श्रीकांत के फायर से कमरा नंबर तीन सौ बीस के पास लगा आग बुझाने वाला सिलेंडर एक धमाके के साथ फटा जिसकी वजह से पूरे कॉरीडोर में सफेद धुआँ भर गया।

इस धमाके की आवाज कमरे के अंदर बैठे ऑलिवर ने भी सुनी। सफेद धुआँ दरवाजे के नीचे से कमरे में आना शुरू हो गया था। उसके दिमाग में कौंधा कि पुलिस ने स्मोक-बम का प्रयोग किया है। उसका दिमाग एक बार तो बौखला गया। जिस काम को उन लोगों ने इतनी प्लानिंग से अंजाम दिया था, वह दोनों पुलिस वालों की वजह से पटरी से उतर गया था।

‘साला, अक्खा जिंदगी में पहली बार देखा कि हिंदुस्तान में पुलिस किसी कांड के होने से पहले पहुँच गयी थी!’

उस कमरे में अट्ठारह लोग उन लोगों के निशाने पर थे। इस वक्त वहाँ पर वह और फैजी मौजूद थे। अपने साथी कमाल को वो लोग अपने से अलग कर चुके थे और वह सीढ़ियों से नीचे भाग जाने का नाटक कर निकलने में कामयाब हो गया था।

ऑलिवर ने कमरे का दरवाजा जरा सा खोला तो धुआँ कमरे में भर गया। उसने तत्काल दरवाजा बंद कर दिया। वह लोग फँस चुके थे। उसे पता नहीं था कि बाहर कॉरीडोर में पुलिस के कितने लोग मौजूद थे।

अचानक वह वहशियाना ढंग से हँसा और हँसते हुए बोला, “फैजी, तमाशा देखेगा क्या? वो पुलिस वाला डेढ़ श्याणा बनता है। अब ये धुआँ ही इन लोगों की मुसीबत बनेगा।”

ऑलिवर ने उस बैग को उठाया जो कमाल का था और वहाँ पर बैठे हुए होस्टेज में से एक आदमी को उठने का इशारा किया जो लाल रंग की शर्ट पहने हुए था। उसने उसे कमाल की काले रंग की आर्म्स-जैकेट पहना दी। इसके बाद उसने वहाँ फर्श पर बैठे हुए लोगों में से नौ लोगों को खड़ा किया। लाल रंग की कमीज पहने आदमी को एक खाली एके फॉर्टी सेवन थमा दी।

“तुम लोग अब आजाद हो। अब बाहर तुम लोगों का मौत किसकी गोली से होएँगा, अपुन को नहीं पता। ये लाल कमीज वाला भीडु तुम्हारे पीछु बाहर निकलेगा। इसके हाथ में गन है, लेकिन खाली। ये तुम्हें पता है लेकिन बाहर जो पुलिस का कुत्ता लोग बैठे हैं न, उन्हें नहीं पता। अब तुम लोग यहाँ से बाहर निकलो और भागो। अगर कोई भी रुका तो गोली उसके पिछवाड़े में होएँगा। चलो।” कमीनगी से भरे अंदाज में ऑलिवर बोला।

कमरे के बाहर फैला धुआँ कुछ हद तक छँट चुका था। तभी उस कमरे का दरवाजा खुला और उसमें से तकरीबन नौ लोग बाहर निकले। वे लोग कॉरीडोर में बदहवासों की तरह बाहर निकले और गिरते पड़ते भागने लगे। श्रीकांत उन लोगों की भीड़ को कॉरीडोर में आते देख कुछ समझ नहीं पाया।

मिलिंद ने अटेंडेंट रूम से दरवाजे की झिर्री से यह नजारा देखा। उसे उन लोगों के पीछे एक लाल कमीज वाला गन लिए बाहर निकलता दिखाई दिया। वो गन वाला बाहर निकला तो मिलिंद ने उसको निशाने पर लिया।

पर ये क्या? वह आदमी भी बाहर निकलते ही सिर पर पैर रख कर उन लोगों के पीछे भागा।

इससे पहले मिलिंद कुछ समझ पाता, तभी कमरे के दरवाजे पर उसे एक और मानव आकृति दिखाई दी। मिलिंद ने उसे ऑलिवर के साथ आये आदमी के रूप में तत्काल पहचाना।

उस आदमी ने, जो कि फैजी था, कॉरीडोर में भागते हुए आदमियों की तरफ अपनी एके फॉर्टी सेवन से निशाना साधा। मिलिंद के नेत्र आश्चर्य से फैल गए। इससे पहले की फैजी अपनी गन का ट्रिगर दबा पाता, मिलिंद ने उसे शूट कर दिया। गोली उसके भेजे को पार कर निकल गयी।

पीछे से अपनी मौत के इस अप्रत्याशित आगमन से हैरान हुए फैजी का जिस्म कटे पेड़ की तरह कॉरीडोर के बीचो-बीच गिरा। फर्श पर उसका शरीर गिरने से पहले उसकी उँगली ट्रिगर पर दबी लेकिन उसकी गन से निकली गोलियाँ कॉरीडोर की छत से यहाँ-वहाँ टकरा कर रह गयी।

गोलियों की आवाज से आतंकित लोग कॉरीडोर में तुरंत फर्श पर लेट गए। उस कमरे के दरवाजे के सामने फैजी को हलाक होता देख ऑलिवर पगला सा गया। वे लोग दो तरफ से घिरे होंगे इसका उसे अंदाजा न था। वह गुस्से से पागल हुआ दरवाजे के बाहर आया और अपनी कार्बाइन से उसने मिलिंद की दिशा में गोलियों की बौछार कर दी। मिलिंद ने तुरंत अपने आप को फर्श पर गिरा दिया लेकिन उसके पीछे पोजीशन लिए सिक्योरिटी गार्ड उनकी चपेट में आ गया। दो गोलियाँ उसका सीना बेधती हुई पार निकल गयी।

ऑलिवर ने अपनी कार्बाइन से फर्श पर पड़े मिलिंद को निशाना बनाना चाहा लेकिन तभी उसे अपनी पीठ में दो दहकते अंगारे पैवस्त होते महसूस हुए। श्रीकांत की गन से निकली दो गोलियाँ उसे अपना निशाना बना चुकी थी। बाकी का काम मिलिंद की गन से निकली गोलियों ने कर दिया। ऑलिवर के प्राण-पखेरू उड़ गए।

कुछ देर तक सब दम साधे हुए अपनी अपनी जगह पर स्थिर पड़े रहे। फिर कोई हलचल न होती देख मिलिंद अपनी जगह से खड़ा हुआ और रूम नंबर तीन सौ बीस में दाखिल हुआ। वहाँ पर डरे सहमे बंदी बनाए लोगों के सिवा कोई नहीं था।

मिलिंद ने ‘ऑल क्लियर’ की आवाज लगाते हुए श्रीकांत को इशारा किया। श्रीकांत ने राहत की एक लंबी साँस ली।

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जिम का दरवाजा ज्यादा देर तक गोलियों की बौछार सहन नहीं कर सका। अबरार और उसके साथी अपनी मशीनगनों से गोलियाँ बरसाते हुए जिम में दाखिल हुए। जिम को पूरी तरह से खाली पाकर उन्हें हैरानी हुई। तभी अबरार की निगाहें उस दरवाजे पर पड़ी जिससे होकर सुधाकर ने समर सिंह की मदद से जिम में फँसे लोगों को निकालकर पैंट्री में भेजा था।

गुस्से में दाँत पीसते हुए उसने उस दरवाजे पर गोलियों की बारिश कर दी। कुछ ही देर में उस दरवाजे के परखच्चे उड़ गए। अबरार ने अपनी ठोकर से उस दरवाजे को तोड़ कर जाने की जगह बनाई तो उसने देखा कि आगे एक छोटा सा गलियारा था।

‘जरूर इसी से होकर वे लोग पैंट्री में पहुँचे होंगे।’ अबरार ने सोचा।

उसने बट्ट और सन्नी को इशारे से उस गलियारे में जाने के लिए कहा। वे दोनों अपनी मशीनगनों से फायरिंग करते हुए उस गलियारे के आगे बढ़े।

सुधाकर गार्डों के साथ उस गलियारे से होता हुआ पहले ही अपने कदम पीछे खींच चुका था। समर सिंह और जगत के साथ वह पैंट्री में खुलते हुए उस गलियारे के मुहाने पर दीवार के साथ सटा हुआ खड़ा था। अगर उस गलियारे से आतंकवादी पैंट्री में आने में कामयाब हो जाते तो वहाँ मौजूद लोगों का जिंदा रहना एक करिश्मा ही होता। यही सोचकर सुधाकर ने गलियारे में फायर झोंक दिया। समर और जगत ने भी जवाबी फायर किया। कुछ देर के लिए बट्ट और सन्नी की फायरिंग रुकी।

तभी खाली लिफ्ट ऊपर आ गयी। नागेश ने लिफ्ट के पास अपनी पोजीशन ले रखी थी। उनके पास वक्त बहुत कम था। वे कम से कम बीस लोगों कि एक खेप और नीचे भेज सकते थे। इसके साथ नागेश और सुधाकर की निगाहें मिली। सुधाकर ने आँखों ही आँखों में नागेश को आश्वासन दिया। नागेश ने वहाँ अपने पास मौजूद दोनों गार्डों को इशारा किया। दोनों गार्ड तेजी से लोगों को उस लिफ्ट तक पहुँचाने लगे।

गलियारे से फिर फायरिंग शुरू हो गयी। सुधाकर और समर ने गलियारे की तरफ अंधाधुंध जवाबी फायर झोंका। उनकी गोली सन्नी के शरीर के किसी हिस्से से टकरायी। वह किसी हलाल होते हुए बकरे की तरह डकराया और गलियारे में ही ढेर हो गया। बट्ट यह देखकर अंधाधुंध फ़ायरिंग करता पैंट्री के मुहाने तक आ पहुँचा। उस फायरिंग से बचने के लिए सुधाकर ने एक तरफ छलाँग लगा दी लेकिन जगत उसकी चपेट में आ गया।

जगत का शरीर बट्ट की फ़ायरिंग से छलनी हो गया। समर से यह देखा न गया। जगत उसके सेना के दिनों का साथी था। समर ने अपनी गन से बट्ट पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू की। समर की गन से निकली गोली बट्ट के लिए मौत का पैग़ाम लेकर निकली लेकिन आमने सामने की इस फायरिंग में समर भी बट्ट की मार से बच न सका।

समर और जगत की इस कुर्बानी ने सबको स्तब्ध कर दिया। भारत माँ के इन दो लालों ने मौत को गले लगाकर इस कयामत की घड़ी में भी वहाँ मौजूद लोगों को जिंदगी को दो पल की मोहलत और दे दी।

नागेश और गार्ड तब तक लिफ्ट में लोगों को सवार करवा चुके थे। चार खेप जाने के बाद भी अभी पचास के आसपास लोग वहाँ फँसे हुए थे। नागेश अपनी टेबल की आड़ में से निकला और बिजली की फुर्ती से सुधाकर के पास पहुँचा और उसे लेकर एक टेबल की आड़ में हो गया।

अबरार ने गलियारे की दूसरी तरफ से ये नजारा देखा। उसे अपने साथियों की मौत से ज्यादा इस बात का गम था कि वे लोग कुछ ज्यादा नुकसान नहीं कर पाये थे। उससे भी ज्यादा उसे इस बात की हैरानी थी कि इंस्पेक्टर सुधाकर अंदर कैसे मौजूद था?

मुशी और अबरार अब आफत का परकाला बन कर गोलियाँ बरसाते गलियारे के पार पहुँचे तो उन्हें जगत, समर और बट्ट की लाशें दिखाई दी। अबरार और मुशी ने अपनी मशीनगनों का मुँह उधर ही कर दिया जिधर सुधाकर और नागेश छुपे हुए थे। नागेश और सुधाकर अपनी जगह पर टिके रहे। उनके पास गोलियाँ सीमित ही थी और अगर गोलियाँ ख़तम हो जाती तो सबकी मौत निश्चित थी।

नागेश ने चीखकर लोगों से अपनी जगह पर टिके रहने के लिए बोला। अबरार ने एक हैंडग्रेनेड उसकी दिशा में उछाल दिया। लेकिन तब तक नागेश अपनी जगह बदल चुका था लेकिन फिर भी ग्रेनेड से निकले छर्रे उसके शरीर में ज़ख़म बना गए। ग्रेनेड के विस्फोट से आग और धूल का गुबार उठा और पूरी मंजिल एक बार काँप उठी।

सुधाकर इस मौके का फायदा उठा कर लिफ्ट की तरफ पहुँच गया जहाँ से उसे मुशी साफ दिखाई दे रहा था और अबरार का ध्यान नागेश की तरफ था। सुधाकर ने मुशी पर निशाना लगा कर फायर कर दिया। गोली उसकी गर्दन को चीरती हुई निकल गयी और उसके खून के छींटे अबरार के चेहरे पर भी पड़े।

उधर ऑलिवर से पार पाकर श्रीकांत और मिलिंद ने ऊपर का रुख किया जहाँ पर नागेश और सुधाकर मौजूद थे। उधर से गोलियाँ चलने की आवाजें लगातार आ रही थी। वे दोनों ऑलिवर और उसके साथियों से हासिल हुई मशीन गनों को लेकर ऊपर की तरफ दौड़े।

जब वे आठवीं मंजिल पर पहुँचे तो तबाही उन्हें साफ नज़र आ रही थी। उनके पीछे-पीछे कमांडो भी पहुँच चुके थे। जब ग्रेनेड का विस्फोट हुआ उस वक्त मिलिंद और श्रीकांत जिम में दाखिल हुए। जिम से पैंट्री की तरफ जाने वाला गलियारा धूल के गुबार से भरा हुआ था।

गलियारे में सन्नी की लाश पड़ी थी और वे निर्विघ्न गलियारे के पार पहुँचे तो मिलिंद और श्रीकांत को हौलनाक नजारा दिखाई दिया जिसमें अबरार एक हैंडग्रेनेड सुधाकर की तरफ उछालने ही वाला था जिसकी जद में आकर उसका बचना मुश्किल था।

श्रीकांत और मिलिंद के हाथ में थमी मशीनगनों ने एक साथ आग उगली। अबरार के शरीर में वही गोलियाँ जा धँसी जिन पर वो होटल में ठहरे लोगों की मौत का संदेश लिख कर लाया था। सुधाकर एक बार फिर मौत के मुँह में जाने से बाल-बाल बचा था।

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नीले कोट वाले ने, जो ऑलिवर का साथी कमाल था, आलोक देसाई की तरफ फायर झोंक दिया। आलोक और उसके साथ मौजूद सभी कमांडो ने एक गाड़ी की ओट लेकर अपने आप को बचाया।

‘कौन है ये आदमी? आखिर ये क्यों पार्किंग की तरफ घुसता चला जा रहा है ?’

आलोक देसाई के दिमाग में यह विचार कौंधा। अचानक एक खौफनाक ख्याल उसके मन में आया। उसने सभी कमांडो की तरफ एक इशारा किया। वे चारों अलग दिशाओं में फैल गए। कमाल का अब सभी पर ध्यान रखना मुश्किल था। वह पार्किंग की एक दिशा में सतर्कता के साथ आगे बढ़ने लगा। चारों कमांडो तेजी से पार्किंग की दीवार और गाड़ियों के बीच से होते हुए उसकी और बढ़ने लगे। आलोक की निगाहें कमाल पर से एक पल के लिए भी नहीं हटी।

“तुम जो कोई भी हो, इसी वक्त सरेंडर कर दो। तुम यहाँ से बच कर नहीं जा सकते।” आलोक की आवाज पार्किंग में गूँजी लेकिन उसका कमाल पर कोई असर नहीं हुआ।

वह पार्किंग के एक कोने की तरफ बढ़ता रहा। आखिर वह एक जगह पर जाकर रुका और उसके हाथ में कुछ हरकत हुई। एक कार में जोरदार विस्फोट हुआ और कार उछलकर पार्किंग की छत से टकरायी। आलोक भी अपने पैरों पर खड़ा नहीं रह सका और उछलकर एक कार से टकराया।

जिस कार में विस्फोट हुआ था वह तो जल ही रही थी लेकिन उसके आसपास की कारों ने भी आग पकड़ ली थी। जिस रफ्तार से उन कारों में आग फैल रही थी, उन कारों में भी विस्फोट होना तय था।

जब तक आलोक खुद को संभालता, कमाल उसकी आँखों से ओझल हो गया। तभी एक कमांडो के चिल्लाने की आवाज आयी। आलोक ने देखा कि कमाल अब अपनी जान की परवाह किए बिना पार्किंग के दूसरे कोने की तरफ बढ़ रहा था। उसकी मंशा को आलोक पहचान चुका था। उसने चारों कमांडो को इशारा किया और ज़ोर से चिल्लाया, “पकड़ो उस मा##### को।”

सभी कमांडो अब कमाल को निशाना बना रहे थे लेकिन वह फिर भी कारों की ओट में होकर भाग रहा था इसलिए गोलियाँ उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पा रही थी। आलोक ने उसके पीछे भागने की बजाय अपने आप को दूसरी दिशा में मोड़ दिया। कमाल भागते हुए अपने पीछे आ रहे कमांडों पर फायर करता जा रहा था।

कमाल भागते-भागते पार्किंग के दूसरे कोने पर जाने के लिए जैसे ही मुड़ा तो ठिठक गया। कमाल के कंधे से बहे खून के कारण मंद पड़ी उसकी रफ्तार को आलोक ने मात दे दी थी। वह अब आलोक के निशाने पर था। लगातार फायर करने से उसका रिवॉल्वर खाली हो चुका था।

“बहुत भाग लिया, श्याणे। अब अपने हाथ ऊपर कर और घुटनों के बल बैठ। जल्दी कर।” आलोक ने कमाल को कहा।

“घुटनों के बल तो हम तुम्हें...” कमाल ने बोलना चाहा।

“देख श्याणे। मेरे पास टाइम नहीं है। ऊपर मेरे लोग फँसे हुए हैं और मुझे उनके पास जाना है। मैं कोई गिनती नहीं गिनूँगा। अब तेरे हाथ ऊपर और तू घुटनों पर। समझा?” आलोक ने बेसब्री से कहा।

कमाल के चेहरे पर एक जहरीली मुस्कान तैर गयी। उसने अपने हाथों को ऊपर उठाना शुरू किया लेकिन उसके हाथों की हरकत आलोक की तेज नजरों से छुपी न रह सकी। अब बारी आलोक की उँगलियों के हरकत में आने की थी। कमाल की पलक झपकने से पहले आलोक के रिवॉल्वर से निकली गोलियाँ कमाल के कंधे में समा गयी। एक कमांडो की गोली ने उस हथेली को निशाना बनाया जो एक रिमोट को थामे थी।

कमाल का कार पार्किंग में एक और विस्फोट करने का इरादा मन की मन में रह गया। आलोक ने राहत की मीलों लंबी साँस ली। कमाल के कोट की जेब से वैसे दो रिमोट और बरामद हुए। इससे साफ जाहिर था कि वे लोग ‘पर्ल रेसीडेंसी’ होटल की बुनियाद को तबाह कर इस पूरे के पूरे होटल को ज़मींदोज़ कर देना चाहते थे।

जब तक पुलिस फोर्स आठवें माले तक पहुँची तब तक वहाँ मामला निपट गया था। नागेश को हालाँकि गंभीर चोट नहीं आयी थी लेकिन फिर भी एहतियातन उसे अस्पताल भेज दिया गया। श्रीकांत खबरिया चैनलों के रिपोर्टरों से कन्नी काटता हुआ अंधेरी की तरफ रवाना हो गया। आलोक देसाई को वहाँ राहत कार्यों की कमान संभालनी पड़ी। कितने लोग इस मामले में हलाक हुए इस बात का लेखा-जोखा आना अभी बाकी था।

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दिल्ली

अभिजीत देवल के माथे पर पसीने की बूँदें छलछला रही थी। उसका फोन अभी उसके हाथों में जकड़ा हुआ पड़ा था। टीवी स्क्रीन पर वह ‘पर्ल रेसीडेंसी’ में हुई गोलीबारी पर मीडिया की रिपोर्टिंग देख रहा था। यह मामला उसकी जिंदगी का सबसे पेचीदा और खतरनाक मामला होता जा रहा था।

उसके माथे पर छलक आयी बूँदें उस कॉल का परिणाम थी जो अभी अभी पीएम ऑफिस से आयी थी और जिसकी परिणति एक आखिरी वाक्य में हुई थी –

‘अभिजीत, आइदर परफ़ोर्म ऑर पेरिश।’

ऐसी फटकार उसे जीवन में कभी नहीं पड़ी थी।

उसकी जीवन भर की साख अब दाँव पर लग चुकी थी। तभी अभिजीत का फोन वाइब्रेट होना शुरू हुआ। राजीव जयराम का फोन आ रहा था। उसने तुरंत कॉल अटेंड की।

“ये क्या हो रहा है? ‘पर्ल रेसीडेंसी’ की क्या पोजीशन है?” अभिजीत ने पूछा।

“अब ‘पर्ल रेसीडेंसी’ में पोजीशन कंट्रोल हो गयी है। ऑल थ्रेट्स आर एलिमिनेटेड।” राजीव ने बताया।

“क्या ये हमारे लिए खुशी की बात है? नीलेश पासी के अपहरण के किस्से के बीच यह आतंकवादी हमला कैसे हो गया, राजीव? सारी दुनिया हँस रही है हम पर। विपक्ष को मुझे टारगेट बनाने का एक बार फिर से बहाना मिल गया है।” अभिजीत देवल के चेहरे से नाखुशी झलक रही थी।

“यह उसी मामले का ही ऑफ-शूट है। यह तो हम को शुक्र मनाना चाहिए कि किस्मत से मुंबई पुलिस का इंस्पेक्टर नागेश कदम वहाँ पर इस वारदात के पहले अपने सब-ऑर्डिनेट मिलिंद के साथ पहुँच गया था। उन लोगों की वजह से वहाँ पर पहुँचे आतंकवादी अपने मंसूबे को पूरी तरह से अंजाम नहीं दे पाये। अगर उन दोनों को श्रीकांत और सुधाकर नाम के इंस्पेक्टर की सपोर्ट समय पर न पहुँचती तो वहाँ पर सैकड़ों लोगों की जान जा सकती थी।” राजीव जयराम ने बात संभालनी चाही।

“फिर भी ये मामला तो पूरी दुनिया के सामने हाइलाइट तो हो ही गया ना।”

“लेकिन ‘पर्ल रेसीडेंसी’ में आठ आतंकवादी तुरंत मार दिये गए हैं और जान-माल का कम से कम नुकसान हुआ है। अगर श्रीकांत की रिपोर्ट को माने तो उन लोगों का मंसूबा पूरे होटल को ही ज़मींदोज़ करने का था। होटल की बेसमेंट से तीन कारें विस्फोटकों से भरी बरामद हुई हैं। उन लोगों का आदमी सिर्फ़ एक कार में ही विस्फोट कर पाया। अगर  उन लोगों के प्लान के मुताबिक चारों कारों में एक साथ विस्फोट हो गया होता तो... ”

“ओके। ओके। कुछ वक्त के लिए हमें भटका कर यह खेल रचा गया या हमें भटकाने के लिए यह खेल रचा गया है, लेकिन अब इस खेल को ख़तम होना ही होगा।”

“एक लोकल प्लेयर दिलावर का रोल इसमें हाइलाइट हुआ है। उसके आदमी होटल पर्ल रेसिडेंसी की वारदात में इन्वॉल्व थे। वी विल नेब हिम सून। लेकिन वह सिर्फ़ प्यादा है उसके पीछे कोई न कोई तो दूसरा है।”

“नाओ फोकस ऑन नीलेश पासी। कहाँ पर है वो? अब हम कादिर मुस्तफा को छोड़ रहें हैं। उसकी फ़ाइल मेरी टेबल पर रखी है। वे लोग नीलेश को कब और कैसे छोड़ेंगे, इस बात को पहले सॉर्ट आउट करो।”

“अब तो नीलेश के साथ कादिर मुस्तफा का एक्स्चेंज ही होगा। हमें लगता है कि नीलेश अब हमारे देश की सीमा से बाहर है। पाकिस्तान इस बात को न तो कभी मानेगा और न ही इसे हाइलाइट करेगा। नीलेश की लोकेशन का पता लगते ही हम इस बारे में प्लान करेंगे। दिस एक्स्चेंज विल नेवर बी इन ओपन।”

“ओके। ठीक है। अब उन लोगों को पहल करने दो। और राजीव, फाइंड आउट ऑल प्लेयर्स ऑफ दिस गेम एंड एलिमिनेट देम। तुम कहाँ तक पहुँचे?”

“मैं बस कुछ ही देर में कमिश्नर धनंजय रॉय के ऑफिस में पहुँच जाऊँगा।”

“ओके। तो फिर उम्मीद करूँ कि यह मामला जल्दी ख़तम हो जाएगा।"

“यस। जल्दी ही। ओवर एंड आउट, सर।”

और लाइन कट गयी।

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