वो पुराना सा मंदिर, मस्जिद या ऐसा ही कुछ और था। गुम्बद बड़ा सा बना नजर आ रहा था। इस वक्त वहाँ अँधेरा था। तीन कारें वहाँ खड़ी थीं। एक की हेडलाइट रोशन थी। यह जगह वीराने में थी। आसपास पेड़ खड़े थे। पेड़ भी ऐसे घने और गहरे की रोशनी आसपास ना जा सके। गुम्बद के आसपास छोटी-छोटी झाड़ियां थीं। गुम्बद के भीतर जाने का छोटा सा रास्ता था और भीतर गोल कमरे जैसी जगह थी। पलस्तर झड़ रहा था, भीतर से ईंटें दिखाई दे रही थीं। फर्श के नाम पर टूटी-फूटी जगह थी, जहाँ झाड़ियां खड़ी थीं।

उस गुम्बद के बाहर ही मौजूद थे मलिक, मल्होत्रा, अम्बा, जगदीश और सोहनलाल।
मल्होत्रा और अम्बा एक कार के पीछे वाली सीट पर बैठे थे।
जगदीश दूसरी कार से टेक लगाकर खड़ा था।
मलिक वहाँ टहलता दिख रहा था।
सोहनलाल भी इधर-उधर रहकर वक्त बिता रहा था।
अभी-अभी मलिक फोन पर जगमोहन से बात करके हटा था और वो ऊँचे स्वर में बोला---
"वैन आ रही है...।"
मलिक के शब्दों के साथ ही वहाँ हलचल पैदा हो गई।
मल्होत्रा और अम्बा फौरन ही कार से बाहर आ गए।
"वैन आ रही है?" जगदीश ने पूछा।
"हाँ। अभी-अभी जगमोहन से बात हुई है। सुदेश वैन चला रहा है। दस-पन्द्रह मिनट में पहुँच सकते हैं।"
"शुक्र है।" मल्होत्रा बोला--- "मुझे तो इस बात का डर लग रहा था कि सुदेश पुलिस के हाथों में ना पड़ जाए...।"
"सब ठीक रहा।" मलिक की आवाज में खुशी के भाव थे।
"पुलिस के पीछे पड़ने से सुदेश की हालत जरूर खराब हो गई होगी।" अम्बा ने कहा।
"हाँ।" मलिक बोला--- "दोपहर में बात करते हुए सुदेश नाराज था। गलती मेरी थी मुझे पुलिस की तरफ भी सोच कर चलना चाहिए था कि वो भी बीच में आ सकती है। तब हम वैन के यहाँ तक लाने का कोई बढ़िया रास्ता तैयार करते।"
"जब तक वैन यहाँ नहीं आ जाती, तब तक मन में संशय ही रहेगा।"
मलिक ने कुछ दूर मौजूद सोहनलाल से कहा---
"वैन आ रही है।"
"मैंने पचास लाख लिया है। चौबीस घंटे तक तो ड्यूटी दूँगा।" सोहनलाल बोला।
"तुम...।" मलिक ने कहना चाहा कि तभी फोन बजा। मलिक ने मोबाइल निकाल कर बात की।
"हैलो।"
"रात हो गई है मलिक।" छाबड़ा की आवाज कानों में पड़ी--- "तुम कब से कह रहे हो कि वैन आएगी परन्तु...।"
"वैन आ रही है मिस्टर छाबड़ा।" मलिक बोला--- दस-बीस मिनट में वैन हमारे सामने होगी। रास्ते में है वैन।"
दो पलों की खामोशी के बाद छाबड़ा की आवाज आई---
"ये बात तुम दोपहर से कह रहे---"
"मैंने यह बात नहीं कही कि दस-बीस मिनट में वैन आ पहुँचेगी। ये अब कहा है।"
"मैं चिंता में हूँ कि क्या ये काम हो जाएगा?"
"मुझ पर भरोसा रखिए। मैंने इसी काम का तो आपसे लाखों रुपया लिया है। आपको नाउम्मीदी नहीं होगी। वैन के यहाँ पहुँचते ही मैं आपको फोन कर दूँगा, तो आप वहाँ से चल पड़ियेगा। ये जगह तो आपको दिखा ही चुका हूँ। आने में ज़रा सावधानी बरतनी होगी मैं तुम्हारे फोन का इंतजार कर रहा हूँ।" छाबड़ा ने उधर से कहा और फोन बंद कर दिया।
मलिक ने कान से फोन हटाया और अम्बा बोला---
"दोपहर से पन्द्रह बार छाबड़ा फोन कर चुका है।"
"क्यों न करेगा! पैंतालीस लाख रुपया हम एडवांस में ले चुके हैं, यह काम करने का। पचास लाख सोहनलाल को वो दे चुका है और काम होने के बाद पचास लाख हमने अभी और लेना है। वह इस बात को लेकर चिंतित होगा ही कि काम होता है या नहीं।"
तभी जगदीश ने कहा---
"वैन को पुलिस से बचा लेने का श्रेय जगमोहन को जाता है। सुदेश के बस में नहीं था पुलिस वैन को बचाना।"
"काम होना चाहिए जैसे भी हो।" मलिक ने कहा और बेचैनी से टहलने लगा।
कुछ दूर खड़े सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई। उसे बेचैनी से इंतजार था वैनके आने का। क्योंकि वैन के साथ जगमोहन भी यहाँ पहुँच रहा था।
धीरे-धीरे वक्त बीतने लगा।
बीस मिनट बाद उनके कानों में इंजन की मध्यम-सी आवाज पड़ी।
"वैन आ गई लगती है।" कहने के साथ ही जगदीश पेड़ों के झुरमुट की तरह दौड़ा।
मलिक के चेहरे पर खुशी नाच उठी।
कार की जलती है हैडलाइट में, सबके चेहरे स्पष्ट नजर आ रहे थे।
मल्होत्रा उसी तरफ चला गया, जिधर जगदीश गया था।
"आने वाली वैन ही है?" अम्बा ने मलिक को देखा।
"वैन ही है।" मलिक ने विश्वास भरे स्वर में कहा और फोन निकालकर नंबर मिलाने लगा।
अगले ही पल जगमोहन से उसकी बात हो गई।
"आने वाले तुम हो?"
"हाँ। सुदेश कह रहा है कि पहुँच गए।"
"हैडलाइट बंद कर रखी है या---?"
"बंद कर रखी है।"
"आ जाओ...।" मलिक ने फोन बंद करते हुए, अम्बा से कहा---"जाओ--- वैन को रास्ता दिखाओ। उन्होंने लाइट बंद कर रखी है।"
"मल्होत्रा... जगदीश गए हैं।"
"उन दोनों से कह दो कि आने वाली वैन ही है। वरना उन्हें शक रहेगा कि आने वाला दुश्मन ना हो। अंधेरे में वह वैन को देख नहीं सकेंगे।"
अम्बा चला गया।
मलिक सोहनलाल के पास पहुँचा।
"तुम तैयार हो काम करने के लिए?"
"हाँ।"
"क्या पता आने वाला कोई और हो।" जगदीश बोला--- "पुलिस भी हो सकती है।"
"पुलिस को क्या पता कि यहाँ क्या हो रहा है।" मल्होत्रा ने कहा--- "परन्तु शक तो जायज है।"
दोनों की निगाह कुछ दूर कच्चे रास्ते पर थी। रात के अंधेरे में कोई चीज इधर आती तो दिखाई नहीं दे रही थी। परन्तु वो स्पष्ट दिखाई न दे रही थी। आवाज अब स्पष्ट होने लगी थी।
"मेरे ख्याल से आने वाली वैन ही है।" जगदीश ने कहा।
"कैसे कह सकते हो?"
"इंजन की आवाज से पहचान रहा हूँ। ये भारी आवाज है। कार जैसा वाहन तो हो ही नहीं सकता।"
तभी अम्बा उनके पास आते कहे उठा---"आने वाली वैन ही है। मलिक ने अभी उनसे फोन पर बात की है।"
"अब काम होने का वक्त आ गया।" जगदीश बोला।
"हाँ।" मल्होत्रा बोला--- "अब ज्यादा देर नहीं लगेगी।"
◆◆◆
कार की हैडलाइट की रोशनी में वैन आ रुकी।
पूरी तरह चमक उठी थी वैन। सब कुछ स्पष्ट दिखाई देने लगा था।
वैन के भीतर बैठे जगमोहन की निगाह हर तरफ जा रही थी।
मलिक, मल्होत्रा, अम्बा, जगदीश को उसने देखा। सुरेश ने इंजन बंद किया और मुस्कुराकर जगमोहन से कहा---
"हम पहुँच गए। पुलिस से बच आए।"
"हाँ... हम...।"
जगमोहन के शब्द अधूरे रह गए। उसी पर उसकी निगाह सोहनलाल पर पड़ी थी, जो कि अंधेरे से निकलकर कार की जलती है हैडलाइट की रोशनी में आ गया था। जगमोहन मन-ही-मन बुरी तरह चौंका।
सोहनलाल और यहाँ।
"इन लोगों के साथ?"
तभी सुदेश ने वैन का दरवाजा खोलते हुए कहा---
"क्या हुआ, तुम बोलते-बोलते खामोश क्यों हो गए?"
"वो, वो कौन है?"
"सुदेश ने सोहनलाल पर नजर मारी, फिर कह उठा---"शायद वो सोहनलाल है। वैन को वो खोलेगा। बाहर के ताले भी और भीतर रखे स्टील बक्सों के ताले भी।" कहने के साथ ही सुदेश वैन से नीचे उतरकर मलिक की तरफ बढ़ गया।
जगमोहन ने गहरी साँस ली। नजरें सोहनलाल पर थीं। अब वो समझा सोहनलाल की मौजूदगी का मतलब। फौरन ही जगमोहन ने फैसला किया कि, वो सोहनलाल के प्रति अंजान बना रहेगा। अगर इन लोगों को मालूम हो गया कि वो और एक-दूसरे को जानते हैं, तो ये सतर्क हो जाएंगे। उन्हें बात भी नहीं करने देंगे।
जगमोहन ने महसूस किया कि सोहनलाल की निगाह वैन की तरफ ही है।
जगमोहन ने वैन का दरवाजा खोला और नीचे उतरा।
मलिक फौरन उसके पास पहुँचा।
"सुदेश तो बहुत परेशान हुआ, लेकिन मुझे आशा है कि तुम्हें खास परेशानी नहीं हुई होगी, आज के हालातों से।"
जगमोहन ने महसूस किया कि सोहनलाल इसी तरफ आ रहा है।
"तुम्हें वैन चाहिए थी, वो मिल गई।" जगमोहन बोला--- "जो तुमने चाहा, वो ही हो रहा है।"
"शुक्रिया।" मलिक मुस्कुराया।
"तुम्हें नोटों से कोई मतलब नहीं, कुछ और चाहिए। जो वैन मैं मौजूद नोटों की बसों में कहीं पढ़ा है सोहनलाल आप आ जा
परन्तु जगमोहन ने जानबूझकर उसकी तरफ ना देखा।
"नोटों में किसकी दिलचस्पी नहीं होती!" मलिक ने कहा--- "परन्तु इस वैन में पड़े नोटों में दिलचस्पी लेने की मैं हिम्मत नहीं कर सकता। नोट छूने भर से मैं भी डकैती में शामिल समझा जाऊँगा। जबकि मैं ऐसा नहीं चाहता।
"बहुत ईमानदार हो तुम।" जगमोहन के तीखे स्वर में कहा।
"हाँ... हूँ...। मैं ऐसे काम नहीं करता जो तुम करते हो।"
"मुझ जैसा काम करने में तुमने कोई कसर तो नहीं रखी। मेरे से बैंक-वैन मंगवा ली, जिस वैन को शहर भर की पुलिस ढूंढ रही है।"
"लेकिन मैं वैन में रखे नोट नहीं चाहता।"
"छोड़ो इन बातों को!" जगमोहन सोहनलाल को सुनाने की खातिर, मलिक से बोला--- "देवराज चौहान के साथ तुमने कुछ बुरा तो नहीं किया।"
"वो अभी तक जिंदा है और उन चारों के साथ है। क्योंकि तुमने हमसे कोई चालाकी नहीं की।"
पास खड़े सोहनलाल की आँखें सिकुड़ी।
"फॉर्न्द अपना काम खत्म करो।" जगमोहन बोला--- "मुझे वैन लेकर जाना है।"
मलिक ने सोहनलाल से कहा---
"तुम अपना काम शुरू करो।"
जगमोहन ने सोहनलाल को देखा और मालिक से कहा---
"जब ये वैन यहाँ पहुँची तो सुदेश ने बताया कि वैन के सब ताले ये सोहनलाल खोलेगा।"
"हाँ, ये एक्सपर्ट बंदा है।"
"लगता तो नहीं।" जगमोहन ने मुँह बनाया, फिर कहा--- "मरना चाहते हो तो वैन को खोलो।"
"क्या मतलब?" सोहनलाल चौंका।
"वैन के भीतर गनमैन मौजूद है।" जगमोहन ने वैन पर नजर मारी।
मलिक ने होंठ भींचकर सोहनलाल को देखा।
"वैन के भीतर गनमैन?" सोहनलाल बोला।
"उसे हम देख लेंगे... तुम ताले खोलो वैन के पीछे वाले दरवाजे के।" मलिक ने कहा।
"खोलने के दौरान ही वह मुझे भीतर से गोली मार देगा।" सोहनलाल बोला।
"वैन बुलेटप्रूफ है।" जगमोहन ने कहा--- "इसलिए भीतर की गोली बाहर नहीं आ सकती।"
"तुम ताले खोलो और जल्दी से हम अपना काम पूरा करके जाएं।"
सोहनलाल सामने खड़ी कार की तरफ बढ़ गया, जिसके बोनट पर बैग पड़ा था।
तभी सुदेश और अम्बा पास आ गए।
"ये वैन के रोशनदानों पर, कोई कपड़ा फँसा रखा...।"
"तुम्हें बताया तो था कि हमने चादर फँसाई हैं कि भीतर वाला गनमैन बाहर ना देख सके।" सुदेश बोला।
अम्बा ने औजारों वाले थैले के साथ सोहनलाल को वैन के पीछे वाले हिस्से की तरफ जाते देखा।
"सोहनलाल ने वैन खोली तो वो भीतर से गोलियाँ चला देगा।"
"वो सिर्फ लॉक खोलेगा। दरवाजा नहीं। तब तक हम भीतर बैठे गनमैन से बात करेंगे।" मलिक बोला।
"क्या बात?"
"उसे समझाने की कोशिश करेंगे कि हम से टकराने का कोई फायदा नहीं। मरेगा। बेहतर है कि हाथ उठाकर बाहर...।"
"वह मान जाएगा?" अम्बा ने पूछा।
"नहीं मानेगा।" सुदेश कह उठा--- "वो यहीसमझेगा कि हम उसे मार देंगे।"
"मैं उसे तैयार कर लूँगा।"
"ड्राइविंग सीट के साथ भी एक खिड़की है नन्हीं सी, जो पीछे की तरफ खुलती है।" जगमोहन बोला।
"मैं उससे बात करता हूँ।
"तुमने अगर वो खिड़की खोली तो वो वहाँ गन रख कर गोलियाँ चला देगा।" सुदेश बोला।
"चिंता मत करो। मैं सतर्क रहूँगा।" मलिक ने कहा और वैन के आगे के हिस्से की तरफ बढ़ गया।
"ये मरेगा!" सुदेश के होठों से निकला।
"मलिक बेवकूफ नहीं है, जो मरेगा।" अम्बा ने कहा--- "वह सब ठीक कर लेगा।"
सुदेश ने जगमोहन से कहा---
"तुम्हें भी भूख लगी होगी। उधर कार में बर्गर रखे हैं, वो खा लेते हैं। आओ।"
"मेरे लिए बर्गर यहीं ले आओ।" जगमोहन ने कहा।
सुदेश कार की तरफ बढ़ गया।
◆◆◆
सोहनलाल अपने औजारों वाले थैले के साथ वैन के पीछे वाले हिस्से की तरफ पहुँचा तो मल्होत्रा और जगदीश भी वहाँ आ गए थे। वहाँ घुप अँधेरा था। सोहनलाल के पास टॉर्च थी, परन्तु वो इस काम में नाकाफी थी।
"तुम कार को इस तरह लगाओ कि मैं अपना काम कर सकूँ।" सोहनलाल ने कहा।
मल्होत्रा वहाँ से चला गया।
सोहनलाल ने फोन निकाला और देवराज चौहान का फोन नंबर मिलाने लगा।
"किसे फोन कर रहे हो?" जगदीश उसी पल कह उठा।
"अपनी पत्नी को...।"
"काम की तरफ ध्यान दो। इन बेकार की बातों में अभी मत पड़ो...।"
"काम ही कर रहा हूँ फोन पर।" सोहनलाल मुस्कुराया--- "कान पर फोन लगाकर नानिया से बात करते हुए मैं जब अपने हाथ चलाता हूँ तो मिनटों का काम पलों में हो जाता है।"
"अजीब बीमारी है!" जगदीश ने मुँह बनाया।
तभी सोहनलाल के कानों में फोन से देवराज चौहान की आवाज पड़ी।
"कहो।"
"अभी मैं घर नहीं आ पाऊँगा नानिया...।" सोहनलाल ने कहा--- "आधी रात तक शायद व्यस्त रहूँ।"
"वैन आ गई?" उधर से देवराज चौहान ने पूछा।
"हाँ। मामी को मेरा नमस्कार करना।"
"तुम अब ताला खोलने जा रहे हो वैन का?"
"अब शुरुआत तो करनी ही है नानिया। रिश्तेदारी जो ठहरी।" सोहनलाल ने मुस्कुरा कर कहा।
जगदीश पास ही खड़ा था।
जगमोहन भी वहाँ है। वैन के साथ आया होगा?" उधर से देवराज चौहान ने पूछा।
"तुमने ठीक कहा।"
"मैं डेढ़ घंटे में वहाँ पहुँच जाऊँगा। तुम काम को धीमी गति से करना।"
"वो तो मेरे हाथ में है नानिया। जब तक मैं नहीं चाहूँ कुछ नहीं होगा। सोहनलाल बोला।
तभी जगदीश पास से हट गया। मल्होत्रा कार इस तरफ ला रहा था। उसका ध्यान कार की तरफ हो गया था।
मौका पाते ही सोहनलाल दबे स्वर में फोन पर कह उठा---
"जगमोहन को मजबूर किया गया है इस काम के लिए। मेरे ख्याल में मलिक के लोग तुम पर नजर रख रहे हैं। जगमोहन को शायद कहा गया है कि उनकी बात नहीं मानेगा तो तुम्हें मार देंगे वो।"
"क्या कह रहा है सोहनलाल?" देवराज चौहान का उलझन भरा स्वर कानों में पड़ा।
"मैंने जो महसूस किया, वो तुम्हें बता दिया। तुम देखो तुम पर कोई नजर रख रहा है या नहीं। अगर नजर रख रहा हुआ तो वो  मलिक को फोन पर बता देगा कि तुम वैन के पास ही कहीं पहुँच चुके हो।"
"इस बात का मैं ध्यान रखूँगा।"
मल्होत्रा ने अब तक वैन के पीछे कार खड़ी करके इंजन बंद कर दिया था। कार की हैडलाइट की तीव्र रोशनी में वैन का पिछला हिस्सा चमक उठा। सोहनलाल भी रोशनी में नहा गया था।
"फिर फोन करुँगा नानिया। बंद करता हूँ।" कहने के साथ ही सोहनलाल ने फोन बंद किया और जेब में रख लिया।
◆◆◆
जब गिन्नी के मॉं-बाप शादी पर जाने को तैयार हो रहे थे तो गिन्नी को तेज पेट दर्द हो उठा था। गिन्नी ने शोर मचाकर घर को सिर पर उठा लिया। चाची ने जल्दी से अजवाइन-" नमक गरम पानी के साथ पिलाया। इस बीच गिन्नी दस बार बाथरूम हो आई और हाय-हाय करके बेड पर जा लेटी। उसके माँ-बाप को शादी पर जाना खटाई में पड़ता दिखा।
"गिन्नी...।" चाची माथे पर हाथ फेर कर बोली--- "तूने अभी बीमार पड़ना था... क्या हो गया तेरे पेट को?"
"पता नहीं... दर्द हो रहा है बार-बार...।"
"सब ठीक तो है?" चाची ने धीमे स्वर में गिन्नी से पूछा।
"क्या पूछ रही है माँ तू...?"
"तूने प्यारे के साथ या किसी और के साथ कोई गड़बड़ तो नहीं कर दी?"
"कैसी बात करती है माँ, हर वक्त तो तेरे से चिपकी रहती हूँ...।" गिन्नी कह उठी।
"तेरा मतलब कि मैं तेरे को कुछ करने का मौका नहीं देती?" चाची बोली।
तभी गिन्नी के उठी---
"आप दोनों जाओ। मुझे आराम की जरूरत है। मैं घर पर रहूँगी तो ठीक रहूँगी...।"
"अकेली, तेरे को घर पर कैसे छोड़ दें?" उसके डैडी ने कहा--- "ऊपर से तेरे पेट में दर्द...।"
"मैं बच्ची थोड़े हूँ। ज्यादा तकलीफ हुई तो मोहन अंकल से दवा ले आऊँगी।"
"हाँ-हाँ, ठीक ही तो कह रही है गिन्नी। बच्ची थोड़े ना है। फिर वो अपना प्यारा है ना, उसे कह देती हूँ। वो गिन्नी का ध्यान रख लेगा।। रोटी भी बनाकर खिला देगा। गोल-गोल रोटियाँ बनाता है प्यारे...।" चाची ने अपने पति से कहा।
"जैसा तू ठीक समझे...।"
"मैं अभी प्यारे को बुला कर लाती हूँ। आखिर पड़ोसी इसी दिन के लिए तो होते हैं...।" कहकर चाची बाहर निकल गई।
गिन्नी के डैडी ने गिन्नी से पूछा।
"अब पेट दर्द कैसा है?"
"आह...जोरों से रह-रहकर दर्द आता है डैडी...।"
"आराम कर... आराम कर...।"
गिन्नी गहरी-गहरी साँसें लेने लगी।
"मोहनदास से दवा ला दूँ गिन्नी?"
"आप शादी में जाओ। जरूरत हुई तो प्यारे से दवा मँगवा लूँगी। मुझे आराम की जरूरत है। एक बार पहले भी ऐसा दर्द हुआ था। तब मैंने एक-दो दिन आराम किया तो ठीक हो गई थी...।" गिन्नी ने हाय-हाय वाले स्वर में कहा।
तेरी चाची ने प्यारे के साथ भीतर प्रवेश किया।
"क्या हो गया गिन्नी को?" प्यारे ने घबराए से स्वर में कहा।
"पेट दर्द हो गया...। शादी पर जा रहे थे।" चाची कह उठी--- "अब हम कैसे जाएंगे?"
"तुम फिक्रमत करो चाची। गिन्नी की देखभाल मैं कर लूँगा। दवा भी ला दूँगा मोहन अंकल से।"
"तू कितना अच्छा है प्यारे...।"
"अंकल!" प्यारे ने गिन्नी की डैडी से कहा--- "आप शादी पर जाइए। मैं सब ठीक कर दूँगा।
गिन्नी के डैडी ने मुस्कुराकर सिर हिलाया।
"तेरे को नजर ना लगे प्यारे। पड़ोसी हो तेरे जैसा। गिन्नी के लिए तुम जैसा लड़का ही ढूंढूंगी।"
प्यारे, चाची को देखकर मुस्कुराया।
"चलो जी। हम चलते हैं। परसों आएंगे प्यारे। तब तक तू गिन्नी का पूरा ध्यान रखना। रात को अपने ही घर पर सोना। गिन्नी अकेले ही सो जाती है। इसे कोई काम ना करना पड़े। तू रोटियाँ बहुत अच्छी बनाता है। इसने सुबह से कुछ खाया नहीं। दो रोटी बनाकर खिला देना। घर में घी तो है। नहीं तेरे पास घी होगा। अपना घी का डिब्बा यहीं ले आना और हाँ, बाल्टी में कपड़े भिगो रखे हैं। दो-चार हाथ मार के उन्हें धो देना। बहुत अच्छा है तू प्यारे। शादी से तेरे लिए मिठाई लाऊँगी...।"
प्यारे ने मुस्कुराकर सिर हिला दिया।
"अब तेरी तबीयत कैसी है गिन्नी?" चाची ने पूछा।
गिन्नी ने उसी पल पेट पकड़ लिया और कराहने लगी।
"प्यारे, इसे उठने मत देना और दवा ला देना...।"
"सारी चिंता मुझ पर छोड़ दो चाची।"
उसके साथ चाची और गिन्नी के डैडी शादी पर चले गए।
गिन्नी उछल कर खड़ी हो गई और खुशी से प्यारे से जा लिपटी। प्यारे को उसके लिपटने से ढेर सारी शांति मिली। गिन्नी को कसकर भींच लिया।
तभी प्यारे को अपना शरीर गर्म होता महसूस हुआ तो फौरन गिन्नी को छोड़कर पीछे हट गया।
"क्या हुआ?" गिन्नी ने उसे देखा।
"यहाँ नहीं, खुले में, कहीं खेतों में या कहीं और। भगता बता रहा था कि खुले में बच्चा जल्दी ठहरता है...।"
"तो चल, अभी चलें...।"
"कोई देख लेगा। अभी नहीं। रात को चलेंगे। सोनू को पहरेदारी के लिए साथ ले लेंगे। साथ में सूरजभान के गोल-गप्पे भी तो लेने हैं। पूरी तैयारी के साथ चलना है। आज रात में बच्चा ठहरा ही रहूँगा...।"प्यारा गर्दन हिलाकर बोला।
"लेकिन पता कैसे चलेगा कि बच्चा ठहर गया है...।" गिन्नी बोली।
"जब तेरा पेट बड़ा होना शुरू हो जाएगा तो, पता चल जाएगा। रात को चलेंगे। मैं तब तक सोनू को बुलाकर तैयारियाँ शुरु करवा देता हूँ।"
◆◆◆