दोपहर के ढाई बजे रुस्तम राव, बांकेलाल राठौर और कर्मपाल सिंह वहां पहुंचे ।


डिग्गी में से वो तिजोरी निकालकर भीतर ले आए।


"सलाप बाप। " रुस्तम राव के चेहरे पर मासूम मुस्कान उभरी। वो देवराज चौहान से बोला- “आने में देर होएला! इधर ये कर्मपाल भी देर से आयेला। उधर पारसनाथ का फोन आने में भी देर हो गई।'


"क्या बोला पारसनाथ ?"


"तुम्हारा नंबर मांगा। आपुन ने नोट करवाएला बाप। फोन आया?" रुस्तम राव ने पूछा।


देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाया। 


जगमोहन सोफे पर अधलेटा सा था।


सोहनलाल कुर्सी पर बैठा गोली वाली सिगरेट के कश ले रहा था। "तंम नेई सुधरा नशे वालों सिगरेट थारे को ले डूबो ।' बांकेलाल राठौर ने कहा।


सोहनलाल ने मुंह बनाकर उसे देखा।


"तेरी मूंछे लंबी हुई?"


"म्हारी मूंछो से, यारी नशो वाली सिगरेट से का मतलब हौवे ?" बांकेलाल राठौर ने उसे घूरा।


"मतलब ही तू नशा नहीं करता। मैने सोचा नशा न करने से तेरी मूंछें लंबी होंगी। लेकिन ये तो उतनी ही हैं जितनी पहले देखी थी। फिर क्या फायदा नशा न करने का। तू भी मार ले एक आघ सिगरेट |"


"म्हारो धर्म भ्रष्ट करो हो तंम अंम वो छोकरा अमित नेई होएला जो थारे फेर में पड़कर नशो वाली सिगरेट का गुलाम बनयो अंग तो अंम ही हौवो। " बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।


"वो तेरी गुरदासपुर वाली का क्या हाल है?" सोहनलाल

मुस्कराया।


"ठीको हौवे। "


"गुरदासपुर गया था।" सोहनलाल मुस्करा रहा था।


"नहीं।"


"वो आई थी ?".


"नेई । "


“चिट्ठी, पत्र फोन आया गया था ?"


"वो भी नेई । "


"वो तेरे को कैसे पता कि वो ठीक है। "


"तिल का ताइ बनावो तंम तो जरा सी बात हौवे सीधो-सीधो झूठ। सच बात तो ये हौवे कि वो म्हारे दिल में बसो हो।  वो म्हारा हाल जानो और अंम उसो का हाल देखो। "


"तेरा दिल कितने कमरो वाला है?" 


"बोत कमरे हैं। बड़ा कर लो, छोटा कर लो। म्हारो हाथों में हौवे। थारे को भी रैना का ?" 


"सोच रहा हूं। " सोहनलाल व्यंग्य से बोला। 


"ये कौन बड़ी बात है। दिल के दूसरे कमरों की सफाई करा के, थारे को भी वा भेज दयो।" बांकेलाल राठौर ने उसे घूरा- "ईब बैठो बैठो म्हारा मूं का ताको। तिजोरी खोलो हो। " 


सोहनलाल ने तिजोरी पर निगाह मारी। "इसमें क्या खास है?"


"काले रंग की फाइल पड़ो हो भीतर। वो म्हारे को चाहिए।"


"कुछ और?"


"नेई। वो ही चाहो। "


"तो फाइल के अलावा, जो निकला। वो मेरा।" 


"म्हारो दिल बोत बड़ो हो। बाकी सबो तेरा। अब खोले का?" 


सोहनलाल उठा और बंगले के भीतर चला गया। 


बांकेलाल राठौर ने जगमोहन को देखा। 


“तू क्यों चुप्पो हौवे हो। मूं तो फाड़ा – ।" 


जगमोहन ने बांकेलाल राठौर को मुंह बनाकर देखा । "रात तुम्हारी दो पैसे की तिजोरी के चक्कर में हमारा पच्चीस करोड़ का हीरा वहां गिर गया जो कि मोना चौधरी के हाथ लग गया। अब बोलने को बाकी बचा ही क्या है?"


“दिलो छोटा मत करो। अंम सबको 'वड' के वो हीरा लायो।" 


तभी रुस्तम राव ने देवराज चौहान को देखा। 


"उस हीरे का नाम दरिया-ए-नूर तो नहीं था?"


जगमोहन फौरन उछलकर खड़ा हो गया।


"तेरे को कैसे मालूम?"


रुस्तम राव के चेहरे पर गंभीरता आ गई। 


"अखबार में पड़ेला है बाप। वो हैदराबाद के प्राइवेट वाल्ट से निकला है बाप?"


"हां। वो...।"


"अखबार में उसके बारे में सब छपेला है। वो पच्चीस करोड़ का नहीं। साठ करोड़ का होएला। पेपर में लिखेला है। उसकी तो बौत कीमत होएला बाप" 


जगमोहन लंबी सांस लेकर रह गया। 


"जो भी हो मेरे को तो उसका पच्चीस मिलना था। सौदा हो चुका था।"


"वो हीरा निकल गया। बोत गलत होएला।"


तभी सोहनलाल वहां पहुंचा। हाथ में बैग और औजारों वाली बैल्ट थी।


"खोलो खोलो अंम थारे को मक्खन का गोला डालकर लस्सी पिलायो।" बांकेलाल राठौर का हाथ अपनी मूंछ पर पहुंच गया- "स्पेशल गुरदासपुरी लस्सी हौवे हो वो—। "


रुस्तम राव, एक तरफ खड़े कर्मपाल सिंह को देवराज चौहान के पास ले गया।


"बाप। तुम बोला था इसकूं लाने वास्ते।" रुस्तम राव बोला । 


देवराज चौहान ने कर्मपाल सिंह पर नजर मारी। 


"कर्मपाल सिंह, बांके का दोस्त " देवराज चौहान ने पूछा।


"हां बाप ।


"बैठो।"


कर्मपाल सिंह बैठ गया। चेहरे पर गंभीरता थी।


"मोना चौधरी यह काम तुम्हारी पहचान वाले, बंगाली के लिए कर रही है। " देवराज चौहान बोला।


"हां" कर्मपाल सिंह ने सहमति में सिर हिलाया।


"मैं जानना चाहता हूं मुंबई में इस वक्त मोना चौधरी कहां है?" 


"ये तो मैं नहीं जानता।"


"लेकिन तुम्हारा दोस्त बंगाली जानता है। वो ही मोना चौधरी को दिल्ली से लेकर आया होगा।"


कर्मपाल सिंह ने सहमति में सिर हिलाया फिर कहा।


"ठीक कह रहे हो। लेकिन बंगाली मुझे मोना चौधरी के बारे में नहीं बताएगा।"


"मैं जानता हूं। लेकिन तुम यह सोचो कि बंगाली से मोना चौधरी का ठिकाना कैसे मालूम किया जा सकता है। यूं कि तुम बंगाली को अच्छी तरह जानते हो इसलिए तुम ही रास्ता निकाल सकते हो। "


"बंगाली बहुत पक्का इंसान है। वो तो मुंह खोलेगा नहीं कर्मपाल सिंह सोच भरे स्वर में बोला।


"उसके किसी खास आदमी को पकड़ो। वो इस बात को जानता होगा। देवराज चौहान ने कहां। 


"नहीं।" कर्मपाल सिंह के होंठों से निकला— “ये करना तो बिलकुल ही गलत होगा.। " 


"क्यों?”


"हम अभी ताजे-ताजे, काम से अलग-अलग हुए हैं। ऐसे में उसकी किसी बात की टोह लूंगा तो बात उस तक पहुंच जाएगी तो वह यही समझेगा कि मैं उसके काम में दखल दे रहा हूं। धंधे से अलग-अलग होने पर हम दोनों के बीच अभी भी बातचीत है। वो खत्म हो जाएगी और खट्टास पैदा हो सकती है।" 


"तो फिर कैसे मालूम होगा कि मोना चौधरी मुंबई में कहां टिकी है?" देवराज चौहान ने उसे देखा। "एक रास्ता है?"


“क्या?" 


''मैं किसी ऐसे आदमी को बंगाली के पीछे लगा देता हूं जो उसके लिए नया होगा। बंगाली मोना चौधरी के पास तो जाता ही होगा। इस तरह मालूम हो जाएगा कि वो कहां है। " कर्मपाल सिंह ने देवराज चौहान को देखा।


"यह ठीक रहेगा। "


“मैं अभी अपने आदमी को फोन करता हूं।" कहने के साथ ही कर्मपाल सिंह फोन की तरफ बढ़ गया। तभी सोहनलाल ने तिजोरी खोल दी। 


"बल्ले-बल्ले।" बांकेलाल राठौर का हाथ अपनी मूंछ पर पहुंच गया— “थारी, मक्खन वाली गुरदासपुरी लस्सी पक्की हौवे। " 


सब निगाहें तिजोरी की तरफ उठ चुकी थीं। सोहनलाल ने तिजोरी का पल्ला खोल दिया। सबने तिजोरी के भीतर बारी-बारी झांका। वहां खास कुछ नहीं था। उस छोटी तिजोरी के दो खाने थे। ऊपर वाले खाने में वो काली फाइल मौजूद थी और नीचे वाले खाने में कुछ पेपर्स और एक रिवॉल्वर पड़ी थी।


बांकेलाल राठौर ने हाथ बढ़ाकर तिजोरी में से फाइल निकाल ली। 


"इसमें तो कुछ भी नहीं है।" जगमोहन के होंठों से निकला -"एक रुपए का सिक्का भी नहीं।"


"मैंने तो सोचा था शंकर भाई की तिजोरी है। " सोहनलाल ने कहा। "तगड़ा माल मिलेगा।"


"बाप वो, कर्मा बोएला तो है कि शंकर भाई ने अपना माल कई पे छिपा कर रखेला है।


बांकेलाल राठौर ने अपनी मूंछ को उमेठा।


"अपणो अपणो किस्मत हौवे। "


देवराज चौहान ने आगे बढ़कर, तिजोरी में पड़े कागजात

निकाले। उन्हें चैक किया।


"क्या है इनमें?" जगमोहन ने पूछा।


'कुछ नहीं। बेकार है। अधिकतर खाली हैं। " देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा -"इसका मतलब शंकर भाई को पहले ही इस बात की आशा रही होगी कि, कोई तिजोरी पर हाथ डाल सकता है। तभी तो इसमें खास कुछ भी नहीं है। "


फोन पर से निपटकर कर्मपाल सिंह, पास आ पहुंचा। बांकेलाल राठौर के हाथ से काली फाइल ली और उत्तेजना में डूबा जल्दी-जल्दी उसे खोलने लगा।


दूसरे ही पल कर्मपाल सिंह का चेहरा फक्क पड़ता चला गया। 


"यह क्या?"


"का हो गईवा?" बांकेलाल राठौर की आंखें सिकुड़ी ।


"ये... ये वो फाइल नहीं है।" कर्मपाल सिंह के होंठों से

हक्का-बक्का सा स्वर निकला।


"का कहत हो। " इसके साथ ही बांकेलाल राठौर ने उसके हाथ से फाइल लेकर देखा। दूसरे ही पल वो भी ठगा सा रह गया। फाइल का हर पन्ना खाली था।


रुस्तम राव ने आगे बढ़कर फाइल पर निगाह मारी।


"बाप। ये तो सफाचट खाली होएला?" रुस्तम राव के होंठों से निकला।


"यो शंकर भाई तो बोत खोपड़ी वाला होएला।" बांकेलाल राठौर ने गहरी सांस ली "फाइल तो तिजोरी में रखो हो। पण वो न रखो, जो कामों की हौवे। "


“अपनी-अपनी किस्मत है।" सोहनलाल ने व्यंग्य से कहा। बांकेलाल राठौर ने मूंछ को ताव देते हुए सोहनलाल को घूरा। "कर्मे।"


"हां। " कर्मपाल सिंह की आवाज बेदम हो रही थी। "अंम थारा काम करो हो। थारा काम हो गया। तन्ने जो बोलो, अंम करो ना?"


"हां। "


"ईब तम म्हारे को ये न कहो कि अंम धारा काम न करो।" 


कर्मपाल सिंह के चेहरे के भाव देखने वाले थे। 


"थारे चक्करों में म्हारे देवराज चौहान का साठी करोड़ का हीरा मोना चौधरी के पासो पौंच गयो। " बांकेलाल राठौर के स्वर में अफसोस के भाव थे— "सबो तरफ से नुकसान ही हौवो। "


देवराज चौहान ने हाथ में पकड़े कागज तिजोरी में वापस रखते हुए कहा।


"शंकर भाई सतर्क रहने वाला इंसान है। " देवराज चौहान बोला— "मैंने पहले ही कहा है कि उसे इस बात का एहसास था कि कोई तिजोरी पर हाथ डाल सकता है। यही वजह रही कि तिजोरी में कुछ नहीं है। "


“यो तिजोरी म्हारे को मिल गई। इसो का बोत अफसोस हौवे। यो तो मोना चौधरी के काबिल ही हौवो। अंम यूं ही बीचो में आ फंसो। मोना चौधरी म्हारे को मिल्लो तो अंम तिजोरी उसो को गिफ्ट में दयो। "


"बाप ये तो बोत गड़बड़ होएला है। " रुस्तम राव ने अपना कान खुजलाया। तभी फोन की बैल बजी।


"ये मोना चौधरी का फोन आएला है। " रुस्तम राव के होंठों से निकला।


देवराज चौहान फोन के पास पहुंचा। रिसीवर उठाया। "हैलो।"


"देवराज चौहान। " मोना चौधरी की आवाज उसके कानों में पड़ी।


"हां। "


"पहचाना?" मोना चौधरी की आवाज में तीखे भाव थे। 


“हां। ” देवराज चौहान के चेहरे पर शांत भाव थे। 


“हीरा मिला?" मोना चौधरी के स्वर में व्यंग्य के भाव झलके। 


“मिल जाएगा। ढूंढ रहा हूं। " देवराज चौहान के चेहरे पर शांत भाव ही रहे। 


“तुम्हारी वजह से मेरे हाथ से रात को तिजोरी निकल गई— ।" 


"नई बात करो। वो रात की बात थी। "


“हीरा चाहिए?"


"हां। "


“वो मेरे पास है। "


"रात को ही मालूम हो गया था। "


‘‘अखबार में खबर पढ़ी। वो ही दरिया-ए-नूर है ना? पचास-साठ करोड़ की कीमत वाला ?"


"ठीक खबर पढ़ी"


"बहुत मेहनत से प्राइवेट वाल्ट से उसे हासिल किया होगा।" 


"मेरे लिए ये काम सामान्य है। मुझे कभी नहीं लगता कि मैंने मेहनत की है। "


"मैं हीरा तुम्हें देने को तैयार हूं। बोलो, वो तिजोरी लेकर आते हो ?" मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी।


"मैं तुम्हें हीरे की कीमत पच्चीस करोड़ दे सकता हूं। जो कि मुझे मिलने वाली थी। " देवराज चौहान ने कहा।


"तुम भूल रहे हो कि मैं हीरे को बेचकर पचास-साठ करोड़ हासिल कर सकती है। "


देवराज चौहान के होंठ भींच गए।


"फिर तो तुम्हें करोड़ों की रकम ले लेनी चाहिए


"जरूरत पड़ी तो वो भी ले लूंगी। अगर तिजोरी न मिली तो । मुझे तिजोरी की जरूरत पहले है। "


देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े। वो खामोश ही रहा।


"लगता है तुम्हें हीरे की जरूरत नहीं है। " मोना चौधरी का स्वर आया। 


"है। "


"तो हीरा लो और तिजोरी दो मंजूर है तो बोलो।"


"मंजूर है। " देवराज चौहान की निगाह तिजोरी पर गई


"अदला बदली कहां होगी?"


"जहां तुम कहो। मुझे कहीं भी आने में परेशानी नहीं।" मोना चौधरी की आवाज में तीखापन आ गया था।


"खंडाला जाने वाली सड़क पर मिलो। झील के तीसरे पत्थर पर। " देवराज चौहान ने कहा। 


"कब ?"


"जब तुम चाहो। आजकल-परसो। "


''मैं अपने काम जल्दी निपटाना पसंद करती हूं। आज शाम चार बजे का वक्त ठीक रहेगा ?" 


"ठीक है। "


"तिजोरी में वो काली फाइल है या—।" 


"तिजोरी जिस स्थिति में तुमने शंकर भाई के यहां से निकाली यी। वैसी ही तुम्हें मिलेगी।" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द चबाकर पक्के स्वर में कहा। 


"चैक करके तिजोरी ली जाएगी। तभी हीरा मिलेगा।"


"मैं कह चुका हूं, तिजोरी जब रुस्तम बांके के हाथ लगी तो उस वक्त उसमें जो कुछ था। जैसे भी था। वैसे ही तिजोरी तुम्हें वापस मिलेगी।" देवराज चौहान के पक्के स्वर में, सख्ती आ गई थी। 


"ठीक है। ठीक चार बजे, खंडाला रोड पर, झील के तीसरे पत्थर पर मुलाकात होगी।" 


इतना कहने के साथ ही मोना चौधरी ने लाइन काट दी थी।


देवराज चौहान ने रिसीवर रखा। चेहरे पर सोच के भाव थे।


“क्या तय हुआ?" जगमोहन ने व्याकुलता से पूछा। 


देवराज चौहान ने कर्मपाल सिंह को देखा।


“मोना चौधरी का ठिकाना जानने के लिए तुमने क्या इंतजाम किया?" देवराज चौहान ने पूछा।


"अपने आदमी को बोल दिया है। वो बंगाली को ढूंढकर उस पर नजर रखेगा। जब भी बंगाली मोना चौधरी के पास जाएगा तो वो मुझे उसके ठिकाने के बारे में खबर कर देगा। " कर्मपाल सिंह बोला।


देवराज चौहान ने सबको बताया कि मोना चौधरी से क्या तय हुआ।


"तां ते फिक्र कादी। " बांकेलाल राठौर कह उठा- "तिजोरी, मोना चौधरी के गलो में डालो और हीरा को ले आयो। सारो प्राब्लम दूर हो जायो। "


"ये बात इतनी आसान नहीं है, जितना कि तुम सोच रहे हो। " देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।


"अंम समझो नहीं।"


सबकी निगाह देवराज चौहान पर थी। 


"मोना चौधरी को तिजोरी में कोई दिलचस्पी नहीं है। उसे तिजोरी में रखी काली फाइल चाहिए और फाइल तिजोरी में है अवश्य लेकिन वो खाली है। बेकार है। नकली है। मोना चौधरी ने स्पष्ट कहा है कि वो फाइल को चैक करेगी और देखते ही समझ जाएगी कि, ये वो फाइल नहीं, जो उसे चाहिए। ऐसे में वो हीरा नहीं देगी और हीरे के साथ दोबारा नजर भी नहीं आएगी। जबकि उससे हीरा लेना बहुत जरूरी है, क्योंकि वो हीरा मेरा नहीं, किसी और का है। उसे देना है। "


"बाप ये तो लफड़ा पैदा होएला।"


“ये बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि वो हीरा देने को मरी क्यों जा रही है। " जगमोहन ने माथे पर बल डालकर कहा "जबकि वह जान चुकी है कि हीरा पचास-साठ करोड़ का है। जबकि फाइल में उसकी दिलचस्पी न के बराबर होनी चाहिए, क्योंकि फाइल तो उसने बंगाली के हवाले करनी है। "


देवराज चौहान के चेहरे पर शांत मुस्कान उभरी।


“वो मुझे नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है। "


“क्या मतलब?"


"जो तिजोरी मेरी वजह से उसके हाथ से निकली, वो चाहती है, उसी तिजोरी को, मैं ही उसके हवाले करूं। बेशक हीरा लेने के लिए ही सही, लेकिन उसकी बात मानूं। वो मुझे अपने सामने बेबस मजबूर देखे इन सब बातों के पीछे उसकी यही मंशा है। " 


"ओह।"


"तो अब क्या किया जाए। " सोहनलाल बोला- "फाइल चैक करने पर जब वो देखेगी कि वो काम की फाइल नहीं है तो हीरे को तो हवा भी नहीं लगाएगी।"


देवराज चौहान ने सब पर निगाह मारी।


"इस समस्या को हल करने का एक ही रास्ता है हमारे पास। देवराज चौहान ने कहा।


"क्या?" 


“तिजोरी में से जो खाली फाइल निकली है। उसके कुछ पन्ने इस तरह भर दिए जाएं। उनमें कुछ इस तरह के शब्द लिखें जाएं कि लगे जैसे कोड वर्ड में कुछ लिखा है। चूंकि कर्मपाल सिंह के मुताबिक फाइल में शंकर भाई की कहीं रखी दौलत तक पहुंचने का रास्ता दर्ज है, तो लगे जैसे फाइल में ऐसा कुछ ही है। मेरे ख्याल में ऐसा होने पर, मोना चौधरी शायद शक न कर सके।"


"बाप" रुस्तम एव मुस्कराया— "ये आइडिया तो एकदम फिट होएला है। "


"बल्ले-बल्ले। " बांकेलाल राठौर ने मूंछ उमेठी—“काम बन गयो। म्हारे को दो फाइल अंम फाइल में ऐसा कुछ करो कि लगे जैसो सिकन्दर के खजाने का नक्शा हौवो।"


"फिर तो हीरा हमारे पास वापस आ जाएगा।" जगमोहन मुस्कराया।


"ख्याल तो है। " देवराज चौहान ने सिर हिलाया। सोहनलाल गोली वाली सिगरेट सुलगाकर कह उठा।


"और बाद में जब मोना चौधरी को मालूम होगा कि हमने उसके साथ चालाकी की है तो वो आराम से बैठने वाली नहीं " सोहनलाल की आवाज में गंभीरता थी।


"तुम ठीक कहते हो।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया- ''लेकिन इस वक्त हीरा वापस पाना जरूरी है।


बांकेलाल राठौर तिजोरी में से खाली फाइल निकालकर, पैन हाथ में लिए एक तरफ जा बैठा था और ऐसे खजाने का नक्शा बनाने लगा था, जिसका सिरे से ही वजूद नहीं था।


फोन की घंटी बजने पर, देवराज चौहान फोन की तरफ बढ़ गया।


फोन कृष्णलाल का था।


***