अखिलेश अपने स्थान से उठा ।


वी. सी. आर. और टी.वी. ऑफ किया ।


कमरे की लाइट ऑन करने के साथ कहा - - - "देखा . . देखा तूने कितने बेहया हैं ये दोनों?” अखिलेश ने अवतार से कहा --- “क्या इस तरह भी कभी किसी की पत्नी और भाई ने किसी को मारा होगा? क्या अब भी तू यही कहेगा जो हम करके आये वह ठीक नहीं था? अरे मैं तो कहता हूं कुछ भी नहीं था वो । एड्स के कारण तिल-तिल करके मर रहे अपने उस यार की कल्पना कर जिसकी बीवी ने अपने उरोज उसके छोटे भाई के सामने तानकर उन्हें चुसकने के लिए कहा । इसके मुकाबले तो अभी हम कुछ भी नहीं कर सके हैं । ”


“मगर !” भभकते चेहरे के साथ अवतार ने पूछा--- "यह फिल्म खींची किसने?"


“खुद राजदान ने।”


“राजदान ने?”


“कैमरा कमरे के एक रोशनदान पर लगा था। दिव्या और देवांश को अपने कमरे में आने के लिए कहने के बाद उसने रिमोट से उसे ऑन कर दिया था । "


“कैसेट तुम्हारे पास कहां से आई?”


“राजदान साहब के आफिस से बरामद मेरे नाम लिखे गये लेटर में उन्होंने दूसरी बातों के अलावा यह भी लिखा था-- 'मैंने अपने अंत की वीडियो फिल्म बनाने का पूरा प्रबन्ध कर लिया है। वीडियो कैमरा तुम्हें मेरे बेडरूम के एकमात्र रोशनदान से मिलेगा । रिमोट मेरी लाश के नजदीक सोफे के अंदर धंसा हुआ। मौका लगते ही तुम्हें उन सबको वहां से हटा लेना है। बेहतर है ठकरियाल के घटनास्थल पर पहुंचने से पहले इस काम को कर लो क्योंकि टकरियाल की नजर तेज है। वह इस सब तक पहुंच गया तो सारे किये - धरे पर पानी फिर जायेगा'।”


"ओह!”


“पढ़ते ही मैं विला की तरफ दौड़ पड़ा । छुपता- छुपाता टैरेस पर पहुंचा और ठीक तब जब दिव्या और देवांश लॉबी में ठकरियाल से उलझे हुए थे, मैं कमरे में पहुंचा । राजदान साहब का हुक्म बजाने के बाद उनके कमरे में पहुंचने से पहले बाहर । "


अवतार को एक बार फिर मानना पड़ा --- राजदान का प्लान बहुत सॉलिड था ।


अचानक वह एक झटके के साथ सोफे से खड़ा हुआ और कमरे में चहलकदमी सी करता बोला--- "इस सबके बावजूद अगर मैं ये कहूं तुम सबके सब चारों महाबेवकूफ हो तो तुम्हें कैसा लगेगा ?”


“मतलब?”


“वह औरत जिसे तुमने नागिन कहा, मेरी जिन्दगी में आई अब तक की आई सभी औरतों से ज्यादा खूबसूरत है। वह औरत हजार हजार गुना खूबसूरत हो ही उठती है जिसने दौलत का लिबास पहन रखा हो। पांच करोड़ की हुंडी है वह । पूरे पांच करोड़ की । और तुम उसे नंगी नचा रहे हो। थूक रहे हो उस पर | तुम्हें बेवकूफ न कहूं तो और क्या कहूं?”


“अवतार!” हैरान अखिलेश दहाड़ उठा--- "ये क्या बक रहा है तू?".


“वही !... जो तुमने सुना।” कहने के साथ अवतार ने रिवाल्वर निकालकर उन पर तान दिया ।


भौंचक्के रहे गये चारों ।


मारे आश्चर्य के बुरा हाल था।


बुद्धियां कुठित होकर रह गईं । फटी-फटी आंखों से अवतार की तरफ यूं देखते रह गये जैसे अचानक उसके सिर पर सींग नजर आने लगे हों ।


“आहा... हा... हा...।" पूरी तरह सतर्क अवतार् गुर्राया--- "हरकत नहीं अखिलेश । हरकत मत करना । मेरी अंगुली ट्रेगर पर है। बाल बराबर जुम्बिश की जरूरत पड़ेगी। हमेशा के लिए मुंह फाड़े पड़ा मिलेगा तू यहां । "


अखिलेश का हाथ जहां का तहां रुक गया।


“हाथ ऊपर उठा लो !” वह गर्जा --- “सब... जो नहीं उठायेगा उसे फर्श पर लिटा दूंगा ।"


सबके हाथ स्वतः हवा में उठते चले गये ।


चेहरों पर से आश्चर्य नाम की वस्तु कम होने का नाम नहीं ले रही थी । अवतार के वैसे रुख की तो कल्पना तक नहीं की थी उन्होंने जैसा सामने आया था । अंततः अखिलेश ने ही खुद को थोड़ा नियंत्रित करके कहा--- "अवतार ! तू पागल हो गया यार | क्या कर रहा है ये?”


“अभी तक नहीं समझा ?” उसके होठों पर कुटिल मुस्कान थी।


“समझ तो गये हैं कमीने मगर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं।" वकीलचंद भावुक स्वर में कह उठा--- "यकीन नहीं हो रहा बचपन का कोई दोस्त ऐसा भी हो सकता है। ऐसा, जो दोस्तों पर ही रिवाल्वर तान दे । मारने पर अमादा हो जाये।"


“गाली दी, तो भेजा उड़ाकर रख दूंगा वकील साहब ! ” अवतार ने दांत पीसे --- “दोस्ती की बात करते हो मुझसे। उससे... जिसने दुनिया के नजदीक से नजदीक रिश्ते को दौलत की चौखट पर सिर टकरा-टकराकर दम तोड़ते देखा है। मैं किसी दोस्ती - वोस्ती को नहीं मानता।”


“वो तो हमें नजर आ ही रहा है।" भट्टाचार्य ने कहा --- “मानता होता तो यह सब नहीं करता तू । अपने लेटर्स में जो मार्मिक अपील राजदान ने हमसे की है, वैसी ही तुझसे भी की है। बार-बार नाम लिखा है तेरा । दिल में यही मलाल लिये मर गया बेचारा मेरे चौथे यार का पता नहीं मिला मिल जाता तो उसे भी शरीक करता अपने इस मिशन में।”


"गलती मुझ ही से हुई जो बगैर छानबीन किये तुझ पर इतना विश्वास कर बैठा।" अखिलेश खुद ही से नाराज नजर आ रहा था --- “कारण एक... और सिर्फ एक ही आस्था थी । वही जो राजदान के दिल में थी । यह कि बचपन के दोस्त भगवान का रूप होते हैं। सारी दुनिया धोखा दे सकती है, प्रेमी-प्रेमिका बदल सकते हैं मगर बचपन का प्यार नहीं बदल सकता। कितना अटूट विश्वास था राजदान का इस बात पर कि उसने सारी दुनिया को छोड़कर दोस्तों पर भरोसा किया। अपने लेटर में बार-बार लिखा है गधे ने - - - ‘यार अखिलेश, बस एक ही बात का अफसोस है, अपने चौथे यार का कोई पता निशान न मिल सका । पता नहीं कहां होगा हमारा अवतार? मेरी मौत के बाद भी अगर किसी तरह उसका पता लगे तो मेरा ये लैटर जरूर पढ़ाना उसे । शामिल कर लेना इस मिशन में चारों मिलकर मुझ पर हुए जुल्म का बदला लोगे तो लगेगा चार यारों के कंधे पर सवार होकर जा रहा हूं--- श्मशान की तरफ । ऐसा नसीब..


“बस मिस्टर जासूस... बस!” अवतार ने उसकी बात काटी --- “मुझे भावुक करने का यह पैंतरा कम से कम मुझ पर बिल्कुल नहीं चलेगा। सिर पटककर मर जाओगे, भावुकता के जाल में नहीं फंसा सकोगे मुझे । जिस दुनिया में मैं हूं, वहां पहुंचे शख्स की सबसे पहले यही भावना 'ताक' पर रखी जाती है ।"


“कौन सी दुनिया में है तू?” अखिलेश ने उसके अंदर घुसना चाहा।


“मुझे तो ठकरियाल का ही कोई सगा - सम्बन्धी लग रहा है ।” वकीलचंद कह उठा --- "जिस लालच में वह फंसा था उसी में यह फंसा नजर आ रहा है। पांच करोड़ पर इस कदर लार टपक रही है इसकी कि चारों को मारने पर आमादा है। मगर याद रख अवतार--- वे पांच करोड़ किसी के हाथ नहीं लगेंगे। राजदान की हाय पड़ी हुई है उन पर | अभिशप्त हो चुके हैं। जो उन्हें हासिल करने की कोशिश करेगा वो इस दुनिया से गारत हो जायेगा ।”


“दिव्या को भूल रहा है तू। उसे, जिसे नागिन कह रहा था।”


“मतलब?”


“ हजारों नहीं तो सैकड़ों लड़कियों को उस हालत में जरूर देखा है मैंने जिस हालत में कुछ देर पहले दिव्या को दिखाकर लाये हो । भोगा है उन्हें । मगर दावे से कह सकता हूं वैसी फीगर उनमें से किसी की नहीं थी जैसी अभी-अभी उस टी. वी. पर देखी है | वाह ! शादी शुदा होने के बावजूद क्या मेंटेन करके रखा है उसने खुद को । पत्नी बनने के लायक न सही मगर बार-बार रौंदी जाने लायक जरूर है वह | मुझे हमेशा से ऐसी ही लड़कियां पसंद हैं। ऐसी --- जो खुद बढ़कर खुद को चूमने के लिए कहें। देवांश के लिए क्या समर्पण था उसमें बहुत जल्द वो समर्पण मेरे लिए होगा ।”


“देखा... देखा भट्टाचार्य ?" अखिलेश का चेहरा भभक उठा ---- "हम जिस जिस्म को देखकर शेम, शेम कर रहे थे । थूक रहे थे, यह उसकी फीगर देख रहा था। जिस दृश्य में हमें राजदान की वेदना नजर आ रही थी, उस दृश्य में दिव्या का समर्पण नजर आ रहा था इसे । मुझे तो लगता है --- तवायफों का दलाल है ये ।”


“ठीक पहचाना याड़ी । ठीक पहचाना मुझे ।" वह हंसा- "कुछ दिन यह धंधा भी किया था ।”


“मतलब?" अखिलेश की आंखें सिकुड़कर गोल हो गईं।


“ छोड़ मेरी हकीकत ! सुनेगा तो पेशाब निकल जायेगा तेरा । बकवास बहुत हो चुकी । अब तुम सब दीवार की तरफ मुंह करके खड़े हो जाओ।"


अखिलेश ने पुनः कुछ कहना चाहा परन्तु अवतार ने मौका नहीं दिया।


पुनः दीवार की तरफ घूम जाने के लिए कहा ।


लहजा ऐसा था, जिससे जाहिर था - - - हुक्म का पालन नहीं किया गया तो वह किसी भी हद तक जा सकता है। सो अखिलेश सहित सभी हाथ उठाये दीवार की तरफ घूम गये ।


रिवाल्वर की नोक पर अवतार ने उन सबकी जेबें खाली कर दीं।


अन्य सामान के अलावा सभी के पास एक - एक रिवाल्वर था ।


उन पर नजर रखे वह फोन की तरफ बढ़ा ।


एक हाथ में रिवाल्वर था । दूसरे से ठकरियाल का मोबाइल नम्बर रिंग किया । 

“क्यों मारा ?... क्यों मारा चांटा मुझे ?” नशे में धुत्त दिव्या ठकरियाल पर यूं झपटी जैसे उसे कच्चा चबा जायेगी।

भन्नाये हुए ठकरियाल ने एक चांटा और जड़ दिया ।

इसके अलावा चारा ही नहीं था कोई ।

दिव्या कुछ और बिफर गई । लम्बे-लम्बे नाखूनों से चेहरा नोंचने पर आमादा हो गई उसका । ठकरियाल ने उसकी दोनों कलाइयां पकड़ीं। होश में आओ दिव्या! होश में  आओ। खुद को गोली मारने की कोशिश की थी तुमने । चांटा नहीं मारता तो क्या करता ?”

“तू कौन होता है मुझे चांटा मारने वाला ?” दिव्या ने दांत किटकिटाये ---“मैं मरूंगी। मरना है मुझे। साले थूकते हैं मुझ पर | क्या मैं इतनी बुरी हूं?... क्या मैं इतनी बुरी हूं?” कहने के बाद वह फूट-फूटकर रो पड़ी ।

एक पल में भूल गयी, पहले पल वह ठकरियाल को कच्चा चबा जाना चाहती थी ।

यही हालत थी उसकी ।

पल में तोला, पल में माशा |

कभी रोने लगती ।

कभी हंसने लगती ।

मारे गुस्से के कभी चिल्लाने लगती ।

ठकरियाल समझ सकता था --- उसकी ऐसी हालत नशे की ज्यादती के कारण थी । सच्चाई ये है इस वक्त खुद उसके दिल में दिव्या के लिए सहानुभूति सी उमड़ रही थी।

उसकी हालत देखकर दुख हो रहा था उसे ।

शायद ही पहले कभी किसी औरत की ऐसी दुर्दशा हुई हो।  

नशे की हालत में बार-बार यही बुदबुदा रही थी वह --- "मैं घृणा के लायक हूं। उन्होंने थूक दिया मुझ पर । मैं जीना नहीं चाहती | मर जाने दो मुझे । प्लीज, मर जाने दो ।”

अभी तक नग्न थी वह ।

मगर अब कोई परवाह नहीं थी उसे इस बात की ।

कई बार खुद ठकरियाल ने गाऊन से जिस्म ढकना चाहा।

बार-बार खुद उसी ने गाऊन दूर फैंक दिया।

देवांश मसनद पर पड़ा था ।

चित ।

नंगा ।

बेहोशी के आलम में जाने क्या-क्या बुदबुदा रहा था वह ।

ठकरियाल को कई बार लगा --- दिव्या भी इसी हालत में पहुंच जाये तो बेहतर है

एक बार फिर वह उसके नजदीक पहुंचा। कंधे पर हाथ रखकर बोला --- “खुद को संभालो दिव्या । जो वे कर सकते थे, कर चुके । अब जो करेंगे, हम करेंगे।”

“क्या करोगे? ... क्या करोगे तुम ?” एक बार फिर वह बिफरकर खड़ी हो गई ।

तभी ठकरियाल का मोबाइल बज उठा ।

उसने जेब से निकालकर ऑन किया ।

दूसरी तरफ अवतार था । उसने कहा --- “फतह!”

“क- क्या ?” ठकरियाल के हलक से चीख निकल गई । उस एकमात्र शब्द का मतलब अच्छी तरह समझने के बावजूद

विश्वास नहीं आया उसे । मुंह से निकला --- “क्या कह रहे हो अवतार?”

“क्यों? मतलब नहीं समझते फतह का ? फतह का मतलब फतह । सारे सुबूत मेरे हाथ लग चुके हैं। बबलू एण्ड फैमिली भी यहीं है और ये ... ये मेरे सामने खड़े हैं। हाथ ऊपर । मुंह दीवार की तरफ | "

“म - मुझे यकीन नहीं आ रहा ।” मारे खुशी के ठकरियाल की आवाज बुरी तरह अवतार । अभी तो गये हो यहां से। और अब कामयाबी की सूचना दे रहे हो । इतनी जल्दी ! इतनी जल्दी कैसे हो गया ये सब?” 

“बारात लेकर पहुंच जाओ यहां । यकीन भी आ जायेगा।” दूसरी तरफ से कहा गया।

“कहां हो तुम? कहां आना है मुझे?”

“भट्टाचार्य फार्म हाऊस है ये ।” कहने के बाद अवतार ने पता समझा दिया ।

“ मैं आ रहा हूं। तब तक होशियार रहना । कोई चालाकी न दिखा पायें वे।” कहने के बाद उसने सम्बन्ध विच्छेद किया। खुशी से पागल सा होकर दिव्या से कहा- - - “तुमने सुना !

तुमने सुना दिव्या! अवतार कामयाब हो गया । सब कुछ उसके कहने में है। अब वही होगा जो हम चाहेंगे।”

“मैं थूकना चाहती हूं उन पर ।" वह बड़बड़ाई ।

ठकरियाल को लगा--- उससे बात करके इस वक्त वह समय ही जाया करेगा ।

एक ही डर था ।

जितनी 'फ्रस्टेटिड इस वक़्त वह है, कहीं आत्महत्या न कर ले । वही न रही तो पांच करोड़ का सपना बेकार हो जायेगा।

वे पांच करोड़ जो अब एक तरह से उसकी मुट्ठी में कैद थे। इस स्टेज पर पहुंचने के बाद अगर उन्हें दिव्या की आत्महत्या के कारण गंवाना पड़े तो --- भला इससे बड़ी बेवकूफी क्या हो सकती है!

वह यहां न रहा तो वह सुसाइड कर सकती है।

क्या करे वह ?

क्या करे ?

और फिर ।

एक ही बात सूझी उसे ।

वही किया ।

एक जोरदार कराट दिव्या की कनपटी पर रसीद की ।

एक हिचकी के साथ वह बेहोश हो गई ।

लहराकर उसका शरीर मसनद पर गिरने वाला था कि ठकरियाल ने संभाला । अपने कंधे पर लादा और लम्बे-लम्बे कदमों के साथ गुफा के मुहाने की तरफ बढ़ गया।

***

अगले दिन सुबह ठकरियाल फोन पर रणवीर राणा को रिपोर्ट दे रहा था --- “सर, आपके आशीर्वाद से मैंने पिछली रात बबलू को भी वापस गिरफ्तार कर लिया है। और उसके किडनेपर्स को भी । ”

“कौन लोग हैं वे ?”

“राजदान के दोस्त हैं ।"

“राजदान के दोस्त ? उन्होंने क्यों किडनेप किया उसे?”

“कहानी लम्बी है। मगर है दिलचस्प | "

“क्या हत्यारा बबलू ही है?"

"जी।"

“ और वो... वो जो अखिलेश पर लेटर था ।”

“फर्जी था, राजदान ने नहीं लिखा उसे ।”

“फिर किसने लिखा?"

“अखिलेश ने अपने किसी साथी से लिखवाया था ।”

“खुद अखिलेश ने ?” राणा का चौंका हुआ स्वर---“उसने ऐसा क्यों किया ?”

“सर ! बड़ा गहरा है वो । दिल्ली से मुंबई प्राइवेट डिटेक्टिव की हैसियत से केवल हमें अर्थात पुलिस को झांसा देने के लिए आया था । झांसा तो उसने अपने दोस्तों को भी दिया । उनकी नजर में वह राजदान के बचपन का दोस्त होने के नाते उसके हत्यारे से बदला देने के लिए आया था । परन्तु मजे की बात ये है, उसके मुंबई आने की असली वजह यह भी नहीं थी।” 

“बड़ी रहस्यमय बातें कर रहे हो तुम । असली वजह क्या थी ?”

“ उस पर बाद में चर्चा करूंगा। पहले इनका प्लान सुन लें।”

“बोलो।”

ठकरियाल ने एक नजर हवालात में बंद अखिलेश, वकीलचंद, भट्टाचार्य और समरपाल पर डाली । कुछ नहीं कर सकते थे वे। सलाखों के पीछे बंद थे। उनकी तरफ धूर्त मुस्कान उछालने के बाद फोन पर कहना शुरू किया --- “आप तो जानते हैं, शुरू में भट्टाचार्य को विश्वास नहीं था राजदान का हत्यारा बबलू हो सकता है। लेकिन जब सारे सुबूत मिल गये तो यकीन करना पड़ा । यह खबर उसने समरपाल और पूना स्थित अपने दोस्त वकीलचंद को दी। वकीलचंद ने दिल्ली स्थित अखिलेश को | इस सच्चाई ने वकीलचंद और भट्टाचार्य का खून खौला दिया कि बबलू ने उनके बचपन के दोस्त की हत्या कर दी है। समरपाल भी उन्हीं में शामिल हो गया । इन्हें यह गंवारा नहीं था इनके दोस्त के हत्यारे को सजा कानून दे । बबलू को ही नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार को ये अपने हाथों से सजा देना चाहते थे। प्लान अखिलेश ने बनाया, उस प्लान के मुताबिक वकीलचंद मान आयोग की तरफ से नियुक्त होकर थाने में आ धमका और रात के वक्त मेरे थाने से जाते ही बबलू को फरार करा दिया। उस वक्त बबलू को यही लगा वह उसका मददगार है। थाने में बाहर निकलते ही उसे भट्टाचार्य ने दबोच लिया और ले जाकर अपने फार्म हाऊस में कैद कर लिया । इधर, समरपाल ने ऐसा खेल खेला जिसे सुनकर आपको भी उतना ही आश्चर्य होगा जितना मुझे हुआ।”

“खेल के बारे में बताओ।”

“राजदान का क्लोन बन गया वह ।”

“क्-क्लोन ?”


"इनके कब्जे से न सिर्फ ठीक वैसा ही गाऊन मिला है जैसा राजदान की डैड बॉडी पर था बल्कि उसी के ब्राण्ड की सिगार की डिब्बी, वैसा ही म्यूजिकल लाइटर जैसा राजदान यूज करता था, परफ्यूम और आफ्टर शेव लोशन की शीशियां भी मिली हैं। राजदान के फेसमास्क को देखकर तो आप हैरान रह जायेंगे । एकदम परफैक्ट मास्क है। समरपाल को यह सब पहनाकर भी देख चुका हूं। हन्डरेड परसेन्ट नहीं तो नाइन्टी परसेन्ट जरूर वह राजदान नजर आता है।”

“राजदान बनने से उसे फायदा क्या हुआ ?”

"सबसे पहले वह बबलू के पास पहुंचा। उस वक्त स्वीटी भी वहां थी । बबलू के मां-बाप उस राजदान को अपने सामने देखकर हैरान रह गये जिसकी हत्या के जुर्म में हम लोग उनके बेटे को पकड़ ले गये थे। राजदान बनकर ही बात की समरपाल ने उनसे। कहा --- मेरे दुश्मनों ने मेरी हत्या करके बबलू को फंसाने का प्रपंच रचा था। जिसके बारे में समय रहते मुझे पता लग गया । मैंने उनके ऊपर चाल चल डाली । उन्हें इस भ्रम में फंसा दिया जैसे मैं मर गया होऊं । अब मेरा मकसद उनसे बदला लेना है । आप लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है । देख ही रहे हैं मैं जिन्दा हूं। सो, बबलू का बाल तक बांका नहीं हो सकता। वैसे भी मैंने उसे हवालात से निकाल लिया है। पुलिस दबाव डालने के लिए आप लोगों को उठा सकती है इसलिए आप मेरे साथ चलें ।

बस कुछ ही दिन की बात है। अपने दुश्मनों को मजा चखाने के बाद मैं खुद कानून के समक्ष पेश होकर सारी हकीकत बता दूंगा। कुछ उसकी बातों में आकर पुलिस के डर से और बबलू से मिलने की ललक के कारण वे उसके साथ चल दिये । स्वीटी को भी वह पुलिस द्वारा परेशान करने का भय दिखाकर साथ ले गया और उन्हें भी भट्टाचार्य के फार्म हाऊस में कैद कर लिया।"

“बबलू के साथ ही । ” 

“जी।"  

“राजदान को देखकर बबलू की क्या हालत हुई होगी?” “वही ।... जो ये लोग करना चाहते थे।”

“मतलब?”

“इन लोगों का मकसद था, उन्हें डरा-डराकर दहशत से मार डालना। आप समझ ही सकते हैं, जिसे बबलू अपने हाथों से मार चुका था, उसे जीवित देखकर मारे खौफ के क्या हाल हुआ होगा उसका ।”

"अखिलेश इस प्लान में कहां फिट होता है?”

“प्लान ही उसका है सर, सारा प्लान ही उसका है। समरपाल, भट्टाचार्य और वकीलचंद तो केवल प्यादे हैं उसके ।”

“मतलब?”

“प्रत्यक्ष में उसका काम था--- पुलिस और पूरे समाज को भ्रमित कर देना । वह राजदान के एक ऐसे लेटर के साथ सामने आया जिसने मुझे भी हैरान कर दिया और आपको भी। उसे पढ़कर लगता था हत्यारा बबलू नहीं है बल्कि एक से ज्यादा लोग हैं और राजदान ने इन्वेस्टीगेशन के लिए मरने से पूर्व खुद ही उसकी नियुक्ति की। मगर जांच के बाद मैंने लेटर को फर्जी पाया है ।” 

“वह कैसे?”

“सबसे पहले मैंने उससे कहा- - - 'अगर यह लेटर तुम्हें डाक से मिला था तो इसका एनवलप तो होगा तुम्हारे पास ? वह बगलें झांकने लगा। मेरा इरादा एनवलप पर लगी डाकखाने की मोहर देखकर यह पता लगाने का था कि असल में उसे कब पोस्ट किया गया ? बाद में कहने लगा --- 'एनवलप मैंने फाड़ दिया था | मुझे बात जंची नहीं सोचा ---इतना सुलझा हुआ जासूस भला उस एनवलप को कैसे फाड़ सकता है । जिससे यह साबित होता हो कि लेटर राजदान ने मरने से पहले लिखा था। सो, जांच की। लेटर की राइटिंग राजदान की राइटिंग से मिलाई । यह लेटर जिसने भी लिखा है, राइटिंग मिलाने की कोशिश जरूर की गई। मगर काफी फर्क है। राइटिंग एक्सपर्ट तो सारी कलई ही खोल देगा।

“सोच तो उस वक्त हम भी रहे थे ---कोई शख्स भला अपने मर्डर की इन्वेस्टीगेशन के लिए जासूस क्यों नियुक्त करेगा? बल्कि अगर किसी को पता लग जाये कि फलां वक्त, फलां लोग मेरी हत्या करने वाले हैं तो क्यों होने देगा अपनी हत्या ? समय रहते पकड़वा क्यों नहीं देगा ऐसे लोगों को ? मगर, लेटर में यह भी लिखा था---'इस रहस्य तक भी तुम्हीं को पहुंचना है कि मैंने अपनी हत्या क्यों होने दी?” 

"यह सब लेटर को विश्वसनीय बनाने के लिए और हमें भ्रमित करने के लिए लिखा गया था जो कि हम हुए भी ।”

“लेकिन सवाल यह उठता है वह राजदान का हत्यारा साबित किसे करना चाहता था ?”

“यही सर । यही है असली सवाल ।” कहते हुए ठकरियाल ने एक बार फिर सलाखों के पीछे मौजूद अखिलेश आदि की तरफ कुटिल मुस्कान उछाली --- "बिल्कुल सही पकड़ा आपने।”

"अखिलेश के निशाने पर दिव्या और देवांश थे।”

“क- क्या?”

“सच्चाई यही है सर ।"

“मगर क्यों? उनसे क्या दुश्मनी है उसकी ?”

“ औरत की चाह | "

“औरत की चाह ? "

“जो किसी समय अखिलेश ने दिव्या पर प्रकट की थी । "

“हुआ क्या था ?”

"दिव्या जी ने खुद बताया--- राजदान से उनकी शादी को अभी तीन ही महीने हुए थे कि एक दिन राजदान साहब का पुराना दोस्त मिलने आया। दोस्त ने उसकी खूब आवभगत की | दिव्या जी ने भी । शायद इसी कारण गलतफहमी हो गई उसे । राजदान की गैर मौजूदगी में पट्ठे ने दिव्या को पकड़ ही जो लिया । लगा मुहब्बत का राग अलापने । दिव्या जी हैरान | परेशान | समझाने की कोशिश की --- 'ये क्या बेवकूफी कर रहे हो अखिलेश । मैं तुम्हारे दोस्त की पत्नी हूं। मगर, उसकी समझ में कुछ आता ही कहां है जिसके सिर पर वासना का भूत ताण्डव कर रहा हो । दिव्या जी रजामंदी से नहीं मानीं तो जबरदस्ती पर उतर आया | हाथापाई शुरू हो गई। दिव्या ने करारे-करारे जड़ दिये पांच सात । संयोग से तभी राजदान साहब पहुंच गये। जमकर तू-तू मैं-मैं हुई दोस्तों में। बाद में अखिलेश यह कहकर चला गया - - - देख लूंगा तुम्हें ।”

“जाहिर है --- उसके बाद दोस्तों के बीच कोई सम्बन्ध नहीं रहा। राजदान अपनी दुनिया में मगन हो गया। अखिलेश अपनी । दिमाग तो उस वक्त घूमा जासूस साहब का जब वकीलचंद ने फोन पर राजदान के मर्डर और बबलू की गिरफ्तारी की खबर सुनाई। वकीलचंद क्योंकि राजदान का सच्चा दोस्त था । अतः फोन पर रोष भरे स्वर में कहा --- 'जी चाहता है, उस लड़के का खून पी जाऊं।' इस एक वाक्य ने पूरा मौका दे दिया अखिलेश को। दिमाग तो तेज है ही उसका । चुटकियों में दिव्या से बदला लेने की स्कीम बना डाली | वकीलचंद से कहा- - - ठीक कह रहे हो तुम । सजा तो उस लड़के को हमें अपने हाथों से ही देनी चाहिए । वकीलचंद बोला---'चाहता तो मैं यही हूं। मगर समझ में नहीं आ रहा ऐसा हो कैसे सकता है?