दूसरी सुबह कर्नल ज़रग़ाम की कोठी के कम्पाउण्ड में गुप्तचर विभाग के डी.एस की कार खड़ी दिखाई दी। वह अन्दर कर्नल का बयान ले रहा था। इमरान ने रात ही कर्नल को अच्छी तरह पक्का कर लिया था। इस वक़्त कर्नल ने वही सब कुछ दुहराया था जो उसे इमरान ने बताया था। उसने डी.एस. को बताया कि उसे भी शिफ़्टेन का ख़त मिला था और वह उसी के ख़ौफ़ से उड़न-छू हो गया था। फिर उसने डी.एस. की जिरह का जवाब देते हुए बताया कि वह इससे पहले भी एक बार शिफ़्टेन का शिकार हो चुका है। उस मौक़े पर उसे पचास हज़ार रुपयों से हाथ धोने पड़े थे। लेकिन उसे आज तक यह न मालूम हो सका कि शिफ़्टेन किसी एक आदमी का नाम है या किसी गिरोह का।

बहरहाल, कर्नल ने ली यूका और उसके मामलात की हवा भी नहीं लगने दी। पिछली रात की घटना के बारे में उसने बयान दिया कि शिफ़्टेन के आदमी उस पर और उसकी लड़की पर हमला करके एक लाख रुपये की माँग कर रहे थे कि अचानक इमारत में एक धमाका हुआ शिफ़्टेन के आदमी बदहवास हुए। इस तरह उन्हें निकल आने का मौक़ा मिल गया। चूँकि उसका सेक्रेटरी इमरान पहले ही से सोफ़िया की तलाश में उधर के चक्कर काट रहा था, इसलिए उसने फ़ौरन ही उनकी मदद थी

पता नहीं डी.एस. इस बयान से मुतमईन भी हुआ या नहीं। बहरहाल, फिर वह ज़्यादा देर तक वहाँ नहीं ठहरा।

सोफ़िया अभी तक ख़ौफ़ज़दा थी। उसने इमरान से पूछा, ‘इमरान साहब! अब क्या होगा?’

‘अब गाना-नाचना सभी कुछ होगा। तुम बिलकुल फ़िक्र न करो।’ इमरान ने कहा।

‘क्या आपने सचमुच बम फेंका था?’

‘अरे तौबा-तौबा!’ इमरान अपना मुँह पीट कर बोला, ‘ऐसी बातें ज़बान से न निकालिए, वरना मेरी मम्मी मुझे घर से निकाल देंगी।’

सोफ़िया फिर कुछ कहने वाली थी कि कर्नल ने अपने कमरे से इमरान को आवाज़ दी।

इमरान सोफ़िया को वहीं छोड़ कर कर्नल के कमरे में चला गया। कर्नल अकेला था। उसने इमरान के दाख़िल होते ही कमरे का दरवाज़ा बन्द कर दिया।

‘इधर देखो।’ कर्नल ने मेज़ की तरफ़ इशारा किया जिसपर एक बड़ा-सा ख़ंजर पड़ा हुआ था।

‘ग़ालिबन...ली यूका की तरफ़ से धमकी?’ इमरान मुस्कुरा कर बोला।

‘ख़ुदा की क़सम तुम बड़े ज़हीन हो।’ कर्नल ने उसके कन्धे पर हाथ रख कर काँपती हुई आवाज़ में कहा, ‘हाँ, ली यूका की तरफ़ से एक खुला ख़त...और यह ख़ंजर!...इस कमरे में...मुझे हैरत है कि उन्हें कौन लाया?’

इमरान ने आगे बढ़ कर ख़त मेज़ से उठा लिया। ख़त के मज़मून के नीचे ‘ली यूका’ लिखा था।

इमरान ऊँची आवाज़ में ख़त पढ़ने लगा:

‘कर्नल ज़रग़ाम! तुम्हें सिर्फ़ एक मौक़ा और दिया जाता है। अब भी सोच लो, वरना तुम्हारा एक भतीजा कल शाम तक क़ल्त कर दिया जायेगा। तुम उसे चाहे कहीं छुपा दो! इस पर भी तुम्हें होश न आया तो फिर अपनी लड़की की लाश देखोगे। अगर तुम काग़ज़ात वापस करने पर तैयार हो तो आज शाम को पाँच बजे एक गैस-भरा हुआ सुर्ख़ रंग का ग़ुब्बारा अपनी कोठी के कम्पाउण्ड से उड़ा देना।’

ख़त ख़त्म करके इमरान कर्नल की तरफ़ देखने लगा।

‘कर्नल डिक्सन मुझसे सही वाक़या सुनना चाहता है।’ कर्नल ने कहा, ‘उसे शिफ़्टेन वाली दास्तान पर यक़ीन नहीं आया। समझ में नहीं आता कि शिफ़्टेन कौन है और कहाँ से आ टपका।’

‘शिफ्टेन...!’ इमरान मुस्कुरा कर बोला ‘कुछ भी नहीं है। उसे ली यूका की सिर्फ़ एक मामूली-सी चाल कह लीजिए। उसने यह हरकत सिर्फ़ इसलिए की है कि आप पुलिस की मदद न हासिल कर सके। ज़रा इस तरह सोचिए। शहर के सारे खाते-पीते लोग पुलिस से किसी शिफ़्टेन की शिकायत करते हैं। अचानक आप भी पुलिस से मदद माँगते हैं और आप ली यूका की दास्तान सुनाते हैं। नतीजा ज़ाहिर है पुलिस शिफ़्टेन और ली यूका, दोनों को बकवास समझेगी। उससे आप मदद की बजाय यही जवाब पायेंगे कि शहर के किसी सिरफिरे आदमी ने लोगों को परेशान करने के लिए यह सारा ढोंग रचाया है। क्यों? क्या मैं ग़लत कह रहा हूँ?’

‘तुम ठीक कह रहे हो!’ कर्नल कुछ सोचता हुआ बोला, ‘मगर अब मेरी अक़्ल जवाब दे रही है। समझ में नहीं आता कि डिक्सन से क्या कहूँ। हम दोनों कई साल तक हमनिवाला और हमप्याला रहे हैं। हमारे बीच में कभी कोई राज़, राज़ नहीं रहा...’

‘मेरा ख़याल है कि अब आप सब कुछ उसे बता दीजिए और हम सब एक जगह पर बैठ कर आपस में मशविरा करें...घर भर को इकट्ठा कर लीजिए...’

‘इससे क्या होगा?’

‘हो सकता है कि उन में से कोई एक सही तदबीर सोच सके।’

‘फिर सोचता हूँ कि क्यों न वे काग़ज़ात पुलिस के हवाले कर दूँ।’ कर्नल अपनी पेशानी रगड़ता हुआ बोला।

‘इस सूरत में आप ली यूका के इन्तक़ाम से न बच सकेंगे।’

‘यही सोच कर तो रह जाता हूँ।’ कर्नल ने कहा, ‘लेकिन इमरान बेटे, यक़ीन है कि काग़ज़ात वापस कर देने के बाद भी मैं न बच सकूँगा!’

‘न सिर्फ़ आप!’ इमरान कुछ सोचता हुआ बोला, ‘बल्कि वे लोग भी ख़तरे में पड़ जायेंगे जो इस वक़्त आपका साथ दे रहे हैं।’

‘फिर मैं क्या करूँ।’

‘जो कुछ मैं कहूँ, वह कीजिएगा?’ इमरान ने पूछा।

‘करूँगा?’

‘तो बस, अब ख़ामोश रहिएगा। मैं नौकरों के अलावा घर के सारे लोगों को इकट्ठा करके उनसे मशविरा करूँगा। वैसे अगर इस दौरान आप चाहें तो वह फ़िल्मी गीत गा सकते हैं...क्या बोल थे उसके...हाँ...दिल ले के चले तो नहीं जाओगे हो राजा जी...हो राजा जी।’

‘क्या बेहूदगी है?’ कर्नल ने झल्ला कर कहा। फिर यकायक हँसने लगा।