रात के ढाई बज रहे थे। देवराज चौहान की आंखों में नींद नहीं थी। उसकी हर सोच इस तरफ थी कि वो कैसे यहां से आजाद हो। इतना तो वो महसूस कर चुका था कि ये लोग उसे यहां से निकलने नहीं देंगे। लम्बे समय से हाथ-पांव बंधे होने की वजह से जिस्म अकड़ता सा महसूस हो रहा था। शरीर के कई हिस्सों में दर्द भर आया था।
उसी पल देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं।
रात के गहरे सन्नाटे में दरवाजे का ताला खोले जाने की मध्यम सी आवाज उसने सुनी थी। नजरें दरवाजे पर जा टिकीं। धीरे-धीरे, बे-आवाज सा दरवाजा खोला जा रहा था।
दरवाजा खुला । अंधेरे में जो साया चमका देवराज चौहान ने फौरन पहचाना । वो नगीना थी।
देवराज चौहान की सिकुड़ चुकी आंखें नगीना पर ही रहीं। कमरे में जीरो वॉट का बल्ब रोशन था। ऐसे में मध्यम-सा सब कुछ
साफ-साफ नजर आ रहा था ।
नगीना पास आकर बैड के पास ठिठक गई। "
“मैं जानती थी आप जाग रहे होंगे।” नगीना ने धीमे स्वर में कहा। देवराज चौहान कुछ नहीं बोला।
नगीना ने हाथ में दबा चाकू आगे किया और देखते ही देखते उसके हाथ-पांवों के बंधनों को काट दिया। देवराज चौहान ने हाथ-पांवों को सीधा किया फिर बैड से उतरकर हाथ-पांव हिलाने लगा।
“उन सबने आपके साथ जो भी किया। उसके बारे में मुझे पहले से कोई खबर नहीं थी।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा-“अगर मालूम होता तो आपको पहले ही बता देती।”
देवराज चौहान ने जेब से पैकिट निकालकर सिग्रेट सुलगाई । "मेरे बंधन खोलने का मतलब जानती हो नगीना ?" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
“मैं तो सिर्फ इतना जानती हूं कि जब मैंने खुद को आपके हवाले किया था। आपको अपना माना था तो तब ये कहा था कि मैं कभी भी आपके कामों में रुकावट पैदा नहीं करूंगी। जरूरत पड़ने पर आपकी सहायता ही करूंगी। मेरे वो शब्द ही मेरा धर्म है। मेरा फर्ज है। इन बंधनों को काटकर मैंने अपना धर्म और फर्ज निभाया है।" नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा- “आगे वही होगा, जो भगवान को मंजूर होगा।”
देवराज चौहान की निगाह नगीना पर जा टिकी।
“मैं आपको किसी काम से रोक नहीं रही। सिर्फ कह रही हूं कि उन सबने आपको बांधकर कैद में डाल दिया तो ऐसा उन्होंने आपके भले के लिए किया। वो सब आपको चाहते हैं। उन्हें गुस्सा होने की जरूरत नहीं। अगर मैं अपने धर्म और फर्ज में न बंधी होती तो कभी भी आपके बंधन नहीं काटती ।”
"तुम कहना क्या चाहती हो ?”
“अभी भी सब कुछ आपके हाथ में है।" नगीना का स्वर शांत-गम्भीर ही था - " और मेरी इच्छा है कि दो-ढाई महीने आप मोना चौधरी को अपनी सोचों से निकाल दें।"
“ये नहीं हो सकता। मौत के डर से मैंने अपने कदम रोके तो मुझे अपना अस्तित्व हिलता सा महसूस होने लगेगा। मेरा विश्वास हिल जायेगा । बिखर जायेगा। जो कि फिर कभी इकट्ठा नहीं होगा।” देवराज चौहान अपने शब्दों पर जोर देकर गम्भीर स्वर में बोला-"हमेशा ही मेरा एक कदम जिन्दगी की राह पर और दूसरा कदम मौत की राह पर रहा है। जिस तरह मैंने अपनी तमाम उम्र बिताई है। उसी तरह जिन्दगी के अंत तक पहुंचूंगा। मौत का डर मेरे कदमों को नहीं रोक सकता।” “मैं आपके साथ हूं।” नगीना के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था ।
“तुम - तुम साथ चलोगी मेरे ?” -
“हां ।” नगीना ने भावहीन स्वर में कहा- “ये बात हममें तय हो चुकी है। मैं आपके साथ चलूंगी। आपके साथ ही रहूंगी। जीवनके अंत तक आपका साथ दूंगी। अपने फर्ज और धर्म का निर्वाह पूरी तरह करूंगी । ”
“दिल्ली में तुम्हारे लिए भी खतरा हो सकता है नगीना ।" “जोधा सिंह की बेटी को आप खतरे का डर दिखाकर, फिजूल की बात कह रहे हैं । "
देवराज चौहान ने हौले से सिर हिला दिया। सिर से पांव तक वो गम्भीरता में डूबा हुआ था ।
“कब चलना चाहेंगे आप ?”
“अभी।” देवराज चौहान के होंठ भिंच गये - “अगर जगमोहन, सोहनलाल, बांके और रुस्तम राव को मालूम हो गया कि मैं यहां से जा रहा हूं तो वो ढेरों रुकावटें पैदा करके, मेरे लिए परेशानी खड़ी करेंगे। तुम यहां से चलने की तैयारी करो। हमारा अब यहां ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं।"
“सब तैयारी कर चुकी हूं मैं।” नगीना ने देवराज चौहान की बाह पकड़ ली। स्वर में हल्का सा कम्पन उभरा। फिर आवाज सामान्य हो गई- “जानती थी आप रुकेंगे नहीं। तैयारी में हर वो सामान मौजूद है जिसकी जरूरत आपको पड़ सकती है और सारा सामान पोर्च में खडी कार में रख भी दिया है।"
देवराज चौहान ने गम्भीर निगाहों से नगीना को देखा फिर धीमे स्वर में कह उठा ।
“चलो।”
दोनों बे-आवाज कदमों से कमरे से निकले। फिर बंगले से। पोर्च में खड़ी कार को धकेल कर बंगले के गेट से बाहर ले आये कि कार का इंजन स्टार्ट होने पर, वो सब नींद से न उठ जाये। उसके बाढ़ कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी। हर तरफ रात की सुनसानी छाई हुई थी।
***
पैंतालीस मिनट के बाद देवराज चौहान ने सड़क के किनारे कार रोकी और हैडलाईट ऑफ करके, इंजन बंद किया और नगीना से कहा । “तुम यहीं रहो। मैं कुछ देर में लौटता हूं।" नगीना ने देवराज चौहान को देखते हुए सहमति से सिर हिला
दिया।
देवराज चौहान गली में प्रवेश कर गया। आगे गलियों का जाल था। शहर का पुराना इलाका था ये गलियों के मोड़ों में गुड़ते हुये वो जिस दरवाजे के पास ठिठका, वो बाबूभाई के घर का दरवाजा था। देवराज चौहान ने दरवाजा थपथपाया |
तीसरी बार थपथपाने पर भीतर से बाबूभाई की नींद से भरी आवाज आई।
“आ रहा हूं।"
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई ।
मिनट भर के इन्तजार के बाद दरवाजा खुला।
“कौन है ?" दरवाजा खोलते ही बाबूभाई ने पूछा। भीतर से आती रोशनी देवराज चौहान के चेहरे पर पड़ने लगी थी- “ओह, तुम देवराज चौहान- आओ।" इसके साथ ही वो दरवाजे से हट गया। देवराज चौहान भीतर आया तो बाबूभाई दरवाजा बंद करके पलटा। उसका चेहरा बता रहा था कि वो गहरी नींद में देवराज चौहान के चेहरे पर नजरें टिका दीं।
“खबर मिल गई है मुझे कि किसी ने बंसीलाल को खत्म कर दिया।" गम्भीर स्वर में कहा बाबूभाई ने।
देवराज चौहान ने जेब से सौ की गड्डी निकाली और टेवल पर रख दी।
“अब किसकी बारी है ?” बाबूभाई के होंठ सिकुड़ गये। “दिल्ली में मोना चौधरी रहती है।" देवराज चौहान का स्वर बेहद शांत था ।
“मोना चौधरी ?” बाबूभाई चौंका ।
देवराज चौहान ने एक और गड्डी टेबल पर रख दी। “मैं जानना चाहता हूं कि दिल्ली में मोना चौधरी कहां रहती है।” देवराज चौहान ने उसे देखा।
बाबूभाई की सोच भरी निगाहें देवराज चौहान पर ही रहीं। देवराज चौहान ने जेब से निकालकर तीसरी गड्डी टेबल पर रख दी।
“मोना चौधरी का पता-ठिकाना मैं नहीं जानता। मुझे कोई खबर नहीं ।” बाबूभाई ने धीमे स्वर में कहा।
देवराज चौहान ने चौथी गडी टेबल पर रख दी। “मोना चौधरी का ठिकाना कहां से पता चलेगा ?" देवराज चौहान का स्वर पहले जैसा ही था ।
बाबूभाई ने टेबल पर पड़ी गड्डियों को देखा। “जो जवाब तुम चाहते हो । उसके लिए तो ये गड्डियां कम हैं। एक पेटी पूरी कर दो।"
देवराज चौहान ने जेब से छः गड्डियां और निकालकर, लाख रुपया पूरा कर दिया।
“यहीं रुको। मैं आता हूं।" देवराज चौहान को गम्भीर निगाहों से देखते हुए बाबूभाई दूसरे कमरे में चला गया । देवराज चौहान कश लेता टहलने लगा।
पांच मिनट बाद बाबूभाई लौटा। हाथ में कागज था। “मोना चौधरी से कोई नया लफड़ा हो गया है क्या ?" बाबूभाई बोला- “ये बात मेरी जानकारी में है कि एक-दो बार पहले भी तुम्हारा और मोना चौधरी का झगड़ा हो चुका है। " देवराज चौहान ने कठोर निगाहों से उसे देखा।
“मैं यूं ही पूछ रहा था। तुम्हारा जवाब देना जरूरी नहीं है।" बाबूभाई ने लापरवाही से कहा और पास आकर कागज देवराज चौहान को धमता हुआ बोला- "इस कागज पर मोना चौधरी का तो नहीं, लेकिन उसके खास साथी नीलू महाजन का पता है। महाजन जानता है कि मोना चौधरी कहां रहती है।”
देवराज चौहान ने कागज पर नजर मारी। वहां दिल्ली का कोई पता लिखा था ।
देवराज चौहान के कार आगे बढ़ाते ही नगीना ने पूछा।
“कहां गये थे ?"
“किसी से मोना चौधरी का दिल्ली का पता पूछने ।" देवराज चौहान ने कहा।
"मालूम हुआ ?".
“मोना चौधरी का तो नहीं।” देवराज चौहान ने कार ड्राईव
करते हुए सिग्रेट सुलगाई-"महाजन का पता मिल गया है।”
“वो जो मोना चौधरी का खास साथी है।” नगीना कह उठी- “नाम सुन चुकी हूं उसका ।”
“हां। वो ही महाजन ।”
“महाजन शायद न बताये मोना चौधरी के बारे में।"
“तुम ठीक कहती हो। वो नहीं बतायेगा।” देवराज चौहान ने कहा- “लेकिन हमारे सामने एक ऐसा इन्सान होगा। जो हमें मोना चौधरी तक पहुंचा सकता है। दिल्ली पहुंचकर देखेंगे कि इस बारे में क्या करना है। "
कुछ पल उनके बीच शान्ति रही। कार रफ्तार के साथ दौड़ती रही।
“मोना चौधरी के साथ आपकी दुश्मनी कैसे पैदा हुई थी ?” नगीना ने पूछा ।
“मालूम नहीं। पुरानी बात हो गई।” देवराज चौहान के होंठों पर शांत सी मुस्कान उभरी- “हम दोनों के रास्ते एक हो गये थे तब। वहीं से टकराव की नौबत आई थी।”
“फकीर बाबा तो कहता है ये दुश्मनी तीन जन्म पहले शुरू हुई थी।"
“हां। पेशीराम ने ये नहीं बताया कि तीन जन्मों पहले किस वजह के चलते दुश्मनी की शुरूआत हुई थी। इतना अवश्य कहा था कि वो हर जन्म की दास्तान बतायेगा।" देवराज चौहान ने कहा । “हो सकता है फकीर बाबा पूर्वजन्म की बात गलत कर रहा हो।"
“पेशीराम की कोई भी कही बात आज तक झूठ नहीं निकली। वैसे भी बीते जन्मों के कुछ हिस्सों में पेशीराम हम सब को ले गया था। हम लोगों का तीन जन्म का पहले का परिवार आज भी जिन्दा है। जगमोहन, सोहनलाल, बांके, रुस्तम राव सब मेरे साथ ही थे। मोना चौधरी, नीलू महाजन और पारसनाथ के परिवार वाले भी उन्हें मिले। मोना चौधरी के पिता मुद्रानाथ और बहन बेला ने मेरी बहुत सहायता की थी। उस दुनिया का समयचक्र दालू बाबा ने रोक रखा था। तीन जन्म पहले जब हम सब की झगड़े में मौत हुई तो, जैसा हमने वहां छोड़ा था, समय चक्र रुक जाने से तब भी सब कुछ वैसा ही था, जैसा हमारी मौत के समय था।" इन सब बातों को जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित उपन्यास (1) जीत का ताज, (2) ताज के दावेदार, (3) कौन लेगा ताज।
“ये जगह कहां पर है ?" नगीना ने देवराज चौहान के चेहरे पर निगाह मारी ।
“मालूम नहीं।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा“पेशीराम के पास कई करिश्माई शक्तियां हैं। तब वो नाई को पेशा करता था। पेटी लेकर हजामत के लिए घर-घर घूमता था। लेकिन मेरे इन तीन जन्मों के भीतर उसने यज्ञ-तप और भक्ति करके, गुरुवर की कृपा से कई विद्याएं जान ली हैं। इन्हीं विद्याओं के दम पर वो हम सब को ऐसी नगरी ले गया था, जिसे शायद पाताल नगरी कहते हैं। वो हम लोगों की ये दुनियां नहीं थी।”
सुन-समझकर भी इन बातों पर विश्वास नहीं कर पा रही
हूं। जगमोहन ने भी बताया था मुझे। लेकिन ।”
“तुमने जो सुना, वो सच है।" देवराज चौहान ने कहा- “उस पर विश्वास करो।"
नगीना ने एकाएक गम्भीर स्वर में कहा।
“तुमने कहा कि फकीर बाबा ने आज तक जो कहा, वो सच निकला ।"
“हां।”
“क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कभी उसका कहा झूठ हो जाये।” नगीना के स्वर में हल्का सा कम्पन उभरा।
देवराज चौहान ने नगीना के चेहरे पर निगाह मारी फिर सामने देखने लगा ।
“अपनी शक्तियों के दम पर पेशीराम कभी-कभी भविष्य में झांक लेता है और कभी नहीं भी झांक पाता।" देवराज चौहान ने कश लिया - "इस बार भी उसने आने वाले वक्त को देख लिया होगा तभी मुझे चेतावनी दी कि मोना चौधरी से अभी झगड़ा किया गया तो शायद मेरी जिन्दगी न बच सके।"
"उसकी बात झूठी भी तो हो सकती है।" नगीना अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठी।
"मुझे पूरा विश्वास है कि उसकी बात झूठी नहीं होगी।” देवराज चौहान का लहजा बेहद शांत था ।
नगीना ने देवराज चौहान को देखा। कुछ पल देखती रही। फिर मुंह घुमा लिया। आंखों में आंसू चमक उठे थे और देवराज चौहान को बिना देखे ही एहसास था उन आंसुओं का ।
कार तेज रफ्तार के साथ दौड़े जा रही थी।
***
जगमोहन की आंख खुली तो सुबह के सात बज रहे थे । “भाभी!” जगमोहन ने ऊंचे स्वर में कहा-“गुड मॉर्निंग । चाय बना देना।"
बगल में सोया रुस्तम राव बड़बड़ा उठा। “क्यों बच्चे की नींद खराब करेला है। सोने दे। बाहर को पोंच कर दंगा करेला ।”
जगमोहन ने रुस्तम राव को देखा। मुंह बनाया फिर बैड से उतरकर बाथरूम में चला गया और हाथ-मुंह धोकर कमरे से बाहर निकल आया।
“भाभी चाप बना देना।" कहते हुए जगमोहन ड्राईंगहॉल की तरफ बढ़ गया।
तभी बगल वाले कमरे से बांकेलाल राठौर भी बाहर आ गया। “शुभः प्रभातो।” बांकेलाल राठौर ने जगमोहन से कहा और साथ चलने लगा- "म्हारी मानो तो आज म्हारे से शर्त लगा लो । थारी भाभी बाद में तन्ने चायो दयो। म्हारी बहना पैले म्हारे को दयो।" जगमोहन के होंठों पर मुस्कान उभरी। लो।”
“कोई बात नहीं। तुम पहले चाय ले “मतलब कि तुम शर्त न लगायो ।”
“नहीं।” “थारो मर्जी म्हारा क्या जाता है।" दोनों हॉल में सोफों पर जा बैठे। “ओ बहनो।” बांकेलाल राठौर बोला-"जरा सुबहो वालो चाय "
दयो म्लाई मारो के।
तभी जगमोहन बोला।
"मैं देवराज चौहान को देखकर आता हूँ। बंधनों में उसे तकलीफ हो रही होगी।”
"बैठो-बैठो।" बांकेलाल राठौर हाथ हिलाकर बोला- "अम्भी चायो आयो तो चायो को ले करो, वां पे जायो। चायो देखो के कुछो तो उसो का गुस्सो नर्ग पड़ो हो ।”
बांकेलाल राठौर की बात सु.कर, जगमोहन ने उठने का इरादा छोड़ दिया।
तभी रुस्तम राव पास आता दिखाई दिया।
"बाप! तुम लोग तो सुबह-सुबह चिल्ला के बच्चे की नींद खराब करेला ।" रुस्तम राव ने कहा ।
“छोरे ! ये का सोने का वक्त हौवे । उसो के गुरदासपुरो में तो ईब तक पचास भैसों का दूध दहो कर, उन्हों के आगे तो चारो भी डालो के, फुर्सत में बैठ जायो।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।
“बाप ये मुम्बई होएला । गुरदासपुर नेई होएला ।”
“छोरा जवान हो गयो दिखो। ईब तो जुबान भी लड़ानो लगो हो ।” “भाभी नजर नहीं आ रही।" जगमोहन इधर-उधर नजर घुमाते हुए कह उठा ।
" "बाप!" रुस्तम राव उठता हुआ बोला-“वो थककर सोएला । सब का खाना वो बनाएला । नाश्ता बना डाला । आपुन अभ्भी चाय • बना के लाईला बाप ।” कहने के साथ ही रुस्तम राव किचन की तरफ बढ़ गया।
“छोरे । म्हारी चाय पर मलाई जरूर मारो हो ।”
"गड़बड़ होएला बाप ।” रुस्तम राव उल्टे पांव भागता हुआ आया - "देवराज चौहान अपने कमरे में नेई होएला। दीदी भी नजर नेई आएला।"
"कया ?" जगमोहन चौंककर खड़ा हो गया।
“थारे को सपणो आयो हो छोरे।" बांकेलाल राठौर के होंठों से निकला- “देवराज चौहान वां पे ई हौवो ।”
“देख लो बाप ।” रुस्तम राव का चेहरा फक्क था। जगमोहन भीतर की तरफ भागा।
बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव भी।
“छोरो सच कहो हो तो यो तो बोत बुरो बातो हो गयो ।”
तीनों एक के बाद एक, उस कमरे में प्रवेश करते चले गये, जहां देवराज चौहान को बंद कर रखा था। भीतर प्रवेश करते ही उनके पांव जड़ से हो गये। जिस नाईलोन की डोरी से देवराज चौहान को बांधा था, वो डोरी कटी पड़ी थी। पास ही में किचन वाला चाकू पड़ा था ।
देवराज चौहान अब भला कमरे में कहां था ।
जगमोहन पलटा और भागता हुआ बदहवास सा बाहर आ गया ।
“भाभी।”
जगमोहन हर उस जगह को देख रहा था, जहां नगीना हो सकती थी ।
“भाभी।” जगमोहन दौड़ता फिर रहा था ।
“छोरे !” बांकेलाल राठौर ने गम्भीर स्वर में कहा- “यो सारो गड़बड़ बहना ही कियो हो ।”
“हां । वो देवराज चौहान के बंधन काटेला और दोनों रात में ही इधर से खिसकेला बाप ।"
तभी जगमोहन हांफता हुआ पास आ पहुंचा। उसका चेहरा फक्क था ।
“देवराज चौहान और नगीना भाभी बंगले पर नहीं हैं।" तेज सांसें लेता जगमोहन कह उठा- “भाभी ने ही देवराज चौहान के बंधन काटे हैं। बहुत बड़ी गलती हो गई। भाभी को कमरे की चाबी नहीं देनी चाहिये थी । ”
बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव समझ नहीं पा रहे थे कि क्या कहें।
जगमोहन बदहवास सा तेज-तेज कदम उठाता हुआ उस कमरे की तरफ बढ़ा, जहां सोहनलाल सोया था ।
“सोहनलाल।" जगमोहन बे-काबू सा हो रहा था- “सोहनलाल ।” जगमोहन ठिठक गया।
कमरे में प्रवेश करते ही बैड की पुश्त से टेक लगाये, सोहनलाल सिग्रेट के कश ले रहा था। उसकी आंखों से लग रहा था कि वो शौर सुनकर ही सोया उठा है। चेहरे पर गम्भीरता और बेचैनी स्पष्ट नजर आ रही थी।
“सोहनलाल!" जगमोहन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी- “बहुत बुरी बात हो गई। देवराज चौहान अपने कमरे में नहीं है। नगीना ने उसे आजाद करा दिया। दोनों ही बंगले पर नहीं हैं।" सोहनलाल शांत सा कश लेकर, जगमोहन को देखता रहा। “तू कुछ कहता क्यों नहीं सोहनलाल! देवराज चौहान ?"
"देवराज चौहान और भाभी रात मेरे सामने ही गये थे।" सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा।
"क्या ?" जगमोहन चिहुंक उठा। बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव भी वहां आ पहुंचे थे।
"हां।” सोहनलाल ने उसी लहजे में कहा- “तव मेरी आंख खुल गई थी। नींद नहीं आई तो सिग्रेट पीने और कुछ वक्त बिताने के इरादे से मैं कमरे से बाहर निकला तो टहलता हुआ आगे निकल गया। वहां देवराज चौहान के कमरे वाला दरवाजा खुला देखा तो मैंने भीतर झांका। देवराज चौहान और भाभी कमरे में खड़े थे और दिल्ली जाने की बात कर रहे थे। मैं उसी पल वहां से हट गया और पोर्च में जाकर छिप गया। कुछ देर बाद वो दोनों आये। पोर्च में खड़ी कार को धकेलकर बंगले से बाहर निकाला और चले गये दोनों ।”
"तुमने उन्हें रोका क्यों नहीं ?" जगमोहन दांत भींचकर कह उठा ।
“मैं उन्हें रोकने की ताकत नहीं रखता।"
"हमें क्यों नहीं जगाया नींद से ?” जगमोहन चीख उठा।
"मैं नहीं चाहता था कि कोई गलत बात हो जाये।” सोहनलाल ने गम्भीर वर में कहा-“अब देवराज चौहान को रोक पाना सम्भव नहीं था। तुम लोग उसे रोकते तो कुछ भी हो सकता था।"
“तुम जानते हो पेशीराम ने कहा था कि दो महीनों के भीतर वो मोना चौधरी से झगड़ा करेगा तो इस झगड़े में देवराज चौहान की मौत हो जायेगी। इस पर भी तुमने उसे जाने दिया।" क्रोध में जगमोहन सिर से पांव तक कांप रहा था ।
सोहनलाल ने जगमोहन को देखा फिर व्याकुल भाव से बैड़ से नीचे उतर आया ।
“जगमोहन!” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा-“देवराज चौहान से तुम्हारा साथ ज्यादा रहा है। लेकिन तुम शायद ठीक से उसे पहचान नहीं पाये। देवराज चौहान वो इन्सान है, जिसे उसकी मर्जी के बिना कैद नहीं किया जा सकता। अगर उसे रोक लिया है तो वो निकलने का कोई न कोई रास्ता निकाल लेता। यूं ही डकैती मास्टर नहीं कहते उसे। नगीना भाभी ये सब न करती तो देवराज चौहान ही कोई रास्ता निकाल लेता। तुम क्या समझते हो दो महीने उसे कमरे में कैद रखते। वो कैद रहता क्या? नहीं।" सोहनलाल ने इन्कार में सिर हिलाया- “उसने मोना चौधरी के लिए दिल्ली जाना है तो वो जाकर ही रहेगा। इस बात का एहसास मुझे पहले ही था। फिर भी उसे कैद रखने में मैंने तुम लोगों का पूरा साथ दिया। रात इसलिए तुम लोगों को नहीं उठाया कि मैं जानता था, देवराज चौहान को नहीं रोका जा सकता। रोकने की चेष्टा में कोई और अशुभ बात न हो जाये। उस वक्त मेरा चुप रहना ही सबके हक में ठीक था।"
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