फारूख हसन !
माला नाम की लड़की के बारे में सोच रहा था । उसके ख्यालों में इस बुरी तरह खोया हुआ था कि अपने भाई की आवाज़ तो सुन रहा था लेकिन उसके शब्दों की ओर कतई कोई ध्यान उसका नहीं था क्योंकि उसके दिमाग में माला के सुडौल एवं पुष्ट शरीर की छवि बसी हुई थी ।
–"क्या यह सही नहीं है, फारूख ?" उसे अपनी ओर तवज्जो न देता पाकर कड़ी निगाहों से घूरता अनवर चिल्लाया–"फारूख क्या यह सही नहीं है ?"
–वे ब्लू मून क्लब के दूसरे खण्ड पर स्थित मैनेजर के ऑफिस में थे । पैराडाइज क्लब तबाह होने के बाद उन्हें यहां अपना ठिकाना बनाना पड़ा था क्योंकि अब यही उनकी सबसे बढ़िया प्रापर्टी थी ।
ब्लू मून की इमारत पैराडाइज के मुकाबले में अपेक्षाकृत छोटी थी लेकिन वो बढ़िया इलाके में था । हालांकि वहां आने वाले ग्राहकों की तादाद कम होती थी लेकिन वे सभी दौलतमंद और रेगुलर क्लायंट थे ।
आकार में कम होने के बावजूद ब्लू मून में ग्राउंड फ्लोर पर गेम्बलिंग रूम्स ज्यादा थे । पहले खण्ड पर बड़ा रेस्टोरेंट और बार एण्ड ग्रिल थे । फ्लोर शो ज्यादा उत्तेजक होते थे ।
फ्लोर शो देखने के बाद ही फारूख के मन में कामुक कल्पनाएं जाग उठीं और वह उनमें खो गया था ।
अनवर हसन ने पैराडाइज की चारों लड़कियों को, जो जिमनास्टिक के करतब दिखाती हुई नग्न नृत्य प्रस्तुत किया करती थीं, इसी क्लब में ट्रांसफर कर दिया था । वह बगैर काम लिये तनख्वाह देने के सख्त खिलाफ था । दूसरी वजह थी–उन चारों के शो का पूरे शहर में हाटेस्ट होना ।
फारूख हसन अपने अंदर उभरते वासना के ज्वार को दबाने की कोशिश करने लगा । उसने आस–पास निगाहें डालीं ।
कमरे में कई लोग थे ।
डेस्क के पीछे अनवर हसन था । उसके दायीं ओर था–ब्लू मून का मालिक और मैनेजर मुजफ्फर बेग ! उनके सामने बलदेव मनोचा था । हालांकि वह सीधा तना बैठा था लेकिन उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ था । डेस्क पर रखे दोनों ब्रीफकेसों को कनखियों से यूं देख रहा था जैसे उनके अन्दर काले नाग बंद थे जो किसी भी क्षण बाहर निकलकर उस पर झपट सकते थे ।
कमरे के दूसरे सिरे पर कालका प्रसाद दीवार से सटी कुर्सी पर बैठा था । भारी मजबूत जिस्म के चालीसेक वर्षीय उस आदमी को देखकर लगता था उसकी ज़िन्दगी का ज्यादातर वक्त जिम्नेजियम में कसरत करते गुजरा था । उसका सूट किसी बड़ी कम्पनी के सीनियर एग्जीक्यूटिव के सूट जैसा स्टाइलिश और कीमती था । पहली नजर में उसके एक्जीक्युटिव होने का धोखा भी लगता था । लेकिन गौर से देखने पर गलती का अहसास हो जाता था । कहीं कोई गड़बड़ जरूर थी । आंखों, होठों की कोर, हावभाव और चाल–ढाल से उसकी असलियत का अंदाज़ लगाया जा सकता था । उसकी मौजूदगी से ज्यादातर लोगों पर एक ही प्रतिक्रिया होती थी–भय से सिहरकर अपने अनिष्ट की आशंकाओं में घिर जाना ।
जब फारूख ने आस–पास देखा कालका प्रसाद मुस्करा रहा था । उसकी आँखें बराबर मनोचा पर टिकी थीं और मुस्कराहट ऐसी थी मानों किसी ऐसी मजेदार बात से लुत्फ उठा रहा था । जिसमें दूसरे लोग शिरकत नहीं कर सकते थे ।
उसके साथ तीन आदमी और थे । तीनों पहलवान टाइप थे और यूं दीवार से लगे खड़े थे जैसे गलियों के नुक्कड़ों पर इलाके के दादा नजर आते हैं ।
अनवर हसन ने डेस्क पर जोर से हाथ मारा ।
–"क्या यह सही नहीं है ?"
–"क्या ? क्या सही नहीं है, अनवर ?"
–"तुम सो रहे हो ? या कहीं और थे ?"
फारूख शर्मिंदगी से मुस्कराया ।
–"कहीं और था ।"
–"खुदा की मार ! तुम फिर लड़कियों के ख्वाबों में खो गये । पागल हो जाओगे, फारूख ! दिन में जागती आंखों से सपने लेना बंद कर दो ।"
दीवार से लगे खड़े आदमियों में से एक जोर से हंस पड़ा ।
–"मैंने कहा था ।" अनवर बोला–"पैराडाइज क्लब में जो हुआ उसकी सारी ज़िम्मेदारी मनोचा पर है ।"
–"बेशक ! तुम सही कह रहे हो ।"
मनोचा ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला फिर फौरन बंद कर लिया ।
–"अनवर भाई, मैं हर तरफ तो निगाहें नहीं रख सकता ।" संक्षिप्त मौन के पश्चात् वह बोला–"कम से कम तमाम पेपर्स और कैश तो मैं ले ही आया हूं ।"
अनवर जानता था, अपनी निगाहों या लहजे से किसको कितना डरा सकता था ।
–"फिर भी ज़िम्मेदारी तुम्हीं पर आयद होती है । हम जानते हैं कोई हरामजादा क्लॉक रूम में एक पैकेट छोड़ गया था, जिसे जाती दफा साथ नहीं ले गया ।"
मनोचा का अपना अपराध उसे अंदर ही अंदर कुतर रहा था और उसकी ओर ध्यान आकर्षित किये बगैर वह अपना बचाव करने के लिये मरा जा रहा था । हसन भाइयों के सामने इस पेशी में गुजरा हर एक पल उसके अंदर के सुरक्षा कवच को परत–दर–परत छीलता रहा था और अब वह समझने पर मजबूर हो चुका था कि दोनों भाई उसके दिमाग में एक्सरे मशीन की तरह झांक सकते थे ।
–"वहां काम करने वाली लड़की को मेरा ध्यान इस ओर दिलाना चाहिये था ।" उसने दलील पेश की–"लेकिन उसने ऐसा नहीं किया ।"
–"उसने ऐसा क्यों नहीं किया ?" फारूख हसन बातचीत में शामिल होता हुआ बोला–"उसने तुम्हें क्यों नहीं बताया ?"
–"उसकी दो में से सिर्फ एक वजह हो सकती है ।" कालका प्रसाद ने पहली बार मौन भंग किया–"उसने इसलिये तुम्हें रिपोर्ट नहीं दी क्योंकि या तो वह तुमसे बहुत ज्यादा डरती थी या फिर बहुत ही कम ।" उसके शान्त स्वर में पैनेपन का पुट था–"मेरा ख्याल है तुम स्टाफ के साथ नर्मी से पेश आते हो और लड़कियों पर ज्यादा ही मेहरबान रहते हो ।"
–"लड़कियों से काम कराने के लिये उनके साथ सही ढंग से पेश आना जरूरी है ।" मनोचा ने कहा–"बेवजह ज़्यादती नहीं की जा सकती । अब पहले वाला जमाना नहीं रहा ।"
–"जमाने की नहीं, अपनी बात करो ।" अनवर डेस्क पर आगे झुककर बोला–"तुम्हारी गलती साबित हो चुकी है ।"
–"कैसे ?"
–"सभी क्लबों के लिये सिक्योरिटी के जो उसूल बनाये गये हैं उन पर सख्ती से अमल कराना तुम्हारी ज़िम्मेदारी और फर्ज है । उसूलन, क्लब बंद होने के वक्त क्लॉक रूम में या कहीं भी अगर ग्राहकों की कोई चीज पड़ी मिलती है तो उसकी इत्तिला फौरन मैनेजर को दी जानी चाहिये । उस लड़की ने इतनी जहमत उठाना गंवारा नहीं किया । इसका मतलब है कि वह लापरवाह है और इसका सीधा–सा मतलब है–उसे अपनी नौकरी या अपने बॉस की परवाह नहीं है । तुम सख्ती से काम नहीं लेते, मनोचा !"
–"ठीक है । मैं उसके साथ सख्ती करुंगा ।"
–"उसकी फिक्र तुम मत करो । लड़कियों के लिये डिसीप्लीन निहायत जरूरी है और उस लड़की को अच्छी तरह सिखाया भी जायेगा । फिलहाल हम तुम्हारी बात कर रहे हैं । इस पूरी तबाही के लिये अभी भी तुम्ही जिम्मेदार हो ।"
मनोचा ने कुछ नहीं कहा ।
–"दूसरी एक और बात है ।" अनवर बोला–"तुमने पुलिस वालों के साथ बहुत ज्यादा वक्त गुजारा ।"
–"इसमें मेरी गलती नहीं थी ।" मनोचा ने कह तो दिया लेकिन फौरन ही अहसास हो गया, उसका लहजा गलत था । उसमें चिन्ता ओर अपराध भावना थी ।
अनवर मुस्कराया ।
–"यह तो किसी ने नहीं कहा कि तुम्हारी गलती थी । मैंने सिर्फ इतना कहा था तुमने उन लोगों के साथ बहुत ज्यादा वक्त गुजारा और अब मैं जानना चाहता हूं, क्यों ?"
–"क्योंकि उन्होंने मुझे लटकाये रखा था ।"
–"मतलब ?"
–"मैंने बताया तो था कि पहले तो वे मुझे ऑफिस में ही नहीं जाने देना चाहते थे । उनका कहना था इमारत इतनी ज्यादा जल चुकी है कि अंदर जाना खतरनाक है । लेकिन मैं जिद पर अड़ा रहा तो उन्हें मेरी बात माननी पड़ी । फिर जब में कीमती चीजें ब्रीफ़केस में लेकर नीचे आया तो बताया गया मुझसे पूछताछ की जायेगी । मैंने कह दिया वे जो चाहें पूछ सकते हैं । उन्होंने कहा पूछताछ पुलिस स्टेशन में की जायेगी ।"
–"लेकिन तुम्हें पुलिस स्टेशन नहीं हैडक्वार्टर्स में ले जाया गया था ।"
–"उनकी कार में बैठने के बाद मुझे पता चला वे कहां ले जा रहे थे । उस इंसपेक्टर ने...!"
– उसका नाम ?"
–"इंसपेक्टर कमल किशोर !"
अनवर ने कालका प्रसाद की ओर देखा ।
–"मुझे उसकी पूरी जानकारी चाहिये आज ।"
कालका प्रसाद ने सर हिलाते हुये आश्वासन देकर एक सिगरेट के पैकेट पर नोट कर लिया । यह उसकी बरसों पुरानी आदत थी । एक बार किसी का नाम, पता या नम्बर नोट करने के बाद वह कागज पुर्जे या पैकेट को नष्ट कर दिया करता था क्योंकि वो हमेशा के लिये उसे याद हो जाता था ।
–"कमल किशोर भला आदमी है ।" मनोचा ने कहा । साथ ही उसे गलती का अहसास हो गया इतनी जल्दी सही नहीं बताना चाहिये था ।
–"तुम्हारा मतलब है ?" फारूख ने पूछा–"उसे बोटी डाल दी गयी है ?"
–"इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी ।" पुन: बहुत ज्यादा जल्दी बोल पड़ा–"वह बस खानापूरी कर रहा था । मुझसे देर तक इंतजार कराने के लिये माफी तक मांगी । मुझे हैडक्वार्टर्स ले जाने के बाद उसे किसी मीटिंग में बुला लिया गया था । मुझे ब्रेक फास्ट तक कराया था उन्होंने ।"
–"वी० आई० पी० ट्रीटमेंट ।" कालका प्रसाद सांप की तरह फुफकारा ।
– तुम बेवकूफ़ हो, कालका ।" मनोचा का स्वर कुपित था–भय मिश्रित खीज लिये–"उसने बस वही सवाल किये थे, जो किसी भी पुलिसिये ने पूछने थे ।"
–"मसलन ?" अनवर ने पूछा ।
–"धंधे में मेरा कोई दुश्मन तो नहीं है, जैसे । स्टाफ के बारे में भी पूछा था । कोई मुझसे नाखुश या नाराज़ तो नहीं है ?"
–"दुश्मनी ? नाराज़गी ?" अनवर बोला–"बड़ी भारी दुश्मनी है । प्यार–मुहब्बत में कोई बम रखकर किसी इमारत को तबाह नहीं करता है ? खैर, तुमने उसे क्या बताया ?"
–"तुम क्या समझते हो, अनवर भाई मैंने क्या बताया था ? क्या यह कि दुबई का एक बड़ा गिरोह हसन भाइयों के पीछे हाथ धोकर पड़ गया है ?"
–"मुझे नहीं पता । मैं बस इतना जानता हूं, तुमने कई घण्टे उन लोगों के साथ गुजारे थे । इस दौरान तुम्हारी उनसे क्या बातें हुई मुझे नहीं मालूम । लेकिन इतना यकीनी तौर पर कह सकता हूं तुमने मौसम या राजनीति या फिल्मों पर बातें नहीं की होंगी और न ही गर्म लतीफेबाजी की होगी ।"
दीवार के साथ खड़े पहलवानों में से एक फिर जोर से हंस पड़ा ।
अनवर ने कुर्सी से पीठ सटाकर सिगरेट सुलगा ली ।
–"में जानना चाहता हूँ, इन ब्रीफकेसों में बंद सामान के बार में तुमसे क्या पूछा गया ?"
–"कुछ नहीं ।"
–"किसी ने भी नहीं ?"
–"बिल्कुल नहीं । उनकी सारी दिलचस्पी बम और क्लब की तबाही में थी ।"
–"हमारा जिक्र किया गया था ?"
–"एक बार भी नहीं ।"
–"बाई दी वे ।" फारूख ने पूछा–"क्या वहां तोमर नाम का एस० आई० भी मौजूद रहा था ?"
–"कौन ? वही जो कल रात तुमसे मिलने आया था ?"
–"हां, वही ।"
–"वहां सिर्फ इंसपेक्टर कमल किशोर और दो और पुलिसिये थे । उनके नाम नहीं मालूम । तोमर वहां नहीं था ।"
–"और उन्होंने ब्रीफ़केस खोलकर नहीं देखे ?"
–"नहीं, इनका जिक्र तक नहीं किया और न ही तुम्हारा ।"
–"सच कह रहे हो ?"
–"क्या मैंने पहले कभी झूठ बोला है ?"
–"इस मामले में सच–झूठ का फैसला जल्दी हो जायगा ।" अनवर ने ब्रीफकसों की ओर हाथ हिलाया–"रंगनाथन इन्हें चेक करके बता देगा ।"
रंगनाथन हसन भाइयों का एकाउंटेंट था । लंबे बालों वाले उस मद्रासी युवक का दिमाग कंप्यूटर की तरह चलता था । उसके काम करने का ढंग हसन भाइयों के लिये काम करने वाले दूसरे लोगों से अलग था । लेकिन दोनों भाई उस पर पूरा भरोसा करते थे और उसकी काबलियत की पूरी कद्र । उसे असेट्स छिपाने और काले धन को सफेद में बदलने में महारत हासिल थी । इनकम के सोर्सेज को कवर करने की उसकी काबलियत को देखकर बड़े–बड़े चार्टेड एकाउंटेंट चकरा जाते थे ।
अनवर द्वारा रंगनाथन का नाम लिया जाते ही मनोचा पर और ज्यादा दहशत सवार हो गयी । वह जानता था वो एकाउंटेंट उन दोनों पुलिस वालों से कम काबिल और तेज दिमाग नहीं था, जो पूछताछ के दौरान कमल किशोर के साथ मौजूद रहे थे । मनोचा को यकीन था रंगनाथन ब्रीफकसों में बंद कागज़ात को चैक करके यह तक बता देगा कि वे फोटोस्टेट मशीन से गुजर चुके थे ।
मनोचा ने नोट किया, सब कड़ी निगाहों से उसे घूर रहे थे ।
–"तुम परेशान और नाखुश नजर आ रहे हो ।" फारूख ने टोका ।
–"तो क्या मुझे खुश होना चाहिये ? मैं धक्के खाता फिर रहा हूं । क्लब तबाह कर दिया गया और मुझे उन लेजर्स पेपर्स कैश को गले में लटकाये घूमना पड़ रहा है, जो हम सबको जेल पहुंचा सकते हैं ।"
–"ऐसा नहीं होगा ।" पूर्ववत् मुस्कराता कालका प्रसाद बोला–"बशर्ते कि तुमने दगाबाजी या गद्दारी नहीं की है ।"
अनवर कुटिलतापूर्वक मुस्कराया ।
–"कैसी बात कर रहे हो कालका ?" उसके तल्ख लहजे में उपहास का पुट था–"तुम्हें मनोचा पर शक नहीं करना चाहिये । यह हमारा पुराना साथी है । दगाबाजी नहीं कर सकता । क्यों मनोचा ?"
–"जितनी देर मनोचा पुलिस वालों के साथ रहा है अगर उतनी देर मेरी मां भी पुलिस हैडक्वार्टर्स में रही होती तो मैंने उस पर भी शक करना था । मैंने पुलिस वालों को कभी कम नहीं समझा, अनवर । उनके अपने तरीके हैं–मुंह खुलवाने और असलियत कबूलवाने के । अगर वे लोग चाहें तो पत्थर को भी पिघला सकते हैं ।"
–"हो सकता है । लेकिन फिलहाल इस पर बहस करना बेकार है । रंगनाथन हमें असलियत बता देगा ।" अनवर ने कहा और पुनः मनोचा से मुखातिब हो गया–"उस लड़की का क्या नाम है जो कल रात क्लॉक रूम में ड्यूटी पर थी ?"
मनोचा ने रमोला के बारे में बता दिया । उसका हुलिया भी बयान कर दिया । लेकिन एड्रेस उसके पास नहीं था क्योंकि पैराडाइज क्लब के ऑफिस से मुलाजिमों की फाइलें लाने के झमेले में वह नहीं पड़ा था ।
अनवर ने कालका प्रसाद की ओर देखा ।
उसने एक पहलवान की ओर सर हिला दिया ।
उनका आशय समझ चुका पहलवान चुपचाप बाहर निकल गया ।
मुश्किल से मिनट भर बाद ही दरवाजे पर दस्तक दी गयी फिर उस्मान लंगड़ा भीतर दाखिल हुआ । वह पार्ट–टाइम मैनेजर के तौर पर काम करता था । जब भी कोई मैनेजर छुट्टी पर होता था या बीमार पड़ जाता या फिर किसी लफड़े में फंस जाता तो उसकी जगह उस्मान को बुला लिया जाता । इसके अलावा वह हसन भाइयों के लिये लाइजन ऑफिसर का काम भी करता था । असल में वह लंगड़ा नहीं था लेकिन थोड़ा लंगड़ाकर चलता था । यह लंगड़ाहट उसे हसन भाइयों के प्रति वफ़ादारी दिखाने के इनाम के तौर पर मिली थी । करीब चार साल पहले बाहर के एक गिरोह ने हसन भाइयों की हुक़ूमत को चुनौती देने की कोशिश की थी । उस गिरोह को तो आखिरकार मुंह की खाकर हार माननी पड़ी लेकिन कोई हफ्ता भर चली उस मारा–मारी में उस्मान एक बार उन लोगों के हाथ पड़ गया था और उसे टार्चर किया गया । तब से टांग की मांसपेशियों में आये विकार की वजह से उसकी चाल बदल गयी । विकार ठीक होने में वक्त लगा, मगर तब तक लंगड़ाकर चलना उसकी आदत बन चुकी थी ।
उस्मान लंगड़ा औसत कद का और देखने में निहायत मामूली आदमी था । लेकिन वह आमतौर पर खुश नजर आता था । हसन भाइयों के लिये काम करने के अलावा उसे औरतों की सोहबत हासिल करने का बड़ा शोक था । इसमें कभी कोई दिक्कत पेश नहीं आती थी उसे । क्योंकि उस किस्म के धंधे में था जहां लड़कियों की कोई कमी नहीं थी । दूसरे आदतन खुश रहा करता था ।
लेकिन आज खुशी उससे कोसों दूर थी । मनोचा और हसन भाइयों के लिये काम करने वाले दूसरे ज्यादातर लोगों की तरह उस्मान लंगड़ा भी जानता था भाइयों के लिये बुरी खबर लाना या उन्हें सुनाना किसी भी हद तक खतरनाक साबित हो सकता था ।
उस्मान लंगड़ा खबर लेकर आया था, असगर अली को गिरफ्तार कर लिया गया था । इस बुरी खबर से ओर ज्यादा बुरी बात थी उसका बड़े ही शर्मनाक हालात में पकड़ा जाना । जब पुलिस होटल में उसके कमरे में दाखिल हुई असगर अली अफरोज नाम की लड़की के साथ सहवास के नाम पर कुकर्म कर रहा था । उन दोनों को रिंग रोड पुलिस स्टेशन ले जाया गया था, जहां अब वे क्राइम ब्रांच के अफसरों के पहुंचने का इंतजार कर रहे थे ।
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