ज़मीन में गड़ा सूटकेस
मूँह अंधेरे रीटा चाय देकर और बहुत सी बातें बनाकर चली गई तो मेजर ने सोनिया से पूछा, "कल रात मुझे ख्याल ही नहीं आया और तुम्हें भी शायद बताना याद नहीं रहा । क्या तुम लक्ष्मी से मिली थीं ? उसने तुम्हें क्या कुछ बताया ?"
‘‘कल रात के हमले ने मेरे दिमाग से सारी शंकाएं निकाल दीं । मैं तो सपने में भी चारों ओर तीर चलते हुए देखती रही । कल लक्ष्मी से मैं देर तक बातें करती रही थी । उसे कामिनी से बहुत ज्यादा लगाव है । वह कामिनी का किस्सा छेड़ देता थी तो फिर उसे खत्म करने का नाम न लेती थी ।"
"काम की बात का भी पता चला कि नही ?"
"लक्ष्मी ने बताया कि कामिनी को जिस दिन बम्बई जाना था, उस दिन वह आधी रात को उठी थी। उसका इरादा था कि वह दस बजे से पहले बम्बई पहुंच जाए। वह ट्रेन से बम्बई नहीं गई थी, हवाई जहाज से गई थी और उसका जहाज पूरे चार बजे बम्बई जाता था । हवाई अड्डे पर उसे डाक्टर साहब कार में, छोड़ने गए थे।"
‘‘हवाई जहाज से बम्बई गई थी ! डाक्टर साहब तो कह रहे थे कि उसे रेलवे स्टेशन पर छोड़कर आए थे और प्लेटफार्म पर कामिनी ने उनसे वायदा किया था कि वह अपने पिता को अब और ज्यादा दुःख नहीं पहुंचाएगी ?"
"मैं नहीं जानती डॉक्टर साहब ने आपको क्या कुछ बताया है। मैं तो आपको लक्ष्मी की बात बता रही हूं । डाक्टर साहब सुबह-सवेर तीन बजे कामिनी को कार में ले गए। लक्ष्मी के सिवा किसी ने कामिनी को विदा नहीं किया था । डाक्टर साहब पौने पांच बजे वापस आ गए थे। लक्ष्मी ने उनसे पूछा था कि कामिनी ठीक तरह से हवाई जहाज पर सवार हो गई थी तो डाक्टर साहब ने उत्तर दिया था कि कामिनी तो अब बहुत दूर निकल चुकी होगी।"
लक्ष्मी और डाक्टर साहब के बयानो को सुनकर मेजर ने कहा।
" हो सकता है, हवाई जहाज की उड़ान स्थगित हो गई हो और डाक्टर साहब क़ामिनी को स्टेशन ले गए हों।"
सोनिया बोली ।
"गाड़ी तो सुबह दिन निकलने पर बम्बई जाती है । डाक्टर साहब पौने पांच बजे कैसे वापस आ गए ? "
“कामिनी ने स्टेशन पहुंचकर उनसे कह दिया होगा कि वह उतनी देर वहां ठहरकर क्या करेंगे।”
इण्टरनेशनल म्यूजियम पहुंचकर मेजर ने इन्स्पेक्टर से पूछा, "इस घर के सब लोग ठीक-ठाक हैं ना.?"
"अभी तक तो ठीक-ठाक हैं। आज शाम तक क्या होगा, कौन जानता है।" इन्स्पेक्टर ने उत्तर दिया।
“आज शाम तक तो हमारा काम खत्म हो जाएगा।"
"क्या मतलब ? "
"अगर मेरा अनुमान ठीक निकला तो आज शाम तक मैं हत्यारे या हत्यारो को आपके हवाले कर दूंगा । आज मुझे सबसे पहले रजनी और राजेश से मिलना है। उसके बाद मुझे एक ऐसा काम करना है जिस पर आप सबको हैरानी होगी। उस काम का परिणाम मेरी आशा के अनुसार निकला तो विजय आपके कदम चूमेगी।"
इन्स्पेक्टर प्रसन्नतावश मुस्कराया, "आप राजेश से पहले मिलना चाहेंगे या रजनी से ? "
"राजेश से।" मेजर वोला ।
राजेश अपने कमरे में नहीं था। वह उनको रजनी के कमरे में मिला ।
रजनी ने बड़ी बारीक नाइट ड्रेस पहन रखी थी जिसमें उसका पूरा बदन उभरा उभरा पड़ता था। वह एक ऐसी ड्रेस थी जिस पर नज़र पड़ते ही दिल की दुनिया में हलचल पैदा हो जाती थी। पुलिस इन्स्पेक्टर और मेजर के आगमन पर रजनी ने तुरन्त एक कम्बल अपने ऊपर डाल लिया। राजेश खिड़की में से बाहर झांकने लगा ।
मेजर ने जेब से खंजर की म्यान निकाली और राजेश के पास जाकर बोला "क्या आप इसे पहचानते हैं ?"
"हां।" राजेश ने उस म्यान को अपने हाथ में लेकर देखते हुए कहा, "यह उसी खंजर की म्यान है जो प्रोफेसर मोरावियो अफ्रीका से लाए थे और जिससे डाक्टर साहब
पर हमला किया गया था।"
“ऐसे दो खंजर थे । एक कंजर चार हफ्ते से गुम है।" रजनी बोली, "मुझे इस बात का इसलिए पता है कि चार हफ्ते पहले मेरी दवा की एक बोतल की सील खुल
नहीं रही थी। उसे तोड़ने के लिए मुझे चाकू या छुरी की जरूरत थी। मैंने सोचा कि कौन किचन में जाए, क्यों न खंजर की नोक से सील तोड़ दी जाए। मैं छोटे कमरे में
खंजर लेने के लिए गई तो मुझे वहां सिर्फ एक ही खंजर पड़ा हुआ मिला ।”
"इस खंजर के खोने पर क्या आपने कोई पूछताछ नहीं की ?"
"मैंने सबसे पूछा था लेकिन सबने कहा कि मालूम नहीं।"
मेजर ने राजेश से कहा, "क्या आपको मालूम है कि खंजर की यह म्यान आपके बिस्तर की दरी के नीचे से बरामद हुई है ?”
"मेरे बिस्तर की दरी के नीचे से ?"
"हाँ"
“कौन कहता है और किसने बरामद की ?" राजेश ने पूछा।
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"आप परसों यहां नहीं आए तो मैंने इन्स्पेक्टर से पूछा था तब उन्होंने मुझे बताया कि आप बम्बई जा चुके हैं। "
"यह तो एक ही बात हुई। यानी आपको मालूम था कि मैं बम्बई गया हूं।" मेजर बोला और फिर उसने गुलाबी कागज का वह टुकड़ा राजेश की और बढ़ाते हुए कहा, "यह टेलीग्राम का फार्म है। इस पर सिर्फ कुछ अक्षर बाकी रह गए हैं। ऊपर की जगह केवल 'एस' और 'एन' हैं जिसका मतलब है कि तार सिम्पसन को दिया गया था। इसके साथ ही दिन, महीने और सन् के अक्षर बाकी है— एच, आर, एफ, टी। मैं समझता हूं कि ये अंग्रेजी शब्द 'शिफ्ट' के चार अक्षर हैं। इससे प्रकट होता है कि किसी ने सिम्पसन को सूचना दी कि प्रदीप को तुरन्त किसी अन्य जगह पर ले जाया जाए। अब आइए निचली पंक्ति पर जहां तार भेजने वाले का नाम है -- आर...आर । इसका मतलव राजेश भी हो सकता है और रजनी भी– या रजनी और राजेश दोनों हो सकते हैं।"
रजनी ने अपने होंठों पर हथेली रख ली जैसे वह मुंह से
निकलने वाली अपनी चीख को दबा लेना चाहती हो ।
राजेश की घिग्गी बंध गई। उसके मुंह से कोई बात न निकल सकी। वह तार के फार्म को पथराई हुई आंखों से पढ़ता रहा।
"ओह..." उसके मुंह से निकला। उसके हाथ में तार का गुलाबी फार्म कांपने लगा। फिर वह जरा संभला और बोला, "यह तार देने वाला इस घर का आदमी कैसे हो सकता है ? आपने तो चारों तरफ पहरा बिठा रखा है। किसी को अपने कमरे से दूसरे रे कमरे में मुश्किल से ही जाने दिया जाता है - वह तार देने कैसे चला गया ?
"तार न दे सकने की यह कोई माकूल दलील नहीं है। इस घर के हर कमरे में फोन मौजूद है। फोन पर बाहर किसी आदमी को भी हिदायत दी जा सकती है। वह इस प्रकार का तार सिम्पसन को दे दे।" राजेश निरुत्तर हो गया ।
"आप ऐसा कीजिए -आधे घंटे के बाद नीचे अजायबघर में चले जाइएगा।" मेजर ने राजेश से कहा और फिर रजनी से बोला, "आप भी । "
मेजर, इंस्पेक्टर और सोनिया सीढ़ियां उतरकर नीचे आ रहे थे कि उनको किसी स्त्री के रोने की आवाज सुनाई दी।
“यह तो लक्ष्मी मालूम होती है।" सोनिया के मुंह से निकला |
और दूसरे क्षण लक्ष्मी रोती, सिर पीटती और छाती पर दोहत्यड़ मारती हुई बाहर आ निकली। उसके हाथ में एक जालीदार दोपट्टा था जो मिट्टी में सना हुआ था। उसके पीछे एक लम्बा तड़ंगा व्यक्ति था जो शक्ल-सूरत से किसान मालूम होता था। उसके हाथ में एक सूटकेस था जो कीचड़ में लिथड़ा हुआ था ।
"सत्यानाश हो गया – किसी का खाना (खाना) खराब हो गया ।" लक्ष्मी बावेला कर रही थी, "उस पापी पर बिजली गिरे । गजब( गजब ) हो गया। हाय राम, मैं लुट गई। उस राक्षस को सांप सूंघ जाए और वह पानी न मांगे । मेरी
बिटिया - मेरी चांद-सी बिटिया-हाय राम ! यह क्या हो गया ! "
लक्ष्मी निकट आकर जोर-जोर से छाती पीटने लगी, "मौसी, बताओ तो सही कि हुआ क्या ?" सोनिया ने लक्ष्मी से पूछा।
"सत्यानाश हो गया ।" लक्ष्मी सिर पीटते हुए बोली, "यह देखो - यह मेरी कामिनी का दोपट्टा है।"
इतने में सिद्दीकू, रूपा, राजेश और रजनी भी वहां आ गए।
लछ्मी ने रजनी को देखकर और भी जोर-जोर से आलाप भरने शुरू कर दिए, "मेरी बेटी को दुश्मन खा गए— वह किसी को एक आंख न भाई - यह उसका दोपट्टा है।" लक्ष्मी ने दोबारा वह दोपट्टा पूरा फैलाते हुए कहा, "और यह उसका सूटकेस है। मातादीन माली को बाग में जमीन खोदते हुए मिला। अरे दबे हुए सूटकेस के पास एक अंगूठी भी मिली ~~-किसी मरदूर की अंगूठी। वह गरक हो जाए। इस सूटकेस में मेरी बिटिया कामिनी के कपड़े हैं। अरे भगवान ने मुझे क्यों न उठा लिया ! " मेजर ने माली मातादीन के हाथ से सूटकेस लेकर उसे खोल दिया। इतने में डाक्टर भी वहां पहुंच गया। वह सूटकेस देखकर बोला, "यह तो कामिनी का सूटकेस है। यहां कैसे आ गया ? कामिनी तो इसे अपने साथ नम्बई से गई थी। मुझे
अच्छी तरह याद है। मैंने यह सूटकेस उठाकर कार में रखा था ।"
"डाक्टर साहब, आपको याद होगा- आपने मुझे बताया था कि आप कामिनी को रेलवे स्टेशन पर छोड़ आए थे। लक्ष्मी का कहना है कि कामिनी हवाई जहाज से बम्बई जाना चाहती थी ।"
" जी हां -~-उसे हवाई जहाज से ही जाना था। लेकिन उस दिन आधी रात से पायलटों की अचानक हड़ताल शुरू हो गई थी। इस ख्याल से कि हड़ताल कब तक
चले, कामिनी ने ट्रेन से जाने का फैसला कर लिया। मैं उसे हवाई अड्डे से रेलवे स्टेशन ले गया। फर्स्ट क्लास का टिकट लिया। प्लेटफार्म पर पन्द्रह मिनट तक उससे
बातें करता रहा । कामिनी मेरी सेहत का बहुत ख्याल रखती थी। उसे मालूम था कि मैं सर्दी बहुत महसूस करता हूं। उसने मेरे न न करने पर भी मुझे वापस भेज दिया । "
" इसका मतलब तो यह हुआ कि स्टेशन से आपके चले आने के बाद कोई कामिनी से मिलने गया।" मेजर ने अर्थपूर्ण नजरों से राजेश की ओर देखा और पुन:
डाक्टर से बोला, "क्या आपने वापस आकर किसी को बताया था कि कामिनी ट्रेन से बम्बई जा रही है ? "
"हां,
मैंने अपनी पत्नी को बताया था ।"
" किस समय ? " मेजर ने पूछा ।
“साढ़े पांच बजे ।" रजनी ने अपने पति की ओर से उत्तर दिया ।
मेजर ने जब से यह पूछताछ करनी शुरू की थी, लछमी ने रोना-धोना बन्द कर दिया था। मेजर गहरे सोच में डूब गया और फिर उसने अपना सिर उठाकर लक्ष्मी से पूछा, "वह अंगूठी कहां है जो सूटकेस के पास जमीन में दबी हुई मिली है ?"
लछमी ने अपनी धोती के पल्लू से अंगूठी खोलते हुए फिर रोना शुरू कर दिया।
" तुम रो क्यों रही हो- सूटकेस जमीन में दबे होने से यह तो नहीं सिद्ध होता कि कामिनी की हत्या कर दी गई है ?" मेजर ने कहा ।
"बाबू जी, मेरा दिल गवाही देता है कि मेरी बेटी कामिनी जिन्दा नहीं है । " और लछमी ने अंगूठी मेजर के हवाले कर दी ।
मेजर उस अंगूठी को अपने हाथ में लेकर देखने लगा तो राजेश बोला, "यह तो मेरी अंगूठी है । "
"यह अंगूठी आपकी है ? " मेजर ने राजेश से पूछा ।
" हां --- डेढ़ महीना पहले यह अंगूठी खो गई थी। मैं नहाते हुए इसे उतारकर बाथरूम में छोड़ आया था। जब मुझे अंगूठी याद आई और मैं बाथरूम में गया तो
अंगूठी वहां मौजूद नथी । जरूर इस लछमी ने ही इसे उठाया होगा और अब बात बना रही है कि अंगूठी दबे हुए सूटकेस के पास मिली ।'
"मैं झूठ बोल रही हूं तो मेरी जबान जल जाए ! क्यों मातादीन, यह अंगूठी तुझे कहां मिली ? '
"सूटकेस के पास मिट्टी में । " मातादीन ने उत्तर दिया ।
"देखिए मिस्टर राजेश ! मेरा भी यही ख्याल है कि जब आप सूटकेस जमीन में गाड़ रहे थे तो यह अंगूठी आपकी उंगली से फिसलकर मिट्टी में जा मिली और आपको खबर तक न हुई। बाद में जब आपको पता चला कि अंगूठी गायब है तो आप समझ गए कि सूटकेस के साथ आपने अपनी अंगूठी भी गाड़ दी। लेकिन अब आप उस जगह को दोबारा खोदकर अपनी अंगूठी निकालने का खतरा मोल नहीं ले सकते थे | मिस्टर राजेश ! कामिनी कहां है ? ” मेजर ने पूछा ।
राजेश ने कोई उत्तर न दिया ।
"मेरी दस फीसदी मुश्किल भी दूर हो गई है। मुझे हत्यारों का पता चल चुका है। अब आप सब लोग मेरे साथ अजायबघर में चलिये। मैं आपको बताऊंगा कि हत्यारा फोन है और कामिनी कहां है।"
***
क्रमशः...
अगला भाग: "पथरीली कब्र"
अजायबघर में सब लोग अपने-अपने स्थानों पर बैठ चुके थे। रूपा, लछमी, माली मातादीन और सिद्दीकू नीचे गलीचे पर और रजनी, डाक्टर, राजेश और इन्स्पेक्टर सोफों और कुर्सियों पर । सब-इन्स्पेक्टर गुरुदयाल दरवाजे के पास खड़ा था । सोनिया रजनी के पास एक स्टूल पर बैठी थी ।
मेजर ने सामने की दीवार के साथ लगी हुई कुर्सी पर से उठते हुए कहा, "यहां जितने लोग बैठे हैं, उन्हीं में हत्यारे भी मौजूद हैं। दीवान सुरेन्द्रनाथ की हत्या मनुष्य के कुचले हुए अरमानों और दबी-घुटी ख्वाहिशों की दुःखद कहानी है। अधिकतर अपराध ईर्ष्या, द्वेष, दुश्मनी आदि के कारण किए जाते है । लेकिन आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि हत्या की इस वारदात में बिल्कुल अनोखी भावनायें काम कर रही थीं । एक ओर ऐसा पिता था जो जीवन के सबसे बड़े आनन्द से वंचित हो चुका था लेकिन इसके बावजूद सन्तान का इच्छुक था। उसके यहां बेटी हुई। वह उसे अपनी सगी वेठी की तरह प्यार करता था। लेकिन धीरे-धीरे यह प्यार घृणा में बदल गया । उसके हृदय पर इस विचार से छुरियां चलने लगीं कि वह उस बेटी के लिए अपनी सारी जायदाद छोड़ जाएगा जो उसकी अपनी बेटी नहीं थी। इस प्रकार की भावनाओं में बहकर अन्त में वह अपनी बेटी का शत्रु बन गया। दूसरी ओर बेटी थी। जब
तक वह अपने पिता को सगा पिता समझती रही, उससे अथाह प्यार करती रही, लेकिन ज्योंही उसे पता चला कि वह उसका सगा पिता नहीं था तो यह वास्तविकता
उसके स्वभाव में परिवर्तन लाने लगी। मनुष्य के दिल की दुनिया बड़ी विचित्र है । कभी-कभी अज्ञानता उसके लिए मुसीबत सिद्ध होती है और कभी ज्ञान अजाब बन जाता है| पिता के प्रति बेटी के दिल में उपेक्षा पैदा हुई तो उसने धीरे-धीरे घृणा का रूप धारण कर लिया। उस सौतेले पिता की दौलत बेटी के लिए जहर बन गई । उसने निश्चम कर लिया कि वह ऐसे पिता की दौलत को हाथ तक नहीं लगाएगी । लेकिन जीवन की वास्तविकताएं बड़ी कटू होती हैं। पैसा चूंकि मनुष्य के सुख, आराम, इज्जत और शोहरत का बहुत बड़ा साधन होता है, इसलिए उसे ठुकराना कठिन हो जाता है। पहले तो वह अड़ी रही कि अपने सौतेले पिता के पैसे को नहीं छुएगी, लेकिन जब उसे वास्तविक जीवन का सामना करना पड़ा तो उसने देखा कि पैसे के बिना वह कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकती। उसने पिता से नाराज होकर एक्ट्रेस बनने का इरादा किया। प्रेम भी किया, लेकिन ताबड़-तोड़ कठिनाइयों के सामने वह हिम्मत हारने लगी । उसका दिल डांवाडोल हो गया। जब वह बम्बई से यहां आई तो दो नावों में सवार थी, क्योंकि अभी उसमें कुछ हिम्मत बाकी थी । वह दोराहे पर खड़ी थी । दिल से निकलने वाली एक आवाज यह कहती थी कि अपना फैसला मत बदलो, ऐसे पिता की दौलत से कोई सरोकार न रखो, लेकिन दूसरी आवाज यह कहती थी कि इतनी दौलत कोई मूर्ख ही ठुकरा सकता है। जब वह इस असमंजस की स्थिति तक पहुंची तो उस समय तक तीर हाथ से निकल चुका था | बाप बेटी की लगावट से लाभ उठाने वाली शक्तियां मैदान में उतर चुकी थीं। उन शक्तियों को जब यह मालूम हुआ कि बेटी अपना इरादा बदल रही है और पिता से समझौता करना चाहती है तो वे हरकत में आ गईं, क्योंकि अब उनका अपना भविष्य खतरे में था। दीवान सुरेन्द्रनाथ की हत्या हत्यारों की ओर से अपने भविष्य को सुरक्षित रखने की चेष्टा है। मनुष्य अपना भविष्य संवारने के लिए भी कभी-कभी घिनौने अपराध कर बैठता है। यह अलग बात है कि कानून हरकत में आ जाता है और उसे उसके अपराध की सजा दिलवा देता है, लेकिन जो व्यक्ति अपना भविष्य संवारने के लिए हत्या कर रहा होता है, उसे अपराध करते समय यह विश्वास होता है कि कानून उस पर अपना फंदा नहीं फेंक सकता। ऐसा अपराधी चूंकि बहुत चतुर होता है इसलिए वह अंधाधुंध कोई कदम नहीं उठाता | खूब सोच-समझकर हत्या की साजिश तैयार करता है । इस केस में भी हत्यारे बहुत चालाक और समझदार हैं। उनकी राह में दो ही रुकावटें थीं: बेटी और पिता--- कामिनी और दीवान सुरेन्द्रनाथ | बेटी की हत्या इसलिए पहले करनी पड़ी कि कहीं वह अपने बाप की इच्छा के सामने सिर न झुका दे और इस तरह उसकी दौलत के बड़े हिस्से की मालिक न बन जाए...।"
"क्या मतलब ? बेटी यानी कामिनी की हत्या दीवान सुरेन्द्रनाथ की हत्या से पहले कर दी गई ?" इन्स्पेक्टर धर्मवीर दोला ।
"हां, बेटी की हत्या पहले की गई । "
“कामिनी की लाश तो मिली नहीं। आप कैसे कह सकते हैं कि उसकी हत्या कर दी गई ? " इन्स्पेक्टर ने नया प्रश्न किया ।
"कामिनी की लाश भी यहीं है और पन्द्रह मिनट में मिल जाएगी। हां, तो मैं कह रहा था कि पहले बेटी को रास्ते से हटा दिया गया और फिर इस ख्याल से, कि कहीं पिता का दिल न पसीज जाए, वह दोबारा अपना वसीयतनामा न बदल दे, पिता को भी चलता कर दिया गया।" मेजर ने कहा ।
"हत्यारा कौन हैं ?" इन्स्पेक्टर ने अत्यन्त उत्सुकता से पूछा ।
"पहले मैं आपको यह बताता हूं कि कामिनी की लाश कहां है ।" मेजर ने, मिस्र देश के पुरातत्त्व वाले कमरे की ओर कदम बढ़ाते हुए कहा । और फिर दरवाजे के पास रुककर इन्स्पेक्टर से बोला, "इस बिल्डिंग के गैरेज़ में मोटर का जैक पड़ा होगा । जैक - जिसकी सहायता से मोटर के पहिए ऊपर उठाए जाते हैं। आप किसी से यह जैक मुझे मंगवा दीजिए और फिर मेरे साथ जरा उस कमरे में चलिए। मैं सबको एक अनोखी चीज देखने की दावत देता हूं।"
इन्स्पेक्टर धर्मवीर ने सब-इन्स्पेक्टर गुरुदयाल को इशारा किया कि वह गैरेज से जैक उठा लाए । सब लोग मिस्र देश के पुरातत्त्व वाले कमरे में जाकर दीवारों के साथ लगकर खड़े हो गए। मेजर ने नाटकीय ढंग से कहा, "अगर आप जरा लम्बा सांस लें और सूंबकर देखें तो आपको एक खट्टी-सी हल्की बू का अहसास होगा।"
सब लोग लम्बे-लम्बे सांस लेने लगे और सूंघने लगे ।
"हां, बू तो आ रही है ।" सबसे पहले लक्ष्मी बोली ।
"यह बू आने वाले दो तीन दिन में काफी तेज हो सकती थी, इसलिए इस बू को दूर करने की कोशिश की गई। अगर मेरा अनुमान गलत नहीं है तो यह कामिनी की लाश की है और कामिनी की लाश महारानी नफरीती के इस लेटे हुए बुत और इस बुत के नीचे पथरीली कब्र के खोल में रखी हुई है।"
मेजर के इस रहस्योद्घाटन पर सब अवाक रह गए ।
“मिस्टर राजेश ! क्या आपको मालूम था कि प्रोफेसर मोरावियो अफ्रीका से ममी तैयार करने वाला मसाला लाए थे ? "
“जी हां-मुझे मालूम था ।" राजेश ने दबी जवाब से कहा ।
“क्या आपको यह मालूम था कि यह मसाला अगर लाश पर मल दिया जाए तो वह एक महीने तक खराब नहीं होती ? "
“जी, मोरावियों ने अपने तजुर्बे के बारे में बताया था ।"
"आप लोग जरा ध्यान से महारानी नफरीती का बुत देखिए । यह पथरीली, कब्र के ऊपर लेटी हुई महारानी का बुत है। यह बुत मिस्टर डिक्सन ने तैयार किया था। यह बुत उन्होंने एक खास उद्देश्य से बनाया था। यूरोप के धनी लोग ऐसे बुत अपनी सम्वन्धी स्त्रियों के मरने पर खरीदते हैं ताकि उनकी कब्र पर इस बुत को रख सकें । मैं शायद कभी यह न जान पाता कि कामिनी की लाश इस पथरीली कब्र के भीतर छिपी हुई है, अगर मिस्टर डिक्सन उस रात को, जिस रात डाक्टर साहब पर कातिलाना हमला हुआ था, अपना यह बुत रखने के लिए न आते और अपनी सिगरेट का अधजला टुकड़ा यहां न छोड़ जाते। मैं समझता हूं कि मिस्टर डिक्सन को भी जरूर शक हुआ होगा कि इस कब्र के अन्दर कोई चीज है, वर्ना वे देर तक इस कमरे में न रहते। आप जरा पास आकर देखिए कि जिस जगह महारानी नफेरीती का सिर है, वहां कुछ खराशों के निशान हैं। ये खराशें जैक के इस्तेमाल से पड़ी हैं। मैंने भी इसीलिए जैक गंगवाया है, क्योंकि उसके बिना कब्र को ऊपर उठाना मुश्किल है।"
इतने में सब-इन्स्पेक्टर गुरुदयाल जैक ले आया।
मेजर ने जैक पथरीली कब्र के ऊपर के किनारे में फिट कर दिया और उसकी सहायता से कब्र को ऊपर उठाने लगा। जैक ज्यों-ज्यों कब्र को ऊपर उठाता जा रहा था- देखने वालों की सांसें रुकती जा रहीं थी। जब वह कब्र एक फुट के करीब उठ गई तो मेजर ने झुककर उसके भीतर झांककर देखा। वह मुस्कराया। उसने कब्र के अन्दर हाथ डालकर कामिनी की लाश बाहर खींच ली ।
लाश को देखते ही लक्ष्मी ने एक हृदय विदारक चीख मारी और उछलकर कामिनी की लाश पर गिर पड़ी। सोनिया और रजनी के मुंह से हल्की-सी चीखें निकली और उन दोनों ने अपनी आंखों पर हाथ रख लिए । कामिनी की छाती में खंजर दस्ते तक गड़ा हुआ था और वह बिल्कुल नंगी थी। उसके बदन पर मली हुई कोई चीज चमक रही थी। ऐसा मालूम होता था जैसे वह मुर्दा न हो, सोई पड़ी हो । उसका शरीर बिल्कुल नहीं अकड़ा था- लक्ष्मी ने अपनी आधी धोती फांड़कर उस पर डाल दी थी और वह सिसक-सिसककर रो रही थी।
"मेरा अनुमान गलत नहीं निकला।" मेजर ने कहा, "कामिनी को स्टेशन से लाकर यहां कत्ल कर दिया गया। यह भी हो सकता है कि रास्ते में ही उसकी हत्या कर दी गई हो । फिर उस पर ममी तैयार करने वाला मसाला मलकर इस कब्र में दफना दिया गया हो । हत्यारे बहुत चालाक और होशियार थे। ऐसा करने से, उन्हें मालूम था कि किसी को कभी यह पता नहीं चल सकेगा कि कामिनी कहां है । और समय मिलने पर वे इस लाश को यहां से निकालकर हमेशा के लिए तहस-नहस कर देंगे।"
"हत्यारे कौन है ?” इन्स्पेक्टर ने फिर अधीरता से पूछा।
मेजर क्षण भर के लिए मौन रहा और फिर बड़े नाटकीय ढंग से उसने घोषणा की, “राजेश, रजनी और सिद्दीकू ?" रजनी ने अपने होंठों पर हाथ रखकर अपनी चीख को दबाने की कोशिश की।
हब्शी सिद्दीकू तेजी से अपनी आंखें झपकाने लगा। राजेश बिल्कुल स्तब्ध रह गया ।
"इस हत्या के पीछे राजेश का दिमाग काम कर रहा था ।" मेजर ने कहा ।
"झूठ — विल्कुल झूठ ।" अब राजेश ने तिलमिलाकर कहा ।
इन्स्पेक्टर धर्मवीर बड़ी शान ते कदम उठाता हुआ उसके पास जा खड़ा हुआ और बोला, "आप चुप रहिए !”
मेजर ने बात जारी रखते हुए कहा, "इस हत्या के पीछे राजेश का दिमाग काम कर रहा था नौजवान दिलों की इच्छाएं बड़ी तुंद व तेज होती हैं। रजनी की जबानी उसे मालूम हो चुका था कि कामिनी कौन है और किसकी बेटी है। उसके चाचा के यहां कामिनी का जन्म किन परिस्थितियों में हुआ था, इसे भी वह जान चुका था । कामिनी रजनी की बहन थी लेकिन पिता की ओर से । कामिनी उसकी मां की नहीं उसकी मौसी की बेटी थी। राजेश को यह सब सुनकर न सिर्फ कामिनी से, बल्कि अपने चाचा से नफरत हो गई। उसने बाप-बेटी की अनबन से पूरा फायदा उठाना चाहा। उसे रजनी से प्रेम था। रजनी को दौलत और शान-शौकत प्यारी थी। राजेश ने उसके क़दमों पर दौलत का अंबार लगा देने की योजना बनाई और अपनी योजना में रजनी और सिद्दीकू को शामिल कर लिया। जहां तक कामिनी के प्रेमी प्रदीप से बदला लेने का सम्बन्ध है, वह दीवान सुरेन्द्रनाथ का अपना व्यक्तिगत मामला था । उन्होंने वेस्टइंडीज के चार कारीगरों को इस उद्देश्य के लिए बम्बई भेजा था और उनको प्रदीप का पता दे दिया था। लक्ष्मी के नाम या लक्ष्मी के द्वारा कामिनी के जो पत्र आते थे, दीवान साहब उनको पहले पढ़ लिया करते थे । राजेश को भी इस बात का पता था कि दीवान साहब ने उन कारीगरों को बम्बई क्यों भेजा था। दीवान साहब ने उसे अपना राजदार बना लिया था। उन कारीगरों को हिदायत कर दी गई थी कि उनको राजेश की हिदायत पर भी अमल करना होगा। सुरेन्द्रनाथ ने कामिनी के विरुद्ध जो कदम उठाया उसने राजेश को शह दी कि चाचा अगर अपराध करने से नहीं हिचकिचाता तो फिर उसे कौन रोक सकता है।"
"आप झूठ का अम्बार लगा रहे हैं।" राजेश ने भड़ककर कहा, लेकिन इंस्पेक्टर ने फिर उसे रोक दिया !
मेजर ने राजेश की बौखलाहट की परवाह न करते हुए कहा, "जिस दिन वेस्टइंडीज के कारीगर दीवान सुरेन्द्रनाथ की योजना पर अमल करने के लिए बम्बई रवाना हुए, उसी दिन राजेश ने फैसला कर लिया कि वह कामिनी को बम्बई नहीं जाने देगा । लेकिन उसकी योजना मिट्टी में मिल गई क्योंकि कामिनी ने अचानक हवाई जहाज से बम्बई जाने का प्रोग्राम बना लिया। अगर वह हवाई जहाज से जा पाती तो शायद आज जिन्दा होती । लेकिन कोई भी अपने भाग्य को लिखे को नहीं मिटा सकता । कामिनी को ट्रेन से जाना पड़ गया और राजेश को समय पर पता चल गया । वह स्टेशन पहुंचा और इस बहाने से कामिनी को वापस ले आया कि दीवान साहब उससे एक जरूरी बात करना चाहते हैं। उसने रास्ते में ही कामिनी का काम तमाम कर दिया या यहां लाकर उसे मौत के घाट उतार दिया।"
राजेश ने झल्लाकर फिर कुछ कहना चाहा, लेकिन इन्स्पेक्टर ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया ।
मेजर ने राजेश की ओर देखे विना कहा, “कामिनी से निबटने के बाद दीवान साहब को रास्ते से हटाने की तदवीरें होने लगीं । दीवान साहब की हत्या में ज्यादा सफाई से काम लिया गया। इस हत्या पर भ्रमों का पर्दा डालने की कोशिश की गई। ऐसा प्रकट किया गया जैसे अफ्रीका की प्रतिशोध की देवी 'जूम्बी' ने दीवान साहब को मौत की नींद सुला दिया हो। देवी, जूम्बी की मूर्ति को हत्या के लिए इस्तेमाल करना भी राजेश के दिमाग की उपज थी । लेकिन मैं आपको यह बता देना चाहता हूं कि दीवान साहब का सिर हथौड़े से तोड़ा गया था और बाद में देवी 'जूम्बी' की मूर्ति, उनके सिर पर फेंकी गई थी। दीवान साहब की हत्या का दोहरा उद्देश्य था। हत्या का आरोप डाक्टर बनर्जी पर लगाने की कोशिश की गई। हत्या से पहले डाक्टर साहब के काफी के प्याले में अफीम मिला दी गई थी और इस तरह उन्हें गहरी नींद सुला दिया गया था। काफी में अफीम मिलाने का काम सिद्दीकू ने किया जो तबीयत के खराब होने का बहाना करके अपने कमरे में पड़ा रहा था। सिद्दीकू अपने कमरे में मौजूद रहकर डाक्टर साहब की निगरानी कर रहा था। डाक्टर साहब को हत्यारा सिद्ध करने के लिए उनकी टाई का पिन दीवान साहब की लाश के पास फेंका गया । डाक्टर साहब की लिखी हुई रिपोर्ट दीवान साहब के हाथ में दे दी गई । डाक्टर साहब के जूते के एक पैर का जून से लिथड़ा हुआ दाग बनाया गया। दुर्भाग्य से डाक्टर साहब देवी जूम्बी की मूर्ति पर अपनी उंगलियों के निशान छोड़ चुके थे। कोई भी पुलिस अफसर इस प्रमाण के आधार पर वेचारे डाक्टर साहब को फांसी के तस्ते पर लटकवा सकता था, लेकिन मुझे हत्यारे का विछाया हुआ जाल मालूम हो चुका था इसलिए मैंने डॉक्टर साहब का हर तरह से पक्षपात किया ।" यह कहकर मेजर ने डाक्टर की ओर देखा जिसके चेहरे पर प्रसन्नता का प्रकाश फैला हुआ था ।
मंजर ने सांस लेते हुए कहा, "जब राजेश ने यह देखा कि उसका बिछाया हुआ जाल बेकार चला गया तो उसके पास डाक्टर साहब को भी अपनी राह से हटाने के सिवा और कोई चारा न रहा। उसने उन पर खंजर से कातिलाना हमल किया। अब राजेश चूंकि बौखला चुका था इसलिए वह खंजर की म्यान भी कहीं फेंके देने या नष्ट कर देने का साहस न कर सका। मुझे कामिनी के सिलसिले में बम्बई जाना पड़ा। राजेश को जब इन्स्पेक्टर से यह पता चला कि मैं बम्बई गया हूं तो उसका माथा ठनका। उसने वेस्टइंडीज के कारीगरों को तार दिया कि वे प्रदीप को उस मकान से किसी दूसरी जगह ले जाएं। लेकिन मैं भी कच्ची गोलियां नहीं खेला था मैंने राजेश के आदमियों का पीछा किया। उनसे हमारी मुठभेड़ हुई जिसमें तीन कारीगर मारे गए | अगर मैं उनमें से किसी एक को जिन्दा पकड़ सकता तो मुझे इतन दलीलें देने की जरूरत न पड़ती, क्योंकि वह व्यक्ति ही राजेश का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख देता। खैर, अभी चौथा कारीगर जिन्दा है। वह आज-कल में जरूर यहां आएगा। उसे गिरफ्तार करना इन्स्पेक्टर साहब का काम है क्योंकि अब मैं जल्दी वापस बम्बई चला जाऊंगा। मिस्टर डिक्सन केवल इस लिए काबू में आ गए कि उनको भी सन्देह हो गया था कि हत्यारा कौन है। हत्यारे के लिए मिस्टर डिक्सन का ज़िंदा रहना खतरनाक था, इसलिए उन पर भी कातिलाना हमला हुआ। उन पर भी हमले का वही ढंग अपनाया गया जो दीवान साहब के लिए अपनाया गया था। डॉक्टर साहब केवल हमारे यहां मौजूद रहने के कारण जिन्दा हैं वर्ना राजेश ने इनको भी अपने रास्ते से हटा देने के बाद रजनी के साथ आयु-भर आनन्द का जीवन बिताया होता।
"मुझे क्या मालूम था कि मैं अपनी आस्तीन में सांप पाल रहा हूं।" डॉक्टर ने क्रोध में मुँह से झाग छोड़ते हुए कहा ।
मेजर दरवाजे के पास जा खड़ा हुआ । इन्स्पेक्टर धर्मवीर ने सब-इंस्पेक्टर गुरुदयाल को संकेत किया तो गुरुदयाल इन्स्पेक्टर के पास चला आया । वे दोनों रजनी, सिद्दीकू और राजेश को घेरकर खड़े हो गए। डाक्टर क्रोध से बिलबिला रहा था, "मैं नहीं जानता था कि मैं अपने दुश्मनों को पनाह दे रहा हूं। मेरा सब बर्बाद हो चुका है। मैं अब इस घर में एक मिनट के लिए भी रहने को तैयार यह कहकर डाक्टर दरवाजे की ओर बढ़ा। जब वह दरवाजे पर खड़े मेज के पास पहुंचा तो उसने अपना हाथ मेजर की ओर बढ़ाते हुए कहा, "मैं आपका आभारी हूं | आप न होते तो ये लोग मेरा काम तमाम कर चुके होते ।"
मेजर ने डाक्टर साहब का हाथ अपने हाथ लेकर जोर से दबाया। जब मेजर ने उसका हाथ न छोड़ा तो डाक्टर आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगा। और फिर अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगा।
"डाक्टर साहब, मैं आपका हाथ कैसे छोड़ सकता हूं ! "
"मुझे जाने दीजिए। मैं हत्यारे के पास नहीं रह सकता । " डाक्टर ने अपना हाथ छुड़ाने के लिए पूरा जोर लगाया |
"अब आप अपना हाथ नहीं छुड़ा सकेंगे। यह मजबूत पकड़ में आ चुका है ।" मेजर कहा ।
"क्या मतलब मैं समझा नहीं !" डाक्टर ने कहा ।
" मैं समझाता हूं। मैं हत्यारे का हाथ अपने हाथ में लेकर फिर उसे छोड़ा नहीं करता ।"
सब लोग सांस रोककर यह तमाशा देख रहे थे ।
मेजर की इस बात पर उनके मुंह खुले के खुले रह गए ।
मेजर ने इन्स्पेक्टर की ओर देखते हुए कहा, "आप इन लोगों को क्यों घेरे खड़े हैं ? असली हत्यारा तो मेरी पकड़ में है। चतुर व्यक्ति कभी-कभी अपनी चतुराई का बड़ा ही अनुचित लाभ उठाता है। उसको यह घमंड हो जाता है कि उस जैसा चालाक और बुद्धिमान व्यक्ति इस संसार में नहीं है। मैंने उसका यह घमण्ड तोड़ने के लिए ही राजेश, रजनी और सिद्दीकू को हत्यारे ठहराने के लिए जोरदार दलीलें पेश की थीं। इस बीच में उनके दिलों पर जो बीती उसके लिए मैं उनसे क्षमा चाहता हूं लेकिन अपराधी को पकड़ने का केवल यही एक ढंग था। देख लीजिए, जब डाक्टर को यह विश्वास हो गया कि ये साफ बच निकले हैं, तो किस तरह इन्होंने फरार हो जाने का बहाना बनाया कि इस घर में एक मिनट के लिए भी नहीं रहना चाहते ।" और फिर मेजर डाक्टर से सम्बोधित हुआ, "आप अपने दिल में बहुत खुश हुए होंगे कि आपने जैसा चाहा था वैसा ही हुआ। आप राजेश को हत्यारा सिद्ध करना चाहते थे ताकि उससे अपनी पत्नी से प्रेम करने का बदला ले सकें। आपको अपनी पत्नी और राजेश के सम्बन्धों का पता था। आप एक तीर से तीन शिकार करना चाहते थे । आपने कामिनी की हत्या इसलिए की कि उसकी दौलत का हिस्सा आपकी पत्नी और राजेश को मिले और आपने दीवान सुरेन्द्रनाथ को इसलिए मौत के घाट उतार दिया कि वे कश्मीर में आपकी मुहिम पर रुपया लगाने के लिए तैयार. नहीं थे। दूसरा कारण यह था कि वे किसी भी समय अपने वसीयतनामे को बदल सकते थे । आपने अपने खिलाफ जाने वाले सारे सुराग इसलिए छोड़े ताकि राजेश पर दीवान साहब की हत्या का सन्देह विश्वास में बदल जाए। आपने दीवान साहब के सिर पर हथौड़ा मारकर उनकी हत्या की । उसके बाद देवी जुम्बी की मूर्ति को उनके सिर के निकट फेंक दिया। आपने जान-बूझकर उस मूर्ति पर अपनी उंगलियों के निशान जमाए | आपने जान-बूझकर अपने जूते के खून-भरे निशान पैदा किए। आपने अपने काफी के प्याले में खुद अफीम का पाउडर मिलाया । इसके साथ-साथ आपने ऐसे सुराग भी छोड़े जिनसे यह सिद्ध हो कि हत्या राजेश ने की थी । आपने पुलिस को भ्रम डालने की हर संभव कोशिश की। अगर पुलिस इन्स्पेक्टर धर्मवीर के कहने के अनुसार आपको शुरू में ही गिरफ्तार कर लिया जाता तो प्रमाणों की कमी के कारण, आप साफ बच निकलते और राजेश कानूनी शिकंजे में फंस जाता । आपने स्वयं ही अपने आप पर कातिलाना हमला किया और खंजर की चमड़े की म्यान राजेश के बिस्तर की दरी के नीचे छिपा दी। यही कारण है कि आपने आग्रह किया था कि म्यान जरूर ढूंढ़नी चाहिए। और फिर जब मैं बम्बई गया तो आपने अपने आदमियों को तार दिया ताकि बाद में उस तार को अदालत में इस्तेमाल किया जा सके, और राजेश के विरुद्ध हत्या का अपराध सिद्ध करने में रही-सही कसर भी पूरी हो जाए राजेश ने मिसेज रजनी को जो पत्र लिखा था, लेकिन रजनी को दिया नहीं था, वह भी आपने अपने पास सुरक्षित रखा। उस पत्र की नकल आपने अपने हाथ से तैयार की और वह पत्र टुकड़े-टुकड़े करके रद्दी की टोकरी में फेंक दिया ताकि वह पत्र हमें मिल जाए और हम राजेश पर संदेह करने लगें । मैं यह स्वीकार करता हूं कि अगर कामिनी की तलाश में दिल्ली न आता और इन्स्पेक्टर धर्मवीर दीवान सुरेन्द्रनाथ की हत्या की समस्या सुलझाने में मेरी सहायता न चाहते तो आप अपने उद्देश्य में सफल हो गए होते। एक निर्दोष नौजवान फांसी के तख़्ते पर लटक जाता। एक बात मैं और बता दूं कि जब वेस्टइंडीज के कारीगरों को बम्बई भेजा गया था तो प्रदीप से निबटने की साजिश भी आपके दिमाग की उपज थी । आपने ही दीवान साहव को यह परामर्श दिया था। जब आपने दीवान साहब को ठिकाने लगा दिया, तो वेस्टइंडीज के कारीगरों को आपने हिदायतें देनी शुरू कर दीं। यही नहीं, जो तीन कारीगर यहां मौजूद रहे उनकी सहायता से आपने मिस्टर डिक्सन की और फिर मेरी हत्या करने की कोशिश की। यह मैं मानता हूं कि आप अपने कमरे से कहीं बाहर नहीं गए, लेकिन आपने उनको पैगाम पहुंचाने का अनोखा तरीका अपनाया । आपके सोने के कमरे मे जो तीर-कमान रखा है, उसने आपके लिए पैगाम देने और पैगाम लेने का काम किया। आप तीर में पत्र फंसाकर कमान द्वारा अपने आदमियों को भेजते थे और आपके आदमी उस तीर को अपनो कमान के द्वारा आपके कमरे में अपने पैगाम के साथ वापस लौटा देते । वह तीर उस ब्लैक बोर्ड में आकर लगता था जिसके बारे में आप यह कहते रहे हैं कि आप उसे मूर्तियों के रेखाचित्र या नमूने बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। उस बोर्ड पर जो गड्ढे पड़े हुए हैं, वे तीरों के निशान हैं। डाक्टर साहब ! अब आप अपने अपराधी होने से इन्कार नहीं कर सकते।"
"आप मुझ पर झूठा आरोप लगा रहे हैं।" डाक्टर ने कहा।
"देखिए – मिस्टर डिक्सन भी इसी परिणाम पर पहुंच चुके थे कि आप ही हत्यारे हैं । मिस्टर डिक्सन का मिस्री पुरातत्त्व के कमरे में जाना आपके विरुद्ध अपराध का अन्तिम प्रमाण बन गया । कामिनी की तलाश मिस्टर डिक्सन की उस हरकत के कारण सफल हुई | मिस्टर डिक्सन को आज शाम तक होश आ जाएगा और फिर आप अपने अपराधी होने से किसी तरह भी इनकार नहीं कर सकेंगे । " मेजर के इन अन्तिम शब्दों ने डाक्टर को मानो तोड़कर रख दिया। उसकी टांगें कांपने लगीं।
"लीजिए इन्स्पेक्टर साहब ! हत्यारे को सम्भालिए और हमें आज्ञा दीजिए।"
समाप्त
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