उस समय जैक्सन बिना चौंके न रह सकी - जब विकास ने बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद करके सावधानी के साथ गले से लॉकेट निकाला और उसका ट्रांसमीटर ऑन करके बोला- ' हैलो.. .हैलो...यस, मैं विकास बोल रहा हूं।" हैलो.. .हैलो ।' दूसरी तरफ से विजय की आवाज ।


- "यस झकझकिए अंकल मैं विकास.. हूं।''


"अरे विकास... कहां हो तुम? " विजय के चौंकने का स्वर।


"मैं मर्डरलैंड में हूं अकंल ।"


" मर्डरलैंड कहां है?


"अंतरिक्ष में ।"


"अंतरिक्ष में कहां?


"स्पेस में ।'' 


जैक्सन ने उसकी बातों का एक-एक शब्द सुना-वास्तव में वह विकास का साहस और बुद्धि देखकर चौकी भी थी । उसे यह लड़का बहुत ही अधिक खतरनाक लगा । उसके अधरों पर ऐसी मुस्कान आई कि मानो वह विकास की इस हरकत से अत्यंत प्रसन्न हो । उधर विजय और विकास की बातें चल रही थी और उधर जैक्सन ने एक बटन दबाया, साथ ही एक स्क्रीन पर एक लोहे का विचित्र - सा इंसानी पुतला नजर आया, तभी जैक्सन बोली- ' विगेट नम्बर एक्स फाइव !


''यस मादाम ।'' एक अत्यंत घबराहट-भरी आवाज ।


"होटल क्लाइम के बाथरूम में एक लड़का है-उसे सुरक्षित मेरे पास लाओ ।' I


"ओके ग्रेट प्रिंसेज ।" वह लोहे का व्यक्ति बोला । और फिर लोहे के व्यक्ति ने विकास को कंधे पर डाल लिया ।


वह छटपटाया-किंतु निरर्थक |


और तब जबकि उसे हॉल में जैक्सन के आगे पटक दिया गया । जैक्सन ने कहा- ''क्यों विकास-मर्डरलैंड के साथ गद्दारी की ?


'गद्दारों के साथ गद्दारी ही की जाती है ।'


और उस समय विकास आश्चर्यचकित रह गया जब उसे मर्डरलैंड के कानून के अनुसार गद्दारी के ईनाम के रूप में 'बाल सेवकों' के रूप में मर्डरलैंड की सरकार में सम्मिलित कर लिया गया, उसे विशेष कपड़े और एक बिल्ला देकर सम्मानित किया गया और साथ ही उसे और अधिक गद्दारी करने के लिए प्रोत्साहित किया गया क्योंकि गद्दारी करके वह उच्च पद पर पहुंच सकता था किंतु उसका वह लॉकेट उससे ले लिया गया । -


यह एक अंतरिक्ष यान था ।


कुछ विचित्र - सा अंतरिक्ष यान ।


यह था भारत के एक होनहार वैज्ञानिक सुभ्रान्त का नया आविष्कार... ।


- किंतु दुनिय ही नहीं बल्कि स्वयं भारत की आम जनता भी इससे अनभिज्ञ थी कि भारत ने भी इतनी प्रगति कर ली है कि वे भी अंतरिक्ष में सैर कर सकें ।


प्रोफेसर ने अपने इस प्रथम अंतरिक्ष आविष्कार का नाम ' सार्फेस्ट्रा' रखा था । कुछ विशेष व्यक्तियों के अतिरिक्त कोई नहीं जानता था कि सुभ्रान्त ने इस अंतरिक्ष यान का आविष्कार किया है।


यह बात अत्यंत ही गोपनीय रखी गई थी ।


सुभ्रान्त ने यह 'सार्फेस्टा' दस वर्ष के कठोर परिश्रम के उपरांत बनाया था ।'


और अब ।


ऐसे गम्भीर समय में !


जबकि सम्पूर्ण धरती कांप रही थी.. यत्र-तत्र सर्वत्र मर्डरलैंड का आंतक व्याप्त था-समस्त धरती त्राहि-त्राहि कर रही थी । कभी भी कोई शहर दहककर आग की लपटों में घिर जाता । किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था । अमेरिका व रूस जैसी महाशक्तियां मर्डरलैंड की शक्ति से कांपकर रह गई थीं |


कितना गम्भीर था यह समय!

इसी नाजुक समय पर सुभ्रान्त का सार्फेस्टा फरिश्ता बन गया ।


विजय!


विकास से बातें करके विजय को जानकारी मिली कि मर्डरलैंड स्पेस में है-यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण समाचार था । उसने अलफांसे को बताया- अलफांसे ने तुरन्त अंतरिक्ष यात्रा की सलाह दी थी । विजय, ब्लैक ब्वाय से मिला- समस्त स्थिति बयान की, सुनकर ब्लैक बॉय की आंखें खुशी से चमकने लगीं । कुछ ही पल में ब्लैक ब्वाय ने सीक्रेट सर्विस का चीफ होने के नाते सीधे प्रधानमंत्री से संबंध स्थापित किया, जब प्रधानमंत्री ने यह जाना कि रघुनाथ के लड़के विकास ने... दस वर्ष के उस बालक ने धरती को मर्डरलैंड का पता बताया है । धरती निवासियों की वर्तमान सर्वश्रेष्ठ जटिल परिस्थिति को हल किया है, तो उनके आश्चर्य की कोई सीमा न रही ।


- किंतु यह समय आश्चर्य करने का नहीं बल्कि तेजी से काम करने का था ।


समय के साथ धरती पर मर्डरलैंड का आतंक बढ़ता ही जा रहा था ।


मर्डरलैंड के झंडे धरती के प्रत्येक देश पर पहुंच चुके थे । कुछ छोटे-मोटे देशों ने तो मर्डरलैंड के सामने हथियार डाल दिए थे उनके राष्ट्रीय झंडों के स्थान पर मर्डरलैंड के झंडे फहरा रहे थे-जिन पर एक बड़ा-सा स्टार बना हुआ था और ठीक बीच में जैक्सन की फोटो थी । जिन लोगों ने हथियार नहीं डाले थे उन्हें निरंतर जैक्सन द्वारा धमकियां दी जा रही थीं । अराजकता फैलती जा रही थी।


अत: यह समय आश्चर्य व्यक्त करने का नहीं था, बल्कि तीव्रता के साथ कार्य करने का था और वास्तव में प्रधानमंत्री ने अत्यंत तीव्रता से कार्य किया ।


प्रधानमंत्री को यह विदित था कि सुभ्रान्त ने सार्फेस्टा का निर्माण किया है । उन्होंने तुरंत सुभ्रान्त से संबंध स्थापित किया और मानव जाति के कल्याण के लिए सार्फेस्टा की मांग की। सुभ्रान्त को यह जानकर अपार हर्ष हुआ कि उसका सार्फेस्टा इतने गम्भीर समय में मानव जाति के कल्याण के लिए उपयोग किया जा रहा है । -


अत: सुभ्रान्त सहर्ष तैयार हो गया ।


और इस समय!


सार्फेस्टा !


सुभ्रान्त का आविष्कार आश्चर्यजनक तीव्र वेग से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर था और सार्फेस्टा के कक्ष में मौजूद थे चार खतरनाक इंसान !


अलफांसे -परिस्थितियों के साथ रंग बदलने वाला खतरनाक अंतर्राष्ट्रीय अपराधी, विजय के साथ सीक्रेट सर्विस के अन्य दो एजेंट-अशरफ और आशा ।


जी हां!


ये चारों व्यक्ति सार्फेस्टा में उपस्थित थे- उनके जिस्म पर अंतरिक्ष यात्रा के लिबास थे-पोठों पर ऑक्सीजन के गैस सिलेंडर ।


यह यात्रा अत्यंत गोपनीय रखी गई थी गिने-चुने व्यक्तियों को ही इसकी जानकारी थी- विजय, अशरफ, आशा और अलफांसे के अतिरिक्त इस यात्रा के विषय में सिर्फ अन्य तीन व्यक्ति और जानते थे। पहला सार्केस्टा का निर्माणकर्ता, यानी सुभ्रान्त । दूसरा सीक्रेट सर्विस का चीफ ब्लैक ब्वाय और तीसरे प्रधानमंत्री, इनके अतिरिक्त कोई भी नहीं जानता था कि


चार खतरनाक इंसान मर्डरलैंड रवाना हो चुके हैं ।


सार्फेस्टा में आश्चर्यचकित कर देने वाली विशेषताएं थी जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण ये हैं... पहली ये कि सार्फेरटा अदृश्य था । दूसरी ये कि सार्फेस्टा के चारों ओर का दृश्य अंदर रखी स्क्रीन पर देख सकते थे। तीसरी- सार्फेस्टा का संबंध निरंतर धरती पर स्थित सुभ्रान्त की प्रयोगशाला से रहता था । चौथी ये कि जब सार्केस्टा स्टार्ट होता था तो बहुत अधिक ध्वनि होने पर भी उसकी ध्वनि नहीं होती थी क्यों कि उसमें लगभग आठ-दस शक्तिशाली साइलेंसर लगे थे-पांचवीं उसके स्टार्ट होने से जो धुआं निकलता था वह उसी में संलग्न एक चमड़े के विशाल ब्लैडर में भर जाता थाजिसे ऊपर जाकर निकाल दिया जाता था ।


इन्हीं विशेषताओं के कारण तो सार्फेस्टा की यात्रा अत्यंत गोपनीय थी -वरना आवाज और धुएं के कारण वह गोपनीयता नष्ट हो जाती ।


इन विशेषताओं के अतिरिक्त सार्फेस्टा में अन्य बहुत-सी विशेषताएं थीं ।


इस समय अलफांसे और अशरफ सार्फेस्टा की चालक सीटों पर बैठे थे । सुभ्रान्त ने इन चारों को ही सार्फेस्टा के इंजन की कार्यविधि से अवगत करा दिया था ।


विजय के हाथ में एक माइक-सा था जिसका संबंध प्रोफेसर सुभ्रान्त से था । आशा किन्हीं यंत्रों में उलझी हुई थी ।


"मिस्टर विजय !" सुभ्रान्त की आवाज स्पीकर पर उभरी


-"यस प्रोफेसर ।"


''मैं तुम्हारे सार्फेस्टा पर निरंतर नजर रख रहा हूं ।' "कैसे सर?'


"मेरे सामने एक स्क्रीन रखी है - इसमे सार्फेस्टा साफ दिखाई दे रहा है जो तीव्र गति से स्पेस की ओर अग्रसर है।"


"आपकी प्रयोगशाला काफी विशाल है... आप भारत के महान वैज्ञानिक हैं।"


'थैंक्यू!"


"लेकिन प्रोफेसर... आप तो कह रहे थे कि सार्फेस्टा अदृश्य रहेगा?"


"मिस्टर विजय! " सुभ्रान्त बोला-' सार्फेस्टा अदृश्य है.. . निस्संदेह अदृश्य है, उसे कोई नहीं देख सकता किंतु मैंने एक ऐसी स्कीन का आविष्कार भी कर लिया है जिस पर अदृश्य वस्तुओं को देखा जा सकता है और इस समय मैं उसी स्क्रीन के सामने बैठा हूं । "

सार्फेस्टा तीव्र गति से लक्ष्य की ओर अग्रसर था ।


विजय और सुभ्रान्त बातें करते रहे.. अलफांसे और अशरफ चालक सीटों पर जमे रहे । आशा न जाने किन यंत्रों में उलझी रही ।


यात्रा आर| से होती रही ।


किंतु! अचानक एक आश्चर्यजनक घटना !


प्रोफेसर सुभ्रान्त की घबराई हुई आवाज, ' विजय- यह क्या है?''


"क्या है प्रोफेसर?" विजय के साथ सभी चौंके । क्योंकि प्रोफेसर के शब्द सभी ने सूने थे ।


"य... य... यह.. क क्या है ? " ऐसा लगता था, जैसे प्रोफेसर कोई अनहोनी बात देख रहा हो ।


- "क्या बात है प्रोफेसर ? " विजय उत्सुकता के साथ चीखा ।


- "विजय-जल्दी से वह स्कीन ऑन करो- जिसके जरिए तुम सार्फेस्टा की बाहरी बॉडी देख सकते हो ।'' सुभ्रान्त लहजे में चिंता के भाव स्पष्ट थे । 


"मिस गोगियापाशा, जल्दी करो ।" विजय चीखा ।


आशा ने फुर्ती का परिचय देते हुए स्कीन ऑन कर दी । सब बुरी तरह चौंके!


वास्तव में दृश्य चौंका देने वाला था । चारों के चेहरों पर चिंता की रेखाएं उभर आई - सभी हैरत में पड़ गए । तभी विजय चीखा- "यह क्या है प्रोफेसर ? "


- "पता नहीं मिस्टर विजय! " सुभ्रान्त का स्वर डूबा हुआ-सा था ।


चारों की निगाहें स्क्रीन पर जमी हुई थीं ।


सबकी आंखों में अथाह आश्चर्य की परछाइयां थीं ।


स्क्रीन पर सार्फेस्टा की बॉडी का दृश्य था- किंतु उसके साथ ही एक आश्चर्यजनक बात और देख रहे थे जो लगभग असम्भव ही थी ।


सार्फेस्टा के चारों ओर भयंकर आग की लपटें लपलपा रही थी, आग के शोले उठ रहे थे- ये लपटें एक रेखा में थीं और उस रेखा ने सार्फेस्टा को पूर्णतया चारों ओर से घेर रखा था । लपलपाती आग की उस रेखा ने सार्फेस्टा को चारों ओर से घेर लिया था । सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह थी कि आग का यह दायरा सार्फेस्टा को घेरे निरंतर उसी गति से बढ़ रहा था ।


आग की ये रेखा कहीं से पीली दीख रही थी तो कहीं से नीली और कहीं-कहीं तो लाल आग के शोले दहक रहे थे। लपलपाती आग से चिंगारियां निकलकर इस प्रकार वायुमंडल में छितरा जाती थीं मानो किसी पटाखे के पलीते में आग लगी हो । किसी कई समझ में नहीं आ रहा था कि ये आखिर क्या बला है? इसका रहस्य क्या है?


एकाएक!


एक अन्य दिल हिला देने वाली घटना !


एक ही पल !


चारों में से कोई भी अपने आपको संभाल न सका! चारों ही सार्फेस्टा के फर्श पर गिरे ।


विजय के हाथ से माइक छूट गया ।


सार्फेस्टा को एक अत्यंत तीव्र झटका लगा ।


एक अन्य खौफनाक कारनामा... एक और खौफनाक घटना! देखते-ही-देखते सार्फेस्टा उल्टा, होने लगा ।


चारों जांबाज चकराए !


अलफांसे फर्श पर रेंगा और माइक उठाकर चीखा । ' हैलो.. .प्रोफेसर.. .हैलो!"


किंतु दूसरी ओर से उत्तर में सन्नाटा था...मौत जैसा गहन सन्नाटा!


तभी एक अन्य तीव्र झटका सार्फेस्टा को लगा ।


वे चारों फिर एक बार जोर से फर्श पर गिरे । उनकी समझ में नहीं आ रहा था । कुछ


आग की रेखा अभी तक उन्हें घेरे हुए थी ।


प्रोफेसर सुभ्रान्त से संबंध विच्छेद हो चुका था ।


सार्फेस्टा निरंतर झटके खा रहा था ।


विजय, अलफांसे, अशरफ और आशा का बुरा हाल था । वे फर्श पर गेंद की भांति इधर-उधर लुढ़क रहे थे । वे असहाय थे, कुछ करने में असमर्थ थे ।


और अगला पल !


कयामत का पल !


मानो साक्षात मौत!


सार्फेस्टा मानो एक झटके के साथ नष्ट हो गया... उसके न जाने कितने पुर्जे नष्ट हो गए । टेलीविजन स्मईन तो खील-खील होकर बिखर गई ।


एक साथ चारों की चीखें निकल गई ।


आश्चर्य वास्तव में महान था !


एक झटके के साथ सार्फेस्टा उलट गया था.. . बिल्कुल उल्टा । उसकी छत धरती की ओर हो गई थी और फर्श आकाश की ओर! सभी कुछ आश्चर्यजनक था ।


सार्फेस्टा के फर्श का सारा सामान सार्फेस्टा की छत पर पड़ा था जो इस समय फर्श का काम दे रही थी...वहीं पड़े थे वे चारों... फर्श छत बनी हुई थी और छत फर्श !


उन चारों को काफी चोटें आई थीं ।


सार्फेस्टा को निरंतर तीव्र झटके लगते रहे... चारों जांबाज कुछ भी करने में असमर्थ थे । वे झटकों के साथ इधर-उधर लुढ़क रहे थे । सार्फेस्टा की मशीनरी पूर्णतया नष्ट हो चुकी थी! और फिर !


एक अन्य हैरतअंगेज कारनामा !


तीव्र झटकों के साथ-ही-साथ सार्फेस्टा शनैः शनै: सीधा होने लगा और फिर देखते ही देखते सार्फेस्टा सीधा हो गया । सारी मशीनरी समाप्त हो ही गई थी !


मशीनरी के नष्ट हो जाने के पश्चात भी सार्फेस्टा निरंतर पूर्ण वेग से गतिशील था ।


- "गुड ।" विजय के मुख से निकला । और फिर ! सिलसिला इसी प्रकर चलता रहा ।