टेलीफोन की घण्टी की आवाज़ परवेज के कानों में पड़ी थी और उसने अपना सर हसीना के भारी वक्षों के बीच यूं छिपा लिया मानों इस तरह उस आवाज़ को सुनने से बचने की कोशिश कर रहा था ।



फिर अचानक फारूख की गरजती आवाज़ ने पूरे घर को जगा दिया ।



–"अनवर, नीचे आओ । हरामजादों ने पैराडाइज क्लब तबाह कर दिया...फौरन बाहर आओ, अनवर ।"



* * * * * *



वॉक्स वैगन में बैठे निगरानी करते यासीन और मंसूर ने घर की तमाम लाइटें ऑन होती देखीं तो खुश हो गये ।



–"काम हो गया ।" यासीन बोला ।



–"अब हमें अपना काम करना है ।" मंसूर मुस्कराया ।



–"बेशक ! लेकिन रंडी की औलाद के जाने तक सब्र करना होगा ।"



–"जानता हूं ।"



* * * * * *



अनवर तौलिये से अपनी नग्नता को लपेटे फारूख के अपार्टमेंट की लैंडिंग पर उसके सामने खड़ा था ।



जब हसीना बेगम अपने कमरे से निकली उन दोनों के चेहरे गुस्से से तमतमाये हुए थे और वे बुरी तरह चीख रहे थे ।



बासठ वर्षीया हसीना बेगम की उम्र का सही अंदाजा लगा पाना नामुमकिन था । देखने में वह पैंतालीस से ज्यादा की बिलकुल भी नहीं लगती थी । ऊंचा और सीधा तना शरीर कंधों या पीठ में झुकाव का कोई चिन्ह नहीं था । असाधारण रख–रखाव के कारण चेहरे पर कोई झुर्री तक नहीं । आंखों के इर्द–गिर्द हल्की स्याह गोलाइयां । संभवतया उसकी बहुत ज्यादा अय्याशी का नतीजा थी । लेकिन उनसे आकर्षण में कोई कमी नहीं आयी । त्वचा, साफ और चिकनी थी । बस कोहनियों पर हल्की सिकुड़नें थीं, जिन्हें वह बड़ी सफाई से कमीज या गाउन की आस्तीन में छिपाकर रखती थी । फारूख और अनवर की काले धंधों की कमाई का खासा पैसा बरसों से वह अपने शरीर की देखभाल और रख–रखाव पर खर्चती आ रही थी ।



भरे–भरे उसके वक्षों का आकार काफी बड़ा था फिर भी उसकी फीगर संतुलित थी । जिस्म का कसाव और नितंबों के उभार लगभग उतने ही पुष्ट और सुडौल थे जैसे कि तीस साल की उम्र में थे । बाल अभी भी घने और चमकीले थे, जिन्हें वह कंधों पर फैलाकर रखती थी । डाई किये जाने के बावजूद वे कुदरती काले नजर आते थे ।



फ्रिल वाला गुलाबी रेशमी गाउन पहने दरवाजे में खड़ी रात में इस वक्त भी वह आकर्षक नजर आ रही थी । उसके पीछे उनींदा–सा परवेज खड़ा था ।



हसीना कुपित निगाहों से फारूख और अनवर को घूर रही थी ।



–"यह सब क्या हो रहा है ?" तीव्र स्वर में बोली–"क्या मैं अपने घर में भी चैन से नहीं सो सकती ? तुम लोग क्यों पागलों की तरह चीख रहे हो ?"



मानों एकाएक दोनों भाइयों के स्विच ऑफ कर दिये गये ।



–"मुसीबत आ गयी है, अम्मीजान !" अनवर अपेक्षाकृत सामान्य स्वर में बोला ।



–"मुसीबत ?" हसीना गुर्रायी–"तुम दोनों हमेशा मुसीबत ही तो लाते रहे हो ।" फिर उसकी निगाहें पहली बार उन दोनों लड़कियों पर पड़ी जो सफेद चेहरे लिये सीढ़ियों पर खामोश खड़ी थी–"ओह, तो मुसीबत की जड़ ये दोनों हैं । इन्हें तो देखकर ही लगता है ये किसी भी आदमी के नीचे बिछने काबिल नहीं हैं । कहां से उठाकर लाये हो इस गंदगी को ?"



–"इन लड़कियों ने कुछ नहीं किया, अम्मीजान ! मैं क्लब की बात कर रहा हूं ।" अनवर का चेहरा पुन: गुस्से से सुर्ख हो गया–"पैराडाइज क्लब की...किसी कमीने ने वहां बम रख दिया ।"



–"तो इसमें हैरानी की क्या बात है ?" हसीना पुनः दोनों लड़कियों की ओर सर हिलाकर बोली–"इन्हीं के किसी पुराने खसम की हरकत होगी ।"



–"क्लब में आग लगा दी गयी, अम्मीजान !"



–"किसी को तुममें भी आग लगा देनी चाहिये थी । अभी भी बेहतर होगा इन कुतियों की दुम में आग लगाकर इन्हें दफा कर दो ।"



–"अम्मीजान, क्लब ज्यादा अहम है । सारा कैश वहीं रहता है । हमारी कमाई का सबसे बड़ा जरिया है ।"



–"तो फिर यहां खड़े क्यों चीख रहे हो ? जाकर उस हरामजादे का पता लगाओ या तुम इतना भी नहीं कर सकते, घामड़ों ?"



–"मैंने गुलशन को बुला लिया है ।" फारूख मुंह बनाकर बोला–"यह बलदेव की ज़िम्मेदारी है । हम उसी से बात करने जा रहे हैं ।"



–"तो फिर जाते क्यों नहीं, सूअर की दुम । तुम दोनों यहां से दफा हो जाओ । मुझे और परवेज को आराम से सोने दो । नींद हराम कर दी हमारी तुम लोगों ने और हां, अपनी मुहब्बत की इन शमाओं को मेरे घर में छोड़कर मत जाना ।"



–"ये दोनों ऊपर रहेंगी, अम्मीजान ! तुम्हारे पास भी नहीं फटकेंगी । तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी इनसे ।"



हसीना बेगम जानती थी उसके अधिकार की सीमा कितनी थी । कहां तक जा सकती थी । यह एक खेल था जिसे तीनों मुद्दत से खेलते आ रहे थे । वह सिर्फ एक हद तक ही दोनों भाइयों को डांट–फटकार लगा सकती थी । खरी–खोटी सुना सकती थी । उससे आगे दोनों भाइयों के मुंह से निकले अल्फाज ही आखिरी कानून होते थे ।



वह मुंह बिसूरकर पांव पटकती हुई पलटी और भड़ाक से दरवाज़ा बंद कर लिया ।



* * * * * *



यासीन और मंसूर की निगाहें हसन हाउस पर टिकी थीं ।



इम्पाला वहां आकर रुकी ।



हसन भाई प्रवेश द्वार से निकले । दौड़ते हुये सीढ़ियों से नीचे आकर कार में सवार हुये और कार उन्हें लेकर चली गयी ।



दोनों ने पूरे दस मिनट इन्तजार किया ।



यासीन वॉक्स वैगन का इंजिन स्टार्ट करके गियर न्युट्रल में फंसाकर नीचे उतरा ।



मंसूर ने भी उसका अनुकरण किया । वह अब ढीला–सा ओवरकोट पहने था और यासीन से दो कदम पीछे था ।



दोनों हसन हाउस के प्रवेश द्वार पर पहुंचे ।



यासीन ने गेट पर बैल बटन दबाया ।



कोई डेढ मिनट बाद पहली मंज़िल पर रोशनी नजर आयी । फिर भड़ाक से खिड़की खोली गयी । हसीना बेगम ने सर बाहर निकालकर झांका ।



–"घण्टी बजाना बंद करो । कौन हो तुम ?"



–"पुलिस, मैडम !" यासीन भारी स्वर में बोला ।



–"क्या चाहते हो ?"



–"परवेज अहमद से मिलना ।"



–"क्यों ?"



–"उससे पूछताछ करनी है ।"



–"किस सिलसिले में ?"



–"यह उसी को बताया जायेगा ।"



–"ठीक है ।"



हसीना बेगम पीछे हटी ।



खिड़की बंद कर दी गयी ।



चंदेक सैकेंड पश्चात् ।



नीचे प्रवेश हॉल में लाइट ऑन की गयी ।



हसीना बेगम दरवाज़ा खोलकर प्रगट हुई । उसके पीछे परवेज अहमद खड़ा था–हैरान और परेशान–सा ।



हसीना के माथे पर बल पड़े थे । एक ही रात में दूसरी बार बेवक्त जगायी जाने के कारण कुपित थी ।



–"यह सब क्या है ?"



यासीन ने अदालत की मोहर लगा फर्जी वारंट आर्डर निकालकर दिखाया ।



–"हमें परवेज अहमद की तलाश है ।"



हसीना या परवेज को कोई शक नहीं हुआ ।



यासीन देख चुका था परवेज के पीछे सीढ़ियों पर दो लड़कियाँ भी पास–पास खड़ी थीं ।



हसीना को धीरे से दायीं ओर हटाकर परवेज आगे आ गया ।



–"मुझसे मिलना है ?"



–"तुम्हीं परवेज अहमद हो ?"



–"हाँ ।"



यासीन मुस्कराकर एक तरफ हट गया ।



दायां हाथ ओवरकोट के अंदर घुसेड़े मंसूर भूत की तरह पीछे से निकलकर सामने आ गया ।



अचानक हसीना को लगा कोई गड़बड़ थी । लेकिन इससे पहले कि कुछ कर पाती मंसूर के ओवरकोट से निकली शॉटगन की नाल परवेज की छाती में आ गड़ी और लगातार दो फायरों की आवाज़ गूँज उठी ।



बारूद की गंध फैल गयी ।



हसीना चीख पड़ी । फिर दोनों लड़कियों की चीखें भी उसमें शामिल हो गयीं ।



परवेज की छाती में बने झरोखों से खून उबल पड़ा । वह पीछे सीढ़ियों के नीचे गिरकर ढेर हो गया ।



हसीना चीखती हुई उसकी ओर झपटी ।



भयभीत नजमा और माला एक–दूसरी से चिपटकर रह गयीं ।



सब कुछ चंदेक पलों में ही हो गया ।



यासीन और मंसूर पलटकर तेजी से वॉक्स वैगन की ओर लौट गये ।



हसीना की चीखें कराहों और लम्बी सिसकियों में बदलकर रह गयीं ।



* * * * * *



रंजीत मलिक को सुबह साढ़े सात बजे फोन पर उस नई जगह का एड्रेस और फोन नम्बर बताया गया जहां से वे आप्रेशन शुरू करने वाले थे ।



पिछली रात एस० पी० वर्मा ने तय किया था कि इस आप्रेशन को पुलिस हैडक्वार्टर्स से चलाना ठीक नहीं रहेगा । इसलिये ए० सी० पी० दीवान ने वर्मा की टीम को सर्कुलर रोड पर नई खाली पड़ी ऑफिस बिल्डिंग में पूरा चौथा खण्ड मुहैया करा दिया था । रात में, ही तमाम जरूरी चीजें और दूसरी सहूलियात भी जुटा दी गयीं ।



रंजीत मलिक ठीक पौने नौ बजे इमारत में दाखिल हुआ । एक युवक कांस्टेबल के साथ लिफ्ट में सवार होकर फोर्थ फ्लोर पर पहुंच गया ।



वहां कई हॉलनुमा कमरे थे और सभी की खिड़कियां बिजी मेन रोड पर खुलती थीं ।



मेनहॉल में डेस्कों की तीन कतारें थीं । सभी पर टेलीफोन उपकरण रखे थे । जिनमें से अधिकांश बिजी थे । दूसरे सिर पर दीवार में दो बड़े ब्लैक बोर्ड लटके थे । एक कोने में टेलीफोन स्विच बोर्ड पर आप्रेटर बैठी थी ।



एस० आई० तोमर दरवाजे के पास ही डेस्क पर एक और आदमी के साथ बैठा था । वे दोनों प्लास्टिक शीट के बने विभिन्न प्रकार के चेहरे के हिस्सों ठोढ़ियों, गालों, मुंह, नाक, भवों, कानों, माथे, बालों वगैरा को मिलाकर किसी खास चेहरे की शक्ल देने की कोशिश कर रहे थे ।



–"वर्मा साहब कहां हैं ?" रंजीत ने पूछा ।



तोमर ने एक ओर भीतरी दीवार में बने दरवाजे की ओर इशारा कर दिया ।



–"आपका ही इंतजार हो रहा है । मॉर्निंग कांफ्रेंस के लिये ।"



उसके स्वर में ऐसी खीज थी मानों उसे डिस्टर्ब कर दिया गया था ।



रंजीत उधर ही बढ़ गया ।



दरवाजे पर एस० पी० वर्मा के नाम की तख्ती लगी थी ।



रंजीत हौले से दस्तक देकर अंदर चला गया ।



वर्मा के डेस्क पर कई टेलीफोन उपकरण रखे थे । उसके अलावा वहां मौजूद कोई दर्जन भर आदमियों में से कुछेक को रंजीत ने पहचाना । दो इंसपेक्टर–आगजनी और बम केसों के एक्सपर्ट, चार अफसर जो फ्रॉड के केस हैंडल करते थे और दो नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के थे । कुछेक ऐसे लोग भी थे, जिन्हें वह सिर्फ शक्ल से पहचानता था ।



–"गुड मॉर्निंग, सर !"



–"गुड मॉर्निंग !" वर्मा बोला–"आओ, बैठो ।"



तभी दरवाजे पर दस्तक देकर तोमर अंदर आया ।



वर्मा ने सवालिया निगाहों से उसे देखा ।



–"बात बनी ?"



–"तकरीबन, सर ! लेकिन नाक और होंठ ठीक नहीं बैठ पा रहे हैं । हमें थोड़ा वक्त और चाहिये ।"



रंजीत को लगा मानों वह कोई अजनबी था, जिससे जानकारी छिपाई जा रही थी ।



–"ठीक है ।" वर्मा ने कहा फिर सबको एक साथ सम्बोधित करता हुआ ऊंची आवाज़ में बोला–"जेंटलमैन, अब तक आप लोग समझ गये होंगे कि इस आप्रेशन की मेरी इन्वेस्टीगेशन टीम के आप सब अहम हिस्से हैं । हमारे लिये साथ मिलकर और सूचनाओं को आपस में शेयर करके काम करना जरूरी है । इसलिये तुम्हें रोशन लाल और तुम्हें कमल किशोर मैंने तुम्हारी ब्रांचों से बुलाया है ।"



रंजीत उन दोनों को जानता था । रोशन लाल सेंट्रल पूल से था । और कमल किशोर की स्पेशलिटी थी–एक्सप्लोसिव्ज और आरसन । वह समझ गया मामला बहुत ही संगीन हो चुका था, इसलिये यह नया हैडक्वार्टर्स बनाया गया था ।



–"मैं सब कुछ सिलसिलेवार बताता हूं ।" वर्मा का कथन जारी था–"एस० आई० तोमर ने कल रात हसन भाइयों से पूछताछ की थी । आप सब लोग जानते हैं, हम पहले ही स्थापित कर चुके हैं उनके और राकेश मोहन के बीच संबंध थे और उनके और होटल अकबर में पाई गयी दोनों आदमियों की लाशों के बीच भी । हालांकि हसन भाइयों ने राकेश को जानते होने से तो साफ इंकार कर दिया है लेकिन विक्टर और लिस्टर को जानते होने की बात कबूल की है । उनका कहना है दुबई के एक रेस्टोरेंट और क्लब चलाने वाले अब्दुल तारिक ने उनसे परिचय कराया था । अभी तक दोनों हसन भाइयों में से किसी से भी पुलिसकार को बम से उड़ाने या विक्टर और लिस्टर को शूट किये जाने के वक्त की उनकी गतिविधियों के बारे में पूछताछ नहीं की गयी है लेकिन हमारे पास एडिशनल इन्फारमेशन है । एस० आई० तोमर इस बारे में बताओ ।"



तोमर अपनी नोटबुक हाथ में लेकर खड़ा हो गया । वह हमेशा नाटकीय अंदाज में जानकारी पेश किया करता था ।



–"मैंने कल रात आठ बजकर पांच मिनट पर पैराडाइज क्लब में फारूख और अनवर हसन से मुलाकात की थी । उस वक्त तीन लड़कियाँ भी वहां मौजूद थीं–अफरोज, टीना और नजमा । अफरोज तीन बार वेश्यावृत्ति के जुर्म में सजा काट चुकी है । नजमा, रहमत अंसारी नाम के उस आदमी की बेटी है, जो करीब सोलह साल पहले जगतार सिंह के अपहरण कांड का इकलौता गवाह था । आप लोगों ने उसके बारे में हसन भाइयों की उन फाइलों में जरूर पढ़ा होगा, जो इस इन्वेस्टीगेशन में शामिल सभी अफसरों को दी जा चुकी है । टीना, एक कमसिन लड़की है और उसके बारे में कोई जानकारी हमारे पास नहीं है ।" वह अपनी नोटबुक का पेज पलटकर बोला–"उस मुलाकात के दौरान असगर अली भी वहां मौजूद था । इस आदमी का कोई पुलिस रिकार्ड तो नहीं है लेकिन उसे हसन भाइयों का भरोसेमंद साथी समझा जाता है । कोई चार साल से वह उनके साथ जुड़ा हुआ है । मैंने उसके बारे में छानबीन करके पता लगाया है वह आर्मी में कैप्टेन हुआ करता था बम डिस्पोजल और एक्सप्लोसिस एक्सपर्ट । उसका कोर्ट मार्शल हुआ और उसे सेना से निकाल दिया गया । उसके खिलाफ ठोस सबूत तो नहीं मिले लेकिन उसके अफसरों को यकीन था वह एक्सप्लोसिव्ज और डेटोनेटर चुराकर बेचा करता था...ये तथ्य काफी दिलचस्प नजर आते हैं, खासतौर पर पुलिस कार को बम से उड़ाने और आज सुबह सवेरे हुई पहली वारदात के नज़रिये से ।"



तोमर अपनी नोटबुक बंद करके बैठ गया ।



रंजीत मलिक चकराया । उसके मन में बेचैनी भरा हल्का–सा अपराध भाव था । वह सोचने लगा–तोमर ने इस बार भी अपनी होशियारी, चुस्ती और अनुभव के दम पर अकेले ही जल्दी और सही नतीजा निकाल लिया था । वह एक हद तक तोमर को अपने लिये चुनौती समझता था । अब उसे पहली बार अहसास हुआ कि पिछले कुछेक हफ्तों से वह खुद पूरी तरह काम में मन नहीं लगा पा रहा था । सूजी द्वारा एंगेजमेंट तोड़ दिये जाने का वाक़या उस पर हर लिहाज से भारी पड़ा था । वह बस जरूरी काम निपटाने की ड्यूटी कर रहा था । अपनी अनोखी सूझबूझ और तार्किक बुद्धि को इस्तेमाल करके वो खास तरीके नहीं अपना रहा था जिन्हें उसके अफसर तो पसंद नहीं करते थे लेकिन वह उनके जरिये सालिड नतीजे निकालकर समस्या को हल कर लिया करता था । मसलन, पिछली रात रजनी राजदान के साथ और ज्यादा वक्त गुजारकर कोई नई और ठोस जानकारी हासिल की जा सकती थी ।



–"आज सुबह–सवेरे क्या हुआ ?" उसे पूछना ही पड़ा ।



–"पैराडाइज क्लब जला दिया गया ।" तोमर ने दबी जबान में कहा ।



–"तो इसे पहली वारदात क्यों कहा तुमने ?"



–"क्योंकि इसके बाद एक और भी वारदात हुई थी ?"



–"क्या ?"



–"परवेज अहमद को शूट कर दिया गया ।"



–"तुम्हारा मतलब है वो लड़का जो हसन भाइयों के साथ रहता है और जिसे वे अपना सगा छोटा भाई मानते हैं ।"



"हां ! दो आदमी आज सुबह करीब छः बजे उसके पास पहुंचे । खुद को पुलिस अफसर बताया और शॉटगन से दो गोलियां मार दीं ।"



–"कहां ?"



–"हसन हाउस में ।"



–"वह मर गया ?"



–"तब तक तो नहीं । लेकिन हालत इतनी ज्यादा सीरीयस थी कि बाद में मर गया ।"



उन दोनों की कानाफूसी से वर्मा को खीज आ गयी ।



–"साईलेंस !" क्लासरूम में किसी टीचर की भांति डांटकर बोला–"कमल किशोर, अब तुम बताओ ।"



कमल किशोर की उम्र तीसेक साल थी । लेकिन ऊँचे कद के बावजूद वह तोंदियल होना शुरू हो चुका था । इसकी बड़ी वजह थी–करीब छ: बोतल बीयर रोजाना पीना । अपनी इस आदत को शौक का नाम देने के बावजूद वह अपने काम में कभी कोई गफलत नहीं करता था । उसका फील्ड था बम, बारूदी सुरंगों और दूसरे विस्फोटक पदार्थों से किये जरायम की जांच करना । इसके अलावा आगजनी और आग लगाने के लगभग सभी तरीकों की बारीकियों से भी बखूबी वाक़िफ़ था । चाहे आग किसी को नुकसान पहुंचाने के इरादे से लगायी गयी हो या इंश्योरेंस कम्पनी से फर्जी क्लेम वसूलने के लिये ।



उसने बड़े ही सपाट लहजे में रिपोर्ट देना आरंभ किया ।



उसे सुबह छ: बजे के बाद फोन पर इत्तिला दी गयी और पैराडाइज क्लब पहुँचने के लिये कहा गया था ।



क्लब की लेआउट का संक्षिप्त विवरण देने के बाद उसने आग लगने से हुये भारी नुकसान का ब्यौरा दिया ।



उसके मुताबिक, जब वह घटनास्थल पर पहुंचा, उस इलाके का एस. एच० ओ० भी वहीं था और इस बात के साफ सबूत और स्पष्ट चिन्ह भी मौजूद थे कि आग किसी बारूदी चीज के फटने से लगी थी ।



–"हमारी टीम भी वहां काम कर रही थी । वह बोला–"लेकिन इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है कि आग लगाने की शुरूआत मेन क्लॉक रूम से हुई थी ।



फिर उसने बताया जब वह घटनास्थल पर पहुंचा एस० एच० ओ० और उनके दो मातहत एक आदमी को जबरन रोकने की कोशिश कर रहे थे । बाद में पता चला वह क्लब का मालिक था–बलदेव मनोचा और वह इमारत के टॉप फ्लोर पर अपने ऑफिस में पहुँचने के लिये इस बुरी तरह मरा जा रहा था कि अपनी जान की परवाह भी उसे नहीं थी । उसे खतरों से आगाह कराया गया लेकिन वह अपनी जिद और ज़बरदस्ती करने पर अड़ा रहा ।



तब तक आग बुझायी जा चुकी थी । इसलिये हमने उसे वहां पहुंचाने का फैसला कर लिया । मैं और एस० आई० बवेजा इमारत के पृष्ठभाग में लगी फायर एस्केप के जरिये उसे साथ लिये ऊपर चले गये । वहां घुटन, नमी भरी तपिश और धुएँ की बू का माहौल था । दीवारों और छत पर कालिख थी । वॉल और फ्लोर कारपेट, फर्नीचर वगैरा जलकर राख हो चुके थे । मनोचा ने चारों ओर निगाहें दौड़ाई और वह राहत महसूस करता नजर आया । मुश्किल से दो मिनट बाद ही उसने वापस चलने को कहा तो मुझे और ज्यादा अजीब लगा । मैंने उससे कहा अगर वह अपने इम्पोटेंट पेपर्स, लेजर, डाक्युमेंट्स वगैरा के लिये परेशान है तो उन्हें यहां से निकाल ले । उसने पहले मुझे टालना चाहा फिर थोड़ा उत्तेजित हो गया । मैंने उसे समझाया–हालांकि मैटल केबिनेट जैसी सेफ देखने में सुरक्षित नजर आ रही थी फिर भी अंदर रखी चीजों को अहतियातन चेक करना जरूरी है । उसने चाबियां पास में न होने का बहाना करके फिर टालने की कोशिश की । तब मैंने थोड़ा टेढ़ा रुख अख्तियार करते हुये उसे चेतावनी दी–इस तरह के आगजनी के मामलात में हमें क़ानूनन अधिकार हैं कि कीमती वस्तुओं को घटनास्थल से हटा दिया जाये । इसलिये हम सेफ कम्पनी से डुप्लीकेट चाबियां आसानी से हासिल कर सकते हैं । उस हालत में वे कीमती वस्तुएँ मामले की जांच पूरी होने तक हमारे कब्ज़े में रहेंगी...।"



वर्मा के अलावा वहां मौजूद लगभग सभी अफसर मुस्कराने पर विवश हो गये । वे सब जानते थे ऐसा कोई अधिकार उनके पास नहीं था ।



–"मेरी यह पुड़िया काम कर गयी ।" कमल किशोर का कथन जारी था–"मनोचा ने जल्दी–जल्दी जेबें टटोलने का नाटक किया । फिर इस ढंग से चाबियां निकाली जैसे सचमुच भूल गया था कि चाबियां उसी के पास थीं । उसने तमाम जरूरी पेपर्स, लेजर्स वगैरा निकालकर एक बड़े से ब्रीफकेस में पैक कर लिये । उनके अलावा करीब तीस लाख रुपये नगद भी वहां से निकले ।"



कमल किशोर ने गिलास उठाकर पानी पीया । फिर यूं मुस्कराया मानों आगे वाक़या ज्यादा दिलचस्प था ।



–"तुम्हें इतना पैसा यहां नहीं छोड़ना चाहिये ।"



–"जानता हूँ ।" परेशान मनोचा कराहता–सा बोला ।



–"क्या तुम अक्सर इतनी मोटी रकम यहां छोड़कर घर चले जाते हो ?"



–"नहीं, इस हफ्ते इसे बैंक पहुंचाने का मौका नहीं मिला ।"



–"गलत पॉलिसी है । अगर किसी चोर या लुटेरे को पता चल जाये तो आसानी से चुरा सकता है ।"



एस० आई० बवेजा उस वक्त फायर एस्केप पर था और उन दोनों की बातें नहीं सुन सकता था ।



–"क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो ?" मनोचा ने राजदाराना लहजे में पूछा ।



–"वो तो हम कर ही रहे हैं ।"



–"एक और खास मदद ?"



–"जरूर करेंगे, बोलो ।"



–"भूल जाओ कि इन चीजों को यहां देखा था । पांच लाख !"



–"लेकिन इतनी सारी चीजों को मैं कैसे भूल सकता हूं ?'



–"सात लाख !"



–"क्या ?"



–"रुपये ! अभी और यहीं ।"



–"सॉरी ।"



–"दस लाख ।"



–"ओह, मुझे रिश्वत देने की कोशिश कर रहे हो ?"



–"न...नहीं !" मनोचा कलपता–सा बोला–"मुझे यहां पहुंचाने की तुम्हारी मदद और मेहरबानी के लिये यह महज नजराना है ।"



–"सॉरी, ऐसे नजराने मैं कबूल नहीं किया करता ।"



–"पंद्रह लाख !"



–"तुम सारी रकम ऑफर करो तो भी मैं नहीं लूँगा । क्योंकि मेरे लेने से भी कुछ बदलने वाला नहीं है । इसलिये इसे भूल जाना ही बेहतर है । अगर तुमने दोबारा जिक्र किया तो मैं तुम पर रिश्वत देने की कोशिश करने का इल्जाम लगा दूँगा...समझ गये ?"



मनोचा मन मसोसकर रह गया ।



–"ह...हां…!"



–"यहां लगी आग और इससे जुड़े हालात के बारे में तुमसे काफी पूछताछ की जानी है इसलिये तुम्हें हमारे साथ हैडक्वार्टर्स चलना पड़ेगा ।"



–"ठ...ठीक है ।"



कमल किशोर मुस्कराया ।



–"इस तरह मनोचा बेमन से रजामंद हो गया । अब वह हैडक्वार्टर्स में पूछताछ किये जाने के इंतजार में सूख रहा है ।



उसके बाद वर्मा ने रोशन लाल को रिपोर्ट देने के लिये कहा ।



रोशन लाल ने परवेज की शूटिंग के तथ्य संक्षेप में दिये । हसीना बेगम ने गहरे शोक और सदमे के बावजूद वारदात का साफ और पूरा ब्यौरा दिया था ।



लगभग सवा आठ बजे, जब रोशन लाल हसन हाउस में ही था, फारूख और अनवर भी लौट आये थे । दोनों बेहद हैरान और परेशान थे । परवेज की मौत की खबर सुनकर तो जैसे पागल हो गये । चीखते–चिल्लाते चीजें उठाकर फेंकने लगे, दीवारों पर मुक्के बरसाये और छाती पीट–पीट कर रोते रहे ।



रोशन लाल की रिपोर्ट सुनकर कुछेक पल खामोशी छायी रही ।



–"ऐसा लगता है ।" वर्मा मौन भंग करता हुआ बोला–"हमने यह इन्वेस्टीगेशन ऐसे वक्त में शुरू की है जब हसन परिवार पर दूसरी आफ़तें भी टूट पड़ी हैं ।" फिर रंजीत की ओर इशारा किया–"मेरा ख्याल है, रंजीत मलिक को आप सभी जानते हैं । यह मेरा लाइजन ऑफिसर है । हमारी इन्वेस्टीगेशन के हर एक फील्ड का काम इसी की देखरेख में रहेगा । मैं चाहता हूं आप सब अपना पूरा सहयोग इसे दें ।" उसने पुन: रंजीत की ओर देखा और दोस्ताना ढंग से मुस्कराया । फिर अपने सामने रखे पेपर्स पर नजर डालकर बोला–"अब तक की इस मामले की जानकारी में मैं थोड़ा और इज़ाफा करना चाहता हूं । रंजीत मलिक ने अकबर होटल में मारे गये दोनों आदमियों में से विक्टर की शिनाख़्त दुबई के एक माफिया मेम्बर के तौर पर की थी । इस बात की पुष्टि अब नई दिल्ली से भी हो गयी है । विक्टर सैमुअल तीन बार का सज़ायाफ्ता मुज़रिम और वहां के एक तथाकथित डॉन पीटर डिसूजा की भांजी का शौहर था । पीटर आजकल डिसूजा माफिया फैमिली का डॉन है ।"



–"एक्सक्यूज मी, सर ।" रंजीत ने टोका–"इसके बारे में मैं थोड़ी और छानबीन करना चाहूँगा ।"



–"उससे हमें फायदा होगा ?"



–"हो सकता है, सर ।"



–"ठीक है, कर सकते हो । लेकिन इतना ध्यान रखना दूसरे काम भी बहुत अहम हैं और उनको वक्त पर किया जाना जरूरी है ।"



–"जानता हूं, सर ।"



–"ओ० के० ।" वर्मा ने कहा–"अब फ्रॉड केसेज से निपटने वाले हमारे दोनों साथियों को कमल किशोर के साथ हैडक्वार्टर्स लौट जाना चाहिये । मनोचा से पूछताछ करने के लिये । तोमर तुम रोशन लाल के साथ हसन हाउस चले जाओ । तुम्हारा जाना जरूरी है क्योंकि तुमने हाल ही में हसन भाइयों से बातें की थीं ।"



तोमर का मुंह बन गया ।



–"अगर आपको एतराज न हो तो मैं पहले इस फोटो को पूरा करना चाहता हूं ।"



–"कितनी देर लगेगी ?"



–"ज्यादा नहीं । वो बस पूरा होने वाला है ।"



–"ठीक है, कर लो । बाकी सब लोग अपने रूटीन काम में लग जायें ।" वर्मा ने रंजीत की ओर देखा–"तुम फिलहाल यहीं रुकोगे ।"



–"राइट, सर ।"



सब लोग चले गये ।



–"रंजीत !" वर्मा ने सिगार सुलगाकर पूछा–"यह डिसूजा फैमिली क्या बला है ?"



–"एक माफिया परिवार है दुबई का । उनके ड्रग्स के धंधे बाहर के मुल्कों में ही चलते हैं । पीटर बहुत ही महत्वाकांक्षी किस्म का आदमी है । हेरोइन की मोटी खेप, चार पुलिस वालों सहित एक गवाह को खत्म करना, अकबर होटल में दो दुबई वासियों की हत्या, पैराडाइज क्लब का जलना और हसन भाइयों के घर में परवेज को शूट करना । यह सारा बखेड़ा उसी का फैलाया हुआ है ।"



–"तुम इससे क्या नतीजा निकालते हो ?"



–"असलियत क्या है, मैं नहीं जानता । अलबत्ता सही अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है । इस बखेड़े में डिसूजा फैमिली और हसन ब्रदर्स दोनों ही शामिल हैं । इसके लिये किसी हद तक हम भी जिम्मेदार हैं ।"



–"कैसे ?"



–"हसन भाइयों को बहुत पहले जेल में पहुंचा दिया जाता तो ये हालात पैदा ही नहीं होते ।"



–"हमारे पास जो तथ्य हैं उनसे क्या नतीजा निकलता है ?"



–"इस मामले में आप मुझसे ज्यादा तजुर्बेकार हैं, सर !"



–"फिर भी मैं तुम्हारी राय जानना चाहता हूं ।"



–"मेरा अनुमान है–हसन भाइयों और डिसूजा के बीच कोई एग्रीमेंट हुआ था । उसके मुताबिक शुरूआत हुई हेरोइन की मोटी खेप की सप्लाई से । डिसूजा ने खेप नेपाल तक पहुंचवा दी । वहां से उसे यहां लाने ओर खपाने की ज़िम्मेदारी हसन भाइयों की थी । मुनाफ़े में डिसूजा का भी मोटा हिस्सा होना था । मेरा ख्याल है, इस शुरूआत के जरिये डिसूजा इस शहर में हसन भाइयों की हुक़ूमत में अपने पैर जमाना चाहता था ।"



–"लेकिन शुरू में ही गड़बड़ हो गयी ।"



–"बड़ी भारी गड़बड़, सर !"



–"सिर्फ एक गुमनाम फोन कॉल की वजह से ।"



–"जी हां । अगर मेरा अंदाजा गलत नहीं है तो दोनों पार्टियाँ इसके लिये एक–दूसरे को ही जिम्मेदार ठहरा रही हैं । इसलिये उनके बीच ओपन वार जैसी स्थिति पैदा हो गयी है ।"



–"असलियत क्या है ? पुलिस को गुमनाम टिप देने वाला कौन था या उसने क्यों ऐसा किया ? इसका पता लगा पाना नामुमकिन है ।"



–"फिलहाल तो यही लगता है लेकिन मुझे यकीन है देर–सबेर, इन सवालों के जवाब मिल ही जायेंगे । अलबत्ता मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं पुलिस कार को बम से उड़वाने का काम हसन भाइयों का ही था ।"



–"इस यकीन की वजह ?"



–"अगर गुमनाम टिप पाकर हम लोग एक्शन में नहीं आते और माल नहीं पकड़ा जाता तो वो वारदात नहीं होनी थी । डिसूजा के लिये यह शहर नया है । जबकि हसन भाई स्थानीय अण्डरवल्ड के बादशाह समझे जाते हैं । इसलिये डिसूजा के मुकाबले में उनके पास यहां हर तरह के सोर्सेज मौजूद हैं । माल पकड़े जाने की खबर भी पहले उन्हें ही मिली होगी और क्योंकि तब तक डिसूजा बैकग्राउंड में था और राकेश मोहन हसन भाइयों का आदमी था । इसलिये उसके पकड़े जाने से सीधा उन पर खतरा मण्डराने लगा था । अगर मेरा अंदाजा गलत नहीं है तो राकेश मोहन भी अच्छी तरह जानता था, वह किसके लिये और क्या काम कर रहा था । इसलिये मौका पाते ही उसे खत्म करा दिया गया । उसकी मौत से उन्हीं को सबसे ज्यादा फायदा होना था और हुआ भी । दूसरी ओर माल पकड़े जाने से डिसूजा का नुकसान भले ही हुआ हो लेकिन राकेश मोहन से कोई खतरा उसे नहीं था क्योंकि तब तक वह पिक्चर में था ही नहीं । सबसे बड़ी बात है वह क्योंकि इस शहर में अपने पैर जमाना चाहता है इसलिये शुरूआत में ही पुलिस कार को बम से उड़वाने का रिस्क लेने की बेवकूफी उसने नहीं करनी थी । वो भी बेवजह । वो हसन भाइयों का ही काम था ।"



–"और विक्टर और लिस्टर यहां डिसूजा के हितों की देखभाल कर रहे थे ।" वर्मा सहमति सूचक सर हिलाकर बोला–"माल पकड़े जाने की ज़िम्मेदारी उन्होंने हसन ब्रदर्स पर डाल दी । इस पर उनके बीच मनमुटाव हुआ और बात बढ़ती चली गयी । नतीजतन हसन भाइयों ने उन्हें शूट करा दिया । दोनों भाई एक लम्बे अर्से से छोटे तालाब की सबसे बड़ी मछली बने हुये हैं । अपने इसी घमण्ड में ऐसी बेवकूफी कर बैठे । वे नहीं जानते थे, किससे टकरा रहे थे ।"



–"या जानना नहीं चाहते थे ।" रंजीत बोला–"लेकिन अब जान गये होंगे ।"



–"उनका सबसे बढ़िया क्लब तबाह हो गया । उन सबकी आंखों का तारा परवेज उन्हीं के घर में मार डाला गया । अगर उनकी समझ में अभी बात नहीं आयी है तो कभी भी नहीं समझ पायेंगे और मारे जायेंगे । बशर्ते कि हम उन्हें जेल नहीं भिजवा देते हैं ।"



–"इस तरह तो डिसूजा के लिये मैदान साफ हो जायेगा । इसका मतलब समझते हैं आप ?"



–"मोटा–सा अनुमान तो लगा ही सकता हूं ।"



–"अगर डिसूजा ने अपने पैर इस शहर में जमा लिये तो यह शहर तो ड्रग्स की मण्डी बन ही जायेगा, साथ ही हम लोग भी गरदन तक फंस जायेंगे । अगर आज की तारीख में हमारे विभाग में पांच परसेंट लोग करेप्ट हैं तो डिसूजा फैमिली के आने से यह परसेंटेज तेजी से बढ़ती चली जायेगी । वे लोग इतनी मोटी रकम ऑफर करते हैं कि ईमानदारी पर लालच हावी हो ही जाता है । करप्शन को महामारी की तरह फैलाकर वे लोग हमारे विभाग को ही नहीं पूरी प्रशासनिक व्यवस्था को ही भ्रष्ट कर देंगे ।" रंजीत खड़ा हो गया–"में डिसूजा फैमिली को और ज्यादा चैक करना चाहता हूं ।"



–"जरूर करो । वहां के अपने कांटेक्ट्स के जरिये करोगे या विभागीय तौर पर नार्मल चैनल से ।"



–"दोनों ही तरीकों से ।"



"ठीक है । लेकिन मैं चाहता हूं मनोचा से पूछताछ के दौरान तुम भी मौजूद रहो ।"



–"हसन भाइयों से पूछताछ के वक्त नहीं ?"



–"अभी तुम उनसे अलग ही रहो । पहले तोमर और रोशन लाल को उनसे निपटने दो ।" वर्मा मुस्कराता हुआ बोला–"फिर हम दोनों अपने पुराने तरीके से उनके साथ पेश आयेंगे ।"



–"एक नरम और दूसरा गरम !"



–"हां !"



रंजीत भी मुस्करा दिया ।



वह कुछ कहने ही वाला था दरवाजे पर दस्तक दी गयी और तोमर भीतर दाखिल हुआ । उसके हाथ में एक फ्रेम था, जिसमे प्लास्टिक के टुकड़ों को क्लिपों से जोड़कर फोटो बनायी हुई थी ।



–"सही बन गया, सर !" फ्रेम को वमो के डेस्क पर रखकर बोला ।



रंजीत ने जोड़कर बनायी गयी उस तस्वीर को देखा तो उसका मुंह लटक गया ।



मजबूत जबड़ों और घनी भौहों के नीचे सतर्क आंखों वाला सुतवां चेहरा था ।



–"यह क्या है ?"



तोमर ने उसकी ओर देखा ।



–"मेरा ख्याल है, मैं इसे पहचानता हूं लेकिन याद नहीं आ रहा है । कल रात जब मैं हसन भाइयों से मिलकर पैराडाइज क्लब से निकल रहा था तो मैंने इसे अंदर जाते देखा था ।"



–"तुम इससे मिल चुके हो ।" रंजीत का स्वर कठोर हो गया–"मैं भी मिल चुका हूं । उससे पहले भी मैं इसे जानता था । उन दिनों इसका नाम धर्मेश ठकराल हुआ करता था । कोठारी केस के सिलसिले में इससे हमारा सामना हुआ था । अब याद आया ?"



–"ओह, माई गॉड !"



–"हमारी आधी फोर्स इसके पीछे लगी थी । फिर भी यह डॉज देकर निकल गया था ।" रंजीत ने कहा । फिर वर्मा की ओर पलट गया–"यह एक और सॉलिड जानकारी है, सर ! ठकराल सौ फीसदी डिसूजा का आदमी है ।"



वर्मा कई सैकेंड शांत बैठा रहा फिर टेलीफोन का रिसीवर उठाकर एयरपोर्ट, बंदरगाह, रेलवे स्टेशन, होटलों, गैस्ट हाउस वगैरा में खुफ़िया चेकिंग के आदेश दे दिये ।



रंजीत भी जल्दी–जल्दी तीन फोन कॉल करके ऑफिस से बाहर आ गया ।



इमारत से निकलकर कार में सवार हुआ और हैड क्वार्टर्स की ओर रवाना हो गया जहां फ्रॉड केसेज के एक्सपर्ट और इंसपेक्टर कमल किशोर ने बलदेव मनोचा से पूछताछ करनी थी । अखबारों के सायंकालीन संस्करण सड़कों पर आ चुके थे । पैराडाइज क्लब में विस्फोट और आग लगने का समाचार और परवेज की हत्या की खबर सभी में मुखपृष्ठ पर छपे थे ।



हॉकर चीख रहे थे–शहर में गैंगवार...ओपन वार इन सिटी...!



इस सारे मामले से वाक़िफ़ रंजीत इसके खौफनाक अंजाम के बारे में सोच रहा था । हसन भाई और उन जैसे सभी जरायम पेशा लोग समाज और कानून एवं व्यवस्था के लिये अपने आपमें खतरनाक होते हैं । लेकिन अगर हसन भाइयों ने किसी भी माफिया परिवार के लिये जरा–सा भी दरवाज़ा खोला तो नतीजा बेहद खतरनाक होना था । जबकि मौजूदा हालात से जाहिर था फारूख और अनवर हसन ने दरवाज़ा आधा खोलने के बाद भड़ाक से दुबई सिंडिकेट के मुंह पर बंद कर दिया था । अगर वास्तव में ऐसा ही हुआ था तो जवाबी हमले के नाम पर भयानक विनाश निश्चित था ।



इस कल्पना मात्र से रंजीत के अंदर विषाद की लहर गुजर गयी । तभी बारिश की मोटी बूंदें कार की विण्डशील्ड से टकरायीं तो विषाद और ज्यादा गहरा गया ।