बाथरूम की खिड़की खोलकर वह इस तरह भागा था जैसे शेरनी के पंजे से छूटकर हिरन भागा हो । किसी बात की परवाह किये बगैर दौड़ता - हांफता 'चाणक्य' की पार्किंग में खड़ी अपनी गाड़ी तक पहुंचा और इस वक्त उसी को ड्राइव कर रहा था वह ।


विला की तरफ नहीं - --- बल्कि विपरीत दिशा में ।


सुनसान सड़क पर


विला जाना होता तो 'चाणक्य' से दो मिनट में पहुंच सकता था।


मगर वहां जाने की हिम्मत ही नहीं हुई उसकी 1


जो हुआ, बहुत सनसनीखेज था । उस सबके होने की कल्पना तो उसने दूर-दूर तक नहीं की थी मगर, हुआ भी खुद उसी की बेवकूफी से । विचित्रा की चेतावनी को भूल गया था वह । न वह दिव्या के जिस्म के भंवरलाल में फंसता, न अलमारी के दरवाजे को इतना खोलता और न ही यह सब होता । परन्तु क्या करता वह ? दिव्या का जिस्म था ही इतना हाहाकारी ।


जो हुआ, बस होता चला गया ।


खुद उसके वश में कुछ नहीं रह गया था ।


राहत की बात यह थी, वह सबकुछ होने के बावजूद मामला जड़ से नहीं उखड़ा था । ऐसा कुछ नहीं था जिसे बेड़ा गर्क हुआ मान लिया जाता। बहरहाल अपना काम पूरा करके आया था वह । और... दिव्या को इल्म भी नहीं हुआ था। वह अंत तक इसी गलतफहमी का शिकार थी कि वहां 'नीयत खराब' होने की वजह से था । उसके असल मकसद के बारे में तो वह स्वप्न तक में नहीं सोच सकेगी।


वह वही कपड़े पहनेगी ।


वही कोट, पेन्टी, गाऊन और ब्रा ।


वे कपड़े नहाने के बाद पहनने के लिए ही उसने टॉवल के साथ अलमारी से निकालकर ड्रेसिंग टेबल पर रखे थे। जो हुआ था उसका इस बात से तो कोई मतलब नहीं था कि वह उनके अलावा कोई कपड़े पहनने का निश्चय करती ।


क्या 'ब्रा' की नोंकों के गीलेपन पर उसका ध्यान जाएगा ?


नहीं!


इस प्वाइंट पर तो वह पहले ही गौर कर चुका था । वह जानता था ---- ब्रा स्नान के बाद पहनी जाएगी। कितना भी पौंछ ले शरीर को । गीलापन रहेगा ही और... ब्रा की नोंकों का गीला होना उसी में खप जाएगा ।


कोई कारण नहीं दिव्या ने वही कपड़े न पहने हों।


इसका मतलब जहर उसके निप्पल्स तक पहुंच चुका है। अब बस राजदान द्वारा उन्हें चुसकना बाकी है। खेल खत्म हो जाएगा। कितना नायाब, कितना शानदार तरीका रहा!


एकाएक देवांश की आंखों के सामने राजदान की मौत के बाद का दृश्य उभर आया ।


इन्वेस्टिगेशन करता ठकरियाल । उसके पंजे में फंसे समरपाल और दिव्या । दिव्या चीख-चीखकर कह रही है उसका समरपाल से कोई सम्बन्ध नहीं है। उसे नहीं मालूम निप्पल्स पर जहर कहां से आ गया ? कोई उसकी नामुमकिन बात पर विश्वास नहीं कर रहा । ठकरियाल कह रहा है ---- ऐसा भला कैसे हो सकता है कोई तुम्हारे निप्पल्स पर जहर लगा गया और तुम्हें पता तक नहीं लगा ? तब...तब दिव्या ठकरियाल को रात की इस घटना के बारे में बताती है ।


सुनकर क्या सोचेगा ठकरियाल?


सोचते-सोचते पसीना उभरने लगा देवांश के फेस पर ।


गाड़ी की खिड़कियां खुली थीं । ठण्डी हवा के तेज झोंके से लग रहे थे। इसके बावजूद देवांश के मसाम पसीने उगलने लगे। घटना के बारे में सुनते ही ठकरियाल जैसा पुलिसिया सबकुछ समझ जाएगा। सारी कहानी समझने में एक पल भी तो नहीं लगेगा उसे ।


और दिव्या!


वह जानती है वास्तव में उसने अपने निप्पल्स पर जहर नहीं लगाया । न ही समरपाल के उससे कोई सम्बन्ध हैं। इन हालात में खुद उसका दिमाग भी तो सोचेगा कि ---- निप्पल्स पर जहर कब आया ? कहां से आया ? कैसे आया? किसने लगाया? और... इन सब सवालों के जवाब में उसके दिमाग में उभरेगी बाथरूम की घटना ! इस वक्त भले ही वह इस भ्रम में हो कि मैं वहां 'नीयत खराब' होने की वजह से था मगर तब ... ठकरियाल तो बाद में समझेगा, दिव्या की समझ में पहले ही सारी कहानी आ जाएगी ।


जैसा कि प्लान था ---- यदि दिव्या ने उसे ड्रेसिंग में न देखा होता तो उसकी या किसी की भी समझ में जहर का रहस्य नहीं आता। मगर अब.. अब तो सबकुछ स्पष्ट है ।


आइने की तरह साफ।


कितना बेवकूफ है वह जो सोच रहा था, कोई गड़बड़ नहीं हुई।


बेड़ा तो गर्क हुआ पड़ा है।


उधर राजदान मरा, इधर फांसी के फंदे की तरफ उसका सफर शुरू हुआ।


" देवांश ने जितना सोचा दिमाग पर घबराहट हावी होती चली गयी । स्टेयरिंग पर मौजूद हाथ कांपने लगे । चीख-चीखकर कहने लगा उसका दिमाग ---- 'अब तू एक ही अवस्था में बच सकता है देवांश !... तब जब राजदान की मौत न हो ।'


मगर कैसे हो सकता है ऐसा ? जाल तो पूरा बिछा आया वह ।


दिल की गहराई से दुआ निकली- -' हे भगवान, आज की रात दिव्या और राजदान हमबिस्तर ही न हों ।' कल सुबह जब दिव्या पुनः नहायेगी तो निप्पल्स पर लगा जहर खुद-ब-खुद धुलकर पानी में बह जायेगा । जब राजदान मरेगा ही नहीं तो कोई बात नहीं उठेगी। किसी और की तो बात ही दूरदूर ---- खुद दिव्या को पता नहीं लगेगा ड्रेसिंग में वह क्या कारस्तानी कर गया था । जीवनभर यही सोचती रहेगी कि वह वहां 'नीयत खराब' की वजह से था।


लेकिन ---- ये तो 'भगवान भरोसे' वाली बात हो गयी। अपने जीवन-मरण के प्रश्न को किस्मत के हवाले कैसे कर सकता है वह ? कोशिश करनी होगी उसे । कुछ ऐसा करना होगा जिससे आज की रात दिव्या और राजदान अलग रहें और ऐसा ---- यूं सड़क पर भटकते रहकर नहीं कर सकता वह ।


विला जाना होगा ।


वहां दिव्या होगी ।


कैसे सामना कर सकेगा उसकी नजरों का?


जो भी हो, जाना तो पड़ेगा ही।


हालात देखने होंगे वहां के । उनके मुताबिक कुछ करना होगा ।


देवांश को लगा ---- इस काम को वह आसानी से कर लेगा । भले ही चाहे जो करना पड़े । आज रात राजदान और दिव्या के बीच संसर्ग होने नहीं देगा वह ।


'जेन' यू टर्न के साथ वापस मोड़ दी ।


काश... काश वह जानता ----विला में पहुंचकर वह एक और मुसीबत में फंसने वाला है। ऐसी मुसीबत में जैसी शायद पहले कभी किसी की जिन्दगी में नहीं आई थी ।


***


आफताब पर नजर पड़ते ही देवांश का माथा ठनका ।


'जेन' गैराज में खड़ी करके उस वक्त वह विला की इमारत के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ रहा था ।


ठिठका!


आफताब दूसरे दो नौकरों के साथ सर्वेन्ट क्वार्टर के बाहर खाट पर बैठा था ।


तीनों उसे ठिठका देखकर खड़े हो गये ।


देवांश गुर्राया ---- “तू यहां क्या कर रहा है ?”


“व-वो----सर।” आफताब हकलाता रह गया । शब्द मुंह से निकल नहीं पा रहे थे ।


——दीनू काका नामक विला के सबसे पुराने नौकर ने उसकी मदद की - - - - “छोटे मालिक, बड़े मालिक के कहने पर रुक गया है ये यहां । उन्होंने कहा ----- -आपसे खुद बात कर लेंगे।"


कुछ और भड़क उठा देवांश ---- “इसका मतलब तूने भैया से बात की ?”


“स- सर ।” कांपता हुआ आफताब बड़ी मुश्किल से कह सका- -- “नौकरी चली गई, तो गांव में मेरे बूढ़े मां-बाप भूखे मर जायेंगे। आपके पैर पड़ता हूं मैं... | "


वह सचमुच उसके कदमों में गिर पड़ा।


देवांश ने सोचा ---- जब मर्डर होने वाला ही नहीं है तो इसी बेचारे पर कहर बरपाने की क्या जरूरत है, अतः उसे वहीं पड़ा छोड़कर पलटा और इमारत के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गया।


लॉबी में पहुंचा। ·


भागवंती मिली। उसने कहा-“बड़े मालिक से मिल लीजिए छोटे मालिक | बहुत देर से आपका इंतजार कर रहे हैं। कई बार पूछ चुके हैं आप आये या नहीं ? ... !”


देवांश बगैर कुछ कहे राजदान के बैडरूम की तरफ बढ़ गया ।


दिल दिव्या की नजरों का सामना करने के ख्याल से असामान्य गति से धड़कने लगा था ।


लेकिन मजबूरी थी। जाना तो उसे था ही ।


बहरहाल, मर्डर होने से रोकना था ।


कमरे में दिव्या और राजदान के अलावा बबलू भी था ।


दिव्या वही कपड़े पहने हुए थी। हल्के गुलाबी रंग का, नेट वाला जालीदार नाइट गाऊन। उसके ऊपर काई रंग का कोट । देवांश देख नहीं सका गाऊन के नीचे वही पेंटी और ब्रा हैं या नहीं । कोट न होता तो गाऊन की जाली से वे दोनों चीजें नजर आ जातीं।


राजदान ने अभी-अभी बबलू की किसी बात पर ठहाका लगाया था ।


उसकी पदचाप सुनकर सबसे पहले दिव्या ने ही दरवाजे की तरफ देखा ।


नजरें मिलीं ।


उफ्फ... कितनी चमचमा रही थीं दिव्या की आंखें ।


देवांश उनका सामना न कर सका।


आधे सेकंड में ही आंखें झुका लीं उसने ।


“लो ।” दिव्या की आवाज कमरे में गूंजी ---- “आ गया आपका लाडला!"


'लाडला' शब्द दिव्या ने पहली बार इस्तेमाल किया था । देवांश को लगा --- व्यंग्य किया गया है उस पर । कर क्या सकता था वह ? चेहरा उठाकर आंखों में शिकायत लिए उसकी तरफ देखा मगर उस वक्त दिव्या उसकी तरफ नहीं राजदान की तरफ देख रही थी। राजदान ने सोफे से उठकर खड़े होते हुए कहा -----


“आओ बर्खुरदार ! .... आओ।”


देवांश को यह लहजा भी व्यंग्य में डूबा लगा।


तो क्या दिव्या ने उसे सब कुछ बता दिया है ?


“नमस्ते अंकल ।” बबलू की आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की ।


राजदान ने कहा“गोरेगांव से आने में टाइम तो लगता है मगर इतना नहीं ।”


“व - वो भैया | रास्ते में पंक्चर हो गया था।”


“ और मोबाइल तूने ऑफ कर दिया था ताकि मैं बार-बार फोन न कर सकूं।"


“ ऐसा नहीं है भैया।.... असल में इसकी बैटरी 'वीक' पड़ गई थी।”


" मैं सब जानता हूं कौन-सी बैटरी वीक पड़ गयी है तेरी । उसे चार्ज करना पड़ेगा।” राजदान उसकी तरफ बढ़ता हुआ । बोला ---- “मैं दावे से कह सकता हूं, न तू गोरेगांव से आया है, न पंक्चर हुआ था । सच बता ---- -कहां था तू?”


अंदर ही अंदर कांप गया देवांश । उसने ऐसी नजरों से दिव्या की तरफ देखा जैसे पूछ रहा हो ---- 'क्या तुमने बाथरूम की घटना के बारे में बता दिया है? उसकी आंखों का भाव पढ़कर दिव्या ने आंखों के इशारे से कहा- कहा ---- 'नहीं।'


बबलू ने देख लिया था इस इशारेबाजी को ।


“मेरी तरफ देखकर जवाब दे छोटे । इन आंखों में देखकर।” राजदान ने अपनी आंखें उसकी आंखों में डाल दी थीं- “क्या तू विचित्रा के साथ नहीं था ?”


“बिल्कुल नहीं भैया ।”


“मोबाइल आदमी वहीं बंद करता है जहां डिस्टर्ब होना पसंद न करता हो ।”


“म - मैंने कहा न । मोबाइल बंद नहीं किया था । बैट्री वीक हो गई थी।”


“दिखा!” राजदान ने हथेली फैलाई ।


देवांश ने हड़बड़ाकर पूछा-- “क- क्या?”


“मोबाइल ।”


“व - वो भैया...


देवांश हकलाता रह गया । राजदान ने खुद हाथ बढ़ाकर टी शर्ट की जेब से फोन निकालते हुए कहा ---- "इस तरह आदमी तभी हकलाता है जब झूठ बोल रहा हो ।”


देवांश पर कुछ कहते न बन पड़ा । चेहरे पर खाक उड़ रही थी।


राजदान ने मोबाइल ऑन करते हुए कहा ---- “ये देख ! आधी बैट्री बाकी है अभी ।” कहने के बाद उसने 'सर्च' वाला बटन दबाना शुरू कर दिया। उससे वे सारे नम्बर क्रम में स्क्रीन पर आते चले गये जो उसने मिलाये थे। उन्हें चैक करता राजदान बोला ---- “हर बार एक ही नम्बर । लगता इस नम्बर के अलावा तुझे दुनिया का कोई और नम्बर याद ही नहीं रह गया है। मैं अच्छी तरह जानता हूं----ये नम्बर विचित्रा का है। उसी के बारे में बात करनी चाहता हूं तुझसे ।”


क्या बोलता देवांश ?


राजदान ने बबलू से कहा ---- “अब तू जा बबलृ ! मुझे तेरे अंकल से जरूरी बातें करनी हैं। कल फिर मिलेंगे।”


“ओ.के. चाचू । चलता हूं।” कहने के साथ उसने राजदान की तरफ आंख मारी और दरवाजे की तरफ दौड़ गया । उसके आंख मारने पर राजदान के होठों पर मुस्कान उभरी मगर बहुत ज्यादा देर तक कायम नहीं रही वह । बबलू के ओझल होते ही राजदान गंभीर नजर आने लगा| मोबाइल वापस देवांश की जेब में रेखा और सेन्टर टेबल की तरफ चहलकदमी-सी करता बोला ---- "फैसला नहीं कर पा रहा बात कहां से शुरू करूं?”


देवांश ही नहीं, दिव्या भी चुप रही ।


दोनों की नजरें उसी पर जमी थीं। उस पर जिसने काली सफेद धारियों वाला अपना पसंदीदा नाइट गाऊन पहन रखा था । सेन्टर टेबल पर पड़ी डिब्बी से उसने एक सिगार निकाला । म्यूजिकल लाइटर से सुलगाया और ढेर सारे धुएं से कमरे के वातावरण को दूषित करता बोला ---- “ठकरियाल ने मुझसे एक बार नहीं, बार-बार पूछा, दुनिया में ऐसा कौन शख्स हो सकता है जो तुम्हारी हत्या का तलबगार हो। मैने हर बार कहा मुझे नहीं मालूम | मगर ये झूठ था।"


"झूठ था "- दिव्या चूंकि- "इसका मतलब आपको मालूम है जो हमला...


"दिव्या प्लीज!" तभी राजदान ने उसे आगे बोलने से रोजा "बीच में मत बोलो | मेरा तास्तम्भ टूट जाता । है जो कह रहा हूं, ध्यान से सुनती रहो।"


देवांश सुन्न पड़ चुका था।


“हां! तो क्या कह रहा था मैं ।" कमरे में पुनः राजदान की आवाज गूंजी "मैं ठकरियाल से लगातार झूठ बोलता रहा। जबकि जानता हूं कि एक शख्स ऐसा है जो मुझे खत्म करने के लिए मरा जा रहा है।"


"क-कौन है?" देवांश ने तुरन्त उसका छोटा भाई बनकर पूछा ---- "कौन है वो ?"


"विचित्रा ।"


"विचित्रा?" देवांश के होश फाख्ता ।


चौंकती हुई दिव्या ने कहा-“क- क्या ये वही विचित्रा है राज जिसके बारे में तुमने मुझे...


“तुम फिर बीच में बोलीं दिव्या । प्लीज ! प्लीज बीच में मत बोलो । सुनती रहो वो सब जो मैं कह रहा हूं। कहने वाला हूं। सारी तस्वीर साफ हो जाएगी ।”


“मगर राज, मैं तो उस चैप्टर को बंद हुआ मान रही थी । इतने दिन बाद वह...


“मुझे छोटे से बात करने दो दिव्या ।” एक बार फिर राजदान ने उसे बोलने से रोका।


देवांश के दिमाग में जबरदस्त उथल-पुथल मच चुकी थी । बात तो ठीक थी राजदान की। विचित्रा उसकी हत्या की तलबगार थी । मगर किसलिए? क्या सिर्फ इसलिए कि वह उससे प्यार करती थी ? या कोई और कारण था ? वह——— -- जिसके बारे में अभी-अभी राजदान और दिव्या के बीच चंद बातें हुई थीं। किस बारे में हुई थीं वे बातें? साफ जाहिर था ---- - वे दोनों विचित्रा से पहले से वाकिफ हैं ।


“नजरें मत झुका छोटे । मेरी तरफ देख ।” राजदान उसकी ठोड़ी पकड़कर चेहरा ऊपर उठाता हुआ बोला----“मेरी आंखों में। .. . मैं तुझसे एक सवाल पूंछूंगा| तुझे उसका जवाब देना है। सच्चा जवाब। झूठ नहीं बोलेगा । तुझे मेरी कसम।”


खड़ा - खड़ा कांपता रहा देवांश ! बड़ी मुश्किल से नजर मिला पा रहा था उससे ।


“बोल!... सच बोलेगा न? तोड़ेगा तो नहीं मेरी कसम ?'


देवांश के मुंह से कोशिश के बावजूद आवाज न निकल सकी।


“बोलता क्यों नहीं छोटे?” उसकी आवाज में दर्द था ---- “क्या अब तू मुझसे सच बोलने का वादा भी नहीं कर सकता?”


“स - सवाल तो कीजिए आप ।” वह बड़ी मुश्किल से कह सका।


“गाड़ी में टाइम बम तूने ही रखवाया था न ?”


धड़ाम ! धुम्म !! धुम्म !!!


परखच्चे उड़ते चले गये देवांश के दिमाग के ।


चीख पड़ा वह ---- “भ - भैया ! ... ये क्या सोच रहे हैं आप ये मेरे बारे में?”


“मैं तेरे नहीं, विचित्रा के बारे में सोच रहा हूं। जवाब दे---- ये सच है या नहीं?"


“नहीं! नहीं! नहीं!” अपनी घबराहट छुपाने के लिए वह चीखता चला गया।


“इतनी तेज तो नहीं थी बम के साथ लगी घड़ी की आवाज जिसे तूने इंजन की आवाज के बीच ड्राइविंग सीट पर बैठकर सुन लिया। मैं और दिव्या तो वहीं बैठे थे जहां बम रखा था। जब हमें नहीं आई आवाज तो तुझ तक कैसे पहुंच गई?”


“क्या ऊटपटांग बात सोच रहे हैं आप?” बार-बार की चेतावनी के बावजूद दिव्या एक बार फिर बोले बगैर न रह सकी----“बम अगर देवांश ने रखवाया होता तो खुद गाड़ी में क्यों बैठता? क्या ये खुद भी हमारे साथ मरना चाहता था और फिर- - खुद ही बम को 'पकड़ता' क्यों? क्यों मुझसे चीखकर उसे बाहर फेंकने के लिए कहता?”


“वो इसका हम दोनों के प्रति प्यार था ।”


“आप एक ही सांस में दो बातें कर रहे हैं भैया । बम रखवाया भी मैंने ही, मारना भी मैं ही चाहता था और बचाया भी मैंने ही ।”


“हां छोटे ! हां । कभी-कभी एक ही शख्स विरोधाभासी

हरकतें कर बैठता है।” राजदान कहता चला गया ---- " विचित्रा जादूगरनी है। जब उसका जादू किसी के सिर पर चढ़कर बोलता है, तो आदमी पर अपना वश नहीं चलता। इतना ज्यादा जहर होता है ऐसी औरतों में औरतों में कि तुझ जैसे अपने बड़े भाई के 'अंधभक्त' को भी 'बौरा' सकता है । याद रख ---- अगर सच्चाई बता देगा तो मैं नाराज नहीं होऊंगा। न ही मन में तेरे प्रति कोई शिकायत उभरेगी क्योंकि जानता हूं----वैसा हुआ भी है तो तूने नहीं किया । उसके जादू ने किया है। 'शबाब' के नशे ने कराया है। तूने किया होता तो ‘एन’ वक्त पर बम को गाड़ी से न फिंकवा देता । खुद गाड़ी में न बैठता । मेरे ख्याल से हुआ यही है। विचित्रा के जादू में फंसकर कम्मो और बुग्गा के हाथों बम रखवा तो दिया तूने, मगर जब हम गाड़ी में बैठकर चलने लगे तो तेरा प्यार जाग गया। यह एहसास हुआ उस पल कि एक औरत के नशे में डूबकर तू ये क्या कर बैठा ! और तू खुद भी गाड़ी में बैठ गया । बम के फटने का टाइम तो तुझे पता ही था, उससे पहले ही बाहर फिंकवा दिया । बोल छोटे, बोल! यही सब हुआ था न ? बोल मेरे बच्चे!”


"झूठ है भैया | झूठ है ये सब । कल्पना है आपके दिमाग की!” अपनी बौखलाहट को छुपाने का उसे इससे बेहतर रास्ता नहीं मिला कि चीखता चला जाये ---- “मुझे नहीं पता आप विचित्रा के बारे में क्या सोचते हैं। मुझे तो बस यह सोचकर शर्म आ रही है कि आप मेरे बारे मेंअंतिम "


शब्द पर जोर देकर दोहराया उसने- “मेरे बारे में इतनी घटिया बात सोच सकते हैं ।”


"तो बुग्गा ने नकाबपोश की कद-काठी तुझ जैसी कैसे बताई?”


झनझनाकर रह गया देवांश का दिमाग ! उफ्फ! हर बात को. एक - एक शब्द को कितनी गहराई से पकड़ा था राजदान ने। इतनी गहराई तो ठकरियाल की सोच में भी नहीं थी। 'तो क्या इसी सबकी वजह से उदासीन नजर आ रहा था राजदान ?' क्या इसीलिए उसे हमलावर के बारे में जानने की दिलचस्पी नहीं थी? ये सारे विचार पलक झपकते ही उसके जहन में कौंध गये थे। क्योंकि अगले पल तो राजदान द्वारा उठाये गये सवाल का जवाब दे ही दिया उसने ---- “बुग्गा ने तो ये भी कहा था नकाबपोश को दांत भींचकर बोलने की आदत थी। लंगड़ाकर भी चलता था वह । ठकरियाल ने हमारे बीच के एक ऐसे शख्स को खोज भी निकाला है । ”


“समरपाल की बात कर रहा है ?”


“इस बारे में ठकरियाल शायद आपसे बात भी कर चुका है।"


“समरपाल पर मैं मरते दम तक शक नहीं कर सकता।”


“ और मुझ पर कर सकते हैं?"


"क्योंकि विचित्रा से तेरा सम्बन्ध है। उसका होता तो उस पर भी कर लेता। जहां तक बुग्गा के बयान की बात है तो

सुन- ।” एक पल ठहरकर राजदान ने आगे कहा -“कोई भी शख्स सामने वाले को गुमराह करने के लिए दांत भींच -भींचकर बोल सकता है। लंगड़ा न होने के बावजूद लंगड़ाकर चल सकता है। मगर चाहकर भी अपनी कद-काठी नहीं बदल सकता । और समरपाल की कद-काठी तेरे जैसी नहीं, मेरे जैसी है । " ————


“मतलब बुग्गा के बयान से आपने मुझे नकाबपोश मान लिया ।”


“ये नहीं कह रहा पगले । ये नहीं कह रहा मैं । केवल यह कह रहा हूं अगर वह तू ही है तो कुबूल कर ले । पहाड़ नहीं टूट पड़ने वाला तुझ पर | "


देवांश ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा---- “वह मैं नहीं था ।”


“अगर ये सच है तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन ठकरियाल का कहना है ---- समरपाल किसी हालत में नकाबपोश नहीं हो सकता | वह होता तो चेहरे से पहले, अपनी लंगड़ाहट छुपाता। उसे ट्रैप करने की बहुत ही नादानी भरी कोशिश की गई है और जिसने भी यह कोशिश की है, देवांश जैसी कद-काठी का है |”


“ओह! तो ठकरियाल के भरे बोल रहे हैं आप?”


“नहीं छोटे ! ऐसा मत सोच मेरे बारे में।"


“तो विचित्रा से मेरे सम्बन्धों का पता कैसे लग गया आपको?”


“क्या उसे भी इन सम्बन्धों की जानकारी है ?”


"बहुत खूब । कुछ नहीं बताया ?” आप यह कहना चाहते हैं उसने आपको


“कसम से छोटे । तेरी कसम | विचित्रा का तो नाम तक नहीं आया उसके और मेरे बीच ।”


अब देवांश के सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि राजदान को विचित्रा के बारे में कैसे पता लगा ? जब यह सवाल राजदान से किया तो उसने नाइट गाऊन की जेब से एक कागज निकालकर उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा ---- "ये तेरी जेब में पड़े फोन का पिछले महीने का बिल है। बीस हजार चार सौ बावन रुपये बयालिस पैसे । बात पैसों की नहीं, बिल के साथ दी गई डिटेल की है। बार-बार, हर बार एक ही नम्बर पर फोन किया गया । ‘इनकमिंग काल्स' भी उसी नम्बर से आई हैं।”


अब ----कहने के लिए देवांश पर जैसे कुछ रह नहीं गया था । बहुत ही शांत स्वर में कहा राजदान ने- - "ये जो खेल विचित्रा तेरे साथ खेल रही है, वही खेल छः साल पहले मेरे साथ खेल चुकी है ।”


“अ - आपके साथ ?” चीख निकल गयी देवांश के हलक से।


राजदान कहता चला गया- “मैं जो आज यह मानने को तैयार हूं कि उसके नशे में 'धुत्त' होकर तू मेरी हत्या तक की कोशिश कर सकता है, उसके पीछे कोई वजह है। मैंने तुझ पर यूं ही शक नहीं कर लिया छोटे । खुद मैं गुजर चुका हूं उस दौर से जिस दौर से आज तू गुजर रहा है। मैंने खुद विचित्रा के नशे के 'तीखेपन' को उतनी ही शिद्दत से महसूस किया है जितनी शिद्दत से तू महसूस कर रहा है। मैं भी पागल हो गया था उसके पीछे । दीवाना बन गया था। उस जमाने में मैं भी विचित्रा को लेकर वही सब सोचा करता था जो आज तू सोचता है । यह कि सोचता है। यह कि---- वह दूध की धुली है । यह कि तवायफ की बेटी होना कोई गुनाह नहीं और यह कि ---- मैं उसे इस दलदल से निकालूंगा । एक दिन उसने मुझसे कहा ---- 'राज, आदमी को अपनी जिन्दगी में समझदारी से काम लेना चाहिए। समझदार तो तुम बहुत हो मगर शायद प्यार में पड़कर एक छोटी सी भूल कर रहे हो जो आगे जाकर जीवन की सबसे बड़ी भूल बन सकती है। मैंने पूछा ---- 'क्या?' तब उसने कहा----- 'ये पूरा एम्पायर जिसे लोग 'राजदान' एसोसियेट्स' के नाम से जानते हैं, तुमने अकेले अपनी मेहनत, लगन और दिमाग से खड़ा किया है। लेकिन कल तुम्हारा भाई भी इसमें बराबर का हिस्सेदार बनकर खड़ा हो जायेगा । समझदारी इसी में है, वक्त रहते उससे पीछा छुड़ा लो' ।” इतना कहकर राजदान ने सिगार में कश लगाया और पुनः कहना शुरू किया ----- तुझसे कितना प्यार करता हूं इसके लिए मुझे कोई सबूत देने की जरूरत नहीं है छोटे । मगर उस वक्त उसके प्यार का तीखापन इतना 'तीखा' था कि मैंने उसे थप्पड़ नहीं मारा । यह तक नहीं सोच सका वह कितनी नीच है। बस कमजोर से शब्दों में केवल इतना कहा ---- - 'तुम्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए विचित्रा।' मगर विचित्रा तो जैसे सबकुछ सोचे हुए थी। पूरा प्लान! वह पहला दिन था जब 'शादी के बाद वाला बांध' टूटा | खूब रोई वह । कहने लगी- 'तुमने मुझे बहका दिया राज ।' और उसकी बातों में आया मैं बहकता चला गया। सच मान बैठा इस बात को कि वह न चाहते हुए भी बहक गई थी। मैं खुद को दोषी मानने लगा । एक सती का शीलभंग करने का दोषी । उस दिन सोचा----जो हुआ है, उसका सिर्फ एक ही प्रायश्चित है। भले ही प्रलय आ जाये, धरती आसमान से टकरा जाये मगर, शादी करूंगा तो सिर्फ विचित्रा से।"


"क्या आपके पास इन बातों का कोई सुबूत...


"सुनता रह छोटे । सुनता रह । तारतम्य मत तोड़ मेरा ।” कहने के बाद उसने पुनः सिगार में कश लगाया मगर वह बुझ चुका था। राजदान ने सुलगाया। कश लिया और शून्य में आंखें टिकाकर कहने लगा----"उस दिन न सही, मगर धीरे-धीरे उसने यह बात मुझे समझा दी कि अगर मैंने अपने छोटे भाई को खुद से चिपकाये रखा तो भविष्य में वह मेरे लिए बड़ी समस्या बन जायेगा | अगर मैं उससे प्यार ही करता हूं तो थोड़े बहुत पैसे देकर उसे 'अलग' काम करा दूं और आज मुझे यह कुबूल करने में कोई हिचक नहीं है कि उसके रूपजाल में फंसा मैं तुझे अलग करने के लिए तैयार हो गया था । वो तो शुक्र है भगवान का वक्त रहते मेरी आंखें खुल गईं। वरना आज ... आज दिव्या नहीं, विचित्रा तेरी भाभी होती । हम यूं एक छत के नीचे खड़े न होते । बल्कि शायद... मैं भी सड़कों पर भीख मांग रहा होता और इस विला में विचित्रा अपनी मां के साथ गुलछरें उड़ा रही होती " । मगर भगवान शायद मेरे और तेरे साथ था जो 'वह' दिन मेरी जिन्दगी में आया । वह दिन ---- जब मैं विचित्रा से मिलने शांतिबाई के कोठे पर गया । दरवाजे के इधर ही था । ....


ठिठक गया | मां बेटी मेरे ही बारे में बातें कर रही थीं ।


विचित्रा हंस-हंसकर मां को बता रही थी 'मैं' किस कदर उसकी मुट्ठी में कैद हो चुका हूं। उसने किस तरह देवांश नाम के कांटे को साफ किया है और मां उसे सिखा रही थी मुझे और ज्यादा गुलाम बनाने के गुर । वह सब पिघले हुए शीशे की तरह उतरा था मेरे कानों में उनकी उस दिन की बातों से सबकुछ पता लग गया मुझे । सबकुछ ! यह भी कि विचित्रा ने किस तरह सती सावित्री होने का ढोंग करके मुझे फंसाया था। मेरे लिए मूर्ख और 'भावुक कुत्ता' जैसे शब्द इस्तेमाल कर रही थीं वे । शांतिबाई ने कहा था ---- - 'मैं न कहती थी, हर रोज नये मर्द के नीचे से गुजरकर कुछ हासिल नहीं होता। सारी जिन्दगी वही करती रही मैं और देख, आज क्या है मेरे पास ? यहीं की यहीं, इसी नर्क में पड़ी हूं। इससे बेहतर है किसी गांठ के पूरे, आंख के अंधे को बेवकूफ बनाओ, उसकी बीवी बन बैठो और सारी जिन्दगी ऐश करो | .... । राजदान विला की दुल्हन बनने के बाद तेरा मकसद होगा ---- उस गधे को मुर्गा बनाकर धीरे-धीरे सबकुछ अपने नाम करा लेना । जब यह काम हो जाये तो उसे धक्के मारकर विला से बाहर निकाल देना । तब वहां हम दोनों का कब्जा होगा ।' मैं भूल नहीं सकता छोटे, खिलखिलाती हुई विचित्रा ने कहा था ---- 'अपने दीवाने के साथ इतना सब कुछ ज्यादा ही नहीं हो जायेगा मम्मी ? क्या


हम ऐसा नहीं कर सकतीं उसके गले में पट्टा और पट्टे में जंजीर डालकर सारी जिन्दगी विला में बांधे रखें? और फिर... दोनों खिलखिलाकर हंस पड़ी थीं । सोच छोटे---- - कैसी गुजरी होगी वह हंसी मुझ पर ?'


दिव्या ने कहा----“यह सब तुम्हारे भैया ने मुझे शादी से पहले ही बता दिया था। पूछा था - - - - 'क्या यह सब जानने के बाद तुम मुझसे शादी करने को तैयार हो ? तब एक ही बात कही थी मैंने ---- 'भूल किससे नहीं होती? अगर आप वादा करते हैं विचित्रा फिर कभी आपके जीवन में नहीं आयेगी तो मैं तैयार हूं... उस दिन के बाद मैंने इनके मुंह से विचित्रा का नाम आज तुम्हारे सामने सुना है देवांश। यह सुनकर हैरान हूं कि अब उसने तुम्हें फंसा लिया।'


सन्न रह गया था देवांश !


कुछ कहते नहीं बन पड़ रहा था उस पर । पूरी ताकत लगाकर राजदान से पूछा ---- “क्या उसने आपका पीछा इतनी आसानी से छोड़ दिया?”


“ठीक सोचा तुमने । ठीक सोचा छोटे।” राजदान ने कहा- “जिस भावुक कुत्ते को अपने जाल में फंसाने के लिए उन्होंने इतनी मेहनत की, इतना टाइम बरबाद किया, उसका पीछा इतनी आसानी से कैसे छोड़ सकती थीं वे? जब वे खिलखिलाकर हंसने के बाद पुनः मेरे ही बारे में बातें करने लगीं तो वह सबकुछ मेरी सहनशक्ति से बाहर हो गया । दरवाजा पार करके उनके सामने पहुंच गया मैं! वे हकवका गईं। गुस्से से कांपते हुए जो कुछ मैंने कहा उसे सुनकर तो पानी ही फिर गया उनके इरादों पर वे समझ गयीं ---- मैंने सबकुछ सुन लिया है। अंत में वहां से चला आया। उसके बाद विचित्रा ने मुझसे फोन पर बात करने की कोशिश की । बरगलाना चाहा। जब यकीन हो गया मैं बरगलाने में नहीं आऊंगा तो एक दिन मां-बेटी यहीं आ धमकीं । इसी विला में । अब उनके तेवर बदले हुए थे। मेरे सामने वे फोटो डाल दिए जिनमें मैं विचित्रा के साथ अभिसाररत था। छक्के छूट गये मेरे । वे बोलीं-- इनके निगेटिव हमारे पास हैं। एक हफ्ते के अंदर एक करोड़ रुपये नहीं पहुंचे तो अखबारों में छपवा दिए जायेंगे।' कहकर वे चली गईं | मेरे होश उड़े हुए थे । एक बार सोचा ---- 'एक करोड़ देकर पीछा छुड़ा लूं । मगर अगले पल यह विचार त्याग दिया। सीधा थाने पहुंचा । इंस्पैक्टर से बात की। इंस्पैक्टर ने सीधे कहा---- 'पचास लाख लूंगा। सारे निगेटिव उनके चंगुल से निकालकर आपको सौंप दूंगा । और किसी को पता भी नहीं लगेगा इस शहर में ऐसा कुछ हुआ भी था । इस केस को कहीं दर्ज नहीं करूंगा मैं ।' विचित्रा और उसकी मां को सबक सिखाने के लिए मुझे यही रास्ता ज्यादा जंचा । दो दिन के अंदर इंस्पैक्टर ने मेहनताना लेकर निगेटिव मुझे सौंप दिए। यह सब उसने मां-बेटी पर ‘पुलिसिया कहर' ढा कर किया था। यह बात मुझे एक दिन । ....


बाद तब पता लगी जब वे एक बार फिर यहां आईं। उन्हें थाने में रखकर सारे स्टाफ ने बार-बार रेप किया था। तब तक, जब तक उन्होंने नेगेटिव नहीं दे दिए । मतलब ये कि उन्हें कुछ नहीं मिला, बेइज्जती हुई सो अलग। बुरी तरह भन्नाई हुई थीं वे । मैं उनकी हालत देखकर खुश था। मुझे आज भी याद है, शांतिबाई ने कहा था ---- 'हम रंडियों से पंगा लेकर तूने ठीक नहीं किया । ऐसा बदला लूंगी खून के आंसू रोयेगा तू। वो मौत मारूंगी, पानी तक नसीब नहीं होगा तुझे ।' उस वक्त ठहाके लगाये थे मैंने उनकी कसमसाहट पर । सोचा था ---- शिकस्त खाये लोग ऐसी ही बातें करते हैं । यह नहीं सोच सका था उस वक्त जो उन्होंने आज किया है।”


“क्या वे फोटो या निगेटिव अब भी आपके पास हैं?”


“ देखा दिव्या ---- देखा तुमने?” राजदान व्यंग्य में डूबी फीकी मुस्कान के साथ कह उठा ---- - “महसूस करो ऐसी औरतों का रंग कितना गहरा होता है । इसे मालूम है मैं और तुम । इसे कितना प्यार करते हैं । इसे यह भी मालूम है ये हमारे जिगर का टुकड़ा है। इसके बावजूद इसे विश्वास नहीं कि विचित्रा के बारे में हमने जो कहा वह सच हो सकता है । यह अब भी यही सोच रहा है, इतनी लम्बी कहानी हमने इसे विचित्रा से दूर करने के लिए 'गढ़ी ' है । इसके दिल में उसके लिए नफरत भरने के लिए बनाई है । प्रमाण चाहिए इसे । सुबूत चाहिए इस बात का कि जो हमने कहा वह सच है।"


दिव्या बोली- --- “इसे विश्वास आये या न आये, मगर आप सुबूत पेश नहीं करेंगे।”


“मैं सुबूत पेश करूंगा।” राजदान ने दांत भींचकर एक-एक शब्द चबाया ---- "मैं इस नालायक से इतना प्यार करता हूं से कि इसे बरबादी से बचाने के लिए खुद इसके सामने नंगा होने को तैयार हूं।” कहने के साथ उसने अपने गाऊन की जेब से चंद कलर फोटो निकाले और उसके मुंह पर फेंककर बॉल्कनी की तरफ चला गया।


फोटो कमरे में बिछे कीमती कालीन पर बिखर गये थे ।


कुछ उल्टे ! कुछ सीधे ।


जो सीधे थे उन्हें देखकर देवांश की आंखें पथरा गईं ।


राजदान और विचित्रा!


विचित्रा और राजदान!


दोनों नंगे थे। एक ही बैड पर ।