“चियर्स।” दिन के कराब दो बजे दिव्या और देवांश के जाम टकराये ।


राजदान की लाश पोस्टमार्टम के लिए ले जाई जा चुकी थी। इस वक्त वे देवांश क कमरे में थे।


बेहद खुश ।


दिव्या ने अपने हाथ में मौजूद जाम देवांश के होठों की तरफ बढ़ाया, देवांश ने दिव्या की तरफ।


दोनों ने एक-एक घूंट भरा ।


हाथ वापस खिचे।


दिव्या ने एक सिगरेट सुलगाने के बाद धुवें का गुब्बार देवांश के चेहरे पर मारने के साथ कहा – “देखा देव, बेकार ही जरूरत से ज्यादा डर रहे थे तुम। सब कुछ कितनी आसानी से निपट गया। उसके मां-बाप तक को मानना पड़ा, हत्यारा वही है।” “हमारे को तो किसी हालत में नहीं हो सकता था यह सब ।” देवांश ने भी एक सिगरेट सुलगा ली– “सारा चक्कर ठकरियाल का है। कदम-कदम पर वही हुआ जो वह हमें पहले ही बता चुका था । खुद को पीछे रखकर, सारा केस एस. एस. पी. से खुलवाया उसने।” 


“वाकई। ठकरियाल ऐसे मामलों में खेला-खाया है।”


“इस सबके बावजूद, मूझे अभी भी उस फोटो की चिंता सताये जा रही है ।" देवांश ने कहा- -“पता नहीं किसने खींचा था उसे ।


वह अकेला फोटो हमारी अब तक की मुकम्मल कामयाबी पर पानी फेर सकता है ।” 


“मुझे पूरा विश्वास है, इस झमेले कोभी सम्भाले लेगा ठकरियाल ।” दिव्या कहती चली गई— “ऐसा विश्वास मुझे इसलिये है क्योंकि सचमुच अब यह मिशन हमारा कम, ठकरियाल का ज्यादा बन गया है। बीमे की रकम ने आंखें चौंधिया दी हैं उसकी । अब कहीं भी, किसी भी किस्म की गड़बड़ होन का मतलब है— हमारे साथ-साथ ठकरियाल का भी जेल पहुंच जाना और... ऐसा वह हरगिज नहीं होने देगा। उसके साये में हम सुरक्षित हैं।”


देवांश ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला ही था कि कमरे के ढुके हुए दरवाजे पर दस्तक हुई । 


“कौन है?” देवांश ने अक्खड़ स्वर में पूछा।


बाहर से आफताब की आवाज आई— “मैं हूं मालिक। " 


“क्या बात है?”


“डाकिया आपके नाम एक खत दे गया है।”


“खत।...मेरे नाम?” देवांश बड़बड़ाया— “मुझे किसने खत लिख दिया?”


दिव्या ने जल्दी से दोनों गिलास सोफे के पीछे छुपाये। उस वक्त वह अपनी सिगरेट एश्ट्रे में मसल रही थी जब हौले से हंसते हुए देवांश ने कहा – “अब क्या जरूरत है इस सबकी ? वह है ही नहीं जिससे आफताब शिकायत कर सकता था ।”


“फिर भी, अभी हमारे सम्बन्धों का किसी के सामने आना ठीक नहीं है । "


(यहां मैं अर्थात् वेद प्रकाश शर्मा एक छोटी सी बात स्पष्ट करने के साथ पाठकों से माफी मांगना चाहता हूं।...'कातिल हो तो ऐसा’ के अंतिम पृष्ठों में ‘शाकाहारी खंजर' के दो दृश्य दिये गये थे। पहला, बबलू की गिरफ्तारी का और दूसरा वह, जिसे इस वक्त पढ़ रहे हैं। दोनों ही दृश्यों में चेंज है । अर्थात् – कुछ बातें जो उन दृश्यों में थी, इन दृश्यों में नहीं हैं और कुछ बातें जो इन दृश्यों में हैं, उनमें नहीं थीं। फिर भी करीब-करीब मतलब एक ही है। जो भी चेंज हैं वे, वे हैं जो कथानक को विस्तार से लिखने पर स्वाभाविक रूप से ‘प्रकट’ होते है। अतः उलझें नहीं, कथानक का असली हिस्सा ये ही सीन हैं—जिन्हें आप इस वक्त पढ़ रहे हैं। यदि इस सबके कारण आपको कोई असुविधा हुई तो उसके लिये मैं क्षमा चाहता हूं ।— आपका वेद प्रकाश शर्मा )


“मैं क्या करूं साब?” बाहर से आफताब ने पूछा । देवांश ने कहा‘आजा।"


दरवाजा खुला ।


आफताब नजर आया।


उसके हाथ में एक रजिस्टर्ड लेटर था ।


मातमी चेहरा बनाये देवांश ने लेटर लिया । उधर, दिव्या भी यूं दिख रही थी जैसे मारे गम के बुरा हाल हो । आफताब ने दोनों पर एक-एक नजर डाली और लेटर देने के बाद बगैर कुछ कहे कमरे से चला गया। उसके जाते ही दिव्या के जिस्म में मानो बिजली भर गई । झपटकर सोफे के पीछे रखे दोनों गिलास वापस उठाये । एक खुद सम्भाला, दूसरा देवांश को बोली – “किसका लेटर है ?” तब तक देवांश लिफाफा फाड़कर लेटर निकाल चुका था। तहें खोलते ही चौंक पड़ा वह मुंह से निकला – “यह तो राजदान का है।” 


“राजदान का?” कहने के साथ दिव्या देवांश के हाथ में मौजूद लेटर पर झुक गई। 


राजदान के लेटर पैड का कागज था वह । राईटिंग भी राजदान की ही थी । देवांश के एक हाथ में लेटर था, दूसरे में व्हिस्की का गिलास। दोनों हाथ जूड़ी के मरीज के हाथों की मानिन्द कांप रहे थे । उसने सबसे ऊपर लिखी तारीख पढ़ते हुए कहा – “यह लेटर उसने अट्ठाईस अगस्त को लिखा था।” 


“ल-लिखा क्या है?” देवांश ने पढ़ना शुरू किया।


“छोटे!


मैं अच्छी तरह जान चुका हूं तुम दोनों कितने हरामजादे हो।


उन्तीस तारीख की रात में मैं जो करने वाला हूं, उसके बाद पांच करोड़ की खातिर जो तुम करोगे—उसे मैं आज ही अच्छी तरह जानता हूं। मेरा दावा है—मेरी हत्या के इल्जाम में तुम बबलू को फंसाओगे। और बच्चे, यदि तुमने ऐसा किया तो समझ लो—मेरे जाल में पूरी तरह जकड़े जा चुके हो । याद रहे, मैं वो खंजर बन चुका हूं जो तुम्हें मरने नहीं देगा बल्कि...खून का एक कतरा भी नहीं बहने देगा तुम्हारे जिस्मों से तुम्हारा खून ही बहाना होता — मार ही डालना होता तुम्हें, तो मरे पास बहुत रास्ते थे मगर मुझे तो तुम्हारी जिन्दगी की ही मौत बना देना हैं खून की एक भी बूंद बहाये बगैर तुम्हें तड़पा-तड़पाकर मार डालना ही मेरा मकसद है और तुम देखोगे, मरने के बाद बहुत ही खूबसूरती से अंजाम दूंगा मैं अपने मिशन को ।


तुम्हारा राजदान ।”


पूरा पत्र पढ़ते ही देवांश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। गिलास, हाथ से फिसला । सेन्टर टेबल पर गिरा और चकनाचूर हो गया । उधर, दिव्या पूरी की पूरी यूं चकराई थी जैसे किसी ने कनपटी की उस नस पर कराटे मारी हो जिस पर चोट लगते ही इंसान बेहोशी के गर्त में डूबता चला जाता है।


‘धाड़ से’ कमरे में बिछे कीमती कालीन पर जा गिरी वह ।


********


-“मैंने ही मारा है चाचू को।" ऐसा सुनकर ठकरियाल को अपनी खोपड़ी ‘भक्क' से उड़ गई महसूस हुई। “हां! मैं कुबूल करता हूं।" बबलू ने कहा


एक विस्फोटक सवाल बड़े ही जबरदस्त धमाके के साथ उसके जहन के परखच्चे उड़ा गया कि जो बबलू ने किया नहीं, उसे वह कुबूल क्यों कर रहा हैं?


करने को तो पुलिस टॉर्चर रूम में बड़े से बड़ा अपराधी भी वह कुबूल कर लेता है जो उसने न किया हो मगर तब, जब उसे 'हवाई जहाज' बना दिया जाये। तब, जब मार से बचने के लिए उसके पास कोई चारा न बचे।


परन्तु ।


बबलू को तो अभी तक एक चांटा भी नहीं मारा गया था।


हाथ तक नहीं लगाया गया था उसे ।


बस पहला ही सवाल किया था रणवीर राणा ने। यह कि– “अब बोलो, हकीकत क्या है?”... जवाब में बबलू ने उपरोक्त वाक्य कह दिया ।


ठकरियाल ने बुरी तरह चौंककर बबलू कील तरफ देखा था । और... उस वक्त तो उसके होश ही फाख्ता हो गये जब बबलू के गुलाबी होठों पर एक खास मुस्कान चिपकी देखी । वह मुस्कान ऐसी थी जैसे ठकरियाल से पूछ रही हो - -'कहो, कैसी रही?' बबलू की नीली आंखों में मौजूद चमक साफ बता रही थी — वह जानता है, उसके इस झूठ से अंदर ही अंदर ठकरियाल की क्या हालत हो गयी है?


खेल आखिर था क्या, यह जानने का ठकरियाल के पास फिलहाल कोई रास्ता नहीं था।


रणवीर राणा मौजूद न होता तो वह एक ही सवाल पूछता बबलू से | यह कि – 'इस झूठ को आखिर वह क्यों कुबूल कर रहा है?; इस सवाल का जवाब पाने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा देता परन्तु इस वक्त... कुछ भी तो नहीं था उसके हाथ में। काफी लम्बी खामोशी के बाद रणवीर राणा ने अगला सवाल किया – “ऐसा क्यों किया तुमने?”


“गहनों की खातिर।” कहने के साथ उसने होठों पर जहरीली मुस्कान लिए कनखियों से ठकरियाल की तरफ देखा। ठकरियाल का दिमाग हवा हुआ जा रहा था ।


बहुत बड़ी पहेली बन गया था बबलू उसके लिए।


उसका जिस्म ठकरियाल को सवालिया निशान में तब्दील होता सा लगा । यह स्थिति तभी से थी, जब से बबलू अपने घर उसके कान में फुसफुसाया था।


“पूरी बात बताओ।” रणवीर राणा ने कहा- -“जब तुम वहां पहुंचे तो राजदान साहब क्या कर रहे थे? पहुंचे कैसे और...किन हालात में खून किया।?”


“एस. एस. पी. साहब।” एकाएक बबलू गिड़गिड़ा उठा -“हकीकत मैं आपको बता तो दूंगा मगर प्लीज, मेरे पापा को मत बताना। बहुत दुख होगा उन्हें ।”


“ठीक है। कोशिश करेंगे। हकीकत बताओ।”


एक बार फिर बबलू ने ठकरियाल की तरफ रहस्यमय मुस्कान उछाली और रणवीर राणा की नजरों में खुद को दीन-हीन दर्शाता कहता चला गया -“जिस फ्लैट में हम रहते हैं, उसे पापा ने पन्द्रह लाख रुपये में खरीदा था। दस लाख का इन्तजाम उन्होंने खुद किया था, पांच लाख एक फाईनेंसर से ब्याज पर लिये थे। ब्याज तो पापा महीने के महीने चुकाते रहते हैं मगर मूल में से कभी कुछ नहीं दे पाये। करीब हफ्ते भर पहले फाईनेंसर हमारे घर आया। मेरे सामने उसने पापा से कहा- -' एक महीने के अंदर मेरे पांच लाख नहीं मिले तो घर का सारा सामान उठाकर बाहर फैंक दूंगा।' पापा-मम्मी बहुत चिंतित हो उठे। हालांकि न उन्होंने मुझसे कुछ कहा न मैंने उनसे। परन्तु सोचा–चाचू से मांगता मगर हिम्मत नहीं पड़ी। समय-समय पर, नये-नये बहानों के साथ चाचू से छोटी-मोटी रकम मांग लेना अलग बात थी, एक साथ पांच लाख मांगना अलग।”


ठकरियाल हतप्रभ ।


जिस तरह बबलू ने सब कुछ धाराप्रवाह बताना शुरू किया था उससे जाहिर था— जो वह कह रहा था, पूर्वनिर्धारित था। तो क्या उसे मालूम था, हालात ये होंगे?


पुलिस उसे पकड़ेगी?


राजदान की हत्या का इल्जाम लगायेगी और ... वह यह सब कहेगा? पता था तो, क्यों— कैसे?


चक्कर क्या था ये?


ठकरियाल ने जितना सोचा, उलझता चला गया ।


कुछ समझ में नहीं आकर दे रहा था । उधर रणवीर राणा ने बबलू से अगला सवाल किया – “जब तुम राजदान साहब से पांच लाख मांगने की हिम्मत न जुटा सके तो क्या किया?”


“बात कल दोपर की है।" बबलू ने कहा-“जब मैं रोज की तरह उनके पास गया तो देवांश अंकल और दिव्या आंटी नहीं थे । चाचू एक रिवॉल्वर की सफाई कर रहे थे । रिवाल्वर को देखकर मैं डर गया। अनेक सवाल किये चाचू से उसके बारे में। मेरे सवालों के जवाब में चाचू ने कहा- 'ये रिवाल्वर मेरा ही है। बहुत दिन से बैंक लॉकर में रखा था। दो दिन पहले ही निकालकर लाया हूं। सफाई इसलिये कर रहा था। क्योंकि समय-समय पर होती रहनी चाहिये वरना जाम हो जाता है ।' 


मैंने जब पूछा – 'चाचू, टी. वी. और पिक्चरों में जो रिवाल्वर दिखाये जाते हैं उनकी नाल तो इतनी लम्बी नहीं होती, फिर इसकी इतनी लम्बी क्यों है?' चाचू ने बताया—‘ये साईलेंसर है जो नाल पर अलग से लगाया जाता है। इसे लगाकर फायर किया जाये तो उतनी आवाज नहीं होती जो लोगों को सुनाई दे सके।' फिर जाने क्यों वे भावुक हो गये । कहने लगे – 'कभी-कभी दिल चाहता है, इससे खुद को खत्म कर लूं । परेशान हो गया हूं मैं अपनी बीमारी से। मगर, आत्महत्या करना भी आसान नहीं है। कोशिश के बावजूद कभी हिम्मत नहीं जूटा सका।' मैं चाचू की बातें सुनकर डर गया। रिवाल्वर छीन लिया उनसे। कहा— 'खबरदार चाचू, फिर कभी ऐसी बातें मत करना ।' चाचू हंसने लगे। बोले- -'यही सोचकर तो नहीं कर पाता मैं ऐसा कि तुझ पर, देवांश पर और दिव्या पर क्या गुजरेगी?' फिर उन्होंने मुझसे रिवाल्वर को लॉकर में रखने के लिए कहा। उनक हुक्म का पालन करने के लिए लॉकर खोला तो चकाचौंध रह गया। उसमें जेवर थे। दिमाग में ख्याल उभरा — 'ये जेवर हाथ लग जाये तो फाईनेंसर से हमेशा के लिये छुटकारा पाया जा सकता है।' रिवाल्वर उसमे रखकर मैंने लॉकर बंद जरूर कर दिया परन्तु रह-रहकर जेवर ही जहन की आंखों के सामने चकरा रहे थे। उसके बाद — मैं चाचू से इधर-उधर की बातें जरूर कर रहा था। जवाब भी दे रहा था चाचू के सवालों का परन्तु दिमाग उन बातों में नहीं था । लगातार यही सोच रहा था— -'जेवरों पर कैसे हाथ साफ किया जाये?' यदि यह कहूं— मैं उसी समय स्कीम चुका था तो गलत नहीं होगा। तभी तो चाचू से कहा—' –'चाचू, मैं तुम्हें अपनी फैमिली के बारे में एक बहुत ही गुप्त बात बताना चहता हूं मगर इस वक्त नहीं बता सकता । सबसे छुपकर रात के किसी वक्त आपके पास आऊंगा । आप अपने बाथरूम की लॉन में खुलने वाली खिड़की खोलकर रखना।' चाचू ने काफी कहा – ‘अभी बता न क्या बात है?’ मुझे न बतानी थी न बताई। तय हो गया वे रात को खिड़की खुली रखेंगे।” -


" तो तुम इस तरह रात को उनके बैडरूम में पहुंचे?” राणा ने टोका ।


बबलू ने अफसोसनाक स्वर में कहा – -“हां ।”


“कितने बजे?”


“साढ़े बारह बजे थे।”


“खिड़की खुली मिली ?”


“हां ।”


“उसके बाद?”


“चाचू व्हिस्की पी रहे थे। मैं चौंका। पहले कभी उन्हें ऐसा करते नहीं देखा था। इस बारे में सवाल किये तो वे टाल गये। एक ही धुन लगी हुई थी उन्हें। बार-बार पूछने लगे – 'क्या बताने वाला था तू अपनी फैमिली के बारे में?' तब, मैंने उन्हें फाईनेंसर वाली प्रॉब्लम बता दी । कहा- -‘चाचू, पांच लाख मिल जायें तो मम्मी-पापा की टेंशन दूर हो जाये।' यह बात मैंने यह सोचकर कही थी—अगर चाचू सीधे रास्ते से मदद दे देते हैं तो मुझे वह नहीं करना पड़ेगा जिसे सोच-सोचकर सारे दिन डरता रहा था। लेकिन शायद भगवान को ऐसा मंजूर नहीं था। तभी तो चाचू ने कहा – 'हमारे पास पैसे होते तो तेरी मदद जरूर करते मगर क्या बतायें इस बीमारी ने तो हमें ही कर्जे में डूबो दिया है। मैं समझ चुका था— सीधी अंगुली से घी निकलने वाला नहीं है। अब अपने प्लान पर काम करना मेरी मजबूरी थी । उसके लिये जरूरी था— उनके और अपने बीच के वातावरण को सामान्य बनाये रखना। मैंने कहा – 'कोई बात नहीं चाचू, एक बार तुम ठीक हो जाओ तो सब ठीक हो जायेगा । तुम अपनी प्रॉब्लम भी हल कर लोगे और मेरी भी।' बातें चलती रहीं, मैं मौके की तलाश मे था और जल्दी ही मौका मिल भी गया। चाचू ने टॉयलेट की इच्छा व्यक्त की। मैंने सहारा देकर उन्हें बाथरूम के दरवाजे तक पहुंचाया। उधर उन्होंने बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद किया इधर, मेरे जिस्म में मानों बिजली भर गई । मालूम ही था —लॉकर की चाबी राईटिंग टेबल की दराज में है। चाचू के टॉयलेट से लौटने तक मैं न केवल लॉकर को खाली कर चुका था बल्कि उसे वापस बंद करने के बाद पेन्टिंग भी टांग चुका था। चाचू को बाथरूम के दरवाजे से लाकर मैंने फिर सोफा चेयर पर बैठा दिया।”


बबलू सांस लेने के लिये रुका तो राणा ने सवाल किया – “जब जेवर तुम्हारे हाथ लग चुके थे तो राजदान साहब का मर्डर करने की क्या जरूरत थी? वे यह भी नहीं जान सके थे तुम उनक बाथरूम मे रहते लॉकर खाली कर चुके हो।” 


“उस वक्त नहीं जान सके थे तो क्या हुआ?” बबलू के हर लफ्ज से जाहिर था जो भी कह रहा है, पूरी तरह पूर्वनिर्धारित था— “बाद में जब जेवर और रिवाल्वर गायब पाते तो समझ जाते उन्हें मैंने ही गायब किया है। उस अवस्था में मेरा पकड़ा जाना निश्चित था।” 


“तो?”


“सब कुछ करके साफ बच निकल जाने का एक ही रास्ता था— चाचू का खात्मा । उसके बाद कोई गवाह नहीं था जो बता सकता कि मैं रात के वक्त वहां आया था | मेरी प्लानिंग के मुताबिक चाचू की लाश ऐसी अवस्था में पाई जाने वाली थी जिसे देखकर लोग यही समझते चाचू ने सुसाइड कर ली है। इसलिए, पुनः कुछ इधर उधर की बातचीत के बाद मैंने अपना दायां हाथ जेब में डाला । अचानक चाचू से कहा- -‘अरे, ये आपके दांतों में क्या हुआ चाचू?” चाचू ने पूछा— ‘क्या हुआ ?” मैंने कहा— जरा मुंह खोलना ।' और ... उन्हें स्वप्न तक में उम्मीद नहीं थी मैं क्या करने वाला हूं अतः जरा भी संदिग्ध हुए बगैर मुंह खोल दिया। मैंने फुर्ती के साथ जेब से रिवाल्वर निकाला। इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते, बिजली की फुर्ती से साईलेंसर सहित नाल उनके मुंह में घुसेड़ दी। उन्होंने तेजी से अपने दोनों हाथों से रिवाल्वर हटा लिया। पलक झपकते ही चाचू का खेल खत्म हो चुका था । खून से लथपथ उनकी लाश सोफा चेयर पर मेरे सामने पड़ी थी।”


“हत्या का यह तरीका तुम्हें कैसे सूझा ? ”


"टी. वी. सीरियल में देखा था । ”


“मतलब?”


“उस सीरियल में एक करेक्टर ने रिवाल्वर की नाल अपने मुंह में डालकर सुसाईड की थी। मैंने यही सोचकर इस ढंग से मर्डर करने के बारे में सोचा कि इस पोजीशन में मिली लाश को देखकर सब यही सोचेंगे चाचू ने अपी बीमारी से तंग आकर सुसाईड कर ली है। ऐसा वे करना भी चाहते थे।”


“उसके बाद?”


“वापस उसी रास्ते से आकर अपने कमरे में सो गया ।”


बबलू ने पुनः एक मुस्कान ठकरियाल की तरफ उछाली – “पूरा विश्वास था, लोग उसे आत्महत्या ही समझेंगे । हत्यारे के रूप में जब किसी की खोज ही नहीं होने वाली है तो मेरे पकड़े जाने का सवाल ही नहीं उठता । मगर जाने कैसे, आप लोग मुझ तक पहुंच गये। यह सब कैसे हुआ, मेरे लिये अभी भी रहस्य है।”


“यह नहीं सोचा तुमने—जब दिव्या और देवांश लॉकर से जेवर गायब पायेंगे और यह बात पुलिस को बतायेंगे तो पुलिस समझ जायेगी यह सुसाईड नहीं मर्डर है ?”


“क्या मैं इसीलिये पकड़ा गया?”


“सवाल मत करो। केवल जवाब दो - जब तुमने दूसरी बारीक बातें सोच लीं तो इस बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया?” 


“मैंने सोचा था—देवांश अंकल और दिव्या आंटी जेवर गायब होने वाली बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देंगे। सोचेंगे—चाचू ने खर्च कर दिये होंगे। क्या ऐसा नहीं हुआ? क्या इसकी जगह ये हुआ कि...


रणवीर राणा ने अचानक बबलू की बात काटकर कहा - " -“इंस्पैक्टर ।”


“य-यस सर।” बुरी तरह चौंकने के कारण ठकरियाल हड़बड़ा गया।


“हमने सोचा था, यह काम किसी चालाक हत्यारे का है मगर नहीं - -वह सोच गलत थी ।” राणा कहता चला गया“असल में इसने जो चालाकी बरती वह उतनी ही थी जितनी टी. वी. सीरियल में देखी थी। उसके इधर-उधर बेवकूफियां ही बेवकूफियां की हैं इसने।


जैसे इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं दे पाया कि घटनास्थल पर फुट स्टैप्स भी छूटे होंगे । हमें पूरा विश्वास है – रिवाल्वर से ही नहीं, कमरे में दूसरी जगहों से भी इसकी अंगुलियों के निशान मिल जायेंगे।”


“यस सर ।” इसके अलावा ठकरियाल कह भी क्या सकता था ।


“हमरे प्वाइंट ऑफ व्यू से पूछताछ समाप्त हो चुकी है। तुम कुछ पूछना चाहो तो पूछ सकते हो ।”


ठकरियाल की बुद्धि ऐसी कुंद हुई कि कुछ समझ में ही आकर नहीं दे रहा था।


देखा जाये तो वह, दिव्या और देवांश भी वही सिद्ध करना चाहते थे जो हो रहा था, यानी राजदान का अंत सुसाईड नहीं मर्डर था। मर्डर भी वह, जिसे बबलू ने किया था ।


यही साबित करने के लिए तो इतने पापड़ बेले थे उन्होंने ।


लम्बा-चौड़ा प्लान बनाया था।


क्योंकि ।


इसी सूरत में बीमा कंपनी से पांच करोड़ मिलने वाले थे। लेकिन अब ।


जबकि यही साबित हो रहा था ।


बल्कि हो चुका था।


तो।


तिरपन कांप रहे थे उनके ।


लग रहा था—कहीं कोई गड़बड़ी है ।


ऐसा केवल इसलिये था क्योंकि जो चार्ज वे बबलू पर लगाना चाहता थे। जिस जाल में फंसाने के लिए उन्होंने अपनी स्कीम बनाई थी। बबलू वही सब खुद एक्सेप्ट कर रहा था । ठीक इस तरह जैसे वह भी उन्हीं से मिला हुआ हो। उन्होंने तो यह कल्पना की थी कि बबलू चीखता रहेगा, चिल्लाता रहेगा । बार-बार कहता रहेगा उसने कुछ नहीं किया और वे साबित कर देंगे — सब कुछ उसी ने किया ।


किस्सा खत्म।


हो हालांकि वही रहा था ।


परन्तु!


बबलू की स्वीकारोक्ति के साथ रहा था।


और यही थी उलझन।


बहुत ही बड़ा पेंच था यह ।


आखिर क्यों वह उस सबको स्वीकार कर रहा है ?


जिसका दूर-दूर तक उससे कोई वास्ता नहीं है। केवल स्वीकार ही नहीं कर रहा। पूरी काहनी सुना रहा है।


सुना चुका है। क्यों?


क्या चाहता है वह ?


खुद ही को झूठ-झूठ किसी का हत्यारा साबित करके कोई आखिर क्या चाह सकता है? क्या फायदा हो सकता है उसे ?


ठकरियाल ने खूब सोचा। बात दिमाग में फिट न हो सकी।


और फिर, जो कहानी बबलू ने सुनाई थी।


उसमें कहीं भी, किसी भी तो किस्म का 'लोच' नहीं था ।


साफ जाहिर था—कहानी के एक-एक प्वाइंट पर पहले ही काफी बारीकी से सोच लिया गया था। बबलू ने जो भी कहा – बहुत ही आत्मविश्वास से कहा था ।


ठकरियाल को लगा -बात उसकी समझ में भले ही न आ रही हो लेकिन — अंजाम जो भी निकलने वाला है, उसके 'फेवर' में नहीं होगा ।


खुद को किसी अनजाने जाल में फंस गया महसूस किया उसने। जाने क्यों, लगने लगा— - बबलू को झूठा सिद्ध करना उसके हित में है।


थी न आश्चर्य की बात? 


जो सिद्ध करने के मिशन पर वे काम कर रहे थे। जब वही, लगभग सिद्ध हो चुका था तो ठकरियाल यह सिद्ध करने पर आमादा हो गया कि बबलू ने जो कहा, वह झूठ है। वह राजदान का हत्यारा नहीं है । तभी तो बबलू से सवाल किया उसने– “तुम्हें पूरा यकीन है, राजदान की हत्या तुम्हीं ने की है?”


बड़ी ही जालिम मुस्कान उभरी बबलू के होठों पर।


वह जो ठकरियाल के दिल और दिमाग, दोनों को चीरती आकाशीय बिजली की मानिन्द अंतर में उतरती चली गई। 


“क्या अब भी आपको शक है इंस्पैक्टर अंकल ?” उस मुस्कान के साथ बबलू ने कहा।"


“मुझे लगता है तुम कोई खेल, खेल रहे हो?”


“इंस्पैक्टर।” रणवीर राणा कह उठा- -“हो क्या गया है तुम्हें ? कैसे अनाप-शनाप बातें कर रहे हो बिल्कुल उल्टी बातें कर रहे हो जो एक पुलिस इंस्पैक्टर को नहीं करनी चाहियें। पूरे सुबूत मौजूद हैं इसके खिलाफ । खुद बता चुका है मर्डर किस तरह किया। केस एक तरह से हल हो चुका है जोकि हम पुलिस वालों का लक्ष्य होता । पर एक तुम हो, जाने क्यों झूठा साबित करना चाहते हो इसे । आखिर किस लक्ष्य काम कर रहे हो तुम?


ठकरियाल को ठीक से सूझा नहीं राणा को क्या जवाब दे ?


सूझता तो तब जब उसे खुद अपना लक्ष्य मालूम होता ।


सचमुच उस समय ठकरियाल समझ नहीं पा रहा था उसका लक्ष्य क्या होना चाहिए।


बबलू को राजदान का हत्यारा साबित करना या बेकुसूर ठहराना।


रणवीर राणा के सवालों का जवाब देना था । सो, यूं बोला— “सर, मैं असल में इसके द्वारा इतनी बड़ी घटना को इतनी आसानी से कुबूल करने के कारण उलझन में फंस गया हूं। बल्कि हैरान हूं। यहां लाने के बाद अभी हमने इसके साथ जरा भी तो सख्ती नहीं की और ये है कि सब कुछ उगलता चला गया।... आखिर क्यों?”


“जवाब मेरे पास है।” बबलू कह उठा । 


“तुम्हारे पास?”


वह रहस्यमय मुस्कान के साथ बोला— “जब घटनास्थल से मेरे जूतों के निशान मिल गये। मेरे स्कूल बैग से आप लोगों ने गहने बरामद कर लिये तो रह ही क्या ? इतना समझदार तो मैं हूं— इन दोनों सुबूतों के बाद मैं चाहे जो कहता रहता । तुम लोगों को यकीन आने का सवाल ही नहीं उठता | झूठ बोलता तो पिटाई होती । तब सच बोलना पड़ता । उससे बेहतर, पहले ही सच बोल दिया है।” 


ठकरियाल कुछ कह नहीं सका । इस तरह घूरता रह गया बबलू नाम के उस चालाक लड़के को जैसे कच्चा चबा जोगा। 


“सीधी बात बताओ इंस्पैक्टर ।” राणा बोला— “इसने जो कहा, वह तुम्हें झूठ लग रहा है या सच?”


कैसे कह देता ठकरियाल कि जो सच लग रहा है, जिसके फेवर में मुकम्मल सुबूत हैं- - असल में वह झूठ है । वह झूठ जिसकी बुनियाद खुद उसी ने रखी थी । सो कहना पड़ा — “लग तो सच ही रहा है ।” 


“किस्सा खत्म। फिर कहां उलझे हुए हो तुम?”


“सुबूत भी तो चाहियें सर ।” ”


“कैसे सुबूत ?


“जिनसे इसकी कहानी कोर्ट में सच साबित हो सकें।”


“फुट स्टैप्स हैं। गहने इसके स्कूल बैग से बरामद हुए हैं। यह सब पर्याप्त नहीं लगते तुम्हें ?” 


“फिर भी सर ।” ठकरियाल ने कहा- -“अगर इसने राजदान साहब को इतने नजदीक से गोली मारी थी तो लिबास पर उनके खून के छींटे होने चाहिए थे।”


राणा से पहले बबलू कह उठा — “उस वक्त मैंने दूसरे कपड़े पहन रखे थे।” —


एक बार फिर झटका लगा ठकरियाल को |


नन्हें शैतान के पास मानों उसके हर सवाल का जवाब था।


ठकरियाल को लगा–बबलू सोलह साल का जरूर है लेकिन इससे बड़े शातिर से उसका पाला पहले कभी नहीं पड़ा। वह पूरी तरह आमादा था खुद को फंसाने पर।


खुद को राजदान का हत्यारा साबित करने के लिये हाथ धोकर पीछे पड़ गया था वह ।


क्यों?


ऐसा क्यों कर रहा था बबलू? चाल क्या थी ये?


आखिर क्या फायदा होने वाला था उसे ?


लाख दिमाग खपाने के बावजूद जब न समझ सका तो पूछा – “कहां हैं वे कपड़े जो तुमने कत्ल के वक़्त पहन रखे थे?”


"मेरे कमरे में।”


“मतलब?”


“उसी कमरे में जिससे आपने मुझे गिरफ्तार किया है ।” बबलू की रग-रग से चालाकी झलक रही थी— “असल में, जेवर हासिल करने बाद आपने मेरे कमरे की और तलाशी लेने की जरूरत ही नहीं समझी। समझते, तो मेरे बैड के नीचे से वे कपड़े भी बरामद कर लेते जो अभी-भी चाचू के खून से सने, वहीं रखे होंगे।”


बबलू की बात सुनकर ठकरियाल को ऐसा लगा जैसे एक साथ सैकड़ों शैतान लड़के मिलकर जोर-जोर से सीटियां बजा रहे हों । खुद को राजदान का हत्यारा साबित करने में किसी किस्म की कोताही नहीं बरत रहा था वह ।


वह जो ठकरियाल को इस दुनियां का सबसे आश्चर्यजनक लड़का लगा।