“बिरादर, मेरे से उसकी उम्मीद करना बेकार है । और इस मुद्दे पर बहस की कोई गुंजायश नहीं । "


"मेरे पास बाघ की दो खाल हैं..." 


"मुझे नहीं चाहिए । "


"बहुत उम्दा । बहुत बड़ी । बहुत नवीं । " 


"उससे क्या तुम्हें पैंतीस मिल जाएंगे ?"


"पैंतीस तो नहीं मिल जाएंगे लेकिन जो पच्चीस मेरे पास है, उनमें तो इजाफा होगा। मैं वो दोनों खालें आपको बहुत वाजिब कीमत पर.." 


"नहीं चाहिए।"


"सिर्फ दस लाख ।”


"मेरी जरूरत नहीं । इस वक्त मेरे पास उनका कोई ग्राहक नहीं ।”


"चलिए आठ ।"


"नो।”


"फिर तो काम नहीं होगा।"


"नहीं होगा तो नहीं होगा ।"


"आप ऐसा कहना अफोर्ड कर सकते हैं, मैं नहीं कर सकता । मेरी माली हालत आजकल बहुत खराब है । ये भरम तक बनाए रखना मुश्किल महसूस हो रहा है कि मेरे साथ पैसे की कोई दुश्वारी नहीं । ऊपर से सी बी आई की दहशत... बहरहाल इस सौदे से होने वाली कमाई को मैं हाथ से निकल जाने देना अफोर्ड नहीं कर सकता ।"


वो खामोश रहा ।


"आप तो ऐसा जाहिर कर रहे हैं जैसे आपको मूर्तियों की कोई परवाह नहीं ।"


"मुझे पूरी परवाह है । मूर्तियां मेरे हाथ न लगीं तो मुझे अफसोस होगा । वो आगे मेरे ग्राहक के हाथ न लगीं तो उसे अफसोस होगा । लेकिन ऐसे अफसोस जताने से जिन्दगी का पहिया नहीं रुकता ।”


"मेरी जिन्दगी का रुक सकता है ।"


" दैट इज यूअर प्रॉब्लम ।”


"जिसका हल आपके पास है ।"


उसने लापरवाही से कन्धे उचकाए ।


“मिस्टर ईरानी, आप पांच मूर्तियों के खरीददार हैं लेकिन मेरे हाथ जो मूर्तियां लग रही हैं, वो आठ हैं। अगर आप एडवांस पेमेंट दें, पूरी नहीं तो आधी या एक तिहाई भी एडवांस पेमेंट दें तो बाकी की तीन मूर्तियां मैं आपको कदरन कम कीमत में दे सकता हूं।"


"नो।”


"आप एडवांस पेमेंट करें तो... तो पांच की कीमत में मैं आपको आठ मूर्तियां दे सकता हूं।"


"मेरे को आठ नहीं चाहिए । मेरे को पांच ही चाहिए | क्योंकि मेरे पास पांच का ग्राहक है । बेलगाम वाली पार्टी से भी मेरी बात पांच मूर्तियों के लिये ही हुई थी । वो लोग पहले डिलीवर कर सकते तो मुझे तुम्हारी मूर्तियों की जरूरत ही न रहती । कल तक मुझे उन लोगों से भी उम्मीद थी लेकिन अब वो उम्मीद खत्म हो गई है ।"


"क्यों ?"


“आज मेरे पास एक खबर आई है कि आमगाम के एक उजाड़ फार्म हाउस में से विष्णु आगाशे नाम के उस आदमी की गोली से बिंधी लाश बरामद हुई है जो कि अभी परसों मेरे से उन मूर्तियों की बाबत बात करके गया था । उसके साथ यहां के एक मवाली काशीनाथ देवरे की भी लाश बरामद हुई है । मुझे लगता है उनके गैंग में कोई फूट पड़ गई थी जिसकी वजह से वो आपस में ही लड़ मरे थे। उन लोगों का फ्रंट मैन आगाशे था जो कि मर गया है । अब मुझे उम्मीद नहीं कि मूर्तियां मुझे उस जरिये से हासिल हो पाएंगी। गाडगिल, इसी वजह से तुम यहां मेरे सामने बैठे हुए हो वरना मैं तुम्हें फोन पर ही गुडबाई कह चुका होता ।"


"यानि कि आप मानते हैं कि अब मूर्तियां आपको मेरे से ही हासिल हो सकती हैं ?"


"हां । जो बात सच है, उससे इनकार कैसा ! फिलहाल तो ऐसा ही है, बिरादर । "


"फिर भी आपका मेरी तरफ ये रवैया है ?"


"कोई गलत रवैया नहीं है । मुझे आठ मूर्तियां नहीं चाहिए । क्योंकि पांच आगे सरका कर मैं तीन अपने पास नहीं रखे रह सकता । क्योंकि मैं चोरी के माल को अपने पोजैशन में रखने को तैयार नहीं । मुझे पांच मूर्तियां चाहिए। पांच मूर्तियां तुम मुझे दोगे । मैं उन्हें आगे दूंगा । आगे से मुझे पैसा मिलेगा । उसमें से मैं तुम्हारी पेमेंट करूंगा। कहानी खत्म । यूं चोरी का माल बड़ी हद आधा घण्टा मेरे पास रहेगा । जैसे अपने ग्राहक को देने के लिये मूर्तियां मेरे पास होनी चाहिए, वैसे ही मुझे देने के लिये मूर्तियां तुम्हारे पास होनी चाहिए । जैसे मेरा ग्राहक मेरे से ये सवाल नहीं करेगा कि मेरे पास मूर्तियां कहां से आई, वैसे ही मैं भी तुम से ये सवाल नहीं करूंगा कि तुम्हारे पास मूर्तियां कहां से आई । मूर्तियां तुम्हारे पास होनी चाहिए, इसके लिए तुम खुद कहीं डाका डालते हो या किसी को ये काम करने के लिये तैयार करते हो, उन्हें किसी से छीनते हो, आन सेल हासिल करते हो या खरीदते हो, इन बातों से मुझे कुछ लेना-देना नहीं ।"


"मुझे आपसे ऐसे सख्त रवैये की उम्मीद नहीं थी।”


"मुझे भी तुमसे ऐसी नादानी की उम्मीद नहीं थी कि एक बार ये करार हो चुकने के बाद कि पैसा तुम्हें पहले नहीं मिलेगा, तुम एडवांस रकम हासिल करने के लिये मेरे पास दौड़े चले आओगे ।”


गाडगिल के मुंह से बोल न फूटा । उसने बेचैनी से पहलू बदला ।


"तुम्हें मूर्तियां कितने में मिल रही हैं ?"


गाडगिल हिचकिचाया ।


"मत बताओ। मैंने गलती की जो तुमसे ये सवाल किया।"


" साठ लाख में ।"


" और मेरे से तुम्हारा सौदा एक दस पर हुआ है । साठ लगाकर पचास कमा रहे हो । क्या खराबी है ?"


"कोई खराबी नहीं । खराबी है तो बस ये है कि मौजूदा हालात में मेरे पास लगाने के लिए साठ नहीं हैं। मैंने पच्चीस का इन्तजाम किया है जो कि मैं ही जानता हूं कि कैसे किया है । बाकी पैंतीस का मेरे पास कोई इन्तजाम नहीं है । आपके लिए ये रकम मामूली है। ये रकम हमारे-आपके बीच के करार की रकम का एक तिहाई भी नहीं । इसे स्पैशल केस मान कर आप ये रकम मुझे दे सकते हैं। खासतौर से तब जब कि आप मानते हैं कि मूर्तियों की आपको भी कोई कम जरूरत नहीं । अगर मैं इस सौदे से पचास कमा रहा हूं तो आप इससे ज्यादा ही कमा रहे होंगे ।"


"कम । चालीस ।"


"जोकि आपकी जहमत के लिहाज से कम नहीं । आप पैंतीस लाख रुपये मुझे इस घड़ी मुहैया कराएं तो हम दोनों का काम बन सकता है । "


वो खामोश रहा ।


"मुझे बड़ी हद पांच दिनों के लिए इस रकम की जरूरत होगी। अपनी इस मेहरबानी की आप कोई फीस भी मुकर्रर करना चाहें तो उसे भरने के लिए मैं तैयार हूं।"


"फीस ।”


"हां ।"


" फीस भर कर तो तुम कहीं से भी उधार हासिल कर सकते हो । "


"नहीं कर सकता । जितना कर सकता था, कर चुका । अब और कोई नहीं है मुझे उधार देने वाला ।”


"भई, बहुत लोगों का कारोबार है उधार देना ।”


"मैं बहुत लोगों को नहीं जानता । जिन्हें जानता हूं, उनसे जो हासिल कर सकता था, हासिल कर चुका हूं।"


"हूं।" - वो कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - "मैं कुछ ऐसे लोगों को जानता हूं जो तुम्हें उधार दे सकते हैं । " "कौन लोग ?" - गाडगिल आशापूर्ण स्वर में बोला । "वो पैंतीस लाख तो क्या तुम्हें पैंतीस करोड़ भी उधार दे सकते हैं । लेकिन वो बहुत खतरनाक लोग हैं।"


"क... कौन हैं वो लोग ?"


"कभी कम्पनी का नाम सुना है ?" 


"कम्पनी ? कौन-सी कम्पनी ?"


" यानी कि नहीं सुना । तुम्हारी जानकारी के लिए माफिया का जो देसी एडीशन बम्बई में सक्रिय है, वो कम्पनी के नाम से जाना जाता है ।"


"वो कर्जा देते हैं ?"


"हां। जितना कोई चाहे । अलबत्ता रकम मोटी होनी चाहिए ।"


"पैंतीस लाख...


"मोटी ही रकम मानी जाएगी मेरे ख्याल से ।"


"आप मुझे उधार नहीं दे सकते ?"


"नहीं।"


"एडवांस भी नहीं ?"


"नहीं । लेकिन मैं तुम्हें कर्जे के लिए कम्पनी में रैफर कर सकता हूं।"


"जहां से कि मुझे आसानी से कर्जा मिल जाएगा ?" 


"हां।"


“आसानी से और फौरन ?"


"हां" 


“किन शर्तों पर ?"


"शर्तें भी कोई खास नहीं है । बस, ब्याज जरा ज्यादा चार्ज होगा ।"


"कितना ?"


"एक महीने का पांच फीसदी । "


"ये तो बहुत ज्यादा है । अमूमन तो ऐसा कर्जा डेढ़ या दो फीसदी पर मिलता है । "


"मिलता है तो ले लो।" गाडगिल खामोश रहा ।


 उसने बेचैनी से पहलू बदला । 


"ठीक है" - ईरानी बोला - "जाने दो वो किस्सा ।”


"नहीं, नहीं ।" - गाडगिल व्यग्र भाव से बोला - "जाने नहीं दो । आप जरा मुझे सोचने दीजिए।'


"जरूर।"


पैंतीस लाख का पांच फीसदी पर एक महीने का ब्याज गाडगिल का दिमाग तेजी से काम करने लगा- पौने दो लाख । बस ! क्या वान्दा था !


"मुझे मंजूर है।" - वो बोला । "पक्की बात ?" - ईरानी उसे घूरता हुआ बोला । "जी हां । पक्की बात ।”


"फिर सोच लो ।"


"सोच लिया । मिस्टर ईरानी, मेरे पास और कोई रास्ता नहीं ।"


"तो मैं बात करु कम्पनी में ?"


“जी हां । अभी कीजिए । "


"ओके ।" - वो उठता हुआ बोला- "तुम समुद्र का नजारा एनजाय करो, मैं फोन करके आता हूं।"


गाडगिल ने सहमति में सिर हिलाया ।


ईरानी भीतर चला गया ।


गाडगिल बार-बार पहलू बदलता उसके लौटने की प्रतीक्षा करता रहा । पता नहीं क्यों, बार-बार उसके भीतर से ये आवाज उठ रही थी कि कुछ गड़बड़ थी जो उसकी समझ में नहीं आ रही थी, जरूर उस कर्जे के लिए हामी भर के वो कोई भारी गलती कर रहा था ।


ईरानी वापिस लौटा ।


"मैंने फोन कर दिया है।" - वो बोला- "सब बात सैट हो गई है । वो लोग तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं ।"


"क.... कहां ?"


"जुहू । वहां सी-व्यू नाम का एक फाइव स्टार डीलक्स होटल है । जाकर भाई सावन्त को पूछना ।" है


“भा...भाई...,सावन्त ?"


"हां"


"वो कौन है ?"


"कम्पनी का ओहदेदार है । बड़ा ओहदेदार है । कर्जे की बाबत तुम्हारी जो भी बातचीत वहां होगी, उसी से होगी ।" "ओह !"


"अब जाओ । मंजिल खोटी हो रही है । "


गाडगिल ने सहमति में सिर हिलाया और उठ खड़ा हुआ ।


"काम बन जाए तो मुझे फोन पर खबर कर देना । फिर इस बाबत भी फोन कर देना कि मूर्तियों के साथ तुम्हारी आमद की मैं कब तक उम्मीद रखूं । "


गाडगिल ने फिर सहमति में सिर हिलाया ।


"अब जाओ।" भारी कदमों से गाडगिल बाहर की तरफ बढ़ा |


***

होटल सी-व्यू एक आलीशान अट्ठारहमंजिला होटल था जिसे एयरपोर्ट पर प्लेन से उतरने के बाद फासले से गाडगिल ने कई बार देखा था ।


उसने लॉबी में कदम रखा और रिसैप्शन पर पहुंचकर झिझकते हुए भाई सावन्त का नाम लिया ।


" आपका नाम ?" -रिसैप्शनिस्ट युवती अपने खूबसूरत दांत चमकाती मधुर स्वर में बोली ।


"गाडगिल । जे एन गाडगिल ।” ।


"मुझे आपकी आमद की खबर है। वैलकम, मिस्टर गाडगिल ।"


"थै... थैंक्यू ।”


" आपको सिर्फ एक मिनट इन्तजार करना होगा ।"


"आई डोंट माइंड "


युवती ने एक फोन उठाया, एक नम्बर डायल किया, माउथपीस में धीरे से कुछ बोला और फोन रख दिया । गाडगिल की दिशा में उसने फिर अपने दांत चमकाए ।


अजीब-सी बेचैनी का अनुभव करता गाडगिल प्रतीक्षा करता रहा।


रिसैप्शन के पहलू में एक बन्द दरबाजा था जिस पर सिक्योरिटी लिखा था । वो दरवाजा एकाएक खुला तो भीतर से एक ऐस आदमी ने बाहर कदम रखा जो कपड़े तो संभ्रांत व्यक्तियों जैसे पहने था लेकिन सूरत से मवाली लग रहा था । वो करीब पहुंचा तो गाडगिल को उसकी एक आंख भी नकली लगी ।


"गाडगिल !" - वो बोला ।


“हां।" - गाडगिल तत्काल थूक निगलता हुआ बोला - "मेरा नाम है । मुझे मिस्टर जहांगीर ईरानी ने यहां...


"मालूम है । भाई सावन्त तुम्हारा ही इन्तजार कर रहे हैं ।" 


"गु... गुड | "


"मेरा नाम श्याम डोंगरे है । मैं तुम्हें भाई के पास लेकर चलता हूं।"


"हां । प्लीज ।”


"आओ।"


वो डोंगरे के साथ हो लिया ।


भाई सावन्त ! - रास्ते में गाडगिल ने सोचा- क्या नाम था ! जैसे वो तड़प रहा हो लोगों को ये जताने के लिए कि वो भाई था, गैंगस्टर था, मवाली था । मुझे यहां नहीं आना चाहिए था । ये आदमी भी कैसा चाण्डाल सा था जो उसे भाई सावन्त के पास ले जा रहा था ! मुझे यहां नहीं होना चाहिए था । अभी भी लौट जाऊं तो...


तभी डोंगरे एक बन्द दरवाजे के सामने ठिठका, उसने दरवाजे पर हौले से दस्तक दी, उसे खोला और फिर गाडगिल को भीतर कदम रखने का इशारा किया ।


झिझकते हुए गाडगिल ने एक आफिसनुमा कमरे में कदम रखा जहां एक विशाल मेज के पीछे उसके एस्कार्ट जैसी ही खतरनाक शक्ल वाला एक आदमी बैठा था ।


उसका दिल डूबने लगा ।


डोंगरे ने भी उसके पीछे कमरे में कदम रखा और दरवाजा बन्द करके उसके साथ पीठ लगाता हुआ बोला - “भाई सावन्त ।”


गाडगिल ने अभिवादन किया ।


“आओ, आओ।" - भाई सावन्त मुस्कराता हुआ बोला - "खुशामदीद | "


गाडगिल झिझकता हुआ आगे बढ़ा ।


"बैठो।”


गाडगिल एक कुर्सी पर ढेर हो गया ।


"तो तुम हो गाडगिल ।” 


“हां ।” 


"ईरानी के दोस्त ।"


“ह...हां ।”


"जो ईरानी का दोस्त वो हमारा दोस्त । क्या !"


"जी हां । जी हां । "


"क्या काम करते हो ?"


"ऐन्टीक डीलर हूं । टॉप का माल रखता हूं। कभी आप को जरूरत पड़े तो..."


"बोलेगा।"


"मेरे पास बाघ की दो बहुत शानदार खाल हैं जो कि....


"बोला न, बोलेगा | क्या !”


"जी हां । जी हां ।”


"तो कर्जा मांगता है ?"


" जी हां । "


"इधर" - उसने एक पैड और एक बालपैन उसकी तरफ सरकाया - "अपना नाम, पता, टेलीफोन नम्बर वगैरह लिखो ।"


गाडगिल ने लिखा और पैड वापिस भाई सावन्त की ओर सरका दिया ।


"क... कोई" - वो बोला- "फार्म वगैरह भी भरना होगा ।"


"फार्म !" - भाई सावन्त सकपकाया-सा बोला - "ये भर तो दिया ।"


"बस ?"


"और ? तुम क्या साला इधर बैंक में आया जो साला कई पेज का फार्म भरेगा, सौ बातें लिखेगा, दो गवाहों के साइन कराएगा ?"


"ऐ... ऐसा कुछ नहीं ?"


"नक्को । जो लिख दिया वो काफी ।


"कमाल है।"


"कोई कमाल नहीं ! कम्पनी का पैसा हजम करने का जिगरा अभी हिन्दोस्तान में किसी में नहीं है । डोंगरे ! क्या !"


"बरोबर बोला, बाप ।" - डोंगरे दरवाजे पर से बोला ।


बेवजह गाडगिल सिर से पांव तक पत्ते की तरह कांप गया।


"ईरानी से" - भाई सावन्त फिर गाडगिलसे सम्बोधित हुआ "कर्जे की शर्तें मालूम हो गई ?" "


“ज.. जी हां । जी हां । " 


" पांच फीसदी ब्याज । "


"हां"


"हर महीने ?”


“हां।"


"कम-से-कम छ: महीने का जरूरी । "


गाडगिल हक्का-बक्का सा भाई सावन्त का मुंह देखने लगा ।


छ: महीने का ब्याज जरूरी । जबकि उसकी जरूरत एक महीने की भी नहीं थी । कितना हुआ छ: महीने का ब्याज ? साढ़े दस लाख रुपये । हे भगवान !


"ये नहीं मालूम था ?" - भाई सावन्त उसे घूरता हुआ बोला । 


"नहीं ।" - गाडगिल बड़ी कठिनाई से बोल पाया - "नहीं मालूम था ।”


" फिर तो ये भी नहीं मालूम होगा कि पहले छ: महीने का ब्याज एडवांस में देना होता है । "


गाडगिल जैसे आसमान से गिरा ।


"ए....एडवांस में ?" - वो भौचक्का-सा बोला ।


“हां ।” - भाई सावन्त बड़े इत्मीनान से कहता रहा - "ईरानी फोन पर बोलता था कि तुम्हारे को पैंतीस लाख का कर्जा मांगता था । तुम अगर पैंतीस लाख का कर्जा लोगे तो असल में तुम्हें साढ़े चौबीस लाख रुपये मिलेंगे । छ: महीने का ब्याज काटकर । यानी कि छ: महीने तक तुम्हें ब्याज की कोई फिक्र करने का नहीं है ।”


"ल... लेकिन मेरे को तो पैंतीस चाहिए। इससे कम में तो मेरा काम नहीं चलेगा ।”


"फिर तो तुम्हें कर्जा पचास लाख लेना चाहिए जिसमें से छः महीने का ब्याज काटकर तुम्हें पैंतीस लाख मिल जाएंगे।"


तौबा ! तौबा !


"मूल मुझे छः महीने में लौटाना होगा ?" - उसने पूछा ।


"लौटाना ही नहीं होगा।" - भाई सावन्त आश्वासनभरे स्वर में बोला- "ब्याज चुकाते रहोगे तो मूल की फिक्र किसलिए? भले ही ताजिन्दगी रखना ?"


"ब्याज ! ढाई लाख रूपये ! "


" हर महीने । हर पहली को । बिना नागा | क्या !"


हे भगवान ! किस जंजाल में फंस रहा था वो ।


लेकिन जल्दी ही उसे एक दस की कमाई होने वाली थी । ब्याज छ: महीने का लग गया तो क्या ? वो तो पचास लाख का कर्जा ईरानी से रकम हासिल होते ही चुकता कर देगा । छः महीने भला क्यों इन्तजार करेगा वो ? या और ब्याज भला क्यों भरेगा वो ?


“अगर तुम कर्जा लेने के खिलाफ फैसला करोगे" - भाई सावन्त की आवाज उसके कानों में यूं पड़ी जैसे बहुत दूर से आ रही हो - "तो तुम्हें सिर्फ पच्चीस हजार रूपये अदा करने पड़ेंगे।"


वो... वो किस बात के ?"


"हमारा टेम खोटी करने के । "


तौबा !


“अब बोलो क्या फैसला है तुम्हारा ?"


“मैं कर्जा लूंगा।" - वो डूबते स्वर में बोला- “पचास लाख। ढाई लाख रूपये महीना ब्याज पर । छः महीने के एडवांस ब्याज पर ।”


"बढ़िया ।"


***

नोटों की आखिरी गड्डी बड़ी मुश्किल से लॉकर में समा पाई ।


लॉकर काफी बड़े आकार का था लेकिन फिर भि अगर अधिकतर नोट पांच-पांच सौ रूपये के न होते तो साठ लाख रुपया उसमें हरगिज भी न रखा जा पाता ।


गाडगिल ने लॉकर को ताला लगाया, इस बात की तसदीक की कि वो मजबूती से बन्द हो गया था और फिर चाबी निकालकर उनकी तरफ बढ़ा दी ।


जीतसिंह ने चाबी की ओर हाथ न बढ़ाया तो चाबी एडुआर्डो ने थाम ली ।


" अब तुम लोग अपना काम कब करोगे ?" - गाडगिल बोला ।


"कल।" - एडुआर्डो बोला- "कल रात ।"


"आज रात क्यों नहीं ?"


"कुछ तैयारियां करनी होंगी जिसमें वक्त लगेगा।"


'ओह ! लेकिन कल रात का प्रोग्राम तो पक्का है न ?"


"हां"


"मैं अपने करार पर खरा उतरा हूं। उम्मीद है कि तुम लोग भी अपने करार पर खरे उतरोगे ।"


"ये भी कोई कहने की बात है ।"


"वैसे तो मेरे मुंह में खाक, लेकिन खुदा न खास्ता अगर फेल हो जाओ तो चाबी फेंक देना ।"


"चाबी ?"


"लॉकर की । जो तुम्हारे हाथ में है । इस चाबी की बरामदी तुम्हारी कारस्तानी का रिश्ता मेरे से जोड़ सकती है । "


"ओह ! ओह !"


"ये नहीं सोचा होगा ?"


"सोचा तो नहीं था लेकिन... आप निश्चिंत रहिए, हम यकीनन कामयाब होंगे और खुद ही इस चाबी के साथ आपके पास लौटेंगे।"


" मैं तुम्हारी कामयाबी की दुआ करूंगा।"


"शुक्रिया ।"


"एक बात कहूं, गाडगिल साहब ?" - जीतसिंह बोला । 


"क्या ?"


"कल तक तो आप हम थे, आज मैं कैसे हो गए ?" उसने उत्तर न दिया । उसके चेहरे पर बड़े दयनीय भाव प्रकट हुए ।


जीतसिंह ने बात वहीं खत्म कर दी ।


***

मंगलवार ।


रात के आठ बजने को थे जबकि मार्सेलो ने कैसीनो की दूसरी मंजिल पर स्थित अपने ऑफिस में फ्लोर मैनेजर फ्रांको को तलब किया ।


"हमारे ट्रैवल एजेंट ने खबर भिजवाई है कि आज बसरा का एक अमीर इधर आने वाला है ।”


"बसरा का अमीर ? " - फ्रांको की भवें उठीं ।


"हिज हाइनैस मुस्तफा अहमद बिन मुहम्मद एल खलीली।” 


"इतना बड़ा नाम ! जरूर कोई नाम जैसा ही बड़ा आदमी होगा !"


" ऐसा ही लगता है । खबर आई है कि चलने से मजबूर है। व्हील चेयर इस्तेमाल करता है। नीचे डोरमैन को बोल दो कि उसकी आमद पर नजर रखे । "


"ओके ।"


"यहां ऊपर पहुंचने में उसे किसी तरह की तकलीफ न हो।”


"नहीं होगी। मैं डोरमैन के साथ एक स्टुअर्ट को भी तैनात कर देता हूं।"


"बढ़िया । आज रश ज्यादा है। रकम की मूवमैंट तगड़ी होगी ।”


"वॉल्ट में काफी पैसा है न ?”


"फिलहाल तो है । घटेगा तो होटल वाले कैसीनो से मंगवा लेंगे।"


"उधर बोल के रखा है ?"


"जी हां ।” 


"बढ़िया । "


***