मोरीना सलानियो इस वक़्त औरत नहीं लग रही थी। वह उस देसी आदमी को भूखी शेरनी की तरह घूर रही थी जो उसके सामने एक कुर्सी में रस्सी से जकड़ा बैठा था.... इसके अलावा एक देसी आदमी और भी था....लेकिन वह मोरीना के आदमियों के साथ थोड़ी दूरी पर खड़ा बेपरवाही से सिगरेट के हल्के-हल्के कश ले रहा था....

‘‘बताओ!’’ मोरीना गरजी! ‘‘हड़ताल क्यों नाकाम हुई थी?’’

‘‘मैं नहीं जानता!’’ कुर्सी में बँधे हुए आदमी ने जवाब दिया।

‘‘आर्टामोनॉफ़....!’’ मोरीना ने आर्टामोनॉफ़ की तरफ़ देखे बग़ैर उसको पुकारा।

‘‘हाँ मादाम!’’

‘‘उसके बाज़ुओं पर ख़ंजर की नोक से इंक़लाब लिखो।’’

आर्टामोनॉफ़ जेब से एक बड़ा-सा चाक़ू निकाल कर देसी की तरफ़ बढ़ा और देसी डर से चीख़ने लगा, ‘‘तुम मुझे डरा नहीं सकते....तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते....’’

आर्टामोनॉफ़ ने चाक़ू की नोक उसके बाज़ू में उतार दी....देसी ने अपने होंट भींच लिये।

अब वह ख़ामोश हो गया था....उसमें कोई हरकत नहीं हो रही थी....सिर्फ़ उसकी आँखों से तकलीफ़ के एहसास ज़ाहिर हो रहा था....

‘‘बस, अब हट जाओ!’’ मोरीना बोली।

आर्टामोनॉफ़ ने चाक़ू हटा लिया....देसी की आस्तीनों से खून की बूँदें टपक रही थीं।

‘‘अब बताओ?’’ मोरीना ने उससे पूछा।

‘‘हाँ....अब मैं ज़रूर बताऊँगा....! सुनो!’’ देसी दाँत पीस कर बोला। ‘‘मैं तुम्हारे साथ था। मैं अपनी ज़िन्दगी से खेला हूँ। मैंने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया....लेकिन अब तुम्हारी पोल खुल चुकी है....! तुम्हारे संगठन का दावा है कि सारी दुनिया के आदमियों की वह मदद करता है, लेकिन यह दावा एक खुला झूठ है....तुम्हारा संगठन सारी दुनिया में एक ख़ास क़िस्म का इंक़लाब लाना चाहता है। सिर्फ़ इसलिए कि दुनिया के किसी कोने में उसके दुश्मन न रह जायें....और वह मुल्क सारी दुनिया पर अपनी चौधराहट क़ायम करे जो उस सोसाइटी का सेंटर है....!’’

‘‘आर्टामोनॉफ़!’’ मोरीना ने बहुत ही ठण्डे दिमाग़ से कहा। इसकी रान पर इंक़लाब लिखो।’’

आर्टामोनॉफ़ ने उसकी रानों पर चाक़ू की नोक से वही काम शुरू किया।

देसी अपना निचला होंट दाँतों में दबाये पत्थर के बुत की तरह मोरीना को घूर रहा था।

‘‘अब क्या कहते हो।’’ मोरीना ने थोड़ी देर बाद कहा।

‘‘मैं तुम पर थूकता हूँ।’’ देसी ने काँपती हुई आवाज़ में कहा। ‘‘तुम जहन्नुम की अप्सरा नहीं, बल्कि जहन्नुम की रण्डी हो, कुतिया। जहाँ भयंकर-भयंकर दानव तुम्हारी टाँगें उठाया करते हैं।’’

‘‘आर्टामोनॉफ़ उसके दायें कान का निचला हिस्सा काट दो।’’ मोरीना ने इतने इत्मीनान से कहा जैसे वह उसे इनाम दिलवा रही हो।

आर्टामोनॉफ़ ने उसके दायें कान की लौ उड़ा दी! देसी अपनी चीख़ किसी तरह न रोक सका।

मोरीना ख़ामोशी से उसे देखती रही, फिर उसने आर्टामोनॉफ़ को अलग हट जाने का इशारा किया। देसी के कान से ख़ून की धार निकल कर गर्दन पर फैल रही थी।

‘‘तुम अपनी ज़िन्दगी से क्यों उकता गये हो,’’ उस देसी आदमी ने कहा जो दूर खड़ा सिगरेट पी रहा था।

‘‘भाई!’’ज़ख़्मी कराहा ‘‘ ख़ुदा तुम्हें अक़्ल दे....एक दिन तुम्हारा भी यही हश्र होने वाला है....मगर उस वक़्त चाकू तुम्हारे अपने ही किसी भाई के हाथ में होगा....मुल्क और क़ौम से ग़द्दारी करने वाले का यही अंजाम होना चाहिए....और मैं तो ख़ुश हूँ कि मुझे इन्हीं लोगों के हाथों से सज़ा मिल रही है, जिन्होंने मुझे बहकाया था।’’

‘‘ख़ामोश रहो!’’ मोरीना चीख़ी! ‘‘तुम्हारी हड्डियों पर से एक-एक बोटी करके गोश्त उतारा जाएगा।’’

‘‘यह भी करके देख लो....लेकिन तुम्हें हड़ताल की नाकामी की वजह मालूम न हो सकेगी। तुम मुझे मार डालो तब भी....!’’

‘‘आर्टामोनॉफ़....! दूसरे कान की लौ भी उड़ा दो।’’

इस बार देसी के मुँह से एक लम्बी चीख़ निकली और वह बेहोश हो गया।

‘‘इरशाद....!’’ मोरीना ने दूसरे देसी को मुख़ातिब किया।

‘‘हाँ....मादाम!’’

‘‘अब क्या किया जाये।’’

‘‘कुछ भी नहीं....वह हरगिज़ नहीं बतायेगा।’’

‘‘ख़ैर....परवाह नहीं!’’ मोरीना ने लापरवाही से कहा। ‘‘आर्टामोनॉफ़! उसे ख़त्म ही कर दो।’’

आर्टामोनॉफ़। बेहोश आदमी की तरफ़ फिर बढ़ा।

‘‘ठहरो!’’ इरशाद चीख़ा....! उसके दायें हाथ में रिवॉल्वर था और वह उछल कर दूर जा खड़ा हुआ था।

‘‘क्या मतलब?’’ आर्टामोनॉफ़ पलट कर ग़ुर्राया।

‘‘तुम सब अपने हाथ ऊपर उठा लो....इससे पहले मैं मरूँगा मैंने तुम्हारे इंक़लाब की तस्वीर देख ली....और अब मैं भी उस पर लानत भेजता हूँ....काश! मैं उसकी जगह होता!’’

‘‘मोसियो इरशाद, तुम पागल हो गये हो....’’ मोरीना ने मुस्कुरा कर कहा।

‘‘नहीं, अब होश में आया हूँ। पागल तो पहले था....! भलाई इसी में है कि इसे खोल दो। और मैं इसे यहाँ से ले जाऊँ, क्योंकि मेरी ही बदौलत ये तुम्हारी पकड़ में आया था।’’

‘‘आर्टामोनॉफ़! मोसियो इरशाद का कहना मानो।’’ मोरीना नर्म आवाज़ में बोली।

आर्टामोनॉफ़ झुक कर रस्सी खोलने लगा....!

ये एक शैतानी पल था....इरशाद का पूरा ध्यान आर्टामोनॉफ़ की तरफ़ था और वह उस पल में ये भूल गया था कि वहाँ कई दूसरे आदमी भी हैं। अचानक मोरीना के साथियों में से एक ने इरशाद पर छलाँग लगायी, एक फ़ायर हुआ और सामने वाली दीवार का बहुत-सा प्लास्टर चिटक कर ज़मीन पर आ गिरा। रिवॉल्वर इरशाद के हाथ से निकल कर कई फ़ुट ऊँचा उछल गया....वे दोनों एक-दूसरे से लिपट गये थे। इरशाद उस विदेशी से ज़्यादा ताक़तवर नहीं मालूम होता था।

‘‘नख़लियॉफ़! गला घोंट दो उसका!’’ मोरीना ने ठहाका लगाया।

लेकिन अचानक ख़ुद उसके गले में फँसी हुई आवाज़ें निकलने लगीं....क्योंकि उसकी गर्दन में देखने वालों को एक फन्दा पड़ा हुआ दिखा....रस्सी का दूसरा सिरा रोशनदान तक पहुँच कर ग़ायब हो गया था। वे बौखला कर उसकी तरफ़ दौड़े, लेकिन वह आदमी भी उछल कर अलग हट गया जो इरशाद से लिपटा था। मोरीना के पैर ज़मीन से लगभग एक फ़ुट ऊपर थे और उसने दोनों हाथों से रस्सी पकड़ रखी थी, वरना उसकी गर्दन कभी की टूट चुकी होती....गर्दन पर फन्दे का ज़ोर नहीं पड़ रहा था....वह उसी तरह लटकी हुई हिटलरी अन्दाज़ में चीख़ती रही।