मुंबई

स्वर्ण भास्कर के चैनल ‘करंट न्यूज़’ पर उनके सबसे लोकप्रिय शो ‘प्राइम टाइम’ का लाइव टेलीकास्ट चालू था। ‘करंट न्यूज़’ की स्टार एंकर रितु कुमार अपने बुलाये गए पैनल के साथ ‘पर्ल रेसीडेंसी’ से आती हुई लाइव टेलीकास्ट की स्ट्रीम को एक्सक्लूसिव होने का ठप्पा लगा कर दर्शकों को परोसने का काम कर रही थी।

“स्वागत है दर्शकों का प्राइम टाइम में। हमारे पास पर्ल रेसिडेंसी की एक्सक्लूसिव पिक्स आ रहीं है जो हम अपने दर्शकों को लगातार दिखा रहे हैं। मैं अपने दर्शकों से कहना चाहूँगी कि यह आतंकवाद की साधारण घटना नहीं है। यह देश के खिलाफ युद्ध है। मेरे साथ में एक वरिष्ठ विशेषज्ञ बैठे हैं। सर, इसे आप केंद्र सरकार की विफलता कहेंगे या फिर राज्य सरकार की विफलता कहेंगे।” रितु कुमार ने बिना साँस लिए अपने पैनल के पहले मेंबर से पूछा।

“निश्चित तौर पर यह केंद्र की विफलता है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला है। राज्य सरकार इसमें क्या कर सकती है? सभी सुरक्षा बल केंद्र के अधीन हैं। गुप्तचर एजेंसीज का कंट्रोल भी उन्हीं के हाथ में है तो वह इसकी ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकते।” पहले वक्ता ने कहा।

“केंद्रीय सरकार को समर्थन देने वाले योगराज पासी के बेटे का अपहरण हो जाना क्या केंद्र की विफलता है। मुंबई के लोगों को सुरक्षा प्रदान करना महाराष्ट्र सरकार का काम है, न कि केंद्र सरकार का।” दूसरे वक्ता ने अपनी बुलंद आवाज में कहा।

“लेकिन ‘पर्ल रेसीडेंसी’ की घटना क्या भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसी की असफलता नहीं है।” रितु कुमार ने तुरंत दूसरा मोर्चा खोलते हुए कहा।

“बिल्कुल। ये इंटेलिजेंस की पूरी तरह से विफलता है। जहाँ नीलेश पासी के अपहरण से केंद्र सरकार संकट में है, वहीं उसी पार्टी की सरकार जब स्टेट में है तो ऐसी घटना का हो जाना गुप्तचर एजेंसी के साथ सुरक्षा एजेंसियों की भी खामी है।” पहला वक्ता जो सरकार के खिलाफ था फिर मुखर हो गया।

“तो योगराज पासी का अगला कदम क्या होगा? क्या वो सरकार से अपना समर्थन वापस लेंगे? अगर वो अपना समर्थन वापस ले लेते हैं तो केंद्रीय सरकार का क्या होगा? क्या विपक्ष अपनी सरकार बनाने में कामयाब होगा? ये कुछ प्रश्न हैं जिनका जवाब योगराज ही दे सकते हैं। तो दर्शकों को मैं बताना चाहूँगी कि हमारे साथ जन विकास पार्टी के सुप्रीमो योगराज जी जुड़ चुके हैं और उन्हीं से सुनते कि हमारे इन प्रश्नों के जवाब में वो क्या कहना चाहते हैं?” रितु कुमार की इस जोशीली तकरीर के साथ ही योगराज का चेहरा टीवी स्क्रीन पर चमकने लगा।

“जी... योगराज जी। आप क्या कहना चाहते हैं? आपके जवाब का हमारे दर्शक बड़े बेसब्री से इंतजार कर रहें हैं।”

“जो सरकार इतने समय तक मेरे बेटे नीलेश का पता नहीं लगा सकी। जिस खुफिया एजेंसी की नाक के नीचे ‘पर्ल रेसीडेंसी’ जैसे प्रसिद्ध होटल में आतंकवादी घुस जाते हैं और तबाही मचा देते हैं, ऐसी सरकार भारत के आम आदमी को क्या सुरक्षा देगी? हमारी जन विकास पार्टी ने हमेशा से आम आदमी की राजनीति की है और हम इससे कभी पीछे नहीं हटेंगे। आज मेरा बेटे का जीवन दाँव पर लगा है और मेरे व्यक्तिगत जीवन में भीषण संकट आया हुआ है लेकिन इस मुसीबत की घड़ी में पूरा देश मेरे साथ है। मौजूदा केंद्र सरकार हर मोर्चे पर विफल साबित हो रही है। मैं इस मामले में राज्य सरकार और विस्टा टेक्नोलॉजी को भी जिम्मेदार मानता हूँ जो मेरे बेटे को सुरक्षा देने में असफल रही।”

“योगराज जी, अगर आप की नजरों में नीलेश और उसके साथियों का दिन दहाड़े अपहरण हो जाना केंद्र सरकार की भीषण विफलता है तो फिर क्या आप सरकार में बने रहेंगे? आपका अगला कदम क्या होगा? हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि जहाँ कहीं भी हो, आपका बेटा सुरक्षित हो। क्या आप केंद्र सरकार को अपना समर्थन जारी रखेंगे?” रितु ने योगराज से पूछा।

“मेरा बेटा देश के लिए कुर्बान हो भी जाये तो मेरे लिए ये गर्व की बात होगी। लेकिन अभी तो इस निकम्मी और नाकारा सरकार को यह भी पता नहीं चला है कि वह है कहाँ?”

“मैं आपकी पार्टी द्वारा समर्थन जारी रखने या ना रखने के बारे में पूछ रही थी?”

“इस मामले में हमारी पार्टी की कोर कमेटी ही फैसला करेगी। मैं अब आपसे इजाजत चाहूँगा, मुझे एक मीटिंग में जाना है।” इसके बाद योगराज की तस्वीर स्क्रीन से गायब हो गयी।

उस प्रोग्राम के प्रसारण को अपनी जगहों पर बैठे बसंत पवार, विश्वनाथ रुंगटा, फिलिप्स जेक्सन और अभिजीत देवल भी देख रहे थे। इस समय परिस्थिति एक थी लेकिन हरेक आदमी के लिए इसके अर्थ अलग थे और स्वार्थ अलग थे।

कराची

नीलेश पासी की जब नींद खुली तो उसने अपने आप को एक आरामदायक बिस्तर पर पड़े पाया। कई देर तक वो आँखें खोले बिस्तर पर पड़ा रहा। उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि वो किसी गुलाबी आसमान पर हिचकोले खाते हुए झूल रहा है। कुछ देर की असमंजस की स्थिति के बाद वह सामान्य हुआ। जब उसे अपनी स्थिति का एहसास हुआ तो वह चौंक कर बिस्तर पर उठ बैठा।

‘यह मैं इस वक्त कहाँ पर हूँ? मुझे तो इस वक्त बेलापुर रोड़ पर विस्टा टेक वर्ल्ड के वर्क ऑफिस में अपनी टीम के साथ होना चाहिए था।’

उसके दिमाग में यह विचार कोंधा लेकिन उसे कुछ भी समझ नहीं आया।

वह कमरा उसे पर्ल रेसिडेंसी का भी नहीं लग रहा था। वह जगह उसके लिए बिल्कुल अनजान थी। तभी उस कमरे का दरवाजा खुला तो एक आदमी ने कमरे में प्रवेश किया जो मिलिट्री जैसी ड्रेस पहने हुए था।

उस शख़्स का नाम जावेद अब्बासी था।

आईएसआई का सबसे काइयाँ और धूर्त अफसर। जावेद अब्बासी यूँ तो पाकिस्तान आर्मी में था लेकिन बाद में उसे पाकिस्तान की जासूसी संस्था आईएसआई में शिफ्ट कर दिया गया था और उसे मेजर का ओहदा हासिल था।

अब वह एशिया के देशों में अपनी संस्था की गतिविधियाँ देखता था जिसमें भारत का खास ध्यान रखा जाता था।

“तो होश में आ गए तुम, बरखुरदार?” जावेद अब्बासी ने पूछा।

“होश में! इसका मतलब मैं बेहोश था। मैं इस वक़्त कहाँ पर हूँ ? तुम कौन हो ? मुझे यहाँ लाने का मकसद क्या है ?” नीलेश ने अपने मस्तिष्क में उठ रहे सारे सवाल पूछ डाले।

“आहिस्ता... आहिस्ता... कितने सारे सवाल तुमने एक साथ पूछ डाले, बरखुरदार। तुम कई देर तक दवाइयों के नशे में थे इसलिए जागते ही इस तरह से अपने दिमाग पर ज़ोर-आजमाइश मत करो। तुम्हारे दिमाग में खलल पड़ सकता है।” जावेद अब्बासी ने मशविरा दिया।

“वॉट द हैल! कैसी दवाइयाँ? क्या हुआ मेरे दिमाग को?” नीलेश पासी बोला।

“तुम्हारे दिमाग को कुछ नहीं हुआ है। बस उसे कुछ देर के लिए आराम दिया गया था। और जहाँ तक हैल की बात है तो यह अब तुम पर मुनहसिर करता है कि अपनी आने वाली जिंदगी को तुमने जहन्नुम बनाना है या जन्नत।” जावेद अब्बासी ने बात को घुमाते हुए कहा।

“कौन हो तुम? आखिर तुम चाहते क्या हो? मेरी टीम कहाँ है?” नीलेश भड़कते हुए बोला।

“बहुत सवाल करते हो तुम, बरखुरदार। तुम्हारी टीम भी यहीं पर है लेकिन तुम योगराज के बेटे हो और तुम्हारे बाप की हिंदुस्तान के निज़ाम में बहुत पूछ है इसलिए तुम्हें वीआईपी के तरह से खातिरदारी के लिए तुम्हारे दोस्तों से अलहदा रखा गया है।” जावेद अब्बासी मुस्कराता हुआ

सामने से बोलने वाले के लहजे की तरफ नीलेश का पहली बार ध्यान गया। जब उसे यह एहसास हुआ कि उसकी वेषभूषा भारतीय सैनिकों की वर्दी से अलग है तो उसकी आँखें फैली। उसकी इस प्रतिक्रिया को देख कर जावेद अब्बासी ठहाका लगाकर हँसा।

“लगता है कि तुम्हें एहसास हो गया है कि तुम किन हालात में फँसे हुए हो। घबराओ मत। तुम महफ़ूज़ हो और तब तक महफ़ूज़ रहोगे जब तक तुम हमारी बात मानोगे।” जावेद अब्बासी मुस्कराते हुए बोला।

“क्या चाहते हो तुम?” नीलेश की आवाज किसी गहरे कुएँ में आती हुई लगी।

“कुछ खास नहीं। बस तुम्हें दूसरे कमरे में जाना है। हम तुम्हारा वहाँ पर एक वीडियो बनाने वाले हैं जिसमें तुम अपने मुँह से एक लफ़्ज़ भी नहीं निकालोगे।अगर तुमने जरा सी भी गुस्ताखी की तो वीडियो तो तुम्हारा फिर भी बनेगा लेकिन उसमें तुम्हारी मौत तुम्हारे जिस्म से टपकती हुई दिखाई देगी।”

जावेद अब्बासी की आवाज में अचानक से मिठास गायब हो गयी और उसके चेहरे से वहशत टपकने लगी। नीलेश अब तक अपने होश कुछ हद तक काबू में कर चुका था। वह अपने हालात को कुछ हद तक समझ चुका था। उसने हामी भरते हुए अपनी गर्दन हिलाई।

तभी उस कमरे का दरवाजा खुला और दो आदमी कमरे में दाखिल हुए जो मिलिट्री की पौशाक पहने हुए थे। उन्होने नीलेश को जैसे उठाकर जमीन पर रखा और तेजी से अपने साथ दूसरे कमरे में घसीटते हुए ले गए।

उस कमरे की पूरी दीवार एक काले रंग के कपड़े से ढकी हुई थी। कमरे के बीचों-बीच एक प्लास्टिक की कुर्सी लगी हुई थी जिसके पीछे एक बैनर लगा हुआ था जिसकी भाषा नीलेश की समझ से बाहर थी।

नीलेश को उस कुर्सी पर बैठा दिया गया और एक आदमी उसका वीडियो बनाने लगा। उसे बस कैमरे की तरफ देखने और मुँह बंद रखने की हिदायत दी गयी थी। दो तीन मिनट का वीडियो शूट करने के बाद उसे वहाँ से फिर पहले वाले कमरे में ले जाया गया जहाँ उसे होश आया था।

“आखिर तुम लोग हो कौन हो और चाहते क्या हो?”

“तुमसे हम कुछ नहीं चाहते। जो हम चाहते हैं वह तुम्हारी समझ में नहीं आएगा। तुम बस यहाँ पर आराम से रहो। किसी भी किस्म की खुराफात करने की सोचना भी मत। इस कमरे की चारदीवारी के अंदर तुम्हारी जिंदगी है और बाहर सिर्फ़ और सिर्फ़ मौत है। जब तक तुम इस कमरे में हो महफ़ूज़ हो। समझे?”

इसके बाद जावेद अब्बासी उस कमरे से बाहर निकल गया।

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मुंबई

आधे घंटे की बाद पुलिस कमिश्नर धनंजय रॉय के ऑफिस में टेलीफोन की घंटी बजी। शाहिद रिज़्वी ने तुरंत फोन उठाया। दूसरी तरफ उसे वही जानी-पहचानी आवाज सुनाई दी जिसे वह शुरू से सुन रहा था।

“हैलो। शाहिद रिज़्वी साहब?” उस आवाज ने जैसे शाहिद के मौजूद होने की तस्दीक़ की।

“हाँ। मैं इधर ही हूँ मिस्टर उस्मान ख़ान। जब तक मेरी जिम्मेवारी पूरी नहीं हो जाती, तब तक मैं इस बातचीत को बीच में छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा।” शाहिद ने अँधेरे में तीर छोड़ा।

दूसरी तरफ कुछ देर खामोशी छाई रही और फिर एक गगनभेदी अट्टाहस गूँजा।

“बहुत खूब! अँधेरे में छोड़े तीर कभी निशाने पर नहीं लगते है, खासतौर पर वो जो इंडिया की जानिब से छोड़े जाते हैं। मैं जो भी हूँ, तुम्हारी पकड़ से बहुत दूर हूँ। तुम लोग खामखा मुंबई की चाल छानते घूम रहे हो।” दूसरी तरफ से एक विष भरी आवाज सुनाई दी।

“हमारे निशाने तो तुम अपने उन लोगों से पूछो जो सन इक्कहतर में या कारगिल में हलाक हुए थे और जो आज तुम्हारे मुल्क की कब्रों में करवटें बदलते हैं। खैर, इस बहस से कोई मकसद हल नहीं होने वाला। हम मुद्दे की बात पर आते हैं। क्या हमारे वो लोग सुरक्षित हैं जो तुम लोगों ने अगवा किए हुए हैं?” शाहिद ने बहस को बदमजा हो जाने से बचाने के लिए पूछा।

इस बातचीत की रिकॉर्डिंग और आवाज के मालिक को ट्रेस करने की कोशिश जारी थी।

“आप लोगों के पास एक वीडियो भेज दिया गया है जिसमें दो लोगों को छोड़ कर बाकी सब लोग जिंदा है। एक आप टुकड़ों में बरामद कर चुके हैं और दूसरा प्रदीप नाम का कुफ़्र है जो अभी जिंदा है। बाकी लोग कब तक जिंदा रहेंगे, यह आप लोगों की जवाबी कार्यवाही पर मुनहसिर करता है। मेरा मतलब जनाब कादिर मुस्तफा की रिहाई से है। उम्मीद है, उन्हें छोड़ने की कवायद आप लोगों ने शुरू कर दी होगी?” उधर से जवाब आया।

“कोई जवाब देने से पहले हम वो वीडियो देखना चाहेंगे।” शाहिद रिज़्वी ने जवाब दिया।

“बहुत बेहतर। आपसे दस मिनट के बाद गुफ्तगू होगी।”

इसके बाद लाइन डिसकनेक्ट हो गयी।

तुरंत उस मेल एड्रेस पर वीडियो को तलाशा गया जिस पर पहले भी उस आतंकवादी संगठन की मेल आ चुकी थी। लश्कर द्वारा भेजा गया वीडियो मेल पर मौजूद था। तुरंत उसे प्रॉजेक्टर स्क्रीन पर चलाया गया। शाहिद रिज़्वी और कमिश्नर धनंजय रॉय की निगाहें अब स्क्रीन पर थीं।

उस वीडियो में अगवा किए गए सभी आदमी, केवल दो को छोड़कर, बारी-बारी से चेयर पर बैठे हुए दिखाई दिये। सबसे आखिर में नीलेश पासी उस वीडियो में एक चेयर पर बैठा हुआ दिखाई दिया। उन सबके बैक-ग्राउंड में दुनिया की तकदीर बदलने का दावा करने वाला बैनर लगा हुआ था। उसके सामने काले लिबास पहने हुए और हाथों में आधुनिक हथियार लिए हुए कुछ लोग खड़े हुए थे।

धनंजय रॉय और शाहिद बड़ी मुश्किल से पूरा वीडियो ही देख पाये थे कि फोन की घंटी फिर बजी। एक बार फिर वही आवाज कमरे में गूँजी। शाहिद रिज़्वी उस से बात करने लगा। कमिश्नर ने उस वीडियो की रिकॉर्डिंग को अपने फोरेंसिक डिपार्टमेंट की टीम को और एक कॉपी नैना दलवी को फॉरवर्ड कर दी।

“उम्मीद है कि वीडियो आप लोगों में देख लिया होगा। अब हिंदुस्तान की सरकार को यह यकीन भी हो गया होगा कि ये लोग हमारे पास महफ़ूज़ हैं। और कब तक महफ़ूज़ रहेंगे यह इस बात पर मुनहसिर करेगा कि कादिर मुस्तफा को कितनी जल्दी छोड़ा जाता है। उसके लिए हमने एक दिन का वक्त आप लोगों को दिया। अगर कादिर मुस्तफा को कल तक नहीं छोड़ा गया तो आप लोग अपने आदमियों की लाशें मुंबई में मुखतलिफ़ जगहों से बरामद कर लीजिएगा।”

“देखो, तुम्हारी बात पर पहले ही विचार कर लिया गया है। हम कादिर मुस्तफा को वाघा बार्डर से रिलीज कर देंगे या जिस भी फ्लाइट में तुम कहो उसमें उसे सवार कर दिया जाएगा।”

“तुम लोग कादिर मुस्तफा को वाघा से या किसी और जगह से नहीं रिहा करोगे। उसे तुम्हारी सरकार वहाँ से छोड़ेगी जहाँ से तुम लोग उसकी नुमाइश न लगा सको। हम नहीं चाहते कि हिंदुस्तान में हो रही हालिया सरगोशी का इल्जाम तुम हम पर दहशतगर्दी के नाम पर लगा सको।”

“इसमें इल्जाम कैसा! सारी दुनिया जानती है कि इस वक्त पूरी कायनात में दहशतगर्दों को अगर कहीं सरपरस्ती हासिल होती है तो वह सरहद पार से होती है। इससे बड़ा मज़ाक क्या होगा कि कादिर की रिहाई भी तुम इस दहशतगर्दी की आड़ से ही करवाने के मंसूबे बाँध रहे हो। इस बात में भी हमें कोई शक-शुबहा नहीं है कि मुंबई में जो हालिया आतंकवादी घटना हुई है उसके पीछे भी तुम ही हो।”

“तुम्हारी मुंबई में कोई दीवाली का पटाखा भी फूटता है तो तुम उसका इल्जाम हम पर मत लगाया करो, बिरादर। इस वारदात के ज़िम्मेवार तुम्हारी ही सरजमीं के बाशिंदे हैं जो अपने ही लोगों का खून बहाने पर आमादा हैं। खैर, हम कादिर मुस्तफा की रिहाई के बारे में बात कर रहे थे। उनको तुम वहाँ पर लेकर आओगे जहाँ पर हम चाहेंगे।”

“यह मुमकिन नहीं है। उसकी सुरक्षा के लिहाज से हम उसे तुम्हारे कहे मुताबिक कहीं भी एक्सपोज नहीं कर सकते। इस मामले में...”

“उनकी सुरक्षा में कोई खामी हम भी नहीं चाहते हैं। उनको हम लोग तुमसे ज्यादा महफ़ूज़ देखना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि तुम लोग उन्हें कुपवाड़ा सैक्टर में सुरक्षित पहुँचा दो। वहाँ से कादिर मुस्तफा को हम पूरे लाव लश्कर के साथ ले जाएँगे।”

“कुपवाड़ा सैक्टर में! उस दुर्गम इलाके में, जहाँ पर हमारी आर्मी की सुरक्षा में भी बड़े हादसे हो जाते हैं, वहाँ पर ?”

“हाँ, वहीं। हादसे हमारे हसीन दोस्त हैं इसलिए हादसों की आप फिक्र न कीजिये रिज़्वी साहब। वहाँ से कादिर मुस्तफा को हिफाज़त से लेकर जाना हमारी जिम्मेवारी होगी और हमने कादिर की रिहाई के साथ कुछ नजराना भी माँगा था। डेढ़ हजार करोड़ रुपए।”

“डेढ़ हजार करोड़! इतना तो नामुमकिन है। इस बारे में कोई वादा करने से पहले मुझे अपने ऊपर के अधिकारियों से पूछना पड़ेगा, तभी मैं तुम्हें कोई कमिटमेंट कर सकता हूँ।”

“कमिटमेंट तो आपको करनी ही पड़ेगी, रिज़्वी साहब। नहीं तो आपको फिर से एक लाश बरामद करनी पड़ेगी। मीडिया पर फिर ये बहस आम होगी कि ये कैसी सरकार है जो अपने बाशिंदों को न तो छुड़ा पा रही है और न ही बचा पा रही है। मैं तुमसे आधे घंटे में फिर बात करता हूँ।”

लाइन एक बार फिर कट गयी। तभी राजीव जयराम ने कमिश्नर के ऑफिस में कदम रखा। उसे देख शाहिद रिज़्वी के चेहरे पर मुस्कान तैर गयी।

‘सो द ओल्ड फॉक्स इस आउट इन द फील्ड’

पुलिस कमिश्नर धनंजय रॉय और शाहिद अपनी-अपनी कुर्सियों से उसके अभिवादन में खड़े हुए।

“एट इज, रिज़्वी। बड़े धमाके हुए मुंबई में आज। उनकी धमक दिल्ली तक पहुँची तो मुझे मजबूरन यहाँ आना ही पड़ा। नेगोशिएशन में क्या प्रोग्रेस है रिज़्वी?” जयराम ने रिज़्वी से पूछा।

“वे लोग कादिर मुस्तफा की रिहाई कुपवाड़ा सैक्टर में किसी जगह पर चाहते हैं। और इसके साथ ही फिरौती के डेढ़ हजार करोड़ रुपए भी।” रिज़्वी ने बताया।

“कुपवाड़ा! वे लोग ऐसी जगह में कादिर को क्यों बुलाना चाहते है? शायद मीडिया की निगाह से बचना चाहते हैं या इसे हमारा अंदरूनी मामला साबित करना चाहते हैं। डेढ़ हजार करोड़ के बारे में उनकी क्या डिमांड है ?”

“उसके बारे में अभी कोई कमिटमेंट नहीं हुई है। मुझे इस बारे में आपसे बात करनी थी कि तभी आप आ गए। उन लोगों का आधे घंटे बाद फोन आना था।” रिज़्वी घड़ी की तरफ देखता हुआ बोला।

कुछ समय बाद कमिश्नर ऑफिस में फिर से फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ फिर वही शख़्स बोल रहा था। जयराम और कमिश्नर रॉय ने तुरंत हेडफोन अपने कानों पर लगा लिए।

“रिज़्वी साहब। हमारे नजराने के बारे में आप की अपने आकाओं से बात हो गयी होगी।”

रिज़्वी ने जयराम की तरफ सवालिया नजरों से देखा। जयराम ने थंब्स अप का इशारा कर बात को आगे बढ़ाने का इशारा किया।

“हाँ। तुम्हारी बात हमें मंजूर है। पहले यह बताओ कि तुम नीलेश और हमारे बाकी आदमियों को कब तक रिहा करने वाले हो। कादिर की रिहाई तो तुम लोग कुपवाड़ा में चाहते हो लेकिन हम लोग उसकी और उसकी टीम की सुरक्षित वापसी यहाँ मुंबई में चाहते हैं।”

“अब सब कुछ तो तुम्हारे चाहने से नहीं होगा। नीलेश तुम लोगों को तब मिलेगा जब कादिर मुस्तफा हम तक सुरक्षित पहुँचेगा। बाकी लोग तुम तक तब पहुँचेगे जब डेढ़ हजार करोड़ रुपया हम तक पहुँच जाएगा।”

“ठीक है। हम कादिर मुस्तफा को कुपवाड़ा तक पहुँचाने का इंतजाम करते हैं। जहाँ तक रुपयों की बात है तो जिस भी अकाउंट... ” रिज़्वी की बात बीच में ही रह गयी।

दूसरी तरफ से एक बड़े ज़ोर के ठहाके की आवाज सुनाई। वो शख़्स पागलों की तरह हँसा। रिज़्वी का चेहरा कनपटियों तक लाल हो गया। उसने सकपका कर राजीव जयराम और कमिश्नर की तरफ देखा। उन दोनों के चेहरे पर असमंजस के भाव थे।

“कमाल करते हैं आप भी, रिज़्वी साहब। हमें इतने अहमकाना सवाल की आपसे उम्मीद नहीं थी। हमें पैसा अकाउंट में नहीं चाहिए। हम चाहते हैं कि पैसा सीधा हमारे पास पहुँचे।” उधर से आवाज आयी।

“अब अहमकाना बात तुम कर रहे हो। सरकार से पैसा माँग रहे हो और सोचते हो कि यह रकम हवाला के जरिये तुम तक पहुँचे। तुम क्या सोचते हो? इस तरह से तुम उन लोगों को हमारे शिकंजे में आने से बचा सकते हो जो तुम्हारे इन नापाक इरादों में शामिल हैं !”

“वो तो जो हमारे मुस्तक़बिल में है, वो देखा जाएगा, रिज़्वी साहब। डेढ़ हजार करोड़ की रकम हम तक पहुँचाने के लिए तुम्हें हमारे एक दोस्त से इमदाद लेनी पड़ेगी। वही आदमी तुम्हारे और हमारे बीच का जरिया होगा जिसके सदके वह रकम हम तक पहुँचेगी। जैसे ही वह रकम हमें मिल जाएगी, हम विस्टा के आदमियों को छोड़ देंगे। लेकिन एक बात याद रहे कि इस दौरान अपनी फोर्स को थामे रहना, अगर एक भी कदम हमारी तरफ उठा तो...”

“ठीक है, अब उस आदमी का नाम बताओ जिससे हमने कॉन्टैक्ट करना है।”

उधर से जो नाम लिया गयावह कश्मीर के एक नेता तबरेज आलम का था, जो आम चुनाव लड़कर कश्मीर विधानसभा में पहुँचने की नाकाम कोशिश कर चुका था। उसके सीमा पार आज भी प्रगाढ़ संबंध थे। उसके बेटे की शादी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के एक परिवार में हुई थी।

“तुम लोग तबरेज आलम के पास वो रुपए पहुँचाओगे। वहाँ से वो रुपए अपने आप अपने मक़ाम तक पहुँच जाएँगे। जब तबरेज आलम हमें इस बात की तस्दीक़ कर देगा कि रकम उस तक पहुँच गयी है तो हम पहले विस्टा के आदमियों को छोड़ेंगे। नीलेश को तब तक नहीं छोड़ा जाएगा जब तक कादिर मुस्तफा को सही सलामत कुपवाड़ा नहीं पहुँचा दिया जाता।”

“तबरेज आलम हमें कहाँ मिलेगा? कश्मीर में?”

“नहीं। वह तुम्हें यहाँ मुंबई में ही मिलेगा। सारा रुपया समुंदर के रास्ते मॉरीशस भेजा जाएगा। हिंदुस्तान की समुद्री सीमा तक हमारे इस ऑपरेशन में कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए।”

“ठीक है। हमें बारह घंटे की मोहलत दो। इतना रुपये का नकद इंतजाम करने में हमें टाइम लगेगा। अगर तुम अकाउंट देते तो पैसा बिना किसी रिस्क के ट्रांसफर हो जाता।”

“नहीं। हम कोई सुराग नहीं छोड़ना चाहते। जैसा हम चाहते हैं, वैसा करो। बारह घंटे का वक्फ़ा बहुत ज्यादा है। इतना समय हम तुम्हें नहीं दे सकते। सिर्फ़ छह घंटे में यह सब होना चाहिए।”

“क्यों? ड़र लगता है कि कहीं बारह घंटे में हम तुम तक पहुँच न जाएँ।”

“हवा को कौन पकड़ सका है, रिज़्वी साहब। तुम्हारा ये ख्वाब कभी पूरा नहीं हो सकेगा। अगर कभी गलती से तुम लोग हम तक पहुँच भी गए तो मौत के सन्नाटो के सिवा तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा। चलो, तुम्हारी गलतफहमी को बरकरार रखने के लिए तुम्हें बारह घंटे की मोहलत दी।”

“शुक्र है, तुम हमारी मजबूरी समझ सके। जल्दी ही तुम्हारी ‘सौगात’ का इंतजाम करके तुम्हारे आदमी तबरेज आलम के पास हम पहुँचते हैं।”

“ठीक है। अब से ग्यारह घंटे के बाद तुम्हें रकम लेकर कहाँ पहुँचना है, यह बताने के लिए तुम्हें आखिरी बार फोन करूँगा। अगर वह इंतजाम नहीं हुआ तो उसके बाद क्या होगा तुम खुद सोच सकते हो।”

इसके बाद लाइन कट गयी। शाहिद रिज़्वी का चेहरा तमतमा रहा था। उसके हाथों में फिर से एक सिगरेट पहुँची लेकिन उसने उसे जलाया नहीं। वह उसके हाथों में यूँ ही लटकी रही।

“हमारे पास ग्यारह घंटे हैं। जो करना है वह इसी में करना है।” राजीव जयराम जैसे अपने आप से बोला।

फिर कमिश्नर रॉय की तरफ देखता हुआ बोला, “लेट्स ड़ू इट, डियर।”

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