सब कुछ बताकर देवराज चौहान खामोश हुआ।


सबकी निगाह देवराज चौहान पर थी। नगीना खामोशी के साथ बैठी हुई थी। चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था। 


“ओ देवराज चौहान!" बांकेलाल राठौर कह उठा- "म्हारी बातों सुन्नो हो । यो वादो, यो प्रामिसो हर जगह न चल्लो हो । कम्भो-कम्भो भूलो भी जायो । अंखियों को मूंदो के, गर्दन घुमा लयो। यो ही दुनियां हौवो। किसी के वास्ते अपणी जान नेई गवायों! म्हारे को देख। अॅप यां पे अकेलो हौवो और वो म्हारी गुरदासपुरो वाली ने, म्हारे को छोड़ के दूसरो से ब्याह रचायो। दूसरों के बच्चों पैदा कर दयो। तकलीफ तो म्हारे को बोत हौवो। लेकिन अंगने सहन करो हो। फिर भी उसो की यादों को दिल में रखो के जियो हो । उसो का लम्बों वाला लस्सी का गिलासो याद आयो जिसो में वो भक्खनो का मोटा-मोटा गोल डालो के म्हारे का दयो । तंम तो - ।” 


- तभी सोहनलाल कह उठा। “ये भी तो हो सकता है कि राकेश नाथ झूठ बोल रहा हो।”


“वो झूठ क्यों बोलेगा ?" देवराज चौहान ने सोहनलाल को देखा। 


"तुम्हें मोना चौधरी के साथ भिड़ाने के लिए।"


"ऐसा वो क्यों करेगा ?" 


“उसका कोई मतलव निकलता होगा। वो ही जाने।" सोहनलाल बोला ।


देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान फैल गई।


“ऐसा कुछ भी नहीं है। जैसा कि तुम कह रहे हो। सोच रहे हो ।” देवराज चौहान बोला-"क्योंकि राकेश नाथ नाम के व्यक्ति को क्या मालूम था कि बंसीलाल के खास हत्यारे से बचते मैं वहां जाऊंगा। उसे कैसे मालूम हो गया पहले से ही कि मेरे रिवाल्वर में गोलियां खत्म हो जायेंगी। उसे कैसे मालूम हो गया कि मैं देवराज चौहान हूं और उस गली में आकर छिप जाऊंगा। ऐसी कितनी ही बातें हैं सोहनलाल, जिनका जवाब नहीं दे सकोगे। जो भी हुआ इत्तफाक ही रहा । पेशीराम पहले ही कह चुका था कि बंसीलाल को मारने के फेर में मोना चौधरी से टकराव की स्थिति पैदा हो जायेगी और अब वही सब कुछ होता जा रहा है।"


“पेशीराम ने तो ये भी कहा है कि मोना चौधरी की टक्कर पर उतरोगे तो मारे जाओगे।" सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा। 


“पेशीराम की इस बात को हमेशा याद रखूंगा मैं।" 


“बाप ।” रुस्तम राव ने बांकेलाल राठौर को देखा- “देवराज चौहान नेई मानेला । ये तो मरने की पूरी तैयारी करेला है।" 


“तुम लोगों को तभी मैंने बुलाया है कि इसे ये रास्ता छोड़ने को राजी करो । ”


“म्हारे को तो यो राजी होतो न लगे हो । ”


“आपुन ने तो ये बात पैले ही कहेला है कि देवराज चौहान किसी की बात नेई मानो हो ।”


जगमोहन के चेहरे पर सख्ती छाई हुई थी। 


सोहनलाल ने जगमोहन को देखा।


“अब तुम क्या करोगे ?" जगमोहन ने बेहद गम्भीर शब्दों में देवराज चौहान से पूछा।


“मैं आज ही दिल्ली के लिए रवाना हो जाऊंगा।” देवराज चौहान ने पक्के स्वर में कहा।


“वहां मोना चौधरी को तलाश करके उसे खत्म करोगे ?" जगमोहन ने व्याकुलता से पहलू बदला।


देवराज चौहान ने सहमति में सिर हिलाया।


“यो तो सीधो होनो का नाम ही न लयो हो।" बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर जा पहुंचा।


“जादू का डण्डा फिरेला बाप । वा ही आखिरी रास्ता होएला ।” 


दोनों ने जगमोहन को देखा। जगमोहन उठ खड़ा हुआ। "हम तुम्हें दिल्ली नहीं जाने देंगे।" जगमोहन ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा- "पैशीराम के मुताबिक मोना चौधरी से टकराने में तुम्हारी मौत है और हम तुम्हें मरा हुआ नहीं देखना चाहते।” 


रुस्तम राव उठा और जल्दी से आगे बढ़कर देवराज चौहान के कदमों के पास बैठ गया।


"बाप! आपुन बच्चों का भी ख्याल करो।”


देवराज चौहान ने आंखें सिकोड़कर रुस्तम राव को देखा। जगमोहन भी देवराज चौहान की तरफ बढ़ रहा था। अजीबसी दृढ़ता थी चेहरे पर।


उसी पल बांकेलाल राठौर उठा और मूंछ को ताव देता आगे बढ़ा। 


“कहा कहत हो देवराज चौहान? दिल्ली का प्रोग्राम छोड़ो के ना ही ?"


नगीना अपनी जगह पर बिल्कुल शांत थी ।


"क्या करने जा रहे हो तुम?" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने खड़ा होना चाहा कि नीचे बैठे रुस्तम राव ने देवराज चौहान की दोनों पिंडलियों को बांहों में जकड़कर छाती से भींच लिया। खड़ा होते-होते देवराज चौहान लड़खड़ाकर पुनः सोफा चेयर पर गिर गया। 


“रुस्तम।" देवराज चौहान का स्वर कठोर हो गया।


“माफ करना बाप । आपुन तो बच्चा होएला। आपुन की जगह तो चरणों में ही होएला।"


  जगमोहन और बांकेलाल राठौर पास पहुंच चुके थे।



होंठ भींचे देवराज चौहान ने दोनों को देखा। 


“म्हारे बीकानेर में तो जो सीधो-सीधो का न मानो हो, उसो के कानों को पकड़कर, रस्ते से पेड़ के साथो बांध दयो। वो ही फार्मूला अब थारो पे ट्राई करो हो ।”


"क्या बकवास कर- ।”


"यो बकवास न हौवो। पक्की बात हौवो हो।” बांकेलाल राठौर ने मुस्कराकर कहा- "सवो कुछ तो थारो सामणे ही हो रयो हो । यो देखो, छोरा थारो चरणों में पड़ो हो। अंम थारो सामने हो और यो थारो जगमोहन ईब थारो खोपड़ी की सवारी करो हो। यो ही म्हारो बीकानेर में हौवो। अभ्भी तो अंम गुरदासपुर की बातों न ट्राई करो हो। वां पे तो सीधो लट्ट घुमायो हो और बंदा सीधो हो जाओ।" 


“बांके तुम ।" तीखे स्वर में कहते हुए देवराज चौहान ने उठना चाहा।


उसी पल पास खड़े जगमोहन का हाथ हिला और देवराज चौहान की कनपटी पर पड़ा। सोच-समझकर किया गया प्रहार सटीक बैठा। देवराज चौहान को हल्का सा चक्कर आया। उसका मस्तिष्क काले अंधेरे में डूबता चला गया और सोफे पर बैठे ही बैठे बेहोश हो गया। 


तभी बांकेलाल राठौर कह उठा। । 


“छोरे! देवराज चौहान की टांगें न छोड़ो हो । यो कई पे ड्रामा नं कर रयो हो । ” 


“ओ०के० बाप ।”


होंठ भींचे जगमोहन ने देवराज चौहान को अच्छी तरह चैक किया। वो वास्तव में बेहोश था।


"माफ करना बड़े भाई।" जगमोहन अफसोस भरे स्वर में कह उठा - "आज जिन्दगी में पहली बार हाथ उठाया है तेरे पर। तेरे भले के लिए। हम तेरे को अपने पास जिन्दा देखना चाहते हैं। तू इस दुनियां में नहीं रहा तो हम जीते जी हम पर जायेंगे।"


उसके बाद तीनों ने देवराज चौहान को उठाया और तयशुदा बात के मुताबिक बंगले के ऐसे कमरे में ले गये, जहां खिड़की-रोशनदान नहीं था और लोहे का मजबूत दरवाजा लगा हुआ था। कमरे में डबल बैड था ।


देवराज चौहान को बैड पर लिटाया और उसके हाथ-पांव बांध दिए। फिर तीनों बाहर निकले और दरवाजा बंद करके, ताला लगाकर हॉल में आ गये।


नगीना और सोहनलाल वहां चुप्पी के साथ मौजूद थे। 


“लो भाभी ।" जगमोहन, नगीना को चाबी थमाता हुआ बोला- “देवराज चौहान को कमरे में बंद कर दिया है। हाथ-पांव बांध दिए हैं। बेशक जो भी हो ढाई महोने वो इसी हालत में रहेगा। जैसा कि पेशीराम ने कहा था कि दो-ढाई महीने बाद अच्छा वक्त शुरू हो रहा है। तब देवराज चौहान और मोना चौधरी में दोस्ती हो जायेगी और हमेशा के लिए मुसीबत से भरे झगड़े का अंत हो जायेगा !” 


नगीना ने हथेली पर पड़ी चाबी को देखा।


“घबरा मतो बहना। बांकेलाल राठौर कह उठा- "अंग अपणो सारो कामों को छोड़ो के, यां पे ई रयो, ताकि देवराज चौहान कई पे गड़बड़ न कर सको। यो सस्ती देवराज चौहान के अलो के वास्तो ही हौवो ।"


“दीदी!” रुस्तम राव ने कहा- “आपुन भी इधर ही टिकेला। बढ़िया वक्त बितेला आपुन का।" 


तभी सोहनलाल पास आया ओर नगीना से बोला।


“जो हरकत देवराज चौहान के साथ की गई है, उस पर वो बहुत नाराज होगा।”


"इन बातों से मेरा कोई वास्ता नहीं।” नगीना ने शांत स्वर में कहा- "मुझे नहीं मालूम था कि आप लोग क्या करने जा रहे हैं। जो किया है, उनकी जिम्मेवारी करने वालों पर है। मुझ पर नहीं।" 


सोहनलाल ने तीनों को देखा।


“थारो दिल काहे को धड़को।" बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर जा पहुंचा - "देवराज चौहान की गालियों को अंम सुन लयो । दो-चार डण्डो भी खा लयो ।"


“बाप! अब तो ये बात कहेला है तू। जब देवराज चौहान के सामने पड़ेला तो तेरा थोबड़ा देखेला ।”


“छोरे ! थारे को काये को फिक्र लागे। अपणो ख्याल करो तंम ।"


जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता उभरी पड़ी थी। उसने नगीना को देखा फिर आगे बढ़कर सोफे पर जा बैठा। थके से अंदाज में आंखें बंद कर लीं। वहां का माहौल भारी सा हो गया था ।


तभी नगीना सामान्य स्वर में कह उठी।


“अब आप सब आराम से बैठो। मैं लंच की तैयारी करती हूं।" 


तभी जगमोहन ने आंखें खोलीं और सोहनलाल से गम्भीर स्वर में पूछा। 


“हमने कुछ गलत तो नहीं किया सोहनलाल ?" 


“मालूम नहीं।” सोहनलाल ने कहकर गहरी सांस ली।


***

घंटे भर बाद ही देवराज चौहान को होश आया। आंखें खोलीं। दूसरे ही पल सारा मामला उसकी समझ में आ गया। उन सबने पहले ही सोच रखा था कि अगर उनकी बात नहीं मानी तो उसके हाथ-पांव बांधकर उसे इस तरह बेबस कर देंगे। देवराज चौहान को उनकी हरकत पर गुस्सा भी आया और प्यार भी।

बैड पर बंधा पड़ा देवराज चौहान समझ चुका था कि वो उसकी बात नहीं मानेंगे और इसी तरह बांधकर रखेंगे कि वो मोना चौधरी को खत्म करने दिल्ली न जाये और अपनी जान खतरे में न डाले।

देवराज चौहान ने बंधनों को चैक किया। दोनों हाथ पीठ पीछे करके सख्ती से बांधे हुए थे और टांगें भी इस तरह बांधी हुई थीं वो किसी भी तरह से खुद के आजाद न करवा सके। फिर भी देवराज चौहान ने खुद को बंधनों से आजाद करवाने की चेष्टा की। इसी चेष्टा में वो बैड से नीचे आ गिरा, परन्तु बंधन ढीले भी नहीं हुए।

अब देवराज चौहान के चेहरे पर गुस्सा उभर आया। “जगमोहन !” देवराज चौहान ने गुस्से से भरे ऊंचे स्वर में पुकारा। जवाब में कोई आवाज नहीं आई।

“नगीना। जगमोहन ।" इस बार देवराज चौहान का क्रोध से भरा स्वर और भी ऊंचा था।

नगीना किचन में लंच तैयार कर रही थी। रुस्तम राव काम में उसकी सहायता कर रहा था कि देवराज चौहान के पुकारने की आवाज उनके कानों में पड़ी।

"ये तो देवराज चौहान पुकारेला है। गुस्से में दिखेला।” रुस्तम राव के होंठों से निकला।

नगीना ने बिना कुछ कहे चाबी निकालकर रुस्तम राव की तरफ बढ़ा दी । चाबी लेकर रुस्तम राव हॉल में पहुंचा। वहां से सबको साथ लेकर उस कमरे के दरवाजे के पास आ पहुंचा, जिसके भीतर उन्होंने देवराज चौहान को कैद किया था।

“दरवाजा खोल।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

रुस्तम राव ने चाबी लगाकर लोहे का दरवाजा खोला सब भीतर प्रवेश कर गये । 

बंधनों में जकड़ा देवराज चौहान फर्श पर गिरा पड़ा था।

“लो। म्हारा शेर जम्प मारो के, नीचे आ गयो ।” बांकेलाल राठौर के होंठों से निकला।

“उठाओ।” जगमोहन आगे बढ़ा।

बंधनों में जकड़े देवराज चौहान को उठाकर उन्होंने बैड पर डाला।

देवराज चौहान सुलगती नजरों से सबको देख रहा था । “ये सब क्या तमाशा है।" देवराज चौहान दांत भींचकर बोला। 

“ये तमाशा नहीं है ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा- “हम तुम्हारी जान बचा रहे हैं। तुम मोना चौधरी की तरफ बढ़ना चाहते हो और ऐसा करने से, तुम जिन्दगी से हाथ धो बैठोगे । हमें तुम्हारी जिन्दगी की जरूरत है। पेशीराम के मुताबिक दो महीने का वक्त निकल जाये तो सब ठीक हो जायेगा और हम दो महीने तुम्हें इस तरह बांधकर, खुद पहरे पर रहेंगे। "

" बकवास मत करो।" देवराज चौहान ने गुस्से से कहा- "खोलो मुझे।"

"थारी यो बात ही अंम न मानो। म्हारी भी मूंछों की इज्जत हौवे के ना हौवे ?”

“पागल हो गये हो तुम लोग जो-- ।"

"बाप! आपुन लोगों ने दोत सोच-समझकर ये सब किएला है। तुम किसी से बात मानने का वायदा करेला तो वो तेरे को कुतुबमीनार से कूदने के वास्ते बोएला, वो क्या तू उधर से कूदेला।"

“ये मेरी अपनी जिन्दगी है। मैं जो भी करूं। तुम लोगों को।” 

“तुम्हारी जिन्दगी के साथ हम भी बंधे हुए हैं।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा - "हमें अपनी जान से जितना प्यार है। उतना ही तुम्हारी जान से भी है। तभी तो ये सब करने के लिए हमें मजबूर होना पड़ा। "

देवराज चौहान ने क्रोध से जगमोहन को देखा।

“तुम लोग मेरे बंधन खोलते हो या नहीं ?” देवराज चौहान वास्तव में गुस्से में आ चुका था।

"बंधन खोलने में हमें कोई एतराज नहीं।" जगमोहन ने उसी लहजे में कहा -- “इस कैद से हम तुम्हें पूरी तरह आजाद कर सकते हैं अगर तुम अपने मुंह से कह दो कि दो महीने तक मोना चौधरी को खत्म करने की नहीं सोचोगे।"

“ये सब क्या बकवास लगा रखी है?"

“बाप! ये इसी तरह बंधेला ही फिट होएला ।" 

“तो छोरे अंभ कां इसी को खोलन लगो हो?”

“थापर को जब तुम्हारी इस हरकत का पता चलेगा तो वो-।” देवराज चौहान ने कहना चाहा।

“थापर साहब से म्हारी बातों हो गयो थारो बारो में। थापर साहब ही अंम को कहो कि जैसो भी हो, थारो को मोना चौधरी के पीछे न जाने दयो। थापर साहब से यो बातों लिखकर ला दयो या थापर साहब को यां पे हाजिर कर दयो। जो हुक्प बजायो, अंम वो पूरा कर दयो ।”

देवराज चौहान के दांत भिंच गये।

“नगीना कहां है?"

“दीदी सबके वास्ते लंच तैयार करेला ।"

“कुछो देर ठहरो। अंम थारो को अपणे हाथों से शाही पनीर खिलायो। जैसो कभी म्हारी गुरदासपुरो वाली म्हारो को आमों के पेड़ों के नीचे बिठा करो, म्हारे को प्यारो प्यारो से अचारो के साथो रोटी खिलायो।"

"दिमाग खराब हो गया चौहान कह उठा ।

"बाहरो चल्लो भई। म्हारो को शाही पनीरों की भूख लगो हो।" बांकेलाल राठौर का हाथ अपनी मूंछ पर पहुंच गया- "नगीना -बहन खानो वोत बढ़िया बनायो ।”

“चाबी रखेला दीदी ।" किचन में प्रवेश करते रुस्तम राव बोला। काम में व्यस्त नगीना पलटी और चाबी लेते हुए कहा । 

“क्या कह रहे थे ?”

“खोलने के वास्ते कहेला देवराज चौहान उसे बोएला कि वो मोना चौधरी के पीछे नेई जाएला तो उसे खोएला। पण वो नेई मानेला ।" रुस्तम राव ने गहरी सांस ली।

"हाथ-पांव बंधे होने की वजह से उन्हें तकलीफ हो रही होगी।" 

“वो तो होएला दीदी पण ये तकलीफ बेटर होएला, जान जाने से ।” 

नगीना ने कुछ नहीं कहा। काम में व्यस्त हो गई । लंच तैयार हो चुका था।

दिन बीत चुका था।

"देवराज चौहान कमरे में ही रहा। बंधनों में कैद। लंच और अब डिनर उसे खिला दिया था। इस बीच नगीना एक बार भी देवराज चौहान के सामने नहीं गई थी । 

देवराज चौहान क्रोध में झल्लाया हुआ था। दिन भर वो बंधनों को खोलने की भरपूर चेष्टा कर चुका था, परन्तु मजबूत बंधनों को वजह से उसे सफलता नहीं मिली।

गम्भीरता में डूबे जगमोहन ने फिर कोशिश की थी कि देवराज चौहान कह दे कि दो महीने वो मोना चौधरी से दूर रहेगा, ताकि वो उसके बंधन खोलकर, उस पर से पहरा हटाया जा सके, परन्तु देवराज चौहान ने सख्ती से उसकी बात मानने से इन्कार कर दिया था। सोहनलाल ने भी पूरी कोशिश की कि वो अपनी बात से पीछे हट जाये। परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ।

रात के ग्यारह बज रहे थे, जब कमरा बंद करके वो सब नींद लेने के लिए चले गये थे। दिन भर से बंगले में उठने वाला शोर अब थम सा गया था।

***