दूर खड़ी लोगों की भीड़ में खलबली मच गई।


परंतु इधर ।


न मेढक इंसानों पर ही इस बात का कोई विशेष प्रभाव पड़ा और न ही सुनहरी छिपकलियों पर ।


-"खैबड़ा!" तीव्र डकार के साथ एक मेढक इंसान अपनी ओर की एक सुनहरी छिपकली पर झपटा। प्रत्युत्तर में छिपकली के कंठ से एक खौफनाक आवाज निकली। एक ऐसी खौफनाक और भयानक आवाज कि किसी भी दिल में उतरती चली जाए और प्रत्येक दिल कांप उठे।


इधर मेढक इंसान झपटा... उधर सुनहरी छिपकली ने भयानक आवाज के साथ अपना जबड़ा खोल दिया...उफ् छिपकली का जबड़ा बेहद खतरनाक था ! इतना डरावना कि देखते ही चीख निकल जाए! उसके नीचे और ऊपर के दोनों जबड़ों में दो-दो लंबे और नुकीले दांत थे। जिन्हें देखते ही प्रतीत होता था कि वे एक ही सेकंड में किसी भी सख्त-से-सख्त खाल को उधेड़कर रख सकते हैं। मेढक इंसान के झपटते ही छिपकली ने अपना भयानक जबड़ा खोल दिया। भयानक, डरावनी और खौफनाक आवाजों के साथ मेढक इंसान छिपकली के जबड़े पर जा गिरा। छिपकली के नुकीले दांत मेढक इंसान की खाल पर जमे, किंतु इससे पूर्व कि वे मेढक जैसी खाल में धंस सकें, मेढक इंसान उछला और खाल चिकनी होने के कारण छिपकली के तेज, लंबे नुकीले दांत अपने इरादों में सफल न हो सके, मेढक इंसान छिटककर दूर जा गिरा था।


तभी आश्चर्यजनक फुर्ती और खौफनाक जंप के साथ


सुनहरी छिपकली मेढक इंसान पर झपटी और फिर !


अगले ही पल वहां खौफनाक आवाजें उत्पन्न होने लगी!


छिपकली और मेढक इंसान एक-दूसरे से गुंथ गए !


अन्य सभी मेढक इंसान और छिपकलियां उन दोनों का खतरनाक युद्ध देखती रही, न वे आपस में ही टकराए और न ही उनके मध्य कोई आया।


टुम्बकटू महाशय इस समय कुछ भी करने की स्थिति में न था। वह तो बस उस जबड़े में कैद होकर रह गया था। मेढक इंसान और पंद्रह फीट लंबी छिपकली का यह भयानक युद्ध देखकर वह स्वयं भी हतप्रभ था !


उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि धरती पर एक-से-एक अधिक खौफनाक वस्तु है।


अभी मेढक इंसान और छिपकली के इस खौफनाक युद्ध का कोई परिणाम निकल भी नहीं पाया था कि !


---'रेट... रेट... रेट ।'


चारों ओर फैली मिलिटरी की रायफलें गरज उठी।


अगले ही पल भयानक डकारों से वातावरण कांप उठा। गोलियां मेढक इंसान और छिपकलियों----- दोनों ही के जिस्में से टकराई।


परंतु कुछ गोलियों ने अपना करिश्मा दिखाया ----- लेकिन कुछ व्यर्थ भी गई। यानी जो गोलियां मेढक इंसानों के जिस्मों से टकराई वे तो अपने लक्ष्य में सफल हो गई। गोलियां लगते ही उनके कंठों से भयानक चीखें निकली और अगले ही पल वे तड़पने लगे, परंतु जो गोलियां सुनहरी छिपकलियों के जिस्मों से टकराई, वे पूर्णतया व्यर्थ गई।


छिपकलियों के जिस्मों पर गोलियों का लेशमात्र भी प्रभाव न हुआ... ...गोलियां उनके जिस्मों पर लगी और छितराकर बिना कोई करिश्मा दिखाए शहीद हो गई। जबकि मेढक इंसानों के जिस्मों पर लगी गोलियों ने अपना पूर्ण प्रभाव दिखाया।


अत: गोलियों के शिकार मेढक इंसानों के कंठों से अंतिम व हृदयविदारक चीखें निकल रहीं थीं और वे तड़प रहे थे।


और यहीं मेढक इंसान मात खा गए ।


ये विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि मेढक इंसान सुनहरी छिपकलियों से परास्त हो जाते-----परंतु पुलिस की उपस्थिति में उन्हें परास्त होना पड़ा।


इस बीच एक अन्य खौफनाक खेल भी वहां हुआ था।


वह यह कि जैसे ही सनसनाते हुए कुछ अंगारे उस मेढक इंसान के जिस्म में धंसे, जिसके जबड़े में टुम्बकटू कैद था ----- वैसे ही वह मेढक इंसान बुरी तरह कंठ फाड़कर चीखा--और खौफनाक छलावे के लिए यह अवसर बहुत अधिक पर्याप्त था।


-- मेढक इंसान के चीखते ही टुम्बकटू खौफनाक छलावे की भांति जबड़े से मुक्त होते ही वायु में लहराया - - परंतु इसका क्या किया जाए कि उसके वायु में लहराते ही पंद्रह फीट लंबी सुनहरी व भयानक छिपकली बेहद फुर्ती के साथ वायु में लहराई और अगले ही पल टुम्बकटू उस भयानक छिपकली के जबड़ों के बीच फंसा था।


टुम्बकटू चाहता तो इस बार छिपकलियों की पकड़ से मुक्त हो सकता था, किंतु इसका क्या किया जाए कि इस खौफनाक छलावे के मस्तिष्क का शरारती कीड़ा कुलबुलाया और पल-भर में वह यह निर्णय कर बैठा कि क्यों न चलकर इन छिपकलियों के बॉस से मिला जाए? और यही निर्णय लेकर टुम्बकटू ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया और आराम से छिपकली के जबड़ों के बीच लेट गया।


लगभग सभी मेढक इंसान तड़प-तड़पकर ठंडे पड़ गए थे।


मिलिटरी वाले अब भी सुनहरी छिपकलियों पर गोलियां बरसा रहे थे, जबकि उनका जिस्म गोलियों से लेशमात्र भी प्रभावित न था। सुनहरी छिपकलियों ने इस बात पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया और आराम से टुम्बकटू को लेकर एक तरफ को चल दी!


उनकी गति आश्चर्यजनक रूप से तीव्र थी ।


मिलिट्री के एक अधिकारी पर यह सब देखकर खून सवार हो गया।


वह अपनी रायफल संभालकर एक छिपकली के आगे अडिग चट्टान बनकर खड़ा हो गया। न सिर्फ खड़ा हो गया, बल्कि रेट... रेट की ध्वनि के साथ अनेकों शोले उसकी राइफल से मुक्त होकर सुनहरे जिस्म से टकराए, परंतु वही ढाक के तीन पात, यानी निरर्थक...महत्त्वहीन!


तभी!


भयानक तेजी के साथ छिपकली उस अधिकारी पर झपटी और अगले ही पल अधिकारी की अंतिम व हृदय विदारक - चीख से वातावरण दहल गया।


दृश्य बड़ा ही घिनौना था!


सुनहरी छिपकली के पैंने, तेज, लंबे व नुकीले दांत अधिकारी के जिस्म में धंसे और अगले ही पल अधिकारी के जिस्म से उसकी खाल ठीक इस प्रकार उतरती चली गई----जैसे प्याज से प्याज का एक छिलका।


लाल-सफेद मांस चमक उठा... बड़ा ही घिनौना दृश्य था! उसकी चीख प्रत्येक दिल में उतरती चली गई।


लोगों से वह दृश्य देखा नहीं गया।


अगले ही पल वह भयानक छिपकली उस अधिकारी के मांस के लोथड़े को अपने जबड़े में फंसाकर इस प्रकार झटके दे रही थी, मानो बिल्ली चूहे को झटकती हो। फिर वह छिपकली अधिकारी के मांस को बड़े चाव से खाने लगी।


अधिकारी मर चुका था।


खून से वह स्थान लथपथ हो गया।


लाल व गाढ़ा लहू सुनहरी छिपकली के मुंह से चिपका हुआ था, जिसे जीभ से चाटती हुई छिपकली अत्यंत ही भयानक लग रही थी।


इस दृश्य को देखकर लोगों में एक हूक-सी उठी... कुछों को तो उल्टी-सी होने लगी और साथ ही दृश्य को देखकर लोग भयभीत भी हो गए। मिलिटरी वालों ने गोलियां चलानी भी एकदम बंद कर दीं। भय व आतंक का साम्राज्य चारों ओर फैल गया।


छिपकलियां तीव्र गति से एक ओर बढ़ने लगीं। भीड़ उनके मार्ग से काई की भांति फटती चली गई, जबकि लोगों का हजूम बदहवास-सा उन्हें देखता हुआ उनके पीछे-पीछे था। अब कोई भी इंसान उसके समीप जाने का साहस न कर रहा था।


कुछ ही देर बाद सभी छिपकलियां टुम्बकटू को साथ लिए हजारों-लाखों लोगों के देखते सागर में उतरकर, सागर के गर्भ में विलीन हो गई।


उसके बाद !


यह समाचार विद्युत गति से पूरे राजनगर में फैल गया। सुनकर सभी बदहवास-से रह गए। पनडुब्बियों से सागर के गर्भ में सुनहरी छिपकलियों को खोजा गया---- --परंतु उन्हें ढाक के तीन पात ही मिले।


तुरंत ही इस समाचार ने राजनगर की सीमाओं को तोड़ दिया और फिर समूचे विश्व में फैलता चला गया। जो सुनता, हैरत में रह जाता।


मेढक इंसानों के मृत जिस्मों को विभिन्न महान वैज्ञानिकों के पास परीक्षण हेतु पहुंचा दिया गया।


समूचे विश्व में खलबली मची हुई थी। सुनहरी और भयानक छिपकलियां टुम्बकटू को लेकर नदारद थीं।


वास्तव में विकास की प्रत्येक हरकत उसे शैतान की श्रेणी में रखती थी। यह बात किसी के भी कंठ से नीचे नहीं उतरती थी कि इतनी अल्प आयु का किशोर इतना खतरनाक भी हो सकता है। यह लड़का अलफांसे का चेला तो नि:संदेह था, परंतु उसकी हरकतें उस शातिर से भी कहीं अधिक बढ़-चढ़कर थीं ।


रैना ने एक स्थान पर टैक्सी रुकवाई----क्योंकि उसे कुछ आवश्यक सामान खरीदना था। अत: सामने की दुकान पर जाती हुई वह विकास से कह गई कि वह यही रहे, परंतु जब वह वापस लौटकर आई तो विकास को नदारद पाया।


रैना का दिल धक्-से रह गया । बौखलाई-सी रैना ने टैक्सी ड्राइवर से पूछा तो वह भी चकराकर सिर्फ ये ही कह सका कि ----- "अरे, अभी-अभी तो वे यहीं थे। "


किंतु इसका क्या किया जाए कि अब वह शैतान लड़का गधे के सिर से सींग की भांति गायब था। रैना ने ध्यान से पिछली सीट पर देखा तो एक कागज का पुर्जा चमका।


उसने झपटकर उठाया और देखा तो उस पर लिखा था कि-----'मम्मी... कौन पहले घर पहुंचे।'


पढ़कर विकास की इस बचपनी शैतानी पर रैना मुस्करा उठी और टैक्सी वाले से कोठी पर चलने के लिए कहा।


परंतु जब वह कोठी पर पहुंची तो विकास को न पाकर घबरा गई और उसने फिर कोतवाली में फोन मिलाया। दूसरी ओर से विजय के ये कहने पर कि विकास सुरक्षित है--रैना ने चैन की सांस ली।


उधर विजय ने बंद कमरे में रखे फोन पर मिलिटरी को कोतवाली पर होने वाले बलवे की सूचना दी थी। जिस कमरे में ये सब बंद थे---- उसे उस समय खोला गया ----- जब सब कुछ समाप्त हो चुका था, अर्थात सुनहरी छिपकलियां टुम्बकटू को लेकर सागर के गर्भ में गायब हो चुकी थीं।


जब विकास को होश आ गया तो कान पकड़कर घर पहुंचा दिया गया।


इधर विजय की मानसिक परेशानी बढ़ गई थी। इतना तो वह जान चुका था कि टुम्बकटू का विश्व को दिया गया चैलेंज रंग लाया है। जैक्सन और सिंगही हरकत में आ चुके हैं। यह तो वह जान चुका था कि सुनहरी छिपकलियां निःसंदेह सिंगही का ही कोई नया आविष्कार हैं। इस खतरे को भी वह भली-भांति समझता था कि सिंगही का टुम्बकटू को ले जाना कितना खतरनाक हो सकता था।


विजय तो सिंगही और जैक्सन ही से परेशान था ---- किंतु इस टुम्बकटू नामक खौफनाक छलावे के सामने वे महान शक्तियां भी धूमिल-सी पड़ गई थीं। उसे लग रहा था कि टुम्बकटू नामक यह अजीब अपराधी शीघ्र ही विश्व को हिलाकर रख देगा। विजय की समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसा विचित्र केस है।


भयानक खतरे का उसे आभास हो रहा था, परंतु उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इन परिस्थितियों में क्या करे ? टुम्बकटू को कहां तलाश करे?


सिंगही की ये छिपकलियां आखिर टुम्बकटू को ले कहां गई होंगी?


उसके मस्तिष्क में अनेक प्रश्न थे, जिनमें से किसी का भी उसे उत्तर न मिल रहा था ।


इस विषय पर उसने ब्लैक ब्वॉय से भी विचार-विमर्श किया, किंतु परिणाम वहीं-का-वहीं था ।


सिर पकड़कर बैठने के अतिरिक्त उसके पास कोई चारा नहीं रह गया था। वह इस समय अपनी कोठी में अपने कमरे के एक सोफे में धंसा हुआ था। उसका सारा चुलबुलापन गायब हो गया था ।


अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि !


"जरा दो चाय अंदर लाना पूर्णसिंह!" अचानक उसके कानों से बाहर से आती विकास की आवाज टकराई।


वह शायद पूर्णसिंह को चाय का आदेश दे रहा था। विजय जान गया कि आफत आ गई है। अत: अब विकास अपनी बकवास से उसके मस्तिष्क का दिवाला निकाल देगा।


वह इस शैतान से निबटने के लिए सतर्क होकर बैठ गया।


तभी विकास अंदर प्रविष्ट होता हुआ चीखा !


-----"प्रणाम झकझकिए अंकल ! "


विजय ने पहले तो घूरकर विकास को देखा... और देखा तो फिर देखता ही रह गया।


इस समय विकास के सुदृढ़ जिस्म पर सफेद कपड़े थे, ऊपर से नीचे तक दूध-से सफेद। यहां तक कि सफेद ही कपड़े के जूते, उसके गोरे-चिट्टे रंग पर सफेद कपड़े खूब फब रहे थे। सोलह वर्ष के लगने वाले इस तेरह वर्षीय किशोर की अवस्था देखते ही बनती थी। उसके चांद-से प्यारे-प्यारे मुखड़े पर दृष्टि जाए तो ऐसा दिल करे कि बस देखते ही रहो।


विकास की ओर देखते ही देखते विजय की आंखों से धीरे-धीरे स्वयं ही झल्लाहट के भाव गायब हो गए। विकास को देखकर उसे एक विचित्र - सी प्रसन्नता का अनुभव होता था। न जाने उसे ऐसा क्यों लगता था कि विकास ही उसके बाद वह कार्य संभाल सकेगा, जो इस समय स्वयं उसने संभाला हुआ है। उसे विश्वास था कि विकास एक दिन भारत का गौरव होगा। कभी भावनाओं में न खोने वाला विजय न जाने विकास को अपने सम्मुख देखकर क्यों भावनाओं में खो जाता था। न जाने क्यों उसे ऐसा लगता कि विकास से उसे वो प्यार है, जो कभी किसी से नहीं हुआ।


इस समय वह विकास को सामने देखकर वह न जाने कब तक खोया रहता, अगर विकास उसे फिर न चौंकाता!


-"क्यों अंकल?'' विकास कह रहा था--- "क्या बच्चे यतीम हो गए?"


चौंककर विजय ने विकास की ओर देखा तो उसने पाया कि उस सुंदर किशोर रूपी शैतान के मुखड़े पर शरारत के भाव थे और गुलाबी होंठों पर चंचल मुस्कान !


विजय यह भी जानता था कि विकास के हृदय में उसके प्रति कितनी श्रद्धा है, किंतु साथ ही वह यह भी जानता था कि यह लड़का बोल-चाल में ठीक उसी का दूसरा रूप है, अत: वह भी उसी प्रकार बोला-----"क्यों मियां दिलजले... चाय क्या तुम्हारे बाप की है ?"


'आप तो नाराज हो गए अंकल!" विकास उछलकर विजय की गोद में बैठता हुआ बोला-----"मैं आपकी चाय कोई मुफ्त में नहीं पीऊंगा।"


-"हां!" विजय आंख मटकाकर बोला ---- "तुम तो बड़े धन्ना सेठ हो ना साले... अबे, हमारी चाय की कीमत तो तुम्हारे फरिश्तों से भी नहीं दी जा सकेगी।"


."वाह अंकल!" विकास शरारत के साथ बोला----"आप अपनी चाय के बदले एक नहीं तो चलिए दो दिलजली सुन लीजिए, बस! क्या आपकी चाय की कीमत इससे भी अधिक है?"


विजय अभी कुछ कहने ही जा रहा था कि !


'सटाक।'


एक तीव्र ध्वनि !


एक तीव्र झटके के साथ एक चमचमाता हुआ चाकू सामने रखी मेज में आ धंसा ।


चचा-भतीजे चौंके!


विकास के अन्य शब्द उसके मुंह में ही रह गए।


दोनों की आंखें उस चाकू पर जम गई, जो मेज में धंसा हुआ अभी तक कांप-सा रहा था ।


भयानक शैतान की भांति विकास विजय की गोद से उछलकर खड़ा हो गया और इधर विजय अपनी पूरी शैतानियत पर उतर आया था।


अचानक उसने एक खिड़की के करीब हिलती हुई एक काली छाया देखी, अगले ही पल हवा में लहराता हुआ विजय खिड़की के पार हो गया। विकास अपने अंकल की भयानक फुर्ती देखकर हतप्रभ रह गया। उसके छोटे-से दिमाग को न जाने क्यों कभी-कभी ऐसा लगता था कि उसके झकझकिए अंकल कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं।


विकास ने उधर से ध्यान हटाकर चाकू को घूरा, जो अभी तक मेज में ज्यों-का-त्यों गड़ा हुआ था। विकास ने देखा कि चाकू की मूठ पर एक कागज लिपटा हुआ है। कागज को देखकर उसके शैतानी मस्तिष्क में हथोड़े-से पड़ने लगे। उसने शीघ्रता से वह कागज चाकू की मूठ से निकाला और पढ़ा!


'प्यारे विजय


अगर विश्व को खतरे से बचाना चाहते हो तो तुरंत इस पत्र में लिखेनुसार कार्य करो। टुम्बकटू को सिंगही की छिपकलियां सिंगलैंड ले गई हैं। अगर चाहो तो विमान से पूर्वी हिंद महासागर के ऊपर से होते हुए उस जंगल में पहुंचो, जहां चौबीस घंटे में कठिनता से सिर्फ दो अथवा तीन घंटे के लिए सूर्य की किरणें धरती के किसी भाग को चूम पाती है। यह बात ध्यान रखना, तुम्हें इस यात्रा के लिए विमान का ही प्रयोग करना है, वरना निश्चित रूप से मारे जाओगे।


-- ब्लैक डायमंड ।'


विकास ने पूरा कागज पढ़ा और उसकी दृष्टि सबसे नीचे


लिखे, पत्र लिखने वाले के नाम 'ब्लैक डायमंड' पर स्थिर हो गई। इस नाम के किसी व्यक्ति को कम-से-कम विकास तो किसी भी रूप में जानता नहीं था। तभी पीछे से विजय हताश-सा कमरे में प्रविष्ट होता हुआ बोला।


."निकल गया साला! "