आसमान में सुबह ही से सफ़ेद बादल तैरते फिर रहे थे और इस वक़्त तो सूरज की एक किरन भी यादों के किसी कोने से नहीं झाँक रही थी। मौसम काफ़ी सुहावना था।

इन्स्पेक्टर ख़ालिद की मोटर साइकिल पलटन पड़ाव की तरफ़ जा रही थी। इमरान कैरियर पर बैठा ऊँघ रहा था और उसके चेहरे पर गहरी सोच के निशान थे। चेहरे से सादगी ग़ायब हो चुकी थी। पलटन पड़ाव के क़रीब पहुँचते-पहुँचते ख़ालिद ने मोटर साइकिल की रफ़्तार कम कर दी।

‘आख़िर हम वहाँ जा कर उन्हें ढूँढेंगे किस तरह?’ ख़ालिद ने इमरान से कहा।

‘ओफ़्फ़ोह! यह एक सी.आई.डी. इन्स्पेक्टर पूछ रहा है?’

‘इमरान साहब! इस मौक़े पर मुझे आपसे संजीदगी की उम्मीद है।’

‘आहा...किसी-न-किसी ने ज़रूर कहा होगा कि दुनिया उम्मीद पर क़ायम है। वैसे इस इलाक़े में कोई ऐसा होटल भी है जिसमें निचले तबक़े के लोग बैठते हों...अगर ऐसा कोई होटल हो तो मुझे वहाँ ले चलो।’

इन्स्पेक्टर ख़ालिद ने मोटर साइकिल एक पतली-सी सड़क पर मोड़ दी, लेकिन अचानक इमरान ने उसे रुकने को कहा।

खालिद ने जल्दी से मोटर साइकिल रोक दी, क्योंकि इमरान के लहजे में उसे घबराहट की झलक महसूस हुई थी। यह सुहावनी जगह थी। सड़क के दोनों तरफ़ समतल ज़मीन थी और वहाँ फूलों के बाग़ नज़र आ रहे थे। पलटन पड़ाव के उस हिस्से की गिनती सैरगाहों में होती थी।

खालिद ने मोटर साइकिल रोक कर अपने पैर सड़क पर टिका दिये।

यकायक उसने मशीन भी बन्द कर दी और फिर वह यह भूल गया कि मोटर साइकिल इमरान ने रुकवायी थी। उसने दाहिनी तरफ़ के एक बाग़ में एक लड़की देख ली थी जो उसे आकर्षित करने के लिए रूमाल हिला रही थी। ख़ालिद मोटर साइकिल से उतरता हुआ बोला, ‘इमरान साहब ज़रा ठहरिए।’

‘क्या वह तुम्हारी जान-पहचान वाली है?’ इमरान ने मुस्कुरा कर पूछा।

‘जी हाँ!...’ ख़ालिद हँसता हुआ बोला।

‘बहुत अच्छा! तुम जा सकते हो। मगर मोटर साइकिल अकेली रह जायेगी।’ इमरान ने कहा और बायीं तरफ़ के बाग़ों पर नज़र दौड़ाता हुआ बोला, ‘मैं उधर जाऊँगा...उधर मेरी ममदूहा...शायद मैं ग़लत कह रहा हूँ...क्या कहते हैं उसे जिससे मोहब्बत की जाती है।’

‘महबूबा।’

‘महबूबा...महबूबा!...इधर मेरी महबूबा...अच्छा...तो मैं चला।’ इमरान मोटर साइकिल के कैरियर से उतरता हुआ बोला।

बायीं तरफ़ के एक बाग़ में उसे कुछ ऐसी शक्लें दिखाई दी थीं जिन्होंने अचानक उसके ज़ेहन में उस रात की याद ताज़ा कर दी जब सोफ़िया को ऑरेंज स्क्वॉश में कोई नशीली दवा दी गयी थी। उनमें से एक को तो उसने बख़ूबी पहचान लिया। यह वही था जिसकी टक्कर वेटर से हुई थी। दो आदमियों के बारे में उसे सन्देह था। वह यक़ीन के साथ नहीं कह सकता था कि ये दोनों उस सब-इन्स्पेक्टर के साथी थे या नहीं जिसने सुनसान सड़क पर उनकी कार रुकवा कर किसी बेहोश लड़की के बारे में पूछा था।

इमरान उन्हें देखता रहा। वे चार थे। उनके साथ कोई औरत नहीं थी। इमरान बाग़ के रखवाले से ख़ूबानियों और सेबों की पैदावार के बारे में गुफ़्तगू करने लगा।