लिमोजीन में बैठते ही मैंने विभा से वह कहा जो गोपाल मराठा के सामने नहीं कह सकता था - - - - “विभा, अब जो स्टोरी खुलकर सामने आई है उसकी रोशनी इतनी चकाचौंध कर देने वाली है कि मेरे दिमाग की आंखों के सामने अंधेरा छा गया है। इतना ज्यादा कि कुछ समझ में नहीं आ रहा। सच्चाई अगर वही है जो छंगा- भूरा ने बताई तो जहां वह सवाल उठता है जो मैंने गोपाल मराठा के सामने पूछा, उससे भी ज्यादा पुरजोर अंदाज में उठता है यह सवाल कि चांदनी का मकसद यदि खुद को रतन बिड़ला की हत्या के इल्जाम में फंसाना ही था तो फिर हमारे पास क्यों आई थी? क्यों हमसे तुम्हें इस केस में इन्वॉल्व करने के लिए कहा? क्यों यह कहा कि विभा जिंदल से कहो कि इस केस का दूध का दूध, पानी का पानी कर दे?”


विभा ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा ---- “सबसे पहले तो दिमाग से यह निकाल दो कि छंगा-भूरा झूठे हो सकते हैं।"


“ऐसा क्यों?” शगुन ने पूछा।


“क्योंकि वे झूठ बोलने की पोजीशन में ही नहीं थे और... जिस स्टेज पर अब वे हैं, वहां उन्हें झूठ बोलने की जरूरत भी नहीं ।"


“लेकिन अगर वे सच्चे हैं तो बाकी तो सभी झूठे हुए।” मैंने सभी घटनाओं पर अपनी दिमागी सोच घुमाते हुए कहा ---- “अवंतिका तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट की रोशनी में पहले ही झूठी साबित हो चुकी है। अब तो संजय भी झूठा है। अगर चांदनी साढ़े बारह बजे ही उसकी इनोवा लेकर रतन बिड़ला की लाश सहित छंगा- -भूरा की खोली पर पहुंच गई थी तो दो बजे गुलमोहर की पार्किंग से उनकी गाड़ी कैसे गायब हुई ?”


“गाड़ी दो बजे गायब नहीं हुई। दो बजे तो बकौल संजय उन्हें पता लगा कि गाड़ी गायब है। वह ग्यारह बजकर कुछ मिनट पर भी गायब हुई हो सकती है क्योंकि उसे वे ग्यारह बजे गुलमोहर की पार्किंग में खड़ी करके होटल के अंदर चले गए थे ।”


“हां । ये तो है ।”


“एक भी बात पल्ले नहीं पड़ रही आंटी। सबसे हैरतअंगेज बात यह है कि चांदनी ने हमसे इतने लम्बे-लम्बे झूठ क्यों बोले ? एक तरफ वह रतन बिड़ला की लाश के साथ छंगा-भूरा के पास पहुंचती है और उनसे कथित सौदा करती है। दूसरी तरफ हमारे पास आती है, केस में आपका दख्ल चाहती है लेकिन हमें यह सच्चाई नहीं बताती कि अपने ए.टी.एम. से पैसे उसी ने निकाले थे। छंगा-भूरा को उसने वे पचास हजार ही नहीं बल्कि दो बार में करके चार लाख रुपए और दिए थे? वह आखिर चाहती क्या है? रतन की हत्या के इल्जाम में फंसना या बचना ? आखिर खेल क्या खेल रही है वह ?"


“तुम दोनों के दिमागों में अब जाकर वे सवाल घूम रहे हैं जिन्होंने मुझे इस केस में दिलचस्पी लेने पर मजबूर किया और..


“और?”


"मैं खुद भी इन्हीं सवालों के जवाबों की तलाश में हूं इसलिए मेरा भेजा मत चाटो । इनके जवाब केवल चांदनी दे सकती है और इस वक्त हम उसी के दौलतखाने पर जा रहे हैं, जहां इतना धैर्य रखा है वहां थोड़ा और रखो। हो सकता है वहां हर सवाल का जवाब मिल जाए।” कहने के साथ उसने अपने मोबाइल पर कोई नंबर पंच किया था।


मेरे कुछ भी कहने से पहले विभा ने मोबाइल कान से लगाया और बोली---- “क्या हो रहा है ?”


जाने दूसरी तरफ से क्या कहा गया ?


उसे सुनकर विभा पुनः बोली ---- पता नहीं किसने क्या कहा ? बोली ---- “कोई नहीं आया ?”


“ताला ज्यों का त्यों लगा है ?” विभा ने पूछ |


शायद 'हां' कहा गया ।


“तुम एक पल के लिए भी वहां से नहीं हटोगे और पूरी तरह चौकस रहना है ।” कहने के बाद विभा ने संबंध - विच्छेद कर दिया।


शगुन ने पूछा- - - - “अब आप किससे बात कर रही थीं आंटी ?” 


“अभिक से।”


“कहां है वह ? कहां ताला..


बात अधूरी रह गई ।


विभा के मोबाइल से गायत्री मंत्र की धुन निकलने लगी थी।


उसने पुनः मोबाइल निकाला और स्क्रीन पर नाम देखने के बाद ऑन करने के साथ कान से लगाती बोली ----“हां वीणा, कहो!” से


वीणा का नाम सुनते ही मैं रोमांचित हो उठा ।


मेरा अंदाजा बिल्कुल ठीक निकला था ।


निश्चितरूप से विभा ने वीणा और अभिक को किन्हीं महत्वपूर्ण मोर्चों पर तैनात कर रखा था ।


अब तो मेरे कानों को बस यह सुनने का इंतजार था कि वे थे कहां और उनके जरिए कौन-सा धमाका सामने आने वाला था ?


यही क्षण था जब शायद विभा के दिमाग में धमाका हुआ। दूसरी तरफ से वीणा की बात सुनकर वह चीख-सी पड़ी थी----“य...ये क्या कह रही हो वीणा... ये क्या कह रही हो तुम?"


पता नहीं दूसरी तरफ से क्या कहा गया!


“उफ्फ् ।” विभा बेहद उद्वेलित नजर आने लगी थी-- “ये तो बहुत बुरा हुआ। कुछ करो... या ठहरो, मैं वहीं आती हूं।"


कहने के तुरंत बाद उसने संबंध विच्छेद कर दिया था ।


मुझसे पहले शगुन पूछ बैठामगर विभा ने जवाब नहीं दिया । ----“क्या हुआ आंटी?”


उसने तेजी से मोबाइल के बटन दबाए थे ।


विभा को उतनी बेचैन मैंने पहले कभी नहीं देखा था ।


बहुत ही जल्दी उसने अपने इच्छित नंबर पर संबंध स्थापित करके कहा----“विभा बोल रही हूं कमीश्नर साहब, निजामुद्दीन पुल से अभी-अभी एक लड़की ने यमुना में छलांग लगा दी है। अपनी पुलिस को सक्रिय कीजिए, गोताखोर भेजिए | कुछ भी कीजिए मगर उस लड़की को बचाइए । जिस केस के लिए मैं दिल्ली आई हूं वह उस केस की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है । "


कहने के तुरंत बाद उसने संबंध-विच्छेद कर दिया था ।


ऐसा शायद इसलिए किया था क्योंकि बातें करने में वह कमीश्नर का टाइम वेस्ट नहीं करना चाहती थी ।


उधर उसने तेज स्वर में शोफर से निजामुद्दीन पुल की तरफ चलने के लिए कहा, इधर शगुन ने पूछा ---- “क्या हुआ आंटी ?”


“ सुना नहीं तुमने ?”


“किसने यमुना में छलांग लगा दी ?”


“चांदनी ने ।”


“क... क्या बात कर रही हो विभा।" पागलों की-सी अवस्था में मैं चीख पड़ा----“ये क्या कह रही हो तुम ?”


शगुन सन्न । उसके मुंह में तो जैसे जुबान ही न रही थी ।


विभा की तरफ वह ऐसे अंदाज में देखता रह गया था जैसे शून्य को निहार रहा हो । हालत मेरी भी वैसी ही थी ।


“यह सच है वेद, तुम समझ ही गए होगे कि यह इन्फारमेशन मुझे वीणा ने दी है। मेरे निर्देशों के मुताबिक वह उसी पर नजर रखे हुए थी। उसने बड़ी अजीब बात बताई है ।”


“क... क्या बताया उसने ?”


“वीणा का कहना है कि चांदनी और अशोक एक गाड़ी में उधर जा रहे थे। वह उन्हें फालो कर रही थी । पुल के बीचों-बीच पहुंचकर अचानक गाड़ी फुटपाथ पर रुकी। वीणा ने अपनी गाड़ी उनके काफी नजदीक रोकी। उसने देखा कि चांदनी और अशोक गाड़ी से उतरे। आपस में कुछ बातें करते रेलिंग के नजदीक पहुंचे और फिर अचानक ही चांदनी ने यमुना में जम्प लगा दी । ऐसी उम्मीद शायद अशोक को भी नहीं थी । वह एकाएक ही चांदनी को हवा में लहरते देखकर बौखला गया | चीखने-चिल्लाने लगा। उधर चांदनी यमुना के पानी से जा टकराई थी । वहां भीड़ लग गई है, हंगामा मचा हुआ है ।”


“ नहीं... चांदनी इस तरह डूब नहीं सकती।" शगुन ने कहा ।


विभा ने कहा - - - - “वीणा के मुताबिक यमुना -“वीणा के मुताबिक यमुना में बहुत पानी है ।”


“ चाहे जितना पानी हो ।” शगुन बोला ---- “मुझे ट्रेनिंग के दिन अच्छी तरह याद हैं। वह एक अच्छी तैराक है ।"


"मैं दुआ करती हूं कि तुम्हारी उम्मीद सही साबित हो । चांदनी जिंदा मिल जाए लेकिन स्वीमिंग पूल और यमुना यमुना में बहुत फर्क होता है और उसकी हरकत बता रही है कि वह जीना नहीं चाहती ।”


“ पर क्यों ?” मैं चीख पड़ा ---- “क्यों जीना नहीं चाहती वह ?”


“यह तो वही जाने।”


“मरने की इच्छा रखने, मरने की कोशिश करने और सचमुच मर जाने में बहुत फर्क होता है आंटी । आदमी जब मरने लगता है तो बचने के लिए हाथ-पैर जरूर मारता है और अगर चांदनी ने ऐसी कोई कोशिश की तो कुशल तैराक होने के कारण शायद वह बच जाए ! ”


“ये हो क्या रहा है विभा ?” मेरा दिमाग पिंड बनकर अंतरिक्ष में तैर रहा था ---- “चांदनी ने आखिर ऐसा क्यों किया?”


गाड़ी में खामोशी छा गई, जो इस बात का द्योतक थी कि मेरे सवाल का जवाब विभा के पास भी नहीं था ।


निजामुद्दीन पुल पर पहुंचने में हमें तीस मिनट लग गए । बहुत भीड़ थी वहां । अगर यह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ट्रेफिक जाम था। पुलिसवाले बहुत ही मुश्किल से उसे संचालित किए हुए थे । थे फायरबिग्रेड की अनेक गाड़ियों की सर्चलाइटें यमुना के पानी पर दूर-दूर तक दौड़ी फिर रही थीं। उन्हीं के प्रकाश दायरे में कभी-कभी


वे गोताखोर नजर आ जाते थे जो शायद चांदनी की तलाश में थे।


दो हैलीकाप्टर यमुना के ऊपर दूर-दूर तक चक्कर लगा रहे थे ।


उनसे निकलने वाली तेज सर्च लाइटें भी यमुना के पानी को ही खंगाल रही थीं। कहने का मतलब ये कि कमीश्नर ने विभा के कहने पर वे सभी इंतजाम किए थे जो रात के उस वक्त हो सकते थे ।


भीड़ को चीरती हुई वीणा हमारे नजदीक आई । उसके चेहरे पर अभी तक हैरत और खौफ के भाव थे । विभा के नजदीक पहुंचते ही वह बोली----“गजब हो गया बहूरानी, मेरे देखते ही देखते..


“तुमने ध्यान से देखा था न !” विभा ने पूछा--- "यमुना में उसने खुद ही छलांग लगाई थी? अशोक ने धक्का तो नहीं दिया था उसे?”


“नहीं ।” वीणा बोली- “इसी बात पर तो मुझे आश्चर्य है । वरना तो, इस बात के प्रति तो आपने मुझे सतर्क कर ही दिया था कि अशोक या कोई और चांदनी को किसी किस्म का नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकता है। यहां तक कि उसकी हत्या की कोशिश भी की जा सकती है और मेरा काम ऐसी किसी कोशिश को नाकाम करना है। इस सबके प्रति मैं सतर्क भी थी लेकिन... उसने तो खुद ही यमुना में छलांग लगा दी। उस दृश्य को देखकर मैं भौंचक्की रह गई । "


“कुछ अंदाजा है कि वे क्या बातें कर रहे थे?”


“मैं उनके इतनी नजदीक नहीं थी । ”


“वह तो मैं समझ सकती हूं।” विभा ने कहा - “पर यहां काफी रोशनी है। उस वक्त तुमने मूड तो देखा होगा दोनों का! वे नार्मल थे। खुश थे या गुस्से में और झगड़ते हुए नजर आ रहे थे?”


“म... मुझे तो नार्मल ही लगे । ”


उसके बाद विभा ने कुछ नहीं पूछा ।


हम लोग जल्दी ही उस स्पॉट पर पहुंच गए जहां से चांदनी ने छलांग लगाई थी । उस छोटे से हिस्से को पुलिस ने घेर रखा था।


उस घेरे के अंदर केवल एक सिवीलियन था ।


बदहवास हालत में ।


उसे कई पुलिसवालों ने पकड़ रखा था।


वीणा ने बताया कि वह अशोक है।


रेलिंग के नजदीक पहुंचकर हमने देखा कि दस-बारह गोताखोर यमुना में इधर-उधर तैरते फिर रहे थे ।


तभी एक बार फिर विभा के मोबाइल ने गायत्री मंत्र का जाप शुरु किया। फोन कमीश्नर का था । उसने बताया कि अब तक की रिपोर्ट के मुताबिक ‘लड़की' नहीं मिल पाई है। अंधेरा भी बाधक बना हुआ है। समय अगर दिन का होता तो सहूलियत रहती ।


विभा ने कहा “मैं घटनास्थल पर पहुंच चुकी हूं।"


“क्या हम वहां मौजूद अधिकारियों को आपके बारे में बताएं ?”


“इसकी जरूरत नहीं है।" विभा ने कहा- “हां, वह मिल जाए तो मुझे जरूर बता दिया जाए। लड़की मिलनी जरूरी है। भले ही पीछे से यमुना का पानी रोकना पड़े ।”


“हम पूरी कोशिश करेंगे बहूरानी । ”


'थैंक्स' कहने के बाद विभा ने लाइन काट दी ।


उसके बाद हम तीस मिनट तक वहां रहे लेकिन सिर्फ तमाशबीन बनकर | चांदनी किसी को नहीं मिल सकी थी।


न जीवित, न मृत ।


एकाएक विभा ने वीणा को गोपाल मराठा का नाम और उसके आफिस का एड्रेस नोट कराने के बाद कहा- - - - “ये शख्स दिल्ली पुलिस में ए.सी.पी. है। तुम्हारा अगला काम इस पर कड़ी नजर रखना है। जन्मकुंडली भी निकाल सको तो बहुत अच्छा होगा।”


उसकी यह बात सुनकर मेरे और शगुन के जिस्म में अजीब-सी सनसनी दौड़ गई। दोनों ने एक-दूसरे की तरफ ऐसी नजरों से देखा जैसे पूछ रहे हों कि - - - - क्या तुम्हारी समझ में कुछ आया ?


जवाब हममें से किसी की आंख में नहीं था ।


विभा के फारिग होते ही मैंने पूछा ---- "इसका क्या मतलब ?”


“किसका मतलब बताऊं?”


“मराठा पर नजर रखने का ।"


“ये लड़का मुझे कुछ ज्यादा ही गहरा लगा ।”


“गहरे से मतलब ?”


“क्या तुमने नोट नहीं किया कि जब भी चांदनी का नाम आया, वह जरूरत से कुछ ज्यादा ही उत्तेजित हो गया! इसी उत्तेजना में उसने जमील अंजुम को लाइन हाजिर कर दिया। छंगा को चांटा मारा और छंगा - भूरा जब चांदनी के बारे में वह सब बता रहे थे तो उसके चेहरे पर न समझ में आने वाले एक्सप्रेशंस थे ?”


“ और चांदनी के घर जाने से भी कतरा गया ।" - उत्साहित से शगुन ने कहा----“मुझे यह बात खटकी थी।” 


“ खटकी तो मुझे भी वे सभी बातें थीं विभा जो तुमने कहीं मगर उन सब बातों का आखिर मतलब क्या हुआ ?”


“वहीं पता लगाने के लिए तो वीणा को एड्रेस दिया है । "


“ओह!”


“आओ ।” उसने कहा- –“होटल चलते हैं । "


“क्या तुम अशोक से कुछ भी पूछना नहीं चाहोगी ?” मेरे लहजे में हैरत थी----“कैसे हो गया ये हादसा ? अशोक..


“कल ।”


मेरी बात काटकर वह लिमोजीन की तरफ बढ़ गई ।


अगले दिन हम नौ बजे 'बजाज भवन' पहुंचे । वातावतरण वैसा ही था जैसा किसी घर की 'चहेती' बहू के न रहने पर होना चाहिए था |


विभा ने होटल से ही कमीश्नर को फोन करके मणीशंकर बजाज को अपने बारे में बता देने के लिए कह दिया था ।


उसी का परिणाम था कि लिमोजीन जब आयरन गेट से शुरु होने वाले धनुषाकार ड्राइव-वे को पार करके शानदार पोर्च के नीचे रुकी तो अगवानी हेतु खुद मणीशंकर बजाज मौजूद थे ।


ड्राइव-वे के दोनों तरफ फैले विशाल और खूबसूरत लॉन को देखते मैं, शगुन और विभा लिमोजीन से बाहर निकले।


वेलकम करते वक्त मणीशंकर बजाज के चेहरे पर विभा के लिए सम्मान तो था परंतु उत्साह या गर्मजोशी नहीं थी।


उसके स्थान पर उदासी ने कब्जा जमा रखा था ।


जाहिर था कि वह उदासी पिछली रात घटी दुर्घटना के कारण थी ।


मणीशंकर बजाज हमें ड्राईंगरूम में ले गए।


अगर मैं वहां की भव्यता का वर्णन करने के स्थान पर सीधा काम की बात पर आऊं तो ज्यादा मुनासिब होगा और काम की बात ये है कि दुर्घटना पर अफसोस जाहिर करने के बाद विभा ने सीधा सवाल किया---- “मणीशंकर जी, क्या आप इस बारे में कुछ कह सकते हैं कि चांदनी ने ऐसा क्यों किया ?”


“क्या कहें, हमारी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।"


“क्या समझ में नहीं आ रहा ?”


“आज उस घटना को एक हफ्ते से ज्यादा हो गया जिसने हमारी शांत और खुशहाल जिंदगी में हलचल मचाकर रख दी थी ।” शून्य में आंखें टिकाए वे कहते चले गए ---- “पांच दिसंबर की सुबह थी वह, बल्कि सुबह ठीक से हो भी नहीं पाई थी, पांच ही बजे थे कि जमील अंजुम अपने सहायक के साथ आया। उसने कहा कि चांदनी ने रतन बिड़ला की हत्या की है। हमारे तो पैरों तले से धरती खिसक गई। यकीन ही नहीं आया कि वह बक क्या रहा है! हमने उसे धमकाया । चीफ मिनिस्टर से बात करने की बात कही। कहा कि बजाज भवन में घुसकर ऐसी बे- सिर-पैर की बात कहने की उसकी हिम्मत कैसे पड़ी? उसने बहुत ही विनम्र लहजे में कहा कि पहले मेरे पास मौजूद सबूत के बारे में सुन लीजिए, उसके बाद फैसला कीजिए कि इंसाफ पसंद - चीफ मिनिस्टर महोदय से बात करने से कोई लाभ भी होगा या - नहीं । हमने गर्जते हुए सबूत मांगा जवाब में जो सबूत उसने पेश किया उसके बारे में जानने के बाद हम न केवल अवाक् रह गए बल्कि मुंह में जैसे जुबान ही नहीं रह गई थी । ”


“ आप शायद चांदनी द्वारा ए.टी.एम. से निकाले गए पचास हजार की बात कर रहे हैं!"


“जी।”


“चार और पांच दिसंबर की रात को जब चांदनी कहीं गई ही नहीं थी तो आपने इस बात पर यकीन कैसे कर लिया कि उसने एटी. एम. से पैसे निकाले होंगे?”


बजाज की आंखें सुकड़ गईं, बोले- - - - “यह बात आपसे किसने कही कि उस रात वह कहीं नहीं गई थी?”


“क्या वह गई थी ?” विभा ने उनकी आंखों में झांका ।


“प्लीज, पहले मेरे सवाल का जवाब दीजिए।"


“ थाने में चांदनी ने इंस्पेक्टर से कहा था कि जिस वक्त मेरे एटी. एम. से पैसे निकले बताए जा रहे हैं उस वक्त मैं पति के साथ अपने बैडरूम में सोई हुई थी।”


इस बात का जवाब मणीशंकर बजाज ने एकदम नहीं दिया।


कुछ देर जाने क्या सोचते रहे, फिर एक गहरी सांस छोड़ने के बाद बोले - - - - “चांदनी ने ऐसा अपने बचाव के लिए कह दिया होगा।” 


“अर्थात् उस रात वह कहीं गई थी ?”


“जी।”


“कहां?”


“धीरज के यहां । ”


“धीरज?”


“धीरज सिंहानिया | गूजरमल सिंहानिया का बेटा । उनका नाम आपने जरूर सुना होगा । "


“कहीं आप उन्हीं गूजरमल सिंहानिया की बात तो नहीं कर रहे हैं जो टेक्सटाइल इंडस्ट्री के किंग माने जाते हैं?"


“वही ।” मणीशंकर बजाज ने बताया----“असल में अशोक और धीरज के बीच एक बिजनेस मिटिंग हुई थी। उसके बाद थोड़ी दोस्ती हो गई जो कि उनके हमउम्र होने की वजह से स्वाभाविक थी । सो, उस रात अशोक और चांदनी उन्हीं के यहां डिनर पर गए थे ।”


“दोनों?”


“हां | "


“कितने बजे निकले थे घर से ? ”


“साढ़े नौ बजे ।”


“लौटे कितने बजे ?"


“करीब एक बजे ।”


कुछ देर विभा चुप रही।


जैसे बजाज से किया जाने वाला अगला सवाल सोच रही हो, फिर बोली----“मैं अशोक से बात करना चाहती हूं।”


मणीशंकर बजाज ने बगैर कुछ कहे इंटरकॉम पर बंगले के किसी और हिस्से में संपर्क स्थापित करके अशोक को ड्राइंगरूम में बुलाया ।


कुछ देर बाद अशोक भी हमारे सामने था ।


उसके चेहरे पर उदासियां गर्दिश कर रही थीं ।


आंखें बता रही थीं कि जमकर रोया है।


अभी तक भी वह उन्हीं कपड़ों में था जिनमें हमने निजामुद्दीन पुल पर देखा था। विभा ने उसे बहुत गौर से देखते हुए पूछा- “जिस रात तुम लोग डिनर के लिए धीरज सिंहानिया के यहां गए थे, क्या उस रात साढ़े नौ से एक बजे तक चांदनी हर पल तुम्हारे साथ थी?”


- “ह... हां ।” यह छोटा सा वाक्य कहते वक्त वह थोड़ा हकलाया था, साथ ही अपने पिता की तरफ भी देखा था उसने ।


“क्या इस दरम्यान उसने ए. टी. एम. कार्ड का प्रयोग किया था ? "


“न... नहीं ।” लहजा एकबार फिर लड़खड़ाया।


“मिस्टर अशोक ।” एकाएक ही विभा का लहजा सख्त हो गया, उसने अशोक की आंखों में आंखें डालकर कहा - - - - “ इस बात को अच्छी तरह समझ लो कि यह हत्या का मामला है और तुम्हारा कोई भी झूठ उल्टा तुम्हें ही फंसा सकता है। ऐसे मामलों में सिर्फ सच बोलने वाला ही खुद को संदेह के दायरे से दूर रख सकता है।"


मेरा दिल 'धाड़ - धाड़' करके बजने लगा। इसमें कोई शक नहीं कि अशोक के जवाब देने के स्टाइल से जो शक मुझे हुआ था वही विभा को भी हो गया था । उस वक्त अशोक के चेहरे पर हवाईयां - सी उड़ती नजर आ रही थीं जब विभा जिंदल ने एक बार फिर सख्त लहजे में कहा ---- “सच बोलो, क्या उस रात चांदनी हर पल तुम्हारे साथ थी?”


“न... नहीं।” उसके जवाब पर मणीशंकर चौंकते नजर आए।


विभा ने पूछा---- “मतलब?”


अशोक ने एक ऐसी सांस ली जैसे लंबी दिमागी जिद्दोजहद के बाद सच बता देने का फैसला लिया हो और फिर बोला ---- "हुआ दरअसल यह था कि घर से निकलते ही चांदनी ने कहा'अशोक, मेरा मूड डिनर पर जाने का नहीं है।' मैं चौंका | बोला ---- 'ऐसी बात थी तो घर से क्यों निकलीं?' वह बोली---- ‘असल बात ये है अशोक कि कई दिन से मुझे पापा की बहुत याद आ रही है, मेरा मन उनसे मिलने और बातें करने को कर रहा है।' उसकी यह बात सुनकर मैं चकरा उठा। असल में चांदनी ने मुझसे अपने पापा की इच्छा के खिलाफ जाकर, घर से भागकर शादी की थी इसलिए उसके पापा ने यह कहते हुए संबंध तोड़ लिए थे कि वह उनके लिए मर चुकी है। जब मैंने कहा- ‘ऐसे हालात में तुम अपने पापा के पास कैसे जा सकती हो।'


तो वह बोली---- 'तभी तो तुम्हें साथ नहीं ले जा रही । अभी मैं खुद भी नहीं कह सकती कि वे कैसा व्यवहार करेंगे ! उनके द्वारा किया गया मैं अपना अपमान तो सह सकती हूं अशोक लेकिन तुम्हारा अपमान नहीं सह सकूंगी। जाने क्यों, मेरा दिल कह रहा है कि उनसे मिलूं। अपने किए की माफी मांगूं और उन्हें मनाने की कोशिश करूं । नहीं कह सकती कि अंजाम क्या होगा लेकिन दिल कह रहा कि एक कोशिश तो मुझे करनी ही चाहिए ।' जब उसने यह सब कहा तो मैं इंकार नहीं कर सका । कहा ---- “लेकिन इस बीच मैं कहां रहूंगा ?" तो बोली ---- 'धीरज के यहां डिनर पर चले जाओ।' मैंने कहा----'वह तुम्हारे बारे में पूछेगा तो क्या कहूंगा?' बोली ---- 'कह देना कि मेरी तबियत ठीक नहीं थी इसलिए नहीं आई। और फिर यही हुआ। मैं टैक्सी से धीरज के यहां गया और वह गाड़ी से फरीदाबाद ।”


“फरीदाबाद?”


“उसके पिता वहीं रहते हैं। वहां क्योंकि रात के वक्त टैक्सी से जाना सुरक्षित नहीं था इसलिए गाड़ी उसे दी । ”


“य... ये क्या कह रहे हो अशोक ?” मणीशंकर बुरी तरह चौंके थे ---- “यह बात तुमने हमें पहले तो कभी नहीं बताई !”


“सॉरी पापा, चांदनी ने मना किया था ।” वह बोला ---- “आप जानते ही हैं, क्यों? असल में आप भी इस बात को पसंद नहीं करते कि चांदनी अपने पापा से मिलने गई थी।”


“यानी तुम लोगों की घर वापसी साथ हुई थी ?” विभा ने पूछा ।


अशोक ने कहा- -“हां |”


“ फरीदाबाद से लौटते वक्त उसने मुझे फोन कर दिया था। तब तक डिनर भी खत्म हो चुका था । हम आश्रम चौक पर मिले और इस तरह साथ-साथ घर आ गए । ”


“क्या बताया उसने? पापा से क्या बातें हुईं ?”


“वह निराश और दुखी थी । कहने लगी कि वे पिछली बातों को भूलकर मुझे माफ करने को तैयार नहीं हैं। मैंने उसे सांत्वना दी कि एक दिन उन्हें हमें माफ करना ही होगा ।”


“ और अगली सुबह जब तुमने यह सुना कि पिछली रात वह छंगा - भूरा से मिली थी। उन्हें रतन के मर्डर की सुपारी दी थी तो तुम्हें क्या लगा? क्या तुम्हें शक नहीं हुआ कि वाकई ऐसा हो सकता है ?”


“हुआ था ।”


“ इस संबंध में चांदनी से बात की होगी ? ”


“की थी । ”


“क्या कहा उसने ?”


“यही कि यह सब झूठ है । मैं तो छंगा-भूरा को जानती तक नहीं । सच्चाई यही है कि मैं फरीदाबाद पापा से मिलने गई थी ।”


“ और तुमने यकीन किया ?”


“सच्चाई ये है कि नहीं।"


“वजह?”


“ उसके ए. टी. एम. से निकाले गए रुपयों का छंगा-भूरा के पास से बरामद होना ।" वह कहता चला गया - -“जब मैंने यह सवाल किया तो वह रोने लगी। कहने लगी कि अशोक, जब तुम्हीं मेरी बातों पर यकीन नहीं करोगे तो कौन करेगा? मैं सच कहती हूं ---- मुझे नहीं मालूम कि मेरे ए.टी.एम. से पैसे कैसे निकले और कैसे छंगा - भूरा के पास पहुंचे। बस इतना ही कह सकती कि किसी ने मुझे बुरी तरह फंसाया है । इसके बावजूद मुझे यकीन नहीं आया था लेकिन उसका दिल रखने के लिए दर्शाया यही कि मैंने विश्वास कर लिया है। वैसे भी, मन में यह भावना उठी थी कि उसने जो किया, ठीक ही किया । रतन को उसके गुनाह की सजा तो मिलनी ही थी । वह नहीं देती तो मैं देता । अब तो मेरा काम उसे कानून से बचाना था । पर दिल में यह अफसोस जरूर था कि वह मुझे सच्चाई क्यों नहीं बता रही? अगर उसने यह शानदार काम किया है तो मुझसे छुपा क्यों रही है?"


“मतलब यह हुआ कि अगर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि तुम्हें मालूम था कि रतन की हत्या उसी ने की है !”


वह खामोश रहा ।