दरवाजा बहुत आहिस्ता से खटखटाया गया। एक बार! दो बार!


तीसरी बार आवाज भी उभरी “चाचू।”


आवाज बबलू की थी ।


ठकरियाल के भद्दे होठों पर मुस्कान फैल गई। उसके जिस्म पर इस वक्त राजदान की वार्डरोब से निकला नाईट गाऊन था। सिर पर फ्लैट हैट। हैट के एक कोने ने चेहरे पर झुककर लगभग सारा ही चेहरा छुपा रखा था।


ठीक उस सोफा चेयर के ‘इधर’ एक आदमकद टेबल लैम्प रखा था जिस पर राजदान की लाश लुढ़की पड़ी थी। कमरे की सारी लाईटे ऑफ थीं। केवल उस लैम्प के शीर्ष पर बहुत ही तेज रोशनी बाला बल्ब ऑन था । उसकी सारी रोशनी उधर पड़ रही थी जहां बैड था। चकाचौंध रोशनी के कारण बाथरूम के दरवाजे अथवा बैड की तरफ से लैम्प के पीछे का अर्थात् जहां लाश थी, वहां का दृश्य नहीं देखा जा सकता था ।


ठकरियाल ने खुद बाथरूम के बंद दरवाजे के नजदीक ठिठककर लैम्प के पार देखने की कोशिश की। गहरे अंधकार के अलावा उस दिशा में कुछ नजर नहीं आ रहा था। जबकि वह जानता था — दिव्या और देवांश लैम्प के पीछे मौजूद हैं। बल्ब का फोकस इसी दिशा में होने के कारण आंखें चुंधियां रही थीं।


उसने अपना हाथ आंखों के सामने अड़ाकर अर्थात् सीधी आंखों में घुसी जा रही प्रकाश किरणों से लड़ने की कोशिश करते हुए लैम्प के पीछे का दृश्य देखने का प्रयास किया।


कुछ न देख सका वह । अंधकार ही अंधकार था।


अंधेरे में खड़े दिव्या और देवांश उसे साफ देख सकते थे।


इस बीच दूसरी तरफ से दरवाजा खटखटाने के साथ बबलू कई बार फुसफुसाकर ‘चाचू' कह चुका था । संतुष्ट होने के बाद ठकरियाल ने दरवाजा खोला।


बबलू की आंखें बुरी तरह चुंधिया गईं | इस कदर कि वह केवल ये देख सका—सामने कोई खड़ा है। चेहरा देखने का कोई साधन नहीं था उसके पास। अपना हाथ आंखों के सामने अड़ाने की कोशिश करते कहा – ' -“ये क्या चाचू । इतनी तेज रोशनी क्यों कर रखी है कमरे में?”


ठकरियाल ने झपटकर उसका मुंह दबोच लिया । बहुत ही धीमे आवाज में फुसफुसाकर कहा – “जोर से मत बोल बबलू । आवाज उन तक पहुंच गई तो गजब हो जायेगा ।” बबलू मुंह आजाद करने के लिये कुलमुलाया।


ठकरियाल उसे उसी पोजीशन में, लगभग घसीटता हुआ बैड की तरफ ले गया । अपना हाथ मुंह से हटाने से पहले

फुसफुसाया- -“इस वक्त हमें बातें कम, काम ज्यादा करना है।” “चाचू ।” मुंह आजाद होते ही बबलू ने कहा—' -“तुम्हारी आवाज को क्या हुआ?”


ठकरियाल ने आवजा बदलने की काफी कोशिश की थी । इसीलिये वह फुसफुसाकर बहुत ही आहिस्ता से बोल रहा था। बावजूद इसके, बबलू ने टोक ही दिया । ठकरियाल को उसी अंदाज में कहना पड़ा- -“हल्का नजला-जुकाम है लेकिन बबलू, हमारे पास बेकार की बातों में गंवाने के लिये समय नहीं है। ये लो चाबी और जल्दी से पेन्टिंग के पीछे वाले लॉकर को खोलो।” कहने के साथ उसने जेब से चाबी निकालकर उसके हाथ में ठूंस दी।


“लेकिन चाचू...


“प्लीज बबलू। जल्दी करो।” ठकरियाल ने उसे हौले से बैड की तरफ धकेला । थोड़ा-सा लड़खड़ाने के बाद बबलू सम्भला। ठकरियाल की तरफ देखने की असफल कोशिश की । असफल इसलिये क्योंकि खुद उसका चेहरा बल्ब के फोकस पर था और ठकरियाल की पीठ थी बल्ब की तरफ। इस बार फिर बबलू ने कुछ कहना चाहा परन्तु ठकरियाल ने इशारे से लॉकर खोलने के लिये कहा। बबलू बैड पर चढ़ गया।


पेन्टिंग उतारकर बैड पर रखी ।


चाबी लॉकर के ‘की हॉल' में फंसाई । दराज जैसा लॉकर बाहर खींच लिया।


उसमें एक साईलेंसर युक्त रिवाल्वर और थोड़ा सा जेवर रखा था।


अभी बबलू यह सवाल करने हेतु पलटने ही वाला था 'क्या करना है?’ कि ठकरियाल ने कहा – “जो भी है, सब निकाल ले।” बबलू ने वैसा ही किया।


“ला।” ठकरियाल ने दस्ताने युक्त हाथ फैलाते हुए कहा – “सब कुछ मुझे दे दे।”


बबलू ने पुनः हुक्म का पालन किया ।


बहुत सावधानी से रिवॉल्वर को गाऊन की जेब में सरकाता ठकरियाल बोला— “लॉकर बंद करने के बाद पेन्टिंग टांग दे।” बबलू ने वह भी कर दिया।


अब वह पलटकर ठकरियाल के नजदीक आया। ठकरियाल हर पल खुद को ऐसे कोण पर रखे था कि बबलू उसक पीछे अर्थात् वहां न देख सके जहां राजदान की लाश पड़ी थी ।


देवांश और दिव्या थे। धड़कते दिल से वे सारे दृश्य को साफ देख रहे थे।


बैड से उतरकर बबलू ने कहा – “चाचू ! तुम तो जासूसी सीरियल के रहस्यमय करेक्टर से नजर आ रहे हो। बातें भी वैसी ही कर रहे हो । चक्कर क्या है ?” ?"


“चक्कर सुबह समझाऊंगा। फिलहाल तू ये जेवर लेकर यहां से निकल जा ।” कहने के साथ उसने सारे जेवर पुनः उसके हाथों में ठूंस दिये।


“नहीं चाचू। मैं सुबह तक इंतजार नहीं कर सकता।” बबलू ने जिद की – “अभी बताओ क्या चक्कर है? कमरे में इतनी तेज रोशनी क्यों कर रखी है? क्यों मुझे लेटर लिखकर यहां बुलाया ? वो कौन था जिसने पेपरवेट मेरे कमरे में फैंका? मैंने खिड़की से उसे विला में कूदते देखा था।”


“चल! यह बता देता हूं। वह आफताब था। उसे मैंने ही भेजा था। मगर, माना नहीं तू शैतानी किये बगैर । मैंने लेटर में लिखा - लेटर पहुंचाने वाले के बारे में जानने की कोशिश मत करना ।”


“लेटर तो बाद में पढ़ा चाचू । खिड़की पर तो मैं यह समझ में आते ही झपट पड़ा था कि किसी ने वहां से मेरे ऊपर कुछ फैंका है। उस वक्त वह इस कदर भागता हुआ विला में कूदा था जैसे 'आहट' में भूत से डरे लोग दौड़ा करते हैं।” 


“लेटर कहां है ?”


“ये रहा।” बबलू ने दिखाया । वह इस वक्त भी रबर बैण्ड के जरिये पेपरवेट पर लिपटा हुआ था। “इसका काम खत्म हुआ।” कहते हुए ठकरियाल ने पेपरवेट उसके हाथ से लेकर गाऊन की दूसरी जेब में सरका लिया। “चक्कर तो समझाओ चाचू । क्यों कर रहे हो यह सब ?”


“कह तो चुका हूं । पूरा चक्कर समझाने का टाईम नहीं है। इस वक्त बस इतना समझ ले – किसी ने मेरे विश्वास को धोखा देने की कोशिश की है। उसी को सबक सिखा रहा हूं।"


“किसने?”


“कहा न, सुबह बताऊंगा।"


बबलू ने आंखे तरेरकर कहा


“मगर मैं समझ गया।”


“क्या समझ गया ?”


“वे देवांश अंकल और दिव्या आंटी हैं न?” बबलू कहता चला गया – “मैं पहले ही कहता था । जितना प्यार तुम उन्हें करते हों, उतना प्यार वे तुम्हें नहीं करते।” 


“तू फिर बक-बक करने लगा। निकल यहां से वरना मेरे पूरे प्लान पर पानी फिर जायेगा। सुबह बात करेंगे । जेवर अपने पास रखना।” कहने के साथ उसने बबलू को बाथरूम के दरवाजे की तरफ धकेला ।


बबलू ने पुनः कुछ कहने की कोशिश की।


ठकरियाल ने उसे यह कहते हुए बाथरूम में धकेलकर दरवाजा वापस बंद कर लिया कि सुबह उसे तब तक यहां नही आना है जब तक खुद वही न बुलाये।


******


फोन की घंटी बजी ।


रिसीवर खुद एस. एस. पी. पुलिस ने उठाया । कहा “रणवीर राणा हीयर ।”


“जय हिन्द सर।” दूसरी तरफ से आवाज उभरी – “इंस्पैक्टर ठकरियाल बोल रहा हूं " 


“बोलो इंस्पैक्टर।”


“सर, आर. के. राजदान को तो आप जानते ही होंगे?”


“क्या तुम राजदान एसोसियेट्स के मालिक की बात कर रहे हो?” 


“यस सर ।”


“क्या कहना चाहते हो उनके बारे में?”


“थाने पर उनके भाई का फोन आया है। उन्होंने सुसाईड कर ली है ।” 


“क-क्या?” रणवीर राणा चौंक पड़ा।


“शहर के प्रतिष्ठित आदमी थे । इसलिये फोन किया । शायद आप वहां पहुचना चाहें ।”


“हम पहुंच रहे हैं। तुम इस वक्त कहां हो?”


“अभी थाने में ही हूं सर । बस निकलने ही वाला था।”


“ओ. के.। वहीं मिलते है ।” कहने के बाद राणा ने रिसीवर रख दिया ।


******


चारों तरफ पुलिस ही पुलिस नजर आ रही थी । उनमें हवलदार रामोतार भी था।


फोटोग्राफर अलग-अलग कोणों से लाश के फोटो ले रहा था । फिंगर प्रिन्ट्स डिपार्टमेंट के लोग अपना काम कर रहे थ। लाश ज्यों की त्यों सोफा चेयर पर लुढ़की पड़ी थी। हाथों में साईलेंसर युक्त रिवाल्वर था। सेन्टर टेबल पर सिगार के टोटों से भरी एश्ट्रे। व्हिस्की की बोतल, आईस बकेट, ड्राई फ्रूटस की प्लेटें, सोड़े की बोतलें और वह गिलास जिसमें राजदान ने पी थी। वे दोनों एक्स्ट्रा गिलास कहीं नजर नहीं आ रहे थे जो बता सकते थे राजदान किन्हीं और के साथ व्हिस्की पीने वाला था और न ही वह आदकमद लैम्प कमरे में कहीं था जिसके पार बबलू नहीं देख सका था। दिव्या और देवांश आंखों में आंसू लिये एक कोने में खड़े थे।


आफताब और दीनू काका भी एक अन्य नौकर और भागवंती के साथ वहीं थे।


एक बात — जो सबसे अलग थी, वह यह थी कि बैडरूम के मुख्य दरवाजे की चटकनी टूटी पड़ी थी जो गैलरी में खुलता था। साफ नजर आ रहा था — दरवाजे पर बाहर की तरफ से इतने धक्के मारे गये है कि बंद चटकनी टूट गई । तब कहीं दरवाजा खुल सका ।


राणा का पहला सवाल उसी से कनेक्टिड था । उसने पूछा — “लाश पर सबसे पहले किसकी नजर पड़ी? अर्थात् कमरे में पहले कौन आया ?”


“आना तो मैं चाहती थी मगर न आ सकी ।” दिव्या ने कहा ।


“क्यों?”


“दरवाजा अंदर से बंद था ।” 


“फिर?”


“मैं चौंक पड़ी। माथा तो उसी समय टनक गया था मेरा ।”


“कारण?”


दिव्या ने उस सबको अपने दिमाग में व्यवसिथ्त किया जो ठकरियाल ने समझाया था और कहना शुरू कर दिया —“पिछले तीन महीने से ‘ये’ अपने बैडरूम का दरवाजा अंदर से बंद नहीं करते थे ।”


“क्यों?”


“ताकि मैं रात के किसी भी वक्त आकर इनकी कुशल क्षेम देख जाऊं और ये डिस्टर्ब भी न हों।" 


“ओह।”


“यह सिलसिला उसी दिन से शुरू हुआ था जिस दिन इन्होंने मुझसे अलग कमरे में सोने के लिए कहा । बोले थे— 'दिव्या, मुझे ऐसी-ऐसी बीमारियों ने घेर लिया है जो तुम्हें भी लग सकती हैं। मैं ऐसा हरगिज नहीं चाहता ।' मैंने भरपूर विरोध किया। ये जिद पर अड़ गये। उस वक्त मेरी एक न चली जब इन्होंने मुझे अपनी कसम दे दी । तब मैंने शर्त रखी — ठीक है, वही होगा जैसा आप चाहेंगे मगर मेरी भी एक शर्त है।' इन्होंने पूछा – ‘क्या ? मैं दरवाजा अंदर से खुला रखने की शर्त रखी ताकि जब चाहूं, इनकी खैरियत के बारे में जान सकूं।”


“यानी आप रात को इन्हें चेक करती रहती थी ?”


“रोज तो नहीं लेकिन अक्सर चैक करती थी । आंख खुलने पर तो जरूर ही आती थी यहां । किसी रात आंख न खुलती तो नहीं भी आती थी और...पिछली रात उन्हीं मनहूस रातों में से एक थी।” 


“आज सुबह आप किस वक्त सोकर उठीं?”


“सात बजे। तब, जब आफताब दीनू काका और भागवती ने बैल बजाई। अपने कमरे से निकलकर, मैंने सबसे पहले इनके लिए विला का मुख्य दरवाजा खोला । यह रोज का रुटीन है। नौकर लोग सुबह सात बजे ही विला में आते हैं। मैंने अपनी और राजदान साहब की चाय बनाने के लिये कहा तथा इस कमरे की तरफ बढ़ गई। खोलने के लिये दरवाजे पर दबाव डाला तो चौंकी । यह अंदर से बंद था। मैं चकरा गई। दरवाजा खटखटाया । आवाज़े लगाई । अंदर से कोई जवाब नहीं मिल रहा था । मैं घबरा गई । जोर-जोर से आवाजें देने लगी। पीटने लगी दरवाजे को । शोर की आवज सुनकर किचन से आफताब आदि और अपने कमरे से हड़वड़ाये हुए देवांशा गैलरी में पहुंचे। मेरी प्रॉब्लम पूछी। ये लोग भी डर गये। मेरा साथ देने लगे। जब तब भी अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो हम सबने दरवाजे पर प्रहार करने शुरू कर दिये । चटकनी टूट गई । दरवाजा खुला और इस दृश्य को देखते ही सबकी चींख निकल गई।” 


“होश सम्भालने के बाद मैंने थाने फोन किया ।” बात देवांश ने पूरी की। ।


“यानी खुद को गोली मारने से पहले इन्होंने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था।”


कोई कुछ नहीं बोला।


राणा दिव्या और देवांश के नजदीक पहुंचा। बोला— “क्या तुम बता सकते हो, राजदान साहब ने ऐसा क्यों किया?” 


“अपनी बीमारी से परेशन थे भैया ।” देवांश ने वही कहना शुरू किया जो ठकरियाल ने पढ़ाया था— “शायद उसी से निजात पाने के लिये...”


सेन्टेन्स अधूरा छोड़कर वह रो पड़ा।


कुछ देर खामोश खड़ा रणवीर राणा उसे देखता रहा । फिर दिव्या की तरफ पलटकर सवाल किया – “बीमारी क्या थी राजदान साहब को ?”


जवाब देने से पहले दिव्या उस वक्त 'अटकने' का नाटक कर रही थी जब भट्टाचार्य ने कमरे में कदम रखते हुए कहा – “एस. एस. पी. साहब, राजदान को एड्स था ।”


“एड्स?” राणा चौंका। उधर, ठकरियाल ने भी अपने चेहरे पर ऐसे भाव आमंत्रित किये जैसे यह भेद अभी-अभी पता लगा हो। राणा ने भट्टाचार्य से पूछा – “आपका परिचय?”


“राजदान का डॉक्टर कम, दोस्त ज्यादा ।” कहते वक्त उसने लाश की तरफ देखा ।


चेहरे पर विषाद के भाव थे । बड़बड़ाया – “आखिर चला ही गया तू?”


“मेरे ख्याल से ज्यादा गहराई में जाने की जरूरत नहीं बची है सर ।” ठकरियाल ने कहा- -“सब कुछ शीशे की तरफ साफ है। ‘फ्रैश्वेशन’ में फंसे राजदान साहब ने ...


“एक मिनट!” राणा ने उसकी बात काटी— “एक मिनट इंस्पैक्टर !” कहते वक्त राणा की नजर बाथरूम के दरवाजे के डंडाले पर स्थिर थी। वह आहिस्ता आहिस्ता उसकी तरफ बढ़ा। नजदीक पहुंचकर ठिठका और तेजी से पलटकर फिंगर प्रिन्ट्स एक्सपर्ट से कहा – “सारे काम छोड़कर सबसे पहले इस डंडाले पर से अंगुलियों के निशान उठाओ।” 


“यस सर!” कहकर वह बाथरूम के दरवाजे की तरफ लपका।


किसी और की समझ में आ रहा हो या न आ रहा हो मगर ठकरियाल अच्छी तरह जानता था इस वक्त एस. एस. पी. के दिमाग में क्या घुमड़ रहा है?


वही!


ठीक वही हो रहा था जो वह चाहता था ।


जिसके बीज उसने बोये थे ।


जी चाहा- -जोर से ठहाका लगाये । दिल खोलकर हंसे ।


मगर ।


ऐसा किया नहीं उसने ।


फिर भी, रोकने की भरसक चेष्टाओं के बावजूद एक धूर्त सी मुस्कान भद्दे होठों पर आखिर उभर ही आई । होठों ही होठों में वह उस मुस्कान को छुपाये रहा ।


फिंगर प्रिन्ट्स एक्सपर्ट अपना काम कर रहा था।


राणा के एक साथ दिव्या, देवांश और नौकरों पर नजरें गड़ाकर कहा- -“अच्छी तरह याद करके बताओ जब तुम दरवाजा तोड़कर कमरे में आये, क्या तब भी यह डंडाला । इसी पोजीशन में था, छेड़ा तो नहीं था इसे किसी ने?” 


“नहीं।” देवांश ने कहा । - 


आफताब बोला—“हममें से किसी को इतना होश ही कहां बचा था साब । साब की लाश पर नजर पड़ते ही घिग्घी बंध गई । हाथ-पांव कांपने लगे थे हमारे।”


फिंगर प्रिन्ट्स सक्सपर्ट अपना काम पूरा करके दरवाजे के नजदीक से हटा ।


रणवीर राणा ने तब भी डंडाले को नहीं छुआ। अपने जूते के हल्के से प्रेशर से दरवाजा खोला | ड्रेसिंग में कदम रखने से पहले ठिठका और फिर किसी को भी अपने पीछे न आने की चेतावनी देने के बाद दरवाजे के पीछे गुम हो गया।


कमरे में खामोशी छाई रही ।


दिव्या और देवांश ने चोर नजरों से ठकरियाल की तरफ देखा ।


उसके होठों पर मुस्कान देखकर सकपका से गये दोनों।


क्या आदमी था कम्बख्त | जरा भी तो टेंशन में नजर नहीं आ रहा था ।


यह सही है, अभी तक हर कदम पर सिर्फ और सिर्फ वही हो रहा था जिसके बारे में ठकरियाल पहले ही बता चुका था कि होगा एस. एस. पी. फलां-फलां सवाल पूछेगा और उन्हें 'ये-ये' जवाब देने हैं। बावजूद इसके यह सोचकर अंदर ही अंदर हिले हुए थे दोनों कि जाने किस स्पॉट पर क्या गड़बड़ हो जाये परन्तु ठकरियाल दूर-दूर तक ऐसी किसी टेंशन में नजर नहीं आ रहा था ।