22 सितम्बर, शनिवार

रणवीर अपनी रायल एनफ़ील्ड पर सवार होकर पुलिस लाइन पहुँचा । रजिस्टर में अपनी हाजिरी लगाने के बाद वह अपने कमरे में चला गया, जहाँ उसे नई सीट मिली थी । उसे अभी अलग से कोई चार्ज नहीं मिला था । उसने हरपाल सिंह के बारे में पता किया तो वह सिटी पुलिस स्टेशन गया हुआ था । शहर के प्रमुख पुलिस स्टेशन के प्रभारी को यूँ किसी पागल जानवर की तरह शूट किया जाना, एक किस्म से पूरे सिस्टम के मुँह पर एक जोरदार तमाचा था । वह उस ऑफिस में बैठा हुआ बाकी स्टाफ की वरियाम सिंह के बारे में टीका-टिप्पणी सुनता रहा । तभी उसका फोन बजा । वह हरपाल सिंह की कॉल थी ।

“कहाँ हो तुम ?” हरपाल का कलपता हुआ स्वर उसके कानों में पड़ा ।

“मैं ऑफिस में हूँ, सर ! बस अपने चार्ज के बारे में पता कर रहा था ।” रणवीर ने भाव-विहीन स्वर में जवाब दिया ।

“अरे, चार्ज-वार्ज तुम बाद में लेते रहना ! वरियाम सिंह के साथ जो हुआ, क्या इस बात का तुम्हें पता भी है या नहीं ?”

“नहीं सर, मुझे इस बारे में यहाँ ऑफिस में आने के बाद ही पता चला !” उसने नपे-तुले शब्दों में जवाब दिया ।

“मैं कब से तुम्हें फोन लगा रहा हूँ । तुम तुरंत यहाँ सिटी पुलिस स्टेशन पहुँचो ।”

रणवीर तुरंत पुलिस स्टेशन पहुँचा । थाने के गेट के बाहर लोगों का हुजूम जमा था । पुलिस ने पट्टी लगाकर उस क्षेत्र की हदबंदी कर रखी थी । फॉरेंसिक और डॉग स्क्वाड वालों ने अपना काम संभाला हुआ था । हरपाल सिंह थाने के स्टाफ के साथ गेट के बाहर ही खड़ा था । वरियाम सिंह की मृत देह एक सफ़ेद कपड़े से ढकी हुई पड़ी थी । वहाँ पर सफ़ेद रंग से डेड बॉडी के चारों तरफ निशान लगा रखा था । लाश को शायद पोस्टमार्टम के लिए जल्दी ही भेजे जाने की तैयारियाँ हो चुकी थीं । रणवीर को आते देख हरपाल सिंह ने उसे अपने पास बुला लिया ।

“लगता है, तुम्हारी जगह वरियाम सिंह को रास नहीं आई । वह अगर यहाँ पर ट्रान्सफर होकर नहीं आता तो शायद जिंदा रहता ।”

“क्या कह सकते हैं इस बारे में ! हो सकता है, शायद ये शब्द फिर आप मेरे बारे में कह रहे होते ?”

हरपाल ने तिरछी निगाहों से रणवीर की तरफ देखा । फिर वह उस जगह के चारों ओर चक्कर काटने लगा, जहाँ वारियाम की लाश पड़ी थी ।

“यहाँ देखो, रणवीर ! पहली दो गोली सीधी उसके जिस्म के ऊपरी भाग से टकराई और एक शायद दिल और फेफड़ों को चीरती हुई निकाल गई । जब वह नीचे गिरा तो तीसरी गोली ने उसका भेजा उड़ा दिया । तुमने उसकी लाश नहीं देखी, रणवीर ! निचले जबड़े से ऊपर का हिस्सा सिर्फ माँस का लोथड़ा भर रह गया है ।”

“यानी मारने वाला इस बात की पूरा तसल्ली करके गया है कि शिकार की जान बाकी न रहे । कल यहाँ गेट पर किसकी ड्यूटी थी ?”

“यहाँ रवि की ड्यूटी थी, सर ! पहले उसने साहब की कार बाहर निकाली और फिर वह उनका बैग लेने के लिए अंदर गया । जब वह वापिस बाहर आया तब तक तो वह मर चुके थे ।” अनिल ने रणवीर को जवाब दिया ।

“तुमने कोई आवाज नहीं सुनी, रवि ?” रणवीर ने पूछा ।

“नहीं सर, मैं तो बस अंदर जाकर और बाहर आया हूँ ! इस काम में मुझे तीन-चार मिनट लगे होंगे । जब बाहर आया तो... ।”

“इसने फिर भागकर सबको जगाया । हमने तुरंत सामने की दिशाओं में खोजबीन की लेकिन हमें कोई नहीं मिला ।” दिनेश ने बताया ।

“जैसा कि सर आप बता रहे हैं कि दो गोली छाती में लगी, तो वरियाम उसी वक्त पीछे की तरफ गिरा होगा तो उस हालत में तो उसके सिर पर उस ढंग से निशाना लगाना संभव नहीं था । वह शायद रवि की इंतजार में गेट की तरफ देख रहा था । पहली गोली उसके पीठ में लगी, जिसकी वजह से वह पलटा । उसके बाद दूसरी गोली सामने से सीने में लगी, जो उसके दिल के आरपार निकाल गई । उस गोली के लगने के बाद वह तिरछा होकर गिरा और उसके जमीन पर गिरने के बाद उसे तीसरी गोली मारी गई, जिसने उसके चेहरे पर प्रहार किया । इससे एक बात जाहिर है कि हत्यारा वरियाम सिंह की इंतजार में किसी ऊँची इमारत पर मौजूद था । यहाँ से सामने तीन इमारत दिखाई दे रहीं है और उसमें से एक अभी बन रही है । मेरे ख्याल से हत्यारा कल रात उसी बिल्डिंग में घात लगाए बैठा था ।” रणवीर ने अपनी बात खत्म की ।

तभी सायरन बजाती दो गाड़ियाँ वहाँ आकर रुकीं । एसपी ब्रिजलाल सिंह ने उस घटना स्थल पर कदम रखा । हरपाल सिंह ने उसे सारी जानकारी से अवगत करवाया । बीच में उसने उस बिल्डिंग की तरफ इशारा किया जिसके बारे में रणवीर ने सुझाया था । ब्रिजलाल सिंह कुछ देर के लिए रणवीर की तरफ एकटक देखता रहा और फिर उसने अपनी नजरें घुमा ली । फिर वह दोनों थाने में अंदर ऑफिस की तरफ चले गए । कुछ समय के बाद ब्रिजलाल सिंह वहाँ से रवाना हो गया । वरियाम सिंह के मर्डर की जाँच की कमान एक नए इंस्पेक्टर संदीप कुमार को दे दी गई ।

हरपाल सिंह से विदा लेकर रणवीर वापिस पुलिस लाइन में अपने ऑफिस में आकर बैठ गया । हरपाल सिंह ने उसे मौका-ए-वारदात पर क्यों बुलाया ? ये वह समझ नहीं पाया ! शायद वह उससे वरियाम सिंह के कत्ल की तहक़ीक़ात करवाना चाहता था, लेकिन ब्रिजलाल सिंह के आगे शायद उसकी पेश न चली हो ! ये कैसा रहस्य था, जो हर बार खत्म होता हुआ लगता था, लेकिन तभी इसमें एक और रहस्यमयी कड़ी जुड़ जाती थी ।

उसे बाद में पता चला कि डॉग स्क्वाड को बुलाकर उस नई बन रही इमारत को बड़ी बारीकी से छाना गया था । डॉग स्क्वाड वहाँ पर फ़ेल हो गया । जिस संभावित जगह से वरियाम सिंह को गोली मारी गई थी, वहाँ पर पॉलिथीन में सड़ा हुआ ढेर सारा कूड़ा पड़ा था और उसके अवशेष नीचे तक बिखरे पड़े थे । कातिल के शातिर दिमाग ने अपनी किसी भी गंध को उस कचरे से निकलने वाली गंध से छुपा दिया था । जब डॉग स्क्वाड उसके आधार पर एक मलबे के ढेर तक पहुँचा तो वहाँ एक राख का ढेर था, जो बता रहा था  कि कातिल ने अपने सारे कपड़े वहाँ पर पूरी तरह जला दिये थे । अब तो पोस्टमार्टम से गोलियों से ही हथियार के बारे में कुछ पता चलता तो कोई आगे की लीड मिलती ।

वरियाम सिंह की अंत्येष्टि का समय शाम को चार बजे का रखा गया था, लेकिन पारिवारिक और तकनीकी कारणों से पार्थिव शरीर के शमशान तक पहुँचते-पहुँचते साढ़े पाँच बज गए । पुलिस डिपार्टमेंट की परंपरा के अनुसार उसके अंतिम संस्कार के समय सिपाहियों की एक टुकड़ी ने राइफल दाग कर अपनी ज़िम्मेदारी निभाई ! वर्दी में मिली मौत ने उसके सारे काले कारनामों को एक बार तो ढक ही लिया था । चिता की प्रचंड अग्नि ने शीघ्र ही अपने ताप से मृत शरीर को अपने अस्तित्व में समेट लिया और बाकी लोग उस ऊष्मा से दूर कोई शीतल छाया को तलाशने लगे । रणवीर भी दिनेश, रोशन वर्मा, अनिल और दूसरे जानकार लोगों के साथ एक जगह देखकर शेड के नीचे बैठ गया । अंत में धीरे-धीरे सब लोग वहाँ से प्रस्थान करने लगे और कुछ समय बाद वहाँ सिर्फ एकांत और उस एकांत में रह-रहकर चटकती हुई लकड़ियों की आवाजें ही शेष रह गईं । रणवीर जब वहाँ से जाने के लिए उठकर पीछे मुड़ा तो उसने देखा कि उसी जगह एक कोने में अविनाश चौधरी खड़ा था ।

“तुम ! यहाँ कैसे आए हो अविनाश चौधरी ? वरियाम सिंह के अंतिम दर्शन करने ? जानते थे तुम उसे ?”

“नहीं सर ! आप पिछले दिनों शायद कहीं बाहर गए हुए थे, इसलिए आपको पता नहीं चला होगा । रूप कुमार अंकल का तीन दिन पहले देहांत हो गया । लगातार अवसाद के चलते उनका हार्ट फ़ेल हो गया । मैं तो यहाँ बस उनकी अस्थियाँ चुनने आया था ।”

“ओह, बड़ा दुख हुआ ! वारियाम सिंह के साथ जो हुआ वह मालूम है तुम्हें ?”

“वह तो सारे शहर को पता है । कल रात को उन्हें गोली मार दी किसी ने ।”

“सही सुना है । एक पुलिस वाले का इस तरह सरेआम मारा जाना, पुलिस डिपार्टमेंट की रेपुटेशन के लिए अच्छी बात नहीं है । इसके पीछे की कहानी सुनोगे मुझसे ? कल से मेरे सीने पर एक बोझ है । हो सकता है, तुमसे बात करके मुझे कुछ शांति मिले ।”

“अगर आप मुझे कुछ सुनाना चाहते हैं और इससे आपको कुछ सुकून मिलता है तो मैं जरूर सुनना चाहूँगा । अगर आप यह जगह सुटेबल समझते हैं तो मुझे कोई ऑबजेक्शन नहीं है ।”

“तो सुनो । इस कहानी की शुरुआत चार सितंबर की रात को दुर्गा कॉलोनी के मकान नंबर 32/11 से होती है । जहाँ गौरव कालिया, संजय बंसल, अनिकेत और रोहित गेरा अपनी किसी मीटिंग के लिए इकट्ठे होते हैं । एक साथ होने पर उनका शराब पीना और ड्रग्स लेना उनके रूटीन में शामिल था । उस दिन उनका मौज-मेला कुछ जल्दी ही शुरू हो गया था । नशे में फिर वह लोग धीरे-धीरे अपने आपे से बाहर होने लगे । उनके लिए आमतौर पर ‘सिज़्लर’ होम डिलीवरी से खाना आता था । जब वह चारों लड़के ऊपर अपनी शराबनोशी में मस्त होते हैं तो इसी चीज का फायदा उठाकर एक ‘शख्स’ डिलीवरी बॉय विक्की से उनका खाना ले लेता है और विक्की के साथ जानबूझकर शराब लाने के लिए झगड़ा करता है । वह जानबूझकर विक्की के पूछने पर 59/11 का गलत पता बताता है । उसने मोहित गेरा की तरह हुड वाली जाकेट पहनी होती है जो विक्की के दिमाग में कील की तरह बैठ जाती है । इस तरह से मोहित गेरा की उस घटना स्थल पर पहली हाजिरी लगती है ।”

रणवीर एक क्षण के लिए रुका । फिर उसने बोलना जारी रखा ।

“वो ‘शख्स’ उन लड़कों के खाने में बड़े आराम से ड्रग्स मिलाता है और खाना ले जाकर ऊपर उन लोगों की रसोई में रख देता है । फिर वह तीसरी मंजिल जाकर दीवार फांद कर 59/11 में जाता है और वहाँ जाकर फिर विक्की का इंतजार करता है । विक्की उसके गलत पता बताने की वजह से घूम-फिरकर जब तक वहाँ पहुँचता है तो वही शख्स 59/11 मकान के नीचे जाकर विक्की से फिर खाना लेता है । अशोक की फ़ैमिली को वह खाना दे देता है, जो वह पहले भी कई बार रूटीन में कर चुका था । इस तरह से उस शख्स की हाजिरी अशोक और विक्की के सामने उस घर 59/11 में स्थापित हो जाती है । जितनी देर में वह ‘शख्स’ अशोक और उसकी फैमिली को खाना देता है, इतनी देर में वह चारों लड़के उस खाने को खाने के बाद बेहोश हो जाते हैं । उनकी बेहोशी का आलम ये होता है कि उनमें और जिंदा लाश में कोई फर्क नहीं रहता ।”

“कमाल की कहानी है इंस्पेक्टर साहब ! आप तो सीधा-सीधा मेरी तरफ इशारा कर रहे हैं कातिल होने का, जबकि मेरा उन लोगों से जिंदगी में कभी कोई वास्ता नहीं रहा ।”

“थोड़ा सब्र रखो । धीरे-धीरे तुम्हें सब पता चल जाएगा । तुम अगर यहाँ से जाना चाहो तो आसानी से जा सकते हो । मैं तुम्हें रोकूँगा नहीं ।”

“आप शायद ये सोच रहें है कि आपकी ये कपोल-कल्पना सुनकर मैं भाग जाऊँगा । मैं भला क्यों भागूँगा । अगर मुझे भागना ही होता तो आपके सामने क्यों आता ?” अविनाश शांत भाव से बोला ।

“ठीक है । तो फिर आगे की कहानी सुनो । वह ‘शख्स’ फिर शमशेर सिंह गेरा की रिवॉल्वर से, जब वह चारों लड़के बेहोश हो जाते है, तब वहाँ पर बेसुध पड़े गौरव कालिया को उसी कमरे में बेड पर और संजय बंसल को दूसरे कमरे में ले जाकर शूट कर देता है ताकि गौरव का खून वहाँ पर पड़ा हुआ बिस्तर सोख ले । रोहित गेरा के पाँव में वह निचले हिस्से में गोली मारता है, जिससे वह सिर्फ घायल हो । फिर वह आदमी इस बात का इंतजार करता है कि गौरव कालिया के शरीर से खून बहना बंद हो जाए और फिर वह आदमी उसकी लाश को किसी बड़े ब्रीफकेस जैसी चीज में पैक कर बड़ी आसानी से वीरू के ढाबे के पास ले जाकर प्लांट कर देता है ।

“इससे पहले, जिस कमरे में संजय बंसल को उसने मारा था, वहाँ वह संजय बंसल के जिस्म को आग लगा देता है । उस काम में वह इस बात का ध्यान रखता है कि आग उस कमरे में ज्यादा न फैले । इसके लिए वह पेट्रोल या मिट्टी के तेल का इस्तेमाल नहीं करता बल्कि रिफ़ाइंड तेल का इस्तेमाल करता है, जिसका गोदाम ठीक उन लड़कों के मकान के नीचे था, ताकि आग भड़के नहीं और कुछ समय के बाद अपने आप बुझ जाए । फिर वह ‘शख्स’ रोहित के फोन से मोहित को फोन करता है । उस कमरे में भी वह आग लगाता है लेकिन इस तरीके से कि उस आग में जलने से रोहित की मौत तुरंत न हो । उसे इस बात की उम्मीद होती है कि अपने भाई को बचाने मोहित गेरा जल्द-से-जल्द वहाँ पहुँचेगा । अनिकेत को बेहोशी की हालत में उठाकर वह उसी मकान की तीसरी मंजिल के ऊपर हाथ-पैर बाँधकर छत पर छुपा देता है ।

“उसके बाद वह शख्स इत्मीनान से गौरव कालिया की लाश को एक सूटकेस में डालकर वहाँ से निकल जाता है । वीरू के ढाबे के पास पहुँचकर वह पेट्रोल डालकर उस लाश को जला देता है । वह रास्ता दस बजे के आसपास सुनसान हो जाता है, वहाँ कोई नहीं आता-जाता । अपने भाई के फोन कॉल को सुनकर मोहित गेरा भागकर अनिकेत के घर पहुँचता है । वहाँ के हालात की उसने कल्पना भी नहीं की होती । वह रोहित के कमरे में आग लगी देखकर उसे बुझाता है । वह एक कमरे में संजय बंसल की लाश और दूसरे कमरे में रोहित को जख्मी हालत में देखकर ये समझता है कि उन लोगों में आपस में कोई फसाद हुआ है । दूसरे कमरे में लगी आग पर वह पानी डालकर बुझाने की कोशिश करता है । इसी कारण से उस कमरे में खून पूरे फर्श पर फैल जाता है । रोहित को घायल देखकर मोहित किसी तरह अपने कंधे का सहारा देकर वहाँ से निकालता है । उसी वक्त उन्हें रास्ते में लल्लन मिलता है । लल्लन की गवाही से मोहित गेरा की दूसरी हाजिरी घटनास्थल पर पक्की हो जाती है । मोहित अपने भाई रोहित को बचाने के लिए उसे ले जाकर मेट्रो हॉस्पिटल में दाखिल करवा देता है । रोहित को आने वाली किसी कानूनी मुसीबत से बचाने के लिए शमशेर गेरा ‘महक फार्महाउस’ के पास उसकी मोटरसाइकल का एक्सिडेंट स्टेज करवाता है क्योंकि वह लोग ये समझते हैं कि रोहित के हाथों संजय बंसल का खून हो गया है ।

“रोहित के अपनी योजना के मुताबिक दुर्गा कॉलोनी से चले जाने के बाद और गौरव कालिया की लाश को ठिकाने लगाने के बाद वह ‘शख्स’ फिर वापिस अनिकेत के घर वापिस पहुँचता है । वह बड़े आराम से छत पर जाकर फिर उसी सूटकेस में अनिकेत को फिट करता है । फिर वह उस सूटकेस को लेकर अनिकेत के घर की छत से अपने घर की छत पर 59/11 में चला जाता है, जो 32/11 के बिलकुल पीछे है । फिर वह आदमी अनिकेत को बेहोश रखने के लिए लगातार ड्रग्स के इंजेक्शन देता है । वह ‘शख्स’ इतनी नफरत से भरा होता है कि बेहोश और बेबस अनिकेत के ऊपर अपना गुस्सा निकालता है, जिसकी वजह से उसके शरीर पर निशान पड़ जाते हैं । वह सुबह-सुबह अंधेरे में सूटकेस समेत अनिकेत को ‘महक फार्महाउस’ के स्टोर हाउस में ट्रान्सफर कर देता है और उसी रिवॉल्वर से, जिससे संजय और गौरव को शूट किया था, कंधे पर शूट कर देता है । अनिकेत की जान कभी-न-कभी तो उसका शरीर छोड़कर जानी ही थी । वह ड्रग्स के इंजेक्शन और खून बहने की वजह से धीरे-धीरे धीमी मौत के आग़ोश में चला जाता है ।

“अनिकेत का बुरी तरह टॉर्चर किये गए शरीर का ‘महक फार्महाउस’ में मिलना मोहित के छक्के छुड़ा देता है । वह गुनाहगार तो था पर अब की बार उसके गले वह जुर्म गले पड़े थे, जो उसने किए ही नहीं थे । तीन लोग अलग-अलग जगह मरे पाये गए और तीनों के शरीर पर पायी गई गोलियाँ भी एक ही रिवॉल्वर की थी । वह रिवॉल्वर शमशेर गेरा की मिल्कियत होने की वजह से गुनाहगार होने का शक मोहित पर आयद होता है । मोबाइल की वजह से मोहित और रोहित गेरा की लोकेशन अनिकेत के घर और ‘महक फार्महाउस’ से आसानी से ट्रेस होती है । वह तो होनी ही थी । ‘महक फार्महाउस’ आखिर उनकी मिल्कियत जो था । रोहित अपने जलने के घावों की वजह से दम तोड़ देता है और मोहित पुलिस की हिरासत में नहीं आना चाहता था, इसलिए वह अंडरग्राउंड हो गया ।”

“अच्छी कहानी है, इंस्पेक्टर साहब ! अगर मुझे पता होता कि मेरे घर के पीछे ऐसा कोई कांड होने वाला है और आप मुझे इसमें लपेटने वाले हैं तो मैं कब का अपना घर बदल लेता । सिर्फ इसी बात के बिना पर आप मुझे अपनी इस मनगढ़ंत कहानी में नहीं उलझा सकते ।”

“नहीं, मैं मनगढ़ंत कहानी नहीं सुना रहा हूँ । शुक्र करो कि मैं अब इस इलाके का थानेदार नहीं हूँ । अगर होता तो ये कहानी तुम्हें पुलिस स्टेशन में सुनाता । आगे सुनो । क्या पता तुम्हें अच्छा लगे । अनिकेत के घर से जो सीढ़ियाँ उतरती हैं, उसमें दो मोड़ आते हैं । उन दोनों मोड़ों की दीवार पर किसी गहरे भूरे रंग की चीज के रगड़ खाने के निशान है, जो प्लास्टिक जैसी चीज की बनी हो । घरों में ये निशान आम तौर पर मिल जाते है, कोई बड़ी बात नहीं है, इसलिए मैंने उन पर पहले खास तवज्जो नहीं दी । बिलकुल उसी रंग के कुछ निशान ‘महक फार्महाउस’ की दीवार, जो कि मेन-रोड के साइड की तरफ है, पर भी मुझे बने हुए दिखाई दिए । ठीक ऐसे ही गहरे भूरे रंग के निशान तुम्हारे घर की सीढ़ियों की दीवारों पर भी बने हुए हैं । मैं पिछली बार जब तुम्हारे घर पर गया था, उस वक्त मैंने वहाँ से वह कुछ रंग खुरचा था, जो बाकी दो जगह से बरामद मेटिरियल से मिलता है और ये बात केमिकल टेस्ट से प्रूव हो गई है । तुम्हारे घर में तुम्हारी अलमारी के ऊपर तीन सूटकेस रखे हैं और उनके बीच में एक सूटकेस की जगह खाली है जो इस बात की तरफ इशारा करता है कि तुमने वहाँ से कुछ उतारा तो सही पर वापिस नहीं रखा । उसकी जगह आज भी खाली है और गहरा भूरा रंग तुम्हारा खास प्रिय है क्योंकि बाकी सभी सूटकेस भी इसी रंग के हैं । सभी सूटकेस एक ही स्थापित कंपनी के हैं और ये बात उनकी बिलिंग से साबित की जा सकती है ।”

“बस इतनी-सी बात से मैं कातिल साबित हो गया । वह तीनों सूटकेस अगर मैं जाकर साथ-साथ रख दूँगा तो मैं फिर बेगुनाह हो जाऊँगा । कमाल है इंस्पेक्टर !” अविनाश मज़ाकिया अंदाज में बोला ।

“नहीं । अभी कहानी बाकी है मेरे दोस्त ! पूरी कहानी तो सुन लो ! मेरी बात मज़ाक ही सही । इस सारे कांड के बीच मोहित गधे के सिर पर सींग की तरह से गायब हो गया । मैं तमाम कोशिशों के बावजूद उसे पकड़ नहीं पाया । उसके एमएलए रामचरण के घर छुपे होने की बात तो मैं सोच भी नहीं पाया था; लेकिन आखिरकार मुझे अपने मुखबिर से उसके रामचरण के घर में छुपा हुआ होने के बारे में सूचना मिली । पर अफसोस ! मैं जब वहाँ पहुँचा तो वह हमें जिंदा नहीं मिल पाया ।”

“अब इसमें मेरी क्या गलती है ? मैं तो उस वक्त अपने घर पर था । ये बात आप मेरे घर के किसी भी सदस्य से पूछ सकते हैं ।”

“मुझे मालूम है । तुम घर पर इत्मीनान से सो रहे थे । इस बात के लिए दाद देनी पड़ेगी कि तुममें सब्र बहुत है । अगर मोहित उस दिन बच जाता तो तुम फिर कोशिश करते । मोहित को तो मरना ही था । अगर मेरी पकड़ में आ जाता तो तुम उसकी सजा होने का इंतजार करते या फिर बीच में मौका मिलता तो उसे मार देते ।”

“मुझे पता नहीं, आप मेरे बारे में ये सब क्यों सोच रहे है ! लगता है, आपको कातिल का कोई सस्ता-सा कैंडिडैट चाहिए । पहले आपका निशाना मोहित था, अब वह मर गया तो आप का रुख मेरी तरफ हो गया । अब खाना एक जैसा होना, सूटकेस के बीच में खाली जगह का होना या सीढ़ियों की दीवारों पर निशान... भला कोई सबूत है । किसी को आप इनके बारे में बताएँगे तो हँसेगा वह आपके ऊपर !”

उसकी बातों पर तवज्जो न देकर रणवीर ने आगे बोलना जारी रखा ।

“खाना तुमने एक जैसा इसलिए मँगवाया कि अगर तुम अनिकेत के घर के सामने से खाना किसी कारण न ले पाओ तो वैसा ही खाना अपने घर से ड्रग्स मिलाकर उनकी रसोई में रख सको । उस वक्त तुम अशोक की फैमिली को खाना देना स्किप कर देते । वह तुम्हारा दोहरा इंतजाम था । सूटकेस के डीलर से तुम्हारे नाम के चार बिल मुझे मिल गए हैं और उसके बिल के आधार पर मैं साबित कर सकता हूँ कि तुम्हारा एक सूटकेस गायब है । ये सूटकेस तुमने पिछले ही महीने खरीदा है, दोस्त ! जब किसी का कत्ल करना हो, तो ब्रांडेड सामान वह भी बिल के साथ नहीं लेना चाहिए ।”

“क्या ऊलजलूल... बक रहे हैं... ओह सॉरी... कह रहें है ! आपकी इन बातों का मुझे तो कोई सिर-पैर नजर आता नहीं है ।”

“चलो, मान लिया । मेरी इन बातों का कोई सिर-पैर नहीं है ! चलो, एक बात बताओ । एमएलए रामचरण के रेस्ट हाउस में कैमरे लगाने का काम तुमने कब किया ?”

अविनाश चौधरी अब पहली बार हड़बड़ाया । उसने सवालिया नजरों से रणवीर की तरफ देखा ।

“इतने हैरान मत होओ । ये बातें छिपने की चीजें नहीं होती हैं । मैं जब रामचरण के रेस्ट हाउस में अपनी टीम के साथ गया था तो तुम्हारा विजिटिंग कार्ड वहाँ पर गेटकीपर की मेज पर रखा हुआ मिला था । तुमने वहाँ पर कैमरा लगाने के लिए पूरे घर में वाइरिंग की होगी । इसी दौरान तुम्हें मोहित गेरा की झलक वहाँ मिली, जो वहाँ छुपकर बैठा था । कैमरा लगाते हुए उनके रिकॉर्डिंग के लिए लॉग-इन और पासवर्ड तुमने सेट किए थे और जिनके बारे में वहाँ काम कर रहे गार्ड और दूसरे वर्कर्स को जानकारी तुमने दी होगी, जिनको बदलना उन लोगों के ख्याल में भी नहीं होगा । तुम्हें घर बैठे-बैठे वहाँ की सारी खबर मिलती रही । फिर तुम पंद्रह सितंबर की रात को उस रेस्ट हाउस की दीवार फांदकर दाखिल हुए । तुम्हें पता लग गया था कि नेपाली और दूसरे नौकर नीचे सोते थे । पीछे के दरवाजे की चिटकनी तुमने अंदर से हथौड़ी मारकर पहले ही बिगाड़ रखी थी । नौकरों को ये गलतफहमी थी कि बाहर गार्ड खड़ा है और विधायक का घर है । कौन यहाँ चोरी करने आएगा ! तुम रात को चुपके से वहाँ पहुँचे । नेपाली के पास से चाबियाँ ली और ऊपर का दरवाजा खोलकर गैस को खुला छोड़ दिया । उस रसोई में कमर्शियल सिलिंडर लगा हुआ था, जिसमें गैस कि मात्र ज्यादा होती है । मोहित किसी भी तरीके से बच न पाये, इसके लिए तुमने वहाँ स्टोर में पड़े गैस सिलिंडर को भी खोल दिया । जिसके कारण वहाँ इतना जबरदस्त धमाका हुआ कि अगर मैं सही वक्त पर अपने साथियों के साथ उस कमरे से बाहर छलांग न लगाता तो शायद हम भी उसकी चपेट में आ जाते । मोहित गेरा को तो ये भी पता नहीं चला कि वह क्यों मारा गया और किसके हाथों मारा गया ! तुमने मोहित को इस ढंग से मारा कि वरियाम सिंह की सात पुश्तों को अंदाजा नहीं हो सकता था कि वह मरा कैसे ?”

“आपका अनुमान कमाल का है, इंस्पेक्टर साहब ! जैसे मैं अकेला ही रहता हूँ और मेरे मकान मालिक को रात में मेरे आने-जाने का पता ही नहीं लगेगा ।”

“नहीं लगेगा । वह इसलिए कि तुम रात को आसानी से अनिकेत के घर से होते हुए बाहर निकल सकते हो । दोनों घरों की छतें मिलती हैं और उस घर की सीढ़ियाँ बाहर से ही नीचे जाती हैं ।”

अविनाश बड़े ढीठ भाव से मुस्कुराया और रणवीर से आँखें मिलाता हुआ बोला, “आपका भी जवाब नहीं, सर ! अब तो मुझे शक होने लगा है कि कहीं कातिल सच में मैं ही तो नहीं !”

“नहीं, कातिल तुम नहीं हो, अविनाश चौधरी ! तुम्हारे साथ रहने वाला कोई और है ।”

“कौन ? अशोक अंकल या उनका बेटा सन्नी ? क्या बात कर रहे हो, सर !”

“नहीं, इस कहानी का ये हिस्सा अभी बाकी है, मेरे दोस्त ! इस जगह, जिसे शमशान कहते हैं, की खूबी यह है कि यहाँ सबको अंत में अपने कर्मों से छुटकारा मिल जाता है । मैं भी आज यहाँ ऐसा ही कुछ छोड़ जाऊँगा, जिससे अपनी आत्मा पर बिना किसी बोझ जिंदगी की डगर पर मैं फिर से आगे बढ़ सकूँ ।”

अविनाश असमंजस के भाव लिए वहाँ लगे एक बेंच पर बैठ गया और रणवीर उसके सामने दूसरे बेंच पर बैठ गया । रणवीर ने फिर से आगे बोलना जारी रखा, “संत नगर में संजय बंसल का घर है, जहाँ मैं मोहित गेरा की तलाश में पहुँचा था, लेकिन वह मुझे नहीं मिला । पर इत्तेफाक से मुझे कुछ सबूत वहाँ पर मिले और इस कहानी का एक ऐसा सिरा मेरे हाथ लगा, जिसका मुझे सपने में भी गुमान नहीं था । मुझे इत्तेफाक से उस इलाके से एक गटर से बुरी तरह से सड़ी हुई लाश मिली, जो एक लड़की की थी । वह लाश किसकी थी ? किसी को नहीं पता ! उसकी कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं । मुझे याद आता है कि किसी ने कभी कहा था, जो चुप रहेगी जुबाने-खंजर, लहू पुकारेगा आस्तीन का ।

“संजय बंसल के घर पर कोई जिस्म तो न थे, पर वहाँ पर हुए एक गुनाह को उन जिस्मों से निकले लहू ने चीख-चीखकर सब कुछ बयान कर दिया, जिस गुनाह के नामोनिशान मिटाने की पुरजोर कोशिश उन लड़कों ने की थी ।

“संजय बंसल के घर पर फरवरी के महीने में उन हवस के पुजारियों ने अपने बाप के रुतबे और दौलत के नशे में और अपना जब्र कायम रखने के लिए उस लड़की की हत्या कर दी । उस का कसूर सिर्फ ये था कि वह अपने भाई की तलाश में वहाँ पहुँच गई थी और खुद भी मौत के जाल में जा फँसी । वह लड़की मरते मर गई, पर उसी कमरे में मौजूद अपने घायल भाई की जिंदगी की भीख माँगती रही । वह घायल भाई अक्षत वर्मा था और वह लड़की थी रूपाली । जब उन रईसजादों के जुल्म की इंतहा उस मासूम से सहन नहीं हुई तो, अविनाश चौधरी, वो मासूम लड़की अपने भाई को सही-सलामत देखने की हसरत लिए हुए इस दुनिया को छोड़कर चली गई । वह लड़के जो इस गुनाह में शामिल थे, वह थे गौरव कालिया, संजय बंसल, अनिकेत और मोहित गेरा ।

“अक्षत वर्मा ‘महक फार्महाउस’ का मैनेजर था । उसे वहाँ के स्टोर हाउस का काम भी संभालना पड़ता था । वह एक सीधा-साधा पढ़ा-लिखा आदमी था; लेकिन जब उसे स्टोर हाउस में ड्रग्स के रखे जाने की बात पता चली तो वह इस बात को दबाने या भूल जाने के लिए तैयार नहीं हुआ । कागजों के अनुसार वह वहाँ मैनेजर था और इस नाते इस सारे गोरखधंधे की जिम्मेवारी उस पर थोपी जा सकती थी । इसी बात पर उसका और रोहित का झगड़ा हुआ । रोहित ने अनिकेत को फोन कर दिया, जो उस सारे जखीरे को वहाँ से आगे सप्लाई करता था । वह गौरव के साथ वहाँ आया और उन तीनों ने अक्षत को मार-मारकर अधमरा कर दिया । उसके बाद गौरव कालिया और अनिकेत उसे ‘महक फार्महाउस’ से उठाकर संत नगर में संजय बंसल के घर ले गए, जहाँ पर उसे बंदी बनाकर रखा गया । जब वह अगले दिन शाम तक अपने घर नहीं पहुँचा तो उसके पिता सब जगह उसे ढूँढ़ने के बाद रात को रूपाली के साथ पुलिस स्टेशन पहुँचे । वहाँ वरियाम सिंह को, मार्फत मोहित गेरा, पहले ही अक्षत के संत नगर में मौजूद होने की सूचना थी । वह लोग अब अक्षत से छुटकारा पाना चाहते थे । वरियाम सिंह धोखे से रूपाली और रूप कुमार को संत नगर ले गया । हालांकि वह कह रहा था कि रूपाली उसका पीछा करते वहाँ पहुँची । लेकिन वह एक नम्बर का हरामी था । वह जरूर उन दोनों को बहकाकर अपने साथ ले गया होगा । वहाँ वरियाम सिंह ने रूप कुमार को धोखे से बेहोश कर दिया और नीचे के कमरों में उसे बंद कर दिया । शराब और नशे के अंधकार में डूबे वह चारों दरिंदे रूपाली पर उसका काल बन टूट पड़े और वरियाम सिंह भी नशे की झोंक में इस कुकर्म में शामिल हो गया । मुफ्त की शराब और पराई अस्मत का शैदाई तो वह सदा से ही था ।”

“तो आप ये सारी कहानी रूप कुमार अंकल को बताते, जो बेचारे पागलों की तरह दीवार पर सिर पटक-पटककर जीते रहे । कम-से-कम उन्हें इस बात का पता तो चल जाता कि उनके परिवार पर क्या बीती थी ! लेकिन आपकी इस कहानी को मुझे सुनाने से क्या फायदा ? उस आदमी को इंसाफ तो न मिला !”

“हाँ, अभी तक तो इस कहानी में ऐसा नहीं हुआ । आगे सुनोगे तो शायद इसका भी जवाब मिले तुम्हें । यहाँ पर कहानी में आता है अविनाश चौधरी ।”

“मैं ! आप इंस्पेक्टर साहब फिर वही आलाप गाने लगे । हे भगवान ! काश, मैं आज यहाँ न आता !”

“हा... हा... हा । परेशान हो गए अविनाश चौधरी ! अब तुम अपना किस्सा सुनो । अविनाश चौधरी, तुम और अक्षत वर्मा बचपन के दोस्त थे । दोनों का बचपन एक-दूसरे के घर पर बीता । तुम्हारे माँ-बाप के मर जाने के बाद अक्षत के माँ-बाप ने तुम्हें कभी उनकी कमी खलने नहीं दी । उस दिन जब रूप कुमार और रूपाली थाने की तरफ गए, तुम भी उन्हें ढूँढ़ते हुए पहले थाने और फिर संत नगर पहुँचे । जब तक तुम संजय बंसल के घर पहुँचे, तब तक रूपाली के प्राण-पखेरू उड़ चुके थे । उन चारों दरिंदों के माथे पर कोई शिकन नहीं थी । वरियाम सिंह के कहने पर वह लोग उस रात को उस मासूम लड़की के शव को वहीं गली के मोड़ पर गटर में डालने के लिए ले गए । अक्षत की मौत दुर्घटना लगे, इसके लिए मोहित गेरा ने वहाँ के गैस सिलिंडर को खुला छोड़ दिया और मेन-स्विच को बंद कर दिया, ताकि कुछ समय के बाद जब अक्षत होश में आकर अपनी बहन को ढूँढने के लिए कोई माचिस जलाए या वहाँ का मेन-स्विच ऑन करें तो कमर में स्पर्किंग हो और आग लगने से अक्षत वर्मा वहीं मारा जाये और ये एक दुर्घटना लगे; लेकिन जो उन चारों ने और वरियाम सिंह ने सोचा था, वह नहीं हुआ ।

“जिस वक्त वह सारे रूपाली की लाश ठिकाने लगाने गये हुए थे, उसी वक्त अविनाश चौधरी अपने दोस्त को बचाने के लिए ताला तोड़कर कमरे में घुसा । अंधेरे में उसे एक जिस्म पड़ा दिखाई दिया और उसने जैसे ही रोशनी के लिए लाइटर या माचिस जलायी... बूम । एक धमाका और वरियाम सिंह की योजना सिरे चढ़ जाती है । लेकिन तुम बच जाते हो । वरियाम सिंह, अक्षत वर्मा की उस जली हुई लाश को एक जगह खुद फिकवाकर आता है और फिर बाद में उसे वहाँ से बरामद हुई दिखाता है । रूप कुमार वर्मा पहले ही अपनी औलाद के ग़म में हिला हुआ था । उस जली हुई लाश को देखकर वह अपना दिमागी संतुलन खो बैठता है । वह जगह पता है कौन-सी थी, अविनाश चौधरी ! जहाँ हमें गौरव कालिया की लाश मिली थी ।

“और फिर शुरू होता है अविनाश चौधरी, तुम्हारे इंतकाम का सिलसिला । जिसने जैसा कर्म किया था, वह ठीक वैसे ही मरा । अनिकेत, रोहित गेरा और गौरव कालिया ने अक्षत को मार-मारकर अधमरा किया । अधमरे होकर ही गौरव, रोहित और संजय बंसल मरे । गौरव कालिया की लाश बिलकुल उसी जगह मिली, जहाँ अक्षत वर्मा की लाश मिली थी । अनिकेत ने अक्षत पर जुल्म ढाये, वह उसी तरह जुल्म सहता हुआ मारा गया । अक्षत के लिए मोहित ने जलती हुई मौत का सामना किया था, वह खुद भी एक धधकती हुई मौत मारा गया । बाकी बचा इंस्पेक्टर वरियाम सिंह, उसे उसकी करनी की सजा देने के लिए उसे किसी पागल कुत्ते की तरह शूट कर दिया गया । वह उन दोनों मज़लूमों की मौत के वक्त भी नशे में था और जब खुद मरा तो भी नशे में था ।”

“इसका मतलब अक्षत वर्मा के परिवार के हौलनाक अंजाम का मैंने बदला लिया । उसके दोस्त होने का फर्ज निभाया मैंने । क्या फिल्मी स्टोरी सुना रहे हो आप !”

“हाँ । तुम कुछ भी कह सकते हो । फिल्मी स्टोरी या वेब स्टोरी । लेकिन इस कहानी में दोस्ती का फर्ज खूब अदा किया गया और क्या खूब दोस्ती निभाई है तुमने । लेकिन वह परिवार तुम्हारे दोस्त का नहीं था । वह तुम्हारा परिवार था, अक्षत वर्मा !”

“वही तो मैं कह रहा हूँ । आपके हिसाब से मैंने अपने दोस्त अक्षत वर्मा के परिवार की मौत का बदला लिया ।”

“नहीं, मैं ये कह रहा हूँ अक्षत वर्मा कि तुमने अपने पिता, अपनी बहन रूपाली, अपनी माँ और अपने दोस्त अविनाश चौधरी की मौत का बदला उन चारों से बिलकुल उसी तरह से लिया जैसे उन्होंने तुम्हारे अपनों की जान ली थी ।”

वह हकबकाया और अपलक रणवीर कालीरमण की ओर देखने लगा । पहली बार उसने रुमाल निकालकर अपना पसीना पोंछा ।

“क्यों, मैंने सही कहा न अक्षत वर्मा !”

“ये तो आप पहले वाली थ्योरी से भी दूर की कौड़ी ले आए, इंस्पेक्टर साहब ! ये सब आपके दिमाग की कोरी कल्पना है और आपके भन्नाये हुए दिमाग की उपज है, जो शायद थाने की पोस्टिंग से हटाये जाने के कारण से अपनी पटरी से उतर गया है ।”

“मैं जो बात कह रहा हूँ, उसके पुख्ता सबूत हैं मेरे पास, मेरे दोस्त ! तुम जो ये ढिठाई मुझे दिखा रहे हो न, ये तुम्हारे लड़कपन की निशानी है । जो कुछ तुम करके बच निकलने में कामयाब हो गए हो, अब उस पर इतरा रहे हो तुम । मेरा नाम रणवीर कालीरमण है । जब मैं अपनी चाल चलता हूँ तो सारी बिसात मेरी मुट्ठी में होती है । मैं सिर्फ हवा में बातें नहीं करता । बेशक, मैं अब इस इलाके का एसएचओ नहीं हूँ लेकिन इन सबूतों के आधार पर तुम्हें अभी भी सलाखों के पीछे भेज सकता हूँ, एक ज़िम्मेवार नागरिक के तौर पर ।

खैर, छोड़ो । आगे क्या हुआ, वह तो सुनो । तुम्हारे लिए सब झूठ ही सही ।”

“मैं अविनाश चौधरी हूँ । इस बात को आप क्यों नहीं समझ रहे हैं और खामख्वाह एक झूठी कहानी गढ़कर मेरे पीछे पड़ गए हैं ।” अविनाश चौधरी कलपता हुआ बोला ।

“जो बात रूपाली और अक्षत के बारे में मैंने तुम्हें बताई हैं, वह सारी बातें मुझे मरहूम वरियाम सिंह ने अपने इक़बालिया बयान में बताई है, जब वह शराब पीकर मदहोश था । तुम्हारी जानकारी के किए बता दूँ कि उस दिन की वह रिकॉर्डिंग मेरे पास मौजूद है, जिसमें वह अपना गुनाह कबूल कर रहा है । बेशक वह मेरा मोबाइल चेक करता रहा हो, लेकिन कुछ दाँव मैं अपने पास रखता हूँ । उस दिन, फरवरी में, संत नगर में संजय बंसल के घर गैस सिलिंडर के विस्फोट में जो आदमी मारा गया, वह अविनाश चौधरी था । अक्षत वर्मा उसके नीचे दबने की वजह से उस विस्फोट में बच गया । मरने से पहले अविनाश चौधरी अपने दोस्त अक्षत को किसी तरह आजाद करने में कामयाब हो गया । अपने दिल पर पत्थर रखकर उस जगह से अक्षत वर्मा गिरता-पड़ता बाहर निकल गया । तुम लोगों का एक दोस्त है, रजत अवस्थी । वह उन दिनों तुमसे मिलने यहाँ प्रेम नगर में आया हुआ था । रजत अवस्थी को तो जानते होंगे न तुम या अविनाश चौधरी बनकर उसे भी भूल गए ।”

“रजत अवस्थी मेरा भी दोस्त है । अक्षत, मैंने और रजत ने स्कूल तक की पढ़ाई साथ-साथ की है ।”

“चलो, मेरी कोई बात तो मानी तुमने । मेट्रिक तक तुम लोग साथ रहे लेकिन रजत उसके बाद तुम लोगों से दूर दिल्ली चला गया । पिछले दस सालों में उसके पिता जयकान्त अवस्थी अरबपति बन चुके हैं और वह आदमी अब आसमान की बुलंदी पर है । उस रात अक्षत वर्मा, रजत अवस्थी को मिलने में कामयाब हो गया । रजत अपने दोस्त अक्षत की जान बचाने के लिए उसको अपनी गाड़ी से दिल्ली ले गया । फिर वह अपने पिता जयकान्त अवस्थी के चार्टेड प्लेन से अक्षत वर्मा को अपने साथ मुंबई ले गया और अपने विशाल हॉस्पिटल ‘जय इंटरनेशनल’ में दाखिल कर दिया । अक्षत ने रजत को अपनी जान की दुहाई दी कि अक्षत के रूप में वह कभी प्रेम नगर नहीं आ पाएगा । रजत अवस्थी ने दोस्ती की खातिर तुम्हें अविनाश चौधरी के नाम से दोबारा अपने हॉस्पिटल में दाखिल किया और उसे रिकॉर्ड में दिखाया । उस हॉस्पिटल में उन दो दिनों का कोई जनरल ओपीडी का रिकॉर्ड नहीं है, जब वहाँ अक्षत वर्मा दाखिल था । ये तो तुम्हें पता ही होगा, रजत अवस्थी इस वक्त पूरे एशिया का माना हुआ प्लास्टिक सर्जन है । रजत अवस्थी ने अपने एक दोस्त की जान बचाने के लिए उसे दूसरे दोस्त की शक्ल दे दी । इस पूरे प्रकरण में काफी वक्त लगा । कई ऑपरेशन हुए । तुम्हारे चेहरे और जबड़े की हड्डियों की आकृति अविनाश चौधरी जैसी बनायी गई और स्किन ग्राफ्टिंग और सिलिकॉन प्लांटिंग के कारण तुम्हारा चेहरे ने अविनाश चौधरी के चेहरे की जगह ले ली । तुम पूरी तरह से ठीक होने के बाद वापिस इस जगह आ गए और फिर तुमने अपने इंतकाम को परवान चढ़ाना शुरू किया । इस मकान को तुमने सबसे पहले एडवांस किराया देकर बुक कर लिया जो तुम्हारी योजना का अहम हिस्सा था ।”

“इंस्पेक्टर साहब, जो घटना आप संत नगर में रूपाली और अक्षत वर्मा के साथ घटी हुई बता रहे हैं, वैसी जरूर हुई होगी... लेकिन मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता । मैं रजत अवस्थी के हॉस्पिटल में दाखिल जरूर रहा हूँ लेकिन मेरे जबड़े की माँसपेशियों के ऑपरेशन के लिए, किसी प्लास्टिक सर्जरी के लिए नहीं ।”

“तो तुम्हारे उस ऑपरेशन में तीन महीने लग गए ?”

“उस इलाज के दौरान बीच में मुझे पलमोनरी इन्फ़ैकशन हो गया था, जिसके कारण मुझे रिकवर होने में इतना वक्त लगा ।”

“चलो, तुमने ये तो माना कि तुम रजत अवस्थी के पास तीन महीने ‘जय इंटरनेशनल’ में एडमिट रहे । यहाँ पर वह चारों लड़के और वरियाम सिंह अपनी ताकत के मद में चूर होकर अपनी आने वाली मौत से गाफिल रहे । उनके हिसाब से वह अपने गुनाहों के सारे निशान मिटा चुके थे । उन्हें पता नहीं था कि उनकी मौत अपना रूप बदल चुकी थी और अविनाश चौधरी के रूप में उन पर कहर बनकर टूटने वाली थी । उन्हें अंतिम साँस तक ये पता नहीं चला कि वह मरे तो मरे कैसे और किसके हाथों मरे ।”

“ये सब बातें मैं पहले भी कह चुका हूँ कि ये सिर्फ आपकी कल्पना की उड़ान है । आप बेसिर-पैर की एक कहानी बुन रहे हैं, जिसका कोई वजूद नहीं और कोई बुनियाद नहीं है ।”

उसकी बातों को नजरंदाज करते हुए रणवीर ने आगे बोलना जारी रखा, “अविनाश चौधरी एक सिविल इंजीनियरिंग का डिग्री होल्डर था; लेकिन अब वह कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर का काम, डाटा रिकवरी का काम और कैमरा इंस्टालेशन का काम करता है । तुम्हें कुछ अजीब नहीं लगता । अनिकेत की ई-मेल हैक की गई और इसका शक गया मोहित गेरा पर । अक्षत वर्मा कम्प्यूटर इंजीनियर था और कम्प्यूटर हैकिंग में उसका कोई मुक़ाबला नहीं था । ऐसा उसके दोस्त बताते हैं और तुम्हारे घर में इन सब चीजों का सामान पड़ा है ।”

“अब मेरे फील्ड में मुझे नौकरी नहीं मिली तो क्या भूखा मर जाऊँ मैं ? आज कल कोई भी आदमी ऑनलाइन सब कुछ सीख सकता है । मैंने इन सब चीजों के कोर्स ऑनलाइन कर रखे हैं । ये तो कोई बात नहीं हुई कि मैं कम्प्यूटर का होल-सेल बिजनेस करता हूँ तो इलाके में होने वाले सारे साइबर क्राइम का मैं ज़िम्मेवार हो गया ।”

“ये बात भी तुम्हारी सही है । ऑनलाइन सीखकर सारे लोग इतने परफेक्ट कम्प्यूटर हैकर बन जाते तो आज हिंदुस्तान या विश्व में कोई भी कम्प्यूटर सुरक्षित न बचा होता और हम लोग अब तक पागल हो गए होते । वरियाम सिंह को पाँच सौ मीटर की दूरी से बिलकुल सटीक निशाने से गोली मारी गई है जो सीधी उसके दिल और फेफड़ों को चीरती निकल गई । तीसरी गोली ने उसका भेजा उड़ा दिया । इतना शानदार निशाना तो कोई टॉप का निशानेबाज ही लगा सकता है । अविनाश चौधरी के पास ऐसी कुव्वत नहीं थी । लेकिन अक्षत वर्मा के नेशनल लेवल का टॉप का निशानेबाज था । इस बात के सबूत के तौर पर अक्षत वर्मा के सर्टिफिकेट हैं मेरे पास, जो मेरी इस बात को साबित करते हैं । तुम्हें तो ये सब पता ही होगा, अक्षत वर्मा ! ये भी पता होगा कि अविनाश चौधरी तो बच्चों की डार्ट से भी सही निशाना नहीं लगा सकता था ।”

“ये तो आप अच्छी ही बात बता रहे हैं इंस्पेक्टर साहब ! मैं अविनाश चौधरी हूँ और वरियाम चौधरी के भेजे को कैसे उड़ा सकता हूँ । मेरा तो निशाना बड़ा खराब है । अभी आपने कहा कि डार्ट से भी मेरा निशाना नहीं लगता ।”

रणवीर ने बड़ी मुश्किल से अपने आप पर काबू रखा । वह लड़का भूल रहा था कि वह इस वक्त शमशान में खड़ा था । अगर कहीं इस वक्त वह उसकी हिरासत में होता तो उसकी ये हिमाकत नहीं होती । फिर भी अपने आपको काबू में रखकर वह आगे बोला –“जब मैंने संत नगर के गटर से उस लड़की की लाश बरामद की तो मैं बिलकुल अंधेरे में था । मेरे दोस्त वेदपाल ने वहाँ से सबूतों के तौर पर ब्लड सैंपल ढूँढ़ निकाले । मुझे उम्मीद थी कि हो-न-हो ये ब्लड सैंपल उस लाश से डीएनए टेस्ट में मिल जाएँगे । वहाँ पर उसे दो ब्लड सैंपल मिले, जो एक-दूसरे से संबन्धित थे । अखबार में रूप कुमार की शमशेर गेरा के साथ हाथापाई की खबर देखकर मैंने अंधेरे में तीर चलाया जो सही निशाने पर बैठा । जब उसके सिर पर चोट लगी थी तो मैंने अपने रूमाल का इस्तेमाल किया था । न जाने क्या सोचकर मैंने वह रूमाल भी वेदपाल के पास डीएनए टेस्ट के लिए भेजा । वह रिपोर्ट मेरे लिए तुक्का साबित हुई जो असल में तीर बन गई । रूप कुमार का डीएनए संत नगर के मकान के दोनों ब्लड सैंपल से मेल खा गया । वहाँ पर जो हत्याकांड हुआ था, उसका शिकार निर्विवाद रूप से रूप कुमार का लड़का अक्षत और लड़की रूपाली हुए थे ।

“तुम्हारे ‘मिलन रेस्टोरेंट’ की हरकत से मेरा ध्यान तुम्हारी तरफ गया । फिर दीवारों की रगड़ के निशान और अविनाश के घर की तलाशी से मुझे सारे कागजात मिले । वहीं मुझे तुम्हारी ‘जय इंटरनेशनल’ की फाइल मिली । इसी बीच में मैं पाँच दिन की छुट्टी लेकर, अपनी पत्नी को उसके मायके छोड़ तुम्हारे दोस्त डॉक्टर रजत अवस्थी से मिला । वह तुम्हारा पक्का दोस्त है और वफादार भी । उसने अपने रिकॉर्ड अविनाश चौधरी के रूप में फूलप्रूफ और सिक्काबंद बना रखे हैं; लेकिन डॉक्टर रजत अवस्थी ये शायद नहीं जानता है कि तुम्हारा मेडिकल चेकअप इस बात को छुपा नहीं पाएगा । तुम्हारे कॉलेज का एनसीसी रिकॉर्ड अक्षत वर्मा का कद छः फुट एक इंच बताता है और अविनाश चौधरी का कद पाँच फुट आठ इंच । यानी अगर तुम अविनाश चौधरी हो तो तुम्हारा कद पाँच फुट आठ इंच होना चाहिए; लेकिन तुम तो मेरे बराबर आ रहे हो और मेरा कद छह फुट दो इंच है । बरखुरदार, प्लास्टिक सर्जरी में तुम अपनी टाँगों की लंबाई घटवाना भूल गए ।

“तुम लोगों को ये नहीं पता कि तुम्हारा दोस्त डॉक्टर रजत अवस्थी और तुम ‘पोलीग्राफिक टेस्ट’ नहीं झेल पाओगे और तुम्हारा झूठ पकड़ा जाएगा । और सुनो, जब पिछली बार तुम रूप कुमार वर्मा को हॉस्पिटल में दाखिल करवाने के चक्कर में मुझे अपने मकान मालिक अशोक के साथ चाय पीने के लिए अकेला छोड़ गए थे, उस दिन मैं तुम्हारे बाथरूम में गया था और वहाँ से तुम्हारा टूथब्रश और नहाते वक्त तुम्हारे सिर से टूटे बालों का गुच्छा उठा लाया था । तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ कि उससे लिया गया डीएनए सैंपल अक्षत वर्मा के डीएनए से हंडरेड परसेंट मैच करता है जो हमारे मेडिकल रिकॉर्ड में मौजूद है । इस बात को संसार की कोई अदालत नहीं नकार सकती और ये तथ्य निर्विवाद रूप से साबित करता है, मेरे बच्चे, कि तुम अक्षत वर्मा हो... अविनाश चौधरी नहीं ।”

वह अब चुप था और उसे अब काटो तो खून नहीं । उसकी निगाहें अब लगातार वरियाम सिंह की चिता की ओर लगी थी । उसकी आँखों से जैसे लहू बरस रहा था । वरियाम सिंह की चिता के जलते अंगारों पर अब राख जमने लगी थी ।

रणवीर ने उसकी डीएनए रिपोर्ट के वह सारे कागजात उसके सामने रख दिए । अब उसके चेहरे से वह कोमलता गायब होती जा रही थी और उसके बदले दुनिया को खाक कर देने के भाव उसके चेहरे पर जगह लेते जा रहे थे । कुछ समय बाद वह क्रोध और इंतकाम के धधकते ज्वालामुखी की तरह दिखाई देने लगा । फिर वह रणवीर की तरफ देखकर बोला –“मेरा मोहित गेरा का मारने का कोई इरादा नहीं था । मैं चाहता था कि वह गौरव कालिया, संजय बंसल और अनिकेत की हत्या के इल्जाम में सलाखों के पीछे जाए और उस गुनाह की सजा में तिल-तिलकर मरे । जब तक आप यहाँ के इंचार्ज थे, मुझे उम्मीद थी कि वह देर-सवेर पकड़ा जाएगा । लेकिन एसपी प्रभात जोशी के ट्रान्सफर के बाद मुझे दाल में काला लगने लगा । वरियाम सिंह के इस थाने में वापिस आने का मकसद मैं समझ गया था । मैंने उसके ऑफिस में माइक्रोफोन फिट कर रखे थे । उनसे मुझे पता चल गया था कि उसने आपके द्वारा इकट्ठे किए सारे सबूत, जिससे मोहित गेरा गुनहगार साबित होता था, मिटा दिए थे । रूपाली को जान से मार देने के लिए उन चारों को उकसाने में उसका ही हाथ था और मैं उस वक्त कुछ न कर सका । इत्तेफाक से मोहित मुझे रामचरण के रेस्ट हाउस में दिखाई दे गया । मैं अपने आपको रोक नहीं पाया और मैंने उसे वहीं जलती हुई मौत दी जो उसने मेरे लिए सोची थी । वरियाम सिंह के कहने पर मोहित और उसके दोस्तों ने मुझे जलाकर मारना चाहा पर बदकिस्मती से मेरा जिगरी यार अविनाश चौधरी उसकी लपेट में आ गया और मेरी आई मौत मारा गया । वरियाम सिंह को मारना मेरा आखिरी कदम था । इस कहानी को कोई दूसरा आदमी कभी समझ नहीं पाता अगर आप नहीं होते । जिस तरह से वरियाम सिंह हर तरह के जरायम पेशा लोगों के लिए गलत काम करता था, उसके कारण उसके बहुत से दुश्मन थे । वह नया इंवेस्टिगेटिंग ऑफिसर कभी भी इस तरह न सोच पाता जैसा आपने सोचा । वह लोग तो यही सोचते कि उसके जरायमपेशा दुश्मनों में से किसी खुंदक खाये इंसान ने उसका काम तमाम कर दिया ।” इतना कहकर उसने अपनी सारी रिपोर्ट रणवीर को वापिस दे दी ।

“अब क्या आप मुझे गिरफ्तार करवाने वाले हैं ? मैंने गुनाह किया जरूर है पर मैं अपनी नजरों में गुनहगार नहीं हूँ ।” वह बोला ।

“सही कहा तुमने । कानून अंधा होता है, लेकिन उसे वरियाम सिंह जैसे धूर्त और ताकतवर लोग उसे बहरा भी बना देते हैं । वह तो सबूत तौलता है, बिना किसी भेदभाव के और निष्पक्ष रूप से, लेकिन अब सबूत ही गलत दिये जाएँगे या मिटा दिये जाएँगे तो इंसाफ कहाँ से होगा ! तुम्हारे और रूपाली के मामले में कोई रपट तक दर्ज नहीं हुई तो इसमें कानून क्या करता ! लेकिन तुम्हें कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए था ।”

“तो आप बताएँ, उन लोगों को उनके गुनाहों की सजा कैसे मिलती ? वह तो अब भी उसी रास्ते पर चल रहे थे । मेरे लिए आपने जो सोचा है, मैं उसके लिए तैयार हूँ ।” उसने सवाल किया ।

“मेरे दोस्त, डॉक्टर नवनीत ने कहा था कि जब इस लड़की के गुनाहगार मिल जाएँ तो एक गोली उन्हें मैं उनकी तरफ से भी मार दूँ, पर ऐसा हो न सका । मुझे इस बात की संतुष्टि है कि मैं इस मामले को कम-से-कम अपनी संतुष्टि के लिए सुलझा सका । लेकिन अब मैं यहाँ का एसएचओ भी नहीं और सबूत सारे बदले जा चुके है तो इन कागजों का इस मामले से कोई संबंध नहीं रहा ।”

ये कहकर रणवीर ने कागजों का वह पुलिंदा वरियाम सिंह की चिता के अंगारों के हवाले कर दिया । कुछ राख आसमान तक उड़ी और एक भभके के साथ वह सारे कागज स्वाहा हो गए ।

“अब तुम जा सकते हो अविनाश चौधरी ! रूप कुमार के जाने के साथ तुम्हारा अक्षत वर्मा के साथ आखिरी नाता भी टूट गया । तुम्हारे, रूपाली और रूप कुमार के रिश्ते को अब इस दुनिया में कोई जोड़ नहीं पाएगा । तुम आजाद हो ।”

रणवीर ने उसकी तरफ देखा और फिर वहाँ से बाहर निकल गया । अविनाश भी रूप कुमार की अस्थियाँ लिए उसके पीछे-पीछे शमशान से बाहर चला आया । अब उसकी जिंदगी उसे कहाँ ले जाती है, उसे खुद भी नहीं पता था । ‘अक्षत’ अब अविनाश से दूर पीछे कहीं छूट गया था, जहाँ औघड़दानी अविनाशी के मंत्र हवा में गूँज रहे थे – ॐ त्रयंबकम यजामहे ।

समाप्त