कुछ देर बाद रणवीर राणा ने वापस कमरें में कदम रखा।


उसके चेहरे पर वही चमक थी ।... ..वही, जो ठकरियाल की प्लानिंग के मुताबिक उस क्षण उसके चेहरे पर होनी चाहिये थी । रणवीर राणा की मुस्कान साफ बता रही थी उसने कोई 'तीर मार' लिया है । ठकरियाल की तरफ देखते हुए उसने घोषणा कर दी – “राजदान साहब मे सुसाईड नहीं किया।”


“ज-जी?” ठकरियाल ने अपने हलक से चीख निकाली।


रणवीर राणा ने धमाका करने वाले अंदाज में कहा – “इनका मर्डर किया गया है ।”


“य-ये आप क्या कह रहे हैं सर ?” ठकरियाल की एक्टिंग देखने लायक थी ।


“सच यही है इंस्पैक्टर।” राणा के चेहरे पर मौजूद भाव साफ बता रहे थे वह ठकरियाल को 'हैरान' करके अंदर ही अंदर मारे खुशी के झूम रहा है—“काफी चालाकी से मर्डर किया है हत्यारे ने। ऐसे अंदाज में कि देखने पर आत्महत्या लगे और इसमें शक नहीं, पहली नजर में हम भी धोखा खा गये थे ।”


ठकरियाल ने मन ही मन कहा— 'धोखा तो तू अब खा रहा है गधे के बच्चे । आई. पी. एस. की कक्षा पास कर लेने का ये मतलब नहीं हुआ की तू इंस्पैक्टर ठकरियाल से ज्यादा ब्रिलियेन्ट हो गया। तुम जैसे जाने कितने ‘कप्तानों' को पानी पिला चुका हूं मैं। तू सोच भी नहीं सकता, जिसे ‘तीर - अंदाजी' समझ रहा है, वह तेरी कितनी बड़ी बेवकूफी है ।' 


मगर !


यह सब कहा नहीं उसने ।


कह भी कैसे सकता था?


कहा, तो यूं कहा- -“कमाल कर रहे हैं सर आप। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा । आखिर किस बेस पर मर्डर बता रहे हैं इस में वारदात को?”


रणवरी राणा ने कुछ कहा नहीं मगर, होठों पर ऐसी मुस्कान को उभरने दिया जो कह रही थी — ‘अभी तुम बच्चे हो इंस्पैक्टर।' अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की गर्ज से उसने कुछ देर और सस्पैंस बनाये रखने हेतु फोटोग्राफर और फिंगर प्रिन्ट्स सक्सपर्ट से कहा- -“तुम लोग बाथरूम में जाओ । हाथ मत लगाना किसी चीज को । ड्रेसिंग और बाथरूम के बीच एक दरवाजा है। उसके हैंडिल से फिंगर प्रिन्ट्स लो। बाथरूम की लॉन की तरफ खुलने वाली खिड़की खुली पड़ी है। फोटो लो उसका । निशान उठाओ।”


वे दोनों ‘यस सर’ कहकर बाथरूम में चले गये ।


दिव्या और देवांश हैरान नजर आ रहे थे। असल में वे इसलिये हैरान थे क्योंकि बाथरूम से बाहर आकर राणा ने थोड़े बहुत शाब्दिक हेरफेर के साथ बात ठीक वही कही थी जो ठकरियाल पहले ही बता चुका था, वह कहेगा जबकि राणा उनकी अवस्था देखकर इस खुशफहमी के कारण झूम रहा था कि वे भी, उसकी कार्यप्रणाली पर हैरान हैं।


भट्टाचार्य, आफताब, दीनू काका और भागवंती आदि सचमुच इसी कारण चकित थे।


“मगर सर!” ठकरियाल राणा की 'ईगो' को तारा बनाकर आकाश की बुलन्दियों पर टांगने में लगा था- -“आप आखिर ताड़ कैसे गये यह मर्डर है?”


" इंस्पैक्टर। राणा ने इस तरह कहना शुरू किया जैसे ट्रेनिंग के दरम्यान रंगरूटों को पढ़ा रहा हो— “अगर तुम्हें कमरे के अंदर कोई लाश ऐसी पोजीशन में मिले जिसे देखकर लगे मरने वाले ने आत्महत्या की है तो सबसे पहले यह देखो - कमरा हर तरफ से बंद है या नहीं क्योंकि सौ में से नब्बे आत्महत्या करने वाले खुद को कमरे में बंद करके मारते हैं। इस कमरे का मुख्य द्वार अंदर से बंद होन के कारण शुरू में हम धोखा खा गये मगर, कमरे की तरफ से खुले बाथरूम के दरवाजे पर नजर पड़ते ही माथा ठनका।. ..और जब बाथरूम की लॉन में खुलने वाली खिड़की देखी तो पक्का हो गया, दाल में कुछ काला है। उसके बाद- -हमने खिड़की की चौखट को ध्यान से देखा— वहां जूते का निशान मौजूद है। लॉन की मिट्टी लगी है।


जाहिर है, उस रास्ते से कोई आया है। किसी का आना और अंदर लाश का पड़ा होना स्पष्ट कर देता है, लाश चाहे जिस स्थिति में हो असल में वह मर्डर है ।”


“लेकिन क्यों?” दिव्या चीख सी पड़ी – “कोई क्यों हत्या करेगा इनकी ?”


“वही कारण तलाशा जायेगा अब ।” जाहिर है, इस वक्त राणा खुद को शरलॉक होम्स से कम नहीं समझ रहा था—-“और यदि कारण पता लग जाये तो हत्यारे का पता लगने में कोई खास मुश्किल पेश नहीं आती।”


सब चुप रहे ।


“क्यों इंस्पैक्टर, क्या तुम अब भी इसे आत्महत्या कह सकते हो ?”


“सवाल ही नहीं उठता सर । अगर आपको यहां किसी के आने के चिन्ह मिले हैं तो सौ प्रतिशल मर्डर है । ऐसा मर्डर जिसे हत्यारा सुसाईड दिखाकर हमें भ्रमित करना चाहता था।”


“अब बोलो – क्या वजह जो सकती है इस हत्या की ?”


“जब कोई अमीर आदमी मार दिया जाता है, वह चाहे जहां मरा हो । मुझे सबसे पहले उसकी मौत के पीदे दौलत नजर आती है।” 


“मगर राजदान की आर्थिक स्थिति दयनीय थी । ”


“मुमकिन है यह बात हत्यारे को पता न हो ।”


“करेक्ट! इस बात में दम है ।” कहने के बाद राणा दिव्या, देवांश की तरफ पलटा । सवाल किया – “ध्यान से देखकर बताओ, क्या कमरे से कोई कीमती वस्तु गायब है ?”


“कीमती के नाम पर कुछ रह ही नहीं गया था हमारे पास।” देवांश ने कहा।


“केवल कुछ कहने हैं जिनकी कीमत तीन-चार लाख से ज्यादा नहीं होगी।” दिव्या बोली ।


राणा ने पूछा— “कहां हैं वे?”


“वहां!” दिव्या ने पेंन्टिंग की तरफ अंगुली उठाई।


राणा सहित सबकी नजरें उस तरफ घूम गईं।


ठकरियाल ने कहा—“वहां कहां, वहां तो दीवार पर पेन्टिंग टंगी है।”


“पेन्टिंग के पीछे एक लॉकर है ।"


“लॉकर?”


“एक मिनट।” कहने के बाद रणवीर राणा बैड की तरफ बढ़ा। उस पर बिछी चादर को ध्यान से देखने लगा। वह उसकी इस हरकत को देखकर एक बार फिर छुपी सी मुस्कान भद्दे होठों पर रेंगती चली गई । पेन्टिंग के ठीक नीचे बैडशीट पर राणा को जूतों के निशान नजर आये। वह अपने दायें हाथ का घूंसा बहुत जोर से बायीं हथेली पर मारता दिव्या की तरफ पलटकर कह उठा—“हमारा दावा है मिसेज राजदान, तुम्हारे जेवर इस वक्त लॉकर में नहीं है ।”


“क-क्या? क-क्या कह रहे हैं आप?” दिव्या ने मुंह से ऐसी चीख निकाली जैसे उसकी जान ही निकल गई हो— “व-वो न हुए तो तबाह हो जायेंगे हम । वह हमारी आखिरी पूंजी है।”


वह बाकायदा विलाप करने लगी थी । पर जरा भी ध्यान दिये बगैर ठकरियाल ने रणवीर राणा को ‘टुंडे' पर चढ़ाये रखने का अभियान जारी रखे कहा-“कमाल कर रहे हैं सर आप लॉकर अभी खुला नहीं है बल्कि अभी तो पेन्टिंग भी अपनी जगह है और... आपने जेवर गायब होने की घोषणा कर दी ।... आखिर कैसे?”


“वह बाद में बतायेंगे। पहले यह देखो, हमारे दावे में कितना दम है ?” कहने बाद रणवीर राणा ने फिंगर प्रिन्ट्स एक्सपर्ट और फोटोग्राफर को हुक्म देने शुरू किये।


उनके हुक्म पर मुकम्मल फोटोग्राफी, पेन्टिंग और लॉकर के हैंडिल आदि से अंगुलियों के निशान लेने के बाद लॉकर खोला गया। वह खाली मिलना था, सो मिला।


दिव्या ‘लुट गई’ – ‘बरबाद हो गई' का राग अलापती रही जबकि रणवीर राणा ठकरियाल की तरफ ऐसी नजरों से देख रहा था जैसे जादूगर अपने हाथों से कबूतर गायब करके 'हैरान' दर्शकों की तरफ देखता है। ठकरियाल भी अपने फेस पर उन्हीं भावों को चिपकाये था जैसे अभी-अभी कोई चमत्कारी खेल देखा हो । उसने वही कहा जो राणा सुनना चाहता था— " – “ये तो चमत्कार हो गया सर, करिश्मा हो गया । हैरत की बात लॉकर का खाली होना नहीं बल्कि... आपके द्वारा पहले ही उसके खाली होने की घोषणा कर देना है।... यह चमत्कार कैसे कर सके आप?”


“कोई खास बात नहीं है।” खुद को और ज्यादा श्रेष्ठ दर्शाया राणा ने— “यदि तुम भी ध्यान से बैड पर बिछी चादर को देखते तो यह चमत्कारिक घोषणा कर सकते थे। लॉकर खाली करने के लिए हत्यारे को जहां खड़ा होना जरूरी था वहां अब भी, जूतों के निशान हैं। उसी मिट्टी वाले जैसे बाथरूम की खिड़की पर हैं। जाहिर है—यहां पहुंचने के बाद हत्यारे ने लॉकर में एक छल्ला भी नहीं छोड़ा होगा।”


“सचमुच सर। आपके द्वारा डिटेल बताई जाने के बाद सब कुछ समझ जाना कितना आसान लगता है।”


“अब हमें यह पता लगाना होगा, इस लॉकर तक किसकी पहुंच थी ?”


देवांश की नजरें आफताब पर जम गईं।


“नहीं साब।” उसकी नजरों का अर्थ समझते ही आफताब उर गया। गिड़गिड़ा उठा वह – “मेरा इस वारदात से कोई मतलब नहीं है । "


देवांश कुछ बोला नहीं, केवल घूरता रहा उसे।


राणा ने कहा—“मतलब क्या हुआ इस बात का? अभी तो देवांश ने कुछ कहा भी नहीं है, फिर तुम इतने घबरा क्यों गये?” 


“छ-छोटे साब मुझे घूर ही कुछ ऐसे अंदाज में रहे हैं।” आफताब के होश उड़े हुए थे—“म-मगर साब, खुदा की कसम मैंने कुछ नहीं किया।”


“यह सफाई तुम दे क्यों रहे हो?” रणवीर राणा गुर्राया।


आफताब तब तक हकला ही रहा था जब देवांश ने कहा- -“यह लॉकर के बारे में जानता था ।”


“ओह।” रणवीर राणा की आंखे सुकड़ गईं।


इस एहसास ने आफताब की हालत खराब कर दी थी कि वे सब उस पर शक कर रहे हैं। और उस वक्त तो घिग्घी ही बंध गई जब ठकरियाल ने झपटकर उसकी कलाई पकड़ने के साथ कहा – ' -“इधर आओ।” वह उसे घसीटता हुआ बैड के नजदीक ले गया।


खौफ का मारा आफताब जाने क्या-क्या कहना चाहता था मगर स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं कह पा रहा था । बड़ी ही अनाप-शनांप आवाजें निकल रही थीं उसके मुंह से ।


ठकरियाल ने एक बार बैडशीट पर बने जूते के निशानों को देखा, फिर आफताब के पैंरो को। यही क्रिया दोहराने के बाद आफताब का हाथ छोड़ दिया उसने । रणवीर राणा की तरफ पलटकर बोला- -“सर, परमीशन दें तो एक छोटा सा पटाखा मैं भी फोड़ दूं " 


“हां-हां।...क्यों नहीं इंस्पैक्टर ।”


“हत्यारा और चाहे जो हो मगर आफताब नहीं है ।” 


“बेस?”


-आसमान का फर्क है। इसके पैरों में दस नम्बर का जूता आना चाहिये “बैडशीट पर बने निशान और आफताब के पैरों में जमीन-अ जबकि निशान सात नम्बर जूते से ऊपर का नहीं ।”


“करेक्ट। एकदम करेक्ट इंस्पैक्टर ।” राणा ने आफताब के पैरों का मिलान बैडशीट पर बने निशान से करने के साथ कहा—' - "हम तुमसे सहमत हैं और... खुशी हुई, इन्वेस्टीगेशन करने की कला से तुम भी वाकिफ हो।”


आफताब की हालत ऐसी थी जैसे हजारों फुट गहरी खाई में गिरने से बाल-बाल बचा हो । जरा सी देर में, सुबह के वक्त उसे इस बंद कमरे में तारे नजर आ गये थे ।


दिव्या ने जब आफताब की बरी होते देखा तो चीख पड़ी— “मगर यह सब इसने नहीं किया तो जरूर बबलू ने किया है। देवांश. ..हम लोग के अलावा केवल वहीं है जिसे लॉकर के बारे में मालूम हैं हमें पहले ही शक था, वह कभी न कभी ऐसा कुछ जरूर करेगा। मुझे पूरा विश्वास है, उसी कंगले ने किया है सब कुछ।”


देवांश यूं खड़ा था जैसे कोई फैसला न कर पा रहा हो।


ठकरियाल इसलिये खामोश था क्योंकि यहां से वह 'कमान' पुनः रणवीर राणा को सौंपनी चाहता था । वही हुआ, जैसी उम्मीद थी, राणा ने पूछा—“कौन है ये बबलू?”


“विला के सामने सड़क के उस पार जो तीन मंजिला फ्लैट बने हुये हैं— बबलू उन्हीं में से एक में रहता है।” देवांश ने नाप तोलकर वहीं बोलना शुरू किया जो पहले से निर्धारित था- -“भैया से, जरूरत से कुछ ज्यादा ही घुटती थी उसकी । ऐसा क्यों था, हजार कोशिशों बावजूद हम जान नहीं पाये। वह अक्सर भैया के पास आ जाया करता था । इसीलिए, पेन्टिंग के पीछे छुपे लॉकर की जानकारी भी थी उसे। मुझे और दिव्या को उस लड़के की नीयत कभी ठीक नहीं लगी। लालची किस्म का सा है। कई बार भैया को समझाने की कोशिश की मगर...


“नहीं।” उसकी बात काटकर भट्टाचार्य कह उठा- -“वह लड़का ऐसा नहीं कर सकता।”


“क्यों डाक्टर साहब?” ठकरियाल को हस्तक्षेप करना जरूरी लगा— “आपका ऐसा ख्याल क्यों है ?”


“क्योंकि मैं उस लड़के को जानता हूं। कई बार यहां मिला है वह हमेशा राजदान की सेवा करते ही पाया और राजदान भी उसे.


“क्यों?” देवांश ने टोका- -“क्यों करता था वह भैया की इतनी सेवा ?”


“अरे भई तुम्हें हो क्या गया है देवांश ? राजदान से प्यार करता था वह उसके द्वारा की जाने वाली सेवा की और भला क्या वजह हो सकती है?”


“असली वजह आप नहीं, हम जानते हैं भाई साहब।” दिव्या ने कहा। हैरान भट्टाचार्य बोला- -“कम से कम मैं तो कोई और वजह नहीं समझता।” 


“ वजह थी भाई साहब । उसे इनसे पैसों का लालच रहता था । ” 


“मैं उस लड़के के बारे में ऐसा सोच भी नहीं सकता।”


“एकाध बार ये आपको इनके हाथ-पैर दबाता मिल गया, इससे ज्यादा उसके बारे में जानते ही क्या हैं?” दिव्या समझ चुकी थी, झूठ-सच बोलकर भट्टाचार्य को कमजोर करना जरूरी है। इसी मिशन को अंजाम देने हेतु कहती चली गई— “जानते तो हम हैं। हम। मैं और देवांश। कई बार हमने उसे ‘इनसे' पैसे मांगते देखा है। कभी फीस के बहाने, कभी मां की बीमारी के बहाने तो कभी किसी और बहाने से।”


राणा ने पूछा – “क्या राजदान साहब उसे पैसे दे भी दिया करते थे?” “अक्सर ।” देवांश ने कहा ।


भट्टाचार्य बोला— “मुझे तो कभी वह ऐसा नहीं लगा।”


“मिसेज राजदान कह रही हैं तो ठीक ही कह रही होंगी । भला क्या जरूरत है इन्हें झूठ बोलने की ?” ठकरियाल ने फाईनल स्ट्रोक मारा—“जरूर वह राजदान साहब की सेवा के बदले इन्हें सेन्टीमेन्टल करके पैसे लेता रहता होगा। इस उम्र के लड़कों के खर्च आजकल आसमान छू रहे हैं। और... यह बात भी अपनी जगह दुरुस्त है— एकाध मुलाकत में किसी को नहीं जाना जा सकता। जान तो वही सकता है—जिसने अक्सर झेला हो । फिर भी यह कोड़ी जरा दूर की लगती है कि यह काम उसने किया होगा। परन्तु अगर मिसेज राजदान और मिस्टर देवांश किसी पर संदेह व्यक्त कर हैं तो उसे चैक रहे हैं तो उसे चैक करना जरूरी है।... क्यों सर?” 


“बुराई कुछ नहीं है चैक करने में।” रणवीर राणा ने कहा – “दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा।”


******


ठकरियाल ने अपने रूल से बंद दरवाजे पर दस्तक दी ।


रामोतार सहित चार-पांच पुलिस वालों के अलावा उसके साथ रणवीर राणा, दिव्या, देवांश और भट्टाचार्य भी थे | मुश्किल से आधे मिनट बाद दरवाजा खुला । दरवाजा खोलने वाले की उम्र करीब चालीस वर्ष थी


वह ‘आई साइड’ लगाये हुए था ।


सुबह-सुबह अपने दरवाजे पर पुलिस को देखकर चेहरे पर वैसे ही भाव उभरे जैसे ऐसा दृश्य देखकर किसी भी शरीफ आदमी के चेहरे पर उभरेंगे।


“कहिये!” उसने चश्मा दुरुस्त किया।


ठकरियाल ने कड़क लहजे में पूछा – “आपका नाम?” “स - सत्य प्रकाश ।” आवाज कांप रही थी ।


“बबलू आप ही का लड़का है ?”


"ज - जी । ” सत्य प्रकाश हकला उठा- -“क- क्या किया है उसने?”


“तभी, अंदर कहीं से किसी महिला की आवाज उभरी- -कौन आया है?”


सत्य प्रकाश जवाब न दे सका ।


तब तक वह भी, जो सत्य प्रकाश की पत्नी और बबलू की मां थी, दरवाजे पहुंच चुकी थी। पुलिस को देखकर उसका मुंह भी खुला का खुला रह गया।


बड़ी मुश्किल से पूछा सकी- -“अ-आप लोग?... आप लोग हमारे घर क्यों आये हैं?” 


“सुजाता, ये बबलू के बारे में पूछ रहे हैं।" सत्य प्रकाश ने कहा।


सुजाता के पैरों तले से मानो धरती खिसक गई। मुंह से निकला – “ब-बबलू के बारे में?” 


“कहां है वह?” ठकरियाल के लहजे में पुलिसिया ठसक थी।


“क-कुछ बताइये तो सही। आखिर बात क्या है? क्यों पूछ रह हैं आप लोग बबलू को ?” 


अचानक ठकरियाल सत्य प्रकाश को जोरदार धक्का देता गुर्राया— “बार-बार एक ही सवाल किये जा रहा है साले। वह नहीं बताता जो हम पूछ रहे हैं।”


सत्य प्रकाश पीछे खड़ी सुजाता से नहीं टकरा गया होता तो यकीनन फर्श पर गिर जाता । चश्मा तो नाक से कूदकर गिर ही चुका था। सुजाता ने सत्य प्रकाश को सम्भालते हुए कहा – “अरे - अरे! ये क्या कर रहे हैं आप? कम से कम पेश तो तमीज से आईये।” 


एस. एस. पी. फिर भी एस. एस. पी. था। सो, थोड़े नम्र स्वर में बोला — “सवाल करने की जगह अगर आप सीधे-सीधे बतायें बबलू कहां है तो बेहतर होगा ।”


“सो रहा है।” सुजाता ने कहा।


“कहां?”


“अंदर वाले कमरे में।"


“हमें उससे मिलना है।”


“ल- लेकिन कयों?”


ठकरियाल गुर्राया— “फिर सवाल किया तुमने ?”


" देखिये एस. एस. पी. साहब ।” सत्य प्रकाश ने कहा- -“हम शरीफ लोग हैं। बेटा भी ऐसा नहीं है जैसे पुलिस ढूंढती फिरे ‘इसलिये हैरान हैं। बबलू ने ऐसा क्या कर दिया है जो आप लोग...


“उसने क्या किया है, कुछ भी है या नहीं —– कुछ देर बाद खुद पता लग जायेगा ।” राणा ने कहा – “हमें एक हत्या और 'लूट' के मामले में उससे पूछताछ करनी है । प्लीज, रास्ते से हट जायें । "


“हत्या और लूट!” सत्य प्रकाश के हलक से चीख निकल गई — “भला इस सबसे बबलू का क्या वास्ता ?” “ये इस तरह नहीं मानेंगे सर ।” ठकरियाल ने राणा से कहने के बाद सिपाहियों से कहा – “पकड़ लो इन्हें!” हुक्म की देर थी ।


दो पुलिस वालों ने झपटकर सत्य प्रकाश को दबोच लिया, दो ने सुजाता को । ठकरियाल ने कदम दरवाजे के पार रखा। फर्श पर पड़ा चश्मा भारी बूट के नीचे दबा और चरमराकर टूट गया । राणा सहित बाकी लोग उसके पीछे थे।


सत्य प्रकाश और सुजाता चीखने-चिल्लाने से ज्यादा कुछ न कर सके।


अंदर वाले कमरे के दरवाजे को ठकरियाल ने इतनी बेरहमी से खोला कि 'धाड़' की जोरदार आवाज हुई। उस आवाज ने बैड पर सोये पड़े बबलू को हड़बड़ाकर उठा दिया। पुलिस के साथ देवांश, दिव्या और भट्टाचार्य भी थे।


उन सबको देखकर बबलू के गुलाबी होठों पर वैसी मुस्कान उभरी जैसी खेल में जीतने वाले खिलाड़ी के होठों पर उभरती है। परन्तु सिर्फ एक पल के लिए। अगले पल वह अपने चेहरे पर हैरानी के भावों को आमंत्रित कर चुका था । बोला – “क्या हुआ अंकल? आप, आंटी और डॉक्टर अंकल मेरे घर पुलिस के साथ?” ठकरियाल गुर्राया— “हमें तुमसे कुछ पूछना है।"


“कुछ पूछने की जरूरत नहीं रह गई है इंस्पैक्टर।” कहने के साथ रणवीर राणा ने बैड के नजदीक फर्श पर रखे बबलू के जूते


उठा लिये।


सात नम्बर के थे वे।


तलों पर विला को लॉन की मिट्टी लगी थी।


दिव्या, देवांश और ठकरियाल तो जानपते ही थे ये सब होना है। आश्चर्य हुआ तो सिर्फ भट्टाचार्य को ।


आश्चर्य भी गहन।


ऐसा... कि सबकुछ सामने होने के बावजूद विश्वास नहीं कर पा रहा था । दिल गवाही नहीं दे रहा था कि ऐसा भी हो सकता है। बबलू... और राजदान का हत्यारा ?


लुटेरा? नामुमकिन।


परन्तु ।


सुबूत सामने थां


सुबूत भी अकाट्य ।


उन्हीं जूतों के निशान उसने खुद बैड शीट पर साफ-साफ देखे थे।


“मैंने कहा था न एस. एस. पी. साहब ।” दिव्या ने पूर्व निर्धारित नाटक शुरू कर दिया — “यही है मेरे सुहाग का हत्यारा । इसी ने उड़ाई है मेरी मांग में खाक ।” कहने के साथ उसने झपटकर दोनों हाथों से बबलू का गिरेबान पकड़ा और उसे झंझोड़ती हुई हिस्टीरियाई अंदाज में चीख पड़ी—“बोल, बोल कमीने! क्यों किया ऐसा? अरे, अगर तुझे दौलत की ही भूख थी तो मुझसे कहता। अपना छल्ला-छल्ला मुंह पर फैंक मारती तेरे। कम से कम सुहाग तो बचा रहता मेरा।”


इसी किस्म की जाने कितनी बातें चीखती चली गई वह ।


देवांश और भट्टाचार्य उसे बबलू से अलग करने की चेष्टा कर रहे थे। कामयाब तो हुए लेकिन वे ही जानते थे, कितनी जिद्दोजहद करनी पड़ी। चीचड़ी की मानिन्द चिपट गई थी वह उससे ।


अलग होने के बाद भी जाने क्या-क्या चीखती-चिल्लाती रही। उसकी हालत देखकर बबलू के गुलाबी और मासूम होठों पर पुनः चमकदार मुस्कार ने उभरने की कोशिश की।


बड़ी ही दिलचस्प और रहस्यमय मुस्कान थी वह


परन्तु ।


बबलू ने तुरन्त ही उसे अपने होठों में भींच लिया।


जैसे डर गया हो, कहीं कोई उसकी मुस्कान को देख न ले।


चेहरे पर चौंकने और हैरत के भाव पैदा कर लिय । चीख पड़ा वह — -“आखिर बात क्या है? हो क्या गया है आंटी को? क्यों मुझे अपने सुहाग का हत्यारा... सुहाग का हत्यारा ?... क्या चाचू को किसी ने... नहीं, ऐसा नहीं हो सकता । ” 


“ऐसा हो चुका है बेटे।”...ठकरियाल ने झपटकर उसके बाल पकड़े, दांत भींचकर गुर्राया— “ और करने वाले हो तुम । अब कोई फायदा नहीं नाटक से। हम सब जान चुके हैं।”


“क्या बात कर रहे हो इंस्पैक्टर अंकल ? मैं भला चाचू को... क्या सचमुच मेरे चाचू को किसी ने... 


ठकरियाल उसकी बात काटकर गुर्राया— “ज्यादा चूं-चपड़ की तो भूसा भर दूंगा खाल में।"


बबलू कुछ नहीं बोला, मासूम आंखों में दिलचस्प भाव लिये केवल देखता रहा उसे ।


“तलाशी लो कमरे की!” रणवीर राणा ने कहा ।


रामोतार और ठकरियाल तलाशी में जुट गये | दो पुलिस वाले सत्य प्रकाश को जकड़े थे, दो सुजाता को । सुजाता और सत्य प्रकाश की हालत ऐसी थी जैसे स्वपन देख रहे हो ।


दिव्या रोये चली जा रही थी ।


देवांश बबलू को इस तरह घूर रहा था जैसे कच्चा चबा जायेगा।


और तब, जब रामोतार ने बबलू के स्कूल बैग से दिव्या के गहने बरामद कर लिये। सत्य प्रकाश और दिव्या की आंखें फटी की फटी रह गईं ।


जेवर हाथ में लिये ठकरियाल बबलू के नजदीक पहुंचा। एक-एक शब्द को चबाते हुए कहा उसने– “क्या अब भी तुझे कुछ कहना है? अब भी करेगा कोई नाटक?”


बबलू चुप रहा


“बोलता क्यों नहीं?” अचानक सत्य प्रकाश ज्वालामुखी की मानिन्द फट पड़ा—“क्या है ये सब? कहां से आ गये ये गहने तेरे स्कूल बैग में?”


बबलू अब भी चुप रहा।


“छोड़ दो।...छोड़ दो हमें।" दहाड़ने के साथ सत्य प्रकाश में जाने इतनी ताकत कहां से आ गई कि एक ही झटके में उसे जकड़े दोनों पुलिसिये अपनी-अपनी दिशाओं में जा गिरे। झपटकर दोनों हाथों से बबलू का गिरेबान पकड़ लिया। उसे झंझोड़ता हुआ दांत भींचकर गुर्राया— “बोल... बोल... कहां से आये ये जेवर तुझ पर?”


बबलू ने केवल इतना कहा—“सॉरी पापा।”


“ले चलो इसे।” राणा ने उसे जोर से ठकरियाल की तरफ धकेलते हुए कहा— “थाने में बतायेगा हकीकत।” ठकरियाल ने इस तरह उसके बाल जकड़ लिये जैसे छोड़ते ही भाग जाने का खतरा हो ।


मगर ।


दिमाग उलझकर रह गया था उसका ।


कारण था—बबलू का उस बारे में कुछ भी न कहना जो रात 'वास्तव' में उसके साथ हुआ था । उसे कहना चाहिये थे— 'मुझे एक लेटर के जरिये विला में राजदान ने बुलाया था। उन्होंने ही दिये थे ये जेवर ।' यही जवाब तो थे उसके पास । हालांकि ठकरियाल ने इस सबकी काट सोच रखी थी परन्तु उस पट्ठे ने तो ऐसा कुछ कहा ही नहीं।


वह नहीं कहा जो स्वाभाविक रूप से उसके द्वारा कहा जाना चाहिये था ।


जो उसे बचा सकता था ।


क्यों?


क्यों नहीं कह रहा था बबलू ऐसा कुछ?


यह सवाल ठकरियाल के दिमाग में बुरी तरह अटककर रह गया।


ठीक यही क्षण था जब नन्हें शैतान ने बहुत धीमे से ठकरियाल के कान में कहा – “मुझे गिरफ्तार करके तुम अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल कर चुके हो इंस्पेक्टर अंकल ।”


ठकरियाल के दिमाग की सारी की सारी नसें झनझना उठीं ।