ पर हाथ रखे तो नहीं बैठ सकते, रिज़्वी साहब। चाहे असफलता ही हाथ लगे लेकिन हमें कोशिश तो करनी होगी।” श्रीकांत बोला।

“तो फिर क्या?” नैना ने पूछा।

“आई हैव टु गो टू मलकानी हॉस्पिटल राइट नाओ। नैना तुम यहाँ पर शाहिद के साथ रुको और इन लोगों की चैट पर नज़र रखो।” ये कहते हुए श्रीकांत अपनी जगह से तुरंत उठा।

उसने अंधेरी पुलिस स्टेशन में मौजूद आलोक देसाई को एक पुलिस की टुकड़ी लेकर मलकानी हॉस्पिटल पहुँचने के लिए कहा।

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श्रीकांत और नैना के कमिश्नर ऑफिस चले जाने के बाद सुधाकर ऑपरेशन रूम में मॉनिटर के सामने निगाहें गड़ाए बैठा था। उसकी निगाहें मॉनिटर पर चल रही ट्रैफिक रिकॉर्डिंग को बड़ी बारीकी से खंगाल रही थी। वह उन दो ट्रालों का नंबर ट्रेस करने में कामयाब हो गया जो उसकी दिलचस्पी का कारण बन चुके थे। उनके रजिस्टर्ड नंबर से उनके मालिकों का पता लगाने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई।

दोनों ट्रालों के नंबर मुंबई के ही थे और उन में से एक के मालिक का पता अंधेरी और और दूसरे का जोगेश्वरी का लिखवाया हुआ था।

अचानक उसे चरणजीत वालिया का ख्याल आया। उसने तुरंत चरणजीत वालिया का नंबर मिलाया। हो सकता है, वह उन मालिकों को जानता हो।

“हुकुम मालको। सब खैरियत तो है। फिर मेरी याद कैसे आ गयी।” चरणजीत का सहमा हुआ स्वर सुधाकर के कान में पड़ा।

“ऐसी खैरियत तो दुश्मनों को भी नसीब ना हो, वालिया साहब। तुम्हारी बस के किस्से के साथ शुरू हुई छोटी सी कहानी हमारे लिए अब एक महाभारत बन गयी है। एक छोटी सी लगने वाली वारदात में इतना बड़ा झोल निकलेगा, इसकी उम्मीद हमें नहीं थी। अब तुम दो ट्रालों के नंबर और उनके मालिकों के पते नोट करो। मुझे बताओ कि ये ट्राले अपनी बुकिंग की जगह पर पहुँच चुके हैं या नहीं। अगर तुम उनके मालिकों को लेकर यहाँ आ सकते हो तो हमारा काफी समय बचेगा।” सुधाकर ने जल्दी से कहा

“ठीक है। ये दोनों मेरे जान-पहचान के आदमी हैं। मैं पता करके आपको बताता हूँ।” चरणजीत ने जवाब दिया।

“अगर उन्हें कोई एतराज हो तो मुझे तुरंत बताना। फिर मैं पुलिस की गाड़ी भेज कर बुलाता हूँ उन्हें।”

“ओ, नहीं बाउजी। मैं गल करदा उन दोनाँ दे नाल। फिर आपको फोन करता हूँ।”

इसके बाद लाइन कट गयी।

सुधाकर के अगले दस मिनट बड़ी मुश्किल से गुजरे। अगर उसका बस चलता तो वालिया को फोन करने की बजाय वह उड़कर उन दोनों ट्रांसपोर्टरों को ले कर वापस आ जाता।

दस मिनट के बाद उसके फोन की घंटी बजी।

“बोलो वालिया साहब। क्या खबर है?” सुधाकर बेसब्री से बोला।

“सर, जोगेश्वरी वाला ट्राला अभी तक अपनी जगह पर नहीं पहुँचा। उसके मालिक विनय मोटवानी ने उसकी चोरी की रिपोर्ट जोगेश्वरी के थाने में लिखवा रखी है।” चरणजीत वालिया ने जवाब दिया।

“इस वक्त हमें कहाँ पर मिलेगा यह विनय मोटवानी?” सुधाकर ने पूछा।

“वह अपने ऑफिस में ही मिलेगा। ऑफिस के ऊपर ही उसका रेसिडेंस भी है।”

“ठीक है, मैं उससे पूछताछ के लिए अपनी टीम भेज रहा हूँ। उसे कहो की वह अपने ठिकाने पर मौजूद रहे। विनय मोटवानी से कहो कि उस ट्राले की लास्ट में कटी टोल पर्ची और आखिरी जीपीएस लोकेशन मुझे भेजे।”

इस वार्तालाप के बाद सुधाकर ने एक एएसआई को निर्देश देकर जोगेश्वरी के लिए रवाना कर दिया। कुछ समय बाद विनय मोटवानी की भेजी हुई टोल की रसीद उसके पास मैसेज में दिखाई दे रही थी।

सुधाकर को एक बात खटक रही थी कि वह ट्राला वसई क्रीक के नाके से होकर गुजरा था लेकिन उससे आगे उसका कोई अता-पता नहीं था। उसने मिलिंद राणे को बुलवाया।

“राणे, अपने भेदियों को वसई क्रीक और नवघर के एरिया में लगा। राहुल तात्या की फोटो उन सबके पास होनी चाहिए। साथ में उस बस का नंबर और फोटो जिसमें विस्टा टेक्नोलॉजी के आदमी सवार हुए थे। मेरा दिल कह रहा है कि वहाँ से हमें कुछ न कुछ जरूर मिलेगा।”

“ये अचानक वहाँ का ख्याल कैसे आया?” राणे ने पूछा।

“जिस हिसाब से ये बस गायब हुई है और ट्राला चोरी हुआ है कुछ न कुछ तो इनका आपस में कनैक्शन है। मैंने उस इलाके की सारी सीसीटीवी फुटेज छान मारी। उस जगह पर आकर सारी कहानी रुक जाती है। उधर नवघर का फॉरेस्ट रिजर्व भी है। क्या पता हमारा शिकार वहीं हो?” सुधाकर ने जवाब दिया।

“हम्म। तो उधर राउंड मार के आने का है क्या?” राणे ने सवाल किया।

“कुछ करने के लिए कुछ तो हिलाना पड़ेगा न। बैठे-बैठे तो कुछ होने से रहा।” सुधाकर ने आँख मारते हुए कहा।

राणे ठठा कर हँसा।

कुछ समय बाद सुधाकर भी सादे कपड़ों में मिलिंद के साथ दो आदमियों को लेकर अपनी बोलेरो में सवार होकर वसई क्रीक की तरफ रवाना हो गया।

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कराची

जावेद अब्बासी कराची के सेफ हाउस में पहुँचा। उसने वहाँ पर मौजूद सिक्योरिटी इंचार्ज समद ख़ान को बाद में नीलेश को कराची से मुजफ्फराबाद ले जाने के लिए तैयार रहने के आदेश दिये। वह खुद नीलेश को कराची से इस्लामाबाद तक पाकिस्तान आर्मी के हेलीकॉप्टर में लेकर जाने वाला था। समद खान जावेद अब्बासी का वफादार आदमी था। पचास के पेटे में पहुँचे हुए उस आदमी की एक ही खास बात थी कि उसके लिए दुनिया में वही सच था जो अब्बासी के मुँह से निकले।

कराची से मुजफ्फराबाद के सफर के लिए आर्मी हेडक्वार्टर से हेलीकॉप्टर के जरिये उड़ान भरी जानी थी। इस सफर में उसे सिर्फ़ ढाई घंटे लगने वाले थे। उस्मान के मुताबिक कादिर मुस्तफा को कुपवाड़ा तक पहुँचने में अभी बारह घंटे का वक्त बाकी था। इस लिहाज से अभी उसके पास काफी वक्त था।

वह कादिर मुस्तफा की रिहाई का इंतजार कर रहा था। उसके प्लान के मुताबिक कादिर के एक बार मुजफ्फराबाद पहुँचने के बाद नीलेश को वहीं मुजफ्फराबाद में ही दफन कर दिया जाना था। यही हाल नीलेश के साथियों का हिंदुस्तान में होना था। उसे तो बस हिंदुस्तान की सियासत में जलजला लाना था और डेढ़ हजार करोड़ अपने कब्जे में करने थे।

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उधर यासिर ख़ान का दिमाग भन्नाया हुआ था। उसे अपने फोन पर आये मैसेज से पता लग गया था कि बारह घंटे बाद कादिर मुस्तफा को पाकिस्तानी सेना के सुपुर्द कर दिया जाएगा। इस बात का मतलब यह होता कि जावेद अब्बासी कादिर मुस्तफा को छुड़ाने की अपनी चाल में कामयाब हो जाता।

यासिर खान को पूरा यकीन था कि जावेद अब्बासी नीलेश को कादिर मुस्तफा के रिहा होने के बाद इस दुनिया से रुखसत करने का इरादा किए बैठा था। शायद उसे ये खामखयाली थी कि हिंदुस्तान में बैठे इंटेलिजेंस के अफसरों को पता नहीं लगेगा कि नीलेश अब कहाँ था। अगर ऐसा था तो कितनी बड़ी गलतफहमी में था जावेद अब्बासी!

यासिर ख़ान को नीलेश को यहाँ से निकालना उसे मौत के मुँह में धकेलने के बराबर लगा लेकिन उसे अपनी बाजी तो खेलनी ही थी। अब उसे जल्दी से जल्दी नीलेश को यहाँ से निकालने का प्लान बनाना था। यह कारनामा उसे हर हालत में जावेद के यहाँ से रवाना होने से पहले करना था।

लेकिन कैसे ?

यह एक नामुराद मगर अहम सवाल था जो उसे अब सबसे ज्यादा परेशान कर रहा था।

इसका जवाब भी आखिर उसे जल्दी ही मिल गया।

आखिर उसके कराची में पनाह लेने के बाद की गयी तैयारी अब काम आने वाली थी। बलूचिस्तान में बहे उसके परिवार के लहू का हिसाब बराबर करने का भी वक्त आ गया था।

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