एक गाड़ी में वे पांचों होटल सेन्टूर की तरफ जा रहे थे । गाड़ी समरपाल ड्राइव कर रहा था ।
अखिलेश, वकीलचंद, भट्टाचार्य और समरपाल चटखारे ले लेकर उसी घटना पर चर्चा कर रहे थे जिसे कुछ देर पहले अंजाम देकर आये थे ।
अवतार खामोश था ।
अंततः अखिलेश ने पूछ ही लिया --- “अवतार, तू खामोश क्यों है ?
“ थूकने के लिए भी नहीं उठा उस पर ।" भट्टाचार्य बोला ।
उसने गंभीर स्वर में
"सच कहू?"
“अबे... | झूठ बोलेगा हमसे ?” वकीलचंद ने कहा ।
“मुझे अच्छा नहीं लगा वह सब ।”
भट्टाचार्य बोला--- "मुझे यही लग रहा था । ”
“क्यों?” अखिलेश ने पूछा ।
“एक औरत का इतना अपमान... पहले उसे नंगी नचाना और फिर, उस पर थूकना । उफ्फ ! ”
“वह औरत नहीं नागिन है।" समरपाल बोला ।
“तू ऐसा इसलिए कह रहा है क्योंकि तू नहीं जानता --- उसने राजदान के साथ क्या किया ?”
“कुछ भी किया हो अखिलेश --- लेकिन जो हम करके आये हैं, वह बहुत घृणित था।”
एकाएक अखिलेश के हलक से गुर्राहट सी निकली “समरपाल!”
"हां ।”
“गाड़ी भट्टाचार्य हाउस की तरफ घुमा ले ।”
"क्यों?”
“इसे उसकी करतूत दिखानी जरूरी हो गयी है जिसे यह
औरत कह रहा है ।” समरपाल ने तेजी से 'यू टर्न' लिया ।
***
फार्म हाऊस कई बीघे में फैला हुआ था । लोहे वाले गेट से एक सड़क चली गई थी। उस पर दौड़ती गाड़ी कई मोड़ घूमने के बाद एक छोटी सी इमारत के बाहर पोर्च में जाकर रुकी।
सफेद पत्थरों से मंढ़ी खूबसूरत डिजाइन वाली इमारत फार्म हाऊस के बीचो-बीच बनी हुई थी । चांदनी के कारण वह ताजमहल की मानिन्द तो नहीं, फिर भी दमक रही थी।
सभी गाड़ी के दरवाजे खोलकर बाहर निकले ।
इमारत के बंद मुख्यद्वार पर पहुंचे।
भट्टाचार्य ने कॉलबेल बजाई।
कुछ देर बाद दरवाजा खुला ।
दरवाजा खोलने वाला सत्यप्रकाश था ।
“आप लोग ?” उसके मुंह से निकला --- “रात के इस वक्त ? राजदान साहब कहां हैं?"
“वे सुबह आयेंगे।”
" और ये ?” उसका इशारा अवतार की तरफ था।
“राजदान का एक और दोस्त है।” कहने के साथ वह अंदर दाखिल हो गया ।
अवतार समझ गया - - - वह सत्यप्रकाश होगा।
दो कारण थे ।
पहला - - - वह जानता था, चार लोग अभी भी राजदान को जिन्दा समझ रहे थे ।
सत्यप्रकाश, सुजाता, बबलू और स्वीटी ।
दूसरा --- उनमें इस उम्र का सत्यप्रकाश ही हो सकता था।
अवतार यह भी समझ गया --- वह इन चारों को राजदान के दोस्त के रूप में जानता है ।
और यह भी कि बबलू, सुजाता और स्वीटी भी यहीं होंगे।
तो यहां रखा हुआ है इन लोगों ने इन्हें !
वे अंदर पहुंचे |
अवतार का अनुमान ठीक ही था --- छोटी सी लॉबी में सुजाता, बबलू और स्वीटी मिले ।
शक्लों से ही लग रहा था --- वे अभी-अभी सोते से जागे हैं।
“ आपकी नींद में खलल डालने के लिए माफी चाहते हैं मास्टर जी ।” अखिलेश ने कहा --- “मगर एक जरूरी बात पर डिसकस करने यहां इसी वक्त आना जरूरी था । हम अंदर वाले कमरे में हैं। आप बगैर डिस्टर्ब हुए अपने कमरों में जाकर सो सकते हैं।"
सुजाता बोली- -- “लेकिन हमें राजदान भैया से पूछना था--- आखिर यूं कैदियों की तरह यहां कब तक पड़े रहेंगे। लोग सोच रहे होंगे हम कहां गायब हो गये । इसके मां-बाप तो जरूरत से ज्यादा ही परेशान होंगे।” उसका इशारा स्वीटी की तरफ था ।
“बस एकाध दिन की बात और है, राजदान का मिशन पूरा हो जायेगा। सुबह वह खुद यहां जायेगा । आप उससे बात कर सकती हैं। वैसे, वह स्वीटी के मां-बाप को समझा चुका है।"
सुजाता चुप रह गयी ।
बाकियों में से भी कोई कुछ नहीं बोला ।
लॉबी से दो गैलरियां फूटती थीं।
एक दायीं तरफ को, दूसरी बायीं तरफ को ।
सत्य प्रकाश आदि बायीं तरफ बढ़े। अखिलेश एण्ड कंपनी - दायीं तरफ ।
एक कमरे में पहुंचे।
कमरा काफी बड़ा था ।
जरूरत का सभी सामान था वहां ।
भट्टाचार्य एक तिजोरी जैसी अलमारी की तरफ बढ़ा जो दीवार के अंदर फिक्स थी ।
केवल दरवाजा नजर आ रहा था उसका । दरवाजा लोहे का था । मजबूत | वैसा, जैसा जौहरियों की तिजोरी का होता है । जिसमें वे अपना कीमती सामान रखते हैं। दरवाजे में कोई 'की - हॉल' नहीं था ।
केवल एक हैंडिल था। गोल डायल युक्त |
अवतार देखते ही समझ गया वह 'नम्बर लॉक' तिजोरी है। भट्टाचार्य ने नम्बर डायल करके उसे खोला ।
अवतार ने एक ही नजर में देख लिया --- तिजोरी में बहुत से कागजों का एक बण्डल, कुछ ऑडियो कैसिट्स और एक वीडियो कैसिट थी ।
समझते देर न लगी उसे ---यही है वह 'खजाना' जिसकी उसे तलाश थी।
अंदर ही अंदर खुद को रोमांचित महसूस किया उसने ।
मगर ।
उसने रोमांच का एक भी लक्षण चेहरे पर नहीं उभरने दिया। पूछा--- "ये सब क्या है?”
"दिव्या, देवांश और टकरियाल के गलों के फंदे ।”
“मतलब?”
“वे लेटर्स हैं जो राजदान ने मरने से पहले समरपाल और मुझे लिखे थे । इनमें वह लम्बा लेटर भी है जिसके ज्यादातर अंश मैं तुम्हें बता चुका हूं, जिसे पढ़ने के बाद अदालत सब कुछ समझ जायेगी किसने क्या किया | अगर यह कहा जाये तो गलत नहीं होगा ---उसे पढ़ने के बाद और इस केस का - फैसला लिखने के बीच जज को किसी से कोई सवाल पूछने की जरूरत शेष नहीं रह जायेगी। पाइप पर लटके देवांश का फोटो भी है और आडियो कैसिट्स में है ---राजदान की आवाज ।”
“वीडियो कैसिट में ?”
“वह दिखाने लाये हैं तुझे ।” बताने के बाद अखिलेश ने कहा---“भट्टाचार्य, उसे वी. सी. आर. में लगा ।”
भट्टाचार्य ने तिजोरी से केसिट उठाई ।
हुक्म का पालन किया ।
सभी टी. वी. के सामने सोफा सेट पर बैठ गये ।
कमरे की लाइट ऑफ कर दी गई।
स्क्रीन पर फिल्म शुरू की गई ।
अवतार को चौंक जाना पड़ा ।
फिल्म के मुताबिक राजदान के बैडरूम में सिगार का धुवां भरा पड़ा था | सारी लाइटें ऑन थीं। इतना ज्यादा प्रकाश था वहां कि कालीन पर पड़ी सुई को भी दूर से देखा जा सकता था । राजदान सोफे पर बैठा था । जिस्म पर था --- काली- सफेद पट्टियों वाला उसका पसंदीदा गाऊन। तरोताजा था वह । देखने ही से लगता था --- कुछ ही देर
पहले नहाया है। शेव भी बनाई थी उसने । अंगुलियों बीच फंसा अभी-अभी एक सिगार सुलग रहा था । चेहरे पर वेदना सी थी --- चौंकाने वाली बात थी उसके सामने पड़ी सेन्टर टेबल पर व्हिस्की की बोतल, सोडे की बोतलें, आईस बकेट, काजू और बादाम की प्लेटें, तथा एक ऐसा गिलास जिसमें आधा पैग अभी भी था । कांच के बाकी दो गिलास खाली थे। वे उल्टे रखे हुए थे।
अचानक कमरे का दरवाजा खुला ।
हड़बड़ाये हुए से दिव्या और देवांश अंदर दाखिल हुए। उस दृश्य को देखकर ऐसे हकबकाये नजर आये कि काफी देर तक मुंह से आवाज न निकल सकी। राजदान ने ही पूछा उनसे---“पियोगे?"
“अ - आप !” देवांश के मुंह से निकला --- " भैया आप व्हिस्की पी रहे हैं?”
और ।
इसके बाद ।
टी. वी. स्क्रीन पर राजदान के अंत के वही दृश्य फिल्म की मानिन्द चलते चले गये जिन्हें मेरे पाठक 'कातिल हो तो
ऐसा में पढ़ चुके हैं !
***
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