“क-क्या - ये क्या कह रहे हो तुम?” देवांश के हलक से चीख निकल गयी – “ख-खून सने कपड़े भी बरामद हो गये?”
“हां |"
“कहां है ?”
ठकरियाल ने अपने हाथ में मौजूद अखबार का बण्डल खोल दिया।
एक सफेद टी शर्ट और सफेद हाफ पैण्ट फर्श पर जा गिरी।
खून से लथपथ थे वे ।
दिव्या और देवांश चेहरों पर खौफ लिये आंखे फाड़े उन कपड़ों को इस तरह देखते रह गये जैसे वे कपड़े नहीं, उनके सामने फन अकड़ाये खड़ा काला नाग हो ।
काफी देर तक दोनों में से किसी के मुंह से आवाज न निकली।
फिर फंसी-फंसी सी आवाज में दिव्या ने पूछा- “क्या इन पर लगा खून वाकई राजदान का है ?”
“असलियत तो जांच के बाद ही पता लगेगी मगर...
“मगर ?”
“मेरा ख्याल है, खून जांच के बाद राजदान का ही साबित होने वाला है ।”
“क-कैसे कह सकते हो ऐसा?”
“बबलू को राजदान का हत्यारा सिद्ध करने की यह स्कीम जिसने भी बनाई है, वह कोई बहुत ही बड़ा खिलाड़ी है। ऐसी कोई चूक उसके द्वारा नहीं हो सकती जिसके बेस पर आगे चलकर बबलू का बयान झूठा साबित हो सके।”
“उसका खून भला कब इन कपड़ों तक पहुंचा?”
“अभी किसी बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।”
“लेकिन।” दिव्या ने कहा—“जो साबित करना हमारे हित में था, जो हम साबित करना चाहते थे वह खुद बबलू क्यों साबित करना चाहता है? उसे खुद को राजदान का हत्यारा साबित करने से क्या फायदा है?”
“यही तो है वह सवाल जिसने मेरी खोपड़ी की जड़ों को हिला रखा है ।” ठकरियाल कहता चला गया — “जब उसने बताया, खून से सने कपड़े मेरे बैड के नीचे रखे है तो अवाक् रह गया मैं | एस. एस. पी. ने कहा – 'जाओ इंस्पैक्टर, बरामद कर लो उन कपड़ों का। सारी बातों पर गौर करने के बाद यह बात हम दावे के साथ कह सकते हैं— कपड़े वहीं मिलेंगे जहां यह बता रहा है । अब तुम्हें देखना है ये केस । हमारे वाहं जाने की जरूरत नहीं है।'... उसके बाद, मैं दो सिपाहियों के साथ बबलू के घर पहुंचा।'...उसके बाद, मैं दो सिपाहियों के साथ बबलू के घर पहुं चा। उसकी मां तब भी यह कह रही थी—मेरा बेटा ऐसा नहीं कर सकता। मगर बाप गुमसुम हो गया। जब उन्होंने मुझे यह कपड़े बरामद करते देखा तो मारे हैरत के दोनों की आंखें फटी की फटी रह गयीं।”
“क्या कपड़े वहीं से बरामद हुए जहां बबलू ने बताये थे ?”
“हां ।”
“कमाल की बात है ।”
दिव्या ने पूछा – “उसकी मां ने जानना नहीं चाहा, बबलू ने क्या बयान दिया है ?”
“किसी ने कुछ नहीं पूछा मुझसे, बल्कि मैंने ही पूछा था।”
“क्या?”
“फ्लैट के बारे में। उसकी कीमत के बारे में। फाईनेंसर के बारे में।”
“क्या जवाब मिला ?”
“वह सच है जो बबलू ने कहा ।”
“यानी उन्हें फाईनेंसर के पांच लाख देने है?”
“हां ।”
दोनों चुप रह गये।
ठकरियाल ने आगे कहा- -“उसकी मां पूछने लगी—मैं वह सब क्यों पूछ रहा हूं। मैं बात को गोल कर गया । कहता भी क्या?
वहां से सीधा यहीं आया हूं। दोनों सिपाही लॉबी में खड़े हैं।” कुछ देर के लिये उनक बीच खामोशी छा गई। जैसे कहने के लिये किसी के पास कुछ न बचा हो। फिर, देवांश ने कहा—“मेरी समझ में बात कुछ-कुछ आ रही है। "
“कौन सी बात?”
“कुछ देर पहले हमें रजिस्टर्ड डाक से यह लेटर मिला है ।” कहने के साथ देवांश ने लेटर निकालकर ठकरियाल को पकड़ा दिया- -“इसमें भी लगभग वही लिखा है जो बबलू ने तुम्हारे कान में कहा ।” ठकरियाल ने लेटर लिया ।
पढ़ा।
ओर दिमाग से सांय-सांय होने लगी ।
काफी देर तक वह चाहकर भी अपने मुंह से कोई आवाज न निकाल सका। दिमाग सोचने की कोशिश कर रहा था— झमेला आखिर है क्या? उसे चुप देखकर देवांश कह उठा — “सच वही है, जो मैंने कहा था । अपनी मौत से पहले हमारे चारों तरफ कोई बहुत गहरा जाल बुनकर गया है राजदान । लेटर पर पड़ी डेट से ही नहीं, डाकखाने की मोहर से भी स्पष्ट है— लेटर अट्ठाइस तारीख को रजिस्टर्ड कराया गया। क्लियर है—उसे तभी मालूम था, हम बबलू को फंसाने वाले हैं। साफ लिखा है इसमें—अगर हमने ऐसा किया तो समझ लेना चाहिये, हम उसके जाल में पूरी तरह जकड़े जा चुके हैं।”
“इससे तो जाहिर है, बबलू भी जो कह और कर रहा है - वह सब भी उसी षड्यंत्र का हिस्सा है जिसे राजदान अपनी मौत से पहले रच चुका था।” ठकरियाल को कहना पड़ा— “शायद वह हमें कदम-कदम पर हैरान और हलकान करना चाहता है । "
“अगर ये षड्यंत्र उसका भी है, तो कैसा षड्यंत्र है ये?” दिव्या का चेहरा अच्छी तरह धुले और निचुड़े कपड़े जैसा नजर आ रहा था-“क्यों वह बबलू को, उस बबलू को अपनी हत्या के जुर्म में फंसाने का सामान करके गया जिससे सबसे ज्यादा प्यार करता था? क्यों बबलू खुशी’खुशी न सिर्फ हत्या के इल्जाम को अपने सिर लेने को तैयार हो गया बल्कि खुद को हत्यारा साबित करने के लिये मरा जा रहा है? इस सबसे तो हमें ही फायदा होगा। बबलू के हत्यारा साबित होने का मतलब है— हमें बीमाकम्पनी से पांच करोड़ मिल जाना। ऐसा क्यों चाहेगा राजदान ?”
“इसका मतलब षड्यंत्र वह नहीं है जो फिलहाल हमें नजर आ रहा है ।” ठकरियाल – “बात शायद उससे आगे, कहीं और ज्यादा पेचीदा है।”
देवांश बोला- -“अब जाकर तुम्हारे दिमाग की रेलगाड़ी ने उस पटरी पर दौड़ना शुरू किया है जिस पर मैं शुरू से दौड़ रहा हूं।”
“फोटोग्राफर को भी नहीं भूलना चाहिये हमें ठीक ही कहा था तुमने । राजदान ने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि अंततः पांच करोड़ के लालच में मैं तुम्हारा साथ दूंगा । शायद उस फोटो का इस्तेमाल राजदान की प्लानिंग के तहत किसी ऐसे स्पॉट पर होना है जहां से फंसे हुए बबलू को वापस खींचा जा सके क्योंकि यह बात हरगिज... हरगिज नहीं मानी जा सकता वह बबलू का कुछ बुरा सोचकर मरा होगा
“मैं फिर कहता हूं।” देवांश बोला – “हमें अब भी सब कुछ कुबूल कर लेना चाहिये ।”
“बंद करो बार-बार ये राग अलापना।” अचानक ठकरियाल गुस्से में गुर्रा उठा— “यह बात तुम्हारे भूसा भरे भेजे में घुस क्यों नहीं रही कि गुनाह कुबूल कर लेने से हमें कोई फायदा होने वाला नहीं है ।”
ठकरियाल की आवाज में ऐसी धमक थी कि देवांश सहमकर चुप रह गया ।
चाहकर भी कुछ बोल नहीं सका।
“अच्छी तरह अपने भेजे में उतार लो यह बात ।” ठकरियाल दंत भींचे उसी लहजे में कहता चला गया। "अब हमारे पास एक...और सिर्फ एक ही रास्ता है। यह कि राजदान के जाल को समझें, तोड़ने की कोशिश करें इसे। याद रहे, भविष्य में मैं तुम्हारे मुंह से सरेंडर की बात न सुन लूं । कहीं ऐसा न हो कि गुस्से में मैं तुम्हारा कत्ल कर डालूं ।”
दिव्या बोली—“ठकरियाल ठीक कह रहा है देव । अब शायद हम इतनी दूर निकल आये हैं कि घबराकर घुटने टेक देना कोई हल नहीं है।...और ठकरियाल, तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिये कि देव का कत्ल तक कर दोंग । बहरहाल, हम साथी हैं एक-दूसरे के। पार्टनर हैं इस मिशन में। तीनों को अपनी राय व्यक्त करने का बराबर का हक है।”
“राय व्यक्त करने का हक है । बार-बार एक ही राग अलापने का हक नहीं है।” ठकरियाल का गुस्सा कम होकर नहीं दे रहा था—“इसे जब देखो, तब घुटने टेकने की बात करता नजर आता है। इतना ही डरपोक था तो मंसूबे क्यों बनाये थे पांच करोड़ कमाने के? मामला पांच करोड़ का है। पांच करोड़ का । हाथ पर हाथ रखकर नहीं कमाई जा सकती इतनी बड़ी रकम । थोड़ा-बहुत हलकान तो होना ही पड़ेगा। मेहनत भी करनी होगी । मगर एक ये है, जरा सी पेचीदगियां शुरू हुई नहीं कि इसके रिकार्ड की सुई एक ही जगह अटक जाती है। इसके इतना कमजोर पड़ने का मतलब है, बैठे-बिठाये हम दोनों का भी बंटाधार हो जाना ।”
“नहीं होगा ठकरियाल, वैसा कुछ नहीं होगा जैसा तुम सोच रहे हो ।” दिव्या ने कहा – “मैं गारंटी लेती हूं देव की। और फिर समय-समय पर इसने जो सम्भावनाऐं व्यक्त की हैं वे इसके डरपोक होने की नहीं, समझदार होने की परिचायक हैं ठंडे दिमाग से सोचो—क्या गलत कहा देव ने? इसने हम दोनों से पहले सम्भावना व्यक्त की थी कि राजदान का जाल 'तुमसे' भी काफी दूर तक फैला हुआ है, वही आज हमें भी मानना पड़ रहा है।”
“इससे शिकायत नहीं है मुझे, शिकायत इसके द्वारा बार-बार सरेण्डर की सलाह देने से है।”
“ओ. के.! अब नहीं देगा देव यह सलाह | "
ठकरियाल चुप रहा गया । चेहरा अब भी तमतमा रहा था।
देवांश की जी चाह रहा था— आगे बढ़कर ठकरियाल के जबड़े पर घूंसा जमा दे।
‘मैसेज’ दे कि उसे कत्ल करना इतना आसन नहीं है जितना आसनी से उसने यह बात कह दी मगर, फिहाल ऐसा कुछ किया नहीं उसने। खुद को सामान्य करने हेतु जेब से पैकिट निकाला और एक सिगरेट सुलगा ली । शिकायत उसे दिव्या से भी थी। उस दिव्या से जो बातों ही बातों में उसे ठकरियाल से छोटा साबित कर गई थी ।
कुछ देर की खामोशी के बाद ठकरियाल ने कहा – “हमारी सबसे पहले कोशिश राजदान के जाल को समझने की होनी चाहिये। उसके बाद उसे तोड़ सकते हैं।”
“मगर कैसे?” दिव्या ने कहा
– “कैसे पता लगे उसका जाल?”
“फिलहाल जितनी बातें हुई है उनसे एक ही नतीजा निकलता है। यह कि बबलू उसके जाल का मुख्य मोहरा है। वह मेरे कब्जे में है। थाने में है। उससे पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की जानी चाहिये । वही बता सकता है— क्यों मरा जा रहा है खुद को राजदान का हत्यारा साबित करने के लिये ? उसक कपड़ों पर खून कब, कैसे और कहां लगा?”
“बात तो ठीक है, मगर...
“मगर?”
“रणवीर राण के समने हम उससे यह सब कैसे पूछ सकेंगे?”
“अब राणा थाने में नहीं है । "
“कहां गया है?”
“एस. एस. पी. है वह । मेरी तरह किसी एक थाने का इंचार्ज नहीं जो वहीं पड़ा रहेगा। किसी केस में एस. एस. पी. इतनी दिलचस्पी ले ले जितनी इसमें ली तो काफी बड़ी बात मानी जाती है। उसकी नजरों में केस हल हो चुका है। आगे की औपचारिक कानूनी कार्यवाही करने का अधिकार थनाध्यक्ष होने के नाते मेरा है। अब तो वह मुझसे केवल ‘प्रोग्रेस रिपोर्ट’ मांगेगा। रिपोर्ट क्या देनी है, यह मेरे अख्तियार में है।"
“यानी बबलू से पूछताछ के वक्त हम भी थाने में रह सकते हैं?”
“बेशक।”
“तो चलें?” दिव्या ने पूछा।
*******
ठकरियाल के साथ दिव्या और देवांश को देखकर बबलू के होठों पर मुस्कान फैल गई। ऐसी मुस्कान जो साफ कह रही थी – मैं जानता था। तुम तीनों इसी मुद्रा में यहां आओगे। तीनों के चेहरे गम्भीर थे। बल्कि यह कहा जाये तो ज्यादा ठीक होगा, ठकरियाल के चेहरे से क्रूरता भी टपक रही थी। अखबार से लिपटे खून सने कपड़े अभी-भी उसके हाथों में थे।
तीनों की नजरें कुछ इस तरह बबलू पर स्थिर थीं जैसे अर्जुन की नजरें मछली की आंख पर रही होंगी । जबड़े यूं कसे हुए थे जैसे बबलू को कच्चा जबा जाना जाना चाहते हों।
उनके ख्याल से इस जगह, उनके चंगुल में इस कदर फंसा हाने के कारण बबलू सहमा हुआ ही नहीं बल्कि आतंकित होने चाहिये था मगर, हर सम्भवना के विपरीत वह पूरी तरह निश्चित नजर आ रहा था और ... यह हकीकत उन्हें अंदर ही अंदर बुरी तरह चिड़ा रही थी ।
नजरें उसी पर जमाये ठकरियाल ने कहा
-“दरवाजा बंद कर दो देवांश ।”
देवांश ने पलटकर टॉचर रूम का दरवजा अंदर से बंद कर दिया ।
बबलू के होठों पर थिरक रही मुस्कान गहरी हो गई ।
तीनों उस चेयर के नजदीक पहुंचे जिस पर वह बंधा बैठा था। इससे पहले कि उनमें से कोई कुछ कहता, बबलू बोला -“कर लाये बरामद मेरे कपडे?”
ठकरियाल ने बण्डल एक तरफ फैंका । कहा – “एस. एस. पी. यहां से जा चुका है।”
“तो?”
“मुझे टॉचर करने के ऐसे-ऐसे तरीक आते हैं जिन्हें झेलने वाला तो क्या, सुनने वाला भी कांपकर वह उगलने लगता है जो मैं उगलवाना चाहता हूं।”
बबलू को डरना चाहिये था । मगर, नहीं डर ।
बल्कि ।
गुलाबी होठों पर थिरकती रही मुस्कान में कुछ और इजाफा ही गया।
यूं मुस्करा रहा था जालिम जैसे अच्छी तरह जानता हो उसका कुछ नहीं बिगाड़ा जा सकता । बोला – “तुम तो खैर यह सोचकर हैरान होंगे ही कि मैंने एस. एस. पी. साहब के सामने क्यों खुद को चाचू का हत्यारा साबित किया ? मगर मैं तुमसे ज्यादा हैरा हूं।”
“कारण?”
“कदम-कदम पर वही हो रहा है जो चाचू ने कहा था।”
“क्या कहा था ?”
“अभी-अभी जो तुमने कहा, चाचू मूझे पहले ही बता चुके हैं, इस स्पॉट पर आकर तुम वैसा ही कुछ कहोगे ।...टॉर्चर की धमकी दोगे मुझे । ”
“तब तो तुम्हें यह भी पता होगा – इससे आगे क्या होने वाला है?” ठकरियाल के लहजे में व्यंग्य आ घुला ।
“बेशक पता है।”
“बताओ तो सही, क्या होने वाला है ?”
“तुम सिर्फ कह रहे हो, टॉर्चर कर नहीं सकोगे मुझे"
“वजह?”
“मैं बगैर टॉर्चर हुए वह सब बता दूंगा जो तुम जानना चाहते हो।”
दांत भिंच गये ठकरियाल के । जी चाहा, सवाल - ववाल बाद में होते रहेंगे। पहले दो-चार जमा दे उसके जबड़े पर। कहे— 'देख, वह नहीं आ जो राजदान ने कहा था ' मगर, उसे लगा- — यह हरकत उसके अंदर की चिड़ को ही प्रदर्शित करेगी। फिलहाल उसका लक्ष्य बबलू से अपने सवालों के जवाब पाना है और वह यूं ही तैयार है । सो गुर्राया- – “तो बोलो, क्यों मरे जा रहे हो खुद को राजदान का हत्यारा साबित करने के लिये ।”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“मतलब?”
“मैं केवल वह कर रहा हूं जो चाचू ने कहा, उन्हें इससे क्या फायदा होने वाला है, उन्हें ही पता होगा।”
ठकरियाल गुर्रा उठा—— -“झूठ बोल रहे हो तुम?”
“यह भी बता दिया था चाचू ने, तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं होगा । और...
“और?”
“यहा से तुम अपनी समझ में, मुझसे सच उगलवाने हेतु — टॉचर करना शुरू कर सकते हो ।” ताव तो बहुत आया ठकरियाल को । जी चाहा- -एक ही घूंसे में बत्तीसी झाड़ दे उस नन्हें शैतान की। मगर खुद को नियंत्रित रखे बोला— “तो ठीक है, नहीं करता मैं तुम्हें टॉर्चर ।”
“यह भी कहा था।” बबलू खुलकर हंस पड़ा – “यह कि मुमकिन है, तुम मेरी यह बात सुनकर सिर्फ उन्हें गलत सबित करने के लिये अपना विचार स्थगित कर दो।”
और अब! खुद को नियंत्रित नहीं रख सका ठकरियाल।
एक जोरदार घूंसा जड़ ही दिया बबलू के जबड़ पर ।
पलक झपकते ही होठों से खून बहने लगा परन्तु उसकी तरफ से ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई जैसे कोई पीड़ा पहुंची हो। उल्टा, और जोर से ठहाका लगाकर हंस पड़ा पट्ठा । बोला – “ये तो कहा ही था चाचू ने | यह कि मेरी यह बात सुनकर तुम पगला जाओगे। नियंत्रण खो दोगे खुद पर से और मारपीट शुरू कर दोगे । ”
ठकरियाल को लगा- - यह नन्हा शैतान उसे चिड़ाने की, उत्तेजित करने की कोशिश कर रहा है और वही सब होता जा रहा है । वह फैसला नहीं कर सका कया करे? तभी, थोड़ा आगे बढ़ कर देवांश ने पूछा – “तुम्हारे कपड़ों पर खून कहां से लगा?”
बबलू ने पनुः कहा—“चाचू ने यह भी कहा था — कि यहां से तुम सवाल करना शुरू कर सकते हो।”
“जवाब दे हरामजादे!” ठकरियाल ने झपटकर उसे बाल पकड़े — “जवाब दे !”
“तुम्हारी यह हालत कर देने का हुकुम दिया था चाचू ने मुझे । सो हो गयी । अर्थात्... मेरा पहला मिशन पूरा हुआ। अब दूसरे मिशन पर आता हूं।”
“दूसरा मिशन?”
“मेरे कपड़ों पर खुद चाचू ने खून डाला था।”
“कब?...क्यों?”
“एक-एक करके।” बबलू पूरी तरह उनकी हालत का मजा लूट रहा था- -“एक-एक करके सवाल करो वरना जवाब देने में मैं गड़बड़ा जाऊंगा। पहले ‘कब' का जवाब देता हूं ।” कहने के बाद उसने इतनी गहरी सांस ली जैसे कोई लम्बी बात बताने जा रहा हो लेकिन कहा केवल यूं – “परसों रात की बात है ये।”
“पूरा किस्सा बताओ।”
“चाचू ने मुझसे दिन में ही कह दिया था – सफेद टी शर्ट, सफेद हाफ पैण्ट पहनकर बाहर बजे खिड़की के जरिये उनके बाथरूम में पहुंच जाऊं। मेरे द्वारा सवाल करने का तो सवाल ही नहीं उठता था उनके हुक्म के बाद । सो, पहुंच गया। देखा—वे बाथरूम में एक पिचकारी लिये खड़े हैं। मैं बोला – 'ये क्या हाल बना रख है चाचू ? होली तो नहीं है आज जो ये पिचकारी...।' सेन्टेन्स अधूरा रह गया मेरा। उन्होंने ‘फच्च’ से पिचकारी में भरे रंग से मुझे सराबोर कर दिया। मैं बौखलाया। बोला— 'ये तो एक तरफा हमले वाली बात हो गयी चाचू । होली ही खेलनी थी तो पहले 'चेताया' होता मुझे । खाली हाथ नहीं आता। एकाध गुब्बारा तो भर ही लाता ‘गधैया’ रंग का ।' चाचू हंसने लगे। बोले— 'ये रंग नहीं, खून है बबलू । खुद हमारा खून ।' मैंन कहा – 'चाचू, कम से कम मजाक तो ढंग का करो।' तब उन्होंने बताया—ये मजाक नहीं है। उन्होंने दिन में ही विला से बाहर एक ब्लड बैंक में जाकर अपने जिस्म से दो सौ ग्राम खून निकलवाया था। एक शीशी में, साथ ही ले आये थे और उसी को पिचकारी में भरने के बाद मेरे ऊपर डाला था ।”
“देव, मैंने बताया ही था तुम्हें ।” दिव्या कह उठी – “कई घंटे कोई कुछ नहीं बोला।”
ठकरियाल ने बबलू से पूछा – “उसके बाद?”
“कब का जवाब दे चुका हूं, अब कयों पर आता हूं बबलू कहता चला गया— “मुझे चाचू से पूछना पड़ा—‘चाचू, अपने ही खून की यह होली आपने मुझसे क्यों खेली? उन्होंने कहा—'कुछ लोग मेरा कत्ल करने वाले हैं। मैं चाहता हूं – उस इल्जाम में वो नहीं, तू फंसे।' बुद्धि उल्टी हो गयी मेरी । बोला— 'चाचू, ऐसा क्या बुरा किया है मैने तुम्हारा जो झूठ-मूठ मुझें अपने कत्ल के इल्जाम में फंसाने वाले हो और...जो कत्ल करने वाले है, उन्होंने क्या नकी की है जो उनके हाथों कत्ल होने के बावजूद चाहते हो वे न पकड़े जायें।”
“क्या जवाब दिया उसने?”
“कहने लगे- ‘मैं उनसे बहुत प्यार करता हूं। इतना ज्यादा कि भले ही वे मुझे कत्ल कर दें, मैं फिर भी नहीं चाहूंगा बेचारे इस इल्जाम में घिसटे फिरें ।' मैंने कहा- -'प्यार करने का दम तो तुम मुझसे भी भरते थे चाचू ।' बोले— 'घबरा मत । बिगड़ेगा तेरा भी कुछ नहीं। ऐन वक्त पर मैं। तुझे बचा लूंगा ।”
“राजदान बचा लेगा?” ठकरियाल बोला— “मरने के बाद?”
“यहीं तो ‘गच्चा’ खा रहे हो तुम ।”
“क- क्या मतलब ?”
“गच्चा भी बहुत तगड़ा।
” “क्या बक रहा है हरामजादे?” ठकरियाल चीख पड़ा- -“मतलब क्या हुआ तेरी बकवास का?”
“वही मतलब हुआ जो तुम समझ रहे हो ।” बबलू बोला— “चाचू जिन्दा ही नहीं, स्वस्थ भी हैं। चाक चौबंद भी हैं।” ठकरियाल ने एक झटके से पलटकर दिव्या और देवांश की तरफ देखा । उनके चेहरे ऐसे नजर आ रहे थे जैसे अभी-अभी, हजार-हजार बार कोलहू के पाटों से गुजरे हों। चीख पड़ा ठकरियाल—“क्या बक रहा है ये?”
“सचमुच! ये बक ही रहा है।” देवांश की आवाज कांप गई— “राजदान जल कर नहीं मरा । किसी खाई में नहीं गिरा था वह जिसकी लाश बाद में मिली हो। हमारे सामने मरा है, हमारी इन आंखों के सामने।”
दिव्या बोली
-“लाश तो खुद तुमने भी देखी थी ।”
“क्या देखा था मैंने ? क्या देखा था? राजदान के कपड़े । उसका कमजोर जिस्म । चेहरे और खोपड़ी के तो परखच्चे उड़े हुए थे। ऐसी हालत में थी लाश कि पहले ही से पता न होता राजदान की है तो किसी हालत में पहचानी नहीं जा सकती थी। तुम्हीं लोगों ने कहा था वह राजदान की लाश है ।”
“यह सच है।” देवांश ने कहा- -“एक-एक अक्षर सच है हमारा। हमारे देखते ही देखते। हमसे बातें करते ही करते खुद को शूट किया है उसने। उसके खून से सने हमारे कपड़े गवाह हैं।"
“हरामजादों! ध्यान से देखा भी था उसे ?... कोई और तो नहीं था उसके मेकअप में?”
दोनों के पैरों तले से मानो धरती खिसक गई । मुंह से निकला — “म-मेकअप में?”
“आश्चर्यजनक रूप से तरक्की कर ली है प्लास्टिक सर्जरी ने ऐसे-ऐसे फनकार मौजूद हैं दुनिया में जो किसी के भी चेहरे का हूबहू फेसमास्क बना सकते हैं। कहीं ऐसे ही किसी फेस मास्क के फेर में तो नहीं आ गये तुम? उफ्फ... । इसकी बातें सुनने के बाद तो मुझे ऐसा ही लगता है। जो जान गया था तुम उसका मर्डर करने वाले हो। जिसने ठान ही ली थी तुम्हें अपनी साजिश में फंसाने की। उसने यह खेल भी खेल दिया हो तो क्या आश्चर्य?”
“ठीक।...आपने बिल्कुल ठीक अंदाजा लगाया ठकरियाल अंकल ।” बबलू कह उठा — “चाचू ने मुझसे यही कहा था । यह कि वे किसी और को अपना फेस मास्क पहना देंगे। वह इनके सामने खुद को इस तरह गोली मार लेगा कि चेहरे का भिन्यास उड़ जायेगा। ये समझेंगे चाचू मर गये जबकि वे जिन्दा रहकर इन्हें, इनके किये की सजा देंगे।”
“ये झूठ है। सरासर गलत है ठकरियाल।” देवांश चीख पड़ा।
“अरे चाचू ने ही तो बताईं थीं उसे वे सब बातें। उन्होंने ही तो समझाया था मरने से पहले क्या-क्या कहना है ?"
“ल-लेकिन...।” दिव्या ने कहा – “भला इस तरह मरने को कौन तैयार हो जायेगा ?”
“मैंने भी चाचू से यही पूछा था । बोले— 'मैंने एक ऐसा आदमी खोज लिया है जिसे एड्स है। वह गरीब है। तीन जवान लड़कियां हैं उसकी । बेचारे को एड्से से ज्यादा उनकी शादी की चिंता खाये जा रही थी। मैं मिला । केवल दस लाख में खुश हो गया वह। कहने लगा—‘मरना तो है ही, इस मौके पर आप मिल गये । मेरी बच्चियों की शादी का इन्तजाम हो गया। मेरे लिये तो सौभाग्य की ही बात हुई ये। जिस तरह आप कहो, मरने के लिये तैयार हूं।"
“कौन था वह, कहां रहता था ?”
“मैंने पूछा, मगर चाचू ने बताया नहीं। कहने लगे – 'ठकरियाल ऐसी बला का नाम है जिसे टॉर्चर के ऐसे-ऐसे तरीके आते हैं जिन्हें झेलने वाला तो क्या सुनने वाला भी कांपकर वह उगलने लगा है जो वह उगलवाना चाहता है । तुझे मालूम हुआ और उसने टॉर्चर करना शुरू कर दिया तो उगलना पड़ेगा । इससे बेहतर है —तुझे पता ही न हो ताकि चाहे जितना टॉर्चर किया जाये, कुछ उगल ही न सके तू । जब पता ही नहीं होगा तो उगलेगा क्या?”
ठकरियाल बबलू को ऐसी नजरों से घूरता रह गया जैसे समझ न पा रहा हो इस लड़के का किया क्या जाये।
जबकि देवांश कहता चला गया— “ये सरासर झूठ बोल रहा है ठकरियाल । समझने की कोशिश करो इसक जाल को। मैं दावे के साथ कह सकता हूं—मरने वाला राजदान ही था । मरने से पहले उसने जितनी शिद्दत के साथ, जितनी वेदना के साथ बातें की थीं इसे मै इस वक्त भी अच्छी तरह महसूस कर सकता हूं। किसी दूसरे को चाहे जितना पढ़ा दिया जाये, वह उन बातों को उतनी गहरी संवेदनाओं के साथ नहीं कह सकता ।”
“चाचू ने मुझे बताया था—जो शख्स मरने से पहले उनकी एक्टिंग करने वाला है, वह अपने जमाने का मंजा हुआ स्टेज आर्टिस्ट है।”
“कमाल ये है कि इस हरामजादे के पास मेरे हर सवाल का जवाब है।"
देवांश दांत भींचकर कह उठा -“इससे पूछो, अगर ऐसा है भी तो हमें क्यों बता रहा है यह सब ? क्यों प्लान ओपन कर रहा है राजदान का ?”
“मैं जो भी रहा हूं, उन्हीं के हुक्म पर कर रहा हूं।” बबलू बोला— “उन्होंने ही कहा था, जब तुम लोग पूछताछ करो तो मैं यह सब बगैर टॉर्चर हुए बता दूं।”
" ऐसा क्यों चाहता था वह ?”
"मैंने पूछा,
उन्होंने नहीं बताया।"
“देखा...देखा ठकरियाल । जो इसे नहीं बताना होता उसक लिये कह देता है, राजदान ने नहीं बताया और जो बताना होता है, उसे यह कहने के साथ बता देता है कि यह बतान का हुक्म खुद राजदान की तरफ से है। मैं कहता हूं – अगर यह हमें सब कुछ उसी के हुक्म से बता रहा है तो क्या इसी से जाहिर नहीं हो जाता कि इस स्पॉट पर, इसके मुंह से यह सब कहलवाना उसके ही षड्यंत्र का हिस्सा है। यह सब कहने के लिए उसने अपनी मौत से पहले इसे जान-बूझकर नियुक्त किया है ताकि इसकी बातें सुनकर हम गड़बड़ा जायें । होश उड़ जायें हमारे ।”
उस शख्स की मुस्कान में जहर आ घुला । जिसका नाम बबलू था— बोला – “मैंने चाचू का हुक्म बजा दिया । यह तुम्हारा हैडेक है कि चाचू के जिन्दा होन पर विश्वास करो न करो। और हां, तुम्हें यह बताने के लिए और कहा था उन्होंने कि रात के तीन बजे उन्होंने खुद मुझसे बात की थी। कहा था— 'देवांश तेरे कमरे में एक लेटर फैंकने आ रहा है। मेरे लेटर पैड के कागज पर उसे ठकरियाल ने लिख है, मेरी राईटिंग से राईटिंग मिलाने की कोशिश भी की है । उस लेटर को पढ़ते ही तुझे बाथरूम के रास्ते से मेरे बैड़रूम में जाना है। वहां वे जैसे भी करेंगे, ऐसा ड्रामा करेंगे जैसे 'मैं' ही वहा होऊं । मुमकिन है, ठकरियाल या देवांश मेरे कपड़े पहनकर खुद को ‘मैं’ दिखाने की कोशिश करें। जाहिर है— उनकी कोशिश होगी— स्टेज आर्टिस्ट की लाश पर तेरी नजर न पड़े और तुझे भी ऐसा ही दर्शाना है जैसे तू उनके झांसे में आ गया है। वे तेरे ही हाथों से पेन्टिंग उतरावायेंगे ताकि बैडशीट पर तेरे फुट स्टैप्स और पेन्टिंग पर अंगुलियों के निशान रह जायें। जेवर तुझे दिये जायेंगे ताकि सुबह को पुलिस कार्यवाई के दरम्यान तेरे कमरे से बरामद किये जा सकें। याद रहे तुझे वही करते चले जान है जो वे चाहें। जेवर अपने कमरे में लाकर स्कूल बैग में रख लेना ।”
“और वही तुमने किया?”
सजीली मुस्कान के साथ कहा बबलू ने—“आप विद्वान हैं।”
“यानी उस वक्त तुम्हें पता था— - टेबल लैम्प के पीछे लाश पड़ी है। राजदान का नाईट गाऊन पहने तुम्हारे सामने मैं खड़ा हूं।" “हन्डरेड परसेन्ट मालूम था इंस्पैक्टर अंकल । वरना सोचिये, कहां आपका अदरक की गांठ जैसा ये जिस्म और कहां मेरे चाचू की लम्बाई। हालांकि चाचू ने कहा था— मैं अपनी किसी भी बात से यह जाहिर न होने दूं कि मुझे उस ड्रामे पर शक हो रहा है बावजूद इसके, आपकी आवाज पर ‘कॉमेन्ट्स’ पास करने की अपनी शरारत को नहीं पचा पाया । सोचा, थोड़ा सा तो डराया ही जाये तुम्हें । तुमने नजला-जुकाम वाली बात कही । मैं चुप रह गया । तुमने सोचा– ‘बच्चे को बना दिया उल्लू .अब समझ में आया होगा, उल्लू ये बच्चा बना रहा था तुम्हें।”
“फोन पर ।”
“ये बातें राजदान ने तुम्हें कैसे बताईं?”
“तुम्हारे यहां तो फोन ही नहीं हैं ”
“मेरे ट्राऊजर की बायीं जेब में हाथ डालो।”
देवांश हिचक गया ।
बबलू बोला – “डालो न, या मेरे हाथ खोल दो ।”
ठकरियाल ने उसकी जेब में हाथ डाला ।
वापस आया तो उसमें ‘नोकिया' का छोटा सा सेलफोन था। उसे देखते ही देवांश के मुंह से निकला — “ये तो मेरा फोन है।”
"है तो चाचू की कमाई का ही न?”
“तेरे पास कहां से आया?”
ठकरियाल के हाथ से फोन देवांश ने लिया। “अब क्या यह भी बताना पड़ेगा, चाचू ने दिया था ताकि वक्त जरूरत पर कॉन्टेक्ट कर सकें। वही किया।”
वह लिस्ट चैक की जिसमें 'इनकमिंग कॉल' स्टोर होती थीं। एक ही कॉल स्टोर थी उसमें, देवांश ने उस नम्बर को पढ़ा। चौंका। बोला— “ये तो राजदान के सेल्युलर का नम्बर है | मतलब फोन उन्हीं के मोबाईल से किया गया।”
“बोल भी वे रहे थे दूसरी तरफ से।” बबलू ने कहा।
ज्यादा चलता-पुर्जा नजर आ रहा था।
-“रात क तीन बजे ।”
ठकरियाल, दिव्या और देवांश उसे घूरते रह गये । उसे— जो केवल सोलह साल का होने के बावजूद इस वक्त उन्हें दुनियां का सबसे कुछ देर की खामोशी के बाद ठकरियाल ने कहा – “ये जो तुमने अब कहा है, अपने जेब से फोन बरामद कराया है। यह सब भी राजदान के कहने पर ही किया होगा।”
“वह मैं कर ही नहीं सकता जो उनका हुक्म न हो।”
“एक और छोटे से सवाल का जवाब दो मेरे ।”
“लम्बा हो या छोटा, मैं उस हर सवाल का जवाब देने के लिये हाजिर हूं जिसका जवाब मेरे पास है क्योंकि चाचू ने कहा था— कुछ भी मत छुपाना, जो मालूम है- - सब बता देना ।” एक बार फिर ठकरियाल उसे घूरता रहा गया। अपने असली मनोभावों को छुपाता बोला— “ये बताओ — जो तुमने कहा, वह सब सचमुच हुआ भी है या केवल इसलिये कहा क्योंकि राजदान ने यह सब कहने के लिये कहा है?”
“मेरी तुच्छ बुद्धि में मतलब नहीं घुस सका आपकी गूढ़ बात का । "
“तुमने जो यह कहा, राजदान जिन्दा है। अपनी जगह उसने एक स्टेज आर्टिस्ट से सुसाईड कराई | तीन बजे तुमसे फोन पर बात की।...तुम्हारी नॉलिज के मुताबिक यह सब सच है या केवल उसके कहने पर हमसे कह रहे हो ?”
“मेरी नॉलिज के मुताबिक तो सच ही है।”
“तो फिर इस स्पॉट पर उसने तुम्हं, हमें यह सब बताने की इजाजत क्यों दी?”
“चाचू जानें या राम, अपुन ने कर दिया अपना काम।”
“कहा था, यह भी बता दूं कि वह शख्स जिसने हमारे फ्लैट की इमारत के टैरेस से देवांश अंकल का छाया चित्र खींचा था, कोई और नहीं खुद चाचू थे।”
“ओह।....यह भी पता है तुम्हें ?”
“जी।"
“और क्या पता है?”
“बहुत कुछ पता है। सवाल करते रहिये – जवाब मिलते रहेंगे। तांत्रिक अंगूठी समझिये मुझे "
“मेरे बोर में क्या कहा था ।”
“केवल इतना कि मैंने पांच लाख में ठकरियाल को एक काम सौंपा है। मगर मैं जानता हूं—वह दिव्या और देवांश से बड़ा लालची है। वह आधा काम भले ही कर दे मगर पूरा काम हरगिज नहीं करेगा क्योंकि उससे पहले ही दिव्या उसे पांच करोड़ की हुंडी नजर आने लगेगी। वह उनके साथ मिल जायेगा और तुझे फंसाने के मिशन पर काम करेगा।”
“यह सब कहा उसने?”
“हाथ खोल दो। स्टाम्प पेपर ले आओ। मैं लिखकर दे सकता हूं। वैसे, सोलह साल के बच्चे के लिखे की कोई वैल्यू नहीं होती।”
ठकरियाल फैसला न कर सका।
बबलू झूठ बोल रहा है या सच।
राजदान के दिमाग का लोहा मानना पड़ा उसे ओर अब... उसे इस झमेले से गुजरकर पांच करोड़ तक पहुंचना था। इतने सवालों के जवाब मिल जाने के बावजूद उसके जहन में बहुत से सवाल कुलबुला रहे थे। जैसे— राजदान ने अपनी हत्या के जुर्म में बबलू को क्यों फंसाया? क्यों उसने बबलू से रणवीर राणा के सामने कुछ और, और उसके बाद कुछ और बयान देने के लिए कहा? इस स्पॉट पर बबलू द्वारा उनकी नॉलिज में ये सारी बातें ले आने के पीछे राजदान का क्या उद्देश्य है? क्या वह मानसिक रूप से उन्हें टॉर्चर करना चाहता है ? तोड़ डालना चाहता है उन्हें? आखिर षड्यंत्र क्या है उसका ?
इस बार बबलू से यही पूछा ठकरियाल ने — “राजदान चाहता क्या है ?”
“एक से ज्यादा बार कह चुका हूं।” बबलू ने रटा-रटाया जवाब दिया – “मुझे नहीं मालूम ।”
“जब इतना सब कुछ मालूम है तो इस बात पर कैसे विश्वास किया जा सकता है तुम्हें उसका प्लान नहीं मालूम?”
“नहीं मालूम तो नहीं मालूम, इसमें क्या कर सकता हूं मैं ?” -
“अगर मैं ये कहूं।” ठकरियाल ने अपना एक-एक शब्द चबाया- -“तुम्हें मालूम तो है मगर राजदान की तरफ से बताने की परमीशन नहीं है, तो ?”
“और जो बताने की परमीशन नहीं है, उसे तुम बगैर थर्ड डिग्री से गुजरे नहीं बताओगे।”
सुनते ही, ठहाका लगाकर हंस पड़ा लड़का ।
एक बार हंसा तो फिर हंसता ही चला गया | अंदाज ऐसा था जैसे ठकरियाल ने कोई जबरदस्त चुटकुला सुना दिया हो। ठकरियाल दांत पीस उठा ।
दिव्या और देवांश सहमी-सहमी नजरों से बबलू को देख रहे थे ।
वह छोटा-सा लड़का इस वक्ते उन्हें अपने लिये यमराज द्वारा भेजा गया दूत सा लग रहा था। पुलिस टॉर्चर रूम में, एक इंस्पैक्टर के सामने कुर्सी पर बंधा होने के बावजूद जरा भी तो नहीं डर रहा था वह। उल्टा उन्हें, अपनी खिलखिलाती हंसी से डराये दे रहा था। उस हंसी से जो उन्हें अपनी खिल्ली सी उड़ाती महसूस हो रही थी खिलखिलाहट जब थोड़ी कमजोर पड़ी तो दांत भींचे ठकरियाल ने पूछा- “क्या मतलब हुआ इस पागलों जैसी हंसी का?”
“हंसी मुझे इसलिये आ गई अंकल क्योंकि फिर ... एक बार फिर वही हो गया जो चाचू ने कहा था ।” अपनी हंसी रोकने का सा प्रयास करते बबलू ने कहा ।
“क्या कहा था ?”
“यही की जब मैं वह सब बता चुकूंगा जो जानता हूं तो तुम फिर किसी न किसी बहाने से मुझे टॉर्चर करने के मंसूबे बनाओगे मगर, मंसूबे केवल मंसूबे रह जायेंगे । कर नहीं सकोगे ऐसा ।”
ठकरियाल के जबड़े कस गये। गुर्राया—“मेरे थाने में, कौन रोक लेगा मुझे?”
तभी टॉर्चर रूम के बंद दरवाजे को किसी ने खटखटाया। तीनों ने चौंककर उस तरफ देखा । बबलू के गुलाबी होठों पर फैली मुस्कान गहरी हो गइ। ठकरियाल ने भन्नाते हुए लहजे पूछा—“कौन?”
“मैं सर।” रामोतार की आवाज सुनाई दी।
“क्या मुसीबत आ गई?...मैंने तुमसे खुद को डिस्टर्ब न करने के लिए कहा था।”
“सर, एक वकील साहब आये हैं आपसे मिलने।”
ठकरियाल आपे से बाहर होकर चिल्ला उठा— “मेरे ऑफिस में बैठा उसे । कह! अभी बिजी हूं, थोड़ी देर बाद मिलूंगा ।” -
“काम जरूरी है हुजूर ।” एक नई आवाज सुनाई दी – “राजदान साहब का फरमान लाया हूं।” झटका सा लगा ठकरियाल के दिलो - दिमाग को। मुँह से निकला – “र-राजदान का फरमान?” पलटकर दिव्या और देवांश की तरफ देखा । उनकी तरफ जिनके चेहरों पर हवाईयां उड़ रही थीं। कोशिश के बावजूद ठकरियाल अपने मुंह से आवाज न निकाल सका जबकि थोड़े गैप के बाद बाहर से पुनः वही आवजा उभरी – “हुजूर खोल रहे हैं या मैं एस. एस. पी. साहब का फोन खटखटाऊं?”
भन्नाया हुआ ठकरियाल दरवाजे की तरफ लपका। अगले पल, एक झटके से दरवाज खोल दिया उसने।
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