योगिता ने एक अलमारी खोलकर भीतर से एक की - रिंग निकाला । उसकी रिंग में दो चाबियां थीं । उसने उसमें से एक चाबी निकाल कर विकास को सौंप दी और बोली - "यह चाबी कोठी के मुख्य द्वार की है । रख लो । काम आयेगी । मेरा मतलब है, ताला तोड़ने की जहमत से बच जाओगे ।"


"तुम्हारे पास यह चाबी कहां से आई ?"


"अजीब सवाल पूछ रहे हो ? एक साल पहले तक मैं भी तो उसी घर में रहती थी । "


"ओह !"


“और जरा सावधान रहना । "


"तुम्हें मेरी चिन्ता है ?"


उसने जुबान से उत्तर नहीं दिया । उसने अपना दिल अपनी आंखों में लाकर विकास की तरफ देखा ।


विकास का दिल प्यार से भर उठा । उसने उसे खींचकर अपनी बांहों से भर लिया । योगिता ने एतराज नहीं किया लेकिन जब वह उसके होंठों पर अपने होंठ रखने लगा तो वह मछली की तरह तड़पकर उसकी पकड़ से निकल गई।


"मैंने अभी रिसैप्शन पर जाना है।" - वह बोली ।


विकास ने सहमति में सिर हिलाया ।


"तुम लौटकर आओगे ?" - योगिता ने पूछा ।


"अभी पता नहीं ।" - वह बोला ।


"फोन करोगे ?”


"जरूर।"


"यहां से बाहर कैसे निकलोगे ?"


"उधर से ही जिधर से आया था ।"


"नहीं । दिन के वक्त पिछवाड़े के दरवाजे से निकलोगे तो जरूर कोई टोक देगा ।"


“तो ?”


"अपने मौजूदा लिबास में तुम लाबी में सी भी ठाठ से गुजर सकते हो । आओ नीचे तक तुम्हें मैं ही ले चलती हूं। फिर किसी को शक नहीं होगा । होगा तो मैं सम्भाल लूंगी।"


"ठीक है । "


दोनों कमरे से बाहर निकले ।


"तुमने होटल में मौजूद अपनी सहेली के बारे में कुछ नहीं बताया ।" - लिफ्ट में वह बोली ।


"छोड़ो" - विकास लापरवाही से बोला- "वह कोई जिक्र के काबिल बात नहीं । "


योगिता ने आहत भाव से उसकी तरफ देखा लेकिन जुबान से कुछ न बोली ।


लिफ्ट रुकी । वे बाहर निकले ।


तभी एक अन्य लिफ्ट में से शबनम बाहर निकली । उन दोनों को देखकर वह लिफ्ट के सामने ही रुककर खड़ी हो गई । वह यूं घूरकर योगिता को देखने लगी जैसो खुर्दबीन में से किसी कीड़े का परीक्षण कर रही हो ।


विकास जल्दी से योगिता से अलग हो गया और बिना शबनम की दिशा में दृष्टिपात किये लम्बे डग भरता हुआ लाबी में आगे बढ़ गया।


सलेटी रंग की एम्बैसेडर को ड्राइव करता विकास ईस्ट बैंक रोड पहुंचा। महाजन की कोठी नदी किनारे के एक बड़े आधुनिक भाग में बनी एक दोमंजिली इमारत निकली। वह कार को इमारत के आगे निकाल कर ले गया और उसे बहुत परे खड़ी करके पैदल वापिस लौटा ।


इमारत के आगे एक बहुत बड़ा लॉन था जिसकी वजह से इमारत सड़क से बहुत परे स्थापित थी ।


फाटक ठेलकर वह भीतर दाखिल हुआ ।


उसे पूरी उम्मीद थी कि घर में कोई नहीं था लेकिन फिर भी उसने बरामदे में जाकर कालबैल बजाई ।


कोई उत्तर न मिला तो उसने योगिता से मिली चाबी लगा कर इमारत के मुख्य द्वार का ताला खोला । दरवाजा खोलकर वह भीतर दाखिल हुआ तो उसने अपने आपको एक छोटी-सी राहदारी में पाया । उसकी बाई तरफ ड्राईगरूम था और दाई तरफ डाननिंग रूम था । सामने एक छोटा-सा गलियारा था जिसके सिरे पर ऊपरली मंजिल को जाती हुई सीढिया थीं। उन सीढियों के एक पहलू में किचन था और दूसरी तरफ कोई बाथरूम या स्टोर था ।


कुछ क्षण वह कान खड़े किये वहीं ठिठका खड़ा रहा ।


उसको ऐसा लगा जैसे पिछवाड़े से कोई दरवाजा धीरे से बन्द होने की आवाज आई हो । पता नहीं कोई उधर से भीतर दाखिल हुआ था या बाहर निकला था ।


वह दबे पांव फिर बाहर निकल गया । अपने पीछे उसने मुख्य द्वार को धीरे से बन्द कर दिया । और इमारत के पहलू की तरफ लपका। अगर कोई बाहर निकला था तो वह उसे दिखाई दे सकता था क्योंकि इमारत के पिछवाड़े में वहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं था । अगर घन्टी की आवाज सुनकर ही कोई पिछवाड़े से बाहर निकला था तो निश्चय ही वह कोई घर का आदमी नहीं हो सकता था ।


वह कोने में पहुंच कर दीवार के साथ लग गया और गर्दन आगे निकाल कर सावधानी से पिछवाड़े की तरफ झांकने लगा ।


कई क्षण गुजर गये । कोई इमारत के पहलू में प्रकट न हुआ ।


फिर एकाएक कहीं से कार स्टार्ट होने की आवाज आई


विकास के चेहरे पर उलझन के भाव आये ।


क्या कोई पिछवाड़े की ऊंची दीवार फांद गया था ?


वह लपक कर पिछवाड़े में पहुंचा ।


पिछवाड़े की दीवर के पास एक बड़ा-सा ड्रम पड़ा था । वह उस ड्रम पर चढ गया और उसने दीवार के पार झांका।


पीछे नदी और दीवार के बीच में फैली रेत पर उसे एक कार के टायरो के ताजे बने निशान साफ दिखाई दिए । वे निशान बाई ओर एक पक्की सड़क तक गये थे और फिर गायब हो गये थे ।


पिछवाड़े का दरवाजा मजबूती से बन्द था । उसमें ताला लगा हुआ था ।


चेहरे पर असमंजस के भाव लिये वह वापिस लौटा । उसने एक बार फिर काल बैल बजाई लेकिन घन्टी की आवाज इमारत के भीतर गूंज कर रह गई। भीतर से कोई आहट फिर भी न हुई ।


वह फिर इमारत में दाखिल हुआ ।


दबे पांव चलता हुआ वह सारा फ्लोर घूम गया ।


कहीं कोई नहीं था । लेकिन भीतर के स्थिर वातावरण में उसे कई जगह से 'चैनल फाइव' की गंध मिली ।


सीढियों के रास्ते वह पहली मंजिल पर पहुंचा ।


वहां भी नीचे जैसा ही हाल था ।


ऊपर चार कमरे थे जिनमें से महाजन का बैडरूम तलाश करने में उसे कोई दिक्कत न हुई । वहीं शेविंग का सामान और मर्दाने कपड़े वगैरह टंगे हुए थे । 'चैनल फाइव' की गन्ध वहां भी बसी हुई थी ।


वह वहां मौजूद इकलौती मेज के समीप पहुंचा।


खोला । उसने धड़कते दिल से उसका सबसे निचला दराज


रिवाल्वर वहां मौजूद थी।


पैंतालीस कैलीबर की भारी मोजर रिवाल्वर ।


उसने उसे उठा कर उसकी नाल को सूंघा ।


नाल में से बहुत हल्की-सी बारूद की गन्ध आ रही थी


उसने उसका चैम्बर खोला ।


एक गोली गायब थी ।


उसने चैम्बर बन्द कर दिया ।


अब वह सोचने लगा कि उस रिवाल्वर में से एक टैस्ट बुलेट वह कहां चलाये ? गोली ऐसी जगह चलाई जानी भी जरूरी थी जहां कि वह पिचके नहीं और जहां से उसे वापिस निकाला भी जा सके। और फिर उस भारी रिवाल्वर की गोली बहुत आवाज कर सकती थी। दिन दहाड़े वह आवाज बहुत दूर तक सुनाई दे सकती थी ।


न चाहते हुए भी उसने रिवाल्वर वहां से ले जाने का ही फैसला कर लिया । उसने उसे अपनी पतलून को बैल्ट में ठूंसा और ऊपर से कोट के बटन बन्द कर लिये । रिवाल्वर की मूठ कोट में से उभरे नहीं इसके लिये उसे रिवाल्वर पतलून में बहुत नीचे धकेलनी पड़ी जो कि चलने में बहुत दिक्कत पैदा करने लगी लेकिन उसने रिवाल्वर को वैसे ही रहने दिया । उसने वहां से एक तकिया उठा लिया और फिर इमारत से बाहर निकला ।


वह रिवाल्वर को किसी उजाड़ जगह चलाकर उसे वापिस यथास्थान रखने आने का इरादा रखता था ।


कार में सवार होकर वह नदी किनारे वाली सड़क पर ही कार चलाता हुआ आबादी से बहुत दूर निकल गया ।


एक उजाड़ जगह पर उसने कार रोकी ।


आसपास कहीं कोई नहीं था ।


वहां नदी किनारे उसने रेत का एक टीला-सा बनाया, उसके ऊपर साथ लाया तकिया रखा और फिर तकिये में रिवाल्वर दाग दी ।


गोली तकिये में से गुजर कर रेत में घुस गई। उसने टीले को तोड़ कर गोली बरामद कर ली । गोली एकदम सही सलामत थी । वह जरा भी चपटी नहीं हुई थी।


उसने गोली अपनी जेब के हवाले की, तकिया वहीं पड़ा रहने दिया और कार पर सवार होकर वापिस लौटा ।


उसके वापिस महाजन की कोठी के सामने पहुंचने तक ढाई बज चुके थे।


इस बार कम्पाउण्ड में वह काली एम्बैसेडर कार खड़ी थी, महाजन की हत्या से थोड़ी देर पहले जिसमें सवार होकर उसने सुनयना को कहीं जाते देखा था । ।


तो क्या सुनयना वापिस लौट आई थी ?


गलती उसी की थी । मनोहर लाल ने उसे ढाई बजे तक का समय दिया था और ढाई बज चुके थे।


लेकिन यह भी तो कभी होता नहीं था कि मनोहर लाल जैसे उस्ताद आदमी के संसर्ग में कोई खूबसूरत औरत वक्त की सुधबुध न भूल जाये । लगता था खलीफा का जादू पूरी तरह से उस औरत को नहीं जकड़ सका था ।


लेकिन तभी उसकी बात गलत साबित हो गई ।


इमारत के सामने से गुजरते समय ड्राईंग रूम की एक शीशे की खिड़की में से उसे मनोहर लाल की एक झलक मिली । वह अपनी कर्नल की यूनीफार्म में था ।


जाहिर था कि सुनयना पर उसका रोब इस कदर गालिब हुआ था कि वह उसे घर ले आई थी ।


अब रिवाल्वर को यथास्थान पहुंचाने के लिये इमारत में दाखिल होना सम्भव नहीं था ।


वह वहां से रवाना हो गया ।


एक पब्लिक टेलीफोन से उसने शबनम को फोन किया


"हल्लो" - उसे शबनम की आवाज सुनाई दी - "कौन?"


"मैं" - वह सावधानी से बोला "पहचाना ?"


"हां ।”


"क्या कर रही हो ?"


"कुछ नहीं । बस अभी बाहर से लौटी ही हूं।"


" मैंने तुम्हें जाते देखा था । तब से अब लौटी हो ?"


"हां । मैंने भी तुम्हें देखा था । उस काले बालों वाली फुलझड़ी के साथ | क्या लगाती है वो ?"


"क्या मतलब ?"


"मेरा मतलब है बाल रंगने के लिये कौन-सा खिजाब इस्तेमाल करती है वो ? इतने स्याह काले बाल कुदरतन तो हो नहीं सकते । "


"क्यों नहीं हो सकते ? वह बीस साल की है । "


"मुझे तो तीस से ऊपर की लग रही थी ।"


"तुम जल रही हो ।"


"यह लड़की होटल में रिसैप्शनिस्ट है न ?”


“हां ।”


"बड़ी कुत्ती चीज हो, विकास गुप्ता । शहर में कदम रखते ही जो पहली लड़की दिखाई दी, उसी को दाना डाल दिया।"


"क्यों फालतू बातें कर रही हो, शबनम ?”


“आज के अखबार में तुम्हारी असलियत मोटे-मोटे अक्षरो में छपी है । देखा तुमने ?”


"नहीं।"


"लेकिन उसने जरूर देखा होगा। अब तक उसे मालूम हो चुका होगा कि असल में तुम नटवर लाल हो, फिर...


"मैं असल में क्या हूं, यह उसे पहले ही मालूम है । "


"ओह ! यानी कि तुम दोनों एक दूसरे से अपने पाप बख्शवा चुके हो । वह भी तुम्हें बता चुकी होगी कि वह चन्द्रमुखी है ।”


"शट अप !"


"इतना तो बता दो कि क्या उसे इस बात से कतई कोई एतराज नहीं हुआ कि तुम एक पेशेवर ठग हो ?"


"हुआ।" "तो ?"


"वह चाहती है कि मैं सुधर जाऊं ।"


"मैं कुरबान । तो तुम उसका कहना मान रहे हो ?"


"सोच तो रहा हूं।"


"नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली ।"


विकास खामोश रहा ।


"लड़की तुम्हें बहुत ज्यादा ही पसन्द आ गई मालूम होती है यार । "


"हां ।" - वह बोला ।


"इसीलिए तुम उसकी खातिर धन्धा छोड़ने की सोच रहे हो ?"


"हां ।”


" शादी का इरादा है ?"


"पता नहीं । पहले मौजूदा सांसत में से जान तो निकले।"


"तुम बहुत सीरियस हो ?"


“हां ।”


"तो फिर मैं भी बहुत सीरियस हूं यार। मैंने जो कुछ कहा था, मजाक में कहा था । लड़की बहुत खूबसूरत है और उसके बाल तो बहुत खूबसूरत हैं । "


" अब छोड़ो भी यह किस्सा । इतनी देर से चबर-चबर कर रही हो। यह पूछते नहीं बना कि मैंने फोन क्यों किया है ।”


"सारी डार्लिंग | बताओ क्यों फोन किया है ?"


"मैं मनोहर से बात करना चाहता हूं । वह इस वक्त सुनयना के साथ उसके घर में है और अभी पता नहीं कब तक वहां ठहरेगा । उससे अलग होने के बाद वह तुम से सम्पर्क जरूर स्थापित होगा । तब उसे कह देना कि मैं उससे मिलना चाहता हूं।"


"उस औरत से जुदा होने के बाद वैसे मुझे फोन करने लायक शक्ति बाकी बची होगी खलीफा में ?"


"मतलब ?"


" सुना है वह बड़ी मर्दमार औरत है। निम्फो है । "


"यह अफवाह भी हो सकती है । "


“बेचारा मनोहर । इस उम्र में आग में खेल रहा है । कहीं उसके घर में से स्ट्रेचर पर तो नहीं निकलेगा ?"


"वह पुराना खिलाड़ी है । वह ऐसी कई औरतें झेल चुका है।"


"शायद यह न झेल पाये ।"


“छोड़ो । अगर वह फौरन फोन करे तो उससे पूछ लेना कि छ: बजे के बाद मैं उससे मिलने कहां आऊं ? मैं तुम्हें छ: बजे फिर फोन करूंगा।"


"जिस चीज की तलाश में तुम गये थे, वह तुम्हें मिली?"


"हां । लेकिन फोन पर उस बारे में बात मत करना ।"


"ठीक है । छ: बजे फोन करना । "


"ओके ।”


“सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।"