आदर्श पाण्डेय एक ताला-चाबी मिस्त्री के साथ अनंत गोयल के सुंदर नगर स्थित फ्लैट पर पहुँचा। कारीगर उसे सालों से जानता था और पहले भी उसके कहने पर कई बार अपने हुनर का इस्तेमाल कर चुका था। एक बार तो ऐसा भी हुआ, जब वह आदर्श के कहने पर वह किसी के कमरे का ताला खोल रहा था, तभी मालिक उन दोनों के सिर पर आ खड़ा हुआ। तब बड़ी मुश्किल से दोनों बच निकलने में कामयाब हो पाये थे।
मगर आदर्श था कि उस घटना से सीख लेने को तैयार ही नहीं था। और कारीगर ऐसा, जो उसकी बात मानने से चाहकर भी इंकार नहीं कर पाता था, क्योंकि लंबे वक्त से एक-दूसरे को जानता होने के कारण उनके बीच अब दोस्ताना ताल्लुकात बन चुके थे। या कारीगर को भी अब धड़कते दिल के साथ अपना हुनर दिखाने में मजा आने लगा था।
एक वजह ये भी रही हो सकती है कि अपने काम का मेहनताना उसे भरपूर हासिल होता था।
दोनों सीढ़ियां चढ़कर पहली मंजिल पर पहुँचे, जहाँ हर फ्लोर पर चार फ्लैट बने हुए थे, उनमें से गोयल के फ्लैट के साथ-साथ दो अन्य दरवाजों पर भी ताले लटक रहे थे। जबकि चौथा दरवाजा बाहर से बंद नहीं दिखाई दे रहा था।
“चल भाई शुरू हो जा, या मुहूर्त निकाले जाने का इंतजार कर रहा है।”
“तुम मरवाओगे किसी दिन मुझे।” मिस्त्री भुनभुनाता हुआ अपने काम में जुट गया।
“पागल हो गया है? तू तो बस चाबी बनाने वाला कारीगर है। तुझे क्या पता कि जो शख्स तुझे लेकर आया है वह अपने ही घर का ताला खुलवा रहा है या किसी और के घर का। पकड़ा जाये तो मुझे जानता होने से साफ मुकर जाना।”
“पुलिस सब उगलवा लेगी, ऐसी मार लगायेगी कि एक मिनट भी अपने झूठ पर टिका नहीं रह पाऊंगा मैं।”
“आज तक पकड़ा गया है कभी?”
“नहीं, लेकिन पकड़ लिये जाने से कई बार बचे जरूर हैं हम। और हर काम का कभी ना कभी तो श्री गणेश होता ही है न। हे गणपति महाराज, रक्षा करना। आप जानते हो कि मैं किसी गलत उद्देश्य से ये काम नहीं कर रहा, बचा लेना प्रभु।” कहते हुए उसने ताले के छेद में घुसाई प्लेन चाबी बाहर खींची और उसे रेती से घिसने में जुट गया। कुछ क्षण बाद फिर उसे छेद में डालकर ट्राई किया और वापिस बाहर निकालकर रेती से घिसना शुरू कर दिया।
जबकि आदर्श की चौकन्नी निगाहें वहाँ दिखाई दे रहे इकलौते बिना ताले के फ्लैट और सीढ़ियों के बीच घूमती रहीं। ताकि कोई एकदम से वहाँ पहुँच जाये तो वह कारीगर को होशियार कर सके।
मगर व्यवधान नहीं आया।
चौथी कोशिश में ताला खुल गया।
“अब जाता हूँ मैं।” कारिगर अपने औजार संभालता हुआ बोला।
“पैसे तो लेकर जा।” कहकर पाण्डेय ने उसे पांच हजार रूपये, जो पहले से गिन कर रखे हुए था, थमा दिये।
इधर आदर्श फ्लैट में दाखिल हुआ उधर कारीगर सीढ़ियां उतरने लगा। उसके चेहरे पर गहन संतुष्टि के भाव थे क्योंकि पांच हजार तो वह शायद पांच दिनों में भी नहीं कमा पाता होगा, वैसे भी आजकल ताला खुलवाने, डुप्लीकेट चाबी बनवाने का रिवाज खत्म सा हो चला था।
नीचे पहुँचकर वह अपनी मोटरसाइकिल की तरफ बढ़ा ही था कि उसका दिल धक्क कर के रह गया। सामने से दो बावर्दी पुलिसवाले चले आ रहे थे। कारीगर एकदम से पसीना-पसीना हो उठा, बावजूद इसके कि उधर को बढ़ रहे पुलिसकर्मियों ने उसकी तरफ देखने तक की कोशिश नहीं की थी।
धड़कते दिल के साथ सिर को थोड़ा नीचे किये वह उनके बगल से गुजरा, और दो कदम आगे जाते ही मोबाइल निकालकर पाण्डेय का नंबर डॉयल कर दिया।
शुक्र था उसने कॉल अटेंड करने में देर नहीं लगाई क्योंकि पुलिस तब तक सीढ़ियों के पास पहुँच चुकी थी।
“निकलो वहाँ से।” वह बौखलाये स्वर में बोला।
“क्या हो गया?” पाण्डेय ने पूछा।
“पुलिस।”
सुनकर वह कहीं ज्यादा बौखला उठा।
अत्यधिक फुर्ती का प्रदर्शन करते हुए आदर्श फ्लैट से बाहर निकला, दरवाजे का ताला बंद किया और घूमकर वहाँ बिना ताले के दिखाई दे रहे इकलौते दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
तभी एक सिपाही के साथ चलता एसआई नरेश चौहान, अनंत गोयल के
फ्लैट पर जा खड़ा हुआ। उसकी नजर आदर्श पर बराबर गयी थी, मगर उस तरफ ध्यान देने की फिलहाल कोई वजह चौहान के पास नहीं थी।
कॉल बेल के जवाब में एक उम्रदराज महिला दरवाजे पर प्रगट हुई।
“किससे मिलना है?” वह यूँ बोली जैसे अभी काट खायेगी।
“अनंत गोयल साहब से।” पाण्डेय जानबूझकर इतना ऊंचा बोला ताकि आवाज वहाँ पहुँच चुके पुलिसवालों को सुनाई दे जाती – “यहीं रहते हैं न?”
जवाब में महिला ने उसे कसकर घूरा और बिना एक शब्द बोले दरवाजा बंद कर लिया।
“कमाल है।” वह जोर से बड़बड़ाया – “तहजीब को दरकिनार करने में भी अब ये औरतें हम मर्दों की बराबरी करने लगी हैं।”
“इधर आ जा भाई।” चौहान हँसता हुआ बोला – “अनंत गोयल का फ्लैट वह नहीं, ये है।”
सुनकर उसने चौंकने की बड़ी लाजवाब एक्टिंग की फिर उन दोनों की तरफ बढ़ गया।
“क्यों ढूंढ रहे हो अनंत गोयल को?”
“मिलना है उससे।”
“क्यों?”
“उधारी वापिस लेनी है।”
“मुझे तुम्हारी सूरत कुछ जानी पहचानी सी दिखती है, ऐसा क्यों है?”
“गलत समझ रहे हैं सर, जबकि मेरा तो आज तक चालान भी नहीं हुआ होगा।”
“नहीं, देखा कहीं बराबर है तुम्हें।”
“राह चलते देख लिया होगा, या मुझसे मिलती-जुलती सूरत दिखाई दे गयी होगी।” कहकर वह जाने को मुड़ा – “अब चलता हूँ मैं।”
चौहान ने लपक कर उसका हाथ पकड़ लिया।
पाण्डेय भी वही चाहता था। पुलिस के वहाँ से टलने तक तो उसका इरादा भी वहीं बने रहने का था क्योंकि उसे उम्मीद थी कि उन लोगों के पास अनंत के फ्लैट की चाबी जरूर होगी, क्योंकि साफ जाहिर हो रहा था कि दोनों वहाँ की तलाशी लेने ही पहुँचे थे। और पाण्डेय जानना चाहता था कि भीतर से उनके हाथ क्या लगता है?
“अपनी आईडी दिखाओ।” चौहान उसे जबरन अपनी तरफ खींचता हुआ बोला।
“अरे जाने दो न सर, क्यों खामखाह परेशान कर रहे हो एक शरीफ आदमी
को?”
“वह भी आईडी देखने के बाद ही पता लगेगा। अब शराफत से दिखा दो वरना जबरदस्ती करना मुझे खूब आता है। या अपने मुँह से ही अपनी असलियत बयान कर दो।”
“प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ।” वह यूँ बोला जैसे वह बात कबूल करने में उसकी जान निकली जा रही हो।
“तो पहले क्यों नहीं बता दिया?”
“मैंने सोचा खामख्वाह आप मुझे यहाँ रोक लेंगे, इसलिए नहीं बताया।”
“पार्थ साहब के साथ काम करते हो, है न?”
सुनकर पाण्डेय को हैरानी हुई- “जी हाँ, जानते हैं आप उन्हें?”
“हाँ भई, कुछ मुलाकातें हो चुकी हैं, हालिया मौर्या के कत्ल के बाद हुई थी।”
“ये तो बहुत अच्छी बात है वरना दस सवाल करते आप लोग मुझसे।”
“वह तो अभी भी करेंगे। ये बताओ कि गलत दरवाजे पर कैसे पहुँच गये?”
“सच बोलूं?”
“और क्या पुलिस से झूठ बोलोगे?”
“जानबूझकर पहुँचा था।”
“क्यों?” चौहान ने हैरानी से पूछा।
“सोचा दरवाजा खोलने वाला जब बताने लगेगा कि अनंत का फ्लैट वो नहीं ये है तो लगे हाथों उससे कुछ सवाल भी कर लूंगा, मगर मैडम ने तो मौका ही नहीं दिया। यूँ दरवाजा बंद किया मेरे मुँह पर, जैसे थप्पड़ ना मार पाने का फ्रस्टेशन निकाल रही हों।”
“पॉश इलाका है भई, यहाँ किसी को दूसरे से मतलब नहीं होता। खैर यहाँ तो देख ही रहे हो ताला बंद है, अब आगे क्या इरादा है तुम्हारा?”
“आप क्या करने वाले हैं?”
“मजबूरी है यार, पुलिसवाले हैं हम, इसलिए ताला तो नहीं तोड़ सकते, वापिस ही लौटना प़ड़ेगा।”
“वैसे पहुँचे किस हासिल की खातिर थे?”
“अनंत मिल जाता तो जाहिर है उससे अंबानी पर हुए हमले के बारे में सवाल जवाब ही करते।”
“किसे बना रहे हैं चौहान साहब? जो बंदा कहीं ढूंढे नहीं मिल रहा वह अपने फ्लैट में बैठा होगा, ये सोचकर पहुँच गये आप? कम से कम मैं तो इस बात पर यकीन नहीं कर सकता। हाँ, आप कहें कि आपके पास यहाँ की चाबी मौजूद है और तलाशी लेने आये हैं तो और बात है।”
“यार लेना तो तलाशी ही चाहते थे, मगर ताला बंद है इसलिए नहीं ले सकते।” कहकर वह बदले हुए लहजे में बोला – “अब तुम जा सकते हो यहाँ से।”
“आप भी चलिए, यहाँ रूककर क्या हासिल होगा?”
“होगा कुछ, तुम जाओ।”
पाण्डेय हँसा।
“क्या हुआ?”
“कहीं आपका इरादा किसी डुप्लीकेट चाबी से ताला खोलने का तो नहीं है, इसीलिए मुझे चलता कर देना चाहते हों?”
“पागल हुए हो, हम क्या ताला तोड़ हैं?”
“क्या पता डिपार्टमेंट में ये हुनर भी आप लोगों को सिखाया जाता हो।”
जवाब में चौहान ने उसे कसकर घूरा- “क्या बात है भई, अभी तो तुम यहाँ से निकल जाने को बेकरार थे, और अब जाने को कह रहा हूँ तो टलने को राजी नहीं हो?”
“क्योंकि आपकी की तरह मैं भी भीतर एक नजर मार लेने को बेकरार हूँ।”
“ताला बंद होने की सूरत में कैसे संभव है तुम्हारी बात?”
“मान लीजिए अगर आप लोग दो मिनट कहीं घूम फिरकर वापिस यहाँ लौटते हैं और तब आपको ताला खुला मिलता है, तो मेरे गले तो नहीं पड़ने लग जायेंगे, उठाकर लॉकअप में तो नहीं डाल देंगे?”
“खुला कैसे मिलेगा?”
“पता नहीं, चमत्कार होते रहते हैं दुनिया में, इसलिए पूछ लिया।”
“नहीं भाई, तुमसे कुछ नहीं कहेंगे हम।”
“बाद में मुकर तो नहीं जायेंगे?”
“नहीं प्रॉमिस।”
“यहाँ तक पहुँचे कैसे थे?”
“पुलिस जीप से।”
“चाबी इग्नीशन में ही लगी छोड़ आये हैं, जाकर निकाल लीजिए।”
चौहान ने उसका इशारा बखूबी कैच किया और तुरंत अपने सिपाही को वहाँ से चलने को बोल दिया।
दोनों सीढ़ियां उतर कर निगाहों से ओझल हो गये तो आदर्श ने जल्दी से दरवाजा खोला, चाबी अपनी जेब में रखी और भीतर दाखिल होकर आनन-फानन में वहाँ की तलाशी लेने में जुट गया।
वह नहीं जानता था कि उसे तलाश किस चीज की थी, मगर कुछ ना कुछ
बरामद होने की उम्मीद बराबर कर रहा था। इसलिए बड़ी शिद्दत के साथ उस काम में जुट गया।
सबसे पहले उसने ड्राइंगरूम में मौजूद सेंटर टेबल पर रखी किताबों को उलट पुलट कर देखा, फिर बेडरूम में पहुँचकर वहाँ की आलमारी टटोलने लगा। मगर हासिल कुछ नहीं हुआ।
तब वह दूसरे कमरे में पहुँचा, जो कि तकरीबन खाली पड़ा था। और जो कुछ था वह महज रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजें थीं, जिनके बीच से कुछ खास बरामद होने की उम्मीद नहीं की जा सकती थी।
आखिरकार वह ड्राइंगरूम में वापिस लौटकर सोफे पर बैठ गया।
तभी दोनों पुलिसिये वापिस लौट आये।
चौहान ने हैरानी से आदर्श की तरफ देखा फिर बोला- “जासूस बनने के लिए ये गुण भी सीखने पड़ते हैं?”
“कौन से गुण?”
“ताला खोलने वाला?”
“आप गलत समझ रहे हैं। आप लोगों ने ताले को खींचकर देखा ही नहीं होगा, वह तो पहले से खुला पड़ा था।”
“ठीक है भाई, अभी तुम्हारा कहा कबूल है मुझे।
आदर्श बस ये नहीं जानता था कि चौहान को खुद उस काम में महारत हासिल थी, और अनंत के फ्लैट पर आज वह पहुँचा ही ये सोचकर था कि ताला खोलकर अंदर की तलाशी लेने के बाद ही लौटेगा।
तीनों वहाँ के जर्रे-जर्रे की तलाशी लेने में जुट गये, अलबत्ता पाण्डेय ने बेडरूम में रखी वार्डरोब और सेंटर टेबल पर रखी किताबों के भीतर झांकने की भी कोशिश नहीं की क्योंकि उस काम को वह पहले ही अंजाम दे चुका था, जबकि चौहान ने सबसे पहले किताबों को ही खंगालना शुरू किया।
आधे घंटे की मशक्कत के बाद जो खास चीज पुलिस के हाथ लगी, वह था शीतल और आकाश अंबानी के सम्मिलित हस्ताक्षरों वाला इंक्रीमेंट लेटर, जिसमें अनंत की सेलरी में पचास फीसदी की बढ़ोत्तरी करने की बात लिखी गयी थी। अलबत्ता कोई तारीख नहीं पड़ी थी उस पर। साथ ही उस लेटर में ये भी लिखा गया था कंपनी पांच सालों से पहले उसे सेवामुक्त नहीं करेगी। और किसी वजह से करना ही पड़ा तो बकाया दिनों की सेलरी का साठ फीसदी उसे एडवांस देना होगा।
चौहान तो जैसे खुशी से उछल ही पड़ा। हालांकि देवर-भाभी को हिरासत में लेने के लिए मौर्या के घर से बरामद एग्रीमेंट ही काफी था, लेकिन अब तो दोहरा मौका हासिल हो गया था उसे। इस बात का पक्का यकीन भी कि अंबानी पर हमला शीतल, आकाश, मौर्या और गोयल ने मिलकर किया था।
उसे तो भनक तक नहीं लगने पाई कि पलंग के मेट्रेस के नीचे से एक ऐसा टाइम बम आदर्श के हाथ लग गया था, जिसके आगे उसका हासिल किसी गिनती में नहीं आता था।
“मुझे भी दिखाइए प्लीज।” चौहान को लेटर पढ़ता देखकर आदर्श बोला।
“जमकर देख लो भाई, मगर अभी इसका जिक्र मत करना किसी से।”
“नहीं करूंगा।” कहकर उसने लेटर पर एक सरसरी निगाह डाली और हाथ के हाथ उसकी एक फोटो भी खींच ली।
“फोटो क्यों ले रहे हो?”
“आगे पार्थ सर को रिपोर्ट भी तो करनी है।”
“यानि लेटर का मतलब समझ में आ गया जासूस साहब के?”
“वह तो कल ही गया था सर, मौर्या के घर से बरामद पार्टनरशिप डीड पढ़कर।”
“वह तुम्हारे हाथ कहाँ से लग गया?”
“जासूस हूँ चौहान साहब, ऊपर से एक ऐसी फर्म का, जिसका नाम टॉप फाइव में सबसे ऊपरले पायदान पर है। सोर्स हर जगह निकालने पड़ते हैं।” फिर क्षण भर रुककर बोला – “पुलिस डिपार्टमेंट में भी।”
“इतने बड्डे जासूस बन रहे हो, अपनी फर्म को तोप साबित करने की कोशिश भी बराबर करते जान पड़ते हो, तो इस बात का भी जवाब क्यों नहीं दे देते कि निशांत मौर्या को किसने मारा था?”
“अभी भी नहीं समझे?”
“तुम समझ चुके हो?”
“यस ऑफ़कोर्स।”
“किसने मारा?”
“खुद सत्यप्रकाश अंबानी ने।”
“बकवास, वह तो कोमा में है।”
“आपको क्या पता? आप क्या डॉक्टर हैं?”
चौहान हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगा।
पार्थ के जाने के दो घंटा बाद शुभांगी अस्पताल पहुँच गयी। इस संदेह को मन में लिये कि कहीं शीतल अस्पताल में ही उसके भाई का गला ही न घोंट दे। वहाँ पहुँचकर उसने बारी-बारी से दोनों को यूँ देखा जैसे अंदाजा लगाने की कोशिश कर रही हो क्या सच में सत्य पर उन दोनों ने ही हमला किया था।
फिर दोनों को ये कहते हुए लौट जाने को कह दिया कि रात दस बजे तक वह अस्पताल में ही रूकी रहेगी, तब तक दोनों घर जाकर थोड़ा आराम कर लें, जबकि उसकी कोई जरूरत इसलिए नहीं थी क्योंकि आकाश और शीतल सुबह दस बजे ही तो पहुँचे थे वहाँ, और बीत चुकी रंगीन रात क्योंकि घर में ही गुजरी थी इसलिए आराम की कोई तलब उन्हें नहीं होनी चाहिए थी।
मगर उसकी बात सुनकर तो जैसे देवर-भाभी को मुँहमांगी मुराद हासिल हो गयी।
दोनों तुरंत घर के लिए रवाना हो गये।
पांच-सात मिनट बाद जब दोनों अंबानी हाउस पहुँचे तो सुमन उन्हें रसोइयें के साथ किचन में काम करती दिखाई दी।
शीतल ने उसे आवाज लगाई- “सुमन!”
“जी मैडम।”
“मेरे कमरे में पहुँच।”
“पांच मिनट बाद आती हूँ।”
“अभी फौरन।” कहकर वह आकाश के साथ अपने बेडरूम में चली गयी।
सुमन मन ही मन कुछ डर सी गयी, ये सोचकर कि कहीं पार्थ या शुभांगी ने उसका कहा बता तो नहीं दिया था उन्हें? बल्कि पार्थ से ज्यादा शक उसे शुभांगी पर हुआ उस बात को लेकर, जिसके अस्पताल के लिए निकलने के बीस मिनट बाद ही आकाश और शीतल घर लौट आये थे।
मरता क्या न करता वाले अंदाज में धड़कते दिल के साथ वह मास्टर बेडरूम में दाखिल हुई।
“दरवाजा बंद कर दे।” शीतल ने हुक्म दिया।
अब तो सुमन पक्का समझ गयी कि खबर उन्हें लग चुकी थी।
“इधर मेरे सामने बेड पर बैठ जा।”
लड़की हिचकिचाई।
“बैठ जा, सुना नहीं?”
सुमन हिचकिचाती हुई पायताने की तरफ बैठ गयी।
“तूने एक काम करना है सुमन, बहुत ही खास काम।”
‘ओह! तो बात कुछ और थी।’ लड़की ने चैन की सांस ली।
“जो कि तुझे कर के दिखाना ही पड़ेगा।” शीतल आगे बोली – “लेकिन अपनी मर्जी से तैयार हो गयी तो फायदे में रहेगी।”
“क्या करना है मैडम?”
“पुलिस अगर तुझसे पूछताछ करे तो तूने उनको ये बताना है कि...।”
कहकर वह लड़की को सब-कुछ समझाती चली गयी। वो सब-कुछ, जिसकी योजना उसने हॉस्पिटल के रेस्टोरेंट में आकाश के सामने बैठकर बनाई थी।
“वह मामला तो तीन साल पहले ही खत्म हो गया था मैडम।” पूरी बात सुनकर हैरान सी होती सुमन बोली – “अभी उसके बारे में फिर से कुछ कहना, बल्कि झूठ बोलना गलत होगा, क्योंकि उस दिन के बाद तो मजूमदार साहब कभी मुझे दिखे ही नहीं।”
“बोला तो सोलह जुलाई की शाम को मार्केट में मिला था वह तुझसे, बुरे अंजाम की धमकी भी दी थी, जिसके बारे में तूने घर पहुँचकर सत्य को बताया तो वह तीन साल पहले की ही तरह इस बार भी गुस्से से आग बबूला हो उठे थे।”
“आप मुझसे झूठ बोलने को कह रही हैं?”
“हाँ कह रही हूँ।” शीतल पूरी बेशर्मी से बोली।
“पुलिस के सामने?”
“हाँ।”
“मेरे से नहीं हो पायेगा मैडम, इतना बड़ा गुनाह मैं नहीं कर सकती।”
“करना तो पड़ेगा बेटा, नहीं करेगी तो पछतायेगी।”
“नहीं करूंगी।” वह थोड़ा तीखे लहजे में बोली – “आप चाहें तो भले ही नौकरी से निकाल दीजिए।”
“नहीं, नौकरी से नहीं निकालूंगी, बल्कि कुछ और करूंगी।”
“क्या?”
“जेल भिजवा दूँगी तुझे, जहाँ आगे की पूरी जिंदगी पड़ी सड़ती रहेगी।”
“आप क्या कलेक्टर लगी हैं?” सुमन को गुस्सा आ गया – “जो आपके कुछ कह देने भर से मुझे पुलिस पकड़ ले जायेगी?”
“जुबानदराजी मत कर साली छिनाल, वरना खींच दूँगी अभी एक जोर का।”
“गाली मत देना मैडम।” लड़की आँखें तरेरती हुई बोली।
“दूँगी, क्या कर लेगी?”
सुमन का चेहरा एकदम से तमतमा उठा।
“बोल क्या करेगी तू?”
“मुझे छिनाल कहने से पहले कम से कम अपने गरेबां में तो झांक लिया होता मैडम, तब आप खुद ही जान जातीं कि हम दोनों में से छिनाल कौन है।” उसका बदन गुस्से से कांपने लगा – “सत्य साहब के जाते ही आप जो आकाश बाबू को अपने ऊपर चढ़ा लेती हैं; क्या सोचती हैं मुझे मालूम नहीं होगा उस बारे में?”
शीतल और आकाश सन्न रह गये।
“मैं क्या अंधी हूँ, जो एक ही छत के नीचे रहने के बावजूद मुझे आप दोनों के कुकर्मों की खबर नहीं लगती?”
“बोल चुकी?” शीतल जबरन खुद को जब्त करती हुई बोली।
“नहीं, आखिरी बात और सुन लीजिए। और वह ये है कि मैं आपके कहने पर कुछ भी नहीं करने वाली, चाहें तो नौकरी से निकाल दीजिए, या चाहें तो पुलिस बुला लीजिए। मैं भी देखूँगी कि मेरा कोई क्या बिगाड़ लेता है।”
“तू वह सब-कुछ करेगी मेरी बच्ची, जो मैं चाहूँगी।” शीतल विषभरे लहजे में बोली – “अगर नहीं करेगी तो मैं तेरे और सत्य के अफेयर के बारे में पुलिस को बता दूँगी।”
सुमन का दिल जोर से धड़क उठा, मगर वह वक्त चुप रह जाने का नहीं था, इसलिए जल्दी से बोल पड़ी- “आपके मुँह में कीड़े पड़ेंगे मैडम।”
“वो क्यों भला?”
“एक गरीब लड़की पर झूठे आरोप लगायेंगी तो और क्या होगा?”
“तेरा मतलब है सत्य के साथ मजे नहीं करती थी तू?”
“ऐसा सोचना भी पाप होगा मेरे लिए।”
“अच्छा फिर ये क्या है?” कहकर उसने मोबाइल में सुमन और सत्य की अंतरंग क्षणों की तस्वीर खोलकर स्क्रीन का रूख उसकी तरफ कर दिया – “बोल क्या है ये?” कहकर उसने जोर का ठहाका लगाया।
सुमन की घिग्घी बंध गयी।
“क्यों, हो गयी बोलती बंद?” शीतल ने व्यंग्य सा किया – “अब तेरी पाप और पुण्य की फिलॉस्फी कहाँ चली गयी कमीनी, कह क्यों नहीं देती कि ये तस्वीर झूठी है?”
सुमन से जवाब देते नहीं बना। बहुत देर तक तीनों एक-दूसरे की शक्ल देखते रहे, जबकि आकाश ने तो अभी तक जुबान खोलने की भी जरूरत नहीं समझी थी।
“ठीक है, पुलिस को बताना चाहती हैं न आप इस बारे में...।” सुमन हिम्मत कर के बोली – “तो बता दीजिए, तब मैं भी सबको बोल दूँगी कि आकाश साहब के साथ आपका चक्कर चल रहा था। यानि मेरे से कहीं ज्यादा बड़ा गुनाह आप लोग कर रहे थे।”
“अच्छा? तू क्या कर रही थी?”
“मैं तो साहब की इसलिए हो गयी क्योंकि उनसे प्यार हो गया था मुझे। मेरे लिए वह जिस तरह मजूमदार के खिलाफ खड़े हो गये, वैसा तो किसी मालिक ने अपनी नौकरानी के लिए नहीं किया होगा। और प्यार करना कोई गुनाह नहीं होता मैडम।”
“क्या कहने तेरे; तुम दोनों करो तो प्यार है और हम करें तो अय्याशी?”
“हाँ अय्याशी ही है, क्योंकि आप दोनों रिश्तों की आड़ में रंगरेलियां मनाते हैं। सुना था डायन भी सात घर छोड़कर वार करती है, मगर आपने तो अपने देवर को ही फांस लिया। जबकि साहब के साथ मेरा कोई दूर-दराज का भी कोई रिश्ता नहीं था, इसलिए बाद में जो बना वह प्यार है। और प्यार तो कृष्ण भगवान् ने भी राधा से किया था।”
“जरूर किया होगा, मगर ना तो भगवान् कृष्ण शादीशुदा थे तब और ना ही राधा उनके घर में नौकरानी का काम करती थी, इसलिए अपना ज्ञान अपने पास रख। जुबान चलाकर तो तू नहीं कंविंस कर पायेगी मुझे।”
“मैडम प्लीज।” लड़की का मनोबल गिरने लगा – “क्यों मुझे खामख्वाह के झमेले में फंसा रही हो? जो करना है खुद करो न आप, फिर आकाश साहब तो हैं ही आपके साथ।”
“तुझसे पुलिस के सामने वह सब कहलवाना जरूरी है मेरी जान, बल्कि मजबूरी समझ ले। इसलिए हमारे मनमाफिक बयान तो तूने देना ही होगा। नहीं देगी तो मैं पुलिस को बताऊंगी कि सत्य ने तुझे शादी का झांसा देकर अपने जाल में फांसा था, मगर बाद में जब उन्होंने मुझसे शादी कर ली तो तू मन ही मन उस बात पर खुंदक खाने लगी। जो हक तेरा बनता था वह सत्य ने मुझे दे दिया, यानि दौलतमंद आदमी की बीवी बनने का लालच अब बस सपना बनकर रह जाने वाला था। इसलिए मौका पाते ही उन्नीस जुलाई की रात को तूने उन पर हमला कर दिया।”
“आप कहेंगी और पुलिस मान लेगी?”
“हाँ मान लेगी, क्योंकि कहने के साथ-साथ मैं उनके मुँह में ढेर सारे नोट भी तो ठूंसने वाली हूँ, जो कि तेरे पास नहीं है, इसलिए तू नहीं ठूंस सकती। आगे खुद सोचकर देख कि तेरा फायदा किस बात में है?”
“क्यों गरीब पर जुल्म करती हो मैडम, जबकि मैंने हमेशा आप दोनों का भला ही सोचा है।”
“बहन चो... मेरे खसम के साथ सोकर मेरा भला कर रही थी तू?”
“नहीं।” इस बार सुमन बोली तो वह पहले की तरह मिमिया नहीं रही थी – “अभी तक अपनी जुबान बंद रख के भला कर रही हूँ, जो अगर नहीं किया होता तो आप दोनों जाने कब के जेल पहुँच गये होते। फिर मुझे तो क्या सजा दिलवा पातीं आप।”
“क्या बकती है?”
जवाब में सुमन खुलकर मुस्कराई- “सत्य पर हमले वाली रात भले ही किसी ने बाहर से मेरे कमरे की कुंडी लगा दी थी, मगर वैसा करने वाला ये भूल गया कि यहाँ के हर कमरे में एक ऐसी खिड़की है, जो बिना ग्रिल की है, जिसके जरिये बड़ी आसानी से बाहर निकला जा सकता है।”
“तूने सब देखा था?” शीतल ने हैरानी से पूछा।
“हाँ देखा था। दरवाजा बंद होने की आहट होते ही मुझे यकीन आ गया कि कोई ना कोई गड़बड़ जरूर होने वाली थी। तब मैं अपने कमरे से खिड़की के रास्ते बाहर कूदी और वैसे ही किचन की खिड़की से वापिस अंदर आ गयी। तब मैंने आपको, आकाश साहब को, अनंत गोयल को और निशांत मौर्या को इस कमरे में घुसते अपनी आँखों से देखा था।”
“फिर?” शीतल हकबकाई सी बोली।
“मौर्या और अनंत को इतनी रात गये यहाँ देखकर मुझे बहुत हैरानी हुई, जिसके बाद मैं दोबारा खिड़की के रास्ते बाहर निकली और इस कमरे की खिड़की के पास आकर खड़ी हो गयी। उस वक्त ये बंद थी, पर्दा भी पड़ा हुआ था, इसलिए कुछ भी सुनाई या दिखाई नहीं दे रहा था, मगर थोड़ी देर बाद आपने खिड़की खोल दी थी। उस वक्त कमरे में धुआं भरा हुआ था, तेज बदबू उठ रही थी। मैं इंतजार करने लगी। थोड़ी देर बाद जब आप चारों बाहर निकल गये तो मैं खिड़की के रास्ते कमरे के भीतर आ गयी, तब जाकर पता लगा था कि आप लोगों ने कितना बड़ा कांड कर डाला था।”
“अगर ऐसा था तो तूने उन्हें अस्पताल पहुँचाने की कोई कोशिश क्यों नहीं की? चाहती तो पुलिस को ही फोन कर सकती थी, वे लोग यहाँ पहुँचकर सब संभाल लेते। आखिर थोड़ी देर पहले तू सत्य से मोहब्बत का दम भी तो भरकर हटी है।”
“मुझे एक पल को भी अगर ये लगा होता कि सत्य की साँसें चल रही हैं, तो मैंने पक्का पुलिस को फोन कर दिया होता, मगर वह तो खून में नहाये पड़े थे, चेहरा इतनी बुरी तरह जल चुका था कि मैं उस तरफ देखने की भी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। और गर्दन से भल्ल-भल्ल करके खून उबल रहा था। कैसे मैं सोच लेती कि उस हालत में भी सत्य अभी जिंदा थे?”
“ठीक है, तब तूने इसलिए नहीं बताया क्योंकि तुझे उसके जिंदा होने की उम्मीद जरा भी नहीं थी, मगर बाद में पुलिस को तो हमारे बारे में बता ही सकती थी।” कहकर उसने पूछा – “क्यों नहीं बताया?”
“इसलिए नहीं बताया क्योंकि मैं पुलिस के झमले में नहीं पड़ना चाहती थी।
अभी भी नहीं पड़ना चाहती, इसलिए मुझे बख्श दो। मैं वादा करती हूँ कि यह राज़ हमेशा मेरे सीने में ही दफ्न रहेगा। कल को साहब के ठीक हो जाने के बाद उनसे भी इस बात का जिक्र नहीं करूंगी।”
“काम तो तूने बड़े ईनाम वाला किया है लड़की।”
“मुझे नहीं चाहिए ईनाम।”
“लेकिन मैं देना चाहती हूँ, इसलिए ध्यान से मेरी बात सुन। जब इतना फेवर तू बिना हमें भनक लगे ही कर चुकी है, तो अभी जो कह रही हूँ उसे भी कर के दिखा। और ये काम मैं तुझसे फोकट में नहीं करवाने वाली। इतना पैसा दूँगी जितना कि तूने पूरी जिंदगी में नहीं देखा होगा, बस अपने बयान पर डंटे रहना।”
“मैं फंस जाऊंगी मैडम।”
“कुछ नहीं होगा तुझे, यकीन कर। किसी वजह से अगर कल को तेरा झूठ पकड़ा भी जाता है तो तू ये कहकर साफ बच जायेगी कि हमने सत्य और तेरे अफेयर की बात सामने लाने की धमकी देकर तुझे मजबूर कर दिया था झूठ बोलने को। यानि हर हाल में तू सेफ ही रहेगी। और हमारा काम बन गया तो देख लेना बाकी की तेरी जिंदगी कैसे ऐश में गुजरती है। अब अपने मुँह से ही बता दे कि कितना पैसा चाहती है इस काम के लिए?”
तब पहली बार लड़की की आँखों में लालच की चमक दिखाई दी। उसने मन ही मन कुछ जोड़ घटा किया फिर बोली- “आप कितना देना चाहती हैं?”
“सेलरी कितनी है तेरी यहाँ?”
“चालीस हजार।”
“ठीक है, समझ ले अगले पांच सालों की तंख्वाह एडवांस में मिल जायेगी तुझे, जबकि रेग्युलर सेलेरी तो यहाँ से मिलती ही रहेगी। अब हाँ बोलकर दिखा।”
“मैडम पांच सालों में तो मेरी तंख्वाह डबल हो जानी है। अस्सी ना सही कम से कम साठ हजार के हिसाब से तो कैलकुलेट कीजिए, और ये सोचकर कीजिए कि जान है तो जहान है।”
“पागल हो गयी है? साठ हजार के हिसाब से तो साल के सात लाख बीस हजार हो जाते हैं, यानि पांच साल के छत्तीस लाख। नहीं, ये तो बहुत ज्यादा है, हमारी मजबूरी का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश मत कर।”
“दे दीजिए मैडम, जीवन भर आपको दुआएं दूँगी।”
“एक काम कर, पचास हजार के हिसाब से डन कर, यानि तीस लाख। नकद और एडवांस। अब खबरदार, जो इससे ज्यादा मुँह फाड़ा।”
“नहीं फाड़ूंगी, थैंक यू।”
“कम से कम मुस्करा कर तो दिखा दे सौतन।”
लड़की उस बात पर हँसकर रह गयी।
“गुड, ये बता कि पैसे कैश में लेगी या एकाउंट में?”
“एकाउंट में, मगर किसी और के।”
“कोई यार पाल रखा है क्या बाहर?”
“यार बराबर है मैडम, मगर उसे पालने की मेरी औकात नहीं है।”
“देखो तो बेशर्म को, मेरे सामने मेरे खसम को अपना यार बता रही है।”
“अब क्या फर्क पड़ता है।” आकाश पहली बार बोला – “हमारी तरफ से तो ये चाहे तो अभी हॉस्पिटल पहुँचकर उनके बगल में लेट रहे।”
उस बात पर शीतल ने जोर का ठहाका लगाया फिर बोली- “एकाउंट नंबर आकाश को दे देना, आज के आज पैसे ट्रांसफर हो जायेंगे।”
“ठीक है मैडम।”
“अब ध्यान से सुन कि तूने पुलिस से क्या कहना है, कब कहना है और कैसे कहना है। जरा भी उन्नीस बीस नहीं होनी चाहिए, समझ गयी?”
“जी मैडम, बेफिक्र रहिए।”
तत्पश्चात शीतल उसे धीरे-धीरे सब-कुछ समझाती चली गयी।
आदर्श पाण्डेय ने जो टाइम बम चौहान की नाक के नीचे से अपने कब्जे में किया था, असल में वह एक डायरी थी। ऐसी डायरी, जिस पर अनंत गोयल ने अपने गुनाहों का काला चिट्ठा लिख मारा था।
शाम छ: बजे के करीब वह ऑफिस पहुँचा।
रिसेप्शन पर वंशिका भौमिक अपनी जगमग मुस्कान के साथ उपस्थित थी।
“सर कहाँ हैं?”
“अपने कमरे में, मगर बात क्या है बड़े खुश दिखाई दे रहे हो आज?”
“वो तो मैं बराबर हूँ।” कहकर वह गलियारे में आगे बढ़ता चला गया।
पार्थ के कमरे का दरवाजा हौले से नॉक करके वह भीतर दाखिल हुआ और उसके इशारे पर एक विजिटर चेयर पर बैठ गया।
“लगता है कुछ खास है तुम्हारे पास?” पार्थ ने पूछा।
“बेशक है सर, और इतना खास है कि आप जानकर उछल ही पड़ेंगे।”
“वेरी गुड, क्या है?”
जवाब में हाथ में थमी डायरी पार्थ को सौंपता हुआ बोला- “अंबानी पर हुए हमले का काला चिट्ठा मौजूद है इसमें। हम अगर मौर्या के कत्ल की बात भूल जायें, जिससे हमारा वैसे भी कोई लेना-देना नहीं है तो समझ लीजिए कि केस
सॉल्व हो गया।”
पार्थ ने डायरी पढ़नी शुरू की।
जैसे-जैसे पढ़ता गया, वैसे-वैसे उसकी हैरानी बढ़ती चली गयी। हालांकि उसमें दर्ज अधिकतर बातें वही थीं, जिनका अंदाजा वह पहले से ही लगाये बैठा था; बावजूद इसके अनंत का लिखा उसे रोमांचित कर गया।
शुरूआत उसने होटल वाली मीटिंग से की थी।
सविस्तार इस बात का जिक्र किया था कि कैसे उन चारों ने रॉयल होटल के कमरा नंबर 102 में बैठकर अंबानी के कत्ल की योजना बनाई थी, क्योंकर वह देवर-भाभी का साथ देने को तैयार हुआ या मौर्या किस हासिल की खातिर योजना में शामिल हुआ था। आगे उसने उन्नीस तारीख की पार्टी का जिक्र करते हुए ये तक लिख मारा था कि किसने कौन से हथियार का इस्तेमाल किया था, और बाद में वह हथियार कहाँ गये।
आखिरी बात जो उस डायरी में दर्ज थी वह ये थी कि...
‘अंबानी साहब की साँसें चलती होने की खबर ने मुझ पर वज्रपात सा असर किया है। मैं बुरी तरह डरा हुआ हूँ। जिस काव्या को पाने के लिए मैं इतना कुछ कर बैठा, अब उसी को छोड़कर भाग निकलने के बारे में सोच रहा हूँ। कहाँ जाऊंगा पता नहीं, मगर पल्ले में पचास लाख रूपये हों तो अपनी जान बचाने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। मैं भी आखिरी क्षणों तक उसी कोशिश में लगा रहूँगा। अगर ये डायरी कोई पढ़ रहा है तो इसका मतलब है कि मैं इस दुनिया में नहीं हूँ। क्योंकि अपने जीते जी तो इसे किसी के हाथ नहीं लगने दे सकता। और कहीं मैं सच में मर चुका हूँ तो इस बात की अभी से गारंटी करता हूँ कि वैसा शीतल और आकाश अंबानी के किये ही हुआ होगा, क्योंकि मेरा कोई दुश्मन नहीं है। डायरी लिखने का उद्देश्य बस इतना है कि मैं नहीं चाहता मेरी मौत के बाद वह औरत अपने देवर के साथ मिलकर जश्न मना सके। जश्न या तो हम चारों मिलकर मनायेंगे या फिर कोई नहीं मना पायेगा।’
आगे के पन्ने कोरे थे।
पढ़कर पार्थ बहुत देर तक उसके लिखे पर विचार करता रहा। हालांकि उसके पास ये जानने का कोई साधन नहीं था कि वह हैंड राइटिंग अनंत की ही थी, लेकिन डायरी क्योंकि उसके फ्लैट से बरामद हुई थी, और घटनाक्रम उसकी अब तक कि जांच पड़ताल को सही साबित किये दे रहा था, इसलिए ये हो ही नहीं सकता था कि उसे किसी और ने लिख मारा हो, फिर किसी तीसरे शख्स के पास वैसी जानकारियां होने का कोई मतलब भी नहीं बनता था।
“गुड जॉब आदर्श।” वह प्रशंसा भरे लहजे में बोला – “कमाल कर दिया
तुमने।”
“कमाल जैसा तो इसमें कुछ भी नहीं है सर, समझ लीजिए अंधे के हाथ बटेर लग गयी। मैं ऐन वक्त पर वहाँ पहुँचा हुआ नहीं होता तो जाहिर है ये डायरी पुलिस के पास पहुँच गयी होती, जिनके बारे में मुझे पूरा यकीन है कि वह जायज-नाजायज तरीके से अनंत के कमरे में घुसने का फैसला कर के ही वहाँ पहुँचे थे। मगर आप तारीफ कर ही रहे हैं तो मेरी तरफ से थैंक यू टिका लीजिए।”
“टिका लिया।”
“बस एक बात समझ से बाहर है बॉस।”
“क्या?”
“मौर्या का कत्ल किसने किया?”
“और अनंत गोयल का भी, क्योंकि इतना तो उसके लिखे बिना भी हम समझ सकते हैं कि कोई भी अपने खिलाफ जाती इतनी भयानक बातों को डायरी में लिखा छोड़कर फरार नहीं हो जायेगा।”
“निकल जाना तो वह बराबर चाहता था, जिक्र भी किया है उस बात का।”
“मगर निकल नहीं पाया होगा, उससे पहले ही हत्यारा किसी तरह उसकी जान लेने और लाश को गायब कर देने में कामयाब हो गया।”
“उसके लिखे पर यकीन करें तो वह काम शीतल और आकाश का रहा हो सकता है।”
“मुझे नहीं लगता। उसने तो ये सोचकर वैसा लिख दिया होगा कि उसकी किसी के साथ दुश्मनी नहीं है, इसलिए किसी कारण से उसका कत्ल कर दिया जाता है तो वैसा करने वाले दोनों देवर-भाभी ही हो होंगे।”
“और किसी को क्या हासिल होना था मौर्या और अनंत की जान लेकर?”
“बदला। धीरे-धीरे मुझे चौहान की कही इस बात पर यकीन होता जा रहा है कि कोई है, जो अंबानी पर हुए हमले का बदला लेने निकल पड़ा है। और वह कोई अभी तक तो एक ही है मेरी निगाहों में।”
“जो कि अस्पताल में कोमा की चादर ओढ़े पड़ा है।”
“एग्जैक्टली, ये कारनामा उसी का लगता है। एक वही है, जिसकी उन चारों के साथ दुश्मनी साफ दिखाई दे रही है। और इससे पहले कि वह दो लोगों को और मार गिराये, हमें उसका भंडा फोड़ करना होगा।”
“पुलिस को खबर कर देते हैं।”
“नहीं, हम उससे बेहतर कुछ करेंगे।”
“क्या सर?”
“निगाहबीनी करेंगे, ताकि रंगे हाथों उसे गिरफ़्तार किया जा सके।”
“सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखकर भी तो हमारा काम चल सकता है?”
“चल सकता है, मगर उससे पहले हम ये चेक करेंगे कि वहाँ लगे कैमरों में वह खिड़की कवर होती है या नहीं। अगर होती है तो उधर का कैमरा खराब तो नहीं पड़ा? क्योंकि हत्यारा अगर सच में वही है तो कोई ना कोई तोड़ तो निकाला ही होगा खुद को बचाये रखने के लिए।” कहकर पार्थ ने पूछा – “काम कितना है अभी तुम्हारे पास?”
“एक ज्वैलर से मिलने जाना है, जिसका गुमशुदगी वाले केस के साथ कनेक्शन दिखाई दे रहा है, और तो कोई काम नहीं है फिलहाल।”
“वह काम दुग्गल साहब कर लेंगे, तुम मेरे साथ चलो, ताकि जरूरत पड़ने पर वहाँ की निगरानी का इंतजाम फौरन किया जा सके।” कहकर वह उठ खड़ा हुआ।
ग्रेटर कैलाश से अंबानी नर्सिंग होम पहुँचने में उन्हें मुश्किल से पंद्रह मिनट लगे।
दोनों मेन गेट से अंदर दाखिल हुए और इमारत में घुसने की बजाय बाईं तरफ को बढ़ते चले गये। उस दौरान दो कैमरों पर उनकी निगाह पड़ी, जिनका रूख बाउंड्री की तरफ था। जिन्हें तकरीबन दस फीट की ऊंचाई पर हॉस्पिटल की इमारत के साथ लगाया गया था।
आखिरी सिरे पर पहुँचकर दोनों ने राईट टर्न लिया और दायें-बायें देखकर वहाँ भी कैमरा तलाश करने लगे, जो कि फ्रंट की ही तरह बाउंड्री की तरफ रूख कर के लगाये गये थे।
“जब सामने और लेफ्ट में कैमरे मौजूद हैं सर....।” पाण्डेय बोला – “तो पीछे की तरफ न लगा होने का तो कोई मतलब ही नहीं बनता।”
“जरूर लगा होगा, लेकिन हम जब यहाँ तक आ ही गये हैं तो चलकर देख लेने में क्या हर्ज?”
“हर्ज तो खैर कोई नहीं है, चलिए।”
करीब पांच मिनट पैदल चलने के बाद दोनों ने एक बार फिर से राईट टर्न लिया और इमारत के पिछले हिस्से में पहुँच गये।
उधर की बाउंड्री इमारत से फ्रंट या लेफ्ट जितनी दूर नहीं थी, बल्कि मुश्किल से पांच फीट का कंपाउंड दिखाई दे रहा था वहाँ, जिसे नोट कर के पाण्डेय हैरान हुए बिना नहीं रह सका।
“इधर की बाउंड्री इमारत के इतने करीब क्यों है सर?”
“पहले ये बाकी हिस्सों जितनी ही दूरी पर रही होगी, मगर इधर का कुछ हिस्सा सरकारी जमीन पर उठा दिया गया था, जिसे एमसीडी ने कोर्ट के आदेश पर ध्वस्त करा दिया। उसके बाद नयी बाउंड्री तैयार कराई गयी होगी, जिसके
कारण इधर का कंपाउंड बहुत छोटा हो गया होगा।”
“काफी जानकारियां इकट्ठी कर लीं हैं आपने इस नर्सिंग होम के बारे में।”
“ऐसा नहीं है। वह बात तो इत्तेफाक से पता लग गयी, क्योंकि उसी वजह से क्रोधित होकर अंबानी ने कभी विक्रम राणे को सेवामुक्त कर दिया था।” कहकर पार्थ ने राणे की बतायी बात ज्यों की त्यों उसके आगे दोहरा दी।
तभी पाण्डेय की निगाह टर्न के पास ही सिर पर लगे कैमरे की तरफ चली गयी। उसकी पोजीशन भी बाकी कैमरों जैसी ही थी, मगर बाउंड्री क्योंकि बहुत करीब थी इसलिए लगता था कि वह उसके पार भी सड़क का बहुत सारा हिस्सा कवर करता होगा।
फिर दूर तक नजर दौड़ाने पर वैसा ही एक कैमरा उन्हें और दिखाई दे गया।
पार्थ अंदाजे से आगे बढ़कर उस वॉर्ड की खिड़की के करीब जा खड़ा हुआ, जिसमें सत्यप्रकाश अंबानी एडमिट था। उसने हौले से भीतर झांका तो इस बात की पुष्टि भी हो गयी कि वह एकदम सही जगह पर रूका था।
नर्स उस वक्त भी पेशेंट के करीब एक स्टूल पर बैठी हुई थी।
“अब तो मान ही लीजिए सर कि कैमरे की निगाहों में आये बिना उसका यहाँ से निकल पाना मुमकिन नहीं था। हाँ, रिकॉर्डिंग अगर डिलीट मिलती है या कैमरों में कोई खराबी निकल आती है तो और बात होगी।”
“लगता है तुमने ध्यान से कैमरे की पोजीशन नहीं देखी। वह नीचे को झुके हुए नहीं हैं, बल्कि फ्रंट और लेफ्ट की ही तरह एकदम सीधे लगे हैं, इसलिए मुझे शक है कि खिड़की से बाहर निकलते शख्स को कवर कर पाते होंगे।”
“हो सकता है ना करते हों, मगर इस बाउंड्री को पार करने की कोशिश करते वक्त तो उसका थोबड़ा रिकॉर्ड होकर रहना था।”
“वह ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता था। जरा ऊंचाई तो देखो बाउंड्री वॉल की, कम से कम भी आठ फीट तो जरूर होगी। ऐसे में तुम इस बात की उम्मीद कैसे कर सकते हो कि हॉस्पिटल में घायल पड़ा सत्यप्रकाश अंबानी इसे लांघकर दूसरी तरफ पहुँच सकता है।”
“आपने ही तो उस पर शक जताया था।”
“हाँ जताया था, बल्कि अभी भी अपनी बात पर कायम हूँ, लेकिन मैंने ये कभी नहीं कहा कि वह बाउंड्री फांदकर यहाँ से निकला होगा।”
“और कैसे जा सकता है?”
“मेरे ख्याल से खिड़की से नीचे उतरने के बाद वह दीवार के साथ सटकर आगे बढ़ता चला गया होगा। हो सकता है तब थोड़ी देर के लिए उसने कोई चादर वगैरह ओढ़ ली हो, ताकि बाहर निकलते वक्त कैमरों में उसकी सूरत कैद न हो सके। मत भूलो कि ये हॉस्पिटल है, यहाँ ऐसी बातों की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं जाने वाला। इसलिए इतना तो तय समझो कि अगर कैमरों में ये खिड़की नजर नहीं आती तो उसका यहाँ से निकलकर चुपचाप वापिस लौट आना कोई नामुमकिन बात नहीं है।”
“यानि मुझे यहाँ खड़े करने का इरादा आपने पक्का बना लिया है?”
“हाँ, रात दस बजे तक वेट करो, फिर कोई तुम्हें रिलीफ देने आ जायेगा।”
कहने के बाद वह झुककर खिड़की के नीचे की कच्ची जमीन का मुआयना करने लगा, मगर वहाँ ऐसा कोई सूत्र नहीं दिखाई दिया, जो किसी के उधर से आवागमन की चुगली करता हो।
अगले दस मिनटों में वह एक सिरे से दूसरे सिरे तक हो आया, मगर हासिल तो फिर भी कुछ नहीं हुआ।
“अब मैं जाकर डॉक्टर पुरी से मिलता हूँ, संभाल लेना।”
“अच्छा मान लीजिए कि आपका ये सोचना सही है कि मौर्या का कत्ल अंबानी ने ही किया है। ऐसे में मेरी यहाँ मौजूदगी के दौरान अगर वह खिड़की से उतरकर कहीं चल देता है तो मुझे क्या करना होगा?”
“उसके पीछे जाना, और क्या करोगे?”
“क्या पता आस-पास उसने किसी गाड़ी का इंतजाम कर रखा हो, बल्कि कर ही रखा होगा। ऐसे में जब तक मैं ऑटो या टैक्सी का इंतजाम करूंगा वह निगाहों से ओझल नहीं हो जायेगा? हाँ, आप अगर कुछ देर यहाँ रूकने को तैयार हों तो मैं ऑफिस जाकर अपनी बाइक ले आऊं। उसके बाद तो मैं हवाई जहाज का भी पीछा कर सकता हूँ।”
पार्थ ने कुछ क्षण उस प्रॉब्लम पर विचार किया, फिर अपनी कार की चाबी आदर्श को सौंपकर खुद इमारत के फ्रंट की तरफ बढ़ चला।
रिसेप्शन पर पहुँचकर उसने डॉक्टर पुरी के बारे में दरयाफ्त किया तो वहाँ बैठी नर्स ने उसे थर्ड फ्लोर पर रूम नंबर 303 में जाने को कह दिया।
पार्थ ने उसे थैंक यू बोला और एक लिफ्ट में सवार होकर तीसरी मंजिल पर पहुँचा।
फिर 303 के सामने पहुँचकर हौले से दरवाजा नॉक किया तो भीतर से तुरंत इजाजत दे दी गयी।
वह अंदर दाखिल हुआ तो एक नर्स को डॉक्टर के सामने बैठा पाया, जो कि उठकर तुरंत वहाँ से बाहर निकल गयी।
“हैलो डॉक्टर।” पार्थ मुस्कराया।
“हैलो, प्लीज हैव अ सीट।”
“थैंक यू।” कहता हुआ वह बैठ गया।
“यस?”
“मेरा नाम पार्थ सान्याल है सर।” उसने बताया – “मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ। मिसेज शुभांगी बिड़ला के कहने पर अंबानी साहब पर हुए हमले की तफ्तीश कर रहा हूँ।”
“दैट्स वेरी गुड, टेल मी वॉट आई कैन डू फॉर यू मिस्टर पार्थ?”
“मिस्टर अंबानी अब कैसे हैं?”
“पेशेंट इज इन कोमा नाऊ, सो आई कांट से ओके, बट नो मोर प्रॉब्लम।”
“कोई अंदाजा, कब तक बाहर आ जायेंगे?”
“बच्चों जैसा सवाल मत पूछो पार्थ, नो बॉडी कैन टेल अबाउट दिस।”
“सॉरी, अच्छा ये बताइए कि मरीज की हालत देखकर ही आप लोग अंदाजा लगा लेते हैं कि वह कोमा में है, या कोई वैज्ञानिक विधि भी होती है?”
“ऑफ़कोर्स होती है। उसके लिए ग्लासगो कोमा स्केल का इस्तेमाल किया जाता है, जो कि तीन चरणों में जांच करता है। नंबर एक, आँखों का खुलना या फड़कना, किसी बात पर प्रतिक्रिया और आवाज सुनकर रियेक्ट करना।” कहने के बाद वह क्षण भर रुक कर बोला – “ज्यादातर मामलों में सात से दस दिनों में मरीज बाहर आ जाते हैं, मगर कई बार वह स्थिति सालों साल भी चलती रह जाती है, बशर्ते कि पेशेंट को और कोई प्रॉब्लम न हो।”
“मैं समझा नहीं सर, और कैसी प्रॉब्लम हो सकती है?”
“कोमा के दौरान अगर किसी वजह से उसे भयानक दर्द हो रहा है तो उसकी जान तक जा सकती है, क्योंकि उसका दिमाग निष्क्रिय है इसलिए पेशेंट उस पर रियेक्ट नहीं कर सकता। यानि उसे दर्द का एहसास हो न हो, वह बात उसकी हालत पर बुरा असर डाल कर रहेगी। इसलिए कोमा के पेशेंट को बावजूद इसके ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है कि वह सुप्तावस्था में पड़ा है। हाँ, कई बार ऐसा भी होता है जब पेशेंट दर्द पर प्रतिक्रिया देता है, छटपटाता भी है मगर उठकर बैठ नहीं सकता। उन हालात में सबसे ज्यादा असर उसकी साँसों और दिल की धड़कनों पर होता है, जो कि अनियमित हो उठती हैं।”
“यानि जरूरी नहीं कि कोई पूरी तरह निष्क्रिय पड़ा हो तभी उसे कोमा में गया माना जायेगा?”
“बिल्कुल नहीं, कई बार तो कोमा लकवे जैसी स्थिति भी पैदा कर देता है, जैसे कि पेशेंट अपनी आँखें तो खोल पा रहा है मगर उसके बाकी शरीर में कोई हरकत नहीं है। या वह आँखें भी खोल रहा है और हाथों में मूवमेंट भी है मगर उठकर बैठ नहीं सकता क्योंकि बाकी का शरीर निष्क्रिय पड़ा हुआ है। कहने का
मतलब ये है कि हर मामले में लक्षण जुदा हो सकते हैं।”
“यूँ तो कोई जानबूझकर एकदम शांत पड़ा रह सकता है ताकि उसे कोमा में चला गया समझ लिया जाये?”
“नहीं, कोशिश बेशक कोई भी कर सकता है, मगर डॉक्टर्स के सामने वह स्थिति ज्यादा देर तक नहीं चल सकती। बल्कि सिटी स्कैन, एमआरआई, इलेक्ट्रोकॉर्डियोग्राफी के जरिये ही उसकी पोल खुल जायेगी, क्योंकि अगर सब-कुछ एकदम ठीक है तो कोई मतलब ही नहीं बनता कि पेशेंट कोमा में हो।”
“अंबानी साहब कि स्थिति कैसी है, क्या उनके शरीर के किसी हिस्से में हरकत है, या एकदम सुप्त पड़े हैं?”
“आँखों में है, अक्सर पलकें फड़फड़ा उठती हैं। कल रात तो एक बार बायें हाथ में भी मूवमेंट दिखाई दी थी नर्स को, मगर बाकी का शरीर निष्क्रिय है।”
“कभी कोई ऐसा पेशेंट नहीं आया आपके पास, जो जानबूझकर कोमा में चले जाने की एक्टिंग करता पाया गया हो?”
“नहीं, लेकिन ऐसे पेशेंट बहुत आये होंगे, जिनकी कोमा में ही चल-चल हो गयी, मगर उस बारे में तुम इतने सवाल क्यों कर रहे हो? या तुम्हें ये लगता है कि मिस्टर अंबानी जानबूझकर कोमा में गया होने का नाटक कर रहे हैं?”
“नहीं-नहीं।” पार्थ हड़बड़ा सा गया – “इतने बड़े आदमी हैं अंबानी साहब, वो भला ऐसा कुछ क्यों करने लगे? मैं तो बस समझ लीजिए अपनी जानकारी में इजाफा करने की कोशिश कर रहा था।”
“हो गयी?”
“जी हाँ, थैंक यू।”
“और क्या जानना चाहते हो?”
“मान लीजिए अगर अंबानी साहब आज ही कोमा से निकल आते हैं, तो उनको चलने फिरने के काबिल बनने में कितना वक्त लग जायेगा?”
“मे बी दस दिन, या उससे कुछ ज्यादा।”
“दुःख तो बहुत होगा आपको उनके इस हालत में पहुँच जाने का?”
“मुझे अपने हर पेशेंट के बारे में दुःख होता है पार्थ, लेकिन ईश्वर की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती। किसी को देखकर लगता है बच जायेगा, मगर वह दम तोड़ जाता है, और कभी ऐसा भी होता है कि मौत के कगार पर खड़ा पेशेंट, जिसकी तरफ से हम खुद नाउम्मीद होते है, बच जाता है। अंबानी साहब का ही केस ले लो, मुझे उनके बच जाने के एक परसेंट भी चांस नहीं दिखाई दे रहे थे, मगर कोमा को नजरअंदाज कर के कहूँ तो आज एकदम सही सलामत हैं। जबकि उनका पीए, जिसके बारे में मैं श्योर था कि उसकी जान बच जायेगी, दो घंटे में ही
दम तोड़ गया।”
“वॉट?” पार्थ लगभग उछल ही पड़ा।
“क्या हुआ, चौंक क्यों रहे हो?”
“अनंत गोयल मर गया?”
“क्या कर सकते हैं भई, ईश्वर की मर्जी के आगे हम सब गौण हैं। देखा जाये तो कोई खास चोट नहीं आई थी उसे। मैं तो उसके भाई से ये तक कह बैठा था कि उसे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, मगर अफसोस कि जान नहीं बचा पाया उसकी।”
“कब की बात है?” आश्चर्य के घोड़े पर सवार पार्थ ने सवाल किया।
“कल दोपहर बाद की, मेरे ख्याल से दो बजे के आस-पास का वक्त रहा होगा। नर्स क्योंकि अनंत को पहचानती थी इसलिए फौरन मुझे खबर कर दी। मैं भागा-भागा इमरजेंसी में पहुँचा, जहाँ अनंत मुझे तड़पता सा दिखाई दिया। उसके चेहरे पर जगह-जगह से खून बह रहा था, लेकिन होश में था। मैंने उसकी नब्ज और हॉर्ट बीट चेक की तो दोनों मामूली से अनियमित महसूस हुए, मगर बीपी बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ था। अनंत के भाई से पूछने पर पता चला कि किसी कार ने सामने से उसे टक्कर मार दी थी। हम उसे लेकर ओटी में पहुँचे, जहाँ ट्रीटमेंट शुरू होने के घंटा भर बाद उसकी हालत स्टेबल होती दिखाई देने लगी, मगर वैसा ज्यादा देर तक बना नहीं रह सका। आधा घंटा बाद वह पहले से कहीं ज्यादा तड़पने लगा। दोनों हाथों से अपना सिर थामकर जोर-जोर से कुछ बोल भी रहा था, जिसका एक शब्द भी हमारे पल्ले नहीं पड़ा। मैंने उसे सिडेटिव का इंजेक्शन देकर शांत किया और ब्रेन की एमआरआई निकालने की तैयारी करने लगा। अफसोस कि तभी उसके प्राण निकल गये।” डॉक्टर बेहद दुखी स्वर में बोला।
“जख्म बस चेहरे पर ही थे?”
“प्रत्यक्षतः तो वही दिखाई दे रहे थे। हो सकता है कोई इंटरनल हैमरेज भी हुआ हो, जिसकी तरफ फौरन हमारा ध्यान नहीं गया।” कहकर वह बड़े ही फिलास्फना अंदाज में बोला – “मौत का क्या है भई, जब आती है तो यूँ ही आ जाती है। कभी कोई वजह होती है तो कभी नहीं भी होती। उसे तो जैसे बहाना चाहिए होता है इंसानी जिंदगी के दरवाजे पर दस्तक देने का।”
“आप उसे पहले से जानते थे?”
“ऑफ़कोर्स जानता था। मिस्टर अंबानी जब भी यहाँ आते थे, अनंत उनके साथ होता था। कई बार हम लोगों ने एक साथ लंच या डिनर भी किया होगा। अक्सर फोन पर बातें भी हो जाया करती थीं। अच्छा आदमी था, मुझे उसकी मौत का बहुत अफसोस है।”
“डॉक्टर साहब विद सॉरी पूछता हूँ कि क्या उसे पहचानने में आपसे कोई भूल हुई हो सकती है?”
“कैसे हो सकती थी? छोटे-मोटे जख्मों और वहाँ से बहते खून को नजरअंदाज कर दो तो सूरत तो एकदम साफ दिखाई दे रही थी उसकी। फिर आकाश और मिसेज अंबानी ने भी तो ओटी में पहुँचकर देखा था उसे। एक साथ तीन लोग किसी गलतफहमी का शिकार क्योंकर होने लगे? बल्कि चार क्योंकि सबसे पहले तो नर्स ने पहचाना था उसे। फिर सीसीटीवी कैमरे भी तो लगे हैं यहाँ, जिनकी फुटेज देखकर भी जाना जा सकता है कि वह अनंत गोयल ही था या उससे मिलता जुलता कोई दूसरा शख्स।”
“पुलिस को तो जरूर इंफॉर्म किया होगा?”
“एक्सीडेंट का मामला था, कैसे चुप रह जाते, और क्यों रह जाते? इसलिए फौरन इंफॉर्म किया गया, जिसके बाद लोकल थाने से यहाँ पहुँचकर एक सिपाही ने एमएलसी की फॉर्मेलिटी पूरी की और बड़े भाई का बयान लेने के बाद उसे थाने पहुँचकर रिपोर्ट दर्ज करवाने की कहकर वापिस लौट गया।”
“बड़े भाई का नाम क्या था?”
“नहीं जानता, लेकिन रिसेप्शन से आपको उसकी सारी डिटेल्स मिल जायेगी।”
“चार बजे उसकी मौत हुई बताते हैं आप, उसके बाद क्या हुआ?”
“क्या होना था, सिवाये इसके कि बड़ा भाई रोता-कलपता डेड बॉडी को एक एंबुलेंस में रखवाकर यहाँ से चला गया। वह इस बात पर भी गुस्सा हो रहा था कि हमने हॉस्पिटल की एंबुलेंस मुहैया नहीं कराई उसके लिए, मगर क्या करते, यहाँ की चारों एंबुलेंस उस वक्त बिजी थीं।”
“रिपोर्ट दर्ज कराने थाने पहुँचा था वह?”
जवाब में डॉक्टर पुरी ने घूर कर पार्थ को देखा।
“सॉरी डॉक्टर, मैंने गलत सवाल पूछ लिया। आपको भला उस बात की खबर कैसे हो सकती है।”
“एग्जैक्टली, वैसे कल नहीं भी गया होगा तो आज जरूर गया होगा। खामोश क्यों बैठ जायेगा अपने भाई की मौत पर?”
“बैठना तो नहीं चाहिए डॉक्टर, मगर क्या पता लगता है। कई बार लोग बाग पुलिस के झमेलों से बचने के लिए भी वैसा कर जाते हैं।” कहकर वह उठ खड़ा हुआ – “आपने अपना ढेर सारा कीमती वक्त दिया मुझे, इसके लिए थैंक यू।”
पुरी ने गर्दन को हल्का सा खम देकर उसका धन्यवाद कबूल किया।
लिफ्ट में सवार होकर पार्थ नीचे पहुँचा।
अनंत की कल शाम हुई मौत उसे थोड़ा कंफ्यूज कर रही थी। फिर मरा भी तो कहाँ? अंबानी नर्सिंग होम पहुँचकर। कहीं उसमें भी तो सत्यप्रकाश अंबानी की ही तो कोई करामात नहीं थी?
कैसे हो सकती है? मौत तो एक्सीडेंटल बतायी जाती है।
पार्थ बुरी तरह उलझ कर रह गया। मगर इस बात में कोई शक नहीं था कि एक्सीडेंट जानबूझकर किया गया होगा। बस हैरानी की बात ये थी कि कल शाम तक वह जिंदा था मगर किसी को ढूंढे नहीं मिल रहा था।
रिसेप्शन पर पहुँचकर उसने डॉक्टर पुरी के नाम का हवाला देते हुए नर्स से सवाल किया- “आप अनंत गोयल को पहचानती हैं?”
“पहचानता था, बट अभी वह गॉड के पास है।”
“कल जिस वक्त उसे यहाँ लाया गया था, आप यहीं थीं या कोई और था?”
“मैं ही था।”
“वक्त कितना हुआ था?”
“दो बजने का था।”
“चेहरा देखा था आपने पेशेंट का?”
“ऑफ़कोर्स देखा था, डॉक्टर पुरी को इंफॉर्म भी मैं ही किया।”
“हालत कैसी थी उसकी?”
“फेस डैमेज था, ब्लीडिंग हो रहा था, बुरी तरह तड़प रहा था, बट जिंदा था।”
“बाद में मिस्टर आकाश और मिसेज शीतल अंबानी भी उसे देखने पहुँचे थे?”
“हाँ पहुँचा था, डॉक्टर पुरी बोला तो एक लड़का उनको मैसेज देने चला गया। उस वक्त दोनों मिस्टर अंबानी का वॉर्ड में बैठा था। बट अनंत के बारे में सुनते ही इधर आ गया।”
“पेशेंट को लेकर कौन आया था यहाँ?”
“मेरे को नहीं मालूम, बट एक आदमी आया बराबर था।”
“आईडी तो ली होगी उनकी?”
“ऑफ़कोर्स लिया था।”
“दिखाइए प्लीज।”
जवाब में नर्स ने डेस्क पर पड़ी एक फाइल में से ढूंढकर दो जेरॉक्स कॉपी उसके सामने रखी दीं। उनमें से एक अनंत गोयल की थी, जबकि दूसरे पर किसी मनीष गोयल का नाम लिखा दिखाई दे रहा था।
“आप लोग जेरॉक्स करते हैं सिस्टर, आईडी स्कैन नहीं करते?”
“ऐसा किधर होता है सर, सब लोग जेरॉक्स ही करता है, बट इस बार तो वह
भी नहीं हुआ, अटेंडेंट के पास ओरिजिनल आईडी मौजूद नहीं था, इसलिए वह हमको ये फोटो कॉपी ही दिया बस।”
पार्थ ने मोबाइल निकालकर दोनों कागज़ात की एक-एक तस्वीर क्लिक की फिर नर्स से वहाँ के सर्विलांस रूम का पता पूछकर बेसमेंट की सीढ़ियां उतरता चला गया, जो कि पॉर्किंग एरिया के आखिरी सिरे पर स्थित एक कमरे में था।
भीतर एक चौबीस-पच्चीस साल का लड़का बैठा था, जिसका पूरा ध्यान उस वक्त मोबाइल में था। उस काम में वह इतना मगन था कि पार्थ के वहाँ पहुँच जाने का एहसास तक नहीं हुआ उसे।
“मोबाइल से फ्री हो जाओ तो बता देना।” पार्थ उसके बगल की एक खाली चेयर पर बैठता हुआ बोला – “तब तक मैं झपकी मार लेता हूँ।”
“सॉरी सर।” ऑपरेटर चौंकता हुआ बोला – “बताइए क्या चाहते हैं?”
“मैं नहीं डॉक्टर पुरी चाहते हैं।”
“क्या?”
“यही कि तुम मुझे कल पौने दो बजे के बाद से इमरजेंसी के कैमरे की फुटेज दिखाओ। चाहो तो पहले डॉक्टर साहब को फोन कर के इजाजत ले लो, ताकि यकीन आ जाये कि मैं उन्हीं के कहने पर यहाँ पहुँचा हूँ।”
“क्या जरूरत है सर?” लड़का थोड़ा हँसकर बोला – “अगर नहीं भी भेजा होगा तो आपके देख लेने भर से फुटेज गायब थोड़े ही हो जायेगी।”
कहकर उसने कंप्यूटर में फाइल एक्सप्लोरल खोला, जहाँ कैमरा नंबर 1, कैमरा नंबर 2, जैसे नामों से कई फोल्डर बने हुए थे।
ऑपरेटर ने चार नंबर का फोल्डर खोलकर एक वीडियो प्ले की और माउस के जरिये स्ट्रीमिंग को जगह-जगह क्लिक करता हुआ आगे बढ़ाता चला गया।
उसी दौरान पार्थ फेसबुक के जरिये अनंत गोयल की एक तस्वीर ढूंढ निकालने में कामयाब हो गया। वैसा करना इसलिए जरूरी था क्योंकि वह नहीं जानता था कि अनंत गोयल कैसा दिखता था।
उधर वीडियो ज्योंही एक बजकर पैंतालिस मिनट पर पहुँची, ऑपरेटर ने उसे नार्मल ढंग से प्ले कर के क्षण भर को पार्थ की तरफ देखा फिर स्क्रीन पर देखने लगा।
एक बजकर अठावन मिनट पर पैजामा कुर्ता पहने एक शख्स पेशेंट को गोद में उठाए इमरजेंसी के सामने थ्री व्हीलर से नीचे उतरा, अगले ही पल उसका मुँह यूँ खुला जैसे चिल्लाकर मदद की गुहार लगा रहा हो।
तभी दो लड़के एक स्ट्रेचर घसीटते हुए उसके पास पहुँचे, फिर दोनों ने मिलकर पेशेंट को उस पर लिटा दिया। तभी रिसेप्शन पर बैठी नर्स अपनी जगह से उठकर उनके करीब पहुँची और पेशेंट पर एक निगाह डालकर तेजी से गलियारे में आगे बढ़ती चली गयी।
और थोड़ी देर बाद जब वापिस लौटी तो डॉक्टर पुरी उसके साथ था।
उसने वहीं खड़े होकर पेशेंट का मुआयना किया, फिर स्ट्रेचर को ओटी की तरफ घसीटा जाने लगा। साथ आया अनंत गोयल का कथित भाई भी उनके पीछे हो लिया।
फुटेज में वह शख्स एकदम साफ दिखाई दे रहा था, मगर उसके चेहरे का कोई अंदाजा इसलिए नहीं हो सका क्योंकि आँखों पर बाई फोकल और चेहरे पर खूब बड़ा मास्क चढ़ाये हुए था, जिससे उसकी सूरत का अधिकांश हिस्सा छिप सा गया था।
स्ट्रेचर पर लिटाये जाने के बाद जोर-जोर से तड़पते पेशेंट का चेहरा भी पार्थ को स्पष्ट दिखाई दिया था जो कि फेसबुक से हासिल हुई अनंत गोयल की तस्वीर से हू ब हू मैच करता था।
डॉक्टर पुरी ने तब की उसकी हालत बयान करने में कोई घट-बढ़ नहीं की थी, इसका पता इसी बात से लग जाता था कि चेहरे पर लगी कुछ चोटों और वहाँ से बहते खून के अलावा कोई बड़ा जख्म अनंत गोयल के शरीर पर नहीं दिखाई दे रहा था।
थोड़ी देर बाद आकाश और शीतल अंबानी भी वहाँ पहुँचते दिखाई दे गये, जो कि ओटी में दाखिल होकर कैमरे की निगाहों से ओझल हो गये मगर दो मिनट बाद फिर से उनका चेहरा दिखाई देने लगा। दोनों की सूरत बता रही थी कि अनंत की उस हालत पर कितनी बुरी तरह हैरान थे, इसलिए उनके कातिल निकल आने के चांसेज कम ही जान पड़ते थे।
पार्थ ध्यान से फुटेज देखता रहा। कहीं कुछ ऐसा नहीं था, जो शक उपजाने वाला कहा जा सके। बावजूद इसके उसका मन कह रहा था कि अनंत की मौत किसी आम दुर्घटना में नहीं हुई थी, बल्कि वह भी हत्यारे की सोची समझी रणनीति का हिस्सा ही रहा होगा।
सवा चार बजे रोता कलपता अनंत का भाई की लाश के साथ इमरजेंसी से बाहर निकलता दिखाई दिया।
उस वक्त डॉक्टर पुरी भी उसके साथ था।
आगे डैडबॉडी को एक एंबुलेंस में रखवा दिया गया, जिसके बाद वह शख्स वहाँ से रवाना हो गया। जैसा कि डॉक्टर पुरी पहले ही बता चुका था, वह एंबुलेंस अस्पताल की नहीं थी बल्कि एक प्राइवेट ईको वैन थी, जिसके दोनों तरफ एंबुलेंस लिखा स्पष्ट दिखाई दे रहा था।
अच्छी बात ये रही कि पार्थ को गाड़ी का नंबर दिखाई दे गया, जिसे उसने तुरंत नोट कर लिया। फिर ऑपरेटर को इमारत के पिछले हिस्से की फुटेज दिखाने को कहा, जिसके बाद तुरंत ये साबित हो गया कि उधर लगा कोई भी कैमरा दीवार के एकदम नीचे का दृश्य दिखाने में असमर्थ था, जो कुछ दिखाई दे रहा था वह कम से कम भी दो से तीन फीट आगे का दृश्य था, जिससे सावधानी बरत कर बच निकलना ज्यादा मुश्किल काम नहीं था।
आगे एक घंटे का वक्त जाया कर के उसने मौर्या के कत्ल के वक्त की तमाम फुटेज भी देख डालीं, मगर सत्यप्रकाश अंबानी का चेहरा उसमें नजर नहीं आया। ना ही कोई ऐसा संदिग्ध शख्स दिखा, जिस पर वह अंबानी होने का शुबहा कर पाता।
आखिरकार उसने ऑपरेटर को बीस तारीख की सुबह सवा सात की फुटेज दिखाने को कहा। हालांकि हासिल फिर भी कुछ नहीं हुआ, सिवाये इसके कि अनंत गोयल हॉस्पिटल से निकलकर सड़क पर पहुँचा और देखते ही देखते एक ऑटो में सवार होकर सीसीटीवी की रेंज से दूर निकल गया।
पार्थ ने उस ऑटो का भी नंबर नोट कर लिया, फिर ऑपरेटर को धन्यवाद देकर सर्विलांस रूम से बाहर निकल आया।
रजिस्ट्रेशन नंबर के जरिये एंबुलेंस और ऑटो का पता लगाना बहुत आसान काम था, मगर खुद उनके पीछे पड़ने की बजाय पार्थ ने वंशिका को फोन किया और दोनों गाड़ियों के बारे में बताते हुए अच्छी तरह से समझा दिया कि उसने किस तरह की जानकारियां हासिल करने की कोशिश करनी थी।
तत्पश्चात वह अस्पताल से बाहर निकल आया।
तभी उसे अपने मोबाइल पर बीप की आवाज सुनाई दी, स्क्रीन लॉक हटाकर देखा तो पाया कि वॉचमैन के एप्प पर युग जौहर ने दो मैसेज अपलोड किये थे।
पार्थ ने पढ़ा।
‘जिस रोज सत्यप्रकाश अंबानी को अस्पताल में एडमिट कराया गया उस रोज रात साढ़े आठ बजे मौर्या के मोबाइल की लोकेशन अंबानी नर्सिंग होम की ही थी, जहाँ वह साढ़े तीन घंटों तक रूका रहा था।’
इसी तरह उसने अनंत गोयल के बारे में लिखा कि बीस तारीख को सुबह नौ बजे उसकी आखिरी लोकेशन अंबानी नर्सिंग होम के बाहर की थी, जिसके बाद उसका मोबाइल ऑफ हो गया था।
जाहिर था ऑटो में सवार होते के साथ ही उसने मोबाइल बंद कर दिया था।
मैसेज पढ़ चुकने के बाद पार्थ किसी ऑटो की तलाश में इधर उधर देख ही रहा था कि उसकी निगाह दाईं तरफ को खड़ी चार प्राइवेट एंबुलेंस पर पड़ी,
जिनमें से एक ईको और तीन ओमनी थीं।
पार्थ ने नजदीक पहुँचकर ईको का नंबर देखा तो पता लगा कि वह कोई दूसरी गाड़ी थी। तब उसने वहाँ मौजूद चारों एंबुलेंस ड्राइवर्स से पूछताछ करनी शुरू की, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। उसके बताये गये रजिस्ट्रेशन नंबर वाली एंबुलेंस को पहचानता होने से चारों ने ही साफ इंकार कर दिया।
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