पुलिस हैडक्वार्टर्स में ।
इंसपैक्टर शुक्ला के ऑफिस में बैठा अजय अपना बयान लिख रहा था ।
स्वयं शुक्ला भी वहीं मौजूद था । उसके चेहरे पर थकान मिश्रित विचारपूर्ण भाव थे । रात भर न सो पाने के कारण आँखें लाल और पलकें भारी हो रही थीं ।
उसका एक मातहत अन्दर आया । उसे एक मोटा सा लिफाफा सौंपकर चला गया । उसमें रोशन की लाश की जेबों से बरामद चीजें थीं ।
शुक्ला ने लिफाफा अपने डेस्क पर उलट दिया । प्रत्येक चीज का बारीकी से मुआयना करने लगा ।
अजय ने अपने लिखित बयान पर दस्तखत करके उसके, सामने रख दिया ।
शुक्ला ने बयान पढ़कर अपने डेस्क की एक ड्रायर में रख लिया ।
–'तुम कभी विश्वास नगर गए हो, अजय ?' उसने पूछा ।
अजय ने असमंजसतापूर्वक उसे देखा ।
–'कई बार गया हूँ । क्यों ?'
–'आखिरी दफा कब गए थे ?'
–'यही कोई सालभर पहले ।
शुक्ला गौर से उसे देख रहा था ।
–'दस–पन्द्रह दिन पहले नहीं गए ?'
–'नहीं । आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं ?'
–'रोशन की लाश से मिले कागजात से जाहिर है वह विश्वास नगर में रह रहा था और कल ही यहाँ पहुंचा था । शुक्ला अपनी कुर्सी की पुश्त से पीठ सटाता हुआ बोला–'अब सवाल यह पैदा होता है कल ही यहां पहुंचे रोशन ने आते ही तुम पर गोलियां बरसा दीं । क्यों ?'
–'इसका जवाब मैं पहले भी आपको दे चुका हूँ हो सकता है वह इस गलतफहमी का शिकार हो गया था कि मैं उसके बारे में बहुत कुछ ऐसा जानता हूँ जिससे उसका पुलंदा बंध सकता था ।'
–'यानी तुम अभी भी इस बात से इंकार करते हो कि उसे पहले से जानते थे ?'
–'यस, इंसपैक्टर । मैं उसे नहीं जानता था ।'
शुक्ला के चेहरे पर नाखुशी भरे भाव उत्पन्न हो गए । वह कई सेकंड तक अजय को घूरता रहा ।
–'जब से मैंने रोशन लाल खुराना के बारे में सुना है तभी से मुझे लग रहा है यह नाम पहले भी कहीं सुना था ।' अन्त में, उसने कहा–'और कुछ देर पहले तक मैं यही समझता रहा वह कोई मामूली बदमाश था । इसी वजह से उसका नाम सुना हुआ लगता था लेकिन रोशन के कागजात देखने पर याद आ गया उसका नाम कहाँ सुना था । वह अमरकुमार के लिए काम करता था ।'
–'अमरकुमार ?' अजय ने जानबूझकर पूछा–'वही जो फिल्म स्टार है ?'
–'हाँ ।'
–'लेकिन वह तो यहीं रहता है । और आपने बताया है कि रोशन विश्वास नगर में रहता था । फिर वह अमरकुमार के लिए कैसे काम कर सकता है ?'
–'मैंने कहा है वह अमरकुमार के लिए काम किया करता था । हो सकता है, इन दिनों भी कर रहा था ।' शुक्ला ने यूं कहा मानों वह खुद भी उलझकर रह गया था लेकिन उसकी जेब से मिले कागजात से यह भी साफ जाहिर है कि पिछले करीब पन्द्रह दिन से वह विश्वास नगर में था और कल ही यहाँ पहुंचा था । क्यों ? यह मैं नहीं जानता ।'
–'तो फिर आप अमरकुमार से क्यों नहीं पूछते ?'
शुक्ला ने यूं उसे घूरा, मानों उस पर बरसने वाला था । लेकिन तभी टेलीफोन की घंटी बजने लगी ।
शुक्ला ने रिसीवर उठा लिया ।
–'यस ?........आप यकीनी तौर पर कह सकते हैं ?........नहीं, नहीं, आपको आपका धंधा सिखाना नहीं चाहता........ठीक है, बहुत–बहुत धन्यवाद ।'
उसने रिसीवर यथास्थान पर रख दिया । अब वह काफी हद तक सामान्य नजर आ रहा था ।
–'बैलास्टिक एक्सपर्ट का फोन था ।' वह बोला–'रोशन के रिवाल्वर से फायर की गई गोलियाँ उस गोली से बिल्कुल मैच करती हैं जो मंजुला सक्सेना के सर से निकाली गई थीं ।'
–'अब आपको यकीन हो गया कि मंजुला सक्सेना की हत्या रोशन ने ही की थी ?'
–'हाँ । अब तुम जा सकते हो ।'
–'और अगर मैं आपके पास रुकना चाहूँ तो आपको एतराज़ होगा ?'
–'किसलिए रुकना चाहते हो ?'
–'रोशन के बारे में आप अमरकुमार से पूछताछ करेंगे ?'
–'हाँ ।'
–'उस वक्त मैं भी वहां मौजूद रहना चाहता हूँ ।'
–'क्यों ?'
–'शायद यह पता चल सके कि रोशन क्यों मेरी जान लेनी चाहता था । अजय चिकने–चुपड़े स्वर में बोला–'जो कुछ मेरे साथ हुआ है । उसे देखते हुए कम–से–कम इतना तो आप भी मानेंगे कि मुझे भी असलियत जानने का हक है ।' फिर पूछा–'अमरकुमार को आप यहीं बुलाएंगे ?
–'नहीं । मोर्ग में ?'
अजय चकराया ।
–'मोर्ग में ?'
–'हां । रोशन उसके लिए काम करता था । इसलिए मैं उससे लाश की शिनाख्त कराउंगा ।'
–'ओह, एक्सीलेंट आईडिया ।' अजय तारीफी लहजे में बोला–'उस जैसे आदमी से बातें करने के लिए मोर्ग ही सही जगह है ।'
शुक्ला कुछ कहने की बजाय अपने दो मातहतों को बुलाकर उन्हें अमरकुमार को लाने के बारे में हिदायतें देने लगा ।
* * * * * *
अजय इंसपैक्टर शुक्ला के साथ मोर्ग पहुंचा ।
मुश्किल से दो मिनट बाद ही एक मर्सीडीज और पुलिस जीप आगे–पीछे वहाँ आ रुकीं ।
एक सादा लिबास एस० आई० के साथ फिल्म स्टार अमरकुमार मर्सीडीज से नीचे उतरा । प्रत्यक्षतः वह इतना ज्यादा गुस्से में था कि बड़ी मुश्किल से स्वयं को सामान्य रख पा रहा प्रतीत होता था ।
अजय और शुक्ला भी जीप से उतर चुके थे ।
अमरकुमार पांव पटकता हुआ सा चलकर उनके पास पहुंचा । उसने पहले खा जाने वाले भाव में अजय को घूरा फिर उसकी निगाहें शुक्ला पर जम गईं ।
–'यह सब क्या है, इंसपैक्टर ?' मुझे आधी रात के वक्त इस बेहूदा जगह क्यों बुलाया गया है ? उसने गुर्राते हुए पूछा–'मैं एक बड़ा फिल्म स्टार हूँ कोई चोर डाकू या स्मग्लर नहीं...।'
–'आपकी पोजीशन को मैं अच्छी तरह समझता हूँ, मि कुमार ।' शुक्ला उसकी बात काटता हुआ शांत स्वर में बोला–'बेवक्त आपको तकलीफ देने के लिए माफी चाहता हूँ । दरअसल हमें आपके सहयोग की जरूरत है । और एक शरीफ और इज्जतदार नागरिक होने के नाते, मुझे उम्मीद है आप इंकार नहीं करेंगे ।'
–'कैसा सहयोग ? क्या आप सुबह तक इंतजार नहीं कर सकते थे ?'
–'हम तो इन्तजार कर सकते थे । लेकिन दिन में अगर आपको वहां बुलाया जाता तो यह बात छुपी नहीं रहती । लोग आपके बारे में तरह–तरह की बातें बनाते और बिना वजह स्कैंडल उठ खड़ा होता । आपकी इमेज खराब न हो इसलिए आपको रात में चुपचाप बुलाया गया है ।'
शुक्ला द्वारा शांत स्वर में कही गई बात अपनी जगह बिलकुल सही थी । अमरकुमार पर भी इसका वांछित प्रभाव हुआ उसका गुस्सा कम हो गया ।
–'ठीक है ।' वह बोला–'जल्दी बताइए मुझे किसलिए बुलाया गया है ।'
–'अंदर एक आदमी की लाश पड़ी है । आपसे उनकी शिनाख्त करानी है ?'
अमरकुमार चौंका ।
–'लाश की शिनाख्त ?'
–'हाँ । आपको एतराज तो नहीं है ?'
अमरकुमार, पलभर हिचकिचाया, फिर बेमन से बोला–'नहीं ।'
–'शुक्रिया आइए ।'
तीनों मोर्ग की इमारत में दाखिल हुए । जिस कमरे में लाशें रखी जाती थीं उसका ताला खुलवाकर शुक्ला उन दोनों और चौकीदार को साथ लिए अदर पहुंचा ।
शुक्ला के आदेश पर चौकीदार ने मेज पर पड़ी रोशन की लाश के ऊपर पड़ी चादर उठा दी ।
–'आप इसे पहचानते हैं, मिस्टर कुमार ?' शुक्ला ने पूछा ।
रोशन के मांस का लोथड़ा सा बन गए चेहरे को देखते ही । अमरकुमार को झटका सा लगा । एक संक्षिप्त पल के लिए भी बड़ी मुश्किल से ही उस पर निगाह जमा सका फिर दूसरी ओर देखने लगा ।
–'प...पता नहीं ।' वह फंसी सी आवाज में बोला ।
–'गौर से देखिए मिस्टर कुमार।' शुक्ला ने कहा–'आप इसे अच्छी तरह जानते थे ।'
–'म...यह आप कैसे कह सकते हैं ?'
–'इसलिए कि हमें पता चला है यह आदमी आपके लिए काम करता था ।'
अमरकुमार ने अनिच्छापूर्वक पुनः लाश की ओर देखा ।
–'मेरा ख्याल है ।' वह होठों पर जीभ फिराता हुआ मरी सी आवाज में बोला–'यह रोशनलाल खुराना है ।'
–'ख्याल से नहीं यकीनी तौर पर बताइए ।'
–'सॉरी, इसके चेहरे की हालत को देखते हुए मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूँ देखने में यह रोशनलाल खुराना सा लगता है ।'
–'इतना ही काफी है । इसके बारे में और क्या बता सकते हो ?'
–'इन दिनों यह मेरे लिए काम नहीं करता था । करीब दो । हफ्ते पहले मैंने इसे नौकरी से निकाल दिया था ।'
–'अच्छा ? क्यों ?'
–'अगर आप बातें ही करना चाहते हैं तो मेहरबानी करके बाहर चलिए । मैं यहां और एक पल भी नहीं रुक सकता ।'
शुक्ला लाश को ढ़कने और कमरा लॉक करने का आदेश देकर अजय और अमर सहित बाहर निकला और उन दोनों को साथ लिए मोर्ग इंचार्ज के आफिस में आ गया ।
अमरकुमार एक कुर्सी में धंस गया अपना चेहरा हाथों में दबा लिया । कुछ देर उसी तरह बैठा रहने के बाद उसने शुक्ला की ओर देखा ।
–'क्या हुआ था उसके साथ ? एक्सीडेंट या कुछ और ?'
–'होटल के कमरे के बाहर फायर एस्केप पर रोशन को इस आदमी ने शूट किया था ।' शुक्ला अजय की ओर संकेत करता हुआ बोला–'इसका नाम अजय कुमार है । आप इसे जानते है ?'
रोशन की लाश देखने के बाद से अमरकुमार जानबूझकर अजय से निगाहें चुराता रहा था । उसने किसी अपरिचित की भांति उसे देखा ।
–'अगर इसने रोशन की जान ली है तो यह यहाँ क्या कर रहा है ।' उसने शुक्ला के सवाल को नजरअंदाज करते हुए पूछा–'इसे लॉकअप में बंद क्यों नहीं किया गया ?'
–'क्योंकि इसे अपनी जान बचाने के लिए रोशन की जान लेनी पड़ी ।'
–'यू मीन सेल्फ डिफेंस, इंस्पैक्टर ?'
–'यस । रोशन ने फार एस्केप से खिड़की के जरिए इस पर पूरी छह गोलियां चलाई थीं ।
अमरकुमार बराबर अजय को घूरे जा रहा था ।
–'यह झूठ है । मैं इस बकवास पर यकीन नहीं कर सकता ।'
–'क्यों ?' शुक्ला ने जानना चाहा ।
–'रोशन इसे किसलिए मारना चाहता था ?'
–'जिसलिए उसने 'विशालगढ़ टाइम्स' की रिपोर्टर मंजुला सक्सेना की हत्या की थी ।'
अमरकुमार ने शुक्ला की ओर गरदन घुमाई ।
–'रोशन ने किसी रिपोर्टर की हत्या की थी ?' उसने अविश्वासपूर्वक पूछा ।
–'हाँ ।'
–'आपके पास इस बात का कोई सबूत है, इंस्पैक्टर ?'
–'हां । मंजुला सक्सेना की खोपड़ी से जो गोली निकाली गई थी वो उसी रिवाल्वर से चलाई गई थी जो आज रात रोशन की लाश के पास से बरामद हुआ था ।'
अमरकुमार के चेहरे पर ऐसे भाव उत्पन्न हो गए मानों उसे जबरन इंस्पैक्टर की बात पर यकीन करना पड़ रहा था ।
–'मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता ।' संक्षिप्त मौन के पश्चात बोला ।
–'नौकरी से निकाला जाने के बाद रोशन आपसे मिला था ?'
–'हाँ ।'
–'कब ?'
–'कल रात । वह मेरे पास आया था और मुझसे पूछा क्या मैं दो–चार दिन उसे अपने पास रख सकता हूँ । पुराना मुलाजिम होने की वजह से...।'
–'आपने उसे नौकरी से क्यों निकाला था ?'
–'अपने बिजनेस मैनेजर मनमोहन सहगल द्वारा आत्महत्या कर ली जाने के बाद मैंने रोशन को हिसाब–किताब के मामले में हेराफेरी करते पकड़ लिया था ।' अमरकुमार गहरी साँस लेकर बोला–'उसने कनखियों में अजय की ओर देखा मानों उसे हस्तक्षेप किए जाने की उम्मीद थी ।' फिर अजय को कुछ न कहता पाकर बोला–'मुझे पता चला असल में वह मेरे लिए नहीं बल्कि मनमोहन के लिए काम कर रहा था । बस, मैंने उसे निकाल दिया ।'
–'आई सी ।' शुक्ला ने विचार पूर्वक कहा, फिर तनिक रुककर पूछा–'आप बता सकते हैं, आपके यहां से निकाला जाने के बाद रोशन कहां रहा ?'
–'पिछली रात उसी ने बताया था कि वह विश्वास नगर में रह रहा था ।'
–'रोशन द्वारा मंजुला सक्सेना की हत्या की जाने की कोई वजह बता सकते हो ?'
–'मुझे यकीन नहीं है उसने हत्या की थी ।'
–'आपको इस पर भी यकीन नहीं है कि उसने अजय की जान लेने की कोशिश की थी ?'
अमरकुमार ने अजय को घूरा !
–'हो सकता है, रोशन ने ऐसा किया हो ।' वह बोला–'कुछ लोग इस कदर अपनी जान के दुश्मन होते हैं कि हर वक्त मुसीबतों को न्योता देते रहते हैं । अगर रोशन ने ऐसी कोशिश नहीं भी की होती तो किसी और ने कर डालनी थी ।' वह खड़ा हो गया–'ओके, इंस्पैक्टर, आपने रोशन की शिनाख्त के लिए मुझे बुलाया था । वो मैं कर चुका हूँ । अब जो एक के बाद एक सवाल आप कर रहे हैं । उनसे कोई वास्ता मेरा नहीं है । इसलिए मैं जा रहा हूँ ।'
–'श्योर । सहयोग के लिए बहुत–बहुत धन्यवाद ।'
अमरकुमार ने पुनः अजय को घूरा ।
–'तुम बहुत खुश किस्मत हो, मिस्टर ।' उसने व्यंगात्मक स्वर में कहा ।'
अजय मुस्कराया ।
–'बेशक ।' आँख मारकर बोला–'लेकिन मुझे उन लोगों पर तरस आता है जो अपनी किस्मत दूसरों के पास गिरवी रखकर खुद को खुशकिस्मत समझते रहने की खुशफहमी का शिकार हो जाते हैं ।'
अमरकुमार ने आग्नेय नेत्रों से उसे घूरा और पलटकर बाहर निकल गया ।
–'तुम दोनों एक दूसरे को जानते हो ?' शुक्ला ने संदिग्ध स्वर में पूछा ।
–'आपने यह कैसे समझ लिया ?' अजय ने पूछा ।
–'तुम्हारी बातों से ।'
–'हमारी बातों में तो ऐसा कुछ भी नहीं था । सिवाय इसके कि उसकी बेतुकी बात के जवाब में मैंने भी एक बेतुकी कह दी थी ।'
–'तुम्हारी बाते बेतुकी नहीं थी ।'
–'फिर ?'
–'तुमने एक दूसरे पर चुनौती भरा व्यंग कसा था ।' शुक्ला शिकायती लहजे में बोला–'मैं जानता हूँ, इस सारे सिलसिले मैं तुम जरूर कुछ छिपाते रहे हो । मैं यह भी जानता हूं किसी दबाव या धमकी में आकर वो सब बताने वाले तुम नहीं हो । इसलिए मैं जानने की कोशिश नहीं करूंगा । लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि जो तुम जानते हो । अगर वो हमें बता देते तो तुम्हारी वो जानकारी तुम्हारे लिए इस कदर खतरनाक साबित नहीं होनी थी ।'
–'मेरे पेशे में यह सब चलता ही रहता है, इंसपैक्टर ।' अजय लापरवाही से बोला–'जहां तक जानने का सवाल है । मैं जो जानता था सब आपको बता चुका हूँ ।'
शुक्ला के चेहरे पर अविश्वासपूर्ण भाव थे ।
–'मुझे यकीन नहीं आता । वह गहरी सांस लेकर बोला ।
–'यह मेरी बदकिस्मती है कि पुलिस वाले कभी मुझ पर यकीन नहीं करते ।' अजय ने भी उसी के लहजे में जवाब दिया ।
–'इस बारे में तुमसे कोई बहस करना मैं नहीं चाहता । तुम जा सकते हो ।'
–'थैंक्स ए लॉट, इंस्पैक्टर । अजय ने कहा और दरवाजे की ओर बढ़ गया ।
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