सुनील सशंक हो उठा। वह राकेश से भयभीत था, क्योंकि सुनील के कृत्यों का राकेश एक चश्मदीद गवाह था । वह राकेश से कई बातें करना चाहता था, लेकिन समय नहीं था, क्योंकि उसी समय एक सिपाही राकेश को भीतर लिवा ले गया ।


सुनील ने बेबसी से सिर हिलाया और अदालत में पहुंच गया। लगभग बारह बजे उसकी पुकार हुई । वहां भी उससे लगभग वैसे ही प्रश्न पूछे गए जैसे प्रभूदयाल ने पूछे थे । सरकारी वकील ने भी उसने यह प्रश्न कई बार पूछा था कि क्या उसने किसी को इशारा करने के लिये खिड़की के ड्रेप को ऊपर-नीचे किया था और उसे इस बात का हवाला भी दिया कि उसने अदालत में सत्य बोलने की सौगंध खाई है लेकिन सुनील बराबर इन्कार करता रहा ।


सुनील के बाद राकेश की पेशी थी, लेकिन वह वहां पर रुका नहीं । बाहर उसे एक-दो रिपोर्टरों ने टोका, लेकिन वह रुका नहीं उसके अपने अखबार का भी एक रिपोर्टर वहां मौजूद था।


"क्या मामला है, भई ?" - उसने पूछा ।


"इस बार तो फंस ही गये हैं, बरखुरदार।" - सुनील ने कहा । 


"लेकिन, बात क्या क्या है ? आज तुम दफ्तर भी नहीं आए, मलिक साहब नाराज हो रहे थे।"


मलिक साहब ब्लास्ट के चीफ एडीटर थे और मालिक

भी ।


"देखो, साहनी।" - सुनील ने व्यस्तता दिखाते हुए कहा - "बात बताने की फुरसत नहीं है। मलिक साहब से कह देना कि आज मैं नहीं आ सकूंगा। मैं ईवनिंग एडीशन के लिए एक छोटी-सी रिपोर्ट भेज दूंगा, बाकी डिटेल कल सुबह आ जाएगी और अब तुम मेरा पीछा छोड़ो ।"


जब वह अपने फ्लैट में पहुंचा तो एक बज चुका था । प्रमिला का दरवाजा भी खुला था ।


“पम्मी ।" - उसने ताला खोलते हुए पुकारा ।


"आई।" - प्रमिला की आवाज आई।


"कैसी गुजरी ?" - प्रमिला ने कमरे में घुसते हुए पूछा


"कोई खास बुरी नहीं।"


"प्रभूदयाल से झड़प नहीं हुई ?"


"खूब ।" - और सुनील ने उसे सब कुछ बता दिया ।


" तो तुम अदालत में सौगन्ध खाकर भी झूठ बोल आए


"कैसे ?"


"तुम ही ने तो उन्हें कहा था कि तुमने किसी को इशारा करने के लिये खिड़की को ऊपर-नीचे नहीं किया था।"


"मैं अब भी कहता हूं।"


"तो फिर झूठ तो बोला तुमने ।"


"तुम भी प्रमिला, बिल्कुल प्रभूदयाल और सरकारी वकील के ही ढंग से सोच रही हो। मैंने खिड़की को ऊपर नीचे जरूर किया लेकिन किसी को इशारा करने के लिए नहीं । अगर वे मुझसे यह प्रश्न पूछते कि तुमने खिड़की के ड्रेप को पहले नीचे और फिर ऊपर किया था तो मुझे हां कहना ही पड़ना था ।"


"तो फिर तुमने क्यों ड्रेप खींचा था ?"


उसी समय दरवाजे पर रमाकान्त का स्वर सुनाई दिया


"सुनील।" - उसने समीप आकर कहा- "आज बहुत खबरें हैं तुम्हारे लिए ।"


"जल्दी बोलो।" - सुनील ने आंखें खोले बिना ही कहा "मेरा दिल डूबा जा रहा है । "


" राकेश को प्रभूदयाल ने पुलिस स्टेशन बुलाया था।"


" उसने क्या कहा है ?"


"उसने कहा है कि जयनारायण की कोठी पर जो आदमी खिड़की के पास इशारा करता हुआ दिखाई दिया था, वह तुम थे ।”


"लेकिन" - सुनील ने उत्तेजित होकर कहा- "जब मैंने उससे पूछा था कि तुम खिड़की के पास खड़े आदमी को

पहचान पाए थे तो उसने इन्कार कर दिया था। मुझे उसने कहा था कि वह उस आदमी का कद पहचन पाया था, जो कि लगभग मेरे जैसा था। जब बात ताजी थी और मैं उसके सामने खड़ा था तब तो वह मुझे पहचान नहीं पाया और वह दावा करता है कि उसने खिड़की पर मुझे देखा था, कैसा आदमी है वह !"


"वह कहता है कि वह तुम्हारे प्रभाव में आ गया था और उस समय इस बात का महत्त्व भी मालूम नहीं था । यह तो उसे तब सूझा था जब उसे यह मालूम हुआ था कि लगभग उसी समय जयनारायण की हत्या हुई थी।"


सुनील चुप बैठा रहा ।


"लेकिन" - रमाकान्त ने कहा- "इसमें घबराने की क्या बात है, जब तुम जयनारायण की कोठी में गए थे तो जयनारायण जीवित था न ?" #1


"हां । "


" और जब तुम वापिस आए थे तब भी ?"


"हां"


" और रमा तुम्हारे बाद कोठी में घुसी थी ?"


"राकेश तो यही कहता है ।"


"वह कहता है तो सच ही कहता होगा। तुम तो किसी हालत में फंसते ही नहीं इसमें ।"


"लेकिन रमा तो मुश्किल में पड़ जाएगी। अगर पुलिस

मेरे बयान को सत्य मान ले तो रमा की गरदन बचाना कठिन हो जाएगा और मैं उसके लिए कुछ भी नहीं कर सकूंगा ।"


"क्यों ?"


"क्योंकि जिस ढंग से घटनायें घटित हुई हैं, उससे तो यही मालूम होता है कि यदि हत्या मैंने नहीं की है तो रमा ने की है। अगर रमा यह कहती है कि जब मैं कोठी में घुसी थी तो जयनारायण मरा पड़ा था तो मुसीबत मेरे गले आ पड़ती हैं और यदि यह कहे कि उसकी मौजूदगी में जयनारायण जिन्दा था तो फिर उसने मारा होगा उसे। अगर वह दूसरी बात कहती है तो उसे यह बताना पड़ेगा कि बह खिड़की के रास्ते कोठी में क्यों घुसी और फिर सामने के दरवाजे में से भागती हुई क्यों निकली और पहली बात करती है तो मैं फंस जाऊंगा ।"


"लेकिन रमा भला जयनारायण की हत्या क्यों करेगी?"


"एक कारण हो सकता है। रमा रात के बारह बजे जयनारायण की कोठी पर गई थी, इससे यह तो सिद्ध होता ही है कि रमा जयनारायण से सम्बन्धित थी । अब अगर हम यह मान लें कि रमा को यकायक पता लग जाता है कि चोरी जयनारायण ने की थी और इसी के कारण उसका बाप पांच साल से पत्थर तोड़ रहा है, तो झगड़े के लिये ग्राउंड तैयार हो गई या नहीं। वहां पर जाकर उसकी जयनारायण से झड़प हो गई, उसने क्रोधित होकर किचन में से उसी का चाकू उठाया और उसके शरीर में उतार दिया। उसे जयनारायण के पास किसी आदमी की मौजूदगी का आभास तो था ही, चाहे उसे यह मालूम नहीं था कि वह आदमी मैं हूं। अब वह हत्या का आरोप बड़ी सरलता से मेरे सिर पर मढ़ सकती है।"


"सुनील, मैं तुम्हें एक बात बताना भूल गया था। अब रेफरेंस आया है तो ख्याल आया है। सीक्रेट सर्विस के जो आदमी रमा के लेक होटल वाले कमरे की निगरानी कर रहे थे उन्हें अब मालूम हो गया है कि वे रात भर एक खाली कमरे पर ही पहरा देते रहे हैं और रमा न जाने कब से कमरे में से गायब है। उन्हें ऊपर से बहुत डांट पड़ी है और अब वे बड़ी सरगर्मी से रमा को तलाश कर रहे हैं ।"


"रमा का मिलना बहुत जरूरी है, तुम्हें भी चाहिए कि..."


उसी समय फोन की घन्टी बज उठी ।


प्रमिला ने फोन रिसीव किया और क्षण भर सुनने के बाद फोन रमाकात को ओर बढाती हुई बोली- "तुम्हारे लिए है।"


वह कुछ क्षण भर फोन सुनता रहा और फिर फोन बंद करके सुनील को सम्बाधित करता हुआ बोला- "फिल्म में सस्पैंस तो अब शुरू होगा ।"


“क्या हुआ ?"


" पुलिस ने रमा को खोज निकाला है। वह मानती है कि वह रात को जयनारायण की कोठी पर गई थी, लेकिन कोई कारण नहीं बताती। वह कहती है कि जब उसने किचन की खिड़की में से झांका था उस समय जयनारायण जमीन पर पड़ा था। उसे जमीन पर पड़ा देखकर ही वह भीतर घुसी थी । वह दावा करती है कि उसके घर में घुसने से पहले ही जयनारायण मरा पड़ा था।"


"अगर रमा सत्य कह रही है तो इसका अर्थ है कि हत्या के समय मेरे और रमा के अतिरिक्त भी कोई तीसरा आदमी जयनारायण की कोठी में मौजूद था हालांकि इसकी सम्भावना कम ही है, क्योंकि यदि ऐसा होता तो मेरे, जयनारायण और रमा में से किसी की नजर तो उस पर पड़ती ।"


“भई, अगर तुम मेरी राय पूछो तो हत्या रमा ने ही की है और अब वह तुम्हें फंसाकर खुद साफ बच जाना चाहती है ।”


"हो सकता है...'


यकायक सुनील चुप हो गया। रमाकान्त प्रश्नसूचक दृष्टि से उसकी ओर देखने लगा ।


"रमाकान्त" सुनील बोला- "कल यूथ क्लब में जो लिफाफा तुमने मुझे दिया था, वह तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ था ?"


"क्यों, मेरे रिसेप्शनिस्ट को एक चपरासी दे गया था।" "उस चपरासी को खोज निकालने का कोई साधन है?"


"लगभग असम्भव ही है मेरे सामने तो वह आया नहीं था, रिसैप्शनिस्ट को उसकी सूरत वगैरह कुछ याद हो तो कोशिश की जा सकती है।"


"तुम रिसेप्शनिस्ट को फोन करके पूछो।"


रमाकान्त ने यूथ क्लब का नम्बर डायल किया और कई मिनट तक किसी से बातें करता रहा। लगभग दस मिनट बाद वह फोन रखकर सुनील से सम्बोधित हुआ ।


"जो चपरासी पत्र देने आया था, मेरे रिसेप्शनिस्ट को उस पर सन्देह हो गया था। जो यूनीफार्म उसने पहनी हुई थी वह उसके शरीर पर बहुत ढीली थी, उसने जो बिल्ला लगाया हुआ था उस पर लिखा हुआ था, माडर्न थियेट्रीकल इक्विपमेंट सप्लाइंग कंपनी। रिसैप्शनिस्ट ने उसे क्षण भर काउन्टर पर प्रतीक्षा करने के लिए कहा और स्वयं उसने थियेट्रीकल कंपनी में फोन करके पूछा कि क्या उन्होंने यूथ क्लब में कोई चपरासी भेजा है तो उन्होंने साफ इन्कार कर दिया और रेफरेंन्स देने के बाद पता चला कि उन्होंने बांके बिहारी नाम के एक व्यक्ति को कुछ यूनिफार्म किराये पर दी हैं, जिनमें से एक चपरासी की भी है। रिसैप्शनिस्ट ने लौटकर चपरासी से फिर पूछा कि उसे किसने भेजा है तो वह पहले तो घबरा गया और फिर उसने रमा का नाम ले दिया। इस हड़बड़ाहट में उसने पत्र देकर पिअन बुक पर साइन भी नहीं कराये, या हो सकता है कि उसके पास पिअन बुक हो ही नहीं, और हड़बडाहट में वहां से चला गया। मेरे रिसैप्शनिस्ट ने अक्लमन्दी की और जौहरी को उसके पीछे लगा दिया । जौहरी ने उस चपरासी का पीछा किया जो हो सकता है बांकेबिहारी उर्फ राजप्रकाश हो लेकिन उसे शीघ्र ही महसूस हो गया कि उसका पीछा किया जा रहा है और वह जौहरी को डाज दे गया ।”


"यार" - सुनील ने चिढकर कहा- "तुम्हारे आदमियों से कुछ होता भी है। कोई भी उन्हें डाज दे जाता है। पहले

रमा बेवकूफ बनाकर निकल गई, अब राजप्रकाश धोखा दे गया । आखिर ये लोग करते क्या हैं ?"


“भई धोखा हो ही जाता है, ये कोई फिल्म थोड़े ही है कि पहले से ही मालूम हो कि अपराधी ने किधर जाना है, अगर तुम अक्लमन्द हो तो अगले भी कोई गधे थोड़े ही हैं। राजप्रकाश जौहरी से अधिक स्मार्ट निकला और डाज दे गया "


"लेकिन डाज दे कैसे गया ?"


"राजप्रकाश एक होटल में घुस गया था, लेकिन फिर बाहर नहीं निकला। बाहर निकलने का एक ही रास्ता था जिसे जौहरी कवर किये बैठा था । जब कितनी ही देर तक वह बाहर नहीं आया तो जौहरी ने भीतर जाकर देखा लेकिन वहां राजप्रकाश का नामोनिशान भी नहीं था । सुनील, जौहरी का ख्याल है कि चपरासी के यूनीफार्म में राजप्रकाश नहीं कोई लड़की थी । जैसा जौहरी और रिसैप्शनिस्ट ने चपरासी का हुलिया बताया है वह राजप्रकाश से बिल्कुल नहीं मिलता । अगर वह वास्तव में ही कोई लड़की थी तो होटल में जाकर, कपड़े बदलकर और चपरासी की यूनिफार्म बगल में दबाकर जौहरी की नाक के नीचे से गुजर गई होगी और जौहरी को पता भी नहीं लगा होगा ।"


"लेकिन उसके पास बदलने के लिए कपड़े कहां से आए होंगे ?"


"क्या पता उसने चपरासी को यूनिफार्म के नीचे ही सलवार-जम्फर पहना हुआ हो ?"


"अब ?"


"जौहरी राजप्रकाश के मेहता रोड पर स्थित घर की निगरानी कर रहा है। कल से राजप्रकाश वहां लौटा नहीं है लेकिन अगर उसे सन्देह हो भी गया होगा, तो आशा है कि वह कम से कम एक बार वहां जरूर आएगा, दिनकर थियेट्रीकल की निगरानी कर रहा है, शायद वह वहां कास्ट्यूम वापिस करने आए।"


"हालांकि जौहरी के हाथ भी कुछ लगने का चांस नहीं है लेकिन दिनकर को तो तुम वापिस बुला ही लो। राजप्रकाश इतना पागल नहीं होगा कि अब यूनीफार्म वापिस करने आए।"