फ्रॉड केसेज के दोनों एक्सपर्ट और कमल किशोर के साथ हैड क्वार्टर्स से बाहर आते रंजीत मलिक की आँखें चमक रही थीं । उसने जो देखा और सुना उससे खुश था ।
शेष तीनों और ज्यादा खुश, ठीक कालेजी छोकरों की तरह जो कांटे की टक्कर का मैच जीत कर लौट रहे थे ।
लेकिन रंजीत मलिक के मन में संतुष्टि के बावजूद एक आशंका भी पनप रही थी–बलदेव मनोचा को गवाहों के कटघरे में तो दूर अदालत तक भी नहीं पहुंचाया जा सकेगा ।
फिर भी तसल्ली थी, अब उनके हाथ ऐसा मसाला लग गया था जिसे बारूद की तरह इस्तेमाल किया जा सकता था । लेजरों की फोटोस्टेट कापियां, अनएकाउंटेड नगद तीस लाख रुपये और मनोचा का दस्तखत शुदा लिखित और रिकार्डेड बयान ने हसन भाइयों को पैराडाइज क्लब के साथ मजबूती से जोड़ देना था । यह ठोस सबूत था नम्बर दो के मोटे पैसे की निकासी का और जिन दो–तीन और लोगों के नाम सामने आये थे उनके खिलाफ इंक्वायरी करने का ।
नये ऑफिस वापस पहुंचने पर एस० आई० दिनकर चौहान ने बताया रंजीत को देने के लिये रिपोर्ट थी उसके पास ।
ऊँचे कद और इकहरे जिस्म वाला चौहान उन आदमियों में से था जो कभी नहीं बदलते । सलीके से काम करना उसकी खास आदत था । डिटेक्टिव मिस्ट्री नावल पढ़ने का शौकीन चौहान अव्वल दर्जे का बातून भी था ।
–"ठाकुर या ठकराल नाम का जो आदमी है उसका पता लगा लिया गया है, सर !" वह रिकार्ड की भांति बजता हुआ बोला–"वह एंबेसेडर होटल में ठहरा है । वर्मा साहब ने बस उस पर नजर रखने का आदेश दिया है और उसके कमरे का फोन टेप कराने की इजाजत लेने की औपचारिकताएं शुरू कर दी हैं ।"
–"होटल वाले इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे ।" रंजीत ने धीरे से कहा और अपनी कुर्सी में पसर गया ।
उसे काफी काम करना था । कई फोन कॉल करनी थी–स्थानीय और दुबई के लिये । उसकी बेरुखी देखकर चौहान को समझ जाना चाहिये था कि उसके पास जो भी सूचनाएं थीं, उन्हें देने की कोई जल्दी नहीं थी । लेकिन वक्त से पहले अधेड़ उम्र की ओर बढ़ना शुरू हो चुका चौहान एक बार शुरू होकर जल्दी रुकता नहीं था ।
–"मेरा विचार है तमाम इंतजाम कर लिया गया है ।" उसका रिकार्ड चालू रहा–"एक और मैसेज भी है आपके लिये । पता नहीं पर्सनल है या...यह हैडक्वार्टर्स से भेजा गया था ।" और जुबानी बताने की बजाये एक स्लिप डेस्क पर रख दी ।
चौहान की सुंदर गोल हैंड राइटिंग में लिखा था ।
मेसेज रिसीव्ड एम० 10.27 | फॉर चीफ इंसपेक्टर
मिस्टर रंजीत मलिक । मिस रजनी राजदान
टेलीफोन्ड टू से दैट शी विशिज टु टॉक टू
मिस्टर मलिक, अर्जेंटली ! प्लीज कॉल हर ।"
नीचे दिया गया पहला फोन नम्बर उसके ऑफिस का था, जहां वह साढ़े पांच बजे तक मिलेगी । दूसरा घर का नम्बर था–सात बजे के बाद के लिये ।
रंजीत सोच में पड़ गया । कहां से शुरूआत करे ? पहले दुबई ट्रंककॉल करे या स्थानीय कांटेक्ट्स को या फिर रजनी राजदान को ?
चंदेक सेकेंड में फैसला करके उसने दुबई की दो कॉल बुक करा दी । अंदाजन चार बजे तक मैच्योर हो जानी थीं । फिर दूसरी स्थानीय कॉल करने की बजाये रजनी के ऑफिस का नम्बर डायल कर दिया ।
सम्बन्ध स्थापित होने पर स्त्री स्वर सुनायी दिया ।
–"...पब्लिकेशन्स, गुड मार्निग ।"
–"गुड मानिंग, मैडम ! मे आई स्पीक टु मिस राजदान ?
–"आयम सॉरी शी इजन्ट हियर एट दी मोमेंट…!"
–"ओह !"
–"शी हेज गॉन आउट फॉर लंच । एनी मैसेज फॉर हर ?"
–"जस्ट टेल हर रंजीत मलिक कॉल्ड नो...शी कान्ट काल मी बैक । आयम नॉट एट दी नम्बर सी हैज । आई विल काल हर लेटर इन दी डे ऑर दिस ईवनिंग ।"
–"राइट सर ।"
–"थैंक्स ए लॉट ।"
रिसीवर वापस रखते रंजीत ने अपने अंदर निराशाभरा खालीपन महसूस किया । एक अजीब–सी उलझन थी । यह आकर्षण था और इससे परिचित भी वह था लेकिन इस अहसास को समझ नहीं पा रहा था । इसकी वजह थी उसकी पुरानी आदतें और मान्यतायें । नैतिकता पर वे प्रवचन जो हिन्दू पिता के साथ सत्संग में और ईसाई माता के साथ चर्च में पादरियों से सुने थे ।
एक रात जब मंगनी के बाद उसकी मंगेतर सूजी ने उसे फोन किया था तब भी शायद यही वजह आड़े आयी थी । एक ओर जहां उसके अंदर वासना का तूफान उठ खड़ा हुआ था वहीं नफरत और अरुचि भी हुई थी ओर आखिरकार वो फोन कॉल अंत की शुरूआत साबित हुई ।
–"...रंजीत, फॉर गॉड सेक वी आर एंगेज्ड एंड वी आर टू बी मैरिड !" सूजी ने कहा था–"बट आई डोंट अण्डरस्टैण्ड यू...आई जस्ट नो देट आई वांट यू । आई लव यू एण्ड यू लव मी टू...आई वांट टु कम ओवर...आई वांट यू टु हेव मी इन दी बेड...डार्लिंग आई वांट यू इन मी इन आल दी वेज...आई वांट यू टु फिल मी...सो प्लीज लेट मी कम ओवर । आई केन नॉट वेट एनी मार टु बी लेड़ बाई यू...प्लीज...!"
सूजी नंगी भाषा इस्तेमाल करने लगी तो उसे टोकना पड़ा ।
–"स्टॉप इट, सूजी ! डोंट टॉक नानसेंस ! हैव पेशेंस ! यू आर गोइंग टु बी माई वाइफ ! आई हेव रेस्पेक्ट यू...!"
–"शटअप !"
सूजी ने चीखकर रिसीवर पटक दिया था ।
रंजीत को अहसास हुआ अपनी होने वाली दुल्हन के प्रति सम्मान की जो भावना उसके अंदर थी वो उस रात की खामोशी में ही खोकर रह गयी थी । यह उनके रिश्ते के अंत की शुरूआत थी और उतनी ही तर्कहीन और मूर्खतापूर्ण जितनी कि कोई भी मानवीय प्रातक्रिया हो सकती थी–पुराने तौर–तरीकों और मान्यताओं भरी सोच रखनवाले शख्स की जिसके अंदर इन बातों का बीजारोपण बचपन में कर दिया गया था, और जो पौधा बनकर वक्त के साथ फलता–फूलता रहा था । सत्संग और चर्च में जब आदमी और औरत के संबंधों के बारे में बताते हुये इस बात पर जोर दिया जाता कि विवाह एक पवित्र बंधन है इसकी पवित्रता और मर्यादा मंगनी की रस्म के साथ ही शुरू हो जाती है...तो अपने हम उम्र लड़कों की तरह वह भी शर्मा जाया करता था ।
उसके पिता ने भी उसे किशोरावस्था में यही समझाया था–"रंजीत इस उम्र में लड़के और लड़कियों का एक–दूसरे की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक है–प्राकृतिक है लेकिन इसे प्रेम नहीं कहा जा सकता । अगर तुम वाकई किसी लड़की से प्यार करते हो और उससे शादी करने वाले हो तो उसका पूरा सम्मान करना । विवाह से पहले उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने के बारे में सोचना भी मत । ऐसा करने से स्त्री–पुरुष के बीच एक–दूसरे के प्रति सम्मान की भावना खत्म हो जाती है और शादी शुदा ज़िन्दगी के सफर की शुरूआत की पहली रात का उत्साह और रोमांच भी समाप्त हो जाता है...वास्तविक आनंद की जगह मन में हिकारत पैदा होने लगती है...इसलिये, मेरे बेटे, उस लड़की का पूरा सम्मान करना जिसे तुम पत्नी का दर्जा देना चाहते हो...।"
उस रात जब सूजी ने सर्वथा अप्रत्याशित रूप से उसके साथ हमबिस्तर होने की तीव्र इच्छा प्रगट की थी तो उसके अपने अंदर भी वासना जाग गयी थी और वो उसे एक ऐसी लड़की के पास जाकर शांत करनी पड़ी थी जो पेशेवर कॉलगर्ल थी लेकिन अपनी खास सेवाओं की कोई कीमत लड़की ने उससे नहीं ली थी क्योंकि एक बार उस पर तरस खाकर रंजीत ने उसे जिस्मफरोशी के जुर्म में हिरासत में लेने की बजाये छोड़ दिया था । एक बार की उसकी मेहरबानी के एवज में लड़की उसे मुफ्त में मौज–मेला कराने के लिये तैयार रहती थी । जब भी जरूरत होती, रंजीत उसके पास चला जाता और वो लड़की उसे ऐसा सुख प्रदान करती थी जो वक्ती तौर पर उसकी जिंदगी में आयी दूसरी औरतों से उसे नहीं मिला था ।
रंजीत के दिमाग में पैदा हुई उलझन अब अकेली रजनी राजदान को लेकर थी ।
उसे याद आया ।
लेकिन तुम दोनों ज्यादातर वक्त साथ गुजारते थे और अक्सर एक–दूसरे से मिला करते थे । उसकी इस बात के जवाब में रजनी ने बड़ी बेबाकी से कहा था– हम दोनों अक्सर हमबिस्तर हुआ करते थे ।
रजनी राजदान ।
चमकीले रेशमी बालों को सहलाते नर्म हाथ की लम्बी पतली उंगलियां और एक उंगली में दो त्रिभुजों के डिजाइन वाली बड़ी–सी अंगूठी ।
वह सुंदर लड़की अब क्यों उसे परेशान कर रही थी ?
इसका जवाब उसे नहीं मिला ।
उसने गहरी सांस लेकर जोर से सर हिलाया । मानों इस तरह उसे दिमाग से झटकने की कोशिश कर रहा था । फिर अपने काम में लग गया ।
टेलीफोन कॉल्स का सिलसिला शुरू हुआ । जानकारी हासिल करने के लिये नपी–तुली से लेकर लम्बी बातचीत तक का । करीमगंज में उसके प्राइवेट सोर्सेज की कमी नहीं थी । उसने उन सभी को टटोला जो दिनेश ठाकुर के बारे में किसी भी तरह की सूचना दे सकते थे । फिर उनसे सम्पर्क किया जो विक्टर, लिस्टर, अब्दुल तारिक, मनोचा, फारूख और अनवर हसन, असगर अली वगैरा के बारे में कुछ भी बता सकते थे । हर एक से की गयी बातचीत में उसने पीटर डिसूजा के नाम का जिक्र भी किया । बताने वाले की आवाज़ और लहजे में किसी भी तरह की तब्दीली को नोट तक करने की कोशिश की । उन सब पर हुई पूरी प्रतिक्रिया को जानने के लिये उनसे आमने–सामने बातें करने की जरूरत थी । लेकिन इतना वक्त रंजीत के पास नहीं था । हरएक से मिलकर पूछताछ करने में तीन–चार दिन और रातें जरूर लगने थे ।
हरएक कॉल के बाद उसने बातचीत का पूरा ब्यौरा नोट किया था । ताकि रिपोर्ट के रूप में तैयार करके अगली सुबह वर्मा के सामने पेश कर सके । इसके अलावा आज सुबह मनोचा से की गयी पूछताछ की लिखित रिपोर्ट भी उसे देनी थी । हालांकि कमल किशोर और फ्रॉड केसेज के दोनों एक्सपर्ट ने भी अपनी रिपोर्टों में इसका पूरा ब्योरा देना था लेकिन वर्मा इस बारे में उसकी रिपोर्ट और राय भी जानना चाहेगा ।
रंजीत को अपने काम का यही हिस्सा सबसे बोर लगता था । फिर भी करना तो पड़ता ही था ।
लगभग चार बजे ।
वर्मा, कमल किशोर और तोमर अंदर आये और सीधे उसके डेस्क के पास आ पहुंचे ।
–"असगर अली को पकड़ लिया गया है ।" वर्मा ने सूचना दी ।
रंजीत मुस्कराया ।
–"और आप रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं ।" उसके स्वर में कटुता मिले उपहास का पुट था ।
कमल किशोर की भवें सिकुड़ गयीं ।
–"वह महाजन हाउस में है । तुम साथ चलना चाहते हो ?"
महाजन हाउस में क्राइम ब्रांच का हैडक्वार्टर्स था ।
प्रत्यक्षत: वर्मा पूरी गोपनीयता से काम ले रहा था । कोई भी सस्पेक्ट इस नई इमारत में नहीं लाया जा रहा था । लेकिन रंजीत जानता था इन तमाम एहतियातों के बावजूद हसन भाइयों को नई इमारत और स्पेशल आप्रेशन के बारे में पता लग जाना लगभग निश्चित था । इसमें कुछेक दिन जरूर लग सकते थे ।
–"जरूर ।" वह कुर्सी पीछे खिसकाकर बोला ।
पेपर वर्क का ढेर सामने था लेकिन उसे इसके मुकाबले में एक्शन ज्यादा पसंद था । हमेशा इसी को तरजीह देता था । यही वजह थी जरूरी होने के बावजूद पेपरवर्क हमेशा पेंडिंग रहता था ।
–"उठो ।" वर्मा ने टोका ।
–"आप मुझे दो मिनट का वक्त दे सकते हैं, सर ?"
–"जरूर !"
उन दोनों को साथ लिये वर्मा दूर कोने में ड्यूटी डेस्क की ओर चला गया ।
रंजीत ने पुन: रजनी का नंबर डायल किया ।
इस दफा रजनी से सम्बन्ध स्थापित हो गया ।
–"हलो ?"
–"मिस राजदान ?" उसकी आवाज़ पहचानता रंजीत बोला ।
–"यस ?"
–"इंसपेक्टर रंजीत मलिक स्पीकिंग !" रंजीत ने कहा हालांकि उसे यकीन था रजनी उसकी आवाज़ पहचान गयी होगी–"तुम्हारा मैसेज मिला है ।"
–"ओह, फोन करने के लिये शुक्रिया ! मुझे एक बात याद आयी है...!"
–"क्या ?"
–"बात छोटी है लेकिन आपने कहा था, कुछ भी याद आये तो…!"
–"मुझे याद है । क्या बताना चाहती हो ?"
–"दरअसल मैं यहां...।"
स्वर में व्याकुलता थी । फिर मौन छा गया ।
रंजीत उसकी परेशानी भांप गया ।
–"तुम वहां से इस बारे में बात नहीं करना चाहती ?"
–"आप ठीक समझ रहे हैं ।"
–"कब मिल सकती हो ?"
–"जब आप कहें ।"
–"आज रात फ्री हो ?"
–"रोज ही होती हूं ।"
"ओ० के० । मैं अभी नहीं बता सकता कब तक काम खत्म होगा लेकिन फारिग होते ही फोन करुंगा ।"
–"बाहर ले जाओगे ?"
–"हां !"
–"कहां ?"
–"जहां भी कहोगी ।"
–"मेरी नजरों में कोई खास जगह नहीं है...दरअसल मैं जानना चाहती हूं अपने साथ बाहर जाने वाली लड़कियों को कैसे लिबास में पसंद करते हो ?"
–"मेरे साथ आने वाली कोई लड़की नहीं है...वैसे मेरा तजुर्बा कहता है लड़कियाँ वही पहनती हैं, जो उन्हें खुद को अच्छा लगता है या जो उनकी नजरों में उन पर फबता है...मैंने समझा था हम काम के बारे में मिलने वाले हैं ।"
–"आप काम के अलावा कुछ और नहीं सोचते ?"
–"हम पुलिस वालों को कुछ और सोचने का वक्त ही नहीं मिलता ।"
–"निकाल भी नहीं सकते ?"
–"कोशिश करुंगा ?"
–"गुड...वैरी गुड ! अब मेरे लिबास के बारे में भी बता दो ।"
अचानक रंजीत ने महसूस किया धड़कनें तेज थीं और गला खुश्क हो रहा था ।
–"कुछ भी पहन लेना । तुम पर सब फबेगा ।"
–"सच ?"
–"हां !"
–"मैं भी यही सुनना चाहती थी । काम से फारिग होते ही फोन कर लेना । बाई, फार नाऊ !"
दूसरी ओर से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया गया ।
रिसीवर यथास्थान रखकर रंजीत ने चेहरे पर हाथ फिराया तो पता चला माथे पर पसीना छलक आया था ।
वह अपनी नोट बुक और पैन उठाकर खड़ा हो गया ।
टेलीफ़ोन आप्रेटर के पास जाकर हिदायतें दी कि दुबई की उसका काल महाजन हाउस के नंबर पर ट्रांसफर करा दी जाये ।
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