21 सितम्बर, शुक्रवार

रणवीर की आँख एकदम से खुली । कुछ देर के बाद उसकी समझ में आया कि दरवाजे की घंटी बज रही थी । घंटी बजाने वाला भी बिलकुल ही बेसब्र हुआ जा रहा था । इतनी थकावट के बाद नींद तो उसे आनी ही थी । सौम्या और भव्या भी अपने कमरे में बेसुध पड़ी सो रही थीं ।

शाम के साढ़े पाँच बजने वाले थे । उसने उठकर दरवाजा खोला । घंटी के ऊपर हाथ रखे वेदपाल तपाक से घर के अंदर दाखिल हुआ ।

“मैं तो बस अब फायर ब्रिगेड को बुलाने वाला था । दिन में इतनी गहरी नींद सोता है कोई !”

“मैं दरअसल सौम्या को लेकर आज ही वापिस आया था । ससुराल में खाना-पीना कुछ ज्यादा ही हो गया तो बस आँख लग गई । कल से पुलिस लाइन में वापिस ड्यूटी जॉइन करूँगा । फिर ये मीठी नींद कहाँ !”

“सही बात है । ससुराल में जाओ तो सब कुछ ज्यादा-ज्यादा हो ही जाता है ।” कहकर वेदपाल ज़ोर से हँसा ।

“आराम से । वह दोनों अभी सो रहे हैं । चल, ड्राइंगरूम में बैठते हैं ।” रणवीर ने इतना कहकर फ्रीज़ से कोल्ड-ड्रिंक की बोतल निकाली और दो गिलास लिए ड्राइंगरूम पहुँचा ।

“मैंने पिछले दिनों तुम्हें काफी फोन लगाए रणवीर ! लेकिन तुमसे बात हो नहीं पाई । आज मैं इधर आया हुआ था तो सोचा तुमसे मिल लूँ ।”

“दरअसल मैं पिछले चार-पाँच दिन के लिए छुट्टी पर था, इसलिए मैंने अपना फोन अधिकतर ऑफ ही रखा था । फोन की बैटरी पुरानी हो गई है इसलिए जल्दी-जल्दी चार्ज करना पड़ता है । मैंने तुम्हें एक कूरियर किया था । उसके बारे में किसी खास बात का कुछ पता चला ?”

“हाँ, वही बात करने के लिए यहाँ आया हूँ । मैंने संत नगर से दो ब्लड सैम्पल लिए थे, जो मुझे अलग-अलग कोने में मिले थे । याद है ?”

“हाँ, दीवारों के साथ कोनों में मिले थे जो ! हाँ, क्या हुआ उनका ?”

“उसमें से एक ब्लड-सैम्पल उस लड़की के लाश के डीएनए के साथ हूबहू मिलता है ।”

“हाँ । ये बात तुम पहले भी बता चुके हो । वह लड़की संजय बंसल के घर में ही मारी गई और पास के गटर में उसकी लाश को डाल दिया गया । दूसरे सैम्पल के बारे में भी तुम कह रहे थे कि वह भी आपस में कुछ मिलते हैं ।”

“हाँ । अब अगली बात सुनो । पहले वह दोनों कड़ियाँ अलग-अलग थीं । जो रुमाल तुमने मुझे कूरियर से भेजा था, उस पर मिला ब्लड-सैम्पल इन दोनों कड़ियों को आपस में जोड़ता है ।”

“मतलब ?”

“मतलब ये कि जो ब्लड-सैम्पल तुम्हारे द्वारा कूरियर से भेजे रूमाल पर मौजूद है, वह उन दोनों यानी कि उस लड़की, जो लाश के रूप में मिली और वह आदमी या औरत, जो उस वक्त उस लड़की के साथ वहाँ घायल था या फिर थी या जैसे भी उसका खून वहाँ गिरा होगा, के बीच की कड़ी है ।”

“जो रुमाल पर खून था, वह रूप कुमार नाम के एक आदमी का है, जो पागल हालत में शहर में मारा-मारा घूमता है । उसकी लड़की रूपाली और उसका लड़का अक्षत फरवरी से लापता हैं । जो तुम कहना चाह रहे हो कि डीएनए टेस्ट के अनुसार लड़की की लाश रूपाली की है, ये बात कन्फ़र्म है । इस हिसाब से तो जो दूसरा शख्स वहाँ पर घायल था, वह अक्षत था, जिसकी लाश बाद में लावारिस हालत में मिली और जिसे देखकर उसका बाप पागल हो गया ।”

“वहाँ क्या हुआ, क्या नहीं हुआ, ये तुम जाँच करो । मैं सौ प्रतिशत ये शर्त लगाने के लिए तैयार हूँ कि जो सैम्पल मैंने उस लाश से लिए, उस कमरे से लिए और तुम्हारे भेजे रुमाल से लिए, वह एक ही परिवार के लोगों के है ।”

“हम्म । हमें इस बात के पक्के सबूत मिल गए हैं कि अक्षत ‘महक फार्महाउस’ में मैनेजर का काम देखता था । मोहित और रोहित उस फार्महाउस को चलाते थे क्योंकि बक़ौल शमशेर सिंह गेरा वह फार्महाउस पूरी तरह से मोहित गेरा के अंडर काम करता था । मोहित का लालच और बाप का रसूख उसे ड्रग्स और नकली दवाइयों के चंगुल में ले आया । ‘महक फार्महाउस’ का कोल्ड स्टोर उनका ड्रग्स का जखीरा जमा करने का ठिकाना था । बाप के दम पर उन्हें किसी का खौफ तो था नहीं । अक्षत को या तो उनके गोरखधंधे का पता चल गया था या वह इस काम से अपना पिंड छुड़ाना चाहता था । हो सकता है, उनके बीच में इस बात को लेकर कोई झगड़ा या फसाद हुआ होगा जिसमें अक्षत अपनी जान से हाथ धो बैठा । उसकी बॉडी को फिर इन पाँचों ने मिलकर ठिकाने लगा दिया ।”

“लेकिन वह लड़की रूपाली ! वह कैसे इस चपेट में आ गई ?”

“वह शायद अपने भाई को ढूँढ़ते हुए ‘महक फार्महाउस’ या संजय बंसल के घर पहुँची होगी या अक्षत ने उसे अपने फँस जाने की सूचना दी होगी । बस वह नादान लड़की जोश में वहाँ पहुँच गई होगी और मारी गई होगी । डॉक्टर नवनीत ने पोस्टमार्टम के बाद कहा था कि बड़ी बुरी मौत मारी गई थी वह लड़की ।”

“तो फिर अब... तुम क्या करोगे इस सबूतों का ?”

“ये सबूत तो तब काम में आते जब मेरी पोस्टिंग अभी भी वहाँ होती और मैं इस मामले में तहक़ीक़ात करता और गवाही देता । वह मोहित गेरा और उसकी चांडाल चौकड़ी इस मामले की दोषी करार दी जाती । लेकिन अब न जुल्म करने वाले बचे, न जुल्म के शिकार और ऊपर से ऐसा अधिकारी वहाँ बैठा दिया गया है, जो सारे सबूतों को खत्म करता जा रहा है ।”

“लेकिन इंसाफ तो होना ही चाहिए । कोई पीड़ित मर जाये और उसकी आवाज उठाने वाला पागल हो तो इसका मतलब ये तो नहीं कि इंसाफ किसी अंधेरी गली में गुम हो जाएगा ।”

“मैं वरियाम सिंह से बात करने की कोशिश करूँगा । मेरे ख्याल से वह इस बात को जरूर समझेगा और मामले को किसी नतीजे तक पहुँचाएगा ।”

“ठीक है । एक बात और मैं कहना चाहूँगा, फिर मैं चलता हूँ ।”

“अरे ! वेद भैया आएं हैं और तुमने मुझे जगाया नहीं ।” तभी सौम्या की शिकायत भरी आवाज उस दोनों को सुनाई दी । शायद वह उनकी लगातार आती आवाज से जाग गई थी, “मैं अभी आप दोनों के लिए कुछ लेकर आती हूँ ।” सौम्या इतना कहकर किचन में चली गई, फिर वह काफी देर तक इस मसले पर बात करते रहे ।

जब वेदपाल, रणवीर के घर से रवाना हुआ तो शाम के सात बजने वाले थे । रणवीर ने एक बार सिटी पुलिस स्टेशन जाने की सोची । तब तक सूरज अंधेरे की आग़ोश में सो गया था । रोशनी को जिंदा रखने की ख़्वाहिश लिए जगह-जगह बल्ब चमकने लगे थे । रणवीर अपनी रॉयल एनफ़ील्ड पर सवार होकर सिटी पुलिस स्टेशन पहुँचा । असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर दिनेश ऑफिस में किसी फ़ाइल में उलझा हुआ था । रणवीर को देखकर उसके चेहरे पर एक राहत भरी मुस्कान आई ।

“जयहिंद, सर ! आप इस वक्त... । आइये ।” वह कुर्सी की तरफ इशारा करता हुआ बोला ।

“नहीं, दिनेश ! आज मैं बैठूँगा नहीं । मैं वरियाम सिंह से मिलना चाहता था । वह कहीं फील्ड में गया हुआ है क्या ?”

“नहीं, सर ! यहीं पर हैं, इंस्पेक्टर साहब ! वह मैस के बराबर वाले कमरे में बैठे हैं । आइये मैं आपको... ।”

“कोई बात नहीं । तुम अपना काम करो । मैं देखता हूँ ।” इतना कहकर रणवीर उस कमरे की तरफ बढ़ गया जो उसके समय में उजाड़ पड़ा रहता था, लेकिन आज आबाद था, क्योंकि थानेदार ‘साहब’ वहाँ पर खुद मौजूद थे !

रणवीर को देखते ही कदम सिंह, जो वहाँ ‘साहब’ की सेवा में खड़ा था, कमरे से बाहर हो लिया । वरियाम सिंह  वहाँ पर पूरी महफिल जमाये बैठा था । वह अपनी लड़खड़ाती जुबान से बोला –

“ओ हो, इंस्पेक्टर साहब आए हैं ! आओ… आओ... साहब, यहाँ बैठो ! आप तो बड़े कमाल के वक्त पर आए… । आओ... यहाँ कुर्सी पर बैठो । अरे कदम... साहब आए हैं भाई ! कुछ लाओ... साहब के लिए । क्या लोगे ? व्हिस्की... । अंगरेजी है... ।”

“नहीं । मुझे वापिस घर जाना है और वैसे भी मैं लेता नहीं ।”

“लेते नहीं, इसीलिए तो परेशान रहते हैं आप... आप... इंस्पेक्टर साहब ! मैं तो ले लेता हूँ... ले लेता हूँ मैं तो । जो भी कोई प्यार से दे... मैं तो ले लेता हूँ । इसका मतलब ये नहीं कि मेरे घर नहीं है । है मेरे घर... घर है, पूरी कोठी है । आना कभी फैमिली के साथ ।”

रणवीर ने अपने माथे पे हाथ मारा ।

‘ये कहाँ गलत टाइम पर आ गया । ये कुछ समझने-समझाने के मूड में नहीं है ।’

“क्या बात ? सिर में दर्द है... सिर ठक-ठका रहे हो । बैठो... मैं टबलेट मँगाता हूँ । वैसे तुम ये मेरी वाली खुराक ले लो... सर दर्द दूर... ।”

“अरे नहीं, वरियाम सिंह ! मैं बीच में बाहर छुट्टी पर चला गया था । तुमसे मिल नहीं पाया । आज सोचा तुमसे मिल लूँ ।”

“अच्छा किया… बहुत अच्छा किया तुमने । मिलना चाहिए आपस में । प्यार बढ़ता है, दोस्ती बढ़ती है मोह... मोहबत बढ़ती है । पर इंस्पेक्टर साहब, तुम ऐसे ही... खाली बैठे हो... मुझे अच्छा नहीं लग रहा । अरे कदम... !”

तभी कदम कोल्ड ड्रिंक की बोतल ले आया और रणवीर को एक गिलास में डालकर दिया ।

“अरे कदम ! ये तो यार... आज बात बनी नहीं । एक बोतल और लेके आ... अब तो साहब आ गए हैं तो... थोड़ा और बैठना पड़ेगा । अब खाली तो मैं क्या बैठूँगा । जा, मेरे लिए एक और ले आ ।”

रणवीर ने असहाय भाव से पहले वरियाम सिंह की तरफ देखा । कदम सिंह ने उससे नजरें नहीं मिलाई और वह चुपचाप बाहर निकल गया ।

“तुम पहले ही बहुत पी चुके हो, वरियाम सिंह ! अब बस करो । मैं तुमसे मोहित गेरा के केस के बारे में बात करने आया था, लेकिन लगता है कोई फ़ायदा नहीं है शायद ।”

“क्या बात करते हो इंस्पेक्टर रणवीर... साहब ! तुम अगर ये सोचते हो कि मैं नशे में हूँ, तो तुम गलत सोचते हो । मैं बिलकुल ठीक हूँ... चुस्त... चाक-चौबन्द... अलर्ट । जो तुम कहना चाहते हो... बेखटके कहो । वह लड़का... शमशेर का... मर गया वह तो । साले ने कार सीधी ठोक दी पेड़ में । ये तो पता लग गया होगा तुमको । मोहित गया, रोहित गया और बाकी लौंडे भी गए इस दुनिया से... । इस केस में अब बात करने को रह ही क्या गया है... टट्टू ?”

“हाँ । टट्टू ही रह गया है और मुझे लगता है तुम वह भी खोल दोगे !”

“बिलकुल खोल देंगे... इंस्पेक्टर साहब ! इस साले टट्टू का हमने क्या करना है । उसे खोलने के लिए ही तो हम यहाँ आए हैं और... खोल भी दिया । अब वतन आजाद है... केस क्लोज्ड । वो दोनों छोकरे वहाँ बैठ के पार्टी कर रहे थे । नशे में तो थे ही... बस उनकी लापरवाही से आग लग गई । संजय बंसल... वहीं जल गया और रोहित भी आग के लपेटे में आ गया । वह किसी तरह से मोहित को फोन करने में... कामयाब हो गया । मोहित ने उसे ले जाकर मेट्रो हॉस्पिटल में दाखिल करवा दिया । वहाँ उसका इलाज हो रहा था और तुमने बात का खामखाह बतंगड़ बना दिया ।”

“अनिकेत... उसके बारे में क्या कहोगे ? वह ‘महक फार्महाउस’ में मरा हुआ मिला है और उसकी लाश भी वहाँ से कई दिनों में मिली थी । संजय और अनिकेत को गोली मारी गई थी और अनिकेत को टॉर्चर किया गया था । इस मामले में क्या कहोगे ?”

“ वो ... वो तो किसी ने महक फार्महाउस को... लूटने की कोशिश की थी । अनिकेत वहाँ अकेला था बेचारा । चोरों ने उससे सेफ की चाबी माँगी और न देने पर पहले उसकी खूब पिटाई की और बाद में उसकी हत्या कर दी । चाबी दे देता तो बच जाता, पर नहीं दी... । अब नहीं दी तो भुगतो... तो मार दिया चोरों ने पीट-पीटकर... और तुम उसे टॉर्च... टॉर्चर कह रहे हो । तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ... इंस्पेक्टर साहब... अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है ।”

“वाह... बड़े अच्छे ढंग से अपना काम कर रहे हो वरियाम सिंह !”

“मैं अपना काम हमेशा... अच्छे ढंग से... बड़ी नफासत से और सफाई से करता हूँ । इसीलिए तो मैं बड़े-बड़े सफाई पसंद लोगों को बहुत पसंद हूँ । बेकार का रायता फैलाना मुझे पसंद नहीं... । आई कीप इट सिम्पल... मगर तुम इस हीरे की कीमत क्या जानो... इंस्पेक्टर साहब ! आह, दुनिया है... चलता है । लो, कोल्ड ड्रिंक लो । मेरी बात सुनकर इस गिलास को भी बाहर से पसीने आ गए । हा... हा... हा ।”

“और गौरव कालिया ! उसका क्या किस्सा बनाया तुमने ? वह केस कैसे निपटाया तुमने ? वह भी तो वहीं अनिकेत के घर था । संजय बंसल और गौरव की मौत का टाइम एक ही है । एक ही पिस्टल की गोली से दोनों की मौत हुई है । ऐसा फॉरेंसिक रिपोर्ट कहती है ।”

“गौरव की लाश तो वीरू के ढाबे... वाले रास्ते के पास मिली थी । फिर वह केस... संजय बंसल के केस के साथ जुड़ा हुआ थोड़े ही न है । जहाँ तक टाइम की बात है, उस दिन पूरे डिस्ट्रिक्ट में आठ मर्डर हुए हैं । उनमें से इन दोनों के अलावा दो केस ऐसे पाये गए हैं... जिसमें मौत उसी वक्फ़े यानी टाइम पीरियड में हुई है । तुम्हारे हिसाब से तो... वह दोनों भी अनिकेत के घर में मारे गए होंगे और फिर कातिल ने उनकी लाश की डिलीवरी... अलग-अलग जगह कर दी कि लो भाई ! पुलिस वालों ! मैंने अपना काम कर दिया । अब तुम अपना खेल खेलो । क्या बात करते हो यार ! लाश कोई चलकर गई... वहाँ । सीधी-सी बात है, जो जहाँ मरा... वहीं पर मुर्दा पाया गया । तुम्हारी जानकारी के लिए मैं एक बार फिर बता दूँ कि इस मामले में भी अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है ।”

“इसका मतलब तुम अपनी छानबीन पूरी कर चुके हो और मामला कोर्ट में दाखिल कर दिया ? मेरी जो छानबीन थी और वह गोलियाँ मैंने मौका-ए-वारदात से बरामद की थी, उनकी कोई कीमत नहीं ?”

“कौन-सी गोलियाँ ?”

“जो सबूतों के तौर पर माल खाने में जमा हैं । वह दो हथियार, जो मैंने ‘महक फार्महाउस’ के पास वाले तालाब से बरामद किए थे ।”

“अच्छा वो ! वो चौकस हैं । मैंने संभाल लिए हैं । मुझे दोबारा से चेक करवाने पड़ेंगे । जो रिवॉल्वर शमशेर गेरा की बताई जा रही है, उसमें कुछ झोल है । उसकी रिवॉल्वर तो उसके घर से बरामद हो गई है । घर में ही कहीं खो गई थी । तुम पता नहीं... कौन-सी रिवॉल्वर लेकर उसके पीछे हाथ-मुँह धोकर पड़ गए थे !”

“ओह, तो यहाँ भी अपना रंग दिखा दिया तुमने !”

“अपने तो यहीं ठाठ है... इंस्पेक्टर साहब ! किसी को जानबूझकर फँसाना मेरी आदत नहीं । नर्म दिल है मेरा । कानून भी कहता है कि सौ गुनाहगार छूट जाए... पर कोई बेगुनाह सजा न पाये । अब सबूत ही नहीं हैं तो बताओ मैं कैसे उन्हें फाँसी पर चढ़ा दूँ । अरे यार... इंस्पेक्टर साहब, तुम भी कहाँ की बातें ले बैठे । कदम... ओ कदम ! पता नहीं कहाँ रह गया सुस्त आदमी !”

तभी कदम सिंह तेजी से उस कमरे में दाखिल हुआ । उसके हाथ में व्हिस्की की बॉटल थी । वरियाम के चेहरे पर तत्काल खुशी के भाव आए । फिर वह अपना गिलास भरने में मशगूल हो गया । रणवीर ने अपना कोल्ड-ड्रिंक का गिलास उठाया और खाली कर दिया । उसका दिमाग किसी ज्वालामुखी की तरह धधक रहा था, जो कभी भी फट सकता था । वरियाम ने उसका गिलास फिर कोल्ड ड्रिंक से भर दिया और खुद अपना गिलास एक साँस में खाली कर दिया । कड़वा-सा मुँह बनाते हुए, वह दोबारा फिर अपना गिलास भरने लगा ।

वरियाम सिंह ने एकाएक अपना फोन निकाला । उसमें से वह कोई नंबर मिलाने की कोशिश करने लगा ।

“लगता है, मेरे फोन का नेट चला गया है । तुम्हारा फोन देना मुझे । एक जरूरी कॉल करनी है । डीएसपी साहब को फोन करना है ।”

रणवीर ने अपना फोन निकालकर उसे दिया ।

“तुम कहो तो मैं फोन मिला दूँ । डीएसपी हरपाल का नंबर है मेरे पास ।”

“तुम समझते हो, मैं नशे में हूँ । नहीं... बिलकुल नहीं... । ऐसा तो सोचो ही मत । लगता है लोगों को, मैं नशे में हूँ, पर होता नहीं ।” फोन हाथ में लेते हुए उसने कहा और एक नंबर अपने फोन से डायल करने लगा, “अरे यार । तुम्हारे फोन से भी नहीं लग रहा । लगता है, अपना डीएसपी ही आउट ऑफ रेंज है । हो... हो... हो ।” कहकर उसने फोन रणवीर को दे दिया ।

“मैं तुम्हारी बात रिकॉर्ड नहीं कर रहा हूँ । ऐसा करना होता तो तुम्हें पता भी नहीं चलता ।” रणवीर ने मुस्कराते हुए कहा ।

“वह बड़े श्याने कह गए है न... कुत्ते का कुत्ता बैरी । चौकस रहने में हर्ज ही क्या है ! तुम भी ध्यान रखा करो । हाँ... आजकल सारे लोग जासूस बने घूम रहे है ।” इतना कहकर वह ज़ोर से हँसा । नशा उसके दिमाग पर हावी होता जा रहा था, “इसमें नाराज होने की कोई बात नहीं है ब्रदर ! तुम भी इंस्पेक्टर और मैं भी । जब तुम यहाँ पर अपना काम कर रहे थे तो क्या मैं तुम्हारा हाथ पकड़ने आया... नहीं... । मेरी जगह कोई और आएगा तो मैं भी नहीं आऊँगा... नथींग पर्सनल । साला... उसने जो करना है... वह करे । मेरे को जो करना था... वह मैंने किया ।”

“इस केस को अपने आकाओं के हिसाब से मरोड़ना और उन्हें पाक-साफ निकालना ही तुम्हें यहाँ भेजने का मकसद था । तुमने वह काम बखूबी कर दिया ।”

“हाँ । तुमने छानबीन की और एफआईआर दर्ज की वह तुम्हारा काम था । अब उस केस में आगे क्या होगा, ये मेरी छानबीन और रिपोर्ट पर निर्भर करेगा । जहाँ तक आकाओं की बात है तो अपना आका एक ही है... पईसा... । मुफ्त में तो मैं कहीं मूतने भी न जाऊँ । ये जो नशा ईमानदारी का है न, मुझे भी था लेकिन साला जिंदगी की जरूरतों ने सारा उतार दिया । और कुछ बात करनी है तुम्हें... जनाब... इंस्पेक्टर साहब... ?” दूसरा गिलास खाली करने के बाद अब वह तीसरा गिलास अपने लिए भरने जा रहा था ।

“हम्म । पिछले दिनों मैंने संत नगर से एक लड़की की लाश बरामद की थी ।”

“तो फिर, उस लाश से मेरा क्या लेना-देना ? वह तो तुमने ठिकाने लगा दी होगी ।” उसने कड़वा-सा मुँह बनाते हुए कहा ।

“ये फोटो देख रहे हो । इसमें ये जो लड़का बीच में खड़ा है, उसका नाम अक्षत है और ये इस बूढ़े आदमी का बेटा है जो इनके साथ दिखाई दे रहा है । इस बूढ़े आदमी का नाम है रूप कुमार वर्मा । इस लड़के की लाश भी तुमने बरामद थी और जिसे देखकर ये आदमी पागल हो गया था ।” रणवीर ने वरियाम सिंह को फोटो दिखाते हुए कहा ।

“अरे जनाब... इंस्पेक्टर साहब ! मैंने बहुत सारी लाशें देखी हैं अपने... अपने... कैरियर में । मुझे पता होता आप... जनाब... इनिस्पेक्टर रणवीर... मुझसे इस बारे में पूछेंगे तो मैं अवश्य ही उनके एल्बम बनाकर रखता । ब्रदर... पहली वाली का मजा तो जाता रहा... अब दूसरी की ऐसी-तैसी तो न कर ।” उसने अपना तीसरा गिलास भी खाली कर दिया और अगले की तैयारी करने लगा ।

“तुमने ही कहा था कि टाइम ठीक है बात करने को, जो मैं तुमसे करने के लिए आया था ।”

“जनाब इंस्पेक्टर साहब... आप एसएचओ वरियाम सिंह से इस थाने में इन लोगों के बारे में बात करने आए थे । भाई वाह... तुम्हारा भी क्या कहना जनाब... !” 

“ठीक है, ठीक है । मैं तो इस लड़की के बारे में पूछ रहा था जो इस तस्वीर में इन दोनों के साथ है । फॉरेंसिक रिपोर्ट कहती है कि ये लड़का अक्षत और ये रूपाली इस बूढ़े आदमी की संतान हैं । इस लड़की की लाश संत नगर के गटर में मिली और इस लड़के अक्षत की लाश तुमने बरामद की थी ।” रणवीर दूसरी फोटो दिखते हुए बोला ।

“लड़की के फोटो... दिखाओ... कुछ तो अच्छा-अच्छा देखने को मिले ।” रूपाली की फोटो देखते हुए वह बोला, “ओह, ये लड़की ! ये आई थी... आई थी... एक बार मेरे पास अपने बाप को साथ लेकर । उसका भाई लापता था और मिल नहीं रहा था ।”

“तुम्हारे पास आई थी ? फिर कोई रपट दर्ज की थी तुमने ? मुझे तो रिकॉर्ड में मिली नहीं कोई ऐसी रिपोर्ट ।”

“उसका भाई किसी बात को लेकर अनिकेत और मोहित गेरा से उलझ गया था । संत नगर में उन्होंने इसके भाई को बातचीत के लिए बुलाया था । मुझे भी मोहित ने फोन किया था कि मैं वहाँ आ जाऊँ ताकि कोई... कोई लफड़ा न हो । वहाँ पर उन दोनों की आपस में कहा-सुनी हो गई और ये लड़का चोट खा बैठा था । ये लड़की उस लड़के के बारे में ही रिपोर्ट दर्ज करने की बात कर रही थी ।”

“जब ये यहाँ पुलिस स्टेशन आई थी अपनी रिपोर्ट दर्ज करवाने, तो ये यहाँ से संत नगर कैसे पहुँची ?” 

“अब हम पर तो विश्वास होता नहीं है न इस... पब्लिक का । मेरे पीछे-पीछे संत नगर पहुँच गई वह... अपनी स्कूटी उठाकर ।”

“वह लड़की संत नगर क्यों जाएगी अपने आप अकेली तुम्हारे पीछे ?”

“अरे, उसे किसी तरह पता चल गया होगा... इंस्पेक्टर साब... कि उसका भाई संत नगर में है । मैंने तो वहाँ जाना था... वहाँ जा ही रहा था मैं... बस वह मेरे पीछे-पीछे आ गई ।”

“जब तुम वहाँ पहुँचे तो क्या अक्षत जिंदा था ?” रणवीर ने व्यग्रता से पूछा ।

“ये लड़की वहाँ न पहुँचती तो वह दोनों ही जिंदा बच जाते । इस लड़की को देखकर उन रईसजादों के अंदर का हैवान जाग उठा । वह लड़का घायल था और उसके हाथ-पैर बंधे थे ।” वरियाम सिंह ने व्हिस्की की बॉटल अपने मुँह से लगा ली । अब उसके दिल और दिमाग के तार टूट चुके थे । जो वह कह रहा था, उस पर उसके दिमाग का कोई ज़ोर नहीं था, “ वो चारों लड़के उस लड़की के ऊपर किसी भूखे भेड़ियों की तरह टूट पड़े । उस लड़के को वो लोग सबक सिखाना चाहते थे । वह लड़का बेबस वहाँ तड़पता रहा और उस लड़की पर होते हुए जुल्म को देखता रहा ।”

“तो तुम वहाँ क्या कर रहे थे ? तुमने फोर्स क्यों नहीं बुलाई ? यहाँ थाने में फोन क्यों नहीं किया ? उन छोकरों को गोली से क्यों नहीं उड़ा दिया ? उसका बाप रूप कुमार कहाँ रह गया था ? बोलता क्यों नहीं तू हरामजादे ?” रणवीर गुस्से से बेकाबू हो गया ।

रणवीर की दहाड़ सुनकर दिनेश और कदम दौड़कर कमरे में आए तो उन्हें तुरंत कोई माजरा समझ नहीं आया । वह रणवीर का तमतमाता चेहरा देखकर दुविधा में थे ।

“मैंने उन्हें गोली से क्यों नहीं उड़ाया... ? हा... क्या बकवास करता है ये आदमी... ! पैसा इस बात का नहीं मिलता मुझे... । वह पार्टी बहुत देर तक चली... । मुझे भी मजा आया बहुत... उस पार्टी में... । सब माल टॉप क्लास । वैसे बहुत जान थी उस छोकरी में... । मरते दम तक अपनी बजाय अपने भाई को छोड़ने की गुहार लगाती रही... बहुत जान थी... ।” आगे के शब्द वरियाम सिंह के मुँह में ही रह गए ।

रणवीर की जोरदार लात वरियाम सिंह की छाती पर पड़ी । वह कटे हुए भैंसे की तरह डकारता हुआ कुर्सी से नीचे गिर पड़ा । दूसरी लात उसके पेट पर पड़ी लेकिन वह नशे की अधिकता की वजह से अपना होश खो बैठा था । दिनेश ने बड़ी फुर्ती से रणवीर को पकड़ने की असफल कोशिश की । रणवीर पागलों की तरह अपनी कमर पर हाथ मार रहा था, उस रिवॉल्वर की तलाश में, जो हमेशा वहाँ होती थी लेकिन उसे ध्यान आया कि उसके तबादले के बाद वह थाने में जमा हो चुकी थी । वह वरियाम के दफ्तर की तरफ लपका । दिनेश उसकी मंशा भाँप अनिल को देखकर चिल्लाया और उसने अनिल को दफ्तर का दरवाजा बंद करने के लिए कहा ।

वरियाम की रिवॉल्वर वहीं उसकी वर्दी में लटक रही थी । अनिल ने भागकर दरवाजा बंद कर दिया और खुद दरवाजे के आगे अड़ गया । तब तक दिनेश वापिस रणवीर के पास पहुँच चुका था । दिनेश और कदम सिंह ने अनिल और कृष्ण के साथ मिलकर बड़ी मुश्किल से रणवीर को काबू में किया ।

“सर, ये क्या कर रहे हैं आप ! इस आदमी के लिए आप अपनी जिंदगी को क्यों दाँव पर लगा रहे हैं ? आप अपने परिवार और कैरियर के बारे में सोचे । इसको मारकर क्यों इस जलील को शहीद करना चाहते हैं ?”

“नहीं दिनेश ! हमारे बीच के ऐसे ही भेड़ों ने हमें बदनाम कर दिया है । ये हरामजादा वहाँ जाकर अपनी वासना में डूब गया और दो मासूम इसके देखते-देखते मारे गए । उन लोगों का पूरा परिवार तबाह हो गया । इसे मार डालूँगा मैं ।”

“नहीं सर, इस आदमी के लिए मैं आपको अपना जीवन बर्बाद नहीं करने दूँगा !” दिनेश ने मजबूती से कहा, “आप बाहर चलिए । मैं आपको घर तक छोड़कर आता हूँ ।”

कदम और अनिल, दिनेश के साथ रणवीर को बड़ी मुश्किल से समझा-बुझाकर पुलिस स्टेशन के गेट के बाहर ले आए । दिनेश ने रणवीर की रॉयल एंफील्ड स्टार्ट की ।

“सर, प्लीज ! मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ । प्लीज, आप बैठ जाइए । इस वक्त को गुजर जाने दीजिये और ठंडे दिमाग से सोचिए ।”

रणवीर, कदम और अनिल की गिरफ्त से अपने आपको आजाद करते हुए बाइक की बैक सीट पर बैठ गया । दिनेश उसे लेकर उसके घर की तरफ चल पड़ा । उनके पीछे-पीछे अनिल भी एक बाइक पर उनके साथ था । सौम्या ने जब दरवाजा खोला तो रणवीर का चेहरा देखकर उसकी साँसे थम गईं ।

“क्या हुआ रणवीर ? तुम इस तरह से कैसे हो ? क्या हुआ दिनेश ?”

“कुछ नहीं । बस आप सर का ख्याल रखिए और अब बाहर मत जाने दीजियेगा ।” इसके बाद रणवीर ने सारी बात संक्षेप में बताई ।

“अरे, अब ऐसा कुछ नहीं होगा दिनेश ! तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया । तुमने फर्ज निभाने के साथ-साथ मेरे एक दोस्त की तरह से भी काम किया ।” रणवीर ने उसे आश्वस्त किया ।

दिनेश ने अपना सिर हिलाया और विदा लेकर वापिस सिटी पुलिस स्टेशन पहुँचा । वरियाम सिंह ने उल्टियाँ कर-करके वहाँ पर बुरा हाल मचा रखा था । दिनेश के चेहरे पर वितृष्णा के भाव आए और उसने कदम सिंह से किसी को बुलाकर उस कमरे की सफाई करवाने के लिए कहा ।

“ये क्या हालत बना रखी है ! अब तो तुम घर आ गए हो । अपनी इन बंद मुट्ठियों को खोल लो । किसी जंग से आए हो या फिर जाना है ? चलो, नहा लो एक बार । थोड़ा रिलैक्स हो जाओगे । तब तक मैं खाना लगाती हूँ ।”

खाने की टेबल पर वह बैठे तो सही लेकिन रणवीर की आँखों के सामने कभी अक्षत, कभी रूपाली और कभी दीवारों पर सिर पटकते रूप कुमार का चेहरा घूमता रहा । उससे निवाला न निगला गया और वह टेबल से उठ गया ।

रात को बड़ी मुश्किल से उसकी आँख लगने वाली थी कि उसके फोन में होने वाली वाइब्रेशन की आवाज से वह उठ बैठा ।

दिनेश लाइन पर था ।

“सर, वरियाम सिंह रात को बारह बजे अपने हालात सुधरने के बाद अपने घर जाने के लिए अपनी कार में गेट के बाहर बैठने ही वाला था कि किसी ने उसे टेलेस्कोपिक गन से शूट कर दिया । वह गेट के बाहर ही ढेर हो गया । दो गोली दिल में और एक गोली भेजा उड़ाकर चली गई ।”

रणवीर ने गहरी साँस लेकर फोन लाइन काट दी और गहरी साँस लेकर फोन स्विच ऑफ कर दिया । आज उसे कई दिनों के बाद गहरी नींद आने वाली थी । ये राख अभी ठंडी नहीं हुई थी । उसमें आग अभी बाकी थी ।