सफेद पड़ चुका था दिव्या का चेहरा।


मानो बूंद-बूंद खून निचोड़ लिया गया हो ।


यूं कांप रही थी वह जैसे जूड़ी का मरीज कांपा करता है।


ठकरियाल के चुप होने के बावजूद न वही कुछ बोल सकी, न देवांश ।


ठकरियाल ने चहलकदमी सी करते हुए सिगरेट सिगरेट में कश लगाया । काफी देर की खामोशी के बाद बोला- - - “हद कर दी राजदान ने! ऐसी उम्मीद मुझे भी नहीं थी कि...


“नहीं!” दिव्या चीख पड़ी --- “मैं नहीं नाचूंगी ।”


दोनों चुप रहे ।


“सुन लिया तुमने ?” चीखने के साथ-साथ वह रो भी पड़ी थी --- “हरगिज नहीं नाचूंगी मैं।”


एक बार फिर दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। लॉबी में खामोशी छाई रही। ये खामोशी जब लम्बी हो गई तो ठकरियाल ने देवांश से कहा--- "समझाओ इसे ।”


देवांश अवाक् !


“क्या समझाओ ? क्या समझाने के लिए कह रहे हो इससे ?” दिव्या बिफर पड़ी -- “यह कि मैं उनके सामने नंगी नाचूं? कैबरे करूं ? अश्लील हरकतें करूं? उफ्फ! नहीं! ऐसा कभी नहीं होगा।”


“दिव्या, दिल से नहीं, दिमाग से काम लो । ”


“क्या काम लूं?... क्या काम लूं दिमाग से ?... तुम मर्द हो क्या फर्क पड़ता है तुम्हें मेरे उनकी महफिल में नंगी नाचने से? तुम्हें तो अब भी अपने ढेरों फायदे नजर आ रहे होंगे अरे, मुझसे पूछो । एक औरत से पूछो ये कैसी सजा है!"


“मैं समझ सकता हूं दिव्या !” ठकरियाल ने कहा---“समझ सकता हूं इस वक्त तुम पर क्या गुजर रही है मगर..


“मगर ?” वह दहाड़ी ।


“समझने की कोशिश करो हालात को !”


“कुछ नहीं समझना ! कुछ नहीं समझना मुझे!" कहने के बाद वह देवांश की तरफ घूमी। बोली- -- “तुम्हीं ठीक कह रहे थे देव! शुरू से तुम्हीं ठीक रहे थे । इस लालच में हमें फंसना ही नहीं चाहिए था । पड़ना ही नहीं चाहिए था झमेले में ! हालांकि शुरू से यही बात चल रही है। बार-बार यही बात सामने आई कि राजदान का मकसद हमें जेल भेजना नहीं है! फांसी नहीं कराना चाहता वह हमें। उसने तो खुद ही कहा था---'जी चाहता है अपने हाथों से तुम दोनों की खोपड़ियां खोल दूं । इस काम को करने से दुनिया की कोई ताकत इस वक्त मुझे रोक भी नहीं सकती। मगर नहीं, इतनी आसान सजा नहीं दे सकता मैं तुम्हें । तुम्हारे खून से अपने हाथ रंगने का मैं जरा भी ख्वाहिशमंद नहीं हूं। जो गुनाह तुमने किया है उसकी सजा इतनी आसान नहीं हो सकतीकिदो धमाके हों और तुम्हें हर मुसीबत से निजात मिल जाये... | शांतिबाई और विचित्रा से कहीं ज्यादा घृणित वेश्या हो तुम । वे कम से कम कोठे पर तो बैठी थीं। तुम तो मेरे दिल में बैठकर अपनी गोद में किसी और को बैठाये रहीं। तुम जैसी तवायफ के लिए यह सजा कोई सजा नहीं कि मैं गोली मारूं और तुम्हारा गंदा शरीर मेरे कदमों में आ गिरे। तुम्हारी सजा तो वो है, जो मैंने मुकर्रर की है! जो कदम-कदम पर तुम्हें मारेगी। याद रखना मेरी बात मरने के बाद अगर मैंने तुम्हें तड़प-तड़पकर मरने पर मजबूर नहीं कर दिया तो मेरा नाम राजदान नहीं। सच ही कहा था उसने। उसने तो जिन्दगी ही मौत से बदूतर बना दी मेरे लिए। मगर...मगर उसके इतना कहने के बावजूद मैं नहीं समझ पाई उसके दिमाग में क्या है? कितनी घिनौनी सजा देनी चाहता है. वह मुझे। समझ जाती तो वहीं, उसके कदमों में गिर जाती। गिड़गिड़ाकर खुद को गोली मारने के लिए कहती। नहीं मारता तो रिवाल्वर छीन लेती उससे । खुद ही खुद को गोली मार लेती। मगर, वो वक्त निकल चुका है। अब तो एक ही रास्ता है देव, वही रास्ता जो तुम शुरू से से सुझा रहे हो । आओ... एस. एस. पी. के पास जाकर सरेण्डर कर देते हैं। सब कुछ बता देते हैं उसे। सब कुछ। लोगों को हमारे अवैध सम्बन्धों के बारे में भी पता लगता है तो लगे । उस जलालत भरे कलंक के साथ भी जिया जा सकता है 1 लेकिन... लेकिन वह नहीं हो सकता जो वे चाहते हैं। जो राजदान मुकर्रर करके मरा है।”


देवांश कुछ बोल न सका। पत्थर की शिला की मानिन्द खड़ा था वह ।


“तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे?” दिव्या दहाड़ी --- “एस.एस.पी के पास चलते क्यों नहीं मेरे साथ ? ”


“दिव्या ।” वह बोला --- “हमें जल्दबाजी में फैसला नहीं करना चाहिए।"


“क- क्या ?... क्या मतलब?” दिव्या के हलक से किल्ली निकल गई - - - “क्या तुम यह कहना चाहते हो उनके बीच मेरे नंगे नाचने के प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है ?”


"मेरा मतलब यह नहीं है । " 


“ और क्या मतलब है तुम्हारा ?”


“रात अभी दूर है, हमें इस मुसीबत से निकलने का रास्ता सोचना चाहिए । ”


“क्या रास्ता सोचोगे तुम ? रास्ता और है ही क्या? दो ही तो विकल्प हैं। या तो मैं नंगी होकर नाचूं या एस. एस. पीके पास चली जाऊं ।” बिफरे हुए अंदाज में वह चीखती चली गई---“समझ गई मैं। समझ गई तुम क्या चाहते हो। समझ तो मैं उसी वक्त गई थी जब खुद को माफ होता देखकर मुझे मारने के लिए तैयार हो गये थे । ठकरियाल की तरह तुम पर भी क्या फर्क पड़ता है मेरे किसी के सामने नंगी नाचने से? उफ्फ! कितनी बड़ी भूल की मैंने तुमसे प्यार करके । हीरे को ठोकर मारकर मैंने कांच को गले लगा लिया । तुम कुत्ते हो! जलील हो! स्वार्थी हो तुम !”


"दिव्या!" देवांश गर्जा--- "जुबान को लगाम दो।"


"क्यों... क्या कर लेगा तू मेरा?" दिव्या जैसे पागल हो चुकी थी --- "अरे, तुझमें तो अपने भाई का एक अंश तक नजर नहीं आ रहा मुझे। उन मां-बाप की औलाद तू हो नहीं सकता जिनका राजदान था। उसने मुझसे प्यार किया तो इतना टूटकर कि तेरे साथ मुझे देखकर पागल हो उठा.. और एक तू है गैरों के सामने नंगी नचाने को तैयार है मुझे । अरे, कम से कम ये तो सीख लिया होता राजदान से कि प्यार कैसे किया जाता है। जिससे प्यार किया जाता है उसके लिए... 


"प्यार?” देवांश दांत भींचकर गुरो उठा--- “उसे प्यार कहती है तू? लगभग नंगी आई थी तू मेरे कमरे में। इसके बावजूद मैंने कुछ नहीं किया । तू ही पके फल की तरह गोद में आ गिरी थी मेरी । दरवाजा बंद करके पलटी और आ लिपटी मुझसे । उसे प्यार कहती है तू? सुनना ही चाहती है तो सुन - - - वह प्यार नहीं 'आग' थी तेरे जिस्म की जिसे शान्त करने तू मेरे कमरे में आई थी । वह आग जिसे राजदान एड्स के कारण बुझा नहीं पा रहा था। प्यार का मतलब तो तूने नहीं सीखा कभी । सीखा होता तो सारा जीवन राजदान की बेवा बनकर गुजार देती । उसी वक्त पकड़वा देती मुझे जब तूने मुझे बाथरूम में अपना जिस्म देखते पाया था। ठीक ही कहा था राजदान ने --- तू वेश्या है। शांतिबाई और विचित्रा से कहीं ज्यादा घृणित वेश्या ।”


दिव्या लम्बे-लम्बे नाखून वाली जख्मी बिल्ली की तरह झपटी थी देवांश पर । दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़कर । हिस्टीरियाई अंदाज में चिल्लाई --- "कमीने! कुत्ते ! गाली देता है मुझे | वेश्या कहता है। अरे जलील तो तू है। सूअर है तू। मुझे झरने पर नहाते छुप-छुपकर कौन देख रहा था ? तू था वह! तू! शर्म नहीं आई तुझे अपने उस भाई की पत्नी को उन नजरों से देखते हुए जिसने तेरे प्यार की खातिर बाप तक बनने से इंकार कर दिया था ?”


इससे पहले कि जवाब में देवांश भी कुछ कहे...।


इससे पहले कि उनमें हाथापाई शुरू हो जाये... ।


ठकरियाल ने दिव्या को पकड़कर एक झटके से अलग किया । चीखा --- "क्या बेहूदगी है ये? यही ! यही सब तो चाहता था राजदान | इसी सब की बुनियाद रखने के बाद मरा है वह । ”


“तू ही कौन सा दूध का धुला है?” दिव्या सचमुच आपे में नहीं रही थी ---- “खाकी वर्दी पहनता है मगर जहां दौलत देखी कि लार टपक जाती है तेरी । हम तो उसी वक्त

सरेण्डर करने को तैयार थे। तूने ही मजबूर किया। असल में तो तू ही है दौलत की गंदी नाली में गिजबिजाने वाला कीड़ा ।”


चटाक ।


ठकरियाल का भरपूर चांटा उसके गाल पर पड़ा।


अवाक रह गई दिव्या ।


जैसे खिलौने में भरी चाभी समाप्त हो गई हो। चीखना - चिल्लाना सब बंद |


रोना-पीटना |


हकबकाई सी वह केवल ठकरियाल की तरफ देखती रह गई थी । उस ठकरियाल की तरफ जिसने उसे इस हालत में देखकर झंझोड़ते हुए कहा--- "होश में आओ दिव्या ! होश में आओ।"


अचानक फूट-फूटकर रो पड़ी वह ।


दोनों हाथों से चेहरा छुपाकर वहीं, सोफे पर ढेर हो गई ।


दस मिनट तक यही स्थिति रही ।


वह रोती रही ।


न ठकरियाल कुछ बोला, न देवांश ।


ठकरियाल तो खैर दिव्या को भड़ास निकालने का मौका देना चाहता था मगर देवांश इसलिए चुप था क्योंकि वर्तमान हालात में बोलने के लिए उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था ।


दिव्या के अपशब्दों ने खुद उसी को गुस्से से भर दिया था।


आहिस्ता-आहिस्ता चलता ठकरियाल दिव्या के नजदीक पहुंचा। तब तक उसकी रूलाई केवल सिसकियों में बदल चुकी थी । ठकरियाल ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा--- "मुझे वह जरा भी  बुरा नहीं लगा तो तुमने मेरे बारे में कहा क्योंकि जानता हूं उस वक्त तुम अपने आपे में नहीं थीं । बड़ी भयंकर स्थिति थी वह । उस अवस्था में आदमी अगर ज्यादा देर रह जाये तो सचमुच दिमाग क्रैश हो सकता है। उसी से बचाने के लिए मुझे चांटा मारना पड़ा। माफ कर दो मुझे । "


“मगर मैं उनके सामने नहीं नाचूंगी।" बिफरकर कहने के साथ वह एक झटके से खड़ी हो गई ।


“मत नाचना । कोई जबरदस्ती तो नचा नहीं सकता किसी को किसी के सामने मगर..


... फिर मगर ?”


“कम से कम बातें तो पूरी सुन सकती हो मेरी ।”


वह गुर्राई - -- “मुझे कुछ नहीं सुनना । ”


“ये बात तो गलत है ।” ठकरियाल उसे बहुत ही सुलझी हुई टैक्निक से हैंडिल कर रहा था --- "जिस मिशन पर हम निकले थे, तीनों में से किसी भी बाकी दोनों को बीच मंझधार में छोड़कर यूं पलायन कर जाना या जिद पर अड़ जाना ठीक नहीं है। एक-दूसरे के पार्टनर हैं हम और पार्टनर जैसा ही 'बिहेव' करना चाहिए।"


“वह मिशन अब रह ही कहां गया है जिस पर हम निकले थे।” ठकरियाल की बातों में आकर दिव्या ने बोलना शुरू कर दिया --- " बीमा कम्पनी से पांच करोड़ मिलने का अब सवाल ही कहां रह गया ?”


“क्यों... क्यों नहीं रह गया सवाल ?”


दिव्या उसकी तरफ देखती रह गई ।


टकरियाल ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहना शुरू किया---“बल्कि मैं तो कहता हूं उम्मीद ही अब बंधी है। बल्कि दावा है मेरा अब हमें उस रकम तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता ।”


"तुम्हारे ऐसे दावे में कई बार सुन चुकी हूं।"


“एक बार और सुन लो।"


“बहलाना चाहते हो मुझे ?”


“बहला नहीं रहा पगली, समझाना चाहता हूं। मगर..


“मगर ?”


“सुनो तो समझो ।”


लट्ठमार अंदाज में कहा उसने --- “कहो क्या कहना है ?"


“कोशिश करो समझने की। अभी तक तो हम उन्हीं के जाल में फंसे हुए थे बल्कि, राजदान का जाल कहा जाये तो ज्यादा बेहतर होगा । पहली बार उन पर हावी होने की पोजीशन में आये हैं। डायनिंग टेबल पर पड़े उस सामान को देखो और विचार करो क्या अब भी वे राजदान को जीवित प्रचारित करके बीमा कम्पनी को 'कन्फ्यूज्ड' कर सकते हैं? नहीं न? हम उस सामान के जरिए बड़ी आसानी से साबित कर देंगे, तुम्हारे दुश्मन लोग नहीं चाहते तुम्हें क्लेम का पैसा मिले इसलिए राजदान के क्लेम का प्रपंच रचा गया । यह हमारी पहली कामयाबी है। इसे कम करके मत आंको ।”


“अकेले एक फोटो के जरिए वे जब चाहेंगे..


“वही... वही समझाना चाहता हूं मैं। बात अकेले फोटो की नहीं है। राजदान के उन लेटर्स की भी है जो उनके पास हैं । उनके बेस पर वे जब चाहें हमारे सारे इरादों पर पानी फेर सकते हैं। मेरे और अवतार के बीच मोबाइल पर अभी ये ही सब बातें हो रही थीं। जितना जरूरी फोटो और सारे लेटर्स को अपने कब्जे में लेना है उतना ही जरूरी यह पता लगाना भी है कि अखिलेश ने स्वीटी और उसके मां-बाप को कहां रखा है। सोचो, अगर एक बार वह सब हमारे कब्जे में आ जायें तो लाख सिर पटकने के बावजूद वे क्या कुछ कर सकेंगे हमारा ?” आ indin


“सब्जबाग मत दिखाओ इंस्पेक्टर । ऐसा नहीं हो सकता।”


ठकरियाल ने दृढ़तापूर्वक कहा--- "ऐसा होकर रहेगा ।”


“कोई वजह भी तो हो ।”


“तुम वजह की बात कर रही हो... मैं और अवतार एक तरह से पूरी स्कीम बना चुके हैं।"


"स्कीम ?”


“जरा सोचो --- दुश्मन की सेना के बीच, उनके किले में घुसा प्यादा भी कितना तूफान उतार देता है । और अवतार को हम ज्यादा नहीं, वजीर कह सकते हैं। कारण है ---- उस पर उन चारों का अटूट विश्वास । केवल एक ही गड़बड़ी हो सकती थी । यह कि अवतार हमें धोखा दे जाये । वैसा हो नहीं सकता, कई बार बता चुका हूं उसके अपने स्वार्थ हैं। मोबाइल पर यही कहा उसने --- वह फोटो, लेटर्स और बबलू के ठिकाने का पता लगाने की कोशिश कर रहा है। मैं जानता हूं इतनी समझदार तुम हो। समझ सकती हो उनका दोस्त, उनका विश्वासपात्र होने के कारण अवतार के लिए यह सब कितना आसान है। किसी भी पल... किसी भी पल कामयाब हो सकता है वह । इधर सारे सबूत उसके हाथ में आये, बबलू को ठिकाने का पता लगा कि मैं फोर्स के साथ छापा मारकर एक फरार मुजरिम को बरामद कर लूंगा ।”


कन्विंस होती नजर आई दिव्या । उसकी आंखों में आशा की ज्योति नजर आने लगी थी ।


ठकरियाल ने गर्म लोहे पर चोट की --- “मैं यही समझाने की कोशिश कर रहा हूं दिव्या । यही कि हम मुकम्मल कामयाबी के कितने नजदीक हैं। इस वक्त हममें से किसी को किसी छोटी सी बात को लेकर जिद पर नहीं अड़ जाना चाहिए । बेवकूफी होगी ये। लगभग हाथ लग चुकी सफलता को खुद ही हाथ से फिसला देना होगा । आश्चर्य मुझे इस बात पर है कि इतनी समझदार होने के बावजूद तुम इतनी सीधी-सादी बात को समझ क्यों नहीं पा रही हो ?”


“उनके सामने नंगी नाचने को तुम छोटी बात कह रहे हो ?”


यही थी वह स्थिति जिसमें ठकरियाल दिव्या को लाना चाहता था । जिस प्रस्ताव को सुनकर वह पूरी तरह भड़क गई थी T किसी की कुछ सुनने को ही तैयार नहीं थी। उस पर 'अब' वह डिस्कस करने को तैयार थी । बोला--- "मुझे मालूम है ये कितनी बड़ी बात है। क्या गुजर सकती है एक औरत पर गैर मर्दों के सामने नंगी होकर नाचते वक्त । जैसा राजदान ने लिखा है, वैसा तो भारतीय नारी बैडरूम में अपने पति के सामने भी नहीं कर सकती । इसीलिए तो लिखा है कमीने ने । इसी बात को सुनकर मैंने मोबाइल पर अवतार से कहा था- -'बड़े कमीने हैं साले । मैं तो सोच भी नहीं सकता था वो इतने नीचे गिर जायेंगे। जवाब में अवतार ने कहा था --- 'कमीने वे नहीं राजदान था, जिसने लेटर में ऐसा करने के लिए लिखा।' इतना कहने के बाद वह बोला- - - 'यह बात बार बार मुझे भी अंदर तक कचोटे जा रही है कि दिव्या को ... उस दिव्या को सबके सामने नंगी होकर नाचना पड़ेगा, जिसे लेकर मैंने जाने कितने ख्वाब बुन डाले हैं। उस हैं दृश्य की कल्पना करके दिल बैठा जा रहा है मेरा | पूरी कोशिश करूंगा वे क्षण आयें ही नहीं।”


“वह क्या कर सकता है?"


“उसने कहा है --- रात होने से पहले मैं सारे सबूतों को अपने कब्जे में करने और बबलू के ठिकाने का पता लगाने की पूरी कोशिश कर रहा हूं। जैसे ही पता लगेगा, तुम्हें फोन करूंगा। ग्रीन सिग्नल दूंगा | तुम फौरन छापा मारकर बबलू को गिरफ्तार कर लेना । तब देखेंगे इन सालों को कि कैसे दिव्या को नंगी करके नचायेंगे।”


दिव्या की जान में जान पड़ गई। मुंह से निकला ---"क्या

ऐसा हो सकता है ?” 


“यहीं तो मैं कहना  था।" बहुत देर बाद देवांश बोला--- “यह भी मुमकिन है रात तक कोई ..


“तुम चुप रहो !” एक बार फिर गुर्राहट निकली थी दिव्या के हलक से । साथ ही, उसे खा जाने वाली नजरों से देखती रह गई थी वह। आंखों से कुछ वैसी चिंगारियां निकल रही थीं जैसी वैल्डिंग करते वक्त निकला करती हैं। देवांश कुछ कहने वाला था कि 'बात कहीं बिगड़ जाये' इस खौफ के मारे ठकरियाल ने उसे चुप ही रहने का इशारा किया ।


देवांश कसमसाकर रह गया ।


चेहरा साफ-साफ कनपटियों तक दहकता नजर आ रहा था ।


“क्यों नहीं हो सकता ?” ठकरियाल ने जल्दी से कहा--- "हमारा नसीब अच्छा हुआ तो जरूर हो सकता है। तुम जानती हो --- अवतार तुम्हारे प्रति दिल में कैसी भावनाएं रखता है। मैं तो कहता हूं, उस सबको टालने की वह भरपूर कोशिश करेगा | पूरी शिद्दत से मर जो मिटा है तुम पर । मगर, साथ ही उसने कहा है मुकम्मल कोशिश के बावजूद अगर मैं रात तक कामयाब नहीं हो सका तो मजबूरी है दिव्या को वह करना ही पड़ेगा, जो वे चाहते हैं क्योंकि उसने नहीं किया तो ये लोग जबरदस्ती नंगी करेंगे उसे और सफलता के इतने नजदीक पहुंचकर इन्हें वह मौका देना बेवकूफी होगी । उस में तो बस एक ही बात सोची है मैंने, अगर इन अनहोनी को न टाल सका । नाचना ही पड़ा दिव्या को तो तब जब सारे सुबूत मेरे कब्जे में होंगे, इन सब सालों को नंगा करके नचाऊंगा। देखूंगा ये मर्द होने के बाद भी शर्म से जमीन में गड़ते हैं या नहीं?”


यह सोचकर दिव्या का चेहरा एक बार फिर सफेद पड़ गया कि अंततः उसे नाचना पड़ ही सकता है। बोली---“लेकिन जब वह उनका दोस्त है। पूरी तरह विश्वासपात्र है उनका तो फिर सुबूतों और बबलू तक पहुंचने में इतनी देर क्यों लग रही है?”


“ इतना ही कह सकता हूं--- इस मामले में अखिलेश थोड़ी 'एक्स्ट्रा प्रिकोशंस' बरत रहा है। सुबूत उसी के कब्जे में हैं । बबलू का पता उसने अवतार को ही नहीं, वकीलचंद,भट्टाचार्य और समरपाल को भी नहीं बताया है। मेरे सामन वकीलचंद ने पूछा था "बबलू को कहां रखा है? अखिलेश ने पूछा- चिंता मत करो। ये सुरक्षित है। कोई नहीं पहुंच सकता वहां । इसके बाद अवतार का सीधे पूछना उसे शक के दायरे में फंसा देगा । गुप्त तरीके से पता लगाना है उसे।” 


“ओह! इसका मतलब अखिलेश दोस्तों पर भी पूरा विश्वास नहीं कर रहा ?”


“मुमकिन है, यह निर्देश भी उसे राजदान के लेटर ने ही दिया हो ।” 


"हे भगवान!” दिव्या के अंतर्मन से दुआ निकली --- “जल्दी से जल्दी कामयाब कर दे अवतार को ।”


ठकरियाल इस एक ही वाक्य से समझ गया --- दिव्या हन्ड्रेड परसेन्ट न सही मगर, फिफ्टी परसेंट जरूर तैयार हो चुकी है | बोला --- “अवतार ने मुझसे कहा था --- 'अगर मजबूरी ही आ गयी तो तुम्हें दिव्या को तैयार करना होगा ।' मैंने कहा था-- 'कोशिश करूंगा ।' वह बोला --- 'कोशिश नहीं, पक्के तौर पर होना चाहिए यह काम । आज नहीं तो कल जो कामयाबी मिलती हमें साफ नजर आ रही है उसे गवां नहीं सकते। उसकी इस बात पर मैंने कहा था ---- 'अच्छा बाबा । पक्का! पक्का होगा ऐसा!'


एक बार फिर दिव्या को काटो तो खून नहीं ।