मात्र छह दिन में ही मैं टूटने लगा। मैं निधि के सामने हार गया पर दिमाग में कशमकश चलती रही। मैंने अब दिल की न मानकर दिमाग की मान ली। फैसला ले लिया कि मैं उससे तो शादी हरगिज नहीं करूँगा। मैं घंटों रोता रहता। मेरा मन बगावत करता रहा। सोचता रहा कि पकड़ ले प्यार को, कि कहीं इतनी दूर वो हो ना जाए कि कभी हाथ ही ना आए। खाना-पीना तो ना के बराबर रह गया था।
कल उसकी शादी थी। मैं रो-रो के दीवार में मुक्का मारता, लात मारता, सर मारता। इसी बीच सत्ते और रघुवीर मेरे पास आए, जिनके गले लगकर मैं बहुत देर तक रोता रहा। वे मुझे कह रहे थे कि एक बार कोशिश करके देख शायद उसके अभिभावक शादी को रोक देंगे। पर दिमाग पर पत्थर पड़े थे। मैंने संकोच में फोन तक निधि को नहीं किया। मन बगावत करता रहा, आत्मा रोती रही, और दिमाग था कि मानता ही नहीं था। मैं गाँव के मंदिर में गया कि सबकी बिगड़ी बना देने वाले शायद मेरी भी बना दे। वहाँ बहुत से सन्यासी बैठे थे।
मैंने भगवान से कहा, “भगवान, अब आप ही कोई रास्ता दिखाओ। मैं निधि से ना ही शादी कर सकता हूँ ना ही उसके बगैर रह सकता हूँ।”
मैं कोई आधा घंटा शिव की मूर्ति के सामने खड़ा रहा पर दिमाग कुछ नहीं समझ पा रहा था। मैं हाथ जोड़कर पंद्रह मिनट और खड़ा रहा। उसके बाद मैं कृष्ण भगवान के चरणों में पड़ा रहा। मैं मंदिर में कुल दो घंटे तक रहा, पर भगवान ने कोई संकेत नहीं दिया। मैं हारकर मंदिर से बाहर आ गया।
घर पर आया तो रहीम ने कहा, “भईया, खाना ले आएँ क्या?” मैं कमरे में बंद रहा। उसने कई आवाज लगाई पर मैंने अनसुनी कर दी। मैं शून्य में खोया रहा। थोड़ी देर में वो दो रोटी ले आया।
मंदिर से आकर मैं बुत-सा बन गया था। मैंने जब बीस मिनट खाना नहीं खाया, तो रहीम मेरे पास आया, “भईया, मान जाओ, नहीं झेल पाओगे। एक बार निधि से बात तो करके देख लो, नहीं तो प्यार की तड़प में पागल हो जाओगे। अभी वक्त है। गाँव के कुछ लड़के लेकर उसे वहाँ से ले आओ। मैं जानता हूँ, निधि जी को। वो तुम्हें कुछ नहीं कहेंगी।”
“मैं अब वहाँ नहीं जा सकता। कल ही उसकी शादी है, अब कुछ नहीं हो सकता।” कहते-कहते मैं दहाड़ मारकर रोने लगा। “रहीम, मैंने उसे खो दिया है।”
“ठीक है भईया, आप वहाँ नहीं जा सकते तो एक बार फोन पर ही उससे बात कर लो। क्या पता कुछ हो जाए।”
मैंने कहा, “नहीं कर सकता। मैंने उसके माँ-बाप की बेइज्जती की है। अब किस मुँह से बात करूँ। सच में मुझे मर जाना चाहिए। वे मेरे लिए रिश्ता लेकर आए थे लेकिन मैंने उन्हें मना कर दिया। अब किस मुँह से बात करूँ जब उसकी शादी हो रही है। भगवान मुझे कभी माफ ना करे। मुझे उठा ले मैं जिंदा नहीं रहना चाहता हूँ, मेरे भगवान उठा ले।”
रात के बारह बजे किसी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया। मैं अभी सोया नहीं था पर मैंने दरवाजा नहीं खोला। फिर से किसी ने दरवाजा खटखटाया। मैंने अंदर से ही कहा, “कौन है?”
“मैं हूँ।” एक बूढ़ी आवाज थी। महसूस हुआ कि वो आवाज कहीं सुनी लगती है। मैंने दरवाजा खोला। सामने अस्सी साल के एक साधु खड़े थे। साधू लम्बे चोड़े थे उन की पलक भी नहीं झपक रही थी हाथ में उन्होंने कई अँगुठियाँ पहनी थी मुझे लगा की शायद मैं इन साधू महराज को जानता हूँ पर याद नहीं आ रहा था मैंने इन्हें कहाॅ देखा है। मैंने कहा, “आप कौन हैं?”
“मैं हूँ।” ये सुनते ही मैं समझ गया कि ये वही बाबा हैं जो मुझे खारी बावड़ी में मिले थे जिन्होंने मुझे गाँजा पिलाया था। मैंने उनके पैर छुए। उन्होंने सदा खुश रहो का आशीर्वाद दिया। मैं उनके गले लगकर रोने लगा, “बाबा मैंने अपना प्यार खो दिया अपनी गलती से। मैंने उससे शादी के लिए ना कर दी बाबा। मैं दुख में हूँ मेरे मन को शांत करो। मैं और नहीं जल सकता। मेरे अंदर बहुत दर्द है, मैं क्या करूँ।”
“बेटा सब्र कर। अभी से मत टूट। तू दोबारा कोशिश कर। वो तुझे मिल जाएगी।”
“नहीं बाबा, कल निधि की शादी है।”
तभी उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखा तो मैं पता नहीं कहाँ खो गया। मुझे बाबा के हाथ रखते ही गाँजे जैसा नशा हो गया। बाबा ने कहा, “सब माया है।”
ये सुनकर मुझे नींद जैसा लगा और मैं पता नहीं कैसे सो गया। जब उठा तो बाबा वहीं बैठे थे। साथ में रहीम भी था। मैंने समय देखा तो सुबह के चार बज रहे थे।
“सब माया है। बेटा वो मर सकती है पर तुम्हारे अलावा किसी से शादी नहीं करेगी। मैं जानता हूँ उसको।” बाबा ने मेरे सर पर हाथ रखकर कहा।
“पर बाबा, आज तो उसकी शादी है। मुझे क्या करना चाहिए?”
“करना क्या है, ये तुम्हें तय करना है। मैं तो सिर्फ सलाह दे सकता हूँ।”
“पर बाबा, अब देर हो गई। अब उसकी शादी नहीं टल सकती।”
“वो तेरा प्यार है, किसी के हिस्से नहीं आ सकता। माता वैष्णो देवी की जय हो। सब माया है माया।”
“बाबा आप चाय पिएँगे।” रहीम ने पूछा।
“हाँ एक कप चल ही जाएगी।” बाबा ने कहा।
रहीम चाय बनाने चला गया। मैं सदमें में था कि आज निधि किसी और की हो जाएगी। ये खयाल आते ही मैं बेहोश हो गया। मेरे ऊपर किसी ने पानी डाला। रहीम चाय लेकर खड़े थे। बाबा चाय लेकर पीने लगे।
“बाबा उसकी शादी किसी और से हो गई तो क्या होगा? मैंने उसे शादी के बारे में जवाब देने में देर कर दी है।”
“बेटा मैं जानता हूँ, तुमने शादी के लिए क्यों मना की थी। एक बात तुम्हें बता रहा हूँ, ये आत्मा किसी के गलत करने से अशुद्ध नहीं होती। ये सदैव शुद्ध ही रहती है। ये गलती बस शरीर तक ही सीमित रहती है। कितना समय लगा दिया तुमने ये समझने में कि वो आज भी तेरा इंतजार कर रही है। जाओ तुम उसके पास।”
“पर जाकर कोई फायदा नहीं। शादी वाले दिन शादी को नहीं रोक सकते। भगवान अब उठा ले, अब सहन नहीं होता मुझसे। आठ साल से जल रहा हूँ, इस दर्द का अंत कर दे।”
“मेरे बच्चे, जिंदगी ऐसे समाप्त नहीं होती है। सब माया है। कभी माया से निकल के देखो।”
“पर बाबा, आज उसकी शादी कोई रोकने नहीं देगा। निधि को तो मैं जानता हूँ वो तो मान ही जाएगी, पर अब उसके घर वाले नहीं मानेंगे।”
“माता वैष्णो देवी का वरदान है वो। तेरे लिए उसे कोई नहीं रोक सकता।”
“पर आप कैसे कह सकते हैं कि उसकी शादी मेरे जाने से रुक जाएगी? अब देर हो गई है बाबाजी।”
“मैंने माता से माँगा है तुम्हारे लिए उसे।”
“पर माता से माँग लेने से वो मुझे कैसे मिल सकती है?” मैं असमंजस में था की क्या ऐसा हो सकता है।
“अगर माँगे हुए पर विश्वास हो तो माता उसे जरूर पूरा कर देती है। माता पर विश्वास करो, मन्नत पूरी होती है। जाओ और कोशिश करो।”
“पर बाबा मैं उसके बारे में सोचकर रातों में नहीं सो पाता हूँ जिससे वो मेरे लिए बेवफा हो गई थी। बाबा मैं इसी में फँसा बैठा था।”
“समझ सकता हूँ, तुम गलत नहीं हो पर क्या तुमने जिंदगी में कोई गलती नहीं की है? जिंदगी में कोई ना कोई गलती करता ही रहता है, जैसे उसने की है।”
बाबा जी को मैं शांति से सुन रहा था ये सोचकर कि वो मेरे बरसों के सवालों का उत्तर दे दें।
“बेटा, अगर कोई गलती कर भी दे और अब वो सही है तो उसे माफ कर देना चाहिए। सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते हैं। क्षमा जिंदगी का सबसे बड़ा दान है। ये शरीर की गलती तो इसी दुनिया में ही रह जाती है, पर आत्मा की गलती नहीं होती। शरीर छूट गया तो समझो गलती भी इस संसार में रह गई। आत्मा के परमात्मा से मिलने के बाद सब शुद्ध हो जाता है। जब गलती भगवान भी माफ कर देता है तो हमें भी उनका अनुसरण कर लेना चाहिए। आखिर हैं तो हम उनकी ही संतान।”
“पर बाबा, उसकी हँसी मुझे रात दिन सताती है।”
“पर बेटा, किसी से इतना भी नहीं जलना चाहिए। मैं जानता हूँ उसकी कहीं बात तुम्हें सताती होगी पर तुम उससे आगे ही नहीं बढ़ना चाहते हो। तुम अपने प्यार को और आगे ले जाओ और उसका सबसे आसान तरीका है तुम ये स्वीकार कर लो कि उसने गलती कर दी। अब आगे बढ़ो। सच में वो डरावनी हँसी कहीं बहुत पीछे छूट जाएगी। उसकी गलती अब भूत बन गई है और भूत को वर्तमान में लाओगे तो डर ही लगेगा उस गलती के भूत से।”
“पर बाबाजी, मैं आज उसकी शादी कैसे रोकूँ? मैं आज निधि से शादी के लिए कहूँगा तो कोई बवाल ना बन जाए। मुझे वहाँ जाने से डर लग रहा है। आप मेरी स्थिति समझ सकते हैं।”
“बेटा, तुम्हें प्रयत्न करना चाहिए। बिना संघर्ष के सफलता नहीं मिलती। माता का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। अगर उसे भी प्यार है तो वो तुम्हारा ही साथ देगी। वो अपने माँ-बाप से भी लड़ जाएगी। जाओ अपने प्यार को छीन लो। भगवान तुम्हें सफल करे। जय माता की! सब माया है माया।”
ये कहकर बाबाजी वहाँ से चले गए। मैं बैठा-बैठा कुछ देर तक सोचता रहा।
रहीम ने कहा, “बाबा की बात समझ नहीं आई वो किस बारे में कह रहे थे? आप किससे जल रहे हैं?”
“वो बात तेरी समझ में नहीं आएगी। मैं घर जा रहा हूँ।”
“भईया, आप के साथ मैं चल सकता हूँ?”
“नहीं जा सकते। यहाँ काम कौन देखेगा?”
“आप सत्ते और रघुवीर को ले जाएँ, पता नहीं वहाँ क्या मुसीबत आ जाए। किसी की शादी रुकवाना आसान काम नहीं है।”
“नहीं, मैं उनको किसी मुसीबत में नहीं डाल सकता।”
“पर भईया, मुझे डर लग रहा है। मेरी बात मान जाओ।”
“वहाँ मेरा घर है। साथ में मेरे दोस्त भी हैं। तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है।”
उसके बाद मैं पाँच बजे महरौली के लिए निकल लिया। ये सोचकर मुझे निधि के घर वालों को समझाने में समय लगेगा पर मैं उन्हें मना लूँगा। मैंने गाड़ी सोहने की तरफ मोड़ दी। मैं खुद भी उधेड़बुन में था वहाँ शादी में मेरे साथ क्या होगा। मैं सोचते हुए गाड़ी धीरे चला रहा था पर मैं रुका नहीं। कई बार सोचा कि निधि के पापा से क्या कहूँगा कि अब मैं निधि से शादी करना चाहता हूँ। मैं निधि को आने से पहले फोन भी कर सकता था पर शर्म के कारण नहीं किया। मुझे बाबाजी के कहे पर पूरा भरोसा था। उन्होंने कहा था कि वो मेरा इंतजार कर रही है।
अगर निधि ने साथ दिया तो मैं उनके घर के लोगों को कैसे भी मना लूँगा। पर सवाल था कि वो अपनी शादी के दिन शादी ना करने का फैसला नहीं ले पाई तो! अगर मान भी गई तो क्या होगा उसके पापा मान जाएँगे? ये सोचकर नहीं माने कि उनकी कितनी बदनामी होगी इसलिए कनाडा वालों से शादी कर दी। मेरे दिमाग में यही चल रहा था। मैंने सोचा, एक बार कोशिश करके देख लेता हूँ, आगे भगवान की मर्जी। अगर मान गए तो बल्ले-बल्ले नहीं तो जिंदगी तो झंड होनी ही है। मैं मनाने लगा कि माता रानी वे मान जाएँ। मैं अब तेज चलने लगा।
मुझे याद आया कि उसकी शादी का डेस्टिेनेशन तो में हरौली के कहीं आस-पास ही है। मैंने अपने फोन से कार्ड निकालकर व्हॉट्सएप पर देखा, कोई वसंत कुंज का गेस्ट हाउस था जहाँ पर शादी होनी थी। रास्ते में मुझे पुलिस वालों ने रुकवाया, गाड़ी के पेपर देखे। सोचने लगा कि इतने सालों में कभी ट्रैफिक वालों ने नहीं रुकवाया, पर आज जल्दी है तो ये भी इस दिन मिले हैं। रास्ते में मुझे सुबह-सुबह ट्रकों का जाम भी मिला। मैंने भगवान से कहा कि हे भगवान सुबह-सुबह भी जाम मिलता है क्या! मैं जल्दी से निधि के घर जाना चाहता था। मैंने वसंत कुंज की ओर अपनी गाड़ी मोड़ दी।
मैं जैसे ही वसंत कुंज की तरफ मुड़ा मेरे हाथ-पैर फूलने लगे। मैंने रास्ते में एक तरफ गाड़ी को रोक दिया। पिछली सीट से पानी की बोतल निकाली और पूरी बोतल पी गया। मैं कुछ देर वहाँ रुका जब तक मैं सामान्य नहीं हो गया। उसके बाद मैंने दुबारा गाड़ी स्टार्ट की और आगे चल दिया।
मैं धड़कते दिल के साथ चल रहा था। एक किलोमीटर ही चला था कि सामने मोड़ के पास कोई सौ आदमियों का झुंड आ रहा था। झुंड किस चीज का था मुझे मालूम नहीं था। ट्रैफिक भी स्लो था। जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ा तब मेरी समझ में आया कि कोई अर्थी जा रही थी। मैंने मन में कहा ‘शिव-शिव’ और आगे बढ़ गया। मैंने किसी से सुना था कि अर्थी जा रही हो तो शिव-शिव कहने से उस आत्मा को शांति मिलती है और वह सीधा स्वर्ग की तरफ जाती है।
मैं अर्थी को गौर से देख रहा था। मैंने दूर से ही गुप्ता अंकल को पहचान लिया जो अर्थी के साथ-साथ चल रहे थे। वो अब मेरे पास आ रहे थे। मेरे दिल की धड़कन सौ की स्पीड में चल रही थी। देव, सोनू, भोपला भी मुझे दिखे। उनके चेहरे भी उदास थे। उनमें एक चेहरा वंश का भी था।
मैं समझ गया कि निधि मर गई है। मैंने देखा कि गुप्ता अंकल की आँखें रो-रोकर लाल हो गई थी। मैंने भगवान से कहा मुझे कभी माफ ना करना। मैं जल्दी में काँपते-डरते गाड़ी से उतर गया। मेरी आँखों में आँसू आ गए। मैं रोने लगा। मैं अर्थी के पास ना जा सका। लोग मेरे सामने से गुजरते चले गए।
मैं वहाँ से भागने लगा। मैं पता नहीं कहाँ भाग रहा था। मैं रो रहा था और भागे जा रहा था। मैं कुछ दूर ही भागा था कि अचानक दिल तेजी से धड़का और मैं बेहोश होकर गिर गया।
कुछ देर बाद मुझे होश तब आया जब किसी ने मेरी आँखों पर पानी डाला। उठते ही मुझे निधि याद आई। मैंने उन लोगों से रास्ता बनाते हुए कहते हुए भागा कि निधि मर गई, हे भगवान निधि मर गई! हे भगवान वो मर गई! भगवान निधि मर गई! बाबाजी निधि मर गई!
ये कहते हुए मेरे मुँह से लार और आँखों से आँसू निकल रहे थे। लोग जो वहाँ थे स्तब्ध होकर मुझे देखते रहे। मैं उनके आगे से भागने लगा। रास्ते में मुझे ठोकर भी लगी पर मैं भागता ही रहा। मेरे जूते भी भागते हुए निकल गए। मैं अंधेरिया मोड़ से गुरुग्राम की तरफ मुड़ गया। गाड़ियों से बचते हुए तेजी से भागता रहा। तभी एक गाड़ी मेरे सामने आ गई और उसके ड्राइवर ने मुझे बचाने के लिए ब्रेक मार दिया। मैं मरता-मरता बचा। उस गाड़ी वाले ने गाड़ी से उतरकर मुझे जोरदार थप्पड़ मारा। पर मैंने ध्यान नहीं दिया। मैं पागलों की तरह कहने लगा, “निधि मर गई है, वो इस दुनिया में नहीं है।” ये कहते हुए फिर भागा।
वो गाड़ी वाला बोला, “अजीब पागल है, खुद मरते-मरते बचा है और कह रहा है निधि मर गई है।”
मैं उससे आगे निकल गया। मेरे पैर रास्ते के कंकड़-पत्थरों से घायल हो चुके थे। मेरे पैरों में जूते नहीं थे पर मुझे कोई परवाह नहीं थी। अचानक मैंने सोचा कि मैं कहाँ भागा जा रहा हूँ। मेरे पेट में भागते-भागते दर्द हो रहा था, लेकिन फिर भी मैं भागता रहा।
रास्ते में मुझे एक बुजुर्ग ने रोका, “बेटा, कौन मर गया? मैं तेरे पीछे-पीछे ही चल रहा हूँ। काफी देर से भाग रहे हो तुम।”
वो मेरे पीछे साइकिल से आ रहे थे। मैंने उन पर ध्यान नहीं दिया।
मैंने कहा, “वो जो मर गई है, उसे मैं प्यार करता था। उसे लोग जलाने ले जा रहे हैं।”
“बेटा, कुछ पानी ही पी लो। चाय पियोगे?”
“हाँ मैं चाय पीऊँगा।” मैंने कहा, क्योंकि मैं बहुत थक गया था। वहीं रोड पर चाय की टपरी थी। मैं वहीं बैठ गया।
उस बुजुर्ग ने कहा, “क्या वो तेरी पत्नी थी?”
“नहीं बाबा, मैं उससे प्यार करता था।” कुछ ही देर में मैं फिर से बोलने लगा, “निधि मर गई। निधि मुझे अकेले छोड़कर मत जा।”
वहीं पास बैठा एक आदमी बोला कि लगता है ये पागल है। तभी चाय वाला चाय लेकर आ गया। वहाँ कई लोग बैठे थे। मैं वहाँ से जाने लगा तो उनमें से एक ने मुझे ‘पागल-पागल’ कह वो मुझे चिढ़ा रहा था। मैंने ध्यान नहीं दिया और बाबाजी से कहा, “बाबाजी, उसे जलने से बचाओ, वो मर गई। अगर जल गई तो कभी नहीं मिलेगी। बाबाजी कहाँ हो?”
अचानक याद आया कि बाबा तो गाँव में हैं। वो और संन्यासियों के साथ रुके थे। मैं चिल्लाया, “बाबाजी मैं आ रहा हूँ। मैं उसके जलने से पहले पहुँच जाऊँगा, नहीं तो वो जल जाएगी।”
अचानक खयाल आया कि क्या बाबाजी उसे जिंदा कर देंगे? मेरे पैर वहीं रुक गए। मैं जमीन पर बैठ गया। मनाता रहा कि भगवान उसे जिंदा कर दो। ये जीवन ऐसे ही नहीं जिया जाएगा उसके बगैर। कहते-कहते मैं फिर से खो गया। मैं निधि-निधि कहके चिल्लाया, “निधि कहाँ है तू? मुझे ले जा तू अपने पास। मैं जीना नहीं चाहता।”
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