एक टैक्सी कैसीनो की मारकी में आकर रुकी ।
डोरमैन ने आगे बढ़ कर टैक्सी का पिछला दरवाजा खोला तो बड़ी शान के साथ जीतसिंह ने बाहर कदम रखा और हाथ का सहारा देकर शालू की बाहर निकलने में मदद की।
दोनों के जगमग परिधान फिल्मों को ड्रैस सप्लाई करने वाली एक कम्पनी से किराये पर लिए गए थे। जीतसिंह एक शानदार काला सूट पहने था । झालरों वाली अपनी झक सफेद कमीज पर वो काली बो टाई लगाए था और उस पोशाक में वो ऐसा जंच रहा था कि कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि असल में वो एक मामूली तालातोड़ था।
शालू एक सलमे सितारे वाला स्किनफिट काला गाउन पहने थी जिसके गिरहबान में से उसके उन्नत दूधिया उरोज आधे बाहर झांक रहे थे । उसके गले में एक मोतियों की माला थी और कानों में हीरे के टॉप्स थे । उसके खुले बालों की सुनहरी लटें उसके सुडौल नग्र कन्धों पर नागिनों की तरह बल खा रही थीं । ।
बढ़िया जोड़ी थी - डोरमैन मन-ही-मन बोला- फिल्मी सितारों जैसी ।
जीतसिंह ने टैक्सी ड्राइवर को एक सौ का नोट थमाया और बोला "बाकी रखो । "
डोरमैन बहुत प्रभावित हुआ । उसने देखा था कि मीटर में अभी सिर्फ तिरतालीस रुपये बने थे ।
उसने ठोककर सलाम मारा तो एक पचास का नोट उसकी मुट्ठी में पहुंच गया । उसने फिर ठोककर सलाम मारा और फिर उन्हें खुद इन्तजार करती लिफ्ट तक छोड़कर आया ।
अपनी सूरत में तब्दीली लाने के लिए जीतसिंह ने अपनी मोटी मूंछें साफ कर दी थीं और हेयर स्टाइल बदल लिया था । ऊपर से उसका मौजूदा रखरखाव भी ऐसा था कि उसे वहां पहचान लिए जाने का अन्देशा नहीं था, फिर भी धनेकर की उसे खास हिदायत थी कि उसका सामना मार्सेलो से या फ्लोर मैनेजर फ्रांको से न होने पाए ।
लिफ्ट द्वारा वे दूसरी मंजिल पर पहुंचे और वहां उन्होंने कैसीनो के विशाल हॉल की जगमग में कदम रखा ।
"याद है न" - जीतसिंह चेतावनी भरे स्वर में बोला - "कि तुमने क्या करना है और कब करना है ?"
“याद है ।” - शालू बोली- "भूल जाऊंगी तो डैडी मेरा खून नहीं कर देगा ।”
"डैडी ?"
“एडुआर्डो ।”
“वो तुम्हारा डैडी है ?”
"शुगर डैडी ।"
"वो क्या होता है ?"
"वो चीनी का बना होता है और उस पर से उखाड़ - उखाड़कर चीनी खाई जाती है । मुंह मीठा किया जाता है।"
"बातें कमाल की करती हो ।”
"मैं और भी बहुत कुछ कमाल का करती हूं।"
" जैसे कैब्रे ?"
"वो कोई करने लायक काम है ? एक ही मशीनी अंदाज से रोज हाथ-पांव हिलाने में भी कोई कमाल होता है ?"
"तो कमाल किस बात में होता है ?"
"कभी फुर्सत से समझाऊंगी। समझाऊंगी क्या बाकायदा क्लास लूंगी तुम्हारी ।”
“डैडी का क्या होगा ?"
"उसका क्या होगा ? तुम भूल रहे हो कि अगर हम यहां कामयाब हो गए तो में खुद मालदार बन जाऊंगी ।"
“शुगर ममी ?"
"वही । फिर क्या मैं डैडी की मोहताज रहूंगी ?"
" यानी कि प्रेम दीवानी नहीं हो, धन दीवानी हो ।”
"सारी औरतें होती हैं । "
अनायास ही उसका ध्यान सुष्मिता की तरफ चला गया । "मुझे नहीं मालूम था ।" - वो धीरे से बोला ।
"सीख जाओगे | अब आओ चलके भीड़ में मिल जाएं । जैसी कि हमें हिदायत है ।"
जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।
***
एक इम्पाला कार मारकी में आकर रुकी।
शानदार कार के सम्मान में डोरमैन अनायास ही तन गया।
एक वर्दीधारी ड्राइवर फुर्ती से कार में से निकला और कार के पीछे पहुंचकर डिकी खोलने लगा ।
कार की पिछली सीट पर से सफेद सूट रहने ऐंजो बाहर निकला और डिकी के करीब पहुंचा। ड्राइवर ने डिकी में से फोल्डिंग व्हील चेयर निकाली जिसे वो और ड्राइवर मिलकर खोलने लगे ।
व्हील चेयर !
तत्काल डोरमैन ने लॉबी में एक मेज के पीछे ऊंघते से बैठे एक स्टुअर्ट को संकेत किया ।
स्टुअर्ट तत्काल सचेत हुआ और लपककर मारकी में पहुंचा । ड्राइवर व्हील चेयर को कार के पहलू में ले आया।
ऐंजो ने बड़े अदब से कार का पिछला दरवाजा खोला ।
स्टुअर्ट लपककर ऐंजो के करीब पहुंचा ।
“हिज हाइनैस ?" -उसने पूछा ।
"हिज हाइनैस" - ऐंजो सहमति में सिर हिलाता बड़े रोब से बोला - "मुस्तफा अहमद बिन मुहम्मद एल खलीली । बसरा के अमीर | शहनशाह के करीबी । आयल किंग । "
"वैलकम । वैलकम । "
भीतर अरब परिधान में कौल बैठा था जिसे कि ऐंजो और स्टुअर्ट ने उठाकर कार से बाहर निकाला और यूं व्हील चेयर पर टिकाया जैसे वो कोई जरा सी ठेस से टूट जाने वाली नाजुक चीज थी ।
फिर ड्राइवर वापिस कार में जा बैठा और कार को वहां से हटा ले गया ।
स्टुअर्ट ने व्हील चेयर को धकेलने के लिए संभालने की कोशिश की तो ऐंजो बोला- "ये काम हम कर लेंगे । तुम रास्ता दिखाओ ।"
"यस, सर ।"
"हिज हाइनैस बहुत नाजुक तंदरुस्ती के मालिक हैं । व्हील चेयर के मामले में वो सिर्फ हम पर एतबार करते हैं।"
"आई अंडरस्टैण्ड, सर ।"
ऐंजो को वो स्ट्रेट भाषा बोलने में बड़ी दिक्कत महसूस हो रही थी लेकिन वो वक्त की जरूरत थी । बसरा के अमीर का डी सी गोवानी लहजे में इंगलिश मिली हिंदी बोलता नहीं हो सकता था । ए
"आपकी तारीफ, सर ?" - डोरमैन ने पूछा ।
"हमें अब्दुल कमाल पाशा कहते हैं । हम हिज हाइनैस के खासुलखास हैं।"
"वैलकम, सर ।"
"चलो।"
स्टुअर्ट आगे बढ़ा । ऐंजो उसके पीछे-पीछे व्हील चेयर धकेलने लगा । वो डोरमैन के पहलू से गुजरे तो उसने ठोककर सलाम मारा जिसकी तरफ कौल ने तवज्जो तक न दी ।
लिफ्ट द्वारा वे दूसरी मंजिल पर पहुंचे।
“हिज हाइनैस क्या शौक फरमाएगे ?" - स्टुअर्ट ने अदब से पूछा ।
"रॉलेट।" - ऐंजो बोला- "हिज हाइनैस को सिर्फ रॉलेट का शौक है ।"
"मैं रॉलेट की टेबल पर लेकर चलता हूं । प्लीज फालो मी।”
ऐंजो स्टुअर्ट के पीछे कुर्सी धकेलने लगा ।
***
एक पुरानी सी फिएट मारकी में आकर रुकी।
डोरमैन को उस पर निगाह पड़ी तो उसने नाक चढ़ाया ।
कार की एक टेल लाइट टूटी हुई थी और वो दो जगह से पिचकी हुई थी ।
कार को उसका मालिक खुद चला रहा था ।
फिर डोरमैन को कार की विंड स्क्रीन पर डाक्टर लिखा दिखाई दिया ।
तभी तो - डोरमैन मन-ही-मन बोला- पुराने जमाने के डॉक्टर ऐसे ही होते थे लापरवाह । रखरखाव में उदासीन। भीतर से जरूर कोई बूढा ही निकलेगा ।
कार में से एडुआर्डो ने बाहर कदम रखा ।
डोरमैन की उसके सफेद बालों, सफेद दाढी-मूंछ और लाल भभूका चेहरे पर निगाह पड़ी तो वो बहुत खुश हुआ कि उसका अन्दाजा ठीक निकला था ।
करीब आकर एडुआर्डो ने कार की चाबियां डोरमैन की तरफ उछाल दीं जिन्हें कि दो बड़ी कठिनाई से लपक पाया ।
"गाड़ी कहीं रख के आओ।" - एडुआर्डो बोला ।
रख के आओ - डोरमैन मन-ही-मन भुनभुनाया पर उठाकर पार्किंग तक ले जानी थी । - जैसे कंधे
"यस, सर ।" - प्रत्यक्षतः वो तत्पर स्वर में बोला ।
एडुआर्डो जाकर लिफ्ट में सवार हो गया ।
जीतसिंह के बारे में वो जितना ज्यादा सोचता था उतना ही ज्यादा उसे ये अहसास होता था कि ये उसकी खुशकिस्मती थी कि उसे उस जैसे जहीन और काबिल नौजवान के साथ शिरकत करने का मौका मिला था। कैसे उसने रकम बढ़वाने के असम्भव काम को सम्भव कर दिखाया था ! कैसा अनोखा उसने भुगतान का तरीका सोच निकाला था ! कैसे उसने विश्वास के साथ ये कहा था कि वो सहायक के बिना भी अपना काम चला सकता था । कार्लो से पल्ला झटक लेना एडुआर्डो के लिये बहुत मामूली काम साबित हुआ था । ये अच्छा ही हुआ था कि एक बार भी उनकी किसी मीटिंग में शामिल नहीं हुआ था और उसे कतई खबर नहीं थी कि असल में क्या होने वाला था, कब होने वाला था, कहां होने वाला था, किस-किस के किये क्या होने वाला था । यूं एक हिस्सेदार घट जाना सबके लिये सुखकारक घटना थी
जीतसिंह की वजह से ही वो पूरी तरह से आश्वस्त था कि वो नाकाम नहीं हो सकते थे ।
न सिर्फ नाकाम नहीं हो सकते थे, उनके हाथ दौलत भी उनकी उम्मीद से ज्यादा लगने वाली थी ।
लिफ्ट दूसरी मंजिल पर आकर रुकी।
एडुआर्डो ने कैसीनो के भीड़भरे और कोलाहलपूर्ण वातावरण में कदम रखा ।
सो फार सो गुड - उसके मुंह से निकला ।
" मैंने तुम्हें कहीं देखा है।"
वो एक अधेड़ उम्र का सूरत से ही एय्याश लगने वाला, सूटबूटधारी व्यक्ति था जो उस घड़ी शालू से मुखातिब था। जीतसिंह तब पता
नहीं कहा था ।
"देखा होगा ।" - शालू, लापरवाही से बोली ।
"कहीं किसी खास जगह देखा है लेकिन याद नहीं आ रहा कि कहीं देखा है ।”
"नशे में ऐसा हो जाता है ।" - शालू तिक्त भाव से बोली "नशा उतरेगा तो याद आ जाएगा ।"
"स्वीटहार्ट, मैं इतना नशे में नहीं हूं । "
"डोंट यू स्वीटहार्ट मी ।" - वो तमककर बोली ।
"सारी । भगवान के लिए मुझे याद दिलाओ कि मैंने तुम्हें कहां देखा है । सोच-सोचकर मेरा दिमाग भन्नाया जा रहा है ।"
"फिल्म में देखा होगा ।"
"फिल्म में ? तुम एक्ट्रेस हो ?" "हर औरत एक्ट्रेस होती है। "
"कौनसी फिल्म में । "
"धड़कता दिल फड़कता जिगर में । "
"ये... ये फिल्म ....
"तुमने जरूर देखी होगी । गोल्डन जुबली हिट थी । पूरे मुल्क ने देखी है तो तुमने क्योंकर न देखी होगी !"
"तुम.. उसमें थीं ?"
"हां"
"क्या रोल था तुम्हारा उसमें ?”
"वो क्या है कि हीरोइन, जो राजकुमारी का रोल अदा कर रही थी और जो दरबार में सिंहासन पर बैठी हुई थी..."
"तुम वो थीं । हीरोइन ?"
"नहीं।"
"तो ?”
"मैं उसके पीछे खड़ी उसे पंखा झुला रही थी।”
"फ, हैल । तुम मजाक कर रही हो ।"
"अब टलो ।"
"तुम मुझे याद दिलाने की कोशिश क्यों नहीं करतीं कि मैंने तुम्हें कहां देखा है ?"
" मैंने तुम्हारी याद का ठेका लिया है ?"
"मैं सोच-सोचकर पागल हुआ जा रहा हूं।"
“जब हो चुको तो बताना । पागलखाने पहुंचाने का इंतजाम कर दूंगी ।"
"लेकिन तुम.... "
"रास्ता छोड़ ।"
"मेरा नाम नागेश है । शायद मेरे नाम से तुम्हें कुछ याद...
"अरे, पीछा छोड़ ।" - वो दांत पीसती हुई बोली ।
"तुम समझती क्यों नहीं हो कि मैं..."
"अबे, लसूड़े। मैं शोर मचा दूंगी ।"
"शोर मचा दोगी ? किसलिए ?"
"तुझे नहीं पता ?"
"नहीं ।"
"हे भगवान !"
फिर वो वापिस घूमी और पांव पटकती हुई कथित नागेश से उल्टी दिशा में चल दी।
उस दिशा में जिसमें कि उसने नहीं जाना था, जिधर कि उसका कोई काम नहीं था ।
पीछे खड़ा व्यक्ति पहले उसके पीछे लपकने लगा था लेकिन फिर कुछ सोचकर ठिठक गया था ।
“कहां देखा ?" - वो अपनी कनपटी खुजाता बड़बड़ा रहा था "कहां देखा ? कहां देखा ?"
***
एडुआर्डो ताश की एक मेज पर जमा हुआ था जहां कदरन छोटा जुआ हो रहा था ।
एक हाथ उसके कंधे पर पड़ा ।
उसने सकपकाकर सिर उठाया तो मुस्कराते हुए कार्लो से उसकी निगाहें मिलीं।
वो बुरी तरह चौंका ।
सारा मारिया ! सान्ता मारिया - वो मन-ही-मन बोला ये कहां से टपका !
"हल्लो, डैडियो ।" - कार्लो बोला ।
कार्लो एक मुश्किल से चौबीस साल का बड़ा खुबसूरत, खुशमिजाज युवक था जो उस घड़ी वहां के माहौल के अनुरूप सजधज में दिखाई दे रहा था ।
"कार्लो ! तू यहां ?”
“मिस्टर एडुआर्डो ! आप यहां ?"
एडुआर्डो ने अपने पत्ते फेंके और उठ खड़ा हुआ। उसने कार्लो की बांह थामी और उसे एक तरफ ले गया ।
“यहां कैसे आया ?" - उसने सशंक भाव से पूछा । कहीं उसे उनके प्रोग्राम की कोई भनक तो नहीं लग गई थी ? नहीं-नहीं । कैसे लग सकती थी ?
"इत्तफाक से । आज जरा जेब गर्म थी इसलिए जुए में किस्मत आजमाने यहां चला आया ।"
"ओह !"
"आप कैसे आए ?”
" इसी वजह से । मेरी भी आज जरा जेब गर्म थी इसलिए यहां चला आया ।"
" यानी कि एक ही इत्तफाक हम दोनों को यहां लाया ?" "जाहिर है !"
" या शायद तीनों को ?"
"त... तीनों को ?”
"अभी मैंने शालू को भी यहां देखा था लेकिन वो भीड़ में मिल गई ।”
"ओह !"
“आज भी भीड़ भी तो बहुत ज्यादा है यहां । दौ ढाई सौ आदमियों से कम तो क्या होंगे यहां ।"
"इत्तफाक की बात है ।"
“शालू क्या आपके साथ आई है ?” "नहीं नहीं । मेरे साथ नहीं... हां, मेरे साथ आई है ।”
"डैडियो, एक सांस में दो जवाब ?"
"पहले मैं तेरा सवाल नहीं समझा था । "
"बुढ़ापे में ऐसा हो जाता है।"
"शट अप ।"
वो हंसा ।
"अभी तेरा कब तक यहां रुकने का इरादा है ?"
"आपका कब तक रुकने का इरादा है ?"
"मैं तो समझो कि बस जा ही रहा हूं।"
"शालू को साथ ले के ?"
“हां। "
“फिर तो मैं भी साथ चलता हूं । लिफ्ट मिल जाएगी ।"
"कार्लो, हमारे रास्ते अलग हैं । "
"नो प्रोब्लम । जहां तक रास्ते एक हैं, वहां तक तो लिफ्ट मिल जाएगी। मिल जाएगी न, डैडियो ।"
एडुआर्डो के मुंह से तत्काल बोल न फूटा । कार्लो की वहां मौजूदगी उसे बहुत फिक्र में डाल रही थी। अभी गनीमत थी कि वो ऐंजो को या कौल को या जीतसिंह को नहीं पहचानता था ।
"मैं... मैं अभी" वो कठिन स्वर में बोला- "थोड़ी देर और किस्मत आजमाऊंगा ।"
“अभी तक हार रहे हैं या जीत रहे हैं ?"
"हार रहा हूं।" "फिर तो आजमानी ही चाहिए । "
"तेरा क्या हाल है ?"
"मैं तो जीत रहा हूं ।"
"फिर तो चलता बन यहां से क्यों खामखाह लालच करता है ?"
"आज तो लालच ही करना है । जब तक आप यहां हैं, तब तक तो करना है ।"
"क्या मतलब ?"
“जब आप यहां से रुख्सत होने लगें तो मुझे भी तलाश कर लीजियेगा । मैं यहीं कहीं होऊंगा ।"
एडुआर्डो ने बड़े अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
" सी यू दैन, डैडियो । "
एडुआर्डो खामोश रहा ।
अब उसके परेशानहाल जेहन में एक ही बात बार-बार कौंध रही थी : क्या कार्लो की वहां अप्रत्याशित उपस्थिति उनके काम में विघ्न डाल सकती थी ?
***
हमेशा की तरह मार्सेलो हॉल में मेहमानों के बीच विचर रहा था जब कि फ्रांको उसके करीब पहुंचा ।
" पैसा निकालना होगा ?" - वो धीरे से बोला ।
"नो प्रॉब्लम । " - मार्सेलो बोला ।
" “आज तकदीर मेहमानों का साथ ज्यादा दे रही है । "
"डजंट मैटर | आओ।"
दोनों ऑफिस की ओर बढे । रास्ते में फ्रांको ने एक कैशियर को इशारा किया । वो तत्काल एक बड़ी-सी प्लास्टिक की ट्रे उठाए उनके साथ हो लिया ।
धनेकर ऑफिस के दरवाजे के करीब खड़ा था । बॉस को आता पाकर उसने बड़े अदब से दरवाजा खोल दिया ।
वो लोग भीतर दाखिल हुए। ऑफिस को लांघकर वो वाल्ट वाले कमरे में पहुंचे ।
“बीम बन्द कर दी ?" - मार्सेलो ने पूछा ।
“सॉरी ।" - फ्रांको तत्काल हड़बड़ाया-सा बोला - "नहीं की । अभी करके आता हूं।"
वो लम्बे डग भरता वहां से बाहर निकल गया ।
धनेकर ने उसे हॉल के प्रवेशद्वार की तरफ बढ़ते देखा ।
कहां जा रहा था वो ? - उसने सोचा- क्या बीम का स्विच किसी और फ्लोर पर था ? क्या वो उसके पीछे जाए ? नहीं ।
बॉस की भीतर मौजूदगी के दौरान वो वहां से नहीं हट सकता था । उसे किसी भी क्षण भीतर से आवाज पड़ सकती थी ।
अजीब-सी बेचैनी का अनुभव करता वो ठिठका खड़ा रहा। फ्रांको वापिस लौटा ।
"बीम बन्द है ।" - वो भीतर मार्सेलो से बोला ।
मार्सेलो वाल्ट के सामने पहुंचा । उसने तिहरी चाबियां लगाकर वाल्ट को खोला और कैशियर को इशारा किया ।
कैशियर ने आगे बढ़कर ट्रे को वाल्ट के खुले दरवाजे के करीब फर्श पर रखा और भीतर से नोटों की गड्डियां निकाल-निकाल कर ट्रे में रखने लगा ।
मार्सेलो खामोशी से गड्डियों को गिनता जा रहा था ।
ऐसा ही फ्रांको भी कर रहा था जिसने कि बाद में कैशियर से निकाली गई रकम की रसीद हासिल करनी थी ।
ट्रे भर गई तो कैशियर उसके साथ वहां से रुख्सत हो गया। मार्सेलो ने वाल्ट का दरवाजा पूर्ववत बन्द कर दिया।
"मैं बीम ऑन करके आता हूं।" - फ्रांको बोला ।
"कहीं से हवा आ रही है।" - एकाएक मार्सेलो बोला ।
फ्रांको ठिठका ।
"आ तो रही है।" - फिर उसने भी अपने बॉस की बात की तसदीक की ।
" कहां से आ रही है ?"
"मैं अभी देखता हूं।"
फ्रांको कमरे की विशाल खिड़की के करीब पहुंचा। खिड़की के आगे पड़ा भारी पर्दा हटाकर उसने उसके पीछे झांका ।
"खिड़की खुली है ।" - वो बोला ।
"खिड़की खुली है ?" - मार्सेलो सकपकाया ।
"चार में से एक पल्ला खुला है। पूरी तरह चौखट से नहीं लगा हुआ । उसी में से हवा आ रही है । "
"ऐसा क्योंकर हुआ ?"
"पता नहीं ।”
"ठीक से बन्द करो । बाकी पल्लों की भी चिटखनियां चैक करो।"
“यस सर ।"
***
जीतसिंह ने धनेकर को टायलेट में जाते देखा ।
वो भी लापरवाही से उधर बढ़ चला ।
वो टायलेट में दाखिल हुआ तो उसने धनेकर को एक यूरीनल के सामने पेशाब करते पाया ।
उस घड़ी टायलेट में उसके सिवाय कोई नहीं था ।
जीतसिंह उसके पास के यूरीनल पर जा खड़ा हुआ और सावधानी से बोला- "क्या खबर है ? "
"मैंने खिड़की की चिटकनी खोल दी थी" - धनेकर दबे स्वर में बोला- "लेकिन..."
"क्या लेकिन ?"
"ऐसा कुछ हो गया जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी । "
"क्या हो गया ? जल्दी-जल्दी बोलो । कोई आ जाएगा।"
"एकाएक वाल्ट खोले जाने की जरुरत पड़ गई । वो लोग वाल्ट वाले कमरे में थे तो हवा के झोंके से पल्ला चौखट से थोडा अलग हो गया । ठण्डी समुद्री हवा भीतर आने लगी । बॉस को उसका एहसास हो गया । हवा का जरिया चैक करने पर पाया गया कि खिड़की खुली थी। खिड़की फिर बन्द कर दी गई ।"
"ओह !"
"इसमें मुंह लटकाने वाली कोई बात नहीं । मैं खिड़की फिर खोल दूंगा ।”
"कोई प्रॉब्लम नहीं होगी ?"
"कोई प्रॉब्लम नहीं होगी । बल्कि जो हुआ अच्छा हुआ।" "वो कैसे ?"
"वाल्ट को अभी खोलकर उसमें से काफी बड़ी रकम निकाली गई है। अब डेढ़-दो घंटे तक वाल्ट न खोले जाने की गारंटी होगी । अब तुम अपना काम सहूलियत से कर सकोगे । मेरा मतलब है बिना इस अन्देशे के कि कोई ऊपर से आ जाएगा।"
"वाल्ट पैसा निकालने के लिए ही थोड़े ही खोला जाता है। वापिस रखने के लिए भी तो खोला जाता होगा ?"
"जब अभी मोटी रकम निकाली गई है तो ऐसा भी डेढ़-दो घंटे तक नहीं होने वाला ।"
"पीछे कुछ बचा भी है ?" "वो मुझे नहीं मालूम । खोलोगे तो पता लग जाएगा ।” "हूं।"
"ये बहुत अच्छा हुआ कि खिड़की बन्द किए जाने की मुझे खबर लग गई क्योंकि मैं उस वक्त ऑफिस के करीब था। मैं कहीं और होता तो मुझे इस बात की खबर न लग पाती । मैं यही समझता रहता कि मैं अपने काम को अंजाम दे चुका था जबकि तुम बाहर से भीतर न घुस पाते ।”
"अब फिर तो ऐसी नौबत नहीं आ जाएगी ?"
"नहीं । अब मैं ऑफिस के इर्द-गिर्द ही रहूंगा।"
"बढ़िया ।”
"मैं बड़ी हद दस मिनट में खिड़की दोबारा खोल देने में कामयाब हो जाऊंगा | तुम लोगों ने जो करना है, अब कर डालो वर्ना फिर कोई अनजाना विघ्न आ जाएगा।"
"ठीक है । मैं अभी सबको खबरदार हो जाने का इशारा करता हूं।"
जीतसिंह घूमा और टायलेट से बाहर की ओर बढ़ चला ।
***
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