जलपान के बाद रूस्तम राव कुछ आराम भी कर चुका था । आराम के दौरान उसके पास कोई नहीं आया था। करीब एक घंटे की नींद ली होगी उसने । इस बीच लाडो अवश्य चुपके से रूस्तम राव के कमरे में झांक लेती थी । उसकी आंखों में भरपूर प्यार था तो मिलन की खुशी भी थी और चेहरे पर अभी भी डेढ़ सौ बरस पहले बिछड़ने का गम भी था । इन सब मिले-जुले भावों की वजह से वो दया की पात्र लग रही थी ।


रुस्तम राव की जब आंख खुली तो वो उठ बैठा तो सामने लाडो को ही मौजूद पाया ।


लाडो के होठों पर प्यार भरी मुस्कान उभरी।


"कैसा है रे तू ?" पूछते हुए वो उसके पास ही बेड पर बैठी ।


"अच्छा हूं।" रूस्तम राव हैरान था कि लाडो से बात करते समय उसकी भाषा सामान्य हो जाती है। बोलने का लहजा बदल जाता है ।


"तेरे को सामने पाकर मुझे बहुत खुशी हो रही है, क्या तेरे को भी खुशी हो रही है त्रिवेणी |"


रुस्तम राव, लाडो के भोले-भाले चेहरे को देखता रहा ।


"जी भर के देख ले मुझे, मैं वही तो हूं, तेरी लाडो । तू कुछ भूला-भूला लग रहा है ।" 


"हां । उस जन्म की बातें मुझे ठीक से याद नहीं आ रही लाडो ।" रूस्तम राव कह उठा । 


"फिक्र मत कर त्रिवेणी । बापू कहते हैं, जल्दी ही तेरे को सब याद आ जाएगा।" कहते हुए लाड़ो खुलकर मुस्कुराई तो गालों में छोटे-छोटे गड्ढे नजर आने लगे--- "जब तेरे को सब कुछ याद आ जाएगा तो मेरे साथ चलेगा, कच्चे आम तोड़ने ?"


रुस्तम राव बरबस ही मुस्कुरा पड़ा ।


"हां लाडो । जरूर चलूंगा । हम पहले भी कच्चे आम तोड़ते थे ?" रुस्तम राव ने पूछा । 


"अरे । भूल गया क्या ।" लाडो बेड पर आलथी-पालथी मारती हुई कह उठी--- "चोरीछिपे फूलचंद के बाग में लगे पेड़ों पर तू चढ़कर आम तोड़कर नीचे गिराता था और मैं उन्हें उठा-उठाकर अपने दुपट्टे में भर लिया करती थी । घर पे आकर, उन्हें आम का अचार डालकर तेरे को खिलाती थी ।" कहने के साथ ही एकाएक वो खिलखिला कर हंस पड़ी--- "याद है त्रिवेणी, एक बार फूलचंद ने तुझे पेड़ पर चढ़े पकड़ लिया था । मैं तो भाग गई, बाद में तूने ही बताया था कि फूलचंद ने पूरा घंटा भर, उसी आम के पेड़ के नीचे तेरे को मुर्गा बना कर रखा और फिर सारा दिन तेरै से खेतों में हल चलवाया, तब छोड़ा था उसने ।"


लाडो खिलखिला कर हंस रही थी । बेहद मासूम खूबसूरत लग रही थी वो ।


रुस्तम राव अपलक उसकी सादगी, उसके दिलकश चेहरे को देखता रहा


"बाबा कहां हैं ?" एकाएक रुस्तम राव ने पूछा ।


"बापू । वो तो अपने कमरे में है । चल त्रिवेणी बाहर घूमने चलते हैं ।" लाडो ने उसकी बांह पकड़ी ।


रुस्तम राव ने बांह छुड़ाने का प्रयास नहीं किया ।


"बाद में । अभी मैं बाबा से मिलना चाहता हूं।"


"ठीक है ।" उसकी बांह छोड़ते हुए लाडो बेड से नीचे उतरती हुई बोली--- "जो मेरा त्रिवेणी कहेगा, पहले वो ही होगा । आओ।"


रुस्तम राव उठ खड़ा हुआ ।


लाडो उसे लेकर आगे बढ़ने लगी । चलते समय वो रूस्तम राव से सटकर चल रही थी । उसके अंग रुस्तम राव को छू रहे थे । रूस्तम राव ने कोई एतराज नहीं किया । ये शायद उसका डेढ़ सौ बरस के इंतजार का स्वच्छ प्यार झलक रहा था उस पर । जिसमें कोई बुरा ख्याल शामिल नहीं था । उस पर अपना हक समझते हुए सटकर चल रही थी । अपना प्यार जता रही थी ।


"त्रिवेणी ।" एकाएक लाडो कह उठी--- "तूने कालूराम को कैसे मार दिया । उसमें तो हाथी की सी ताकत थी । सब उससे कतराते थे । वो तो तेरे जैसे बीस को पछाड़ सकता था । फिर तूने कैसे...?"


"तू मेरे से वो बात पूछ रही है, जिस बारे में मुझे कुछ याद नहीं ।" रुस्तम राव ने शांत स्वर में कहा ।


लाडो सिर हिला कर रह गई ।


"सुना है पृथ्वी बहुत सुंदर है ।" लाडो पुनः बोली ।


"हां" 


"मुझे भी वहां ले चलेगा ब्याह के बाद ।" 


रूस्तम राव ने मुस्कुरा कर उसे देखा। कहा कुछ नहीं । 


"जवाब क्यों नहीं देता तू ?" 


"समझ में नहीं आता कि क्या जवाब दूं ।" 


"देख । कान खोल कर सुन ले ।" लाडो के स्वर में शिकायती भाव थे--- "अगर तुम मुझे अपने साथ पृथ्वी पर नहीं ले गया तो मैं बापू से कह कर तेरे को भी यहां से नहीं जाने दूंगी। देख लेना । अब मैं तेरे बिना नहीं रहूंगी।" 


रुस्तम राव ने कुछ नहीं कहा ।


लाडो उसे लेकर एक बंद दरवाजे के सामने जा खड़ी हुई ।


रुस्तम राव ने प्रश्न भरी निगाहों से उसे देखा ।


"दरवाजा खोलकर भीतर चला जा । बापू अंदर ही हैं।" लाडो ने कहा । 


"तू नहीं चलेगी ?"


"नहीं । इस कमरे में जाने के लिए बापू ने मेरे को मनाही कर रखी है। पर तेरे को रोक-टोक नहीं है। तू-जा।"


रुस्तम राव ने बिना कुछ कहे सिर हिलाया और दरवाजे के पल्लों को धकेल कर भीतर प्रवेश कर गया तो बाहर खड़ी लाडो वहां से चली गई।


फकीर बाबा कमरे के फर्श पर बिछे आसन पर बैठा था । उसके चेहरे पर गंभीरता थी। उसके सामने आसन पर ही दो व्यक्ति मौजूद थे और वे सब बातों में व्यस्त थे ।


रूस्तम राव को देखते ही फकीर बाबा ने पास ही आसन को थपथपाकर कहा । "आओ त्रिवेणी । बैठो ।"


उन दोनों व्यक्तियों की निगाह भी त्रिवेणी पर गई । अगले पल वे चौंके । "त्रिवेणी।"


"पेशीराम ने बताया था त्रिवेणी आया है। मैं तुमसे मिलने की सोच ही रहा था।" दूसरे ने खुशी भरे स्वर में कहा


रुस्तम राव ने दोनों को देखा । एक तीस बरस का स्वस्थ युवक था । दूसरा चालीस बरस का । परंतु दोनों ही इससे अनजान थे । अजनबी थे । उसकी आंखों में पहचान के भाव नहीं उभरे ।


बीते वक्त में त्रिवेणी को लौटने में समय लगेगा युद्धवीर ।" फकीर बाबा ने चालीस वर्षीय व्यक्ति से कहा--- "तुमने तो इसे पहचान लिया, परंतु ये तुम्हें नहीं पहचान रहा।"


"ओह ।"


"आओ त्रिवेणी । मेरे पास बैठो ।"


रूस्तम राव आगे बढ़ा और फकीर बाबा के पास खाली आसन पर बैठ गया।


दोनों व्यक्ति उसे ही देखे जा रहे थे ।


"हमें काम की बात करनी चाहिए।" फकीर बाबा ने कहा ।


दोनों की निगाह फकीर बाबा पर जा टिकी ।


"जिस तरह तुमने देखते ही त्रिवेदी को पहचान लिया है, उसी तरह तुम दोनों जग्गू, नीलसिंह और भंवर सिंह को देखते ही पहचान जाओगे । इससे पहले कि दालूबाबा या केसरा किसी प्रकार की यातना देकर, उन तीनों का मुंह खुलवा ले, उन तीनों पर ऊपरी हवा फेंक आओ, ताकि यातना के दौरान उन्हें किसी भी तरह की दर्द-तकलीफ महसूस न हो और वे ये बताने पर मजबूर न हो जाएं कि इन लोगों को नगरी में मैं लाया।"


लेकिन....।" युद्धवीर ने कहा--- "हमारे वहां पहुंचने तक दालूबाबा ने उनका मुंह खुलवा लिया तो...।"


"इस बारे में बेफिक्र रहो । वे तीनों इतनी जल्दी मुंह नहीं खोलने वाले ।" फकीर बाबा ने गंभीर स्वर में कहा--- "दालूबाबा से कहना, उन तीनों को देखने के लिए, मैंने तुम दोनों को वहां भेजा है कि क्या वास्तव में वो तीनों नीलसिंह, जग्गू और भंवर सिंह है या फिर कोई धोखा हुआ है । मेरा नाम सुनने पर दालूबाबा तुम दोनों को उनसे मिलने देगा तो सबकी निगाहों से बचकर, उन पर ऊपरी हवा फेंकनी है ।"


"हम अपना काम ठीक ढंग से कर लेंगे ।" पहले वाले ने कहा ।


"जाओ । समय बर्बाद मत करो।"


"दोनों उठ खड़े हुए । विदाई के अंदाज में वो फकीर बाबा के सामने थोड़ा सा झुके फिर रुस्तम राव को देखा। उसकी बाद पलट कर बाहर निकल गए।


रूस्तम राव ने फकीर बाबा को देखा ।


"बाबा । अगर उन तीनों ने दालूबाबा को बता दिया कि हमें, यहां आप लाए हैं तो दालूबाबा क्या करेगा ?" 


"मेरा और उसका झगड़ा हो जाएगा और आख़िरकार जीत दालूबाबा की ही होगी।" बाबा ने कहा ।


"तो आपसे जीतकर वो आपको तिलस्म में कैद कर देगा ?"


"नहीं। क्योंकि मैं तिलस्म की सब चलाकियों से वाकिफ हूं । वो मुझे तिलस्म में कैद नहीं रख सकता।"


"यह भी तो होएला कि आप दालूबाबा को हाराएला।"


"नहीं।" फकीर बाबा ने सिर हिलाया--- "उसके पास सिद्धि प्राप्त तिलस्मी ताज है । जो अजेय है । उसे इस्तेमाल करके वो हर कीमत पर जीत जाएगा और फिर वो अनुष्ठान करके हकीम को बुलाने की तरकीब जानता है । यानी की जीत दालूबाबा की ही होगी । दालूबाबा के सामने मेरी हार निश्चित है । "


"ये हाकीम कौन है ?"

"कभी बहुत बड़ा सिद्ध पुरुष था परंतु अपनी हरकतों की वजह से अब राक्षस जैसा बन चुका है । जब वो सिद्ध पुरुष था तो, देवताओं ने उसे अमृत पिला दिया, जिससे कि उसकी मृत्यु किसी खास ही स्थिति में हो सकती है । वरना उसे कोई नहीं मार सकता । देवताओं ने ऐसा इसलिए किया कि वो हमेशा जीवित रहकर, लोगों का भला करेगा। परंतु अमृत पीने के बाद उसमें घमंड आ गया कि उसे कोई नहीं मार सकता । उसका यही अहंकार उसी बुराइयों की तरफ ले गया । अब हकीम से हर कोई डरता है । जब-जब भी हकीम आता है, नगरी में कहर बरपा देता है और कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता । वो कहां रहता है किसी को नहीं मालूम और उसे बुलाने के लिए किस तरह का अनुष्ठान करना होता है, इसकी जानकारी सिर्फ दालूबाबा को है । दालूबाबा ने कभी हकीम का भला किया था, इसी कारण हाकिम ने उसे जरूरत पड़ने पर, बुलाने की विधि बता दी थी ।"


रूस्तम राव के चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी ।


"बाबा । आप तो कहते हैं कि गुरुवर के श्राप की वजह से आप मृत्यु को प्राप्त नहीं हो सकते, जब तक कि आप देवराज चौहान और मोना चौधरी में दोस्ती नहीं करा देते । ऐसे में आपको किसी से क्या डर ?" रुस्तम राव ने पूछा ।


फकीर बाबा के होठों पर मुस्कान उभरी।


"यह ठीक है कि गुरुवर के श्राप की वजह से देवा और मिन्नो में दोस्ती कराए बिना मैं मृत्यु हासिल नहीं कर सकता । लेकिन दालूबाबा मेरे शरीर के अंग काटकर, अलग-अलग करके, तिलस्म के ऐसे हिस्सों में फेंक सकता है कि हमेशा के लिए मेरा शरीर टुकड़ों में बट जाएगा और ये सजा मेरे लिए बहुत ही भयानक होगी। इसलिए मैं सीधे-सीधे दालूबाबा से टक्कर नहीं ले सकता।"


रूस्तम राव गंभीर सा फकीर बाबा को देखता रहा । 


"लेकिन देवा और मिन्नो शायद कुछ कर जाएं।"


"कैसे बाबा ?"


"मिन्नो के पास देवी के रूप में बहुत शक्तियां हैं। जिनका दालूबाबा मुकाबला नहीं कर सकता। परंतु अभी तक मिन्नो को पहले जन्म की याद नहीं आई, इसलिए अपनी शक्तियों से अनजान है । अगर उसे सब कुछ याद आ जाए और देवा उसकी सहायता कर दे तो यहां सब कुछ बदल जाएगा ।" फकीर बाबा ने गंभीर स्वर में कहा--- "लेकिन मैं नहीं जानता कि ये वक्त कब आएगा।"


"तब तो दालूबाबा हाकीम को बुलाकर देवराज चौहान और मोना चौधरी के सामने खड़ा कर देगा और आपने बताया है कि हकीम की जान नहीं ली जा सकती ।"


फकीर बाबा के चेहरे रहस्यमय मुस्कान उभरी ।


"हाकीम को कुलदेवी ही समाप्त कर सकती है और मिन्नो कुलदेवी थी, जब उसने प्राण छोड़े थे। कुलदेवी के पास वो किताब जिसमें हकीम को राख में मिलाने का ढंग दर्ज है। परंतु वो किताब कहां है, कोई नहीं जानता । प्राण छोड़ने से पूर्व मिन्नो ने उस किताब के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया । हकीम के कहने पर दालूबाबा सवा सौ बरस से उस किताब को ढूंढ रहा है। परंतु वो नहीं मिली। "


"इसका मतलब मोना चौधरी जानती है कि हाकीम को कैसे समाप्त किया जा सकता है, इस बात का वर्णन जिस किताब में है। वो कहां है ।" रुस्तम राव ने कहा ।


"हां । मिन्नो को अवश्य मालूम होगा। परंतु जब तक उसे पहला जन्म याद नहीं आता । तब तक उसे यह बात कैसे याद आएगी कि उसने किताब कहां रखी हुई है। आने वाला वक्त क्या मोड़ लाता है, कुछ भी कहा नहीं जा सकता।"


"रुस्तम राव के चेहरे पर गंभीरता छाई रही ।


"बाबा। आप मुझे मेरे बारे में बताने जा रहे थे कि पहले जन्म में मैं क्या करता था।" फकीर बाबा मुस्कुराया ।


"जरूर जानना चाहते हो ?"


रुस्तम राव का गंभीर चेहरा हौले से हिला ।


फकीर बाबा उठा । उसने हाथ हवा में किया तो, हाथ में छोटा-सा कपड़ा नजर आने लगा । रुस्तम राव की निगाह फकीर बाबा पर थी ।


बाबा ने वो कपड़ा रूस्तम राव के सिर पर रखा...।"


अगले ही पल रुस्तम राव के मस्तिष्क को ऐसा झटका लगा जैसे किसी ने उसके सिर के साथ बिजली की तारें लगा दी हों । उसका जेहन गहरे अंधेरे में डूबता चला गया । ये सब चंद पल ही रहा, फिर उसे सब कुछ स्पष्ट नजर आया। वो छोटा सा था । उसकी उम्र आठ साल की थी । फकीर बाबा ने उसका हाथ थाम रखा था और दूसरे हाथ में लोहे की छोटी सी संदूकची थी। वो कच्ची पगडंडी पर बढ़े जा रहे थे ।


पेशीराम ने पैंट-कमीज पहन रखी थी। हाथ में संदूकची पकड़ी हुई थी, जिससे वो घर-घर जाकर लोगों की शेव और हजामत करता था। सारा सामान में संदूकची में था । उसके सिर के बाल छोटे-छोटे थे । कोई पचास बरस की उम्र होगी उसकी ।


दूसरा हाथ की कलाई पर था और समझाने वाले अंदाज में बोले जा रहा था ।


"त्रिवेणी बेटे, जाते ही गुरुवर के पांव पकड़ लेना । उन्हें भगवान से कम मत समझना । गुरुवार जाने किस-किस विद्या के गुणी है। कोई नहीं जान पाया । हर किसी को विद्या का धन नहीं बनाते । तू जाते ही उनके पांवो में गिर जाएगा तो शायद दया करके तेरे को विद्या सिखा दें ।"


"वो क्या विद्या सिखाते हैं ?" नन्हे से आठ वर्षीय रुस्तम राव ने चलते-चलते पूछा।


"गुरुवर तो जो सिखा दें, वो ही कम है ।" पेशीराम ने कहा--- "वो तलवार, कटार, भाला, लड़ाई की बड़े-बड़े दांव और तो और अगर उन्हें विद्या ग्रहण करने वाला समझदार लगे तो उसे तिलस्मी विद्या भी सिखाना शुरू कर देते हैं । "


"गुरुवर ने ये सब चीजें कहां से सीखी ?" रुस्तम राव ने भोलेपन से पूछा । "अब इस बारे में मैं क्या जानूं । मुझे तो ये भी नहीं पता कि गुरुवर कहां से आए और कब आए । मैं तो तेरी तरह छोटा सा था, तब से ही उन्हें ऐसा का ऐसा ही देखता हुआ बूढ़ा हो गया ।" कहते हुए पेशीराम के चेहरे पर मुस्कान उभरी--- "और गुरुवर जरा भी नहीं बदले |"


"आप मुझे गुरुवर से विद्या क्यों दिलवाना चाहते हैं ?" 


"त्रिवेदी, यही विद्या बड़े होकर काम आएगी । हर कोई तेरी इज्जत करेगा। अगर विद्या में माहिर होगा तो, नहीं तो मेरी तरह हजामत और शेव करते-करते जिंदगी बिता देगा । भला ये भी कोई जिंदगी है जो मैंने बिता ली । मैंने अपने बेटे कालूराम को भी गुरुवर के पास भेजा हुआ है । कालूराम तो आज गुरुवर का चहेता शिष्य है, बहुत कुछ सीख लिया है उसने, अब वो अपनी जिंदगी इज्जत से बिताएगा । सीखी हुई विद्या की वजह से कोई उसे अपने साथ काम पर रख लेगा और मैं चाहता हूं, तू भी गुरुवर से विद्या पा ले । ताकि तेरी जिंदगी बन जाए।"


तभी सामने घास-फूस की बड़ी-बड़ी चौपाइयां नजर आने लगी । आते-जाते लोग नजर आने लगे । एक तरफ दंगल हो रहा था । कुछ आगे दूसरी तरफ कटार और तलवार का युद्ध कौशल हो रहा था और भी कई तरह के कामों में वहां लोग व्यस्त थे ।


"आ, इधर से आ-जा ।"


"पेशीराम, उसकी बांह थामे अन्य रास्ते से, एक ऐसे झोपड़े के पास पहुंचा जो सब झोपड़ों से बड़ा और ऊंचा था । झोपड़े पर कई रंगों की रंगाई की हुई थी।


दोनों बाहर ही चप्पल- -जूते उतार कर भीतर प्रवेश कर गए ।


वैसा ही करना त्रिवेणी, जैसा मैंने समझाया है ।" पेशीराम ने धीमे स्वर में कहा। रूस्तम राव सिर हिला कर रह गया । भीतर प्रवेश करने पर एक युवक सफाई करता मिला ।


"राम-राम पेशीराम जी ।" युवक ने मुस्कुरा कर कहा--- "आज इधर कैसे ?" 


"भगवान ने चाहा कि आज इधर पेशी पेश हो गया ।" उसने मुस्कुराकर कहा--- "गुरुवर व्यस्त हैं क्या ?"


"भीतर हैं । चले जाइए। आपको तो कहीं भी आने-जाने में मनाही नही है । "


रूस्तम राव को साथ लिए पेशीराम, झोपड़े के दूसरे दरवाजे की तरफ़ बढ़ गया । दरवाजे भीतर प्रवेश करते ही पेशीराम ठिठका । रुस्तमराव भी रुक गया।


सामने तख्त पर मुस्कुराते हुए, बैठे गुरुवर उसे ही देख रहे थे ।


"प्रणाम गुरुवर, पेशीराम को पेशी स्वीकार करें।" पेशीराम ने आदर का भाव से कहा । 


गुरुवर ने मुस्कुराते हुए उसी अंदाज में हौले से सिर हिलाया। 


"पांव पकड़ ले गुरुवर के।" पेशीराम, रूस्तम राव के कान में धीमे से फुसफुसाया। 


रूस्तम राव फौरन आगे बढ़ा और तख़्त पर बैठे गुरुवर के पांव पकड़ लिए । 

गुरुवर ने उसी मुस्कान के साथ थे पेशीराम को देखा। उनकी उम्र कितनी थी, इस बात का अंदाजा लगाना कठिन था । सिर, मूंछो और दाढ़ी के बाल, सुनहरे से चमक रहे थे । चेहरे पर लालिमा झलक रही थी । बदन जैसे कसरती हो । पेशानी पर लकीरों की गहराइयां स्पष्ट नजर आ रही थी । शरीर पर सिर्फ धोती थी और गले में मोटे-मोटे मनको की मालाएं नजर आ रही थी। माथे पर सफेद रंग का तिलक था, वैसा ही तिलक बाहों पर भी लगा था । ।


"ये किसे ले आए पेशीराम ?" गुरुवर ने पुछा।


"आप से क्या छुपा है, ये त्रिवेणी है। पांच साल का था कि इसके मां-बाप नहीं रहे । गलियों में आवारा घूमता था तो मैंने इसे अपने घर रख लिया । जो हम खाते हैं, वो ये भी खा लेता है । क्या फर्क पड़ता है, सब ऊपर वाला ही देता है। तो खैर, अब मैं इसे आपके चरणों में ले आया हूं। मैं चाहता हूं कि आप इसे कुछ विद्या सिखा दें, ताकि बड़ा होकर अपनी गुजरबसर कर सकें । इंकार मत कीजिएगा । बड़ी आशा के साथ इसे यहां पर लेकर आया हूं।"


गुरुवर की निगाह पांव थामे रुस्तम राव के माथे पर जा टिकी ।


पेशीराम वैसे ही खड़ा रहा ।


कुछ पलों बाद गुरुवर ने मुस्कुराकर हौले से सिर हिलाया ।


"ठीक है पेशीराम । ये बच्चा यहां विद्या ग्रहण करने के गुण रखता है ।"


"धन्य है गुरुवर। आपने तो मेरी परेशानी ही दूर कर दी । कल सुबह भेज दूं इसे ?"


"हां।"


रूस्तम राव तेरह साल का हो चुका था । 


उसने शरीर पर धोती लपेट रखी थी । ऊपर का बदन नंगा था और पसीने से लथपथ हो रहा था । लग रहा था जैसे अभी, बेहद मेहनत वाला काम करके हटा हो । दोपहर हो रही थी सूर्य सिर पर चढ़ा आग का गोला बन रहा था ।


उसके अन्य साथी मिल बैठकर खाना खाने लगे तो वहां वहां से हटकर झोपड़ियों, के एक तरफ चला गया, जहां छायादार वृक्ष थे और एक पेड़ के नीचे उसके इंतजार में लाडो बैठी थी । सामने ही कपड़े से बांध रखा, बर्तन रखा था । उसे पास आते देख, लाडो कह उठी।


"आ त्रिवेणी । खाना खा ले । ठंडा हो रहा है ।" बारह वर्षीय लाडो बढ़ती उम्र के साथ खूबसूरत होती जा रही थी ।


रूस्तम राव उसके पास बैठता हुआ बोला।


"कब से बैठी है तू ?"


"आधा घंटा तो हो ही गया ।" बर्तन पर बंधा कपड़ा खोलते लाडो कह उठी--- "आज तेरी पसंद की सब्जी बनाई है । "


"बोल-बोल क्या बनाया है ?" रुस्तम राव जल्दी से कह उठा ।


"आलू की सब्जी ।"


"ये तो तेरे पसंद की सब्जी है ।" रूस्तम राव मुंह बना कर कह उठा--- "बेवकूफ बनाती है मेरे को । क्या तू जानती नहीं, मेरे पसंद की सब्जी तो करेला है ।"


"कल ही तो तूने करेले खाए थे ।"


"तो क्या हो गया आज भी ले आती।"


लाडो ने खाना खोलकर सामने रखा तो, रूस्तम राव कह उठा । 


"तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया । इतना खाना क्या मैं खाऊंगा।" 


"मैं क्या तेरा मुंह देखूंगी । इसमें मेरा भी है । हम दोनों खाएंगे ।" कहकर लाडो ने रोटी तोड़ी और सब्जी लगाकर उसके मुंह की तरह बढ़ाई --- "मुंह खोल | " 


रुस्तम राव ने मुंह खोला तो लाडो ने रोटी उसके मुंह में डाल दी । वो खाने लगा । 


"सुन । कल शाम को आम तोड़ने चलेगा । आचार खत्म हो गया है ।" लाडो ने कहा । 


"ठीक है तू तैयार रहना । छुट्टी होते ही, सीधा घर आऊंगा ।" 


दोनों खाना खाते-खाते बातें कर रहे थे ।


"पता है तेरे को, सुबह कालूराम, बापू से क्या बोला ।" 


"क्या ?"


"बोला, लाडो त्रिवेणी को रोज दोपहर की रोटी क्यों देने जाती है ? त्रिवेणी सुबह ही घर से रोटी बांधकर क्यों नहीं ले जाता । अब कालूराम को क्या मालूम कि दोपहर तक रोटी ठंडी हो जाती है । वो खुद तो लेकर नहीं जाता और दूसरों से छीनकर खाता है ।" लाडो ने बुरासा मुंह बनाया ।


"कालूराम ने आज बहुत बुरा किया था ।" रूस्तम राव गंभीर स्वर में बोला । 


"क्या किया ?"


"एक युवक के पेट में कटार मार दी । गुरुवार ने तुरंत उसका इलाज करके, उसे मरने से बचा लिया और कालूराम को सजा दी कि एक महीना हर रोज सुबह से शाम तक हाथ ऊपर करके धूप में खड़ा रहेगा और इस दौरान खाना-पीना नहीं लेगा।"


लाडो के चेहरे पर अफसोस के भाव थे ।


"कालूराम मानता थोड़े न है किसी की । माना कि उसमें ताकत बहुत है, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि सबको मारता फिरे । पिटेगा कभी, तभी सुधरेगा।"


"एक दिन तो गुरुवर से शिक्षा प्राप्त कर रही लड़कियों में से एक लड़की पर बुरी नजर डाली । कुछ कह दिया होगा उसे। मिन्नो नाम है उसका । किसी मुद्रानाथ की बेटी है। उसने तो उसी वक्त कालूराम को ऐसी पटकी दी कि बुरा हाल हो गया उसका । देखने वाले सब कालूराम पर हंसने लगे और कालूराम गुस्से से पाँव पटकता चला गया।"


"ये बात तुमने बापू को क्यों नहीं बताई । बापू करारी डांट लगाते।"


"कालूराम को मालूम हो जाता कि मैंने उसकी बात बताई है तो मेरे को पटक देता।" 


तभी रूस्तम राव के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा उसने फौरन गर्दन घुमाकर सामने मौजूद फकीर बाबा को देखा । जिसकी निगाह उस पर ही थी।


"बाबा ।" रूस्तम राव की आवाज में कंपन था --- "मुझे सब याद आ गया है। मैं... मैं त्रिवेणी हूं बाबा । वो-वो पहले जन्म में क्या हुआ था । मुझे सब याद आ गया । मैं-मैं...।"


फकीर बाबा ने हाथ बढ़ाकर उसके सिर पर पड़ा कपड़ा हटा लिया । हाथ ऊपर किया तो कपड़ा एकाएक गायब हो गया । परंतु रुस्तम राव के चेहरे के भावों में कोई फर्क नहीं आया। 


"मुझे सब याद आ गया । लगता है अभी की तो बात है । कल की बात है । ओह !" बैठे-बैठे रूस्तम राव उठा और पलट कर कमरे से बाहर निकलता चला गया--- "लाडो-लाडो । कहां हो लाडो ?"


फकीर बाबा के कानों में रुस्तम राव की आवाज पड़ती रही ।


एकाएक फकीर बाबा के चेहरे पर मुस्कान बिखरने लगी। आंखों में सुकून के भाव आ गए। आंखें बंद करके, मन ही मन उन्होंने गुरुवर का धन्यवाद अदा किया ।

******

रुस्तम राव और फकीर बाबा बैठे, घंटों बातें करते रहे । रूस्तम राव सिलसिलेवार, बाबा को पहले जन्म की बातें बताता रहा। इस दौरान लाडो ने उसके लिए करेले बनाए, जो कि पहले जन्म में बहुत चाव से साथ खाता था । लाडो बेहद प्रस्सन थी कि त्रिवेणी को सब बातें याद आ गई हैं ।


फकीर बाबा के चेहरे पर राहत से भरी शांत मुस्कान थी ।


"बाबा गुरुवर कहां है ?" रुस्तम राव ने पूछा ।


"वो अपने स्थान पर हैं । "


"गुरुवर के पास तो इतनी शक्ति है कि वो दालूबाबा के षड्यंत्रों को समाप्त कर सकते हैं । देवा और मिन्नो को पहले जन्म की याद दिला सकते हैं। उनमें फिर से दोस्ती करा सकते हैं और...।"


"नहीं त्रिवेणी ।" फकीर बाबा ने इनकार में सिर हिलाया--- "गुरुवर की कुछ अपनी मजबूरियां है कि वो इन मामलों में दखल नहीं दे सकते ।"


"अगर ऐसा है तो फिर उन्होंने आपको क्यों श्राप दिया ?"


"इसलिए कि उन्होंने मुझे पहले ही आगाह कर दिया था कि आग लगाने का काम न करूं, वरना जो कुछ भी होगा, उसका असर कई जन्मो तक होगा। लेकिन आदत से मजबूर मैं बातों की आग लगाने से बाज नहीं आया । इसी बात से क्रोधित होकर, उन्होंने मुझे श्राप दिया था ।"


"मैं गुरुवर से मिलना चाहता हूं बाबा । मुझे वहां ले चलो।" रुस्तम राव गंभीरता था ।


"गुरुवर से मिलना, इतना आसान नहीं रहा । वे जिससे मिलना उचित समझते हैं, उसके सामने प्रकट हो जाते हैं। वे पहले ही भगवान के भेजे दूत थे और अब तो उनकी शक्तियां और भी असीमित हो गई है। मेरे ख्याल में गुरुवर देव मनुष्य हैं ।" फकीर बाबा ने गंभीर स्वर में कहा ।


रुस्तम राव कुछ नहीं कह सका ।


"त्रिवेणी, तेरे को पहला जन्म पूरी तरह याद आ गया है। ऐसे में तू तो देवा और मिन्नो की सहायता कर सकता है। उन्हें बीते जन्मों की बातें याद दिलाने की कोशिश कर सकता है पहले जन्म की अधूरी बातों को पूर्ण करना बहुत जरूरी है, क्योंकि दूसरे में भी तुम जन्म लोगों से अधूरी बातें छूट गई थीं । वो भी कब से तुम्हारा इंतजार कर रही है । "


"क्या मतलब ?" रूस्तम राव चौंका ?"


"हां त्रिवेणी । अभी दूसरे जन्म का उधार भी तुम सब के कंधों पर है । लेकिन पहले इस जन्म के सारे कार्य पूर्ण कर लो । फिर दूसरे जन्म में भी ले चलूंगा । अपनी आंखों से देख लेना और इस वक्त तुम सब तीसरा जन्म व्यतीत कर रहे हो ।" फकीर बाबा ने गंभीर स्वर में कहा ।


रुस्तम राव के चेहरे पर छाई गंभीरता और गहरी हो गई ।


"त्रिवेणी । मैं तेरे को तिलस्म में भेजना चाहता हूं।"


"तिलस्म में ?"


"हां । देवा और मिन्नो वहीं पर हैं । वो तेरे को मिलेंगे। उन्हें याद दिलाने की चेष्टा करना, शायद वे अपने पहले जन्म में पहुंच जाएं। सब कुछ याद आ जाए दोनों को । ऐसा हो गया तो दालूबाबा से टकराने में उन्हें आसानी होगी। सारे हालात उनके सामने होने पर उन्हें परेशानी नहीं आएगी ।"


रूस्तम राव के चेहरे पर सोच के भाव थे ।


"ठीक है बाबा। मैं तिलस्म में जाने को तैयार हूं।" तभी लाडो भीतर प्रवेश करते हुई बोली । 


"बापू । ये आप क्या कर रहे हैं। त्रिवेणी को तिलस्म में भेज रहे हैं ।" लाडो का स्वर भर्रा उठा--- "डेढ़ सौ बरस से मैं इसका इंतजार कर रही हूं अब ये लौटा तो, अभी भी जी भरकर से देख भी नहीं पाई । अभी तो जी भर कर मैंने इससे बातें करनी है । कच्चे आम तोड़ने जाना है। मैंने अपने इंतजार का हाल इसे बताना है । इसके साथ ब्याह करना है। एक बार फिर मंडप में बैठना है । फेरे लेने हैं और आप इसे दूर भेज रहे हैं।"


फकीर बाबा ने गंभीर निगाहों से लाडो को देखा ।


"मैं तेरे दिल का हाल समझ रहा हूं बेटी परंतु... "


"मेरा दिल का हाल समझ कर भी आप त्रिवेणी को मेरे से दूर भेज रहे हैं।" लाडो की आंखों से आंसू बह निकले । 


रूस्तम राव उसके आंसुओं भरे चेहरे को देखता रहा ।


"त्रिवेणी का तिलस्म में जाना जरूरी है बेटी, क्योंकि...।"


"कैसे बापू हैं आप । अपने हाथों से अपनी बेटी की खुशियां छीन रहे....."


"मत भूल लाडो कि तेरी खुशी को मैं ही यहां लाया हूं। एक बाप अपने हाथों से अपनी बेटी की खुशी नहीं छीन सकता । अगर जरूरी न होता तो मैं त्रिवेणी को तिलस्म में मैं कभी न भेजता ।" फकीर बाबा ने गंभीर स्वर में कहा--- "वहां देवा और मिन्नो फंसे हुए हैं । दालूबाबा ने अब उनके लिए और भी खतरे खड़े कर दिए हैं । त्रिवेणी को सब कुछ याद आ चुका है । ये, उन दोनों को कुछ हद तक खतरों से बचा सकता है और उन्हें बीते जन्म की बातें भी याद दिलाने की कोशिश कर सकता है ।"


"नहीं बापू । मैं त्रिवेणी को नहीं जाने दूंगी।" लाडो की जिद में हार के भाव थे।


रूस्तम राव एकाएक मुस्कुराया और लाडो से बोला ।


"चल तेरे को भी तिलस्म में ले चलता हूं।"


"मैं नहीं जाऊंगी । वहां तो जाने की सोच कर ही मुझे डर लगता है ।" लाडो कह उठी ।


"तू पहले भी बात-बात पर डरती थी और अब भी तेरी आदत वही है । "


"क्यों नहीं होगी। मैं भी तो वही हूं। लाडो, मैं कैसे बदल सकती हूं।"


"ठीक है। तू मेरे लिए करेले बनाकर रख, मैं जल्दी तिलस्म से लौटकर करेले खाऊंगा और हां, करेलों के बदले, आलू की सब्जी मत बना देना । जो तेरे को अच्छी लगती है ।" रुस्तम राव मुस्कुरा कर बोला ।


पल भर के लिए लाडो के चेहरे पर मुस्कान उभरी, फिर लुप्त हो गई ।


"बापू ये न लौटा तो ?" लाडो ने फकीर बाबा को देखा ।


"क्यों नहीं लौटेगा ?"


"जाने क्यों मेरा मन, त्रिवेणी के जाने पर घबरा रहा है।" लाडो का स्वर भर्रा उठा। "जाना जरूरी न होता तो, मैं इसे कभी ना भेजता । वहां अपना काम करके त्रिवेणी वापस आ जाएगा । भगवान पर भरोसा रख ।" फकीर बाबा ने कहा


लाडो गीली आंखों से, त्रिवेणी को देखती रही ।


"त्रिवेणी बेटे ।" फकीर बाबा खड़े होते हुए बोले--- "चल, तेरे को तिलस्म में पहुंचा दूं।"


रुस्तम राव उठ खड़ा हुआ ।


लाडो की आंखों में आंसू बह निकले । 


"जा रहा है त्रिवेणी ।" वो भरभराते स्वर में कह उठी । 


"मैं वापस आऊंगा लाडो ।" त्रिवेणी ने विश्वास दिलाने वाले स्वर में कहा । 


लाडो ने फकीर बाबा को देखा । 


"बापू तू वायदा कर कि त्रिवेणी को लेकर आएगा ।" 


"उस बात का वायदा कैसे कर लूं जिसके बारे में खुद नहीं जानता कि आने वाले समय गर्भ में क्या है। भगवान पर भरोसा रख। उसने चाहा तो त्रिवेणी तेरे पास जरूर |"


लाडो की आंखों से आंसू बहते आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।


फकीर बाबा ने रुस्तम राव का हाथ पकड़ा और होठों की होठों में कुछ बुदबुदाया । अगले ही पल देखते ही देखते दोनों हवा बनकर गायब होते चले गए।


लाडो दोनों हाथों से ढांपे फफककर रो पड़ी।

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