रात नौ बजे ‘द वॉचमैन’ की टीम एक बार फिर कॉन्फ्रेंस हॉल में एकत्रित थी। सिवाये आदर्श पाण्डेय के, जो कि उस वक्त भी नर्सिंग होम के पिछले कंपाउंड में खड़ा उस खिड़की पर निगाह रख रहा था, जहाँ से सत्यप्रकाश अंबानी के बाहर निकलता दिखाई देने की उसे जरा भी उम्मीद नहीं थी।
वंशिका भौमिक तब तक वापिस आ चुकी थी, जिसका उल्लास से भरा चेहरा बता रहा था कि वह कामयाब होकर लौटी थी।
अनंत गोयल की अजीबोगरीब मौत पर पूरी टीम हैरान थी, किसी की समझ में उस बात का मतलब नहीं आ रहा था।
“ये कोई कम आश्चर्य की बात नहीं है कि फरार होने का मंसूबा बांध चुका वह शख्स एक्सीडेंट के वक्त दिल्ली में मौजूद था।” पार्थ सान्याल बोला – “ये भी चौंकाने वाली बात है कि उस वक्त उसका कथित भाई मनीष गोयल उसके साथ था, जो कि कम से कम हत्यारा तो नहीं रहा हो सकता, क्योंकि उसने अनंत को अस्पताल पहुँचाकर उसकी जान बचाने की पूरी-पूरी कोशिश की थी।
“वह सच में उसका भाई ही क्यों नहीं हो सकता?” दुग्गल ने पूछा।
“क्यों नहीं हो सकता, ये बता पाना अभी मुश्किल है। अनंत अगर शुरू से ही फरार नहीं चल रहा होता तो आपकी इस बात पर मैं सहज ही यकीन कर लेता, मगर अभी हालात कुछ ऐसे हैं कि मेरा मन उसे अनंत का भाई मानने को तैयार नहीं हो रहा। उस शख्स में जरूर कोई बड़ा भेद था, जिसका पता कल पुलिस स्टेशन का फेरा लगाने के बाद ही चल पायेगा।”
“कुछ ना कुछ गड़बड़ तो जरूर है सर।” वंशिका बोली – “क्योंकि अस्पताल से वह शख्स अनंत की लाश को लेकर सीधा श्मशानघाट पहुँचा था, जहाँ बड़े ही आनन-फानन में उसका क्रिया कर्म भी कर दिया गया। इतना तनहा तो दुनिया में कोई नहीं होता कि चार लोग उसकी अंत्योष्टि में शामिल न हों। अगर वह सच में उसका भाई होता तो लाश को लेकर अपने गांव जा सकता था। अनंत के कुछ जानने वालों को फोन कर सकता था, मगर वह तो जैसे फौरन अपने भाई की लाश से पीछा छुड़ा लेना चाहता था।”
“एंबुलेंस ड्राईवर से मुलाकात हो गयी तुम्हारी?”
“बेशक हो गयी, तभी तो बाकी बातों की जानकारी हासिल कर पाई।”
“और ऑटो वाले से?”
“उससे भी मिल चुकी हूँ। वह कहता है कि बीस की सुबह अंबानी नर्सिंग होम से उठाई गयी सवारी को उसने सुंदर नगर में ड्रॉप किया था, जहाँ अनंत का फ्लैट था, इसलिए जाहिर है वहीं गया होगा। और रही बात एंबुलेंस की, तो भाई की लाश के साथ सवार मनीष गोयल को वह कालकाजी के ही इलाके में स्थित एक श्मशान घाट के सामने उतारकर वापिस लौट गयी थी। मैं श्मशानघाट पहुँची तो लंबी पूछताछ के बाद पता लगा कि अनंत गोयल की अंत्योष्टि के लिए वहाँ कम से कम एक शख्स और पहुँचा था, जो कि बड़ा आदमी जान पड़ता था। तब मेरा ध्यान तुरंत सत्यप्रकाश अंबानी की तरफ चला गया, मगर जब मैंने उसकी फोटो वहाँ के स्टॉफ को दिखाई तो किसी ने भी नहीं पहचाना। आगे मैंने बारी-बारी से आकाश अंबानी, विक्रम राणे, अजीत मजूमदार की तस्वीरें भी दिखा डालीं, मगर हासिल कुछ नहीं हुआ।”
“आखिरकार तो हुआ ही होगा, वरना तुम इस बात को इतना लंबा नहीं घसीट रही होतीं।” पार्थ ने मुस्कराते हुए पूछा।
“बेशक हुआ। हर तरफ से निराश होने के बाद एक नया नाम मेरे जेहन में कौंधा, जिसकी तस्वीर मेरे पास मौजूद तो नहीं थी मगर फेसबुक पर सहज ही मिल गयी, जिसे वहाँ के स्टॉफ ने फौरन उस शख्स के रूप में पहचान लिया। जो कि लंबी गाड़ी में बैठकर क्रिमिनेशन ग्राउंड पहुँचा था, जो बड़ा आदमी जान पड़ता था।”
“कौन था?”
“गेस कीजिए।” वंशिका मुस्कराई।
“गेस क्या करना, जबकि मैं पहले से जानता हूँ कि वह कौन हो सकता है, मगर जवाब मैंने दे दिया तो तुम्हें वह शाबाशी हासिल नहीं हो पायेगी, जिसकी उम्मीद में लगातार सस्पेंस फैलाये जा रही हो।”
“नो प्रॉब्लम सर, बताइए कौन था?”
“डॉक्टर नरेंद्र पुरी, कहो कि मैं गलत हूँ?”
“कैसे जाना?” वंशिका के मुँह से सिसकारी सी निकल गयी।
“वैसे ही जैसे कि बॉस लोग जान जाया करते हैं। एनी वे, तुम आगे बढ़ो, और क्या पता लगा वहाँ से?”
“सिर्फ इतना कि वापसी में मनीष गोयल डॉक्टर पुरी की कार में सवार होकर ही उधर से निकला था, जो कि उस वक्त मुझे कोई बड़ी हैरानी की बात नहीं लगी थी क्योंकि डॉक्टर पुरी अनंत गोयल का पूर्व परिचित था, मगर आपकी बातें सुनने के बाद अब लगने लगा है कि पूरे मामले में कोई ना कोई गड़बड़ जरूर है। अगर नहीं होती तो तमाम कथा कहने के साथ-साथ पुरी ने आपको ये बात भी सहज ही बता देनी थी कि अनंत के क्रिया कर्म में वह खुद भी शामिल हुआ था।”
इससे पहले कि पार्थ उसकी बात के जवाब में कुछ कह पाता, मेज पर रखा मोबाइल रिंग होने लगा।
कॉल आदर्श पाण्डेय की थी, जिसे अटेंड करते के साथ ही उसने हैंड्स फ्री मोड पर डाल दिया, ताकि बाकी लोग भी उसका कहा सुन पाते।
“बोलो आदर्श।”
“एकदम धमाकेदार खबर है सर।”
“गुड, हम सुन रहे हैं।”
“अंबानी की बाबत आपका शक सच होता जान पड़ता है।”
“मतलब?”
“अभी-अभी वह बेड पर टांगे लटका कर बैठा दिखाई दिया था मुझे। किसी तकलीफ में भी नहीं हो सकता क्योंकि नर्स से घुट-घुटकर बातें कर रहा था। वह वार्तालाप तो खैर मैं नहीं सुन पाया मगर अंबानी की सूरत बता रही थी कि एकदम भला चंगा था।”
“क्या पता कोमा से बाहर आ गया हो?”
“अगर ऐसा है तो कोई उससे मिलने क्यों नहीं पहुँचा? या नर्स ने डॉक्टर पुरी को पेशेंट के उठ बैठने की खबर क्यों नहीं दी?”
“तुम्हें क्या पता कि नहीं दी? या यही कैसे पता हो सकता है कि डॉक्टर उससे मिलकर जा नहीं चुका है? तुम हर वक्त उसकी खिड़की पर ही तो टंगे नहीं रहे होगे?”
“अब आप अपनी ही बात काट रहे हैं सर?”
“नहीं, लेकिन ये पता लगना फिर भी जरूरी है कि उसके ठीक हो जाने की खबर किसी को है या नहीं, अगर है तो जाहिर है वह कोमा से बाहर आ गया है, और नहीं है तो फिर समझ लो कि हम एकदम सही राह पर हैं। दोनों ही स्थितियों में तुम्हें निगाहबीनी मुतवातर जारी रखनी है। बारह बजे तक युग तुम्हारे पास पहुँच जायेगा, उसके बाद बेशक तुम वापिस लौट जाना।”
“ठीक है सर, अब रखता हूँ।” कहकर दूसरी तरफ से कॉल डिसकनेक्ट कर दी गयी।
“बधाई हो सर।” युग जौहर बोला – “अटकलबाजी में इस बार भी आप नंबर वन ही साबित हुए हैं।”
“इसे अटकलबाजी नहीं, डिटेक्टिव रीजनिंग कहते हैं बच्चे।”
“सच पूछो तो कमाल ही हो गया।” दुग्गल हैरानी से बोला – “जब पहली बार तुमने इस बात की संभावना जताई थी तो मेरा दिल जोर-जोर से हँसने का होने लगा था, मगर अब तो रोना आ रहा है पार्थ।”
“जरूरी नहीं है कि बात वही हो, जो इस वक्त हमारी समझ में आ रही है या जिसका अंदेशा मैं पहले ही जता चुका हूँ। इसलिए कल तक वेट करना होगा। अगर पेशेंट बदस्तूर कोमा में होने का नाटक करता दिखाई दिया तो हम मान लेंगे की हत्यारा वही है।”
“उसके बाद?”
“क्या उसके बाद?”
“बेनकाब कैसे करेंगे उसे?”
“रंगे हाथों पकड़ कर। इसलिए निगाहबीनी चौबीसों घंटे जारी रखनी होगी। मुझे यकीन है कि कातिल का अगला वार शीतल और आकाश अंबानी में से किसी एक पर या फिर दोनों पर होगा, जिसे होने देने से हमें हर हाल में रोकना है।”
“और कुछ?”
“नहीं, आप सभी का शुक्रिया, अब जा सकते हैं।”
कहकर वह खुद भी हॉल से बाहर निकल गया।
चौबीस जुलाई 2022
दोपहर बारह बजे के करीब पार्थ सान्याल कालका जी थाने पहुँचा।
ड्यूटी रूम में दाखिल होकर उसने उस सिपाही के बारे में पूछताछ की, जिसने अंबानी नर्सिंग होम पहुँचकर अनंत गोयल की एमएलसी की थी तो वहाँ बैठे एक हवलदार ने रोजनामचे में देखकर बताया कि सिपाही का नाम रतनलाल था, जो कि उस वक्त थाने में नहीं था।
“कहाँ मिलेंगे?” पार्थ ने पूछा।
“मालूम नहीं, आप फोन कर लीजिए।” कहकर उसने रतनलाल का नंबर बता दिया।
पार्थ ने नंबर डॉयल किया और ड्यूटी रूम से निकलकर थाने के गेट की तरफ बढ़ चला।
“हैलो, कौन बोल रहा है?” दूसरी तरफ से पूछा गया।
“रतनलाल जी?”
“बोल रहा हूँ, आप कौन?”
“पार्थ सान्याल।”
“कौन पार्थ सान्याल?”
“आप मुझे नहीं जानते।”
“ठीक है, बताइए क्या चाहते हैं?”
“कुछ जानकारी।”
“किस बारे में?”
“फोन पर ना ही सुनें तो अच्छा होगा।”
“नेहरू प्लेस के फ्लाई ओवर के नीचे आ जाइए, शाम तक यहीं हूँ मैं।”
“दस मिनट में पहुँचता हूँ।” कहकर पार्थ ने कॉल डिसकनेक्ट की और अपनी कार में सवार हो गया।
फ्लाईओवर तक पहुँचने में उसे मुश्किल से पांच मिनट लगे। वहाँ दो सिपाही और एक हेडकांस्टेबल ड्यूटी दे रहे थे। पार्थ ने रतनलाल के बारे में दरयाफ्त किया तो एक खूब लंबा चौड़ा सिपाही आगे आया, जो उसके साथ पांच कदम दूर जाकर खड़ा हो गया।
“आपने ही फोन किया था?”
“जी हाँ।”
“क्या चाहते हैं?”
पार्थ ने बताया।
“कांफिडेंशियल जानकारी है, यूँ हर किसी को नहीं बतायी जा सकती।”
“एमएलसी में कांफिडेंशियल जैसा क्या होता है?” वह हैरानी से बोला।
“होता है, चाहें तो एसएचओ साहब से बात कर लीजिए थाने जाकर।”
“तुम्हारा मतलब है कि दो हजार का जो नोट मेरी जेब से निकलकर तुम्हारी जेब में पहुँचने को तड़प रहा है, वह तुम्हारे साहब को सौंप दूँ?”
सुनकर सिपाही हौले से हँसता हुआ बोला- “घायल का नाम अनंत गोयल था, ये तो आप जानते ही हैं। उसे हॉस्पिटल पहुँचाने वाले ने अपना नाम मनीष गोयल बताया, साथ में ये भी कहा था कि वह उसका बड़ा भाई है, और एड्रेस के तौर पर उसने हिसार का एक पता दर्ज कराया था।”
“एक्सीडेंट कहाँ हुआ था?”
“मनीष ने गोविंद पुरी की चौदह नंबर गली के सामने सड़क पर हुआ बताया था। मैंने उसे हिदायत दी कि बाद में थाने पहुँचकर रिपोर्ट जरूर दर्ज करा दे, मगर वह ना तो कल आया और ना ही आज सुबह। तब मैंने उसकी बतायी एक्सीडेंट वाली जगह पर पहुँचकर पूछताछ शुरू कर दी। पता लगा कि कल की तारीख में वहाँ कोई एक्सीडेंट नहीं हुआ था। सुनकर मेरा माथा ठनका तो मैं उससे मिलने अंबानी नर्सिंग होम पहुँच गया। वहाँ ये हैरान कर देने वाली खबर सुनने को मिली कि जिसे एडमिट कराया गया था वह दो घंटा बाद ही दुनिया से निकल लिया था, जिसके बाद लाश उसके भाई को सौंप दी गयी थी। मैंने उस बात की खबर थाने पहुँचकर इंचार्ज साहब को दी, तभी उन्हें याद आ गया कि कुछ दिनों पहले किसी अनंत गोयल की गुमशुदगी के बारे में दिल्ली के तमाम थानों को इत्तिला किया गया था। मैंने वह नोटिस निकाला तो उस पर लगी फोटो देखकर फौरन उस शख्स को पहचान गया, जिसकी एमलएसी करने मैं कल हॉस्पिटल पहुँचा था।”
“फिर क्या हुआ?”
“साहब ने एफआईबी को उस बारे में इंफॉर्म कर दिया और मैं ड्यूटी देने यहाँ आ खड़ा हुआ। इससे ज्यादा कुछ जानना चाहते हैं तो पुलिस हेडक्वार्टर पहुँचकर इंस्पेक्टर गरिमा देशपाण्डेय से मिल लीजिए।”
“ठीक है रतन लाल जी, थैंक यू।” कहकर उसने दो हजार का एक नोट धीरे से उसकी मुट्ठी में सरकाया और अपनी कार की तरफ बढ़ गया।
“देखा जाये मैडम तो इस बात में अब कोई शक नहीं बचा है कि सारा फसाद शीतल और आकाश अंबानी का ही फैलाया हुआ है।” हासिल जानकारियों से गरिमा को अवगत कराने के बाद चौहान बोला।
“साबित कैसे करेंगे? उसके लिए महज ये दोनों डाक्यूमेंट्स पर्याप्त नहीं हैं। ना ही उन्हें हिरासत में लेने का अभी कोई फायदा होता दिखाई दे रहा है।”
“गिरफ़्तार करने की जरूरत भी नहीं है, मगर हेडक्वार्टर बुलाकर पूछताछ करने में तो मुझे कोई समस्या दिखाई नहीं देती, आखिर पर्याप्त वजह है हमारे पास उन्हें इंटेरोगेट करने की।”
गरिमा ने कुछ क्षण उसकी बात पर विचार किया फिर बोली- “एक काम करो, अभी उनमें से बस किसी एक को बुलाओ यहाँ। दूसरे से पूछताछ हम उसके बाद करेंगे। तब, जबकि हमारा शक पुख्ता होता दिखाई देने लगेगा।”
“आकाश अंबानी को बुलाये लेता हूँ, क्योंकि उसकी भाभी तो मुझे एक नंबर की घाघ लगती है। जुबान खुलवाना आसान नहीं होगा, क्योंकि सख्ती तो हम करने से रहे उन पर। और बिना उसके कम से कम वह औरत तो हमारे पल्ले कुछ डालने से रही। जबकि आकाश उसके मुकाबले कमजोर नजर आता है। उससे पूछताछ करते वक्त हर बार मुझे यही लगा कि जरा सा प्रेशर उसे तोड़कर रख देगा।”
“नो प्रॉब्लम, कॉल हिम।”
चौहान ने तुरंत मोबाइल निकाल कर आकाश का नंबर डॉयल कर दिया।
“किसी बहाने से बुलाना।” गरिमा बोली – “उसे ये नहीं लगना चाहिए कि हमें उस पर कोई शक है।”
तभी दूसरी तरफ से कॉल पिक कर ली गयी।
“आकाश साहब मैं एसआई चौहान बोल रहा हूँ।”
“जी आपका नंबर सेव कर रखा है मैंने।”
“अंबानी साहब कैसे हैं अब?”
“वैसे ही जैसे की पहले थे, पता नहीं कब कोमा से बाहर आयेंगे। सारा कामकाज भी बुरी तरह डिस्टर्ब हो रहा है। और अब तो अनंत गोयल भी नहीं रहा, वरना वह सब संभाल लेता।”
“थोड़ी देर के लिए पुलिस हेडक्वार्टर आ सकते हैं?”
“कोई खास वजह?”
“सुबह एक डैडबॉडी बरामद हुई थी, जिसके बारे में हमें शक है कि वह आपके भाई साहब के हमलावरों में से किसी एक की हो सकती है।”
“नाम क्या है उसका?”
“शिनाख्त नहीं हो पाई है अभी। यहाँ आकर एक नजर मार लेते तो अच्छा होता। क्या पता आपका कोई जाना-पहचाना शख्स निकल आये।”
“शक क्योंकर हुआ आप लोगों को?”
“मरने वाले के पास से एक रिवाल्वर बरामद हुई है, जिसके बारे में हमारे बैलेस्टिक एक्सपर्ट का दावा है कि आपके भाई साहब के पेट से निकाली गयी गोली उसी से चलायी गयी थी।”
काश चौहान इस वक्त आकाश की शक्ल देख पाता, जो उसकी बात सुनकर यूँ चौंका था जैसे किसी जहरीले बिच्छू ने डंक मार दिया हो।
“डेडबॉडी पुलिस हेडक्वार्टर में है?” प्रत्यक्षतः उसने सवाल किया।
“नहीं सर, वह तो मोर्ग में पड़ी है, मगर तस्वीरें कई हैं हमारे पास, उन्हीं को देखकर आपने शिनाख्त करने की कोशिश करनी है। हाँ, अगर आप पहचान लेते हैं तो अस्पताल पहुँचकर लाश पर एक नजर डालनी पड़ेगी, नहीं पहचान पाते तो बात ही खत्म।”
“कब आना होगा?”
“जितनी जल्दी आ जायें बढ़िया है।”
“शाम को आऊं तो कोई प्रॉब्लम है?
“चार तो बज ही चुके हैं आकाश साहब, अब शाम होने में बचा ही क्या है, फिर घंटा भर तो आपको आने में भी लग जायेगा।”
“बात ये है कि अभी मैं अस्पताल में भैया के पास हूँ, जब तक घर से कोई और यहाँ नहीं आ जाता मैं निकल नहीं सकता। हाँ, छ: सात बजे तक पक्का आ जाऊंगा।”
“ठीक है, पहुँच जाइएगा।”
“थैंक यू।” कहकर आकाश ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।
“अब एक डैडबॉडी की तस्वीर का इंतजाम एडवांस में कर के रखो, जिसका चेहरा न दिखाई दे रहा हो।” गरिमा देशपाण्डेय बोली – “आकाश को ये शक नहीं होना चाहिए कि हमने उसे किसी और मकसद से बुलाया है।”
“बाद में तो शक होकर रहेगा मैडम, फिर छिपाने का क्या फायदा?”
“बाद से हमें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, मगर शुरू में ही अगर उसे आभास हो गया कि उसे यहाँ तलब करने का किसी लाश की शिनाख्त से कोई लेना देना नहीं था, तो वह सावधान हो जायेगा। फिर जो कहेगा खूब सोच समझकर कहेगा, या फिर जुबान ही बंद कर के बैठ जायेगा।”
“ठीक है, ढूंढ निकालता हूँ। ऐसी तस्वीरों की कौन सी कमी होगी हमारे पास।”
कहकर वह कमरे से बाहर गया और मुश्किल से पांच मिनट बाद वापिस लौटकर किसी डेडबॉडी की पांच तस्वीरें गरिमा के सामने मेज पर रख दिया-“इनसे काम हो जायेगा न मैडम?”
गरिमा ने एक नजर उन पर डालकर हौले से सिर हिलाकर हामी भरी और तस्वीरों को वापिस चौहान को थमाती हुई बोली- “अपने पास ही रखो अभी।”
“ठीक है।”
“अच्छा ये बताओ कि अनंत की मौत को लेकर तुम क्या सोचते हो?”
“वह तो बड़ी हैरानी की बात है मैडम। एक शख्स, जो हमें ढूंढे नहीं मिल रहा था, जिसकी मौत का करीब-करीब हमें यकीन भी आ चुका था, वह कल तक ना सिर्फ जिंदा था बल्कि दिल्ली में ही था। और मरा तो यूँ मरा कि उसकी मौत कई नये सवाल खड़े कर गयी। सच पूछिए तो उस मामले में कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा।”
“उसके भाई को ढूंढने की कोशिश तो चल रही है न?”
“जी हाँ चल रही है, मगर इतना तो अभी से तय समझिए कि उसे अस्पताल ले जाने वाला शख्स उसका भाई नहीं हो सकता। होता तो गायब होने की बजाय पुलिस स्टेशन पहुँचकर उसके एक्सीडेंट की कंप्लेन जरूर दर्ज करवाई होती। बल्कि एक्सीडेंट वाली बात भी कहाँ साबित हो पायी? उस बारे में उसने जो कुछ भी कहा, कोरा झूठ ही बोला था।”
“क्यों बोला? अगर उसने वैसा कुछ करना ही था तो अनंत को अस्पताल ले जाने की ही क्या जरूरत थी?”
“यही तो समझ में नहीं आ रहा मैडम। मैंने अंबानी नर्सिंग होम की सीसीटीवी खंगाल डाली है, मगर उसमें ऐसा कुछ नहीं है, जिस पर शक किया जा सके। ना ही उसके कथित भाई की कद काठी किसी सस्पेक्ट से मिलती दिखाई देती है। पता नहीं कौन था वह? क्या मकसद था उसका? मगर कातिल वह नहीं हो सकता।”
“क्योंकि तुम्हें शक है कि अनंत को आकाश और शीतल ने ही ठिकाने लगाया है?”
“बेशक, अब जबकि हम ये मान चुके हैं कि अंबानी पर हमला चारों ने एक साथ मिलकर किया था, और उनमें से दो का कत्ल हो चुका है, तो ऐसे में ये सोचना तो बेकार ही है कि कातिल कोई और भी हो सकता है।”
“मतलब ये हुआ कि गुनाह में साझीदार रहे दोनों लोगों का मुँह हमेशा-हमेशा के लिए बंद करने की कोशिश की गयी थी, ताकि कल को कोई राज़दार बाकी न रह जाये।”
“लगता तो यही है मैडम, लेकिन एक दूसरी बात भी हो सकती है, जिसकी तरफ मेरा ध्यान आकृष्ट किया वॉचमैन के एक डिटेक्टिव ने। उसने ऐसा अंदेशा जाहिर किया, जिसे सुनकर मैं हैरान रह गया।”
“कहा क्या था?”
“यही कि मौर्या का कत्ल खुद सत्यप्रकाश अंबानी ने किया था।”
“दिमाग खराब हो गया है उसका।”
“उस वक्त मुझे भी ऐसा ही लगा था मैडम, मगर बाद में जब उसके कहे पर गहराई से विचार किया तो लगा कि यह कोई ऐसी बात नहीं है, जिसकी कल्पना तक न की जा सके। हम जानते ही क्या हैं अंबानी की हालत के बारे में? डॉक्टर ने कहा पेशेंट पर फलां-फलां तरह से हमला किया गया, हमने मान लिया। उसने कहा पेशेंट कोमा में चला गया है, हमने वो भी मान लिया, मगर असल में उसकी हालत कैसी है, यह या तो उसका डॉक्टर जानता है, या फिर खुद अंबानी को पता होगा। और अगर सत्यप्रकाश की हालत उतनी बद नहीं है, जितनी कि हमें बतायी गयी है तो थोड़ी देर के लिए हॉस्पिटल से निकलकर मौर्या का कत्ल कर आना कोई आश्चर्य की बात नहीं मानी जा सकती। उसी तरह उसने अनंत को भी ठिकाने लगाया हो सकता है।”
“इतने क्रिटिकल हालत में पड़े पेशेंट को नर्सिंग होम से बाहर जाते किसी ने देखा क्यों नहीं, और देखा था तो उसने हैरान होकर फौरन डॉक्टर को खबर क्यों
नहीं किया?”
“हमें क्या मालूम मैडम कि किसी ने नहीं देखा था उसे, बल्कि वह काम अगर डॉक्टर के साथ मिली भगत से अंजाम दिया गया था तो उसी ने कोई रास्ता निकाल दिया होगा अंबानी के लिए।”
“ये एक नयी घुंड़ी घुसा रहे हो तुम इस केस में। कोई डॉक्टर भला इतना बड़ा झूठ कैसे बोल सकता है?”
“क्यों नहीं बोल सकता? जरा ये भी तो देखिए कि उस नर्सिंग होम का मालिक कौन है?”
“यकीन नहीं आ रहा।”
“तो फिर समझ लीजिए कि सारा ड्रामा अंबानी का वन मैन शो रहा होगा।” कहकर वह अपनी ही बात काटता हुआ बोला – “नहीं, ये नहीं हो सकता, क्योंकि उसके वॉर्ड में हर वक्त एक नर्स की ड्यूटी होती है। उसकी नजरों में आये बिना वह हॉस्पिटल से निकलकर मौर्या या अनंत का कत्ल कर के वापिस वहाँ नहीं लौट सकता था। इसलिए डॉक्टर और नर्स दोनों की मिली भगत होना जरूरी था।”
“जो कि संभव नहीं दिखाई देता, फिर भी जांचने की कोशिश करना। क्या पता कुछ हाथ लग ही जाये।”
“ठीक है, मैडम।”
“अभी मुझे डीसीपी साहब से मिलने जाना है, जहाँ काफी वक्त लग सकता है। उस बीच अगर आकाश यहाँ पहुँच जाये तो मुझे फोन कर देना।”
जवाब में चौहान ने हौले से मुंडी हिला दी।
शाम साढ़े चार बजे पार्थ सान्याल अंबानी नर्सिंग होम पहुँचा तो देवर-भाभी उसे सत्यप्रकाश के वॉर्ड के बाहर बेंच पर बैठे मिले।
“आप दोनों को डिस्टर्ब करने के लिए माफी चाहता हूँ।”
“अब डिस्टर्ब कर ही दिया है पार्थ...।” शीतल मुस्कराती हुई बोली – “तो माफी मांगने की जरूरत नहीं है, बताओ कैसे आना हुआ?”
“थैंक यू, अंबानी साहब अब कैसे हैं?”
“वैसे ही, जैसे पहले थे।”
“कोमा में?”
“और क्या कह रही हूँ मैं?” कहकर उसने सवाल किया – “कोई प्रोग्रेस हुई केस में?”
“जी वह तो लगातार होती आ रही है। जैसे कि अब मैं गारंटी के साथ कह सकता हूँ कि अंबानी साहब पर हमला करने वाले चार लोग ही थे।” कहकर उसने अपनी निगाहें शीतल के चेहरे पर टिका दीं – “जिनमें से कम से कम एक कोई औरत थी।”
सुनकर वह क्षण भर को हड़बड़ाई फिर खुद को संभालती हुई बोली- “कौन औरत?”
“अभी नाम नहीं जानता मैं उसका, मगर जल्दी ही पता लग जायेगा।”
“कितना जल्दी पार्थ?”
“बहुत जल्दी, तारीख बदलने से भी पहले।”
“ओह, अब समझी।”
शीतल को जैसे एक नयी चाल चलना सूझ गया।
“क्या समझ गयीं आप?”
“तुम्हारा इशारा हमारी मेड सुमन की तरफ है, है न?”
“है तो नहीं मैडम।” पार्थ हैरानी से बोला – “लेकिन आपको वैसा क्यों लगा?”
“हे भगवान्! मैं तो समझी थी कि तुम उसकी असलियत जान चुके हो, इसलिए उस पर शक कर रहे हो।”
“कैसी असलियत?”
“छोड़ो, जब तुम्हें उस बारे में कुछ पता ही नहीं है तो खामखाह उस बेचारी के बारे में मुँह फाड़ना ठीक नहीं होगा।”
“वह क्या इतनी बेचारी है कि आप उसकी खातिर अपने हस्बैंड पर हुए हमले को भुला देंगी?”
“नहीं, लेकिन मुझे यकीन है कि उसने कुछ नहीं किया है।”
“फिर बता क्यों नहीं देतीं कि आप क्या जानती हैं उसके बारे में?”
“उसका संबंध हमारे घर की मान मर्यादा से जुड़ा हुआ है पार्थ, इसलिए नहीं बता सकती।”
“ठीक है, मैं ही कहे देता हूँ।”
“क्या?”
“आपका इशारा अगर सुमन और अंबानी साहब के खास रिश्ते की तरफ है तो खातिर जमा रखिए, वह बात मैं पहले से ही जानता हूँ।”
“जानते हैं?” अब हैरान होने की बारी शीतल की थी, साथ में आकाश भी बराबर चौंका था।
“जी जानता हूँ।”
“कैसे?”
“डिटेक्टिव हूँ मैडम, जानकारियां खोद निकालना ही तो मेरा पेशा है।”
“तो भी उस पर शक करना गलत होगा, उसने कुछ नहीं किया है।”
“कमाल है। ऐसी औरत जिंदगी में पहली बार देख रहा हूँ, जो एक ऐसी लड़की का फेवर कर रही है, जिसका उसके पति के साथ नाजायज रिश्ता था।”
“बच्ची है यार, नासमझी में भूलें हो ही जाया करती हैं, उसके लिए गला तो नहीं घोंट सकती न मैं सुमन का? फिर उसे अपने किये का पछतावा भी तो है। उससे भी बड़ी बात ये कि असल गलती तो सत्य की मानी जानी चाहिए, जो कि उससे उम्र में बहुत बड़े भी हैं और समझदार भी।”
“हाँ, ये तो आपने एकदम सही कहा।”
“रही बात सत्य के हमलावरों की, तो उनका कुछ-कुछ अंदाजा अब मुझे होने लगा है।”
“अच्छा, किसने किया था? या किन लोगों ने किया था?”
“मेरा शक बार-बार मजूमदार पर जा रहा है।”
“तीन साल पहले की घटना को लेकर?”
“नहीं, सत्य पर हुए हमले से दो तीन दिन पहले भी उनके बीच कुछ हुआ था।”
“क्या?”
शीतल ने हिचकिचाने की लाजवाब एक्टिंग की।
“मत भूलिए मैडम कि मैं आपकी ननद के कहने पर ही केस पर काम कर रहा हूँ। ऐसे में क्या हम दोनों के बीच कोई छुपाव होना ठीक होगा?”
शीतल ने आकाश की तरफ देखा, मानो पूछना चाहती हो कि बताये या न बताये।
“बता दो।” वह बोला – “पार्थ को सब-कुछ पता होना चाहिए, वरना ढंग से केस को इंवेस्टिगेट कैसे कर पायेगा?”
“ठीक है।” कहकर शीतल ने उसे मजूमदार द्वारा सुमन को दी गयी धमकी और बाद में उस बात पर आग बबूला हुए अंबानी की वह कहानी सुना दी, जो पहले ही सुमन को रटवा चुकी थी।
सुनकर पार्थ सच में हैरान हो उठा।
“अब खुद सोचकर देखिए कि उन हालात में मजूमदार अगर डर न जाता तो क्या करता? सत्य कितने जिद्दी हैं, ये बात वह अच्छी तरह से जानता था, इसलिए उनकी जेल भिजवा देने की धमकी को हल्के में नहीं ले सकता था। ऐसे में क्या बड़ी बात होगी अगर उसी ने योजना बनाकर उन्नीस की रात मेरे हस्बैंड पर
हमला कर दिया हो।”
“कोई बड़ी बात नहीं होगी मैडम, लेकिन सवाल ये है कि अगर चारों में से एक मजूमदार साहब थे तो बाकी के तीन लोग कौन थे?”
“जरूरी थोड़े ही है कि चार लोग ही रहे हों?”
“उस बात की तो अब आप गारंटी समझिए मैडम।”
“अगर ऐसा है तो समझ लो कि मिला लिया होगा कुछ लोगों को अपनी तरफ, जिनमें से एक विक्रम राणा हो सकता है, जिसकी बीवी के साथ सत्य का कभी तगड़ा अफेयर चला था। आप तो जानते ही होंगे उस बारे में?”
“नहीं मैं नहीं जानता, प्लीज जरा खुलकर बताइए।”
जवाब में शीतल ने फिर से अपनी ही गढ़ी कहानी उसके सामने पेश कर दी।
मगर इस बार वह पार्थ को भरमाने में कामयाब नहीं हो पाई, क्योंकि जल्दी ही उसकी समझ में आ गया कि असल में वह औरत बस अपनी तरफ से फोकस हटाने की कोशिशों में जुटी हुई थी।
“अनंत के कत्ल की खबर तो लग ही गयी होगी आप लोगों को?” प्रत्यक्षतः उसने पूछा।
“कत्ल की? मैंने तो सुना उसका एक्सीडेंट हुआ था।”
“किससे सुना?”
“उसके भाई ने ही बताया था। उस वक्त हम दोनों यहीं थे, जब डॉक्टर पुरी ने दिल दहला देने वाली वह खबर भिजवाई थी हमारे पास। उसके बाद हम दोनों ओटी में उसे देखने भी गये थे।”
“हो सकता है अनंत के भाई ने आपको उसका एक्सीडेंट हुआ ही बताया हो, क्योंकि डॉक्टर और पुलिस से भी उसने यही कहा था; मगर यकीन कीजिए वह किसी दुर्घटना का शिकार नहीं हुआ था, मर्डर किया गया था अनंत गोयल का।”
“हे भगवान्, ये सब चल क्या रहा है? पहले सत्य पर हमला, फिर मौर्या का कत्ल और अब अनंत का।” वह हड़बड़ाये स्वर में बोली – “जल्दी से इस मिस्ट्री को सुलझाइए पार्थ, इससे पहले कि कातिल दो चार लाशें और गिरा दे।”
“बेशक सुलझा लूंगा मैडम।” कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ – “अब इजाजत दीजिए मुझे।”
शीतल ने हौले से सिर हिला दिया।
“लगता है ये डिटेक्टिव का बच्चा हमारे बारे में कुछ खास जान गया है।” पार्थ के जाते ही आकाश बोला पड़ा।
“जान लेने दो, उखाड़ तो कुछ नहीं पायेगा।”
“क्या पता लगता है?”
“लगता है, जब हमने अपने खिलाफ कोई सबूत छोड़े ही नहीं हैं तो उसे हासिल क्योंकर हो जायेंगे? फिर देखा नहीं तुमने वह अनंत और मौर्या के कत्ल को भी सत्य पर हुए हमले से जोड़कर देख रहा था। ऐसे में क्या खाक सॉल्व कर पायेगा उस मिस्ट्री को।”
“सुमन और भैया के अफेयर की खबर उसे कैसे लग गयी?”
“पता नहीं, उस बारे में मैं खुद हैरान हूँ।”
जवाब में आकाश कुछ कहने ही जा रहा था कि एक नर्स को उधर बढ़ता देखकर होंठे भींच लिए।
आकाश और शीतल से ‘अंबानी नर्सिंग होम’ में हुई मुलाकात के बाद पार्थ सीधा अपने ऑफिस पहुँचा, जहाँ गेट पर खड़े गार्ड्स के अलावा अगर कोई था तो वह युग जौहर था, जो कि उस वक्त बेहद व्यस्त दिखाई दे रहा था।
उसकी दोनों टांगे मेज के ऊपर टिकी थीं, की-बोर्ड गोद में पड़ा था और उंगलियां थीं, जो कत्थक सी करती जान पड़ती थीं।
केबिन का दरवाजा खुला था, जहाँ क्षण भर को ठिठककर पार्थ ने उसके मौजूदा पोज का अवलोकन किया फिर आगे बढ़कर अपने कमरे में दाखिल हो गया।
चेयर पर बैठ चुकने के बाद उसने मेज की दराज से पार्लियामेंट का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा कर गहरे-गहरे कश लगाते हुए अपना ध्यान मौजूदा केस पर केंद्रित करने की कोशिशों में जुट गया।
देखा जाये तो अंबानी पर हुए हमले से रिलेटेड करीब-करीब हर बात वह जान चुका था, जिसमें थोड़ी बहुत कसर अगर रह भी गयी थी तो वह अनंत गोयल की डायरी ने पूरी कर दी, मगर वह जानकारियां अभी भी बिखरी-बिखरी सी दिखाई दे रही थीं, जिन्हें एक सूत्र में पिरोये बिना केस सॉल्व नहीं हो सकता था।
अगला आधा घंटा यूँ ही गुजर गया।
उस दौरान कई सवाल उसके जेहन में बार-बार दस्तक दे रहे।
जैसे कि...
‘सत्यप्रकाश अंबानी पर किया गया हमला अगर शीतल, आकाश, मौर्या और गोयल की चौकड़ी का कारनामा था, तो बाद में मौर्या के कत्ल की जरूरत क्यों पड़ गयी?’
‘अनंत गोयल की मौत इतनी संदिग्ध क्यों दिखाई दे रही थी, जबकि सब-कुछ
सीसीटीवी कैमरे में रिकार्डेड था?’
‘कथित मनीष गोयल कौन था, उसका इस पूरे मामले से क्या लेना-देना था?’
‘क्या सच में जो कुछ हो रहा था, वह डॉक्टर पुरी और सत्यप्रकाश की मिली भगत का नतीजा था, या असल चक्कर कोई और ही था?’
‘सत्यप्रकाश कोमा में पहुँचा होने का नाटक भर कर रहा था, ये बात तो आदर्श पाण्डेय की रिपोर्ट से ही साफ हो गयी थी, मगर क्या मौर्या और अनंत गोयल का कातिल भी वही था?’
फिर अचानक ही उसके जेहन में सब इंस्पेक्टर नरेश चौहान की कही बात गूंज उठी-
‘कोई है, जो अंबानी पर हुए हमले का बदला लेने निकल पड़ा है।’
‘कौन?’ पार्थ ने खुद से सवाल किया।
अगले ही पल शुभांगी बिड़ला का चेहरा उसकी आँखों के सामने नाच उठा।
‘क्या निशांत मौर्या और अनंत का कत्ल उसने किया हो सकता था?’
वह अनंत के एक्सीडेंट के वक्त कहाँ थी, ये तो पार्थ नहीं जानता था क्योंकि उस दुर्घटना का सही वक्त अभी तक सामने नहीं आया था, बल्कि यही साबित नहीं हो पाया था कि वैसा कोई एक्सीडेंट सच में हुआ था, मगर इस बारे में उसे पक्के तौर पर मालूम था कि जिस वक्त निशांत मौर्या को गोली मारी गयी शुभांगी बिड़ला अंबानी हाउस में नहीं था।
हाँ, गार्ड ने इतना जरूर कहा था कि मैडम हॉस्पिटल गयी थीं। सच में गयी थी, या उस वक्त मौर्या के घर पर उसका कत्ल कर रही थी? इस बात का पता लगना अभी बाकी था, मगर हत्या अगर सच में बदले की भावना से की गयी थी तो कातिल शुभांगी बिड़ला भी हो सकती थी।
ऐसे में बड़ा सवाल ये था कि उसने अपने भाई का केस ‘द वॉचमैन’ को सौंपना क्यों जरूरी समझा? ये तो अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारने जैसी बात थी, जो कि शुभांगी जैसी तेज तर्रार औरत हरगिज भी नहीं करने वाली थी।
प्रश्न बेशक बहुतायत में थे, मगर पार्थ को यकीन था कि उनका जवाब अब तक हासिल हो चुकी जानकारियों में ही कहीं छिपा हुआ था। बस जरूरत थी उन्हें सही क्रम तक पहुँचाने की।
‘कैसा क्रम? ऐसी कौन सी बात थी, जो आगे पीछे हो रही थी, या अभी भी कुछ मिसिंग था? कुछ ऐसा, जिस तक उसकी निगाहें नहीं पहुँच पा रही थीं?’
‘क्या?’
‘उन्नीस की रात को चार लोगों ने अंबानी पर जानलेवा हमला किया।’ पार्थ बड़बड़ाने वाले अंदाज में दोहराता चला गया – ‘बीस की सुबह उसे अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उसकी जान तो बच गयी मगर वह उठकर नहीं बैठा। उसी रोज सुबह नौ बजे के करीब आखिरी बार अनंत गोयल एक ऑटो में सवार होता दिखाई दिया। इक्कीस को डॉक्टर ने अंबानी के कोमा में पहुँच जाने की पुष्टि की, और उसी रोज रात को शुभांगी बिड़ला ‘द वॉचमैन’ के ऑफिस पहुँच गयी। अगले दिन बाईस जुलाई को सुबह दस बजे के करीब निशांत मौर्या की गोली मार कर हत्या कर दी गयी। तेईस तारीख को कथित एक्सीडेंट का शिकार हुए अनंत गोयल को अंबानी नर्सिंग होम ले जाया गया, जहाँ दो घंटे बाद उसने दम तोड़ दिया। वह दुर्घटना अगर उसके कत्ल की कोशिश थी तो जाहिर है, जो भी हुआ, वह दो बजे से पहले किया गया था।’
‘कातिल उसका कथित भाई मनीष गोयल नहीं हो सकता, क्योंकि उसने अनंत को अस्पताल ले जाने की जिम्मेदारी निभाई थी।’
‘कातिल आकाश और शीतल भी नहीं हो सकते थे क्योंकि मौर्या के कत्ल के वक्त वह खुद अंबानी हाउस में उनके सामने बैठा था।’
‘फिर हत्यारा कौन था?’
‘कौन था?’
और अगले ही पल पार्थ एकदम से उछल पड़ा।
तमाम धुंध छंट गयी, बिखरी हुई कड़ियां जुड़ गयीं, जंजीर अपने वास्तविक आकार में पहुँच गयी।
कातिल का चेहरा उसकी आँखों के सामने नाच उठा।
सिगरेट के बचे हुए टुकड़े को उसने ऐश ट्रे में डाला और उठकर युग जौहर के केबिन में पहुँचा, जो कि किसी अजायब घर से कम नहीं था। वहाँ चार अलग-अलग कंप्यूटर रखे हुए थे, जिनमें से तीन बाबा आदम के जमाने के जान पड़ते थे। सामने दीवार पर एक बड़ी सी एलईडी स्क्रीन लगी थी, जिसके नीचे एक रिकॉर्डिंग डिवाइस मौजूद थी। टेबल पर मेन कंप्यूटर से थोड़ा पड़े एक वाई-फाई हैकिंग एडेप्टर रखा था, जिसमें लगा एंटिना अपने चारों तरफ पांच सौ मीटर के दायरे में आने वाले किसी भी वाई-फाई मॉडम के भीतर घुसकर उन उपकरणों तक पहुँच सकता था, जिनमें उसके जरिये इंटरनेट संचालित होता हो।
दूसरी जो खास चीज उस वक्त उसके कंप्यूटर में लगी हुई थी, उसे यूएसबी रबर डकी के नाम से जाना जाता था, जो ऐसे सिस्टम को हैक करने के काम आती थी, जिसमें विंडो की बजाय मैक का ऑपरेटिंग सिस्टम इस्तेमाल हो रहा हो। डकी का सबसे अहम इस्तेमाल ये था कि वह किसी भी एंटी वॉयरस सिस्टम की सुरक्षा को, यूजर की जानकारी में आये बिना बिना बेध सकता था। ऐसी ही एक डिवाइस लैन टर्टल थी, जो किसी सर्विलांस सिस्टम में घुसपैठ के काम आती थी। इसके अलावा भी उसके कमरे में जाने क्या क्या अफलातूनी चीजें रखी दिखाई दे रही थीं, जिनके बारे में या तो वह खुद जानता था, या फिर उसके जैसा कोई एक्सपर्ट बता सकता था कि वह क्या था और किस इस्तेमाल में आता था।
पार्थ को वह सिगरेट के कश लगाता मिला।
“बाबू ऐश कर रहा है, नहीं?” वह मुस्कराता हुआ बोला।
सुनते के साथ ही युग ने सिगरेट को फर्श पर फेंका, गोद में रखे की बोर्ड को ट्रे में पहुँचाया और झेंपी सी हँसी हँसता हुआ उठकर खड़ा हो गया।
पार्थ ने जोर की सांस भरी, फिर घूर कर उसकी तरफ देखा।
“सॉरी सर।” युग जौहर सिर झुकाकर बोला।
“इस बात की सॉरी कि तुमने मेरी मेज की दराज से सिगरेट चुराया?”
“अरे नहीं सर, उसके लिए क्या माफी मांगना? सॉरी तो मैं रंगे हाथों पकड़े जाने की वजह से बोल रहा हूँ। जानता हूँ बड़ी लापरवाही हुई है, लेकिन वादा करता हूँ कि आगे से सावधान रहूँगा।”
“सावधान रहोगे?” पार्थ ने बनावटी गुस्सा जाहिर किया – “ये कहते नहीं बना कि आगे से चोरी नहीं करोगे?”
“लत लग गयी है सर, कम्बख्त छूटती ही नहीं।”
“चोरी की लत?”
“नहीं सिगरेट की।”
“खरीदकर क्यों नहीं पीते?”
“क्योंकि पार्लयामेंट का पैकेट अफोर्ड नहीं कर सकता।”
“कोई सस्ता ब्रांड क्यों नहीं शुरू कर देते?”
“अब ऐब पाल ही लिया है सर तो क्या सस्ता और क्या महंगा?”
पार्थ ने एक बार फिर उसे घूरकर देखा।
“आप चाहें तो मेरी सेलेरी से हर महीने एक रूपये काट सकते हैं, मैं कोई ऐतराज नहीं करूंगा, प्रॉमिस।” युग अपने गले की घंटी छूता हुआ बोला।
“यूँ जब तक एक सिगरेट की कीमत वसूल होगी, तुम सौ पी चुके होगे।”
“बेशक पी चुका होऊंगा सर, लेकिन पूरी कीमत हासिल नहीं होने से तो अच्छा यही है कि जो मिल जाये उसी से आप संतोष कर लें। किसी ज्ञानी पुरूष ने कहा था कि ‘संतोषं परमं सुखम।’ क्यों आप उसकी बात को गलत साबित करने पर तुले हुए हैं?”
“ठीक है, आगे से मैं अपनी दराज को ताला लगाकर रखूँगा।”
“क्या सर, ऐसी टुच्ची हरकतें क्या आपको शोभा देती हैं?” कहकर उसने
पूछा – “क्यों अपना कीमती वक्त बर्बाद कर रहे हैं? यहाँ मेरी चोरी पकड़कर लेक्चर देने तो नहीं आये होंगे? और अगर उसी के लिए आये हैं तो प्लीज आराम से बैठकर बैठकर बात कीजिए। मैं सुन रहा हूँ, क्योंकि रंगे हाथों पकड़े जाने की गलती तो मुझसे यकीनन हुई है।”
“नहीं, लेक्चर देने नहीं आया मैं।”
“दैट्स अ गुड न्यूज। बताइए, क्या सेवा कर सकता हूँ आपकी?”
“कबीर दुग्गल, अमन सोनी और वंशिका को एक साथ मेन स्क्रीन पर कनेक्ट करो।”
“अभी लीजिए।” कहता हुआ वह फौरन उस काम में जुट गया।
मिनट भर से भी कम वक्त में तीनों स्क्रीन पर दिखाई देने लगे।
“एक खास काम आन पड़ा है, जिसे वार फुटेज पर अंजाम देना बहुत जरूरी है।” पार्थ बोला – “इसलिए अभी जो कुछ भी आप लोग कर रहे हैं, या आगे करने वाले हैं, उसे इस अर्जेंट काम के पूरा होने तक दरकिनार कर दीजिए।”
“कर दिया सर।” तीनों एक साथ बोल पड़े।
“गुड, आप लोगों ने फौरन इस बात की जानकारी हासिल करनी है कि बाईस तारीख की सुबह दस बजे जब निशांत मौर्या की हत्या की गयी तो उस वक्त एडवोकेट विक्रम राणे, डॉक्टर अजीत मजूमदार और डॉक्टर नरेंद्र पुरी कहाँ थे?”
“आपको लगता है मौर्या का कत्ल इन तीनों में से ही किसी एक ने किया था?” वंशिका ने पूछा।
“नहीं, कुछ नाम और भी हैं, मगर आप लोगों के पास इतना वक्त नहीं है कि एक से ज्यादा लोगों के पीछे पड़कर उनके बारे में जानकारी हासिल कर सकें, इसलिए बाकी लोगों को चेक करने का जिम्मा मेरा रहा।”
“कम से कम उनके नाम तो बताओ पार्थ।” दुग्गल बोला – “क्या पता एक के बारे में जानकारी हासिल करते वक्त किसी दूसरे से रिलेटेड कोई इंफॉर्मेशन हाथ लग जाये, जो कि कोई बड़ी बात नहीं होगी क्योंकि हमारे साथ अक्सर ऐसा होता ही रहता है।”
“सत्यप्रकाश की बहन शुभांगी बिड़ला, उसकी वाइफ शीतल, छोटा भाई आकाश और घर की मेड सुमन, मगर ये चारों क्योंकि एक दूसरे के आस-पास ही कहीं होंगे, इसलिए उनसे जो जानना है मैं खुद जान लूंगा।”
“सुमन भी?” वंशिका ने हैरानी से पूछा।
“बेशक, मत भूलो कि सत्यप्रकाश के साथ उसका अफेयर चल रहा था, जो कि सदियों से फसाद की जड़ बनता चला आ रहा है। ऐसे में उसे सस्पेक्ट्स की लिस्ट से बाहर नहीं रखा जा सकता।”
“मैं लाजपत नगर से महज दो किलोमीटर दूर हूँ।” अमन सोनी बोला – “और मजूमदार का क्लिनिक क्योंकि वहीं है, इसलिए उसकी जिम्मेदारी मेरी रही।”
“विक्रम राणे के बारे में मैं पता लगा लूंगी।” वंशिका बोली।
“यानि मेरे पास कोई चॉयस नहीं है।” कबीर दुग्गल हँसता हुआ बोला – “ठीक है डॉक्टर पुरी का जिम्मा मैं लेता हूँ।”
“थैंक यू। जैसे ही कुछ पता लगे, वक्त जाया किये बिना मुझे उसकी खबर करनी है। और किसी वजह से अगर कांटेक्ट ना हो सके तो हासिल जानकारी को आप सब फौरन ‘द वॉचमैन’ के एप्प पर अपलोड कर देंगे।”
“जरूरत कर देंगे सर।” वंशिका बोली।
तत्पश्चात एक-एक करके तीनों चेहरे स्क्रीन से गायब हो गये।
“तुम्हारे पास कुछ है?” पार्थ ने युग से पूछा।
“ऑफकोर्स है सर। इतिहास गवाह है कि युग जौहर की दर से आज तक किसी को भी खाली हाथ नहीं लौटना पड़ा होगा।”
“ट्रैक पर बना रह बच्चे, ये वक्त मजाक का बिल्कुल भी नहीं है।”
“सॉरी सर। बात ये है कि एडवोकेट विक्रम राणे और डॉक्टर मजूमदार का कॉल रिकॉर्ड कहता है कि दोनों एक दूसरे के काफी करीब हैं। मेरे पास पिछले छ: महीनों का डाटा है, जिसके मुताबिक कुल जमा सौ बार उनके बीच बात हुई थी, उनमें से पचास कॉल्स, जो कि औसतन पांच मिनट चली होंगी, पिछले दो महीनों के दौरान एक दूसरे को की गयी थीं। आप क्योंकि आप हैं, इसलिए समझते ही होंगे कि दो लोगों के बीच जब बातचीत की फ्रीक्वेंसी अचानक बढ़ जाती है तो उसकी हमेशा कोई ना कोई खास वजह होती है।”
“बाईस तारीख की लोकेशन हासिल नहीं हुई उनकी?”
“नहीं सर, ख्याल तक नहीं आया उस तरफ ध्यान देने का क्योंकि अभी तक तो हम उन दोनों को नजरअंदाज ही करते आ रहे हैं, लेकिन आप कहेंगे तो कोशिश कर सकता हूँ।”
“अभी नहीं। जो करना है वह वंशिका और सोनी साहब के नाकाम हो जाने की सूरत में करना होगा, जिसके चांसेज कम ही दिखाई देते हैं।”
“यस सर।”
“और कोई खास बात?”
“शीतल अंबानी के मोबाइल से वह तस्वीर डिलीट कर दी गयी है, जिसमें सत्यप्रकाश और सुमन आपत्तिजनक स्थिति में दिखाई दे रहे थे और ये बात मुझे बहुत हैरान कर रही है।”
“क्यों?”
“जिस इमेज को वह साल भर से ज्यादा समय से सहेज कर रखे हुए थी, अचानक उसे डिलीट कर देना अचंभे की बात नहीं तो और क्या मानी जायेगी सर?”
“बेशक हैरानी की बात है, मगर उस बात पर दिमाग खपाने से कहीं ज्यादा जरूरी तुम्हारे लिए ये है कि एक मोबाइल नंबर की लोकेशन हासिल कर के दिखाओ, वह भी फौरन।”
“डिपेंड करता है सर कि ऑपरेटर कौन है? अगर मैंने उसके डाटाबेस में पहले से एक्सेज बना रखा होगा तो चुटकी बजाने जैसा आसान काम होगा, और इत्तेफाक से अगर वैसा नहीं हुआ तो फिर सॉरी, आगे दो घंटे लगेंगे या दो दिन, बता पाना पॉसिबल नहीं है।”
“तुम ट्राई तो करो, कामयाब हो गये तो ठीक वरना कोई बात नहीं।”
“ठीक है, नंबर बताइए।”
जवाब में पार्थ ने अपने मोबाइल में देखकर एक नंबर उसे नोट करा दिया।
“कब की लोकेशन चेक करनी है, मौर्या के कत्ल वाली सुबह की?”
“ठीक समझे।”
“टाइम कितना है मेरे पास?”
“मे बी एक घंटा, या उससे कुछ ज्यादा।”
“ओके, मैं कोशिश करूंगा कि आपको कोई गुड न्यूज दे सकूं।”
“थैंक यू।” कहकर पार्थ उसके केबिन से निकल गया।
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