पुरस्कार

वेबहुत देर तक जगे हुए थे, पुराने रिज़ बार में पीते हुए और 1 बजे रात तक हर कोई नशे में अच्छी तरह धुत्त था। गणेश अपनी चमकती नीली ज़ेन कार में जैसे-तैसे घर लौटा। विक्टर अपनी पुरानी मॉरिस माइनर चला रहा था, जो अचानक ही रुक गयी और उसे टैक्सी में जाने के लिए बाध्य होना पड़ा। नन्दू, प्रोपराइटर, अपने कॉटेज में लँगड़ाते हुए गया, पैर का बढ़ता दर्द गठिये के हमले की भविष्यवाणी कर रहा था। बेगम तारा जिन्होंने सौ से ज़्यादा पुरानी फिल्मों में अभिनय किया, उस साइकिल रिक्शा पर चढ़ गयीं जिसका चालक नहीं था और यह बात उनके लिए कोई महत्त्व भी नहीं रखती थी, क्योंकि वह तुरन्त ही नींद में डूब गयीं। बारटेंडर रात में गायब हो गया। सिर्फ़ रूमानी युवा उपन्यासकार, राहुल वहाँ खड़ा रहा, आश्चर्यचकित कि सब कहाँ चले गये और उसे पीछे क्यों छोड़ दिया गया।

कमरे भरे हुए थे, होटल में एक भी अतिरिक्त बिस्तर नहीं था, क्योंकि यह पीक सीज़न था और हिल-स्टेशन के होटल बहुत ज़्यादा भरे हुए थे। कमरे के लड़के और रसोई का स्टाफ़ अपने आवास पर लौट गये थे। सिर्फ़ रात के चौकीदार की सीटी कभी-कभी सुनी जा सकती थी, जब सेवानिवृत्त हवलदार जगह की रखवाली करता घूमता।

युवा लेखक को यह महसूस हो रहा था कि उसे इस तरह छोड़कर उसके साथ अच्छा नहीं किया गया, बल्कि वह थोड़ा नफ़रत से भरा था। वह पार्टी की जान था—या उसने ऐसा सोचा—और सबको यह बताते हुए कि उसकी नयी किताब के लिए उसे कितनी मोटी रकम अग्रिम राशि के रूप में मिली थी और उसे ‘बुकर’ पुरस्कार मिलने की कितनी सम्भावना थी। उसने लोगों की जम्हाई नहीं देखी; और अगर देखी भी तो उसे बार-बार ऑक्सीज़न की कमी होना समझा। इस ‘बार’ का नाम इसके एक ग्राहक द्वारा ‘हॉरिज़ॉन्टल-बार’ रखा गया था, क्योंकि हॉरिज़ॉन्टल का अर्थ है चित्त और इसके कुछ ग्राहकों में यह प्रवृत्ति देखी गयी थी कि वे शराब पीकर गलीचे पर ही चित्त हो जाते थे—उसी गलीचे पर जिस पर सैवॉय के ड्यूक (शासक) सौ साल पहले गुज़र गये थे।

राहुल का फ़र्श पर बेसुध होने का कोई इरादा नहीं था, लेकिन पी गयी शराब ने उसके लिए कहीं लेटना बहुत ज़रूरी कर दिया था। बिलियर्ड खेलने की मेज़ सही होती लेकिन बिलियर्ड के कमरे में ताला लगा था। वह गलियारे में लड़खड़ाता रहा, एक भी सोफ़ा या आरामकुर्सी उसे नज़र नहीं आयी। अन्ततः उसे एक दरवाज़ा मिला जो खुला हुआ था और वह एक विशाल भोजन कक्ष था, जहाँ बस एक बल्ब जल रहा था।

पुराना पियानो बहुत आमन्त्रित करता नहीं प्रतीत हो रहा था, लेकिन लम्बी भोजन की मेज़ साफ़ कर दी गयी थी, सिर्फ़ एक करी के दागों से सना मेज़पोश था जो नाश्ते में फिर से काम चलाने के लिए छोड़ दिया गया था। राहुल ने किसी तरह खुद को मेज़ पर चढ़ा लिया और फैल गया। वह एक सख्त बिस्तर था और वहाँ पहले से बिखरा ब्रेड का चूरा उसकी सौम्य त्वचा को चुभ रहा था लेकिन वह इसकी परवाह करने के लिए बहुत थका हुआ था। एकदम उसके ऊपर जलता वह हल्की रोशनी वाला बल्ब भी उसे परेशान कर पाने में अक्षम था। हालाँकि कमरे में बिलकुल हवा नहीं थी, बल्ब हल्का हिल रहा था जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उसे धीरे से हिला दिया हो।

वह एक घंटे के लिए सो गया, गहरी, बिना सपने की नींद और फिर उसे संगीत, आवाज़, पदचापों और हँसी का हल्का-सा आभास हुआ। कोई पियानो बजा रहा था। कुर्सियाँ पीछे खींची जा रही थीं। गिलास खनक रहे थे। चाकू और छुरी भोजन की प्लेटों पर बज रहे थे।

राहुल ने अपनी आँखें खोलीं तो पाया कि एक दावत चल रही है। उसी मेज़ पर—जिस मेज़ पर वह लेटा हुआ था—अब अनेक प्रकार के भोजन से मेज़ भरी पड़ी थी और भोजन करने वाले उसकी उपस्थिति से बिलकुल अनजान थे। पुरुषों ने पुराने ज़माने की पोशाक—ऊँचे कॉलर वाले सूट और बो टाई पहन रखी थी; स्त्रियों ने तंग चोली वाली लम्बी झालरदार पोशाक पहन रखी थी जो उनके सीने को उदारता से औरों के लाभार्थ प्रदर्शित कर रही थी। अपनी पुरानी आदत के अनुसार, राहुल के हाथ स्वतः ही अपने सबसे करीबी युवती के वक्ष तक पहुँच गये और पहली बार उसे एक झन्नाटेदार थप्पड़ नहीं पड़ा तो इसकी सीधी वजह थी कि उसके हाथ, अगर वह वहाँ थे भी तो हिल नहीं रहे थे।

किसी ने कहा, “भुना हुआ सूअर का मांस—मैं इसके इन्तज़ार में था!” और चाकू और छुरी राहुल की जांघ में गड़ा दी।

वह चिल्लाया, या चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन किसी ने सुना नहीं; वह अपनी आवाज़ भी सुन नहीं सका। उसने पाया कि वह अपना सिर उठाकर अपने पूरे शरीर को देख सकता है, और उसने देखा कि उसके खुद के पैरों की जगह सूअर के पैर हैं।

किसी ने उसे पलट दिया और एक टुकड़ा काटा।

“सूअर के मांस का सबसे मुलायम पैर,” उसकी बायीं ओर से एक स्त्री ने कहा।

एक काँटा उसके पृष्ठ भाग में गड़ा। फिर एक भीमकाय व्यक्ति, सिर पर टोपी लगाये, काटने वाला एक चाकू हाथ में लिये उस पर झुका। उसने एक चौड़ा, सफ़ेद एप्रन पहन रखा था और उस पर बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था ‘जूरी का अध्यक्ष‘। चाकू लैम्प की रोशनी में चमक रहा था।

राहुल चीखा और मेज़ पर से कूदा। वह पियानो के पास गिर पड़ा, खुद को सँभाला और पार्टी में आये लोगों को छोड़ता, भोजन कक्ष से बाहर भागा।

वह निर्जन गलियारे में दौड़ा, हर दरवाज़े को पीटता हुआ। लेकिन कोई उसके लिए खुला नहीं। आखिरकार कमरा नम्बर 12 ए—होटल 13 की संख्या इस्तेमाल करना नहीं पसन्द करते—का दरवाज़ा खुल गया। हाँफता और बुरी तरह काँपता हुआ हमारा नायक कमरे में लपका और दरवाज़े की कुंडी अन्दर से लगा ली।

यह एक सिंगल रूम था, जिसमें सिंगल बेड लगा था। बेड की चादर थोड़ी अस्तव्यस्त लगी, राहुल ने उस पर ध्यान नहीं दिया। बस वह इस बुरे सपने का अन्त चाहता था जो वह देख रहा था और थोड़ा सोना चाहता था। अपने जूते फेंकता वह पूरे कपड़ों में बिस्तर पर चढ़ गया।

वहाँ वह लगभग पाँच मिनट लेटा रहा, जब उसे यह एहसास हुआ कि वह बिस्तर पर अकेला नहीं था, उसके पास कोई और भी लेटा हुआ था, चादर से ढँका। राहुल ने बिस्तर के बगल वाला लैम्प जला लिया। कोई हिला नहीं, शरीर स्थिर रहा। चादर पर, बड़े अक्षरों में ये शब्द लिखे थे, “अगली बार बढ़िया भाग्य रहे।”

उसने चादर खींची और अपने मृत शरीर को घूरता रहा।