छ: बजे की कहकर आकाश रात आठ बजे पुलिस हेडक्वार्टर पहुँचा। वह आना तो पहले ही चाहता था मगर शीतल थी, जिसने उसे हॉस्पिटल से तब तक नहीं निकलने दिया, जब तक कि शुभांगी वहाँ नहीं पहुँच गयी।

गरिमा देशपाण्डेय के कमरे के सामने पहुँचकर उसने हौले से दरवाजा नॉक किया, जो कि आधे से ज्यादा खुला हुआ था।

भीतर गरिमा और चौहान आमने-सामने बैठे चाय का लुत्फ ले रहे थे।

“आइए आकाश साहब।” वह मुस्कराती हुई बोली – “बड़ी देर कर दी आपने, जबकि छ: बजे की बात हुई थी हमारे बीच।”

“बिजी था मैडम इसलिए नहीं आ पाया, लेकिन चौहान साहब को फोन कर के इत्तिला बराबर किया था।”

“उसके लिए थैंक यू, प्लीज बैठिए।”

“चौहान।”

“जी मैडम?”

“डेडबॉडी की तस्वीरें दिखाओ।”

“अभी लीजिए।” कहते हुए उसने अपने हाथ में थमी पांचों तस्वीरें आकाश के सामने मेज पर रख दीं।

वह एक-एक कर के सब देख गया, फिर हैरान सा होता हुआ बोला- “सूरत तो किसी एक में भी नजर नहीं आ रही, पहचानूं कैसे?”

“चेहरा दिख रहा होता आकाश साहब तो हम आपको तकलीफ क्यों देते? फिर आदमी की शिनाख्त उसकी कद काठी से भी हो जाती है। ध्यान से देखिए, क्या पता कुछ पकड़ में आ ही जाये।”

इस बार आकाश ने ज्यादा गौर से उन तस्वीरों को देखना शुरू किया, फिर बोला- “नहीं मैं नहीं पहचानता।”

“ठीक है साहब।” गरिमा फरामाईशी आह भर कर बोली – “नहीं पहचानते तो ना सही।”

“अब अगर आपका चाहा पूरा हो गया हो तो क्या मैं जा सकता हूँ यहाँ से?” आकाश ने पूछा।

“बेशक जा सकते हैं, हम भला कौन होते हैं आपको रोकने वाले, मगर जब आ ही गये हैं तो रिक्वेस्ट है कि कुछ सवालों के जवाब भी देते जाइए। ताकि आपको फिर से डिस्टर्ब न करना पड़े।”

“क्या पूछना चाहती हैं?”

“आपकी कंपनी से रिलेटेड कुछ सवाल हैं जेहन में।”

“नो प्रॉब्लम, कर सकती हैं।”

“थैंक यू।” गरिमा मुस्कराई – “ये बताइए कि यूनिवर्सल फॉर्मास्युटिकल्स में कितने लोगों की पार्टनरशिप है?”

“दो, एक मैं और दूसरे भाई साहब?”

“आपकी भाभी पार्टनर नहीं हैं कंपनी में?”

“जी नहीं।”

“कमाल है।”

“मैं समझा नहीं, इसमें इतना हैरान होने की क्या बात है?”

“अभी समझ जायेंगे, जरा इन पेपर्स को देखिए।” कहते हुए गरिमा ने अपनी मेज की दराज से निकालकर मौर्या के घर से हासिल पार्टनरशिप डीड और अनंत के फ्लैट से बरामद हुआ इंक्रीमेंट लेटर उसके सामने रख दिया – “इन दोनों ही कागज़ात को लेकर हम बड़ी उलझन में हैं आकाश साहब। देखकर बताइए तो जरा कि इस पर आपकी भाभी और आपके ही सिग्नेचर्स हैं न? या किसी ने जाली दस्तखत बना दिये हैं। अगर वैसा लगे तो साफ कहिएगा, हम अभी एक एक्सपर्ट को यहाँ बुलाकर हाथ के हाथ आपके हस्ताक्षरों का मिलान कर लेंगे। साथ में आपकी भाभी के सिग्नेचर भी टेली कर लिये जायेंगे, ताकि गारंटी हो सके कि किसी ने ये दोनों कागजात फर्जी तौर पर तैयार कराये थे।”

उन डाक्यूमेंट्स को पहचाने ही आकाश अंबानी पसीने से नहा उठा, जबकि शीतल पहले ही वैसी किसी स्थिति की संभावना जाहिर कर चुकी थी। मुसीबत ये थी कि वह उन पर हुए दस्तखत को अपने दस्तखत मानने से इंकार नहीं कर सकता था, क्योंकि उस बात को साबित होने में जरा भी वक्त नहीं लगने वाला था।

“क्या हुआ जाली हैं?”

“नहीं।” वह थूक गटकता हुआ बोला – “ये मेरे और भाभी के ही सिग्नेचर हैं।”

“बात कुछ समझ में नहीं आई आकाश साहब, जबकि आपके भाई साहब ऐसे किसी समन्वय के सख्त खिलाफ थे। और अगर नहीं भी थे, या बाद में उसके लिए तैयार भी हो गये थे, तो भी शीतल के साइन इस पर मौजूद होने का क्या मतलब बनता है, जबकि अभी-अभी आप ये बताकर हटे हैं कि कंपनी में उसकी कोई पार्टनरशिप नहीं है?”

आकाश एक बार फिर हड़बड़ा सा गया, जबकि क्या जवाब देना है, ये बात शीतल पहले ही उसे घोंट कर पिला चुकी थी।

“जवाब नहीं दिया आपने। अगर आपकी भाभी कंपनी की पार्टनर नहीं हैं तो उनके हस्ताक्षर क्योंकर मौजूद हैं इन पेपर्स पर?”

“पार्टनर भले ही नहीं हैं मैडम, लेकिन साइनिंग अथॉरिटी का दर्जा बराबर हासिल है उन्हें, जिसका इंतजाम इसलिए किया गया था ताकि भैया अगर कभी शहर से या देश से बाहर हों तो उनके हस्ताक्षरों के कारण किसी जरूरी काम को डिले न करना पड़े।”

“इंक्रीमेंट लेटर के मामले में मैं आपकी ये बात कबूल किये लेती हूँ, मगर दो कंपनियों समन्वय बहुत बड़ी बात होती है आकाश साहब। ऐसे में सिग्नेचर मालिक को करना चाहिए या उसके किसी रिप्रजेंटेटिव को? भला ऐसी भी क्या आफत आ गयी, जो शीतल को इन पेपर्स पर दस्तखत करने पड़े। आप अगर ये कहेंगे कि उन दिनों आपके भाई साहब दिल्ली में अवेलेबल नहीं थे तो भी मैं यकीन नहीं कर पाऊंगी क्योंकि यह कोई ऐसा काम नहीं था, जिसको उनके लौटने के बाद पूरा नहीं किया जा सकता हो।”

“नहीं, भाई साहब घर पर ही थे।”

“फिर?”

“लंबी कहानी है मैडम।”

“कितनी लंबी? दो चार दिन लग जायेंगे सुनाने में?”

“नहीं, इतनी लंबी नहीं है।”

“गुड, जवाब दीजिए अब।”

“बात ये है मैडम कि मुझे और भाभी को इस मर्जिंग से कोई ऐतराज नहीं था। बल्कि हम दोनों ही चाहते थे कि हेल्थ और यूनिवर्सल फॉर्मा मिलकर एक इकाई बन जायें क्योंकि उन हालात में कारोबार का विस्तार होना तय था, मगर भैया राजी नहीं हो रहे थे। तब एक रोज निशांत मौर्या हमसे मिला और कहने लगा कि अगर हम किसी तरह भाई साहब को राजी कर लें तो वह अपने शेयर्स पांच फीसदी कम करने को तैयार हो जायेगा। वह बात हमें इतनी बढ़िया लगी कि उसी दिन से हम भाई साहब को राजी करने की कोशिशों में जुट गये। बल्कि एक वजह और भी थी और वह ये थी कि अपने आखिरी दिनों में पिता जी भी वही करना चाहते थे। डील के पेपर्स तक तैयार कराये जा चुके थे, बस दोनों पार्टनर्स के हस्ताक्षर होने भर बाकी थी, जो कि डैड अगर दो दिन और जिंदा रह गये होते तो होकर रहना था, मगर भैया को उनकी आखिरी इच्छा की कोई कद्र नहीं थी।”

“मेन मुद्दे पर वापिस लौटिए, आपने और आपकी भाभी ने अंबानी साहब को उस काम के लिए राजी करने की कोशिश की, उसके बाद क्या हुआ?”

“आखिरकार वह मान तो गये ही, मगर साफ-साफ कह दिया कि वैसी की डील पर वह खुद साइन नहीं करने वाले। हाँ, हम दोनों चाहें तो जाकर उसे फाइनल कर सकते थे।”

“इतना बड़े फैसले पर साइन करने की अथॉरिटी दे दी उन्होंने आपकी भाभी को?” गरिमा को हैरानी सी हुई।

“क्यों नहीं दे सकते थे, आखिर वह वाइफ हैं उनकी।”

गरिमा को उसके कहे पर जरा भी यकीन नहीं आया, मगर ये सोचकर हैरान जरूर हो उठी कि कितनी सफाई से लड़के ने पूरे मामले का रूख बदलकर रख दिया था, जबकि चौहान कहता था कि उसे तोड़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला।

“चलिये, आप कहते हैं तो माने लेती हूँ।” प्रत्यक्षतः वह बोली – “अब ये बताइए कि अंबानी साहब पर हुए हमले को लेकर कुछ नया सूझा आपको? कुछ ऐसा, जिससे उस वारदात पर रोशनी पड़ सके? कोई ऐसी बात, जो हमलावर तक पहुँचने में हमारे काम आ सके?”

“बड़ी बात तो अभी तक कोई सामने नहीं है मैडम, लेकिन सुमन ने आज मुझे

और भाभी को कुछ ऐसा बताया, जिसे सुनकर जाने क्यों मेरा शक बार-बार अजीत मजूमदार की तरफ जा रहा है।”

“ऐसा क्या बता दिया उसने?”

जवाब में आकाश उसे वह कहानी सुनाता चला गया, जो शीतल ने सुमन को उसके सामने रटाया था। उसके बाद बोला- “हो सकता है मजूमदार को सच में लगने लगा हो कि भैया पुलिस में कंप्लेन कर के ही मानेंगे, इसीलिए अगले दिन बिना बुलाये हमारे घर की पार्टी में चला आया और मौका पाकर उन पर हमला कर दिया।”

सुनकर पल भर के लिए गरिमा और चौहान हकबकाकर उसकी शक्ल देखने लगे। लड़का तो उनकी अब तक की जांच पड़ताल पर पूरी तरह पानी फेरता दिखाई देने लगा था।

तभी चौहान को एक खास प्वाइंट सूझ गया- “मजूमदार वहाँ रिवाल्वर और छुरे के साथ बेशक पहुँचा हो सकता है आकाश साहब, मगर अपने साथ तेजाब की बोतल भी ले कर गया था, ये क्या कोई मानने वाली बात है? और अकेला आदमी चार तरह से हमला क्यों करेगा किसी पर?”

“उस काम में राणे ने उसका साथ दिया हो सकता है।”

“सिर्फ इसलिए क्योंकि आपके भाई ने कभी उसे अपनी कंपनी से अलग कर दिया था?” गरिमा हैरानी से बोली – “इतनी सी बात पर लोग बाग अपने एम्प्लॉयर का कत्ल करने पर अमादा होने लगे तो अब तक दुनिया के तमाम बिजनेसमैन मारे जा चुके होते।”

“नहीं, इसलिए नहीं कि उन्होंने राणे की सर्विसेज लेना बंद कर दिया था, बल्कि मेरी बात का जवाब वैसा किये जाने के कारण में छिपा हुआ है।”

“आपने मुझे बताया था कि राणे के कारण कंपनी को कोई बड़ा नुकसान हो गया था, जिसकी वजह से अंबानी साहब ने उसे आउट कर दिया था।” चौहान बोला।

“मैंने झूठ बोला था, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि असल बात की जानकारी आप लोगों को लगती। भैया क्योंकि उस हमले के बावजूद अभी जिंदा हैं, इसलिए मैंने यही ठीक समझा कि उनके स्वस्थ हो जाने तक मैं उस बाबत अपनी जुबान बंद रखूँ। बाद में उन्हें जो ठीक लगता वो खुद करते।”

“और सच क्या था आकाश साहब?”

जवाब में उसने हिचकिचाने की शानदार एक्टिंग की।

“छिपाने की कोशिश भी मत कीजिएगा।” चौहान थोड़ा कड़े लहजे में बोला – “वरना परिणाम अच्छा नहीं होगा आपके लिए।”

“जरा ये भी तो सोचिए कि हम वह बात आपसे क्यों जानना चाहते हैं।” गरिमा बड़े ही प्यार से बोली – “इसीलिए न कि आपके भाई साहब पर किये गये हमले के अपराधी तक पहुँच सकें, जो कि अगर जल्दी ही नहीं किया गया तो कोई बड़ी बात नहीं होगी कि कल को उन पर फिर से हमला हो जाये, और वह कोमा में पड़े-पड़े ही दुनिया से चलते बनें।”

“ऐसा हरगिज भी नहीं होना चाहिए। आज हम लोग अगर चैन की सांस ले रहे हैं तो सिर्फ इसलिए क्योंकि हमें उम्मीद है कि देर-सबेर भाई साहब ठीक हो जायेंगे। उन्हें कुछ हो गया तो हमारा परिवार बिखर जायेगा। भाभी तो अपनी जान ही दे देंगी, वक्त ही कितना गुजरा है दोनों की शादी को।”

“तो फिर सच बोलिए।”

“ठीक है, बताता हूँ, मगर उस मामले में मेरी एक रिक्वेस्ट माननी होगी आपको।”

“कैसी रिक्वेस्ट?”

“बात को पूरी तरह गोपनीय रखेंगे, क्योंकि असल में उसका संबंध हमारे परिवार की मान मर्यादा के साथ जुड़ा हुआ है, जो अगर लीक हो गयी तो कल को भाई साहब कोमा से निकलकर भी जिंदा नहीं रह पायेंगे, अपनी जान दे देंगे वह।”

“ऐसा कौन सा बम फोड़ने वाले हैं आप?”

“है तो वह बम ही, मगर जानने से पहले गोपनियता का वादा कीजिए।”

“ठीक है, मैं प्रॉमिस करती हूँ कि बात मेरे और चौहान तक ही सीमित रहेगी, अब बताइए क्या कहना चाहते हैं?”

जवाब में उसने राणे की बीवी आयशा और अपने भाई के अफेयर की झूठी कहानी उन्हें सुना दी। वह कहानी, जो हॉस्पिटल के रेस्टोरेंट में शीतल ने उसे कोच करते हुए सुनाया था, फिर कुछ बातें अपनी तरफ से जोड़ता हुआ बोला- “उसकी भनक किसी तरह बाद में राणे को लग गयी। तब वह आगबबूला हुआ हमारे ऑफिस पहुँच गया, और जी भर कर भाई साहब की लानत मलानत करने लगा। भैया बहुत देर तक उसकी बात चुपचाप सुनते रहे, उसे शांत कराने की कोशिशें करते रहे, मगर जब वह खामोश नहीं हुआ तो गुस्से में आकर कह बैठे कि उन्होंने उसकी बीवी के साथ कोई रेप नहीं कर दिया था, जो वह इतना उखड़ रहा है। अगर इतना ही बुरा लग रहा है तो जाकर आयशा से बात क्यों नहीं करता, जिसकी जवानी को काबू में करने की उसके भीतर कुव्वत नहीं थी।” फिर क्षण भर रूकने के बाद वह बोला – “बाद में पता चला कि उस बात को लेकर राणे ने अपनी बीवी को इतनी मार लगाई थी कि वह हॉस्पिटल केस बन गयी। मामला पुलिस तक न पहुँच जाये, इसलिए आयशा का सारा ट्रीटमेंट डॉक्टर मजूमदार ने किया था। और बाद में वही किसी तरह आयशा को समझा बुझाकर शांत करने में कामयाब हुआ था।”

सुनकर दोनों पुलिस अधिकारी हैरानी से उसका मुँह तकने लगने।

“मैं जानता हूँ कि गलती मेरे भाई साहब की ही थी, मगर इतनी बड़ी तो हरगिज भी नहीं मान सकता कि राणे उनकी जान लेने पर ही अमादा हो उठता। वैसा करने से पहले उसने ये भी तो सोचना चाहिए था कि अगर उसकी बीवी ने भाई को ना कर दिया होता तो वह उसके साथ जबरदस्ती थोड़े कर बैठते।”

“ठीक कहते हैं आप, गलती दोनों की थी।” कहती हुई गरिमा एकदम से उठ खड़ी हुई – “आप बैठिए, मैं अभी वापिस लौटती हूँ।” कहकर वह कमरे से बाहर निकली फिर भीतर बैठे चौहान को फोन लगाया।

“हिलने मत देना इसे यहाँ से, एग्रीमेंट के बारे में कही इसकी बातों को इसी वक्त क्रॉस चेक करना बहुत जरूरी है, साथ में राणे की बीवी और अंबानी के अफेयर के बारे में तथा मजूमदार द्वारा सुमन को दी गयी धमकी के बारे में जानना भी बहुत जरूरी है। मैं इसके घर जा रही हूँ। देखूँ तो सही शीतल और सुमन क्या बयान देती हैं इस बारे में।”

कहकर उसने कॉल डिसकनेक्ट किया और सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी।

*****

कार में सवार होकर पार्थ सान्याल रात साढ़े नौ बजे अंबानी हाउस पहुँचा।

तब तक उसे वंशिका, दुग्गल, सोनी और युग जौहर की रिपोर्ट हासिल हो चुकी थी, जिससे ये बात सहज ही साबित हो जाती थी कि कातिल के बारे में उसका अंदाजा एकदम दुरूस्त था।

गेट पर हमेशा की तरह दो गार्ड मुस्तैदी के साथ ड्यूटी दे रहे थे, जिनके लिए अब तक वह जाना-पहचाना चेहरा बन चुका था।

दोनों ने ठोंककर उसे सेल्यूट किया।

“भीतर कौन-कौन मौजूद है इस वक्त?” उसने पूछा।

“शीतल मैडम हैं, और तो कोई नहीं है।”

“आकाश साहब कहाँ गये हैं?”

“मालूम नहीं, करीब डेढ़ घंटा पहले निकल गये थे।”

“शुभांगी?”

“सात बजे के करीब बोल कर गयी थीं कि अस्पताल जा रही हैं।”

“तुमसे बोल कर गयी थीं?”

“जी हाँ, हैरान तो मैं भी हुआ था। उन्हें भला हमें उस बारे में बताने की क्या जरूरत थी?” कहकर गार्ड ने पूछा – “आपको किससे मिलना है?”

“शीतल मैडम से।”

“रुकिए मैं उन्हें इंफॉर्म किये देता हूँ।” कहकर एक गार्ड केबिन में जा घुसा। और इंटरकॉम पर कोई नंबर पंच कर के कॉल अटेंड किये जाने का इंतजार करने लगा। बेल लगातार जाती रही मगर किसी ने रिस्पांस नहीं दिया। गार्ड ने दो तीन बार कोशिश की फिर बाहर निकलकर बोला- “मैडम फोन नहीं उठा रहीं, शायद सो गयी हैं।”

“अरे नौकर तो होंगे, या वो भी सो गये?”

“नौ बजे तक सभी नौकर सर्वेंट क्वार्टर में चले जाते हैं, यही नियम है यहाँ का।”

“सुमन तो होगी?”

“अभी तो वह भी नहीं है सर, आठ बजे के करीब शॉपिंग कांप्लेक्स जाने के लिए निकली थी, लौटती ही होगी।”

“मेरा भीतर जाना बहुत जरूरी है भाई। चाहो तो शुभांगी मैडम को कॉल कर के इजाजत ले लो।”

गार्ड ने कुछ क्षण उस बात पर विचार किया फिर जेब से एक डॉयरी निकाला और उसमें से देखकर अपने मोबाइल पर शुभांगी बिड़ला का नंबर डॉयल कर दिया।

“नॉट रीचेबल है सर।”

“आकाश से पूछ लो, बल्कि शीतल के मोबाइल पर ही फोन लगा लो।”

“आप खुद कर लीजिए सर, इतनी रात को मैं उन दोनों लोगों को डिस्टर्ब नहीं कर सकता।”

“अजीब आदमी हो।”

“जी, अंबानी साहब भी कभी-कभी ऐसा कह दिया करते थे।”

सुनकर पार्थ ने पहले तो उसे घूर कर देखा, फिर शीतल के मोबाइल पर कॉल लगाया। दूसरी तरफ लगातार घंटी जाती रही मगर जवाब नहीं मिला। उसने दोबारा ट्राई किया, फिर थक-हारकर आकाश का नंबर डॉयल कर दिया। कई बार बेल जाने के बाद कॉल अटेंड तो कर ली गयी, मगर उसके कानों तक जो आवाज पहुँची वह आकाश की नहीं थी।

“कहिए पार्थ साहब क्या बात है?” दूसरी तरफ से पूछा गया।

“कौन?”

“एसआई नरेश चौहान।”

“मैंने तो आकाश का नंबर डॉयल किया था भाई।” वह हैरानी से बोला।

“वह साहब भी यहीं हैं, मगर अभी फोन पर बात नहीं कर सकते।”

“गिरफ़्तार है?”

“फिलहाल नहीं, मगर बात क्या करना चाहते हैं?”

पार्थ ने बताया।

“मैंने मोबाइल को स्पीकर पर डाल दिया है, अब कहिए जो कहना चाहते हैं।”

“मिस्टर आकाश।”

“बोल रहा हूँ।”

“मैं पार्थ सान्याल, आपके बंगले के बाहर खड़ा हूँ। किसी वजह से मेरा इसी वक्त आपकी भाभी से मिलना बहुत जरूरी है, मगर वह फोन नहीं उठा रहीं और गार्ड्स परमिशन के बिना अंदर नहीं जाने दे रहे हैं। आप अगर बोल देते तो बात बन जाती।”

“मोबाइल स्पीकर पर डालिए।”

“डाल दिया।”

“जाने दे भाई, क्यों रोक रखा है?”

“ठीक है सर, अब आपने कह दिया है तो जाने देते हैं।” गार्ड बोला।

“भाभी को बता दीजिएगा पार्थ साहब कि मैं इस वक्त...।”

तभी कॉल डिसकनेक्ट हो गयी, मगर इतना तो पार्थ उस आधी अधूरी बात से भी समझ गया कि आकाश अपनी गिरफ्तारी की खबर शीतल को देने के बारे में कहना चाहता था।

गार्ड ने दरवाजा खोल दिया।

पार्थ भीतर दाखिल हुआ और इमारत की तरफ बढ़ चला। दो गार्ड उसे कंपाउंड में टहलते दिखाई दिये, जिन्होंने कोई पूछताछ करने की कोशिश नहीं की। हाँ, उसका चेहरा बराबर देखा था गौर से।

चौहान ने फोन पर कहा था कि आकाश अभी गिरफ़्तार नहीं था, मगर उसे फोन न अटेंड करने देना इस बात की तरफ इशारा कर रहा था कि वह कम से कम आजाद तो हरगिज भी नहीं था।

हालांकि देर सबेर देवर-भाभी ने पहुँचना तो आखिरकार लॉकअप में ही था, मगर पुलिस इतनी जल्दी एक्शन ले लेगी, इसकी पार्थ को जरा भी उम्मीद नहीं थी।

वह शीतल और आकाश दोनों से वहाँ मिलने पहुँचा था क्योंकि दोनों की ही जान उसे खतरे में दिखाई दे रही थी। अभी क्योंकि आकाश पुलिस हेडक्वार्टर में था, इसलिए उसकी तरफ से पार्थ निश्चिंत हो गया, मगर शीतल को सावधान करना फिर भी जरूरी था।

भले ही वह अपराधी थी, मगर जीने का हक बराबर था उसे।

अंदर वाले दरवाजे पर पहुँचकर उसने कॉल बेल बजाई, और किसी के वहाँ पहुँचने का इंतजार करने लगा।

कोई नहीं पहुँचा।

पार्थ ने फिर से ट्राई किया।

इस बार दरवाजे की तरफ बढ़ती पदचाप उसकी कानों तक पहुँच कर रही।

“कौन?” किसी ने बड़े ही अजीब स्वर में सवाल किया। वह आवाज शीतल की नहीं हो सकती थी, और गार्ड के कहे मुताबिक दूसरा कोई बंगले के अंदर था नहीं।

पार्थ का दिल किसी अंजानी आशंका से धड़क उठा। सावधानीवश उसने कमर में खुंसी अपनी रिवाल्वर बाहर निकाली और पिस्तौल समेत उस हाथ को कोट के अंदर घुसा लिया।

“पार्थ सान्याल।” प्रत्यक्षतः उसने जवाब दिया।

चिटखनी गिराये जाने की आहट उसके कानों में बराबर पड़ी, मगर दरवाजा नहीं खुला।

अब तो उसे पक्का यकीन हो गया कि भीतर कोई गड़बड़ थी।

दरवाजे को भीतर की तरफ धकेलते हुए उसने रिवाल्वर अपने सामने तानकर अंदर कदम रखा।

कहीं कोई दिखाई नहीं दिया, सामने या दांये-बायें भी नहीं।

‘दरवाजा खोलने वाला कहाँ गया?’

अगले ही क्षण उसे एहसास हो गया कि वह शख्स दरवाजे की ओट में छिपा हो सकता था। वह बड़ी तेजी से उस तरफ को घूमा, मगर तब तक देर हो चुकी थी।

पीछे से किसी वजनी और सख्त चीज का प्रहार किया गया।

पार्थ त्योरा कर मुँह के बल फर्श पर जा गिरा, रिवाल्वर उसके हाथों से छिटक कर दूर चली गयी। फिर यूँ महसूस हुआ जैसे कोई तेजी से उसके बगल से गुजर रहा हो। वह एहसास होते ही उसने अंदाजे से हमलावर को पकड़ने के लिए अपना दायां हाथ चला दिया। किसी की टांग का पिछला हिस्सा उसके हाथों में आ गया, उसने जकड़ने की पूरी कोशिश की मगर कामयाब नहीं हो पाया।

अगले ही पल आक्रमणकारी वहाँ से भाग निकला।

पार्थ का सिर फूट चुका था, आँखों के आगे अंधेरा सा छाता महसूस हो रहा

था। यूँ लग रहा था जैसे किसी भी वक्त उसकी चेतना लुप्त हो जायेगी, जिसका मतलब था उसकी मौत, क्योंकि खून बहुत तेजी से बह रहा था और अस्पताल पहुँचाने वाला उसे कोई नहीं था वहाँ।

आखिरकार अपने शरीर की समूची ताकत एकत्रित कर के उसने जेब से मोबाइल बाहर निकाला और कॉल करने की कोशिश करने लगा, मगर बस कोशिश ही कर सका, क्योंकि नंबर डॉयल कर पाने से पहले ही उसकी चेतना लुप्त हो गयी।

*****

पौने दस बजे गरिमा देशपाण्डेय दो सिपाहियों के साथ अंबानी हाउस पहुँची। 

गेट पर उसने शीतल अंबानी से मिलने की बात कही तो गार्ड ने एक बार फिर से इंटरकॉम ट्राई करना शुरू किया, मगर पहली बार की तरह इस बार भी अंदर से कोई रिस्पांस नहीं मिला। तब वह केबिन से बाहर निकलकर गरिमा से बोला- “चली जाइए मैडम, लगता है फोन में कोई खराबी आ गयी है। आपसे पहले पार्थ सान्याल साहब आये थे, उस वक्त भी कांटेक्ट नहीं हो पाया था।”

“पार्थ साहब अभी भीतर ही हैं या चले गये?”

“नहीं, अभी दस-पंद्रह मिनट पहले ही तो पहुँचे थे।” कहते हुए उसने दरवाजा खोल दिया।

तीनों पुलिसकर्मी भीतर दाखिल हुए और पैदल चलते हुए सामने दिखाई दे रही इमारत की तरफ बढ़ गये, जिसका दरवाजा दूर से ही खुला दिखाई दे रहा था, मगर वहाँ पहुँचते के साथ ही जो नजारा गरिमा को दिखाई दिया, वह बेहद सख्त दिल ऑफिसर होने के बावजूद उसे बुरी तरह द्रवित कर गया।

फर्श पर उकड़ू बैठकर उसने पार्थ की नब्ज टटोली तो उसे सुचारू रूप से चलता पाया। वरना पहली नजर में तो वह उसे मर चुका ही महसूस हुआ था।

“राहुल।”

“हुक्म मैडम?”

“एंबुलेंस को कॉल करो फौरन।”

“अभी लीजए मैडम।”

तत्पश्चात दूसरे सिपाही को उसने पुलिस कार से फर्स्ट एड बॉक्स लाने के लिए दौड़ाया और पार्थ के सिर पर दिखाई दे रहे घाव को अपनी हथेली से दबाकर बैठ गयी ताकि खून बहना कम हो जाये।

मिनट भर के भीतर बाहर गया सिपाही फर्स्ट एड बॉक्स ले आया।

हुक्म हुआ- “पट्टी का एक रोल खोलकर उसे छ: इंच की लंबाई में काटो।”

सिपाही ने फौरन उस काम को अंजाम दिया।

“अब इसे तह कर के दो इंच के करीब कर दो, हरिअप।”

सिपाही ने वह भी किया। तत्पश्चात गरिमा ने बॉक्स में मौजूद एक शीशी उसे थमा दी, तब तक सिपाही समझ चुका था कि वह क्या चाहती थी, इसलिए बिना कहे ही उसमें भरे लिक्विड से तह की गयी पट्टी को तर-बतर कर दिया।

इंस्पेक्टर ने बायें हाथ से वह पट्टी थामी और घाव पर रखी दायें हाथ की हथेली को हटाकर फौरन वह पट्टी जख्म पर रखकर कस के दबा लिया। उसके बाद रूई का एक मोटा फाहा उसके ऊपर रखा और सिपाही की मदद से ड्रेसिंग करने में जुट गयी।

दो मिनट में वह काम पूरा हो गया। तब जाकर उसने फर्श पर फैले खून की तरफ ध्यान दिया और अंदाजा लगाने की कोशिश करने लगी कि कितनी ब्लीडिंग हुई थी, जो कि उसे इतनी ज्यादा तो हरगिज भी नहीं लगी जो एक हट्टे कट्टे इंसान की जान जाने की वजह बन जाती।

कुछ क्षण ज्यों की त्यों बैठी वह ये जांचती रही कि ड्रेंसिंग के बाद खून बहना बंद हो गया था या नहीं? उसके बाद दोनों सिपाहियों की मदद से पार्थ को उठाकर एक सोफे पर लिटा दिया, फिर उसका ध्यान इस तरफ गया कि घर में उस वक्त कोई भी मौजूद नहीं था।

जो कि कम हैरानी की बात नहीं थी।

या फिर था, मगर गहरी नींद के हवाले था।

“पूरे घर में घूम जाओ।” उसने सिपाहियों को आदेश दिया – “देखो कहीं कोई और तो घायल नहीं पड़ा है?”

सिपाही फौरन उस काम में लग गये।

गरिमा किचन से पानी का एक जग भर लायी और पार्थ के चेहरे पर छींटे मारते हुए उसे होश में लाने का प्रयास करने लगी।

तभी एक सिपाही ने खबर दी कि अंदर बेडरूम की खिड़की पर किसी औरत की लाश लटक रही थी। सुनकर वह अपनी जगह से उठी और लाश के करीब जाकर खड़ी हो गयी।

अजीब स्थिति थी। मरने वाली का कमर से ऊपर का हिस्सा खिड़की के बाहर लटक रहा था। और बाहर की जमीन पर खून का पतनाला सा बहता दिखाई दे रहा था। हालांकि बिना शक्ल देखे ही वह समझ गयी कि लाश शीतल अंबानी के अलावा किसी की नहीं हो सकती थी, फिर भी उसके बगल से गर्दन बाहर निकालकर चेहरा देखे बिना नहीं मानी।

लाश शीतल की ही थी।

वह शीतल अंबानी, जिस पर उसे पूरा-पूरा शक था कि अपने पति पर हमला उसी ने किया था, इस बात का भी कि निशांत मौर्या और अनंत गोयल का कत्ल भी उसी ने किया था। ऐसे में ये कोई कम हैरानी की बात नहीं थी कि इस वक्त उसके सामने शीतल की लाश पड़ी थी।

‘क्या वह गलत सोच रही थी? क्या अंबानी पर हमला करने वाला कोई और था?’

कातिल आकाश नहीं हो सकता था क्योंकि वह पुलिस हेडक्वार्टर में था। बाकी कोई दूसरा चेहरा इस वक्त उसे नजर नहीं आ रहा था, जो शीतल की हत्या कर सकता हो।

अगले ही पल उसे चौहान का ये कहा याद आ गया कि वॉचमैन के एक जासूस ने शक जताया था कि मौर्या का कातिल सत्यप्रकाश अंबानी है। और अगर सच में वही था तो शीतल का हत्यारा कोई और हो ही नहीं सकता था।

‘क्या वह शख्स वाकई कोमा में होने का नाटक कर रहा था?’

‘कैसे संभव था ये?’

अलबत्ता उसके पास निशांत मौर्या, अनंत गोयल और शीतल अंबानी के कत्ल की पर्याप्त वजह मौजूद थी, इस बात में कोई शक नहीं था। बल्कि आगे चलकर आकाश की भी बारी बस आने ही वाली थी।

कड़ियां एकदम से जुड़ जातीं अगर वह ये मान लेती कि मौर्या, अनंत और शीतल का कत्ल अंबानी का कारनामा था, जो यूँ अपने ऊपर हुए हमले का बदला लेने में जुट गया था, मगर गरिमा का पुलिसिया दिमाग उस बात को कबूल करने को तैयार नहीं हो रहा था।

एक लंबी आह भरकर वह बेडरूम से बाहर निकल आई।

उसी वक्त शुभांगी बिड़ला ने अंदर कदम रखा। वह चटक लाल रंग का एकदम नया दिखाई देने वाला सूट सलवार पहने थी, और चेहरे पर मेकअप भी बराबर दिखाई दे रहा था।

यूँ लग रहा था जैसे किसी पार्टी में शिरकत कर के लौटी हो।

शुभांगी ने बड़ी हैरानी के साथ पहले गरिमा को फिर सोफे पर पड़े पार्थ को देखा और हड़बड़ाती हुई बोली- “क्या हो गया, सब ठीक तो है न?”

“नहीं, यहाँ कुछ भी ठीक नहीं है मैडम। बाई द वे, आप कहाँ से आ रही हैं?”

“नर्सिंग होम से आ रही हूँ, भाई साहब को देखने गयी थी।”

“कमाल है, जबकि आपकी सज-धज देखकर तो मुझे ऐसा लगा था जैसे किसी समारोह से लौटी हैं।”

“ये तो मेरी बहुत बुरी आदत है मैडम, चाहे मार्केट तक ही क्यों न जाना हो, मैं अपने कपड़ों और लुक का हमेशा ख्याल रखती हूँ।” कहकर उसने पूछा – “पार्थ को क्या हुआ?”

गरिमा ने जवाब देने की कोशिश नहीं की।

“घर के बाकी लोग कहाँ हैं?”

“शीतल मैडम बेडरूम में हैं, आकाश साहब पुलिस हेडक्वार्टर में, बाकी कोई यहाँ रहता है तो उसकी हमें कोई खबर नहीं है।”

“नहीं, और कोई नहीं रहता। हाँ, नौकरों की बात करें तो रात हो या दिन सुमन हर वक्त भीतर ही मौजूद होती है।”

“अभी कहाँ है?”

“अब यहीं हूँ मैडम।” कहकर हँसती हुई वह दो बड़े थैले संभाले अंदर आ गयी – “मार्केट गयी थी, शॉपिंग में वक्त लग गया।” फिर जैसे ही उसकी निगाह पार्थ के सिर पर बंधी पट्टियों पर गयी, हैरानी से बोली – “साहब को क्या हो गया?”

“पांव फिसल गया था।” कहते हुए गरिमा ने बड़े ही गौर से सुमन को देखा। वह लड़की जैसा कि चौहान ने बताया था सच में बेहद खूबसूरत थी। ऊपर से जींस और टॉप में कैद उसका बदन बेहद हाहाकारी लुक दे रहा था।

क्या पूरे मामले से उसका कोई संबंध हो सकता था? गरिमा ने बड़ी शिद्दत के साथ उस बात पर विचार किया।

“मैडम कहाँ हैं?” सुमन ने अगला सवाल किया।

“बेडरूम में हैं।” गरिमा ने बताया – “तुम जरा मेरे सामने आकर बैठो।”

“समान किचन में रख कर आती हूँ।”

“जरूरत नहीं है, थैले कहीं भागे नहीं जा रहे।”

“ठीक है मैडम।” कहकर वह बैठ गयी।

“कितने बजे गयी थी मार्केट?”

“आठ बजे?”

“रात को क्यों, दिन में नहीं जा सकती थी?”

“नौकर हूँ न मैडम, मालिक लोग जब भी कहते हैं जाना ही पड़ता है।”

“ऐसा क्या खरीदा, जिसमें दो घंटे लग गये?”

“बहुत कुछ, दिखाऊं?”

“नहीं, रहने दो।”

“ठीक है।”

“मैं तुमसे कुछ सवाल करने जा रही हूँ, जिसका सच-सच जवाब देना है।”

कहकर गरिमा थोड़ा कड़े लहजे में बोली – “झूठ बोलोगी तो अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिये।”

“आप पूछिए मैडम, मैं भला झूठ क्यों बोलने लगी?”

“गुड, ये बताओ कि उन्नीस तारीख की रात को यहाँ क्या हुआ था?”

“मुझे पता होता मैडम तो पहले ही नहीं बता देती?”

“कहा था न कि झूठ नहीं बोलना है।” गरिमा गरज उठी।

“अरे जब मैं कुछ जानती ही नहीं हूँ तो....।”

“मार-मारकर चमड़ी उधेड़ दूँगी लड़की, वरना बाज आ जा।”

सुमन डरने की बजाय हकबकाई सी उसकी शक्ल देखने लगी, जैसे उसकी समझ में ही न आ रहा हो कि वह पुलिसवाली उस पर क्यों गुस्सा हो रही थी, फिर बोली- “क्यों मारेंगी मैडम, इसलिए क्योंकि मैं नौकरानी हूँ, गरीब हूँ?”

“नहीं, इसलिए क्योंकि तू सच बोलती नहीं दिखाई दे रही।”

“अगर ऐसा है मैडम तो फिर मार ही लीजिए, क्योंकि पता तो मुझे कुछ है नहीं, और आपको मनमानी करने से भी नहीं रोक सकती मैं।”

“अरे कुछ तो जानती होगी। उस वक्त घर में बस चार ही तो लोग थे, जिनमें से एक पर जानलेवा हमला हो गया और बाकी तीनों को भनक तक नहीं लगी, ये क्या मानने वाली बात है?”

“अगर ऐसा है तो फिर आकाश साहब से पूछिए, बल्कि शीतल मैडम से पूछिए क्योंकि बेडरूम के सबसे करीब तो वही थीं। यहीं जिस सोफे पर आप बैठी हैं, उस रात मैडम उसी पर सोई पड़ी थीं, जबकि मेरा कमरा तो किचन के बगल में है।”

“चल थोड़ी देर के लिए मैं मान लेती हूँ।” गरिमा का स्वर कुछ नम्र पड़ा – “कि तुझे ये नहीं पता कि हमलावर कौन थे, लेकिन कोई अंदाजा तो होगा, आखिर चौबीसों घंटे यहीं रहती है।”

“नहीं, मुझे कोई अंदाजा नहीं है।” कहकर उसने गरिमा की आँखों में देखते हुए हौले से शुभांगी की तरफ इशारा कर दिया।

जिसे इंस्पेक्टर ने बखूबी कैच किया और शुभांगी बिड़ला की तरफ देखती हुई बोली- “मैडम थोड़ी देर के लिए आप किसी कमरे में जाकर बैठ जाइए, मगर मास्टर बेडरूम का रूख नहीं करना है आपको।”

“इंस्पेक्टर साहब बात क्या है, आप साफ-साफ क्यों नहीं बता रहीं?”

“अभी पता लग जायेगा। बस थोड़ा और इंतजार कर लीजिए।”

“ठीक है, मैं आकाश के कमरे में हूँ। सुमन को भेजकर बुलवा लीजिएगा।”

“थैंक यू।”

शुभांगी आगे बढ़ गयी।

मास्टर बेडरूम का दरवाजा उस वक्त बंद था और एक सिपाही उसके बाहर तनकर खड़ा था।

शुभांगी ये नहीं जान पाई कि अंदर क्या हो गया था, मगर उसके मन में संदेह बराबर उतर आया।

“तुम्हारा मतलब है..।” उसके जाने के बाद सुमन की तरफ देखती गरिमा धीरे से बोली – “मौर्या का कत्ल शुभांगी ने किया था?”

“अरे नहीं मैडम, मैं तो बस ये चाहती थी कि आप उन्हें यहाँ से हटा दें।”

“किसलिए?”

“आगे जो मैं कहने वाली हूँ, वह मैडम के सामने नहीं कह सकती थी।”

“ओके, बताओ क्या बात है?”

उसी वक्त पार्थ सान्याल ने आँखें खोलीं और उठकर बैठ गया।

“वेलकम बैक पार्थ साहब।” गरिमा मुस्करा कर बोली – “वरना मैं तो सोचने लगी थी कि भविष्य के अपने जासूसी के धंधे का सबसे बड़ा कंपीटीटर खो दिया मैंने।”

“मेरे जैसों की जान इतनी आसानी से नहीं जाती मैडम।” कहते हुए पार्थ का हाथ बरबस ही अपने सिर पर चला गया, वहाँ पट्टी बंधी देखकर उसे बहुत राहत महसूस हुई।

“टेम्परेरी ड्रेसिंग है, जो कि पुलिस ने की है। वैसे एंबुलेंस बुला रखा है, बस पहुँचती ही होगी आपको अस्पताल ले जाने के लिए।”

“नहीं, अब उसकी कोई जरूरत नहीं है, और थैंक्स अ टन कि आप वक्त पर यहाँ पहुँच गयीं, वरना तो खून ज्यादा बह जाने के कारण ही मेरी चल-चल हो गयी होती।”

“थोड़ा वॉक कर के देख लीजिए, कोई चक्कर वक्कर तो नहीं आ रहा?”

पार्थ ने उस काम को अंजाम दिया तो पाया कि सिवाये सिर में उठती टीसों के और दिक्कत नहीं थी।

तभी एंबुलेंस के सायरन की आवाज उनके कानों तक पहुँचने लगी।

“कैलाश।”

“जी मैडम।” एक सिपाही आगे आ गया।

“जाकर उनको वेट करने को बोल दे।”

सुनकर सिपाही तुरंत बाहर निकल गया।

गरिमा ने सुमन की तरफ देखा- “अब बताओ क्या कहना चाहती थी तुम?”

“शीतल मैडम, आकाश साहब, अनंत गोयल और मौर्या ने मिलकर हमला किया था सत्य साहब पर।” कहकर वह सिलसिलेवार पूरी कहानी दोहराती चली गयी, जो कि पुलिस और पार्थ दोनों की इंवेस्टिगेशन को एकदम सही साबित करती थी।

“जिस रोज मौर्या साहब का कत्ल हुआ।” सुमन आगे बोली – “उस रोज सुबह आठ बजे के करीब मैंने शीतल मैडम को साहब की रिवाल्वर अपने पर्स में रखते देखा था। आगे वह पिस्तौल उन्होंने किसी को सौंप दी या खुद जाकर मौर्या साहब का कत्ल कर आयीं, मैं नहीं जानती, मगर पार्थ साहब के बताये इतना मालूम है कि कत्ल उस रिवाल्वर से ही किया गया था।”

“आज तक चुप क्यों रही इस बारे में?”

“डर था कि मैंने जुबान खोली तो मेरा भी वही हश्र न हो जाये।”

“अब क्यों बता रही हो, डर गायब हो गया?”

“नहीं, तभी तो चुपके से बता रही हूँ, जिसका पहले कभी मौका नहीं मिला।”

“या कहानी सुना रही हो?”

“मैं झूठ क्यों बोलूंगी मैडम?”

“तुम बताओ।”

“ये सच कह रही है।” पार्थ बोला – “उन्हीं चारों ने हमला किया था सत्यप्रकाश अंबानी पर, जिसकी योजना कई महीने पहले रॉयल होटल के एक कमरे में बैठकर बनाई गयी थी, मगर मौर्या के कत्ल में कम से कम शीतल का कोई हाथ नहीं रहा हो सकता क्योंकि जिस वक्त उसे गोली मारी गयी दोनों देवर-भाभी मेरी आँखों के सामने इसी जगह बैठे हुए थे।”

“ये कैसे जान लिया कि सत्यप्रकाश अंबानी का मर्डर प्लॉन कब और कहाँ बनाया गया था?”

“और मेरा काम ही क्या है मैडम, बल्कि जानने लायक इस केस में जो कुछ भी है, सब पता है मुझे।”

“जिसके बारे में आप अपने क्लाइंट के अलावा और किसी को नहीं बताने वाले, है न?”

“नहीं, ऐसा नहीं है।  ‘द वॉचमैन’ का हमेशा से उसूल यही रहा है कि क्रिमिनल के बारे में कभी चुप्पी नहीं साधता, और इस बारे में क्लाइंट को पहले ही अच्छी तरह से समझा भी दिया जाता है कि कल को अगर वह खुद भी अपराधी निकल आता है तो हम उसकी बाबत पुलिस को इंफॉर्म करने की जिम्मेदारी जरूर निभायेंगे।”

कहकर पार्थ सान्याल अनंत गोयल की डायरी में लिखी बातों को करीब

करीब ज्यों का त्यों उसके सामने दोहराता चला गया, फिर बोला- “हाँ, ये अभी भी मेरी समझ से बाहर है कि आकाश ने शीतल का साथ क्यों दिया? क्या सिर्फ इसलिए कि उसका अपनी भाभी के साथ अफेयर था? या उसकी वजह कुछ और भी थी।”

“अफेयर वाली बात की गारंटी होना अभी बाकी है पार्थ साहब।”

“कुछ बाकी नहीं है मैडम, सुमन को पहले से पता है उस बारे में।”

गरिमा ने चौंककर लड़की की तरफ देखा तो उसने हौले से गर्दन हिला दी।

“चलिए मान लिया कि अंबानी साहब पर हमला उनकी बीवी, भाई तथा मौर्या और अनंत गोयल ने मिलकर किया था। साथ ही ये लड़की अभी-अभी बताकर हटी है कि मौर्या के कत्ल वाले रोज इसने शीतल को अंबानी साहब की रिवाल्वर पर्स में रखते देखा था, और बाद में क्योंकि उसी रिवाल्वर से मौर्या का कत्ल हो गया इसलिए मैं ये भी मान लेती हूँ कि वह कारनामा भी शीतल अंबानी का ही रहा होगा, मगर अनंत गोयल..।” कहकर उसने पार्थ के चेहरे पर निगाहें गड़ा दीं – “और अब शीतल अंबानी की हत्या किसने की?”

“हे भगवान्?” सुमन के मुँह से सिसकारी सी निकल गयी।

“लंबी कहानी है मैडम।” पार्थ बिना कोई हैरानी जाहिर किये बोला।

“आपने शायद सुना नहीं मैंने शीतल अंबानी का भी नाम लिया था।”

“बराबर सुना मैडम।”

“तो फिर चौंके क्यों नहीं?”

“क्योंकि यहाँ पहुँचते के साथ ही मुझे उसकी मौत का यकीन आ गया था। सच पूछिए तो मैं उससे यही कहने आया था कि अपना जुर्म कबूल कर के जेल चले जाने में ही उसकी भलाई थी, वरना मौत उसके सिर पर मंडरा रही थी। फिर यहाँ कदम रखते ही मुझ पर जानलेवा हमला कर दिया गया, यानि कातिल उस वक्त घर में ही मौजूद था। ऊपर से आपने इतनी कथा कर ली मगर एक बार भी किसी से ये नहीं पूछा कि शीतल कहाँ है? ऐसे में मैं ये न सोचूं कि उसका कत्ल हो चुका है तो और क्या सोचूं?”

“उसके बारे में मैंने आपके होश में आने से पहले भी तो सवाल किया हो सकता है?”

“नहीं, क्योंकि मेरे होशो हवास तो उसी वक्त ठिकाने आ गये थे, जब शुभांगी यहाँ पहुँची थी, मगर उठने का मन नहीं हो रहा था, इसलिए ज्यों का त्यों पड़ा रहा था। अब कहिए किस तरह से हमला किया गया है उस पर?”

“किसी बड़े फल वाले छुरे को बड़ी बेहरहमी से गर्दन में घुसा दिया गया था।”

“वाकया तो हालिया ही होगा वरना मेरे यहाँ आने तक तो कातिल फरार भी

हो गया होता?”

“शुभांगी को बुलाकर ला।” गरिमा ने सुमन से कहा फिर पार्थ की तरफ देखती हुई बोली – “लगता तो यही है, क्योंकि जब मैंने यहाँ पहुँचने के थोड़ी देर बाद डेड बॉडी देखी तो खून तब भी तेजी से बह रहा था। मगर ये समझ में नहीं आ रहा कि कातिल को आपसे क्या खतरा हो सकता था? क्यों उसने आपकी जान लेने की कोशिश की? हाँ, शीतल की हत्या को तो मैं फिर भी मौर्या के कत्ल की अगली कड़ी मान सकती हूँ, मगर आप क्योंकर उसकी हिट लिस्ट में पहुँच गये पार्थ साहब?”

“मेरे ख्याल से उसकी मेरे कत्ल की कोई मंशा नहीं थी। वह बस शीतल की हत्या कर के हटा ही था कि मैंने कॉल बेल बजा दी। ऐसे में उसका घबरा उठना तय था और उसी घबराहट में बिना सोचे समझे मुझ पर वार कर दिया।”

“वो बात भी मेरी समझ से परे है, क्योंकि हत्या बेडरूम की खिड़की के बाहर खड़े होकर की गयी है, हत्यारा चाहता तो वहीं से बाउंड्री फांदकर फरार हो सकता था। उसके लिए कोई जरूरी नहीं था कि कॉलबेल की आवाज सुनकर दरवाजा खोलने पहुँच जाता।”

“तो फिर समझ लीजिए कि दरवाजे तक वह अपने अगले शिकार की उम्मीद में पहुँचा था, जो कि आकाश अंबानी के अलावा और कोई नहीं हो सकता था। उसने मुझसे सवाल भी किया था- ‘कौन’। जवाब में मैंने अपना नाम बताया तो उसने चिटखनी गिराई और यूँ खड़ा हो गया कि दरवाजा खुलने पर उसकी ओट में हो जाता।”

“यानि दरवाजा खोलने से पहले ही उसे मालूम पड़ गया था कि बाहर आप खड़े थे?”

“जाहिर है।”

“फिर भी उसने दरवाजा खोला। क्यों खोला? भाग क्यों नहीं गया? इसलिए जाहिर होता है कि वह आपको भी शीतल वाले अंजाम तक पहुँचाना चाहता था।”

“नहीं, क्योंकि उसने जो वार मुझ पर किया था, वह कोई बहुत भयंकर नहीं था। हाँ, आप वक्त रहते यहाँ नहीं पहुँच जाती और मैं घंटा-दो घंटा ज्यों का त्यों पड़ा रह जाता तो शायद मेरी जान चली जाती। इसलिए लगता यही है कि वह आकाश की जगह मुझे यहाँ पहुँचा पाकर हड़बड़ा गया और समझ ही नहीं सका कि वैसे हालात में उसे क्या करना चाहिए। इसलिए जो सूझा वह किया और भाग निकला।”

“आप उस आवाज को पहचान सकते हैं?”

“नहीं, क्योंकि उसने बड़े ही खरखराते लहजे में सवाल किया था।”

तभी शुभांगी वहाँ पहुँचकर बैठ गयी।

“बावजूद इसके कि मैंने उसकी आवाज नहीं पहचानी थी।” पार्थ आगे बोला – “आपको बता सकता हूँ कि वह कौन था? बल्कि साबित कर दिखाने की उम्मीद भी पूरी-पूरी कर सकती हैं।”

“कौन था?” गरिमा ने उत्सुक स्वर में पूछा।

“अभी बताता हूँ, मगर उससे पहले ये जान लीजिए कि मौर्या और शीतल अंबानी के कत्ल की नौबत आई तो क्यों आई?”

“ठीक है, बताइए।”

“सही मायने में देखा जाये तो इस पूरे घटनाक्रम के तीन पहलू हैं। पहला अंबानी साहब पर जानलेवा हमला, दूसरा अनंत गोयल की आपबीती, और तीसरा निशांत मौर्या और शीतल अंबानी की हत्या, जिसमें आकाश का भी नाम शुमार हो सकता था, मगर वह आपके कारण जिंदा बच गया।”

“ठीक है, मैं समझ गयी।”

“पहले चरण में चार लोगों ने मिलकर योजना बनाई और उन्नीस तारीख की रात एक साथ अंबानी साहब पर हमला बोल दिया; उस वारदात को कैसे अंजाम दिया गया, क्यों दिया गया, ये मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ। दूसरे चरण में एक्टिव हुआ शख्स उस पूरी योजना की ऐसी-तैसी फेरकर एक बहुत बड़े हासिल की फिराक में जुट गया। फिर तीसरे चरण में मामले ने फिर से एक नया रूख अख्तियार किया और एक-एक करके अंबानी साहब पर हमला करने वालों का कत्ल होना शुरू हो गया।”

“और वही वह शख्स था।” गरिमा बोली – “जिसने बीस मिनट पहले आपको भी मार डालने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। भले ही उसका इरादा आपकी जान लेने का नहीं रहा हो।”

“एग्जैक्टली।”

“कौन था वह?”

उस सवाल को सुनकर सुमन और शुभांगी एकटक पार्थ का मुँह तकने लगीं।

“सिर्फ उसका नाम बताऊं आपको या साबित भी कर दिखाऊं?”

“जो आपको आसान लगता हो वह कीजिए।”

पार्थ ने शुभांगी की तरफ देखा- “मैडम जरा चारों गार्ड्स को यहाँ बुलाइए प्लीज।”

“क्यों?”

“आपको ऐतराज है कोई?”

“अरे पता तो लगे कि आप चाहते क्या हैं? क्योंकि इस घर का आज तक यही नियम रहा है कि गार्ड्स को कभी भी, किसी भी वजह से अंदर नहीं आने दिया जाता है।”

“हमेशा और आज में फर्क है मैडम। पहले कभी इस घर के मालिक पर हमला भी तो नहीं हुआ था, ना ही मालकिन के गले में छुरा भोंका होगा किसी ने, इसलिए बात मानिए और चारों को यहाँ बुलाइए।”

“मैं बुला लाती हूँ।” सुमन उठती हुई बोली।

“रहने दे।” शुभांगी बोली – “जब बुलाना ही है तो फोन कर देती हूँ मैं।”

लड़की वापिस बैठ गयी।

थोड़ी देर बाद चारों गार्ड उनके सामने खड़े थे।

“आप लोगों में से किस-किस ने यहाँ से कुछ घंटों पहले शुभांगी मैडम और सुमन को बाहर जाते देखा था?”

सबने उस बात की हामी भर दी।

“गुड, अब जरा ध्यान से देखो कि दोनों ने इस वक्त क्या पहन रखा है? और इंस्पेक्टर मैडम को बताओ कि क्या घर से निकलते वक्त भी इनके तन पर यही कपड़े थे या दूसरे थे?”

“ये कैसा सवाल है पार्थ?” शुभांगी गुस्से से बोली – “साबित क्या करना चाहते हो?”

“अभी पता लग जायेगा मैडम, आप इतनी अग्रेसिव क्यों हो रही हैं?”

“क्योंकि तुम्हारे कहे की कोई वजह मेरी समझ से बाहर है।”

“शुभांगी मैडम ने तो यही ड्रेस पहन रखी थी साहब, लेकिन सुमन, जो कि इस वक्त फुल जींस में है, मार्केट जाते वक्त कैप्री पहने थी, वह भी बहुत छोटी, जो कि घुटनों से बस जरा ही नीचे पहुँच रही थी।” एक गार्ड ने बताया।

“तेरी आँखें फूट गयी हैं मलखान।” लड़की गुस्से से बोली।

पार्थ ने बाकी तीनों गार्ड्स की तरफ देखा तो उन लोगों ने भी गर्दन हिलाकर अपने साथी के कहे की हामी भर दी।

“कातिल आपके सामने बैठी है मैडम।” पार्थ मुस्कराता हुआ बोला।

तत्पश्चात गार्ड्स को डिसमिस कर दिया गया।

“इसने किये हैं सारे कत्ल?” गरिमा को जैसे अभी भी यकीन नहीं आ रहा था।

“ऑफ़कोर्स किये हैं, और ज्यादा इत्मिनान करना चाहती हैं तो इसकी बाईं टांग चेक कीजिए। जिस वक्त इसने मुझ पर हमला किया था, उस वक्त नीचे गिर चुकने के बावजूद मैंने इसकी उस टांग का पिछला हिस्सा थाम लिया था, और उस पर अपनी उंगलियों की पकड़ बनाने की कोशिश भी की थी, इसलिए ये हो ही नहीं सकता कि नाखूनों के खरोंचें जाने के निशान वहाँ न बन गये हों। बल्कि बने ही होंगे वरना इसने कैप्री को बदलकर फुल जींस नहीं पहन ली होती।”

“ओह तो पैंट चेंज करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि कैप्री में वह निशान सहज ही दिखाई दे जाते, जो कि अभी जींस के अंदर छिप गये हैं?”

“एग्जैक्टली।”

“मगर जरूरत क्या थी इसे इतना सब-कुछ करने की?”

“इसके और अंबानी साहब के बीच लंबे समय से फिजिकल रिलेशन चले आ रहे थे। मेरे ख्याल से वैसा इसलिए हुआ क्योंकि तीन साल पहले इसके साथ की गयी ज्यादती के बारे में सुनकर अंबानी साहब ने मजूमदार को ना सिर्फ दर्जनों पेशेंट्स के बीच बेइज्जत किया था, बल्कि उसे जेल भिजवाने पर भी उतर आये थे। और लड़कियों का दिल कितना कोमल होता है, ये बात आप मुझसे कहीं बेहतर समझ सकती हैं। सुमन तो यही सोचकर उन पर दिलो जान से निसार हो गयी कि इतना बड़ा आदमी उसके पक्ष में तनकर खड़ा हो गया था।”

“सही कहा। उन हालात में एहसान तो मानना ही था इसे और अंबानी साहब जैसे धनकुबेर के एहसान का बदला चुकाने के लिए इसके पास और था भी क्या, सिवाये इसके कि ये उनकी बन जाती।”

“एग्जैक्टली।”

“पार्थ पर हमला क्यों कर दिया?” गरिमा ने सुमन से पूछा।

“यूँ ही कर दिया। कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। मैं तो आकाश साहब के यहाँ पहुँचने की उम्मीद कर रही थी, मगर टपक ये पड़े।” कहकर उसने पार्थ की तरफ देखा – “सॉरी, मैं सच में आपको कोई नुकसान नहीं पहुँचाना चाहती थी।”

“मुझे यकीन है लड़की, इसलिए सॉरी की कोई जरूरत नहीं है।”

“मतलब ये कि पार्थ की जगह आकाश पहुँच गया होता तो उसे भी मार डालती तुम?”

“बिल्कुल मार डालती। कमीनों ने कितनी बेरहमी से हमला किया था सत्य पर, सबसे बदला लिए बिना तो मुझे चैन ही नहीं मिलने वाला था।” कहकर वह जोर-जोर से रोने लग गयी।

“कमाल के नौटंकीबाज हैं सब।” गरिमा अजीब से लहजे में बोली – “अव्वल दर्जे के स्टोरी टेलर भी। कम से कम इस लड़की के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती थी कि ये इतनी चतुराई दिखा जायेगी।”

“मैं भी कहाँ सोच पाया था मैडम। इसकी तरफ मेरा ध्यान तो अभी डेढ़ दो घंटे पहले ही गया था, मगर साबित करने का कोई जरिया दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था। तब मेरी टीम ने इस बात का पता लगाना शुरू किया कि निशांत मौर्या के कत्ल के वक्त केस से रिलेटेड लोगों में से कौन कहाँ था?”

“क्या जाना?”

“विक्रम राणे अपने घर में था, अजीत मजूमदार क्लिनिक में, आकाश और शीतल जैसा कि मैं बता चुका हूँ, सवा दस से पौने ग्यारह बजे के बीच मेरी आँखों के सामने यहीं मौजूद थे। शुभांगी मैडम बाहर थीं मगर उस वक्फे में हर वक्त हॉस्पिटल में रही थीं, इसकी भी पुष्टि हो चुकी है। एक सुमन ही थी, जो मार्केट जाने के बहाने घर से बाहर गयी हुई थी। गलती इससे बस इतनी हुई कि मौर्या के घर जाते समय अपना मोबाइल स्विच ऑफ करना भूल गयी। या फिर इसे जानकारी ही नहीं थी कि मोबाइल की लोकेशन के जरिये भी इसका भंडा फूट सकता था। और अभी-अभी बेध्यानी में ये एक ऐसी बात कह बैठी, जो इसके कातिल होने की तरफ मजबूत इशारा करती है।”

“क्या?”

“इसने कहा कि मौर्या का कत्ल अंबानी साहब की रिवाल्वर से हुआ था, जिसके बारे में मैंने इसे बताया था। जबकि मुझे अच्छी तरह से याद है कि वह बात जब मैंने शुभांगी जी से कही थी तब ये लड़की मास्टर बेडरूम में मेरे ही कहने पर अंबानी साहब की रिवाल्वर तलाश कर रही थी।” कहकर उसने शुभांगी की तरफ देखा – “या आपने बाद में सुमन को उस बारे में बता दिया था?”

“सवाल ही नहीं पैदा होता। मैं भला वैसी कोई बात इससे डिस्कस क्यों करती?”

“थैंक यू, मुझे भी यही लगा था।” कहकर वह गरिमा से मुखातिब हुआ – “हैरानी की बात तो ये है मैडम कि मिस्टर अंबानी के साथ इसके रिलेशंस की खबर लग जाने के बाद भी मेरा ध्यान एक पल को इसकी तरफ नहीं गया। वजह थी इसकी कम उम्र, जिसको देखते हुए मैं एक कातिल के रूप में इसकी कल्पना हरगिज भी नहीं कर सकता था।”

“जबकि इसने एक नहीं दो कत्ल किये हैं।”

“क्या करती, दिल के हाथों मजबूर थी बेचारी। अंबानी साहब के साथ जो कुछ हुआ, उसे इसने अपनी आँखों से देख लिया था। इसलिए मन ही मन उन सब से बदला लेने का फैसला कर बैठी। और जरा शक्ल तो देखिए इसकी, अपना भंडा फूट चुकने का अफसोस नहीं है इसे, बल्कि इस बात पर तड़प रही है कि आकाश बच गया।”

“हाँ तड़प रही हूँ।” सुमन दहाड़ती हुई बोली – “ऐसे भाई को जिंदा रहने का कोई अधिकार नहीं है, बल्कि उसे भाई कहलाने का भी अधिकार नहीं है। अभी बेशक मैं कामयाब नहीं हो पायी, मगर कभी न कभी तो जेल से बाहर निकलूंगी, बल्कि सत्य ही कोमा से बाहर आने के बाद मुझे बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देंगे। इसलिए मैं ज्यादा दिनों तक कैदी बनकर नहीं रहने वाली, और जब भी मैं जेल से छूटूंगी, आकाश मेरे हाथों नहीं बचेगा। सुना आप लोगों ने, मैं उसे खत्म कर के ही रहूँगी।”

गरिमा हैरानी से उसकी शक्ल देखती रह गयी।

उसी वक्त पार्थ जोर-जोर से ठहाके लगाने लगा।

“अब आपको क्या हो गया?” गरिमा ने झुंझलाते हुए पूछा – “कहीं सिर पर लगी चोट का असर दिमाग तक तो नहीं पहुँच गया? अगर ऐसा है तो एंबुलेंस अभी चली नहीं गयी है। शीतल की लाश उठवाने के लिए मैं दूसरी बुला लूंगी।”

“सॉरी मैडम।” वह बदस्तूर हँसता हुआ बोला – “आई एम एक्सट्रीमली सॉरी। मुझे तो ये सोचकर हँसी आ रही है कि ये बेवकूफ लड़की सोचती है कि अंबानी साहब भले चंगे होकर इसे बचाने की मुहीम में जुट जायेंगे। इसे तो खबर भी नहीं है, बल्कि किसी को भी नहीं है कि सत्यप्रकाश अंबानी की मौत तो पार्टी वाली रात को ही हो गयी थी।”

“वॉट?” सुनकर सब एकदम से उछल पड़े।

“क्या बकवास कर रहे हो?” शुभांगी गुस्से से बोली – “मेरा भाई अगर उसी रोज मर गया था तो हॉस्पिटल के भीतर कोमा में पड़ा शख्स क्या उसका भूत है?”

“नहीं, भूत नहीं है।” पार्थ ने जैसे बम फोड़ दिया – “अनंत गोयल है। वह अनंत गोयल, जिसे हमारी एजेंसी और पुलिस दोनों हर तरफ तलाशती फिर रही थी। वह अनंत गोयल, जिसकी लाश का दिखावे को ही सही, क्रिया-कर्म तक किया जा चुका है।”

सुनकर शुभांगी और सुमन जोर-जोर से रोने लगीं।

“आप जानते हैं, क्या कह रहे हैं पार्थ साहब?” गरिमा ने पूछा।

“ऑफ़कोर्स जानता हूँ मैडम।”

“अपने कहे को सच साबित कर सकते हैं?”

“वह कौन सी बड़ी बात है। जाकर उसकी उंगलियों के निशान लीजिए और उन्हें अंबानी साहब के फिंगरप्रिंट से मैच कर के देखिए। दोनों आपस में मिलते पाये गये तो मैं वादा करता हूँ कि आज और अभी से जासूसी का धंधा हमेशा के लिए छोड़ दूँगा।”

“मगर ये कैसे पॉसिबल है कि घर के लोग तक नहीं पहचान पाये कि हॉस्पिटल में एडमिट वह शख्स अनंत गोयल है ना कि सत्यप्रकाश अंबानी?”

“जान भी नहीं सकते थे मैडम, उसके चेहरे पर जगह-जगह चोट के निशान हैं।

जिन पर हर वक्त पीले रंग के किसी मलहम की मोटी परत चढ़ी रहती है। ऐसे में असली सूरत नजर ही कहाँ आती है, जो कोई उसे पहचान लेता? फिर शरीर के बाकी हिस्सों पर पट्टियां भी तो बंधी हुई हैं। यानि जो दिखाई देता है, वह महज क्रिटिकल हालत में सर्वाइव करता एक पेशेंट है, जिस पर शक करने की किसी के पास कोई वजह नहीं थी। ऊपर से जरा सोचकर देखिए कि तीन-चार दिनों से अस्पताल में एडमिट अंबानी साहब जैसा मल्टी मिलेनियर पेशेंट अभी भी वह गाउन ही पहनकर वहाँ पड़ा है, जो हमले के वक्त उसके शरीर पर मौजूद था। खून से रंगा हुआ, तेजाब से जला हुआ, क्यों? इसलिए क्योंकि उसका बड़ा ही मनोवैज्ञानिक असर होता है देखने वाले पर। असल में तो वह गाउन और उसकी स्थिति ही विजिटर्स को इस बात का यकीन दिला देती है कि वहाँ पड़ा शख्स सत्यप्रकाश अंबानी ही है।”

“अगर ऐसा है भी तो सवाल ये उठता है कि अनंत उतनी बुरी तरह घायल कैसे हो गया, और अंबानी साहब की लाश कहाँ गयी?”

“लाश वही थी मैडम, जिसे परसों शाम कालकाजी के श्मशान घाट में ले जाकर जला दिया गया।”

“नॉनसेंस, सीसीटीवी फुटेज में साफ दिखाई देता है कि वह अनंत गोयल ही था ना कि सत्यप्रकाश अंबानी। हालांकि चोट उसे बराबर लगी थी, खून भी बह रहा था। बावजूद इसके सूरत एकदम क्लियर थी। नहीं, उसे पहचानने में धोखा नहीं खाया हो सकता हमने।”

“मैं कहां कह रहा हूँ कि आपको धोखा हुआ था।” पार्थ मुस्कराता हुआ बोला – “इस बात में तो शक की कोई गुंजाईश है ही नहीं कि हॉस्पिटल पहुँचने वाला शख्स अनंत गोयल ही था, मगर क्या वापसी में लाश की भी सूरत देखी थी किसी ने?”

“क्या कहना चाहते हैं?” वह हकबकाई सी बोली।

“सिर्फ इतना कि ओटी के भीतर अनंत गोयल को ले जाया गया था, जबकि लाश अंबानी साहब की बाहर निकली थी, जिसे बाद में अनंत के कथित भाई ने श्मशान में ले जाकर फूंक दिया था।”

“ये कैसे पॉसिबल है?”

“करने वाला जब हॉस्पिटल का सीएमओ हो मैडम, तो क्यों नहीं हो सकता?” पार्थ बोला – “फिर घायल तो अनंत गोयल कभी हुआ ही नहीं था। हाँ, एक बड़े हासिल की खातिर उसने डॉक्टर पुरी के साथ मिलकर अपने चेहरे पर कुछ जख्म जरूर बनवा लिये थे। और जहाँ तक मेरा अंदाजा है, डॉक्टर पुरी के अलावा भी कम से कम दो लोग जरूर शामिल हैं अनंत गोयल की योजना में। उनमें से एक पेशेंट के कमरे में हर वक्त दिखाई देने वाली नर्स है, जबकि दूसरा शख्स अनंत का कथित भाई मनीष गोयल, जो कि डॉक्टर पुरी का ही कोई आदमी रहा होगा क्योंकि बाद में अंबानी साहब का क्रिया कर्म दोनों ने मिलकर किया था।”

“बात कुछ हजम नहीं हुई पार्थ साहब। अनंत को अगर तेईस जुलाई की शाम को हॉस्पिटल में अंबानी साहब की जगह पहुँचाया गया था तो सवाल ये है कि उससे पहले जो शख्स सत्यप्रकाश अंबानी बनकर हॉस्पिटल का बेड तोड़ रहा था, वह कौन था? अब ये मत कह दीजिएगा कि वह अंबानी साहब की लाश थी, क्योंकि किसी डेड बॉडी को कई दिनों तक यूँ खुले में रखा गया होता तो उसमें से इतनी भयानक दुर्गंध उठनी शुरू हो जाती कि पूरे अस्पताल को उसकी खबर लग गयी होती।”

“नहीं कहूँगा।”

“फिर?”

“वह अनंत गोयल ही था, जो बीस तारीख से ही हॉस्पिटल में पड़ा अंबानी साहब की भूमिका अदा कर रहा था। मगर तेईस को मजबूरन ही सही उसे एक नया किरदार निभाना पड़ा, जो कि उसका खुद का था। मेरे ख्याल से उसकी जरूरत दो वजहों से आई हो सकती है। नंबर एक, हॉस्पिटल के मोर्ग में, या वैसी ही किसी दूसरी ठंडी जगह पर रखी अंबानी साहब की लाश को ठिकाने लगाना, जिसका मौका हासिल नहीं हो पा रहा था। और नंबर दो, अनंत गोयल को मरा हुआ साबित करना क्योंकि पुलिस के साथ-साथ ‘द वॉचमैन’ की टीम उसकी तलाश में जुटी हुई थी। अनंत और डॉक्टर पुरी ये सोचकर डर गये होंगे कि कहीं किसी को सूझ न जाये कि हॉस्पिटल में कोमा का पेशेंट बनकर पड़ा सत्यप्रकाश अंबानी असल में अनंत गोयल था।”

“कमाल है।”

“बेशक है मैडम। मेरी तरह आप लोग भी ये सोचकर कम हैरान नहीं हो रहे होंगे कि चार खतरनाक हमलों के बाद भी अंबानी साहब जिंदा कैसे बच गये। मैं तो उस सवाल को लेकर ये तक सोचने लगा कि मौर्या की हत्या अंबानी साहब ने ही किसी तरह अस्पताल से निकलकर कर दी थी और कोमा में पहुँचा होने का नाटक भर कर रहे थे। आगे जब मैंने पेशेंट की मेडिकल रिपोर्ट देखी तो कहीं ज्यादा हैरान हो उठा। तेजाब उनके चेहरे पर यूँ डाला गया था कि आँखों को जरा भी नुकसान नहीं पहुँचा था। गोली यूँ मारी गयी, जिससे फौरन जान निकल जाने का कोई खतरा न हो। गला यूँ रेता गया कि चमड़ी भर कट पाई थी, और छाती में छुरा बस साढ़े तीन इंच तक दाखिल हुआ था। इतना बेवकूफ तो कोई हत्यारा नहीं होता कि चार हमलों के बाद भी उसका शिकार जिंदा बच जाये, मगर जब ज्ञानचक्षु खुले तो जाना कि असल में हमला तो पूरी भयावहता के साथ ही किया गया था, मगर डॉक्टर पुरी की मजबूरी ये थी कि अगर पेशेंट पर वैसे खतरनाक वार हुए दिखाता तो इस बात का जवाब मुश्किल हो जाता कि अंबानी साहब जिंदा बचे तो आखिर बचे कैसे? क्योंकि असल में तो गोली पेट की बजाय सीने में मारी गयी थी, छुरा दिल में उतारा गया था, गर्दन खूब गहरी काटी गयी थी और शीतल मैडम ने तेजाब भी यूँ उड़ेला था कि और कोई हमला ना भी किया गया होता तो अंबानी साहब की जान जाकर रहनी थी।”

शुभांगी और जोर से रोने लग गयी।

“बाद में चारों हत्यारों को इस बात पर हैरानी नहीं हुई होगी कि शरीर पर हमले वाली जगह बदल कैसे गयी। जो गोली उन लोगों ने सीने में मारी थी, पेट में कैसे जा घुसी? छुरा जो मूठ तक भीतर घुसा दिया गया था, वह साढ़े तीन इंच तक ही क्योंकर घाव बना सका? गला जो गहरा रेता गया था, उसकी सिर्फ चमड़ी ही क्यों कटी मिली थी? या तेजाब, जिसे दिल खोलकर उड़ेला गया था, उसने पूरा चेहरा क्यों नहीं जला दिया?”

“बेशक हुई होगी, मगर उस बारे में जुबान खोलना तो उनमें से कोई भी अफोर्ड नहीं कर सकता था। फिर ये सोचकर भी उस बात पर यकीन कर गये होंगे कि हो सकता है हमला करते वक्त निशाना गलत हो गया हो। बाकी असल में उनके मन में उस बात को लेकर कैसे ख्याल उठे थे, इस बारे में तो अब सिर्फ एक ही शख्स बता सकता है आपको....।”

“आकाश अंबानी?”

“एग्जैक्टली।”

“कुल मिलाकर आपका कहना ये है कि बीस की सुबह जिंदा अंबानी साहब नहीं बल्कि उनकी लाश को अस्पताल पहुँचाया गया था, जहाँ किसी नामालूम तरीके से बाद में अनंत गोयल पहुँच गया। बाद में डॉक्टर की मिली भगत से अंबानी साहब की लाश को मोर्ग में रखवा दिया गया, और अनंत के चेहरे पर कुछ घाव बनाने के बाद उसकी छाती, पेट और गले की ड्रेसिंग कर के यूँ पेश किया गया जैसे वही सत्यप्रकाश अंबानी था।”

“यही हुआ था।”

“सीसीटीवी फुटेज में कोई शकउपजाऊ बात दिखाई क्यों नहीं देती?”

“इसका सौ फीसदी सही जवाब तो आपको अनंत ही दे सकता है, मगर मेरा अंदाजा ये कहता है कि हॉस्पिटल से सुबह नौ बजे के करीब ऑटो में सवार हुआ अनंत गोयल कुछ देर बाद अपना हुलिया बदलकर वापिस लौट आया। जैसे कि सूट की जगह पायजामा कुर्ता पहन लिया होगा, पूरे शरीर को किसी चादर या कंबल से कवर भी किया हो सकता है। आखिर पहुँचना तो उसने हॉस्पिटल ही था, जहाँ ऐसी बातों की तरफ किसी का खास ध्यान नहीं जाने वाला था।”

“आपकी इस आखिरी बात से मुझे पूरा-पूरा इत्तेफाक है।”

“थैंक यू, आगे हुआ ये कि हॉस्पिटल में दाखिल होकर एक लंबा घेरा काटता हुआ वह इमारत के पिछले हिस्से में उस जगह पहुँचा, जहाँ ओटी की पिछली खिड़की खुलती है। हालांकि मैंने वह खिड़की अभी देखी नहीं है, मगर पहुँचा वह ऐसे ही किसी रास्ते से होगा।”

“फ्रंट से क्यों नहीं?”

“क्योंकि आकाश और शीतल उस वक्त हॉस्पिटल में ही मौजूद थे। फिर बाद में शक होने पर पुलिस अगर ज्यादा गहराई से जांच पड़ताल करना शुरू करती तो सीसीटीवी के जरिये ये बात सामने आ सकती थी कि अंबानी साहब के वहाँ पहुँचने के बाद एक शख्स ओटी में दाखिल तो जरूर हुआ मगर बाहर नहीं निकला, आज तक नहीं निकला।”

“इमारत के पिछले हिस्से में भी तो कैमरे लगे होंगे?”

“बेशक लगे हैं, मगर उनकी स्थिति कुछ ऐसी है कि दीवार के एकदम पास का दृश्य कवर नहीं करते। मेरे ख्याल से उस बात की जानकारी डॉक्टर पुरी ने ही उसे दी होगी, जिसका फायदा उठाते हुए अनंत गोयल ओटी तक पहुँचने में कामयाब हो गया। बाद में डॉक्टर ने उसे पहले आईसीयू शिफ्ट किया, फिर एक प्राइवेट वॉर्ड में एडमिट कर दिया गया, जहाँ वह कोमा में पड़ा होने की एक्टिंग करने लगा, बल्कि अभी भी कर रहा होगा।”

“अंबानी साहब की लाश को मोर्ग तक कैसे पहुँचाया गया होगा?”

“चाहे जैसे पहुँचाया गया हो मैडम, मगर था वह बेहद मामूली काम। लाश सफेद चादर से ढकी हुई हो तो हॉस्पिटल में भला उसका चेहरा देखने की कोशिश कौन करता है। हाँ, बाद में डेडबॉडी को फिर से ओटी में पहुँचाना थोड़ा मुश्किल काम था, मगर किया जा चुका है, इसलिए जाहिर है डॉक्टर पुरी ने कोई ना कोई हथकंडा तो अपनाया ही होगा।”

“पता लग जायेगा।” गरिमा बोली – “सब पता लग जायेगा।”

“गुड, अब इजाजत दीजिए मुझे।”

“थैंक यू पार्थ साहब। आपने ये साबित कर दिखाया कि ‘द वॉचमैन’ यूँ ही टॉप फाइव में पहले पायदान पर नहीं है। और समझ लीजिए कि रिटायरमेंट के बाद वाला अपना आइडिया भी मैंने ड्रॉप कर दिया है। हाँ, कभी जासूसी का भूत दिमाग पर सवार हुआ तो आपकी एजेंसी ज्वाइन करने जरूर पहुँचूँगी।”

“ऑलवेज वेलकम मैम।” कहकर वह खड़ा हुआ – “किसी को गेट के बाहर खड़ी मेरी कार तक चलने को कहिए। एक गिफ्ट है आपके लिए, जो इस केस में आगे चलकर पुलिस के बहुत काम आने वाला है।”

“राहुल।” गरिमा ने सिपाही की तरफ देखा।

“जाता हूँ मैडम।”

तत्पश्चात दोनों बाहर पहुँचे तो पार्थ ने कार से निकालकर अनंत गोयल की डायरी सिपाही के हवाले की और खुद ड्राइविंग सीट पर सवार हो गया।

उधर गरिमा ने चौहान को फोन कर के आकाश को हवालात में डालने का हुक्म दिया और शीतल अंबानी की लाश को बाहर खड़ी एंबुलेंस में रखवाकर, सुमन के साथ पुलिस कार में सवार हो गयी।

तब तक शुभांगी बिड़ला बदस्तूर आंसू बहाती रही।

*****

उपसंहार


सुमन और आकाश की गिरफ्तारी के तुरंत बाद अंबानी नर्सिंग होम में पड़े अनंत गोयल, उसके कमरे में मौजूद नर्स और डॉक्टर नरेंद्र पुरी को नजरबंद कर दिया गया।

वह सिलसिला करीब एक घंटे तक चला।

पुलिस को वहाँ पहुँचा पाकर अनंत को समझते देर नहीं लगी कि उसका खेल अब खत्म हो चुका था, मगर उम्मीद के खिलाफ उम्मीद करता वह बदस्तूर कोमा में होने का नाटक करता रहा।

इंस्पेक्टर गरिमा पाण्डेय ने भी उसे तब तक डिस्टर्ब नहीं किया जब तक कि फॉरेंसिक टीम ने वहाँ पहुँचकर इस बात की गारंटी नहीं कर दी कि पेशेंट के तमाम कल पुर्जे एकदम सही काम कर रहे थे, इसलिए वह कोमा में नहीं हो सकता था।

तत्पश्चात गरिमा का उग्र रूप निखरकर सामने आया, जिसके बाद अनंत गोयल को बेड से उठते देर नहीं लगी। ये अलग बात थी कि पुलिस के हाथों थप्पड़ खाने से पहले उसने अपना मुँह फिर भी नहीं खोला।

अनंत के साथ-साथ उसके कमरे में मौजूद नर्स को भी हिरासत में लिया गया, जो चिल्ला चिल्लाकर कहती रही कि उसे पेशेंट की असलियत के बारे में कोई खबर नहीं थी, मगर अब उस बात से बहलने वाला वहाँ कोई नहीं था, गरिमा देशपाण्डेय तो हरगिज भी नहीं।

दोनों को साथ लेकर पुलिस तीसरी मंजिल पर स्थित डॉक्टर पुरी के कमरे में पहुँची, जहाँ पहले से दो सिपाही पूरी मुस्तैदी के साथ डटे हुए थे। उन्हें सख्त आदेश था कि डॉक्टर को वहाँ से हिलने भी न दिया जाये।

डॉक्टर ने जब अनंत को गिरफ़्तार हुआ देखा तो सहज ही अपना जुर्म कबूल कर लिया। बाद में उसी की निशानदेही पर कथित मनीष गोयल को भी उसके घर से उठा लिया गया, जो कि असल में अमरेंद्र सिंह नाम का डॉक्टर पुरी का ड्राईवर था।

बाद में डॉक्टर से की गयी विस्तृत पूछताछ में पता लगा कि सत्यप्रकाश के रवैये से वह खुद भी उतना ही नाखुश था, जितना कि बाकी के लोग। अक्सर वह हॉस्पिटल पहुँचकर उसे लेक्चर सुना जाया करता था, इसके विपरीत अनंत गोयल के साथ उसकी अच्छी बनती थी। अंबानी को लेकर दोनों में अक्सर बातें भी हो जाया करती थीं, जिससे दोनों को ही एक-दूसरे के दिल का हाल पता था।

ऐसे में जब एक रोज अनंत गोयल ने डॉक्टर को बताया कि अंबानी की बीवी और भाई उसके कत्ल की प्लानिंग कर रहे थे, जिसमें खुद उसका भी अहम रोल

था, तो सुनकर वह हैरान रह गया।

फिर अंनत ने उससे कहा कि अगर वह उसका साथ देने को राजी हो जाये तो सत्यप्रकाश अंबानी की पूरी दौलत उन दोनों की हो सकती है। और उस काम में कोई बड़ा खतरा भी नहीं था।

आगे अनंत की पूरी योजना सुनकर उसने फौरन हामी भर दी क्योंकि उसमें खून खराबे जैसा कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। डॉक्टर ने तो बस कुछ चीजों को मैनीपुलेट भर करना था, जो कि उसके बायें हाथ का खेल था।

ये भी तय था कि कल को भंडा फूटने पर उसे कोई लंबी सजा नहीं होने वाली थी, अलबत्ता अपनी मेडिकल की डिग्री जरूर खो देता वह, मगर अरबों की संपत्ति के लिए उतना रिस्क तो लिया ही जा सकता था।

बीस जुलाई की सुबह जब अनंत गोयल ‘अंबानी हाउस’ पहुँचा तो जाने से पहले वह डॉक्टर पुरी को इंफॉर्म कर के गया था, इसीलिए पेशेंट के वहाँ लाये जाने से पहले ही पुरी इमरजेंसी में जाकर खड़ा हो गया था। असल में उसे इस बात का डर था कहीं उससे पहले कोई डॉक्टर अंबानी की हालत का जायजा लेकर उसे मृत घोषित न कर दे।

बाद में सत्यप्रकाश की लाश के साथ ओटी में पहुँचकर उसने अपनी एक विश्वासपात्र नर्स को साथ रखा और बाकी सबको आउट कर दिया, यहाँ तक कि किसी अन्य डॉक्टर को अपनी मदद के लिए बुलाने की भी कोशिश नहीं की। हाँ, बीच-बीच में वह खामखाह के मेडिकल इक्युपमेंट जरूर मंगाता रहा था, ताकि किसी को उस पर शक न होने पाये।

उसके थोड़ी देर बाद ओटी के पीछे वाली खिड़की से अनंत गोयल वहाँ दाखिल हुआ, जिसने एक कंबल से अपने पूरे शरीर को कवर कर रखा था। उस खिड़की के बारे में डॉक्टर ने बताया कि पहले उस पर ग्रिल लगी हुई थी, जिसे अनंत की योजना में शामिल होने के बाद उसने बदलवा दिया था।

वह क्योंकि हॉस्पिटल का इंचार्ज था इसलिए किसी सवाल-जवाब का कोई मतलब तो नहीं बनता था, फिर भी एहतियातन एक रोज उसने ना सिर्फ उसका कांच तोड़ दिया बल्कि काफी जोर आजमाईश के बाद उसका एक सरिया भी निकाल बाहर किया, ताकि खिड़की को बदलवाने की मामूली ही सही, मगर वजह सामने लायी जा सके।

अनंत के वहाँ पहुँचने के बाद नर्स और डॉक्टर ने मिलकर अंबानी की लाश को चौड़ी पट्टियों में लपेटा और स्ट्रेचर के नीचे रखकर उस पर एक चादर डाल दिया।

फिर सत्यप्रकाश का खून से सना गाउन पहनकर अनंत गोयल उसी स्ट्रेचर के

ऊपर लेट गया, जिसके बाद डॉक्टर पुरी और नर्स उसका मेकअप करने में जुट गये।

शुरूआत पेट और छाती की ड्रेसिंग से की गयी, फिर गले पर भी एक मोटी पट्टी बांध दी गयी। उसके बाद डॉक्टर ने गोयल को बेहोशी का एक इंजेक्शन दिया और सर्जिकल उपकरणों की मदद से उसके चेहरे पर अलग-अलग तरह के घाव बनाने में जुट गया।

उस काम में डॉक्टर को महज पंद्रह मिनट लगे, जिसके बाद फैब्रिकेटेड जख्मों के इर्द गिर्द कॉफी का पाउडर छिड़ककर, पोतकर, दो जगहों पर वाईट पेंट लगाने के बाद बीटाडीन की मोटी परत चढ़ा दी गयी। अगले ही पल अनंत का चेहरा यूँ नजर आने लगा जैसे बुरी तरह जल गया हो, और सूरत दिखाई देनी तो बंद हो ही गयी थी।

काम पूरा हो जाने के बाद डॉक्टर उसे कमर तक कंबल से ढका फिर तीन चार कदम दूर खड़े होकर अपनी कारीगरी का अवलोकन किया तो मन ही मन खुद की पीठ थपथपाने से बाज नहीं आया।

बीच-बीच में वह बाहर खड़े आकाश और शीतल को मरीज की हालत के बारे में भी बताता रहा था, जो कि उस वक्त सत्यप्रकाश की मौत की कामना करने में जुटे हुए थे। बस ये नहीं जानते थे कि उनकी मुराद तो मांगे जाने से पहले ही पूरी हो चुकी थी।

पेशेंट को ओटी से निकालकर आईसीयू में शिफ्ट करना बेहद आसान काम साबित हुआ, जहाँ नर्स को उसने इस हिदायत के साथ तैनात कर दिया कि किसी को भी मरीज के एकदम करीब न फटकने दे।

उसके बाद डॉक्टर ने अंबानी की लाश को स्ट्रेचर पर रखकर सफेद चादर ओढ़ाया और अपनी देख-रेख में मोर्ग के भीतर रखवा आया। किसी का भी ध्यान इस बात की तरफ नहीं गया कि ओटी में डेडबॉडी आई तो आई कहाँ से, क्योंकि पेशेंट तो कोई पहुँचा ही नहीं था।

आगे गोयल को जानबूझकर एक ऐसे प्राइवेट वॉर्ड में शिफ्ट किया गया, जिसमें बिना ग्रिल वाली खिड़की लगी हुई थी, जो कि इमारत के पिछले हिस्से में खुलती थी। हालांकि तब तक उनके जेहन में उस खिड़की का कोई इस्तेमाल नहीं था, मगर सावधानी इसलिए बरती गयी ताकि कल को किसी भी वजह से अगर अनंत को बाहर जाना पड़े तो उस काम में कोई समस्या आड़े न आने पाये।

पुरी का इरादा बाद में अपने ड्राईवर अमरेंद्र के जरिये लाश को कलेक्ट करवाकर उसका दाह संस्कार करवा देने का था, मगर अनंत ने ये कहकर उसे कुछ दिनों तक रुकने को बोल दिया कि वह कोई ऐसी योजना बनाने में जुटा था, जिससे अंबानी की लाश को उसकी लाश समझ लिया जाता और तमाम खतरे अपने आप ही टल जाते।

और आखिरकार तो वह एक नयी स्क्रिप्ट लिखने में कामयाब हो ही गया।

नयी योजना के मुताबिक तेईस जुलाई को डेढ़ बजे के करीब डॉक्टर पुरी अनंत गोयल के वार्ड में पहुँचा। उस वक्त शीतल और आकाश वहीं बाहर बेंच पर बैठे हुए थे। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि पेशेंट थोड़ा एबनॉर्मल बिहैव कर रहा था, जिसे संभालने में लंबा वक्त लग सकता है, इसलिए अगले दो ढाई घंटों तक वॉर्ड का दरवाजा भीतर से बंद रहेगा और आवाजाही सिर्फ उसकी या नर्स की होगी, दूसरा कोई भी पेशेंट के पास नहीं जायेगा।

देवर-भाभी ने सहज ही उस बात की हामी भर दी थी।

उनकी जगह कोई और होता तो डॉक्टर से सौ सवाल कर बैठता। ये सोचकर घबरा जाता कि कहीं पेशेंट की हालत सीरियस तो नहीं हो गयी थी, मगर उन्हें घंटा परवाह थी ऐसी किसी बात की।

अंदर पहुँचकर डॉक्टर ने सबसे पहले पेशेंट के जिस्म की ड्रेसिंग खोली, फिर चेहरे पर की गयी अपनी कारीगरी को धो पोंछकर साफ कर दिया। उसके बाद वहाँ दिखाई दे रहे जख्मों को, जो कि अब सूखने से लगे थे, सर्जिकल नाइफ से कुरेद-कुरेदकर एकदम ताजा कर दिया। तत्काल वहाँ से खून बहना शुरू हो गया, मगर डॉक्टर ने बस नहीं किया। घावों के इर्द-गिर्द जितनी भी डेड स्किन दिखाई दे रही थीं, सबको उसके चेहरे से नोंच-नोंचकर अलग करता चला गया।

अनंत गोयल दांत पर दांत जमाये उस दर्द को बर्दाश्त करता रहा।

दस मिनट के भीतर उसके चेहरे के तमाम घाव एकदम नये दिखाई देने लगे। बहता हुआ खून उसके चेहरे को भिगोता चला गया, मगर परवाह जरा भी नहीं थी, क्योंकि हासिल बहुत बड़ा दिखाई दे रहा था।

आखिरकार एक पैजामा कुर्ता पहनकर कंबल ओढ़ने के बाद वह खिड़की के रास्ते इमारत के पिछले हिस्से में उतरा और दीवार के साथ सटकर चलता हुआ धीरे-धीरे फ्रंट की तरफ बढ़ने लगा, फिर ज्योंही सामने के हिस्से में पहुँचा, कैमरों की परवाह करना छोड़कर तेज कदमों से गेट की तरफ चल पड़ा।

बाहर निकलकर वह एक ऑटो में सवार हुआ, और उसे गोविंदपुरी के गुरूद्वारे चलने को कह दिया, जहाँ डॉक्टर का ड्राईवर अमरेंद्र सिंह पहले से खड़ा उसका इंतजार कर रहा था।

तत्पश्चात एक नये ऑटो में सवार होकर दोनों वापिस अंबानी नर्सिंग होम पहुँच गये।

ऑटो इमरजेंसी में दाखिल हुआ तो अमरेंद्र ने उसे अपनी गोद में उठाकर नीचे

उतारा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा, जिसे सुनकर अस्पताल के दो कर्मचारी स्ट्रेचर धकलेते उसके पास आ खड़े हुए।

उस दौरान डॉक्टर पुरी, सत्यप्रकाश अंबानी की लाश को मोर्ग से निकलवाकर वापिस ओटी में पहुँचा चुका था। वह पूरे मामले की सबसे कमजोर कड़ी थी, जो बाद में उसका भेद खोल सकती थी क्योंकि मोर्ग से निकालकर डेडबॉडी को ओटी में ले जाने की कोई तुक नहीं बनती थी, मगर डॉक्टर के पास उसका कोई तोड़ नहीं था इसलिए वह रिस्क लेना उसकी मजबूरी थी। फिर भी उसने इतना ख्याल जरूर रखा कि लाश को चादर से ढककर ओटी में पहुँचवाया था। और मोर्ग के अटेंडेंट तथा स्ट्रेचर धकेलने वाले लड़के के कानों में ये बात डाल दी थी डेडबॉडी को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया जा रहा था, ये अलग बात थी कि उन दोनों ने डॉक्टर की बात पर कान धरने की भी कोशिश नहीं की थी।

स्ट्रेचर पर लिटाकर अनंत गोयल को ओटी में ले जाया गया, जहाँ वह तभी तक रहा जब तक कि आकाश और शीतल ने भीतर पहुँचकर उसकी शक्ल नहीं देख ली। तत्पश्चात खिड़की के रास्ते इमारत के पिछले हिस्से में उतर कर वह अपने वॉर्ड में पहुँचा और बेड पर लेट गया।

इस बार उसका मेकअप करने की जिम्मेदारी नर्स ने निभाई, जिसने पांच मिनट के भीतर उसे फिर से ऐसा पेशेंट बना दिया, जिसका चेहरा तेजाब से जला दिया गया था, जिसकी छाती, पेट और गले पर गहरे घाव थे, जबकि असल में तो सब कॉफी पाउडर और बीटाडीन का कमाल था।

उधर पेशेंट की एमएलसी हो चुकने के बाद डॉक्टर ने उसे मर चुका घोषित किया और लाश को अपनी देख-रेख में ड्राईवर अमरेंद्र के सुपुर्द कर दिया, जिसके बाद वह डेडबॉडी को एंबुलेंस में डालकर श्मशान घाट के लिए रवाना हो गया।

उस काम में कोई अड़चन न आने पाये, इसका ख्याल रखते हुए डॉक्टर पुरी भी थोड़ी देर बाद उसके पास पहुँच गया था। आगे दोनों ने सत्यप्रकाश अंबानी की लाश को अनंत गोयल के रूप में चिता के हवाले कर दिया, फिर अमरेंद्र वापिस अपने ड्राईवर वाले रोल में पहुँच गया।

डॉक्टर के मुँह से उसका किया-धरा सुनकर क्या गरिमा, क्या चौहान और क्या वहाँ मौजूद बाकी के पुलिसवाले, सब हैरान रह गये। इतने बड़े और अनोखे षड़यंत्र के बारे में तो उन लोगों ने अपने करियर में पहले कभी सुना तक नहीं था, देखना तो दूर की बात थी।

आकाश अंबानी को ज्योंही अपनी भाभी के कत्ल की खबर लगी वह खुद ब खुद टूट गया। उसने पुलिस को बताया कि उसका बड़ा भाई असल में उसकी संपत्ति हड़पने की कोशिशों में जुटा हुआ था, जिसके लिए पहले उसने शीतल को चारा बनाकर उसके आगे पेश किया, मगर जब बात नहीं बनी तो कत्ल कराने पर उतारू हो गया।

“मेरा भाई कितना बड़ा कमीना था मैडम इसका अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि मेरी संपत्ति को अपने नाम कराने के लिए अपनी बीवी को मेरे बिस्तर की शोभा बनाने से भी पीछे नहीं हटा। वह तो शीतल को मुझसे मोहब्बत हो आई वरना मैं सड़क पर खड़ा भीख मांग रहा होता, या अपनी जान से हाथ धो बैठा होता, जिसमें उसने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। ऐसे में हम उसे खत्म न कर देते तो और क्या करते?”

उसकी बात सुनकर थोड़ी देर के लिए गरिमा देशपाण्डेय भौंचक्की रह गयी, मगर बाद में जब सुमन से लंबी पूछताछ हुई तो उसने ये कहकर आकाश की बात को खारिज कर दिया कि सत्यप्रकाश उसे अपने बेटे जैसा मानता था और हर वक्त इस बात को लेकर परेशान रहता था कि वह बिजनेस में जरा भी इंट्रेस्ट नहीं ले रहा था।

आगे उसने ये कहकर सबको चौंका दिया कि सत्य को आकाश और शीतल के रिलेशंस की खबर खुद उसी ने दी थी, जिसे सुनकर वह इतना दुखी हुआ कि रो ही पड़ा।

“उन दोनों के रिलेशंस के बारे में जान चुकने के बाद भी सत्य ने कभी उनका बुरा नहीं चाहा मैडम। उल्टा एक बार ये तक कह बैठे कि गलती खुद उन्हीं की थी, जो उम्र में इतनी छोटी लड़की से शादी कर बैठे। ना कि शीतल और आकाश में कोई बुराई थी।”

उसकी बात सुनकर पुलिस ने यही अंदाजा लगाया कि असल में आकाश पूरी तरह अपनी भाभी के हाथों उल्लू बना था, ना कि सत्यप्रकाश सच में उसका बुरा चाहता था क्योंकि अभी तक की जांच में सिर्फ एक ही बुराई अंबानी में दिखाई दी थी और वह थी उसकी गुस्सैल प्रवृत्ति, ना कि वह धोखेबाज था, जो भाई की संपत्ति हड़पने की फिराक में जुट जाता।

किसी ट्रक द्वारा आकाश की कार को टक्कर मारने की कोशिश वाली मिस्ट्री कभी सॉल्व नहीं हो सकी, जिसका अपनी तरफ से जवाब पुलिस ने ये ढूंढा कि उन दिनों क्योंकि आकाश के मन में ये बात कूट-कूटकर भरी हुई थी कि सत्यप्रकाश उसकी जान लेने की कोशिश कर सकता है, इसलिए सड़क पर किसी ट्रक ड्राईवर की लापरवाही को वह अपने कत्ल की कोशिश समझ बैठा था। या फिर वह कारनामा भी शीतल का ही था, जिसने किसी ड्राईवर को पैसे देकर उस काम के लिए तैयार कर लिया था।

अनंत गोयल से जब उसकी लिखी डायरी के बारे में सवाल किया गया तो उसने बताया कि डायरी लिखने के पीछे एक मात्र उद्देश्य यही था कि शीतल और आकाश, सत्यप्रकाश पर किये गये हमले के जुर्म में जेल चले जाते और उसका रास्ता पूरी तरह साफ हो जाता, यानि आकाश के हिस्से की दौलत हड़पने की भी प्लानिंग किये बैठा था वह।

जब उससे ये पूछा गया कि वह कोमा से बाहर कब आने वाला था तो उसने बताया कि देवर-भाभी के जेल पहुँच जाने के बाद उसका इरादा अमेरिका पहुँचकर चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी कराने का था, जिसका इंतजाम डॉक्टर पुरी करने वाला था। उस ऑपरेशन में अनंत अपनी सूरत सत्यप्रकाश अंबानी से मिलता-जुलता बनवा लेता, और आवाज पहचानी जाने से बचने के लिए डॉक्टर पुरी उसकी जीभ का एक बेहद छोटा ऑपरेशन कर देता, जिसके बाद वह जो भी बोलता वह ना तो उसकी खुद की आवाज होती ना ही अंबानी की। तब लोग-बाग सहज ही सोच लेते कि तेजाब से हुए हमले के कारण उसकी आवाज को नुकसान पहुँच गया था।

इसी तरह सिग्नेचर के बारे में उसने बताया कि अंबानी के सिग्नेचर की बहुत अच्छी प्रैक्टिस कर चुका था वह। थोड़ी बहुत कमी रह जाती तो वह इस बात से पूरी हो जानी थी कि उस पर जानलेवा हमला हुआ था और वह महीनों तक कोमा में भी रहा था, इसलिए बाद में उतना मामूली फर्क आ जाना आम बात थी। फिर भी कोई प्रॉब्लम होती तो वह तमाम रिकार्ड्स में अपने नये सिग्नेचर स्थापित करवा देता, जिसमें उसे कोई परेशानी नहीं होने वाली थी।

इस तरह लालच, नासमझी, बदला और एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स की वजह से तीन लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे, पांच जेल पहुँच गये, बल्कि सत्यप्रकाश अंबानी का तो सब-कुछ खत्म हो गया।

पूरे मामले में अगर कोई फायदे में रहा तो वह थी शुभांगी बिड़ला, जिसे सत्यप्रकाश का सबसे करीबी होने का तगड़ा फायदा पहुँच कर रहना था क्योंकि अंत-पंत तो वही उसकी लीगल हॉयर बनने वाली थी। ये अलग बात थी कि शुभांगी को भाई की संपत्ति का जरा भी लोभ नहीं था, और जिसे था वह शीतल अंबानी तो ‘आधी छोड़ पूरी को धावे’ के चक्कर में पड़कर अपने अनमोल जीवन से भी हाथ धो बैठी।

समाप्त