बिल्ली की आँखें
उसकी आँखें सुनहरे रंग की प्रतीत होतीं जब उन पर सूरज की रोशनी पड़ती। और जैसे ही सूरज पहाड़ों के ऊपर डूबता, आकाश में लाल गहरे घाव छोड़ता, किरण की आँखों में सुनहरे रंग से भी ज़्यादा कुछ होता। उनमें क्रोध था; क्योंकि उसकी अध्यापिका ने अपने कथन द्वारा उसका हृदय छलनी कर दिया था—हफ़्तों से चले आ रहे अपमान और व्यंग्य की तो अब अति ही हो गई थी।
किरण अपनी कक्षा की सब लड़कियों में सबसे गरीब थी और ट्यूशन ले पाने में अक्षम थी जो कि लगभग अनिवार्य हो गया था, अगर कोई उत्तीर्ण होना और दूसरी कक्षा में जाना चाहता था। “तुम्हें नौवीं में एक साल और बिताना होगा,” अध्यापिका ने कहा। “और अगर तुम्हें यह पसन्द नहीं तो तुम दूसरे स्कूल में जा सकती हो—ऐसा स्कूल जहाँ यह बात मायने नहीं रखती कि तुम्हारी शर्ट फटी है और ट्यूनिक पुरानी है और जूते जवाब देने वाले हैं।” अध्यापिका ने अपने बड़े-बड़े दाँत दिखाये, जो कि अच्छे स्वभाव की निशानी की तरह प्रदर्शित किये गये थे और बाकी लड़कियों ने भी उनका अनुसरण करते हुए अपने दाँत दिखाये। चापलूसी, अध्यापिका की निजी संस्था में पाठ्यक्रम का एक हिस्सा बन गयी थी।
घिरते अँधेरे में घर लौटते हुए किरण की दो सहपाठिनें उसके साथ थीं।
“वह एक नीच बूढ़ी औरत है,” आरती ने कहा, “उसे किसी की नहीं बस खुद की परवाह है।”
“उसकी हँसी मुझे गधे के रेंकने जैसी लगती है,” सुनीता ने कहा जो ज़्यादा सही थी।
लेकिन किरण वास्तव में सुन नहीं रही थी। उसकी आँखें दूर किसी जगह पर टिकी हुई थीं, जहाँ देवदारों की झलक दिखाई दे रही थी, रात्रि के आकाश में जो हर क्षण चमकदार होता जा रहा था। चाँद निकल रहा था, पूरा चाँद, चाँद जो किरण के लिए कुछ खास मायने रखता था, जो उसके खून को दौड़ाता और उसकी त्वचा चटकती, उसके बाल चमकते और जगमगाते। उसके कदम हल्के होते प्रतीत हो रहे थे, उसके अंग बहुत ही भव्य लग रहे थे जब वह बहुत ही नज़ाकत और आराम से पहाड़ी के रास्ते पर चली जा रही थी।
अचानक उसने अपनी सहपाठिनों को सड़क के एक मोड़ पर छोड़ दिया।
“मैं जंगल से होते हुए छोटे रास्ते से जा रही हूँ,” उसने कहा।
उसकी सहपाठिनें उसके इस तरह के आकस्मिक व्यवहार की अभ्यस्त हो चुकी थीं। उन्हें पता था कि वह अँधेरे में अकेले होने से नहीं डरती। लेकिन किरण के तेवर ने उन्हें थोड़ा सहमा दिया और अब वे एक-दूसरे का हाथ पकड़े, खुले रास्ते से तेज़ी से घर की ओर बढ़ने लगीं।
छोटा रास्ता किरण को सिन्दूर के जंगल के मध्य से ले गया। सिन्दूर के पेड़ों की टेढ़ी-मेढ़ी, शापित शाखाएँ रास्ते पर वक्र छाया फेंक रही थीं। एक सियार चाँद को देख हूआँ-हूआँ कर रहा था। कीटभक्षी रात्रि चिड़िया झाड़ियों में से बोली। किरण तेज़ चलने लगी, डर से नहीं, बल्कि किसी चीज़ की जल्दबाज़ी में और उसकी हाँफती साँसें तेज़ी से चलने लगीं। जब वह गाँव की बाहरी सीमा पर स्थित अपने घर पहुँची तो चमकते चाँद की रोशनी से पहाड़ी का किनारा नहा गया था।
रात के खाने को मना करती हुई वह सीधे अपने छोटे से कमरे में पहुँची और झटके से खिड़की खोल दी। चाँद की किरणें खिड़की की चौखट और उसकी बाज़ुओं पर पड़ रही थीं जो कि पहले से ही सुनहरे रोमकूपों से भरे हुए थे। उसके मज़बूत नाखूनों ने खिड़की की चौखट की सड़ी हुई लकड़ी के टुकड़े-टुकड़े कर दिये।
लहराती हुई पूँछ और खड़े हुए कान लिये सुनहरी आँखों वाला चीता तेज़ी से खिड़की के बाहर आ गया। घर के पीछे के खुले खेत को पार करता हुआ वह अँधेरे में गुम हो गया।
थोड़ी देर बाद उसने दबे मंद कदमों से जंगल पार कर लिया।
हालाँकि चाँद टिन की छतों पर बहुत तीव्रता से चमक रहा था, चीता जानता था कि छाया कहाँ सघन होगी और उसके साथ बहुत ही खूबसूरती से एकाकार हो रहा था। कभी-कभार साँस लेने के कारण जो हल्की रूखी खाँसी उसे हो रही थी, उसके अलावा वह कोई आवाज़ नहीं कर रहा था।
अध्यापिका लेडीज क्लब के रात्रि भोज से लौट रही थीं, जिसे ‘किटेन क्लब’ कहा जाता था, जो पति के क्लब से जुड़ाव को परास्त करने की एक कोशिश थी। अब भी सड़क पर कुछ लोग थे और कोई भी अध्यापिका पर ध्यान देने से खुद को रोक नहीं पाया, जिनकी आकृति एक स्टीम रोलर मशीन जैसी थी। किसी ने उस शिकारी को न देखा, न सुना जो सड़क के किनारे उतर कर चलता हुआ आया और अध्यापिका के घर की सीढ़ियों पर बैठ गया। वह वहाँ शान्ति से बैठा रहा, इन्तज़ार करता हुआ, एक आज्ञाकारी स्कूल की लड़की की तरह।
जब अध्यापिका ने चीते को देखा, उनके हाथ से उनका बैग छूट कर गिर गया और उन्होंने चिल्लाने के लिए अपना मुँह खोला; लेकिन उनकी आवाज़ बाहर नहीं आ सकी। न ही अब उनकी ज़ुबान का फिर कोई इस्तेमाल हो सकता था, चिकन बिरयानी खाने के लिए या अपने विद्यार्थियों पर ज़हर उगलने के लिए, क्योंकि चीता उनके कंठ पर छलाँग लगाकर उनका गला मरोड़ कर उन्हें झाड़ियों में खींच कर ले जा चुका था।
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सुबह जब आरती और सुनीता स्कूल के लिए निकलीं तो वे हमेशा की तरह किरण के घर के पास रुकीं और उसे पुकारा।
किरण धूप में बैठी अपने लम्बे, काले बालों में कंघी कर रही थी।
“क्या तुम आज स्कूल नहीं जा रहीं, किरण?” लड़कियों ने पूछा।
“नहीं, आज मुझे जाने की ज़रूरत नहीं,” किरण ने कहा। वह आलस महसूस कर रही थी लेकिन आनन्दित थी, एक सन्तुष्ट बिल्ली की तरह।
“अध्यापिका खुश नहीं होंगी,” आरती ने कहा, “क्या हम उन्हें कहें कि तुम बीमार हो।”
“इसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी,” किरण ने कहा और उन्हें अपनी एक रहस्यमयी मुस्कान दी, “मुझे उम्मीद है कि आज छुट्टी होने वाली है।”
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