शुक्रिया-शुक्रिया दर्द जो तुमने दिया

माया की शादी के बाद वीर पूरी तरह टूट कर बिखर चुका था। वीर का होश में रहना और बेहोश रहना सब एक जैसा था। वीर अभी भी माया को भूल नहीं पा रहा था। वह जब भी अपने प्यार के बारे में सोचता तो उसे लगता कि हमारा प्यार सिर्फ़ एक तरफा प्यार ही था। माया ने तो उसे आज तक शायद प्यार किया ही नहीं। माया के बारे में अजय जो भी कहता था, शायद अब वो वीर को सच लगने लगा था। वीर हमेशा सोचता था कि क्या माया अब भी उसे याद करती होगी? क्या अब भी हमारे साथ बिताए पलों को याद कर तकिए में चेहरा छुपाकर रोती होगी? क्या अब भी वो नीले रंग का सूट पहनती होगी और अगर पहनती भी होगी तो क्या वो रंग माया को मेरी याद नहीं दिलाता होगा? क्या वो भी मेरी तरह बात करने के लिए फ़ोन में नम्बर डायल करती होगी,  लेकिन मिलाती नहीं होगी ?

अजय हमेशा कहता था कि अगर माया ने तुझसे ज़रा-सा भी प्यार किया होगा न तो वो तुझे फ़ोन जरुर करेगी, लेकिन आज देखो उसकी शादी के छह महीने हो चुके है, लेकिन उसने कभी कॉल तक नहीं किया। शायद, वो प्यार ही नहीं करती थी। वीर जब भी ख़ुद को आईने में देखता तो हल्का-सा मुस्कुरा देता और कहता कि माया, देखो मैं तुम्हारे प्यार में तबाह हो गया हूँ और मुझे इस बात का मलाल तक नहीं है। लेकिन वीर की हँसी में वो दर्द, वो तड़प साफ़ नज़र आती थी, वो दर्द जो अन्दर से चीख़ रहे थे। वीर लुट चुका था उस दिन आई आंधी में, जिसमें माया ने किसी ओर का हाथ थाम लिया था।

वीर छह महीने से दिल्ली में था। उसे अपने शहर में जाने से इतनी नफ़रत हो गई थी कि वो माया की शादी के बाद अपने घर ही नहीं गया था। अजय जब भी उसे आने की कहता तो वीर यहीं कहता कि वो वहाँ अभी नहीं आ पाएगा, क्योंकिं वहां कदम रखते ही शहर के हर कौने में माया के साथ बिताए पल, उसके साथ घूमना, उसकी यादें बसी हुई हैं। यही कारण था कि वीर ना तो अपने घर गया था और ना ही किसी से बात की थी।

आदि और नीलेश से तो बात करना अब बन्द ही हो चुका था। माधवी का एक-दो बार वीर को कॉल आया, लेकिन वीर ने कोई जवाब नहीं दिया। केवल अजय से वीर की बातें होती रहती थीं।

अजय बार-बार वीर को कॉल कर रहा था, लेकिन वीर फ़ोन नहीं उठा रहा था। अजय परेशान हो गया था कि वह इतनी बार वीर को कॉल कर चुका है, लेकिन वीर है कि जवाब तक नहीं दे रहा है। वीर ने पहले कभी ऐसा नहीं किया था। अजय की दो-तीन कॉल्स के बाद वो फ़ोन उठा लेता था, लेकिन आज अजय ने वीर के पास 35 से ज़्यादा बार कॉल किया था, लेकिन वीर ने फ़ोन नहीं उठाया था। यह बात अजय को थोड़ी अजीब-सी लगी और वह सीधा दिल्ली वीर के कमरे पर पहुँच गया।

कमरे पर बहुत देर तक अजय दरवाज़ा खटखटाता रहा। बहुत देर के बाद वीर ने कमरे का दरवाज़ा खोला। अजय ने वीर को देखते ही कहा कि क्या कर रहा था जो न फ़ोन उठा रहा है और न ही दरवाजा खोलता है?

​ “सो रहा था, इसलिए फ़ोन का पता नहीं चला।” वीर ने कहा।

“अबे, क्या 20 घंटे सोता है? और इतनी देर से दरवाज़ा पीट रहा हूँ, सुनाई नहीं देता क्या ?” अजय ने झुंझलाकर कहा।

अजय कमरे के अन्दर आया तो उसने देखा कि वीर के बिस्तर के पास काफ़ी सारे खाली इंजेक्शन पड़े हुए थे और एक तरफ़ ड्रग्स का एक पैकेट पडा हुआ था। कमरे में चारों तरफ़ शराब की ख़ाली बोतलें पड़ी हुई थीं। अजय ने वीर की तरफ़ देखा, जो पहले से बहुत कमजोर हो गया था। वीर की आँखें लाल हो रखी थी और आँखों के नीचे काले निशान पड़ गए थे। वीर के बांए हाथ पर नसों में इंजेक्शन लगाने के बहुत सारे निशान थे। अजय ने वीर और कमरे के हालात देखे और वीर से लिपटकर रोने लगा।

“भाई, यह सब क्या कर रहा है तू? यह ड्रग्स, दारू यह सब क्या है? हालात देख तू अपने। मर जाएगा साले एक दिन तू अगर यही करता रहा तो। मत कर, मेरे यार। ये सब क्यों? सिर्फ़ उस माया के लिए? अबे, नहीं थी वो तेरे लायक और जा चुकी है वो। प्लीज़, मेरे दोस्त भूल जा उसे। मत कर अपने साथ यह सब। साला प्यार बहुत कुत्ती चीज है। देख, आज क्या हालात है तेरे?” अजय ने रोते हुए कहा।

“पीछे हट ना। क्या लड़कियों की तरह रो रहा है? यहाँ रोने के लिए आया है क्या? माया को मैं भूल चुका हूँ। बस, अब ख़ुद को भूलने की जद्दोजहद में हूँ।” वीर ने कहा।

“तू आज के बाद यह सब नहीं करेगा, तुझे मेरी क़सम है। यह ड्रग्स, दारू सब छोड़ देगा, समझा?” अजय ने कहा।

“हाँ छोड़ दूंगा, लेकिन आज तो पी सकते हैं। आज तो तू बहुत दिनों के बाद मिला है।” वीर ने कपडे पहनते हुए कहा।

वीर और अजय, दोनों बाजार जाकर दारू लेकर आए और फिर पीने बैठ गए। काफ़ी महीनों के बाद दोनों दोस्त मिले थे, तो दारू तो बनती थी।

“यार, माधवी ने तेरे पास कितने फ़ोन किए? उठाता क्यूँ नहीं है? वो मेरे से पूछ रही थी कि वीर का क्या सीन चल रहा है? तो मैंने उसे कह दिया कि माया की शादी हो चुकी है और वीर दिल्ली में है। इसके आगे मैंने उसे कुछ नहीं बताया, नहीं तो वो भी परेशान होती जैसे तूने मुझे परेशान किया हुआ है।” अजय ने दारू गिलास में डालते हुए कहा।

“मेरा माधवी से बात करने का मन नहीं करता। सोचता हूँ कि क्या सोचेगी वो मेरे और माया के बारे में? पहले तो मैं उसके सामने बड़ी-बड़ी फेंकता था। अब वो सोचेगी की हमारा प्यार तो खोखला निकला। बस, इसलिए ही मैं उसका फ़ोन नहीं उठाता हूँ और तूने भी सही किया कि उसे ज़्यादा नहीं बताया। एक तो मैं उसकी शादी में भी नहीं आ पाया, इसके लिए भी मुझे सुनाती वो।” वीर ने कहा।

‘हाँ, इसके लिए तो ज़रूर सुनाती। चल छोड़ और बता क्या चल रहा है तेरी लाइफ़ में?” अजय ने पूछा।

“लाइफ़ मस्त चल रही है।” वीर ने सीधा जवाब दिया।

“हाँ, वो तो मैं देख ही रहा हूँ कि कितनी मस्त चल रही है? तू तो बेहोश ही रहता है ज़्यादातर, ये ड्रग्स लेकर।” अजय ने कहा।

“अच्छा चल, तुझे एक कविता सुनाता हूँ, मैंने लिखी है।” वीर ने कहा।

“क्या बात है! चल, सुना।” अजय ने कहा।

“उसका चेहरा क्यूँ मुझको अब भी दिखता है,

न चाहते हुए भी क्यूँ आँखों में आँसू-सा झलकता है,

माना कर बैठा यह बेदर्द इश्क़ का इल्म,

फिर भी पता नहीं क्यूँ उसके लिए दिल धड़कता है।

उसकी सूरत को ज़माने तक देखने की ख्वाईश है,

चूम लूँ उसके जिस्म को यही प्यार की गर्माइश है,

प्यार तो होता है एक सागर से भी गहरा,

उसका प्यार मगर सिर्फ़ दिल की नुमाइश है।

बस अब हो गया है बहुत, शाखों से पत्ते टूट चुके हैं,

रो लिए हैं बहुत और बहुत त़ड़प चुके हैं,

अब न देखेंगे उसको एक नज़र भर कर भी कभी,

उसके लिए अपने दिल के हाथों बहुत लुट चुके हैं।

“ओ तेरी, तू तो पूरा अल्ताफ़ राजा बनता जा रहा है।” अजय ने अगला पैग बनाते हुए कहा।

वीर कुछ नहीं बोला। वह थोड़ी देर चुप रहा। वीर का फ़ोन बज रहा था। वीर ने फ़ोन देखा और साइड़ में रख दिया। दोबारा फ़ोन बजा तो अजय ने देखा कि किसी प्रियंका का कॉल आ रहा था।

“ये प्रियंका कौन है? नई गर्लफ्रेंड़, क्या बात है? लाइन पर आ रहा है लड़के।” अजय ने उत्साहित होकर कहा।

“ये कोई गर्लफ्रेंड़ नहीं है। बस, फ्रेंड़ है भी और नहीं भी। बस, मेरी पीछे पड़ी हुई है। कितनी बार मना कर चुका हूँ लेकिन फ़ोन करती रहती है और यहाँ भी मिलने आ जाती है।” वीर ने सिगरेट सुलगाकर कहा।

“हाँ, तो ठीक है ना। क्या दिक्कत है? अगर गर्लफ्रेंड़ नही है तो बना ले उसे।” अजय ने कहा।

“भाई, मेरा कोई Intrest नहीं है उसे गर्लफ्रेंड़ बनाने में।” वीर ने सिगरेट अजय को पास की।

“वैसे मुलाकात कैसे हुई प्रियंका से?” अजय ने पूछा।

“अरे, छोड़ न यार। उसकी क्या बात करनी?” वीर ने कहा।

“बता ना? आज मुझे पुराने वाले वीर की वाइब्स आ रही है। चल, बता।” अजय ने पैग बनाते हुए कहा।

“तो हुआ यूं कि मैं एक दिन साइबर कैफे में बैठकर अपना आधार अपडेट करवा रहा था। तो वहाँ प्रियंका आई, जिसे कोई फार्म भरना था। जब कैफे वाले ने उस लड़की को कहा कि आप एक पेपर पर अपनी Details लिख लें, तब तक वो यह काम ख़त्म कर देता है। अब वो पेन लेकर नहीं आई थी तो उसने मुझसे पेन मांगा और मैंने उसे पेन दे दिया। मेरा आधार अपडेट होने के बाद मैं वहाँ से चला आया।

अगले दिन मेरे पास प्रियंका का कॉल आया और कहा कि मेरा पेन वापिस करना चाहती है। पहले तो मैं उसकी बात सुनकर चौका और पूछा कि मेरा नम्बर कहाँ से मिला? उसने बताया कि आपका मोबाइल नम्बर साइबर कैफे से लिया है और उन्होने ही बताया कि आप सामने गली में ही रहते हो। तो आप आ जाओ और अपना पेन वापिस ले जाओ। 

मैंने उसे मना किया कि केवल पेन की ही बात है तो लौटाने की कोई ज़रूरत नहीं है। अब वो लड़की बार-बार फ़ोन करने लगी कि पेन तो आपको वापिस लेना ही पडेगा। तंग आकर मैंने उसे नीचे पार्क में बुलाया। जब मैंने उससे पेन मांगा तो इधर-उधर की बातें करने लगी। मैंने जब उससे दोबारा पेन मांगा तो बोली की आपसे मिलने की Excitement में पेन लाना ही भूल गई। मैं इतना सुनते ही वहाँ से वापिस लौट आया। प्रियंका ने रात को फिर कॉल किया कि आप सुबह वहीं पर मिलना, मैं आपका पेन इस बार लौटा दूंगी। मैनें उसे मना किया कि मुझे अब पेन वापिस नही चाहिए, लेकिन वो अपनी बात पर अड़ी रही। उसने कहा कि अगर नीचे आकर पेन नहीं लिया तो फिर मै कमरे में आकर पेन दे जाऊँगी। तो मैनें तंग आकर कहा कि ठीक है कल नीचे मिलता हूं।

अगले दिन जब वो मुझसे मिली तो उसने पेन तो लौटा दिया, लेकिन फिर धीरे-धीरे मेरे पास फ़ोन और मैसेज करने लग गई। मैंने कुछ दिन उससे बात भी कि ताकि माया को भूलने में थोड़ी आसानी हो, लेकिन माया को भूलने में मैं नाकाम रहा तो मैंने प्रियंका से भी अब बात करनी बन्द कर दी। तब से बार-बार कॉल करती रहती है कि मिलना है। जब मैं उससे पूछता हूँ कि क्यों मिलना है तो कहती है कि मुझे देखते ही प्यार हो गया। अब साला प्यार के नाम से तो मुझे वैसे ही नफ़रत हो गई है कि किसी से बात तक करने का मन नहीं करता।” वीर ने पूरी कहानी बताई।

“सही है, भाई। यह प्रियंका तो लट्टू हो गई है तुझ पर। मिल ले न फिर उससे। मिलने में क्या हर्ज है? कम से कम तेरा दर्द तो थोड़ा कम हो जाएगा।” अजय ने अपना तर्क दिया।

“नहीं, मुझे इस दलदल में दोबारा नहीं उतरना। वो दूर ही अच्छी है। मुझे उससे कोई Contact नहीं रखना।” वीर ने कहकर गिलास में बची दारू को गले में उड़ेला।

“कोई दलदल नहीं है ये। तुझे कौन-सा उससे प्यार होने वाला है? मोहब्बत बदल कर तो देख, सुकून मिलेगा तुझे।” अजय ने वीर के कंधे पर हाथ रखकर कहा।

“जिस इंसान की अंदर तक खुदी पडी हो, उसके लिए क्या मोहब्बत, क्या गर्लफ्रेंड़? बर्बाद पहले भी हो चुका हूँ और बर्बाद यहाँ भी हो जाऊँगा। और साले, मोहब्बत कोई कैलेंडर है क्या जो तेरी तरह हर महीने बदलती रहे? वैसे भी मैंने अपनी मोहब्बत के सुकून को दर्द बनते देखा है तो यह तो मुझसे नहीं होगा।” वीर ने कहा।

“मैं तो बस यही कहूँगा कि अब तेरे पास यही रास्ता है। अगर माया को तू भूलना चाहता है तो कोशिश करने में क्या हर्ज है?” अजय ने आख़िरी पैग लगाकर कहा।

अजय के दिल्ली से जाने के बाद वीर दो दिन तक अजय की बातों को सोचता रहा। आख़िरकार उसने यही सोचा कि जब माया उसके साथ धोखा कर सकती है तो वो भी तो अब आगे बढ़ सकता है। यही सब विचार करने के बाद वीर ने प्रियंका को कॉल किया और शाम को मिलने के लिए कहा।

शाम को प्रियंका वीर से मिलने के लिए पार्क में आई। दोनों ने वहाँ पर कुछ समय साथ बिताया। वीर ने प्रियंका से कहा कि अगर तुम Comfortable हो तो आज रात मेरे पास ही रुक जाओ। प्रियंका यह सुनकर वीर की तरफ़ देखती ही रह गई। प्रियंका वीर की तरफ़ देखकर मुस्कुराई और कहा कि हाँ, माना कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ, लेकिन पहली मुलाक़ात में ऐसे कौन रुकने को बोलता है? प्रियंका की इस बात को सुनकर वीर ने ना समझा और वहाँ से जाने लगा तो प्रियंका ने पीछे से आवाज दी और कहा कि वैसे मैंने मना भी नहीं किया रुकने के लिए। वीर यह सुनकर पीछे मुड़ा तो प्रियंका वीर के नजदीक आई और उसने वीर के हाथों की अँगुलियों में अपनी अँगुलियाँ फँसा दी और कहा कि अब ले चलो, जहाँ ले जाना चाहते हो।

रात को बाहर डिनर करने के बाद वीर प्रियंका के साथ कमरे पर आ गया। वीर को प्रियंका का साथ अच्छा लग रहा था। डिनर करते समय ही वीर ने प्रियंका को पहले ही माया के बारे में बता दिया था और यह भी बता दिया था कि वह प्रियंका से कोई प्यार-व्यार नहीं करता है। प्रियंका ने वहाँ कुछ भी नहीं बोला, लेकिन कमरे पर आकर वीर से लिपट गई।

“जानती हूँ कि तुम मुझसे प्यार नहीं करते, लेकिन मैं तो तुमसे प्यार करती हूँ।” प्रियंका ने कहा।

“मत करो यह प्यार, बहुत तकलीफ़ देता है। इससे तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा अन्त में ख़ाली हाथ ही रहोगी।” वीर ने अपने हाथ की रेखाओं को देखकर कहा।

“वो प्यार ही क्या जो यह सोचकर किया जाए कि क्या हाथ आएगा और क्या नहीं? पता है ना कि प्यार अन्धा होता है, लेकिन कितना अन्धा होता है, यह तो तभी पता चलता है जब यह मालूम हो कि आपके हाथ कुछ नहीं आएगा और आप पाने की उम्मीद को छोड़कर बस प्यार करते है।” प्रियंका ने वीर की आंखों में देखकर कहा।

वीर को कुछ अजीब-सा लग रहा था। उसने प्रियंका को ख़ुद से अलग किया और टेबल के पास जाकर एक इंजेक्शन उठाया और अपनी नसों में दौड़ा दिया। कुछ ही मिनट में वीर की आँखों में नशा छाने लगा था। वीर ने प्रियंका को अपने करीब खींचा और उसके गले को चूम लिया। प्रियंका ने भी अपना चेहरा वीर के सीने पर टिका दिया।

वीर की नसों में पागलपन दौड़ रहा था। वो क्या करने जा रहा था, उसे शायद ख़ुद को भी नहीं मालूम था? वीर जानता था कि अगर प्रियंका के नज़दीक जाना है तो फिलहाल माया को दिल से भूलना पड़ेगा। क्योंकि होश में माया को भूलना नामुमकिन है तो नशे में होना वीर के लिए उस समय की ज़रूरत थी। प्रियंका वीर से दूर हटी और उसने अपने पूरे कपड़े उतारकर बिस्तर पर फेंक दिए और टेबल का सहारा लेकर खड़ी हो गई। वीर दूर से ही प्रियंका को देख रहा था। वीर ने अपनी शर्ट उतारी और प्रियंका के करीब गया। जैसे ही वीर ने प्रियंका को किस करने के लिए अपनी आँखें बन्द की, वीर को माया का चेहरा दिखा। वीर अचानक से प्रियंका से दूर हटा और उसने अपनी आँखों को दोबारा जोर से भींचा, लेकिन फिर वही माया का चेहरा उसकी आँखों के सामने आ गया। वीर वहीं नीचे जमीन पर बैठ गया।

“क्या हुआ ? कोई प्रॉब्लम है क्या ?” प्रियंका ने पूछा।

“नहीं। तुम अपने कपड़े पहन लो। मैं ये सब नहीं कर पाऊँगा।” वीर ने कहा।

“तुम ऐसे मेरे प्यार को बेइज़्ज़त नहीं कर सकते। यह ठीक नहीं है।” प्रियंका ने थोड़ा आगे आकर कहा।

“मैं कोई बेइज़्ज़त नहीं कर रहा हूँ और प्लीज़ तुम अपने कपड़े पहनकर जाओ यहाँ से।” वीर ने अपनी शर्ट पहनते हुए कहा।

प्रियंका को गुस्सा आ रहा था। वह वीर पर चिल्ला रही थी कि जब ऐसे ही करना था तो मुझे यहाँ क्यों लेकर आए हो? प्रियंका ने अपने कपड़े पहने और दरवाज़े की तरफ़ जाने लगी। बाहर जाने से पहले प्रियंका ने वीर से कहा कि तुम पागल हो। तुम्हारा कोई कैसे भरोसा कर सकता है? वीर ने प्रियंका की तरफ़ देखा भी नहीं और प्रियंका वहाँ से चली गई। प्रियंका के भरोसे की बात सुनकर वीर को हँसी आ गई और वह कमरे में चिल्ला पड़ा कि उसे भी किसी भरोसे ने ही पागल बनाया है।

वीर को आज पहली बार अहसास हुआ कि वो माया से कितना प्यार करता है? अगर ऐसी स्थिति में प्रेमी को अपनी प्रेमिका का अहसास होने लगे तो ऐसा प्यार किसी इबादत से कम नहीं होता है। ऐसा प्यार एक-दूसरे के लिए इतना क़ीमती होता है कि उसके आगे दुनिया की हर चीज़ मामूली लगती है और यही वीर के साथ हुआ था कि माया के प्यार और दिखने के भ्रम के आगे उसे प्रियंका का प्यार मामूली लगा।

वीर के हालात अब यह हो गए थे कि न तो उसे शराब चढ़ती थी, न ही नसों में दौड़ती ड्रग्स माया को भूलने में मदद करती थी और अब तो किसी लड़की का जिस्म भी उसे उत्तेजित नहीं करता था। प्रेमी ऐसी स्थिति में स्पष्ट तौर पर क्या सोचता है, यह बताना तो बहुत मुश्किल है, लेकिन हाँ, इतना तो स्पष्ट है कि उसका सम्पूर्ण ह्द्य किसी एक दिशा में प्रवाहित होता है।