फिर उठकर मैं दोबारा भागने लगा। भागते-भागते मैं एक खंभे से टकरा गया और कुछ देर वहीं पड़ा हुआ दर्द से छटपटाता रहा। पर जल्दी ही उठ गया और कहने लगा कि बाबा के पास जाना है। उसके जलने से पहले मुझे और तेज भागना चाहिए, नहीं तो वो बेचारी जल जाएगी। मैंने एक में ट्रो स्टेशन देखा, जिस पर लिखा था-घिटोरनी। मुझे खयाल आया कि अभी यहीं तक पहुँचा हूँ, मुझे जल्दी करनी चाहिए। वो मर गई, वो मर गई, वो मर गई। कभी मैं आँखें खोलता तो कभी आँखें बंद करके भागता। करीब मैं एक घंटा भागा। अब मेरे अंदर भागने की शक्ति ही नहीं बची थी। मैं धीरे-धीरे चलने लगा। मेरे पैरों में कंकड़-पत्थर से घाव हो गए थे। मैं चल ही रहा था कि सोचा किसी से लिफ्ट ही ले लूँ। सामने ही लाल बत्ती थी जहाँ पर गाड़ि‍याँ खड़ी थी। मैं जल्दी से वहाँ गया और एक कार वाले से कहा, “भईया सोहना जाओगे? मुझे ले चलो।” 

“चल पागल, भाग यहाँ से।” उसने मुझे झिड़क दिया। 

“भईया बहुत जरूरी है। मुझे सोहना जाना है, मेरी निधि मर गई है उसे जिंदा करना है।” ये सुनकर कार वाले ने शीशा चढ़ा लिया और अपनी गाड़ी आगे लेकर चला गया।

एक दूसरे कार वाले से मैंने कहा, “भईया मुझे सोहना जाना है, ले चलोगे? मेरी गर्लफ्रेंड मर गई है, उसे जिंदा करना है जलाने से पहले।” 

वो चिल्लाया, “चल पागल भाग यहाँ से! मरकर भी कोई जिंदा होता है? किसी और को बेवकूफ बना।” 

मेरे दिमाग में आया कि वो जिंदा नहीं हो सकती। मर गई है वो मर गई है। ये सोचकर मैं हँसने लगा। हँसते-हँसते मैं दोबारा रोने लगा। रोते-हँसते मुझे जल्दी करनी है और जल्दी ही सोहना पहुँचना है। मैं तेज-तेज फिर से भागने लगा और कोई आधा घंटा भागता रहा। तभी एक गाड़ी से मैं टकरा गया। गाड़ी वाला टक्कर मारने के बाद वहाँ से भाग गया।

कुछ लोग जो रोड पर थे मेरी तरफ भागे। उन्होंने मुझे उठाया। मैंने घबराते हुए कहा कि मुझे सोहना जाना है। मेरे पैरों से खून निकल रहे थे। मुझे कई गुम चोट भी लगी थी। उनमें एक ने कहा, “पानी पी लो।” 

मैंने कहा, “निधि मर गई! मर गई! मुझे बाबा के पास जाना है। वो उसे ठीक कर देंगे।” 

एक आदमी ने कहा, “पागल लगता है। इसे ऐसी चोट लगी है पर इसे फर्क ही नहीं पड़ रहा है।” 

मैं उनकी सुने बगैर उठा और वहाँ से फिर भागने लगा। चोट के कारण पाँव में दर्द हो रहा था इसलिए धीरे-धीरे ही भाग रहा था। रास्ते में एक और में ट्रो स्टेशन पड़ा। उस पर लिखा था- एमजी रोड। मेरे दिमाग में आया कि मैं गुरुग्राम में हूँ और यहाँ से सोहना तीस किलोमीटर ही होगा। पर मुझे सोहना की सड़क का पता नहीं चल रहा था। मैं रास्ते में ही बिखरकर चिल्लाने लगा। 

“भगवान के लिए कोई मुझे सोहना पहुँचा दो। कोई तो सोहना पहुँचा दो मुझे।” पर किसी ने भी मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया। मैंने एक लड़के से कहा कि सोहने का रास्ता कहाँ है तो उसने मुझे हाथ के इशारे से रास्ता बता दिया। मैं उसी ओर भागने लगा। भागते-गिरते मेरे कपड़े फट गए थे। पैरो में न जूते थे न चप्पल। मेरे घुटनों से खून बह रहा था पर मैं भाग रहा था। ये सोचकर तेज भागने लगा कि अभी तीस किलोमीटर और जाना है। मेरे मन ने कहा कि जल्दी ही पहुँचूँगा। 

इस बीच सड़क पर मैं एक गाड़ी से फिर से टकराया। टक्कर मारकर वो गाड़ी वाला भी वहाँ से तेजी से भाग गया। मेरे हाथ से भी खून निकलने लगा। मैंने दोनों हाथ को देखा। चोट के कारण तेज खून की धारा बह रही थी। मेरी आस्तीन भी फट गई। खुद को सँभालने के लिए मैं थोड़ी देर वहाँ रुका। 

मैं बस यही सोच रहा था कि बस कुछ देर और भागना है। मेरा गला सूख रहा था। मुझे मेरी प्यास ने रोक दिया। मुझे बड़ी ही देर से प्यास लगी थी पर अब बिना पानी के नहीं भाग सकता था। हाँफते हुए मैंने एक साइकिल वाले से कहा, “भाई पानी-पानी।” 

उसने कहा, “कुछ ही दूरी पर एक पंप है, तुम वहाँ से पानी पी सकते हो।” 

मैं भाग के उस पम्प पर गया और वहाँ पानी पीने लगा। एक लड़का भी वहीं पानी पी रहा था। उसने कहा, “ये चोट कैसे लगी?” 

मैंने कहा, “निधि को जिंदा करना है, वो मर गई है।” इसके सिवा मैं कुछ नहीं बोल पाया।

मौका देखकर वो लड़का मुझसे फोन छीनकर ले गया। मैंने पर उस पर ध्यान नहीं दिया और खुद से कहा कि कुछ देर भागना है, उसे बाबाजी ठीक कर देंगे। मेरे हाथ-पैरों में असहनीय दर्द होने लगा था। जाने कैसे मैं बर्दाश्त कर रहा था। वहाँ उस रास्ते पर ट्रैफिक कम था इसलिए किसी से टकराने का सवाल नहीं था। आस-पास खेत थे। ठंड ज्यादा थी और गाड़ियाँ तेज चल रही थी। टक्कर के चांस कम थे पर टक्कर हो जाए तो ‘राम राम सत्य है’ हो जाए। मैं कभी तेज तो कभी धीरे भागता रहा, दौड़ता रहा।

कई किलोमीटर के दौड़ने के बाद मुझे एक साइन बोर्ड दिखा जिस पर लिखा था- सोहना, पाँच किलोमीटर। बोर्ड देखकर मुझे जो शांति मिली, बता नहीं सकता। मैंने अब अपनी गति और बढ़ा दी। कुछ ही दूर बढ़ा था कि तेज बारिश होने लगी। बारिश की बूँदें मेरे ऊपर पड़ने लगी। पहले ही ठंडे दिन थे, बारिश ने ठंड और बढ़ा दी। मेरे खुले हुए घाव से खून बहना ज्यादा हो गया। मेरे कपड़ों में खून ज्यादा दिखने लगा। मेरे सारे कपड़े खून से सन चुके थे।

मैं दौड़ता रहा। एक ऐसे विश्वास के साथ कि निधि जिंदा हो जाएगी। उसे बाबाजी जीवित कर देंगे। अब मुझे घाव से दर्द ज्यादा हो रहा था पर मैं तो इससे भी ज्यादा दर्द बर्दाश्त कर सकता था। मुझे तो बस निधि को जिंदा करना था। सोचा कि बारिश के कारण निधि के शरीर में आग नहीं लगेगी, ये तो अच्छा हुआ उसकी बॉडी नहीं जलेगी।

मैं खून के बहाव से भी नहीं रुका, बस भाग रहा था। मैंने एक और साइन बोर्ड देखा- सोहना, तीन किलोमीटर। मेरी आत्मा में जान आ गई। मैं भागता रहा। कई गाँव भी रास्ते में पड़े जहाँ लोगों ने मुझे खून से सना भागता देखा मगर वो लोग देखते ही मुझसे दूर हो जाते थे। ना ही किसी ने गाड़ी रोकी, न कोई मदद की। मैं दौड़ ही रहा था कि ‍मेरे सामने से तेज रफ्तार से एक गाड़ी आने लगी। मैं उससे बचने के चक्कर में रोड से थोड़ा पीछे हो गया कि‍ तभी किसी ऑटो वाले ने मुझे पीछे से ठोक दिया। मैं धम से गिर गया। कुछ लोगों ने, जो उस में सवार थे, मुझे उठाया। मेरे शरीर में जान नहीं थी। मैं थककर चूर हो गया था। उनमें से एक ने कहा, “आपको हॉस्पिटल छोड़ दें?” पर मेरे अंदर से एक ही शब्द निकला- “निधि।”

थोड़ी देर बाद ही हिम्मत करके मैं फिर वहाँ से आगे बढ़ गया। अब मैं दौड़ने से हार नहीं मान सकता था। मैंने सोचा, थोड़ी दूर और सोहना आ ही गया है और दौड़ता रहा। और दौड़ते-दौड़ते गिर गया और बेहोश हो गया।

जब मुझे होश आया तो पुलिस और लोगों का जमघट मेरे आस-पास था। कुछ ने कहा, “इसने आँखें खोल दी है, इसका मतलब ये बच गया।”

तब मैं रोड के साइड में पड़ा था। पुलिस शायद एंबुलेंस का इंतजार कर रही थी। एक बार तो मुझे याद नहीं आया कि मैं कहाँ पड़ा हूँ पर जल्दी ही सब याद आ गया कि मैं तो सोहना जा रहा था। पर क्यों जा रहा था? अरे मैं तो निधि को जिंदा करने के लिए जा रहा था। पर क्या वो जिंदा हो जाएगी? हाँ बाबाजी जिंदा कर देंगे। मन में ये सोचते हुए मैं वहाँ से उठने की कोशिश करने लगा। एक आदमी ने कहा, “किस मिट्टी का बना है, उठने की शक्ति नहीं है पर कोशिश कर रहा है।” मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया। मैं उठकर बैठ गया। पुलिस के एक कॉन्स्टेबल ने कहा, “आप गाड़ी में लेट सकते हैं।”

“नहीं मेरे पास समय नहीं है। निधि मर गई है।”

“कौन निधि? आप के साथ कोई और भी है?” कॉन्स्टेबल ने पूछा।

मैंने उसे जवाब नहीं दिया और धीरे-धीरे चलने लगा। कॉन्स्टेबल ने मुझे रोक लिया, “कहाँ जा रहे हो? हम तुम्हें अस्पताल ले जा रहे हैं।”

एक पुलिस वाला मेरे पास खड़ा हो गया और बाकी सब बातें करने लगे कि कौन है, कहाँ से आया है, घाव कहाँ से लगे, कुछ समझ नहीं आ रहा है आदि। 

मैंने पुलिस को कई बार कहा, “ये चोटे मुझे भागते हुए लगी है। मेरा गाँव पहुँचना जरूरी है। निधि मर गई है, उसे बाबाजी जिंदा कर सकते हैं। लेकिन पुलिस ने मेरी एक नहीं सुनी। वो मुझे अस्पताल ले गए और जबरदस्ती इंजेक्शन लगाकर मेरे घाव पर टाँके लगा दिए। शायद इंजेक्शन नींद का था। मैं तब तो सो गया, पर तीन घंटे में ही मुझे होश आ गया। एक पुलिस वाला मेरा बयान लेने के लिए अस्पताल में ही रुका था। वो मेरे से सवाल पूछने लगा। मेरा दिमाग सदमें से अब राहत में था। 

पुलिस वाले ने पूछा, “आप कहाँ से आ रहे थे?” 

“मैं वसंत कुंज से आ रहा था।” मैंने बताया कि रास्ते में मेरे कई एक्सीडेंट हुए जिससे मुझे चोट लगी। 

“पर तुम रहते कहाँ हो?” उसने पूछा।

“ये सवाल आप ने पहले पूछना था।” 

“आप बस जवाब दें।” 

“मैं सोहने के पास गाँव में डेयरी चलाता हूँ। मैं गागोली गाँव में रहता हूँ, वैसे मैं दिल्ली में महरौली का रहने वाला हूँ। किसी काम से मैं दिल्ली में वसंत कुंज गया था।”

“पर तुम गए कैसे थे? किस वाहन का प्रयोग किया मेरा मतलब?” 

“मैं अपनी गाड़ी से गया था।” अब मेरे दिमाग में आया कि मेरी गाड़ी कहाँ है। 

“पर फिर तुम गाड़ी, मेट्रो और बस छोड़कर पैदल ही अपने गाँव चल पड़े?” 

मैंने हाँ कहा और पुलिस को लाख समझाया पर उसने कहा कि मैं शायद मरना चाहता था इसलिए मुझ पर आत्महत्या का केस लगेगा। ये कहकर वहाँ से पुलिस वाला चला गया। अस्पताल के एक आदमी से मोबाइल लेकर मैंने रघुवीर को फोन किया और उसे जल्दी ही अस्पताल आने को कहा।

अस्पताल के बेड पर मैं कभी अपनी बेवकूफी पर हँसता तो कभी निधि के मर जाने पर रोता रहा। मुझे अब अपने घाव से भी असहनीय दर्द हो रहा था। मेरे घाव से अब खून नहीं बह रहा था। मुझे कुल आठ घाव लगे थे जिन पर डॉक्टर ने टाँके लगा दिए थे। मैं ये सोचकर हैरान था कि‍ इतने घाव पर टाँके लगते हुए भी मैं सामान्य ही था। मुझे सुबह से भागते हुए अब रात हो गई थी। मैंने ये मान लिया था मैंने निधि को खो दिया है। हालाँकि मैं ये कबूलना नहीं चाहता था कि वो फिर से जिंदा हो जाएगी। लाख कोशिश के बाद भी मैं अपना रोना नहीं रोक पा रहा था। मैंने सोच लिया था, यहाँ से निकलने के बाद मैं गाँव में जाकर आत्महत्या कर लूँगा। मेरी बेकार की बची हुई जिंदगी में तड़पने से तो अच्छा है कि मैं मर जाऊँ।

अस्पताल में रात को मुझे खिचड़ी दी गई पर मैंने ये सोचकर खिचड़ी नहीं खाई कि इस मरी-सी जिंदगी से मुझे क्या लेना और क्या खाना-पीना। एक बूढ़ी नर्स मेरे पास आई और उसने कहा, “बेटा, खाना खा लो। तुम मेरे बेटे की उम्र के हो। मैंने तुम्हें जब से देखा है, बस रो रहे हो। बेटा, मैं नहीं जानती तुम पर क्या बीती है पर जिंदगी तो जीनी ही पड़ती है लाख दुखों के मिलने के बाद भी।” 

मैं बस रोता रहा, कुछ नहीं बोला।

लगभग एक घंटे बाद रघुवीर और सत्ते अस्पताल आए। मैं उन्हें देखकर फट पड़ा और तेज-तेज रोने लगा। 

“सत्ते, मैंने निधि को खो दिया, वो मर गई। मुझे इस धरती पर नर्क जैसी जिंदगी मिल गई। हे भगवान मुझे सजा दो।” 

रघुवीर ने मुझे रोते हुए दिलासा दी, “यार मैं जानता हूँ पर मरने से क्या उसको परेशानी से राहत मिल जाएगी जो तुम भी मर जाना चाहते हो? मर कर किसी परेशानी से हल नहीं मिलता है। तुम बच तो गए, भगवान का शुक्र है! नहीं तो तेरे माता-पिता का क्या हाल होता। प्लीज तुम कसम खाओ कि अब कभी मरने की कोशिश नहीं करोगे।”

“मैंने कब मरने की कोशिश की है?” मैंने हैरानी से रघुवीर से पूछा। 

“पर तुम्हारे ऊपर पुलिस ने आत्महत्या की कोशिश का केस लगा रखा है, वो तुम्हें अस्पताल से छुट्टी के बाद जेल भेजने वाले हैं।”

“ठीक है रघुवीर, भेज देने दो जेल। मुझे अपने किए की कोई तो सजा मिले।” ये कहते हुए मेरी आँखों से आँसू निकल रहे थे।

जब डॉक्टर आ गए तो रघुवीर ने उनसे कहा, “क्या हम इसे किसी और हॉस्पिटल में ले जा सकते हैं?”

“ये पुलिस केस है, आप थाने से लिखवाकर ही इसे यहाँ से दूसरे हॉस्पिटल ले जा सकते हैं।”

“पर इसने आत्महत्या की कोशिश नहीं की है।” 

“आप पुलिस से बात करें।” डॉक्टर ये कहके चले गए।

रघुवीर बाहर पुलिस वाले से बात करने गया। उसने मेरी सारी कहानी पुलिस वाले को बताई। यहाँ से ले जाने के लिए पुलिस वाले को दस हजार की भी पेशकश की पर पुलिस वाला मान नहीं रहा था। आखिर में रघुवीर ने एक हरियाणा के मंत्री से पुलिस थाने में फोन करवाया तब भी वे नहीं माने। रघुवीर ने उन्हें बीस हजार रुपये देने का लालच दिया तब हम इस झंझट से निकले।

ऱघुवीर ने मुझसे पूछा, “तुम्हारी गाड़ी कहाँ है?” 

“मैं नहीं जानता, शायद वो वसंत कुंज में रह गई।”

“गाड़ी की चाबी कहाँ है?” 

“वो भी मुझे पता नहीं है।” 

“ठीक है। सत्ते, तुम राघव को लेकर गाँव जाओ। मैं गाड़ी की खोज-खबर लेकर आता हूँ।”

सत्ते ने कहा, “ठीक है।” 

मैं और सत्ते टैक्सी लेकर गाँव आ गए। रघुवीर वसंत कुंज के लिए चला गया। मैं टैक्सी में सारे रास्ते रोता हुआ गाँव पहुँचा। मैंने सत्ते से कहा, “तुम अब घर जाओ और मेरे घर किसी से ये सब मत बताना। रघुवीर से भी कह देना कि‍ वो भी इस बारे में किसी से कुछ भी न बताए।” 

“ठीक है भाई।”

सत्ते घर नहीं जा रहा था। मैंने जैसे-तैसे उसे समझा के घर भेजा। रहीम भी बड़ा दुखी था, उसे भी पता था कि‍ निधि मर गई थी।

सुबह रघुवीर जैसे-तैसे मेरी गाड़ी लेकर आ गया। मैंने उससे पूछा कि‍ निधि के घर वालों का क्या हाल है। उसने कहा, “एक किस्सा है भाई ये जिंदगी किसी के जाने से नहीं रुकती है, बस लोग मर जाते हैं और किस्सा बन जाते हैं।” 

कुछ देर तक रुकने के बाद रघुवीर भी अपने घर के लिए निकल गया। 

मेरी डेयरी में काम ऐसे ही चलते रहे, जैसे पहले चलते थे। बस कमी उसकी थी, जिसे मैं प्यार करता था। 

मैं सुबह सोया और दोपहर दो बजे उठा। मैंने रघुवीर और सत्ते को डेयरी के बी.एस.एन.एल. नंबर से फोन करके उन्हें बुलाया। मेरे पास मोबाइल नहीं था। मेरा मन नहीं लग रहा था, इसलिए ही मैंने उन्हें बुलाया था। थोड़ी देर में दोनों आ गए। दोनों ने मेरा हाल पूछा। दुखी होकर वो बैठ गए। 

मैंने रघुवीर से पूछा, “तुम्हें खबर थी कि निधि की मौत हो गई है?”

“हाँ मुझे सुबह ही निधि के रिश्तेदार का फोन आ गया था कि‍ उसने आत्महत्या कर ली है।” 

“पर तुमने तो मुझे नहीं बताया?”

“मैंने ये सोचकर तुम्हें नहीं बताया कि‍ क्या हाल होगा तुम्हारा जब मैं तुम्हें बताऊँगा।” 

“उसने कोई वजह आत्महत्या की लिखी थी किसी लेटर में?”

“नहीं, पुलिस को कोई लेटर नहीं मिला।” ये सुनकर मेरी आँखों में आँसू आ गए।

“उसने आत्महत्या कैसे की?”

“उसने फाँसी लगा ली थी।” 

“तुम्हें पता हो तो बताओ कि पुलिस उसके घर वालों को तंग तो नहीं कर रही है?”

“मुझे नहीं पता इस बारे में कि‍ पुलिस क्या कर रही है।”

मैंने आँसू पोछते हुए रहीम से कहा, “मैं दिल्ली जा रहा हूँ। मैं उसके घर वालों से मिलूँगा नहीं तो वे कहेंगे बेटी की जान चली गई और लड़का एक बार भी हमसे मिलने नहीं आया।” 

रघुवीर ने कहा, “भाई तुम अभी इस हाल में नहीं हो जो वहाँ जा सको।”

“तो फिर कब होगी मेरी हालत ठीक? मेरी वजह से एक लड़की की मौत हो गई और मैं उसके घरवालों को दिलासा भी नहीं दे पा रहा हूँ। मुझे जाना ही होगा।”

“नहीं राघव, निधि के मम्मी-पापा के साथ उसके रिश्तेदार तुम्हारा क्या हाल करेंगे, तुम्हें अंदाजा नहीं है। तुम्हारे कारण एक जवान मौत हुई है, वो भी शादी से एक रात पहले। तुम वहाँ जाकर फँस जाओगे।”

“नहीं, मुझे ऐसी जिंदगी नहीं चाहिए जहाँ मैं अपनी सबसे प्यारी चीज के चले जाने पर भी उसके माता-पिता का दुख ना बाँट सकूँ। मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि मैं उससे प्यार करता हूँ, बस गलती ये हो गई कि मैं उसके मरने के बाद पहुँचा। अगर मैं आठ घंटे पहले वहाँ पहुँच जाता तो वो नहीं गई होती इस दुनिया से।”

“नहीं, अगर तुम चार घंटे पहले भी उसके पास होते तब भी वो बच गई होती।” रघुवीर ने कहा। मैंने सिसकारी भरी। रघुवीर और सत्ते ने मुझे सांत्वना दी। 

“यार तुम जब ठीक हो जाओ तब वहाँ चले जाना। तब तक उसके माँ-बाप अपने को सँभाल लेंगे।” सत्ते ने कहा।

“तुम लोग मुझे वहाँ जाने से क्यों रोक रहे हो?”

“कुछ दिन बाद मैं भी तुम्हारे साथ उसके घर चलूँगा। थोड़ा रुक जाओ और समझो। अभी मामला गरम है, पुलिस के हत्थे चढ़ सकते हो तुम। जब तक मामला ठंडा नहीं हो जाता, तुम वहाँ मत जाओ। तुम्हारा वहाँ तीन-चार दिन बाद ही जाना ठीक रहेगा।” रघुवीर ने कहा। 

रघुवीर के साथ रहीम और सत्ते ने भी यही कहा। मैं अकेले वहाँ नहीं जा सकता था ये भी सच्चाई थी। मेरी चोट अभी ठीक होने में समय लगना था।

चार दिन हो गए थे निधि को इस दुनिया से गए हुए। मैं सर्दी के कारण धूप में बैठा था। वहीं चाचा-चाची आ गए थे। उनके साथ दो लोग और थे। मैं समझ नहीं पाया कि वे क्यों आए थे। मैंने सोचा कुछ काम होगा। वे सीधे गाय की डेयरी में गए। वहाँ पर चाचा-चाची ने उन्हें सारा तबेला दिखाया। उन्हें बीस मिनट लगे सारा तबेला देखने में। रहीम ने तब तक उनके लिए चाय बना दी। 

वे मेरे पास आए और मुझसे पूछने लगे कि कितना दूध निकल जाता है इन गाय से। साथ में ये भी पूछा कि तुम्हारे पास कितनी जमीन है खेती की। मैंने सिर्फ एक-दो चीज उन्हें बता दी। रहीम उनके लिए चाय ले आया। मैंने उनसे रहीम का परिचय कराया। 

चाचा ने कहा, “बड़ा ही मेहनती है ये। इतना बड़ा काम ऐसे ही नहीं चलाता है। रहीम तो बस इसका नौकर है।” ये सुनकर मेरे कान खड़े हो गए। चाचा ने बात पलट दी मुझे देखकर, “ये रहीम इनकी नौकरी करता है।” 

फिर दोनों लोग दूर चले गए। उन्होंने रहीम को पास बुलाया और उससे वे दोनों लोग बातें करने लगे। चाचा ने मेरी तरफ देखकर कहा, “बेटा ये तुम्हारे रिश्ते के लिए आए हैं। बड़े ही सीधे हैं।”

“मैं भी देख रहा हूँ कितने सीधे हैं। जैसे दोनों पूछ रहे हैं ऐसे लोग सीधे होते हैं? सारा काम-धंधा पूछकर मेरे से शादी की बात करने आए हैं?”

“पर बेटा, ऐसे ही कोई अपनी लड़की तुम्हें नहीं दे सकता है।” 

“आपको पता है न कितने दुख से गुजर रहा हूँ? मेरी दोस्त की मौत हो गई है। मैं शादी की बात ऐसे में नहीं कर सकता हूँ।”

“ठीक है मेरे बच्चे, इन्होंने तुम्हारा कारोबार देख लिया है। जरा आराम से पेश आना, क्या पता तुम्हारी शादी इनकी लड़की से हो जाए तो सारी उम्र ताने सुनते रहोगे कि हमारे दामाद ने हम से ठीक से बात नहीं की।” 

मैं थोड़ा गम्भीर हुआ। चाचा जी को अपने पास बुलाकर दोनों कुछ बातचीत करने लगे। फिर वे चले गए। चाचा उन्हें गाड़ी तक छोड़ आए।

चाचा ने वापस आकर कहा, “बेटा, इन्हें तुम पसंद आ गए हो। अगर तुम इनकी लड़की देखना चाहो तो जा सकते हो।” 

“मैंने बताया कि मैं अभी नहीं जा सकता हूँ। जब मेरा मूड ठीक होगा तभी मैं जा सकता हूँ। एक बात और, मैं उदास हूँ इस वक्त। मैं शादी नहीं कर सकता। मुझे थोड़ा समय चाहिए। शायद मैं कभी शादी ही ना करूँ। मैं किसी दबाव में शादी नहीं करूँगा। आप निधि को तो जानते होंगे? चार दिन पहले उसकी मौत हो गई है। मैं इसलिए अभी शादी की नहीं सोच सकता।” 

चाचा चाची एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। चाचा ने कहा, “वो लड़की मर गई, मुझे तो सत्ते ने नहीं बताया, नहीं तो मैं इन लोगों को लेकर नहीं आता। खैर, बेटा तुम सोचकर ही जवाब देना। अगर तुम इनकी लड़की से शादी करते हो तो मुँह माँगा दहेज तुम्हें देंगे।” 

मैंने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया। मैं किसी के दहेज का लालची नहीं था।