रात के बारह बजे तक दिव्या ठकरियाल से हजारों बार पूछ चुकी थी -- “अवतार का फोन आया ?”


ठकरियाल ने हर बार इंकार में गर्दन हिलाई ।


उसके इंकार पर अब तो सफेद की जगह काला पड़ने लगा था दिव्या का चेहरा |


सवा बारह बजे वे विला पर आ धमके।


अखिलेश, वकालचंद ,भट्टाचार्य, अवतार और समरपाल । दिव्या को लगा --- उसे सूली पर चढ़ाने के लिए जल्लाद आ पहुंचे हैं। मौत की छाया, उसके चेहरे पर ही नहीं, दिलो-दिमाग तक पर कत्थक कर रही थी ।


“ आप लोग सब साथ - साथ ?” ठकरियाल ने कहा --- “रात के इस वक्त ?”


अखिलेश बोला --- “रात के इस वक्त तुम क्या कर रहे हो यहां?”


ठकरियाल अचकचाया ।


अखिलेश बोला --- “अब ड्रामेबाजी खत्म ही कर दी जाये तो बेहतर है... | कान खोलकर सुनो मिस्टर ठकरियाल । हम जानते हैं तुम रात के इस वक्त यहां इसलिए हो क्योंकि इन दोनों के पाप में बराबर के हिस्सेदार हो । बीमा कम्पनी से पांच करोड़ ऐंठने के लालच में तुमने बबलू को फंसाया ।”


“क- क्या बात कर रहे हो तुम ?” दिव्या और देवांश के सामने यह सारी एक्टिंग जरूरी थी ।


“वो जो राजदान का लेटर मैंने तुम्हें दिखाया था । " दिव्या और देवांश को सुनाने के लिए अखिलेश कहता चला गया --- “जिसमें हत्यारों के नाम नहीं लिखे थे। जिसके मुताबिक मुझे इन्वेस्टीगेशन करके बबलू को बेकुसूर साबित करना था। उसे तो राजदान ने केवल उस स्पॉट पर तुम्हें दिखाने के लिए लिखा था । असल लेटर तो वो है, वो जो मैंने तुम्हें दिखाया ही नहीं। जिसमें तुम तीनों की हर करतूत विस्तारपूर्वक लिखी है और यह भी लिखा है, हमें क्या करना है।"


“य - यानी तुम शुरू से जानते हो राजदान ने किन हालात में आत्महत्या की ? किस तरह दिव्या और देवांश ने उसे हत्या का रंग देना चाहा? किस तरह मेरी एन्ट्री हुई..


“ और फिर किस तरह तुमने पलटा खाया।" अखिलेश ने

कहा - - - “किस तरह बबलू को फंसाया । पाइप पर बंदर की तरह लटक रहे देवांश का फोटो खींचने वाला ये रहा । ये !” कहने के साथ उसने समरपाल को आगे कर दिया ।


“ अगर तुम यह सब शुरू से जानते थे तो अब तक नाटक क्यों करते रहे ?”


“राजदान का ऐसा ही निर्देश था । "


“राजदान का निर्देश ?”


“ उसी के निर्देश पर इस वक्त यहां आये हैं।”


“क्यों?”


इस क्यों के जवाब में अखिलेश ने वही कहा जो ठकरियाल दिन में बता चुका था तो दिव्या दिन की तरह ही बिफर पड़ी । ठकरियाल उसे पहले ही समझा चुका था --- उन पर यह जाहिर कर देना दुनिया की सबसे बड़ी बेवकूफी होगी कि वे उनके आगमन और आगमन के कारण को पहले से जानते थे ।


इसीलिए एक्टिंग शुरू की थी उसने ।


और।


जोरदार एक्टिंग इसलिए भी हो पाई कि मानसिक रूप से वह अभी-अभी पूरी तरह उनकी महफिल में नाचने के लिए तैयार नहीं थी। उधर, अखिलेश एण्ड पार्टी जानती थी --- उनके चंगुल में फंसा ठकरियाल दिव्या और देवांश को न केवल यह बता चुका है कि वे रात को आयेंगे बल्कि काफी हद तक दिव्या को तैयार भी कर चुका है। परन्तु प्लान के मुताबिक यह बात उन पर जाहिर नहीं की जानी थी । इसलिए जब दिव्या बिफरी तो झपटकर अखिलेश ने बाल पकड़ लिये उसके। गुर्राया --- “ना-नुकुर की तो तीनों को इसी वक्त पुलिस के हवाले कर दिया जायेगा।" 


“मिस्टर अखिलेश ।” ठकरियाल ने हस्तक्षेप किया--- "मैं समझ गया तुम लोग क्या चाहते थे। ऐसे निर्देश शायद राजदान ने इसलिए दिये हैं क्योंकि दिव्या ने उससे बेवफाई की थी मगर, उसके लिए इतनी जलील हरकतें करने की जरूरत नहीं है जितनी कर रहे हो । थोड़ा टाइम दो हमें । मैं दिव्या को समझाने की कोशिश करता हूं।”


“ये लो --- " अखिलेश ने दिव्या को ठकरियाल की तरफ धकेला - -- “समझा दो इसे । और ज्यादा टाइम नहीं है हमारे पास। एक घण्टे के अंदर किचन लॉन में पहुंच जानी चाहिए।”


ठकरियाल ने दिव्या को संभाला ।


एक साथ दोनों की नजरें अवतार की तरफ उठी थीं ।


उसकी आंखों में अफसोस था ।


बहुत ही हल्का इशारा किया उसने । जिसका अर्थ था --- 'वही करो, जो ये चाहते हैं ।


" और तुम भी।” वकीलचंद ने देवांश से कहा ।


“म - मैं ? ” देवांश हकला गया ।


“उसके साथ सारे कपड़े उतार कर किचन लॉन में पहुंच जाओ।" भट्टाचार्य ने कहा । 


“म - मगर मैं क्यों ?” देवांश के हलक से किल्ली निकल गई ।


“क्यों ? भाई लोगों के होटलों का कैबरे नहीं देखा कभी ?” आगे बढ़कर समरपाल ने दांत पीसते हुए कहा था--- "वहां लड़की अकेली डांस नहीं करती। लड़का भी साथ होता है । वे अभिसार नहीं करते मगर अभिसार जैसी क्रियायें करते हैं। अलग-अलग आसनों की मुद्राएं बनाते हैं। वही सब करना है तुम दोनों को।”


“ल- लेकिन ।” देवांश बुरी तरह हकला रहा था --- “अभी-अभी तोतुमने कहा था - राजदान ने केवल दिव्या को नचाने के निर्देश दिये हैं।"


“तुझे हम राजदान की मर्जी से नहीं अपनी मर्जी से नचायेंगे।”


“ अपनी मर्जी से ?”


“यहीं शायद थोड़ी चूक कर गया हमारा यार ।” अखिलेश ने कहा --- "जब तुम दोनों का गुनाह बराबर का है तो सजा एक को कम, दूसरे को ज्यादा क्यों। या शायद जोड़े वाला कैबरे उसने कभी देखा ही न हो । शरीफ था न अपना । जाता ही कब था ऐसी जगहों पर ? मगर हमने देखा है । और तूने भी जरूर देखा होगा। वही सब लटके-झटके चाहिएं हमें तुझसे | दोस्त की चूक को दोस्त पूरा नहीं करेंगे तो कौन करेगा? कान खोलकर सुन ले... नाचना तुझे भी है।"


देवांश के होश फाख्ता हो गये ।


***


“नहीं! नहीं! इंस्पेक्टर!” दिव्या चीखती रह गई मगर ठकरियाल ने पूरी चीखें भी नहीं निकलने दीं उसके मुंह से शराब की बोतल का मुंह दिव्या के मुंह में ठूंस दिया। साथ ही कहा - - - “पी जा ! पी जा इसे ! अब सिर्फ यही तेरी मदद कर सकती है।”


कुछ शराब उसके कपड़ों पर बिखरी । ज्यादातर हलक में उतरती चली गई ।


ठकरियाल को मालूम था ये क्षण आयेंगे। उसने पहले से ही व्हिस्की की बोतलों में मुनासिब पानी मिलाकर रखा था। शुरू में दिव्या को जबरदस्ती पिलानी पड़ी मगर बाद में, तब जबकि उसकी समझ में यह बात आ गई कि अब वह इस चक्रव्यूह से निकल नहीं सकती। तब जबकि खुद उसे भी लगा---व्हिस्की वाकई उसकी मदद कर सकती है, खुद ही बोतलें उठा उठाकर पीने लगी। बीच में उसने ठकरियाल से एक सिगरेट मांगी। 


ठकरियाल ने सिगरेट बाकायदा सुलगाकर दी ।


अब उसे यहां इसलिए रहना था कि दिव्या जरूरत से ज्यादा न पी जाये।


पीती-पीती गिर ही न पड़े वह । बेहोश न हो जाये ।


"मैं नाचूंगी। मैं नाचूंगी इंस्पेक्टर ।" नशे की झोंक में वह कहती चली जा रही थी --- "मगर भूल मत जाना अपना वादा । याद रखना --- उन सबको भी मेरे सामने नंगा करके नचाना है तुम्हें ।”


“बेवकूफी भरी बातें मत करो दिव्या ।” ठकरियाल गुर्राया -- “अगर तुम्हारे मुंह से निकला ऐसा एक भी लफ्ज उसके कानों में पड़ गया तो सारे प्लान पर पानी फिर जायेगा । चुप हो जाओ एकदम । मुंह सिल लो अपना। अभी हमारे बोलने का वक्त नहीं है।”


“श - शी - शीऽऽऽ | " मुंह से शी की आवाज निकालकर उसने अपनी अंगुली होंठों पर रख ली। अब उसकी हर हरकत बता रही थी शराब दिमाग को नचाने लगी है।


उसने सिगरेट में एक कश लगाया ।


नजर दीवार पर टंगे राजदान के फोटो पर पड़ी ।


जाने क्या आया दिमाग में कि दीवार की तरफ बढ़ी। फोटो के ठीक सामने पहुंच गई । नजर उसी पर थी ।


फोटो में राजदान मुस्करा रहा था ।


“हंस रहे हो तुम ?.... हंस रहे हो मुझ पर ?” व्हिस्की की

तरंग में वह कहती चली गयी --- "खूब हंसो! खूब हंसो मेरे देवता! मैंने काम ही ऐसे किये हैं। धोखा दिया न तुम्हें ? मति मारी गई थी मेरी। देखो….. देखो तुमसे बेवफाई करके तुम्हारी गुड़िया ने खुद को क्या बना लिया ? एक तुम क्या नहीं रहे इस विला में? कितने लोग घुस आये हैं। तुम्हारा साया सिर पर नहीं रहा तो सचमुच वेश्या ही बन गई मैं तो । नंगी होकर नाचूंगी उनके बीच । वे कहते हैं--- ऐसा तुम कह गये हो ? जरूर कह गये होगे। लेकिन इस मंजर को अपनी आंखों से देखते तो देख नहीं सकते थे। अपने ही इस जिल्लत से मुक्ति दिला देते अपनी गुड़िया को ।” वह चुप हो गई, चुपचाप देखती रही राजदान के फोटो को । नशे की तरंग में जाने क्या सोच रही थी? फिर, अचानक उसने फोटो के समक्ष हाथ जोड़ दिये । दायें हाथ की अंगुलियों के बीच हालांकि सुलगी हुई सिगरेट थी । उसकी परवाह किये बगैर बहुत ही भावुक स्वर हाथों से गोली मा । में कहती चली गई वह --- “सचमुच मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया मेरे साथी ! मुझे माफ कर दो राजदान । घुटने टिकाकर भीख मांगती हूं मैं तुमसे ।” कहने के साथ उसने वाकई अपने घुटने फर्श पर टिका दिये --- "मुझे माफ कर दो। गले से लगा लो अपने | प्यार करो राजदान | सिर पर हाथ फेरो मेरे, तुम्हारा हाथ अपने सिर पर मुझे बहुत अच्छा लगता है।" कहने के साथ सचमुच वह बुरी तरह रो पड़ी थी । इस कदर कि ठकरियाल भी भावुक हो उठा।


तभी भड़ाक से कमरे का दुका हुआ दरवाजा खुला |


दोनों ने एक साथ चौंककर उधर देखा।


हालांकि देवांश के पीछे कोई नहीं था। फिर भी कुछ ऐसे अंदाज में दाखिल हुआ था वह जैसे किसी ने जोर से धक्का दिया हो । न ठकरियाल की तरफ देखा, न दिव्या की तरफ ।


सीधा सेन्टर टेबल की तरफ लपका। 


वहां, जहां व्हिस्की की बोतल रखी थी ।  


एक बोतल उठाई।


मुंह से लगाई और गटकता चला गया ।


***

किचन लॉन का पत्ता - पत्ता जगमगा रहा था । -

झरने झर रहे थे ।

फव्वारे उछल रहे थे ।

पत्थरों से टकराकर बहता पानी मधुर संगीत बिखेर रहा था।

सबसे ऊंचे झरने के पीछे । कृत्रिम पहाड़ के उस पार ।

वहां, जहां स्वीमिंग पूल था ।

वह पूल कम, पहाड़ों से घिरी झील ज्यादा मालूम पड़ता था ।

चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ बनाये गये थे। इतने ऊंचे कि पूल से उनके पार नहीं देखा जा सकता था ।

पहाड़ों पर जगह-जगह तेज रोशनियों वाले बल्ब लगे थे ।

सबका फोकस पूल की तरफ था ।

पूल का पानी जगमगा रहा था । रोशनी की परछाइयां हौले-हौले हिल रहे पानी को चीरकर उसके फर्श पर पड़ रही थीं । पूल के समीप एक बहुत बड़ा चबूतरा था।

चबूतरे पर मनसद बिछाया गया था ।

गोल तकिये रखे गये थे ।

उन तकियों पर कोहनियां टिकाये मसनद पर बैठे थे --- अखिलेश, भट्टाचार्य, वकीलचंद, समर और अवतार । ऐसे लग रहे थे पांचों जैसे रियासतों के मालिक हों ।

पूल वाले इलाके में आने के लिए जो एकमात्र रास्ता था वह गुफा जैसा था । बहुत ही विशाल पत्थर को बीच से काटकर बनाया गया था वह वहां की भव्यता को देखने से पता लगता था - - - राजदान दिव्या को कितना प्यार करता होगा ।

“ अभी तक नहीं आये...।" अवतार उठकर खड़ा होता हुआ बोला --- “मैं देखता हूं सालो को ... ।”

कोई कुछ नहीं बोला ।

अवतार तेज कदमों के साथ गुफा की तरफ बढ़ा।

रोशनी के लिए गुफा की छत में जगह-जगह बल्ब लगे हुए थे।

अभी वह गुफा के मध्य में ही था कि सामने से आता ठकरियाल नजर आया।

अवतार ने कड़क आवाज में पूछा--- "इतनी देर क्यों हो रही है ?"

"बस हो गया सारा इन्तजाम।" ठकरियाल ने कहा ।

“ वे दोनों कहां हैं ?”

“आते ही होंगे ।”

"म्यूजिक?”

“आप रिमोट से चालू कर सकते हैं । ”

तभी उसके अत्यन्त नजदीक पहुंच चुका अवतार फुसफुसाया --- “रिवाल्वर कहां है मेरा ?”

ठकरियाल ने बगैर कुछ कहे--- जेब से रिवाल्वर निकालकर उसे दे दिया ।

अवतार ने चैम्बर खोला --- सभी गोलियां अपनी जगह मौजूद थीं।

“कामयाबी मिली?” ठकरियाल ने पूछा ।

“अभी कुछ नहीं हुआ। ” कहने के साथ अवतार ने रिवाल्वर अपने पेट और बैल्ट के बीच दूंसा तथा जोर-जोर से प्रोग्राम जल्दी शुरू करने के लिए कहता वापस पूल की तरफ घूम गया।

मसनद पर पहुंचकर अपने स्थान पर बैठा ही था कि सारी लाइटें एक साथ गुल हो गयीं ।

पलकें झपकीं ।

एक पहाड़ पर लगी सर्च लाइट ऑन हुई । उसका दूधिया प्रकाश दायरा ठीक गुफा के मुहाने पर स्थिर था । 

अचानक वातावरण को तेज संगीत लहरियों ने झंझोड़ दिया ।

ऐसा लग रहा था जैसे चारों तरफ सीना ताने खड़े पहाड़ों पर पत्थर के पीछे स्टीरियो सैट छुपाकर रखे गये हों। उन्हीं से आ रही थी संगीत की आवाज ।

संगीत बेहद उत्तेजक था।

होता क्यों नहीं?

खुद वही तो लेकर आये थे वह केसिट ।

फिर ।

गुफा के मुहाने पर ।

प्रकाश के दायरे के बीचो-बीच दिव्या नजर आई।

बहुत ही झीने, सफेद लिबास में थी वह ।

“नाच !” ऊंची आवाज में अखिलेश ने हुक्म सा दिया ---- "संगीत के साथ नाच !”

और ।

नशे में धुत्त दिव्या ने नाचना शुरू कर दिया।

जैसे-जैसे वह नाचती हुई आगे बढ़ी, प्रकाश दायरा उसके साथ चल दिया ।

चलता क्यों नहीं?

सर्च लाइट का रिमोट अखिलेश के हाथ में जो था ।

एक-एक रिमोट पांचों पर था ।

इधर उत्तेजक संगीत पर नाचती दिव्या उनके बीच पहुंची।

उधर, समरपाल ने जोर से कहा--- "देवांश कहां है ?”

अवतार ने अपने रिमोट का बटन दबाया।

गुफा के मुहाने पर लाल रंग का प्रकाश दायरा बिखर गया।

देवांश नजर आया।

जिस्म पर सिफ 'वी शेप' का अण्डरवियर था ।

अखिलेश, वकीलचंद,  भट्टाचार्य, अवतार और समरपाल ठहाके लगा-लगा के हँसने लगे।

अंदाज देवांश की खिल्ली उड़ाने वाला था ।

“नाच !” वकीलचंद चीखा ।

बड़े ही बेढंगे अंदाज में हाथ-पांव फेंकने शुरू कर दिये देवांश ने ।

वह भी मसनद की तरफ बढ़ा ।

साथ ही, लाल दायरा भी ।

ठकरियाल भी गुफा का द्वार पार करके पूल क्षेत्र में आ गया था । इधर, दिव्या बेसुधी के आलम में डांस कर रही थी ।

भट्टाचार्य, वकीलचंद और समरपाल ने भी अपने-अपने रिमोट बटन दबाये ।

हरी, पीली और नीली रोशनियां भी बिखर गयीं ।

अब वे पांचों रंग के प्रकाश दायरे एक-दूसरे से गड्डमड्ड मसनद पर थिरक रहे थे और दिव्या तथा देवांश भी । दिव्या के कदम तो फिर भी किसी हद तक संगीत के साथ थिरक रहे थे परन्तु देवांश की ऊंटपटांग हरकतों और संगीत का कोई तालमेल नहीं था 

किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी।

दिव्या ने पहले अपना गाऊन उतारकर एक तरफ फेंका।

फिर ब्रा ।

और अंत में पैंटी ।

आदमजात नंगी हो गई वह ।

नशे में धुत्त पागलों की तरह नाच रही थी ।

तालियां पीटते पांचों एक साथ, एक सुर में कहने लगे--- “शेम! शेम ! शेम ! शेम !”

दिव्या को देखकर देवांश ने भी अण्डरवियर उतार दिया ।

पांचों के ठहाके तेज हो गये ।

साथ ही --- “शेम-शेम।” की आवाजें भी।

अखिलेश, ठकरियाल, भट्टाचार्य और समरपाल उस अजीबोगरीब दृश्य का पूरा लुत्फ ले रहे थे ।

अखिलेश ने ऊंची आवाज में कहा --- "वन ! टू! थ्री !”

एक साथ सभी प्रकाश दायरे लुप्त हो गये ।

पूल पर बिखरी रह गयी केवल आकाश पर चमक रहे चांद की चांदनी ।

चांदनी में उछल-कूद कर रहे वे दोनों भूत से लग रहे थे ।

फिर ।

अखिलेश ने एक दूसरा रिमोट संभाला ।

बटन दबाया।

म्यूजिक बजा।

वे दोनों रुक गये ।

दूसरा बटन दबाया।

सामने वाले पहाड़ के लम्बे विशाल पत्थर के शीर्ष पर रखा टी.वी. ऑन हो गया ।

राजदान का चेहरा नजर आया उस पर ।

वह ठहाका लगा लगाकर हंस रहा था ।

सारे पहाड़ एक साथ मिलकर राजदान के ठहाके उगलने लगे। 

आंसुओं से सराबोर चेहरा लिये दिव्या टी. वी. स्क्रीन की तरफ ही देख रही थी।

वहां, जहां ठहाके लगाता राजदान नजर आ रहा था । ठहाकों के बीच राजदान ने कहा--- "देख दिव्या बाई! जरा नजर तो डाल अपने संगमरमरी जिस्म पर ! उस जिस्म पर जिस पर तुझे नाज था। जिसकी आग बुझाने के लिए तूने मुझे धोखा दिया । मुझे आज भी वो मंजर याद है । वो मंजर... जब मैंने तुझे इसी अवस्था में देवांश की बांहों में देखा था। जाम-से-जाम टकराते पाया था । यही ! यही किचन लॉन है वह । यही किचन लॉन जिसे जाने कितने अरमानों के साथ तेरे लिए बनवाया था | सिर्फ तेरे लिए! और तूने मुझे यहीं, खुद को किसी और की बाहों में दिखा दिया ! अब देख उसी किचन लॉन में तू अपने सारे कपड़े उतारे मेरे दोस्तों के बीच खड़ी है। इनमें से किसी को भी तेरे जिस्म को पाने की ख्वाहिश नहीं है जिस पर तुझे नाज था । जिसके बूते पर मुझ मरते हुए आदमी से चैन से मरने का अधिकार भी छीन लिया। मेरे दोस्त बतायेंगे तुझे तेरे इस जिस्म की औकात । वकीलचंद, भट्टाचार्य, अखिलेश समरपाल ---इसे बताओ, किसके लायक है इसका यह घिनौना जिस्म | "

चारों एक साथ उठे।

अपनी बात पूरी करने के बाद टी. वी. स्क्रीन पर नजर आ रहा राजदान पुनः ठहाके लगाने लगा था । वे दिव्या के नजदीक पहुंचे ।

और फिर |

जैसे चारों को मालूम था क्या करना है।

लगभग एक ही साथ उनके मुंह से निकला--- "आक् थू!”

चारों ने थूक दिया दिव्या के जिस्म पर ।

राजदान के ठहाके बुलन्द होते चले जा रहे थे ।

“इसी लायक है तेरा जिस्म ! इसी लायक !” चारों ने घृणापूर्वक एक साथ कहा ।

उफ्फ ।

इतना अपमान !

इतनी जलालत !

सह नहीं सकी दिव्या

झपटकर उसने ठकरियाल के होलेस्टर से उसका सर्विस रिवाल्वर खींचा।

बिजली की सी गति से अपनी कनपटी पर लगाया ।

और ।

धांय!

एक फायर की आवाज से मुकम्मल किचन लॉन गूंज गया|

परन्तु यह गोली दिव्या की जान नहीं ले सकी ।

क्योंकि ।

उससे पहले ही अखिलेश उसकी कलाई पकड़कर उमेट चुका था ।

गोली एक पत्थर पर जाकर लगी थी ।

चटाक् ।

ठकरियाल का एक भरपूर चांटा दिव्या के गाल पर पड़ा ।

एक चीख के साथ वह मसनद पर जा गिरी।

गिरी... तो वहीं पड़ी रह गई ।

या तो वह बेहोश हो गयी थी या नशे की ज्यादती के कारण उठ नहीं पा रही थी ।

टी.वी. पर नजर आ रहे राजदान के ठहाके बुलंद और बुलंद होते चले गये ।

***