ख़ुलासा

एक हफ़्ते के बाद नजमा और डॉक्टर शौकत कोठी के पास बाग़ में चहलकदमी कर रहे थे।

‘‘उफ़, बहुत शरारती हो तुम नजमा...!’’ शौकत ने कहा। ‘‘आखिर बेचारे मालियों को तंग करने से क्या फ़ायदा? ये क्यारियाँ जो तुमने बिगाड़ दी हैं, माली इसका ग़ुस्सा किसी और के ऊपर उतारेगा।’’

‘‘मैंने इसलिए बिगाड़ी हैं ये क्यारियाँ, क्योंकि मैं तुम्हारा इम्तहान लेना चाहती हूँ।’’

‘‘क्या मतलब...!’’ डॉक्टर शौकत ने कहा।

‘‘यही कि तुम उनका ऑपरेशन करके उन्हें फिर ठीक कर दो।’’ नजमा ने शोख़ी से कहा।

‘‘उन्हें तो नहीं...लेकिन शादी हो जाने के बाद तुम्हारा ऑपरेशन करके तुम्हें बँदरिया ज़रूर बना दूँगा।’’

‘‘शादी...बहुत ख़ूब...शादी...तुम यह समझते हो कि मैं सचमुच शादी कर लूँगी।’’

‘‘तुम करो या न करो, लेकिन मैं तो कर ही लूँगा।’’

‘‘तो मुझे बँदरिया बनाने से क्या फ़ायदा...क्यों न तुम्हारे लिए एक बँदरिया पकड़वा ली जाय। ऑपरेशन की ज़हमत से बच जाओगे।’’

‘‘अच्छा, ठहरो, बताता हूँ...हैलो, भाई फ़रीदी। आओ– आओ, हम तुम्हारा ही इन्तज़ार कर रहे थे।’’

फ़रीदी और हमीद कार से उतर रहे थे।

‘‘नवाब साहब का क्या हाल है?’’ फ़रीदी ने शौकत से हाथ मिलाते हुए कहा।

‘‘अच्छे हैं...तुम्हें याद कर रहे थे। आओ चलो, अन्दर चलें।’’

नवाब साहब गाव तकिये से टेक लगाये, अंगूर खा रहे थे। फ़रीदी को देख कर बोले, ‘‘आओ मियाँ फ़रीदी...मैं आज तुम्हें याद कर रहा था। मैंने तुम्हें उस वक़्त देखा था जब मुझे बोलने की इजाज़त न थी। आजकल तो मेरे बेटे का हुक्म मुझ पर चल रहा है।’’

नवाब साहब ने शौकत की तरफ़ प्यार से देखते हुए कहा।

‘‘आपको अच्छा देख कर मुझे बहुत ख़ुशी है।’’ फ़रीदी ने सोफ़े पर बैठते हुए कहा।

थोड़ी देर तक इधर–उधर की बातें करने के बाद नवाब साहब ने कहा। ‘‘फ़रीदी मियाँ, तुम्हें इस बात का पता कैसे चला शौकत मेरा बेटा है?’’

‘‘मैं कहानी का बाक़ी हिस्सा आपकी ज़बानी सुनना चाहता था।’’ फ़रीदी ने कहा।

‘‘नहीं भई...पहले तुम बताओ।’’ नवाब साहब बोले।

‘‘मेरी कहानी ज़्यादा लम्बी नहीं...सिर्फ़ दो लफ़्ज़ों में ख़त्म हो जायेगी। जब मैं पहली बार सलीम से रिपोर्टर के भेस में मिला था...उस वक़्त मैंने आपके वालिद साहब की तस्वीर देख कर अन्दाज़ा लगा लिया था कि इस कोठी का कोई मेम्बर डॉक्टर शौकत को क्यों क़त्ल करना चाहता है। शौकत की शक्ल हू–ब–हू नवाब साहब मरहूम से मिलती है, लेकिन मुझे हैरत है कि जिस बात का पता डॉक्टर शौकत को नहीं था, उसका पता सलीम को कैसे हुआ?’’

‘‘शायद मैं बेहोशी के दौरान कुछ बक गया हूँगा। मुझे मालूम हुआ कि सलीम ज़्यादातर मेरे क़रीब ही रहता था। फ़रीदी मियाँ, यह एक बहुत ही दर्द–भरी दास्तान है। मैं तुम्हें शुरू से सुनाता हूँ। शौकत की माँ हमारे ख़ानदान की न थी। लेकिन वह किसी पिछड़ी जाति से भी ताल्लुक़ न रखती थी। उनमें सिर्फ़ इतनी ख़राबी थी कि उनके माता-पिता हमारी तरह दौलतमन्द न थे। हम दोनों एक दूसरे को बेहद चाहते थे, लेकिन वालिद साहब मरहूम के डर से खुल्लम-खुल्ला शादी न कर सकते थे। इसलिए हमने छिप कर शादी कर ली। एक साल के बाद शौकत पैदा हुआ, लेकिन उसकी पैदाइश के छै महीने बाद ही शौकत की माँ को एक ख़तरनाक बीमारी हो गयी। उसी हालत में वह दो साल तक ज़िन्दा रही। उसकी ख़्वाहिश थी कि वह अपने बेटे को जागीरदाराना माहौल से अलग रख कर ऊँची तालीम दिलाये। वह एक रहमदिल औरत थी। वह चाहती थी कि उसका बेटा डॉक्टरी की तालीम हासिल करके ग़रीबों की मदद करे। यह उसका ख़याल था और बिलकुल ठीक था कि जागीरदारी माहौल में पले हुए बच्चे के दिल में ग़रीबों का दर्द नहीं हो सकता। जब वह दम तोड़ रही थी तो उसने मुझसे वादा ले लिया था कि उस वक़्त तक मैं शौकत पर यह बात ज़ाहिर न करूँ जब तक वह उसकी ख़्वाहिश के मुताबिक़ एक अच्छे किरदार का मालिक न हो जाये। फिर उन्होंने शौकत को सविता देवी के सुपुर्द कर दिया। मैं खुफ़िया तौर पर सविता देवी की मदद किया करता था। ख़ुदा जन्नत नसीब करे उसे, बड़ी ख़ूबियों की मालिक थी। आखिरकार उसने शौकत के लिए जान दे दी। शौकत की माँ के इन्तक़ाल के बाद मेरा दिल टूट गया और फिर मैंने दूसरी शादी नहीं की और दुनिया यही समझती रही कि मैं ताज़िन्दगी कुँवारा ही रहा।’’

नवाब साहब ने फिर शौकत और नजमा की तरफ़ प्यार-भरी नज़रों से देख कर कहा। ‘‘अब मेरी ज़िन्दगी में फिर से बहार आ गयी है....ऐ ख़ुदा...ऐ ख़ुदा...!’’ उनकी आवाज़ रुँध गयी और आँखों में आँसू छलक पड़े।

‘‘फ़रीदी मियाँ...!’’ नवाब साहब बोले। ‘‘इस सिलसिले में तुम्हें जो परेशानियाँ उठानी पड़ी हैं, उनका हाल मुझे मालूम है। बख़ुदा, मैं तुम्हें शौकत से कम नहीं समझता। तुम भी मुझे उतने ही अज़ीज़ हो जितने कि शौकत और नजमा...!’’

‘‘यह आपकी मुहब्बत है जनाब...!’’ फ़रीदी ने सिर झुका कर धीरे से कहा।

‘‘हाँ भई...वे बेचारे प्रोफ़ेसर का क्या हुआ ?’’

‘‘वह किसी तरह रिहा नहीं हो सकता।’’ फ़रीदी ने कहा। ‘‘लेकिन मैं उसे बचाने की भरपूर कोशिश करूँगा।’’

‘‘अच्छा भई, अब तुम लोग जा कर चाय पियो। अरे हाँ, एक बात तो भूल ही गया। अगले महीने शौकत और नजमा की शादी हो रही है।’’ नवाब साहब ने नजमा और शौकत को देखते हुए कहा। ‘‘अभी से कहे देता हूँ फ़रीदी मियाँ कि तुम्हें और हमीद साहब को शादी से एक हफ़्ता पहले ही छुट्टी ले कर यहाँ आ जाना पड़ेगा।’’

‘‘ज़रूर-ज़रूर....!’’ फ़रीदी ने दोनों की तरफ़ देखते हुए कहा। ‘‘मुबारक हो...!’’

नजमा और शौकत ने शर्मा कर सिर झुका लिया।

थोड़ी देर के बाद चारों ड्रॉइंग–रूम में बैठे चाय पी रहे थे।

‘‘भई फ़रीदी, तुम कब शादी कर रहे हो’’ डॉक्टर शौकत ने चाय का घूँट ले कर प्याली मेज़ पर रखते हुए कहा।

‘‘किसकी शादी...!’’ फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला।

‘‘अपनी भई...!’’

‘‘ओह...मेरी शादी...!’’ फ़रीदी ने हँस कर कहा। ‘‘सुनो मियाँ शौकत! अगर मेरी शादी होती तो तुम्हारी शादी की नौबत न आती।’’

‘‘वह कैसे...’’

‘‘सीधी–सी बात है। अगर मेरी शादी हो गयी होती तो मैं बच्चों को दूध पिलाता या जासूसी करता। मेरा ख़याल है कि कोई शादी–शुदा शख़्स कामयाब जासूस हो ही नहीं सकता।’’

‘‘तब तो मुझे अभी से इस्तीफ़ा देना चाहिए। मैं शादी के बग़ैर नहीं रह सकता।’’ हमीद ने इतनी मासूमियत से कहा कि सब हँसने लगे।

‘‘तो फिर क्या तुम ज़िन्दगी भर कुँआरे ही रहोगे।’’ शौकत ने कहा।

‘‘इरादा तो यही है।’’ फ़रीदी ने सिगार सुलगाते हुए कहा।

‘‘भई तुम बुरी तरह सिगार पीते हो। तुम्हारा फेफ़ड़ा बिलकुल काला हो गया होगा।’’ डॉक्टर शौकत ने कहा।

‘‘अगर सिगार भी न पियूँ तो फिर ज़िन्दगी में रह ही क्या जायेगा।’’

‘‘तो यह कहिए कि सिगार ही को बेगम बना लिया है।’’ नजमा हँस कर बोली।

हमीद क़हक़हा मार कर हँसने लगा। बक़िया लोग सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गये। हालाँकि यह कोई ऐसा वाक्य नहीं था कि क़हक़हा लगाया जाये। लेकिन फ़रीदी, हमीद की आदत से वाक़िफ़ था। वह औरतों के फूहड़ जुमलों पर ख़ूब ख़ुश हुआ करता था।

‘‘हाँ भई फ़रीदी, यह बताओ कि तुम मरे किस तरह थे? मुझे यह आज तक मालूम न हो सका।’’ डॉक्टर शौकत ने पूछा।

‘‘यह एक लम्बी कहानी है, लेकिन मैं तुमको छोटी करके बताता हूँ। मुझे शुरू ही से सलीम पर शक था, लेकिन मैंने शुरू ही में एक बुनियादी ग़लती की थी, जिसकी बिना पर मुझे मरना पड़ा। हालाँकि मैं पहले से जानता था कि नेपाली का क़ातिल हम लोगों का पीछा कर रहा है और वह हम लोगों को अच्छी तरह पहचानता है। इस सिलसिले में मुझसे जो ग़लती हुई वह यह थी कि मैं सलीम से रिपोर्टर के भेस में मिला था। वह मुझे पहचान गया और उसने वापसी पर मुझ पर राइफ़ल से फ़ायर किया, लेकिन नाकाम रहा। उसने राइफ़ल प्रोफ़ेसर के हाथ में थमा दी और ख़ुद ग़ायब हो गया। प्रोफ़ेसर के बारे में तो तुम जानते हो कि वह कुछ पागल–सा है। सलीम उसे अपना हथियार बनाये हुए था। कई साल की बात है जब प्रोफ़ेसर यहाँ नहीं आया था और अच्छा-ख़ासा था, वह उन दिनों एक प्रयोग कर रहा था। उसने चाँद का सफ़र करने के लिए एक ग़ुब्बारा बनाया था। प्रयोग के लिए उसने पहली बार अपने असिस्टेंट नईम को उस ग़ुब्बारे में बिठा कर उड़ाया, शायद नईम ग़ुब्बारे को उतारने की कला भूल गया था या यह कि उसकी मशीन ख़राब हो गयी थी। ग़ुब्बारा फिर प्रोफ़ेसर के ख़याल से ज़मीन की तरफ़ कभी न लौटा, हालाँकि उसका ख़याल ग़लत था। नईम ग़ुब्बारे समेत मद्रास के एक गाँव में गिरा। उसे काफ़ी चोटें आयी थीं, लेकिन गाँव वालों की देख-भाल की वजह से वह बच गया। उसी दौरान उसे एक बाज़ारू लड़की से इश्क़ हो गया और वह वहीं रह गया। प्रोफ़ेसर इन सब बातों से अनजान था। वह ख़ुद को अपराधी समझ रहा था। इस परेशानी में वह क़रीब-क़रीब पागल हो गया। उसके बाद वह शहर छोड़ कर राजरूप नगर में आ गया। नईम ने उसे ख़त लिखे जो उसके पुराने ठिकाने से फिरते-फिराते यहाँ राजरूप नगर पहुँचे।

‘‘वे ख़त किसी तरह सलीम के हाथ लग गये और इस तरह प्रोफ़ेसर के बारे में उसे सब पता चल गया। अब उसने प्रोफ़ेसर पर अपनी धौंस जमा कर ब्लैकमेल करना शुरू किया। मुझे इन सब बातों का पता उस वक़्त हुआ जब मैं एक रात चोरों की तरह इस कोठी में दाख़िल हुआ और सलीम के कमरे की तलाशी ली। नईम के लिखे हुए ख़त अचानक मिल गये। इस तरह मैं भी सब जान गया और उसी वक़्त मैं इस नतीजे पर भी पहुँचा कि मुझ पर गोली सलीम ही ने चलायी थी, क्योंकि प्रोफ़ेसर को राइफ़ल चलाना आता ही नहीं था।

‘‘मैं कहाँ–से–कहाँ पहुँच गया।’’ उसने अपने आप से कहा फिर आगे बोलना शुरू किया, ‘‘हाँ, तो बात मेरे मरने की थी। जब मैं सलीम और डॉक्टर तौसीफ़ से मिल कर वापस जा रहा था, सलीम ने रास्ते में धोखा दे कर मुझे रोका और झाड़ियों की आड़ से मुझ पर गोलियाँ चलाने लगा। मैंने भी फ़ायर करने शुरू कर दिये। उसी दौरान अचानक मुझे अपनी ग़लती का पता चला और मैंने तय कर लिया कि मुझे किसी– न–किसी तरह यह साबित करना चाहिए कि अब मेरा वजूद इस दुनिया में नहीं, वरना होशियार मुजरिम हाथ आने से रहा। इसलिए मैंने एक चीख़ मारी और भाग कर अपनी कार में आया और शहर की तरफ़ चल पड़ा। मैं सीधा हस्पताल पहुँचा और वहाँ कम्पाउण्ड में मोटर से उतरते वक़्त ग़श खा कर गिर पड़ा। लोगों ने मुझे अन्दर पहुँचाया। मैंने डॉक्टर को अपनी सारी स्कीम बता दी और अपने चीफ़ को बुलवा भेजा। उनको भी मैंने सब कुछ बताया। फिर वहाँ से मेरे जनाज़े का इन्तज़ाम शुरू हुआ। क़िस्मत मेरे साथ थी। उस दिन इत्तफ़ाक़ से हस्पताल में एक लावारिस मरीज़ मर गया था। मेरे डिपार्टमेंट के लोग उसे स्ट्रेचर पर डाल कर अच्छी तरह ढाँक कर मेरे घर ले आये। पड़ोसी और दूसरे जानने वाले उसे मेरी लाश ही समझे। मेरी मौत की ख़बर उसी दिन शाम के अख़बारों में छप गयी। फिर मैंने उसी रात हमीद को एक नेपाली के भेस में डॉक्टर तौसीफ़ के पास भेजा और उसे ताक़ीद कर दी कि वह मेरे राजरूप नगर में आने के बारे में किसी से कुछ न कहे। इसलिए यह बात छिपी ही रही कि उस दिन मैं राजरूप नगर गया था। इस तरह सलीम धोखा खा गया और उसे इत्मीनान हो गया कि उस पर शक करने वाला अब इस दुनिया में नहीं रहा और अब वह आसानी के साथ अपना काम अंजाम दे सकेगा।

‘‘मैं चाहता था कि तुम्हें किसी तरह राजरूप नगर ले जाऊँ। इसलिए मैंने डॉक्टर तौसीफ़ से दोबारा कहलवा भेजा कि ज़रा जल्दी तुम्हें राजरूप नगर ले जाये। जब तुम वहाँ पहुँचे तो मैं साये की तरह तुम्हारे पीछे लगा रहा। तुम्हारी कार मैंने ही ख़राब की थी। मुझे यह पहले से मालूम था कि इस वक़्त कोठी में कोई कार मौजूद नहीं है, इसलिए मैंने यक़ीन कर लिया कि तुम इस सूरत में पैदल ही जाओगे। मुझे यह भी यक़ीन था कि सलीम तुम्हें नवाब साहब के ऑपरेशन से पहले ही ख़त्म करने की कोशिश करेगा। इसलिए मैंने उसे मौक़ा-ए-वारदात ही पर गिरफ़्तार करने की सोची, लेकिन उस कमबख़्त ने वह दाँव इस्तेमाल किया जिसका मुझे पता तक न था। तुम वाक़ई क़िस्मत के अच्छे थे कि वह सुई प्रोफ़ेसर के हाथ से गिर गयी, वरना तुम ख़त्म हो जाते और मुझे पता भी न चलता। उसके बाद तुम क़स्बे में चले गये और मैं एक माली के ख़ाली झोंपड़े में बैठ कर प्लान बनाता रहा। यह तो मुझे तुम्हारी ज़बानी मालूम हो गया था कि तुम शाम को भी पैदल ही आओगे। उसी दौरान मुझे प्रोफ़ेसर के बारे में कुछ और बातें भी मालूम हुईं। जैसे एक तो यही कि वह कोकीन खाने का आदी था...देखो, बातों–ही–बातों में बहकता चला जा रहा हूँ। बाक़ी हालात बताने से क्या फ़ायदा...वे तो तुम जानते ही होगे। बहरहाल, यह थी मेरे मरने की दास्तान।’’

‘‘ख़ुदा तुम्हें जन्नत नसीब करे।’’ डॉक्टर शौकत ने हँसते हुए कहा।

‘‘तो फ़रीदी भाई...अब तो आपकी तरक़्क़ी हो जायेगी। दावत में हमें न भूलिएगा।’’ नजमा ने मुस्कुरा कर कहा।

‘‘मैं तरक़्क़ी कब चाहता हूँ। अगर तरक़्क़ी हो गयी तब तो मुझे शादी करनी पड़ेगी, क्योंकि इस सूरत में मुझे दफ़्तर ही में बैठ कर मक्खियाँ मारनी पड़ेंगी। फिर दिन भर मक्खियाँ मारने के बाद घर पर तो मुझसे मक्खियाँ न मारी जायेंगी और इसका नतीजा यह होगा कि घर पर मक्खियाँ मारने के लिए मुझे एक अदद बीवी का इन्तज़ाम करना ही पड़ेगा जो मेरे बस का रोग नहीं।’’

‘‘नजमा, शायद तुम यह नहीं जानतीं कि हमारे फ़रीदी साहब जासूसी का शौक़ पूरा करने के लिए इस विभाग में आये हैं।’’ डॉक्टर शौकत ने कहा। ‘‘वरना ये ख़ुद काफ़ी मालदार आदमी हैं और इतने कंजूस हैं कि ख़ुदा की पनाह।’’

‘‘अच्छा...यह मैं आज एक नयी ख़बर सुन रहा हूँ कि मैं कंजूस हूँ। क्यों भाई, मैं कंजूस कैसे हूँ ?’’ फ़रीदी ने सवाल दाग़ा।

‘‘शादी न करना कंजूसी नहीं तो और क्या है।’’ नजमा ने कहा।

‘‘अच्छा भाई हमीद, अब चलना चाहिए, वरना कहीं ये लोग सचमुच मेरी शादी न करा दें।’’ फ़रीदी ने उठते हुए कहा।

‘‘अभी बैठिए न...ऐसी जल्दी क्या है?’’ नजमा बोली।

‘‘नहीं बहन, अब चलूँगा। कई ज़रूरी काम अभी तक अधूरे पड़े हैं।’’

नजमा और शौकत दोनों को कार तक पहुँचाने आये। दोनों के चले जाने के बाद शौकत बोला, ऐसा हैरत-अंगेज़ आदमी मेरी नज़रों से नहीं गुज़रा। पता नहीं, पत्थर का बना है या लोहे का...मैंने आज तक उसे यह कहते नहीं सुना कि आज मैं बहुत थका हुआ हूँ।’’

‘‘और सार्जेंट हमीद बिलकुल मुर्ग़ी का बच्चा मालूम होता है।’’ नजमा हँस कर बोली।

‘‘क्यों...’’

‘‘न जाने क्यों मुझे उसकी नाक देख कर मुर्ग़ी के बच्चे याद आ जाते हैं।’’

‘‘बहरहाल, आदमी ख़ुशमिज़ाज है। अच्छा, आओ, अब अन्दर चलें...सर्दी तेज़ होती जा रही है।’’ यह कह कर दोनों कोठी के अन्दर दाख़िल होने के लिए चल पड़े।