-"कौन था अंकल?''
"ब्लैक डायमंड | "
-"यह कौन है अंकल?"
." पता नहीं कौन था, अपने-आप ही लड़ाई-भिड़ाई के बीच कहता था कि यार लोग उसे ब्लैक डायमंड कहते हैं। " फिर कहते-कहते विजय को जैसे एकदम ध्यान आया कि वह किससे बातें कर रहा है। वह एकदम अकड़कर बोला-----"अबे ओ दिलजले, लेकिन तुम्हें इन सब बातों से क्या मतलब ?"
'कुछ नहीं अंकल!" विकास इस प्रकार बोला, मानो संसार में उससे अधिक भोला कोई अन्य न होगा----''इस चाकू पर यह कागज लिपटा हुआ था।"
विजय ने झपटकर कागज विकास के हाथों से ले लिया और फिर एक ही सांस में सारा पढ़ गया। पढ़ते-पढ़ते कई प्रकार के भाव उसके चेहरे पर आए और गए। उसे पढ़कर विजय विकास से वहीं रुकने के लिए कहकर अंदर वाले कमरे में चला गया, किंतु ये शैतान भला इतना शरीफ कहां था ! विकास भी चुपके-से दबे पांव उसके पीछे लपका, किंतु विजय ने कमरा अंदर से बोल्ट कर लिया था। विकास ने की-होल में झांककर देखा तो अपने अंकल को फोन पर किसी से बातें करता पाया। विकास यह तो न सुन सका कि उसके अंकल फोन पर किससे और क्या बातें कर रहे हैं, किंतु उसे इस समय अपने अंकल बड़े रहस्यमय लग रहे थे।
क्षितिज पर डूबते सूर्य की अंतिम लालिमा भी सिसक-सिसककर दम तोड़ने जा रही थी। और विजय का विमान इस समय हिंद महासागर के पूर्वी किनारे के ऊपर लहरा रहा था। वह इस समय चालक सीट पर विराजमान था। अपनी ओर से वह अकेला ही इस अभियान पर निकला था। इस यात्रा पर चले उसे दो घंटे हो चुके थे।
ब्लैक डायमंड नाम के किसी व्यक्ति को वह नहीं जानता था ----परंतु फिर भी उस पत्र पर अमल करने के अतिरिक्त कोई चारा न था। अत: उसने तुरंत फोन पर ब्लैक ब्वॉय से एक विशेष विमान का प्रबंध करने के लिए कहा था। और परिणामस्वरूप इस समय वह अपने लक्ष्य के काफी निकट था।
विकास को उसने बड़ी सफाई से अपनी कोठी से टाल दिया था। इस अभियान पर वह पूर्णतया लैस होकर चला था।
वह विमान-चालन करता हुआ ही अपने नीचे फैले हिंद महासागर को देख रहा था कि वह एकाएक बुरी तरह चौक पड़ा।
एकाएक एक जोरदार धमाका हुआ और साथ ही विमान को एक अत्यधिक तीव्र झटका लगा।
विमान घायल पक्षी की भांति बुरी तरह लहरा गया।
विजय के मस्तिष्क में खतरे की घंटियां बजने लगीं। उसने महसूस किया कि विमान के छिछले भाग में आग लग चुकी है। विजय की समझ में नहीं आया कि यह सब क्यों और कैसे हो गया। उसने महसूस किया कि आग की लपटें लपलपाकर समूचे विमान को अपने आगोश में लेना चाहती हैं।
विजय जान गया कि यह अचानक ही भयानक खतरा आ
गया है। अभी विजय कुछ सोच ही रहा था कि वह पहले से अधिक बुरी तरह चौंक पड़ा। इस बुरी तरह, मानो उसने हिमालय पर्वत को वायु में तैरते देखा हो! उसकी आंखों से हैरत झांकने लगी। उसे ऐसा लगा कि वह अंतरिक्ष में उड़ता जा रहा था।
उसने फिर कान लगाकर उस आवाज को सुनना चाहा।
''अंकल... अंकल, मुझे बचाइए।" और विजय की खोपड़ी इस आवाज को सुनकर मानो वायु में चकरा रही थी ।
यह आवाज शत-प्रतिशत विकास की थी---- जो इस समय उसे पुकार रहा था।
विजय पहले तो यही सोचकर चकरा गया कि यह खतरनाक शैतान विमान में कैसे आ गया?
परंतु यह सोचने में उसने अधिक समय व्यर्थ नहीं किया, क्योंकि समय ऐसा नहीं था। विकास की आवाज उसके कानों में अभी तक पड़ रही थी।
विजय की आंखें दहककर लाल हो गई। विकास की घबराई हुई आवाज बता रही थी कि वह किसी खतरे में है और दूसरी बात यह कि आवाज उधर ही से आ रही थी, जिधर विमान में आग लगी हुई थी। विकास को इस परेशानी में देखकर वह भूल गया कि वह यहां कैसे आया, बल्कि विजय खतरनाक हो उठा। विकास द्वारा अंकल अंकल की आवाजें अभी तक उसके कानों में पड़ रही थीं। कॉकपिट में धुआं भरने लगा था। विमान किसी घायल पक्षी की भांति लहरा रहा था ।
- लपलपाती हुई आग क्षण प्रतिक्षण समूचे विमान को घेरती जा रही थी ।
अचानक विजय ने चालक सीट छोड़ दी और विमान के पीछे लपलपाती हुई आग की लपटों की ओर लपका, विमान अब चालकरहित था। अत: बुरी तरह वायु में लड़खड़ाता हुआ सागर से टकराने जा रहा था।
चाचा-भतीजे भयानक खतरे के शिकार थे।
आग से बचता हुआ वह उस कक्ष में पहुंचा, जिसमें से विकास की आवाज आ रही थी। आग की लपटें चारों ओर फैली हुई थीं। विकास जोर से उस कक्ष का दरवाजा पीट रहा था और निरंतर अंकल... अंकल चीख रहा था। विजय ने स्वयं को आग से बचाते हुए झपटकर दरवाजा खोल दिया, जो बाहर से बंद था।
दरवाजा खुलते ही विजय एकदम पीछे हट गया, लपलपाती हुई आग ने एक झटके के साथ उसे अपने आगोश में लेना चाहा था, धुएं का गुब्बार एकदम बाहर आया। वास्तव में अगर विजय एक झटके के साथ पीछे न हट गया होता तो वह आग की लपटों में घिर जाता।
और अगले ही पल उसने जो दृश्य देखा, उसे देखकर उसकी आंखें हैरत से फैल गई। एक बार फिर वह इस खतरनाक शैतान को देखकर आश्चर्यचकित रह गया।
विकास आग की लपटों और गाढ़े काले धुएं के बीच किसी भयानक शैतान की भांति लहराकर बाहर आया। विजय ने देखा कि वह कमरा, जिसमें कि विकास था, गहरे धुएं और आग की लपटों से भरा हुआ है। विकास वायु में लहराता हुआ कमरे के बाहर फर्श पर आकर गिरा। विजय ने देखा कि उस सुंदर शैतान के जिस्म पर वही सफेद कपड़े थे जो अब बुरी तरह गंदे हो चुके थे, कहीं-कहीं से फट भी गए थे।
वह शैतान पलक झपकते ही उछलकर खड़ा हो गया।
विजय उस शैतान को देखता ही रह गया । विकास के मासूम और प्यारे चेहरे पर विचित्र - सी शैतानियत के भाव थे।
तभी विकास ने विजय की ओर देखकर आंख मार दी।
उफ! ये चाचा-भतीजे! कितने खौफनाक!
इस खतरनाक शैतान के इस भयानक खतरे में घिरे होने के बावजूद आंख मारने पर विजय के होंठों पर मुस्कान गहन हो गई।
शायद इसलिए कि वह विकास के कार्यों की दिल-ही- दिल में सराहना कर रहा था । विकास की यह हरकत इस समय विजय को यह सोचने पर विवश कर रही थी कि यह लड़का भयानक खतरे में भी अपने होश नहीं गंवाता। विजय, विकास को देखकर गर्व से मुस्करा उठा। विजय का प्यार जैसे एकदम उमड़ गया, विजय स्वयं को रोक न सका और भावनाओं के अधीन होकर लपककर उस मासूम शैतान को अपने सीने से लगा लिया।
परंतु अगले ही पल वह उछल पड़ा... क्योंकि विकास चूंटने जैसी शैतानी करने से नहीं चूका था ।
इधर ये चाचा-भतीजे मस्त थे... उधर विमान बुरी तरह लड़खड़ाता हुआ मौत के कगार पर जा रहा था।
विजय को जैसे एकदम याद आया कि वे किस भयानक खतरे में घिरे हुए हैं।
उसे आभास हुआ कि आने वाले कुछ ही पल कितने भयानक. हैं! अगले ही पल उसके जिस्म में मानो विद्युत तरंगें दौड़ गई। उसने तुरंत फुर्ती के साथ विकास का हाथ थामा और चालक कक्ष की ओर जंप लगा दी।
विमान पूरी तरह आग की लपटों से घिर चुका था। लड़खड़ाता हुआ वह घायल पक्षी की भांति मौत के मुंह की ओर बढ़ रहा था। अब उस पर किसी प्रकार भी संयम नहीं पाया जा सकता था।
अचानक विकास चीखा----"अंकल... पैराशूट!" विजय ने चौंककर विकास की ओर देखा, तो पाया कि विकास के हाथ में वास्तव में एक पैराशूट है। विजय के चेहरे पर पल-भर में प्रसन्नता के भाव उजागर हो गए तथा वह चीखा ---- "कूद जाओ विकास, तुम कूद जाओ।"
विमान निरंतर लड़खड़ा रहा था।
."लेकिन अंकल, आप...?"
विकास को शायद विजय की चिंता थी । अत: वह अभी कुछ कहना ही चाहता था कि विजय ने बिना कुछ सुने फुर्ती से उसे उठाकर जलते और लड़खड़ाते विमान की एक खिड़की के माध्यम से बाहर फेंक दिया।
विकास को कदापि इस बात की आशा न थी, परंतु विजय जानता था कि हवा में पहुंचते ही विकास की कमर में बंधा पैराशूट खुल जाएगा-----इसीलिए उसने समय की गंभीरता को समझते हुए, विकास को उठाकर विमान से बाहर खुले वायुमंडल में फेंक दिया और स्वयं फुर्ती के साथ झपटकर चालक सीट पर बैठकर बटन दबा दिया।
एक तीव्र झटके के साथ चालक सीट दरवाजे से निकलकर वायु में आ गई और उसमें लगा ऑटोमेटिक पैराशूट खुल गया और परिणामस्वरूप वह इस समय आराम से वायुमंडल में तैरता हुआ नीचे की ओर बढ़ रहा था।
लड़खड़ाता हुआ विमान मौत की ओर बढ़ता रहा।
परंतु अब विजय और विकास दोनों ही विमान से अलग थे।
''अंकल!" विकास की जोरदार चीख ने विजय के साथ ही समूचे वायुमंडल को कंपकंपाकर रख दिया।
यह अवाज विकास ही की थी ---- विजय ने एक झटके के साथ आवाज की ओर देखा।
और अगले ही पल विजय की आंखों से भयानक खौफ झांकने लगा। उसके दिल पर जैसे एक साथ हजारों बर्छियां चल गई। ऐसा खौफनाक दृश्य कि विजय भी चीख पड़ा। विजय के नेत्रों में आसू उमड़ आए।
--- 'नहीं... नहीं।' विजय का दिल एकदम पुकार उठा-----'वह विकास की मौत नहीं देख सकता...नहीं... कभी नहीं, विकास नहीं मर सकता।'
परंतु दूसरी ओर का दृश्य कठोर पदार्थ की भांति सख्त था।
उसने तो कभी कल्पना भी न की थी कि कभी विकास को मरता हुआ वह इस प्रकार अपनी आंखों से देखेगा और कुछ कर न सकेगा। वास्तव में उसके देखते ही देखते विकास मौत के मुंह में जा रहा था ।
'अंकल!"
विकास की दर्द भरी चीख फिर उसके सीने को बेंधती चली गई। कठोर हृदय विजय की आंखों में भी आंसू निकल आए। कैसी बेबस निगाहों से वह मरते हुए विकास को देख रहा था !
हुआ यूं कि न जाने किस कारण विकास का पैराशूट नहीं खुला था। अत: परिणामस्वरूप वायुमंडल में लुढ़कता-पुढ़कता विकास नीचे गिरता जा रहा था...वह बार-बार 'अंकल-अंकल' पुकार रहा था।
और विजय! वह खतरनाक जासूस, जिससे मौत भी कांपती थी।
आज वह भी कुछ कर पाने में असमर्थ था । विकास की
करुण चीखें सुनने के बाद भी विजय कुछ न कर सका। करता भी तो क्या? वह तो पैराशूट के अधीन था, जबकि विकास का पैराशूट खुला ही न था। अत: वह लुढ़कता-पुढ़कता उससे नीचे पहुंच चुका था।
'अंकल-अंकल' कहते हुए विकास की अंतिम चीखें अब भी उसके कानों में पिघले सीसे की भांति पड़ रही थी ।
विजय जैसा जासूस लगभग रो पड़ा!
सिर्फ विकास ही नहीं, बल्कि भारत का एक रत्न उसके देखते-हीं-देखते बिना कुछ किए ही मौत के आंचल में सोने जा रहा था।
कभी भावनाओं में न बहने वाला विजय भी तड़प उठा। आज विकास को मरता देखकर विजय को पता लगा कि व्यक्ति के लिए भावनाएं कितना महत्त्व रखती हैं।
वायु में तैरता हुआ विजय मरते हुए विकास को देखता रहा और अंत में !
-----''विकास!''
उधर लुढ़कता-पुढ़कता विकास सागर के जल से टकराया और इधर विजय भावनाओं में बहकर इस बुरी तरह चीखा कि वायुमंडल का जर्रा-जर्रा कांप गया। ये एक ऐसे व्यक्ति की पहली भावनाओं में खोई हुई चीख थी, जिसने जीवन में कभी भावनाओं को महत्त्व नहीं दिया था। उसकी आंखों से झरझर करता झरना बहने लगा, चेहरा भयानक तरीके से लाल हो गया। आंखों से खौफनाक ज्वाला लपलपाने लगी। यह शायद विजय के जीवन का पहला अवसर था, जब वह इतना नर्वस था और यह स्थिति भी विजय की शायद जीवन में प्रथम बार ही हुई थी। उसने अपनी आंखों से देखा !
भारत का एक विकासशील गौरव उसके देखते-ही-देखते मौत के आगोश में समा गया।
वह सितारा मौत को प्राप्त हो गया, जिसके पग अभी भारत मां की रक्षा हेतु बढ़े ही थे । और विजय !
इतना नर्वस... इतना दुखी शायद वह जीवन में कभी नहीं रहा।
आज उसके नेत्रों में सचमुच पीड़ा का नीर था। विकास की मौत पर पत्थर भी पिघलकर मोम हो गया था। वह कैसे मान लेता कि विकास जीवित बच सकता है, उसने स्वयं अपनी आंखों से देखा था ।
हवा में लहराता, 'अंकल... अंकल' चीखता हुआ भारत का एक हीरा, विजय के जिस्म का एक भाग, रैना और रघुनाथ के जिगर का टुकड़ा विकास सागर के जल से टकराया।
इतना ही होता तो शायद विजय, विकास के जीवित रहने की कल्पना तो कर ही सकता था।
परंतु उफ्! उससे आगे का दृश्य! कितना भयानक! कितना
खौफनाक! निश्चित रूप से विकास के जीवन का अंतिम पल-----इस दृश्य के बाद उसके जीवन की कल्पना तक करना नितांत मूर्खता की बात थी। विजय जैसा व्यक्ति भी उस भयानक दृश्य को देख न सका, परंतु फिर भी उसने अपने विकास का अंत अपनी आंखों से देखा।
अभी विकास को पानी के ऊपर तैरते एक पल भी नहीं बीता था कि!
उफ्... विजय लाखों में पहचान सकता था.... वह व्हेल मछली थी! सागर में उपस्थित सबसे खूंखार, विशाल और भयानक मछली थी व्हेल ! विजय ने साफ देखा कि व्हेल का भयानक गुफा समान जबड़ा खुला और फिर !
विकास व्हेल के मुंह में समाता चला गया।
"विकास!"
विकास की यह खौफनाक मौत देखकर विजय तड़प उठा। उसके जिस्म का पोर-पोर कांप उठा, मुट्ठियां शक्ति के साथ भिंच गई। चेहरा पसीने-पसीने हो गया। आंखें लहू उगलने लगीं। इतना बड़ा आघात, इतना कष्ट, इतना बड़ा सदमा ! नहीं, विजय जैसा व्यक्ति भी सहन न कर सका। उसके भी जबड़े सख्ती के साथ एक-दूसरे पर जम गए। उसने नीचे देखा, विकास मर चुका था। तेरह वर्षीय शैतान की मृत्यु हो चुकी थी।
व्हेल विकास को निगलकर बड़ी शांति के साथ सागर के जल में विलीन हो चुकी थी। सागर का जल ऐसे शांत था, मानो कुछ हुआ ही न हो। विजय कभी सोच भी नहीं सकता था कि विकास व्हेल का भोजन बन जाएगा।
विजय ने विकास को अपनी आंखों से मरते हुए देखा, परंतु कुछ न कर सका। उसका पत्थर जैसा हृदय इन्हीं भावनाओं में बहता रहा, जबकि उसका जिस्म पैराशूट के साथ धीरे-धीरे उस ओर को उड़ रहा था, जिधर वह जल था, जिसमें आने के लिए ब्लैक डायमंड नामक उस रहस्यमय साए ने लिखा था... ज्यों-ज्यों वह नीचे आता जा रहा था, त्यों-त्यों सागर पीछे हटता जा रहा था और वह स्वयं उस जंगल की ओर बढ़ता जा रहा था।
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