“ऐसा कैसे हो सकता है ? जिस औरत को वे चरित्रहीनता का इल्जाम लगा कर तलाक देने वाले थे, उसके नाम वे अपनी सारी जायदाद कैसे लिख सकते थे ?"


“मुझे यह बात आज तुम्हीं से मालूम हुई है कि मेरे पापा की सुनयना से इतनी बिगड़ चुकी थी कि वे उसे तलाक देने वाले थे ।"


“यह हकीकत है ।"


"लेकिन यह हकिकत मुझे नहीं मालूम थी ।" - वह चिंतित भाव से बोली ।


“आई सी ।"


"फिर तो क्या पता इसीलिए सुनयना ने पापा का कत्ल किया हो क्योंकि उसे भी मालूम हो चुका था कि अगर पापा ने उसे तलाक दे दिया तो पापा की जायदाद में से उसे एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलने वाली थी । "


"यह बात हो सकती है । लेकिन फिर सुनयना को तुम्हारे पिता का कातिल साबित करना इतना आसान काम नहीं । ऐसी बातों के लिए सबूत चाहिए होता है । सबूत कहां से आयेगा ?"


वह खामोश रही ।


"मैं तुमसे उम्मीद कर रहा था कि मैं तुम्हारी मदद तुम्हारे पापा के कत्ल का इल्जाम सुनयना पर साबित करके दिखाऊंगा । लेकिन तुम तो अपनी सौतेली मां के बारे में उतना भी नहीं जानतीं जितना मैं जानता हूं।"


"सॉरी ।" -वह खेदपूर्ण स्वर में बोली ।


"जरा दिमाग पर जोर दो । शायद तुम्हें सुनयना के बारे में ऐसी कोई बात याद आ जाए जो मेरे किसी काम आ सकती हो ।”


वह सोचने लगी ।


विकास अपनी आशापूर्ण निगाहें उसके चेहरे पर टिकाये रहा ।


“एक बात है।" - थोड़ी देर बाद वह बोली ।


"क्या ?" - विकास बोला ।


"कत्ल पैंतालीस कैलीबर की मोजर रिवाल्वर से हुआ है।"


"तो।"


"मेरे पापा के पास एक पैंतालीस कैलीबर की मोजर रिवाल्वर थी । अगर कत्ल सुनयना ने किया है तो हो सकता है उसने वही रिवाल्वर इस्तेमाल की हो । क्या पुलिस के पास कोई ऐसा तरीका नहीं होता जिससे यह मालूम हो सकता हो कि कत्ल किसी विशिष्ट रिवाल्वर से हुआ था या नहीं ?"


" होता है । यह बात पुलिस का बैलिस्टिक एक्सपर्ट चुटकियों में मालूम कर सकता है । "


"मेरे पापा वह रिवाल्वर बैडरूम की मेज के दराज के सबसे नीचे के खाने में रखते थे। अगर वह रिवाल्वर चली हुई पाई जाए और साबित किया जा सके कि उसी से निकली गोली से पापा की हत्या हुई थी तो क्या यह सुनयना के अपराधी होने की तरफ तगड़ा इशारा नहीं होगा क्या तुम्हारी बेगुनाही का भी सबूत नहीं होगा ?"


"लेकिन सुनयना क्या इतनी मूर्ख होगी कि खून करके रिवाल्वर गायब कर देने के स्थान पर उसने उसे वापिस तुम्हारे पापा की मेज के दराज में रख दिया हो ?"


"यह सवाल मूर्खता का नहीं अज्ञान का है। जैसे मुझे नहीं मालूम था कि पुलिस का बैलिस्टिक एक्सपर्ट क्या कारगुजारी करके दिखा सकता है, वैसे ही हो सकता है यह बात सुनयना को न मालूम हो । हो सकता है रिवाल्वर को वापिस यथास्थान उस ने यह सोच कर रख दिया हो कि किसे पता लगेगा कि वह चलाई भी गई थी ।"


"हूं।"


"विकास, मालूम करने में क्या हर्ज है कि रिवाल्वर वहां है भी या नहीं और अगर है तो उससे खून हुआ है या नहीं।"


"लेकिन ऐसा किया कैसे जाए ?”


"क्यों न हम इस बारे में पुलिस को एक गुमनाम टेलीफोन काल कर दें। फिर पुलिस खुद ही घर की तलाशी लेगी, रिवाल्वर बरामद करेगी, उसे टैस्ट करवायेगी और फिर जो नतीजा निकलेगा, वह अखबार में छपेगा ही, जहां से कि हम पढ लेंगे । "


“क्या कहने !" - विकास प्रशंसात्मक स्वर में बोला - "तुम तो एकदम उस्तादों जैसी बातें कर रही हो । "


"सोहबत का असर समझ लो ।" - वह शर्माती हुई बोली ।


"बाई दि वे, दिन में तुम्हारे पापा की कोठी में होता कौन-कौन है ?”


"सिर्फ सुनयना ही होती है । "


"बस ? नौकर-चाकर कोई नहीं कोठी में ?"


“पक्का वहीं रहने वाला कोई नौकर-चाकर नहीं है । एक नौकरानी और एक नौकर सुबह-शाम आते हैं लेकिन दोपहर को वहां कोई नहीं होता । "


'आई सी । ठीक है मैं रिवाल्वर की खबर पुलिस को करने के बारे में सोचूंगा।"


“सोचना | वैसा अब तुम्हारा प्रोग्राम क्या है ? तुम यहां ठहरना चाहते हो ?"


"मैं यहां ठहर सकता हूं ?"


"ठहर तो सकते हो । लेकिन जरा सावधानी बरतनी होगी। दोपहर को मैं तुम्हारे लंच का यहीं इन्तजाम कर दूंगी और..."


"वह बाद की बात है । मैं फिलहाल यहीं हूं । आगे जो मेरा प्रोग्राम बनेगा उसकी मैं तुम्हें टेलीफोन द्वारा रिसेप्शन पर खबर कर दूंगा ।"


"तुम्हारा यहां से निकल कर कहीं जाने का इरादा है ?"


“अभी ऐसा कोई इरादा नहीं मेरा । अगर ऐसा इरादा बना तो मैं तुम्हें खबर कर दूंगा ।"


“तुम्हारा दिन में यहां से निकलकर कहीं जाना तुम्हारे लिये खतरनाक नहीं होगा ?"


“जो होगा देखा जायेगा। वैसे मैं फिलहाल कहीं नहीं जा रहा हूं।"


"ठीक है, मैं चलती हूं।"


विकास ने सहमति में सिर हिला दिया ।


योगिता वहां से चली गई ।


***


योगिता के जाने के एक घंटे बाद तक विकास कमरे में अकेला बैठा सिगरेट फूंकता रहा ।


फिर उसने फोन उठाया और आपरेटर से कमरा नम्बर 238 मांगा ।


तुरन्त सम्पर्क स्थापित हुआ ।


"गुड मार्निंग।" - विकास माउथपीस में बोला ।


शबनम ने फौरन उसकी आवाज पहचान ली ।


"सलामत हो ?" - वह बोली ।


"हां, हां ।”


"मुझे तो तुम्हारी फिक्र लगी हुई थी । खलीफा ने कल रात बताया था कि तुम क्या करने का इरादा रखते थे । क्या हुआ ?"


"हुआ कुछ ! मुलाकात पर बताऊंगा ।"


"तुम हो कहां ?"


"तुम्हारे बहुत करीब ।”


" यानी कि होटल में ही ?"


"मैं दो मिनट में तुम्हारे पास आ रहा हूं। तुम दरवाजा खुला रखना ।"


"ठीक है ।"


उसने रिसीवर रख दिया ।


उसने उठकर दरवाजा खोला और सावधानी से बाहर गलियारे में झांका ।


गलियारा खाली पड़ा था ।


वह बाहर निकला । उसने बाहर से दरवाजे के पल्ले एक-दूसरे के साथ मिला दिये लेकिन उनमें ताला लगाने की कोशिश नहीं की। फिर वह लम्बे डग भरता हुआ आगे बढा ।


और एक मिनट बाद वह शबनम के कमरे में दाखिल हो रहा था ।


शबनम ने अपने दरवाजे के बाहर पहले ही डू नाट डिस्टर्ब की तख्ती टांग दी हुई थी ।


विकास ने तख्ती वैसे ही टंगी रहने दी और भीतर घुसकर दरवाजे को भीतर से चिटकनी लगा दी।


कमरे में शबनम नहीं थी लेकिन बाथरूम से शावर चलने की आवाज आ रही थी ।


विकास एक कुर्सी पर बैठ गया। उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा ।


थोड़ी देर बाद शबनम बाथरूम से बाहर निकली । वह एक ड्रेसिंग गाउन पहने हुए थी । उसके बाल खुले हुए थे और उनमें पानी की बूंदें मोतियों की तरह झिलमिला रही थीं । उसके रगड़ कर पोंछे हुए चेहरे में शीशे जैसी चमक थी और ताजे गुलाब जैसी ताजगी थी ।


“जरा कपड़े पहन लूं” - वह उसे देखकर मुस्कराती हुई बोली- "फिर बातें करते हैं । "


विकास ने सहमति में सिर हिलाया ।


उसके पहनने के कपड़े पलंग पर निकले पड़े थे ।


वह पलंग के समीप पहुंची। योगिता की तरह शबनम ने उसे न परे देखने के लिए कहा और न उससे किसी तरह की शर्म या झिझक महसूस की । बड़े ही स्वाभाविक ढंग से उसने ड्रेसिंग गाउन उतार कर पलंग पर डाल दिया और वहां से एक-एक कपड़ा उठा कर पहनने लगी ।


विकास अपलक उसकी एक-एक हरकत देखता रहा ।


अन्त में वह उसके समीप पहुंची और उसकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गई ।


"जरा हुक लगाना ।" - वह बोली ।


विकास ने एक- एक करके उसके ब्लाउज के सारे हुक बन्द कर दिये ।


फिर वह शीशे के सामने जा बैठी। उसने अपने चेहरे पर मुनासिब रंग रोगन मले और फिर बालों में कंघी फिराने लगी ।


"लगता है मेरी सैक्स अपील घटती जा रही है । " - वह शिकायत भरे स्वर में बोली ।


“कैसे लगता है ?”


"अभी थोड़ी देर पहले तुम मेरे सामने यूं जो बैठे हुए थे जैसे या तो मैं बूढी हो गई थी या फिर तुम्हारी आंखें फूट गई थी।"


"ओह !"


"वैसे एक बात और भी मुमकिन है ।"


"वह कौन सी ?"


"शायद तुम्हें कोई नई लड़की मिल गई हो ।”


शबनम ने तो बात मजाक में कही थी लेकिन विकास को यूं लगा जैसे शबनम ने उसके दिल के अन्दर तक कहीं झांक लिया हो ।


“सच बता दो" - शबनम आंखे तरेरती हुई बोली. "किसी बागड़बिल्ले की तरह अभी-अभी कहीं से ढेर सारी मलाई चाटकर तो नहीं आये हो ?" -


"अरे, नहीं" - विकास हड़बड़ाया - " ऐसी कोई बात नहीं।"


"लेकिन मुझे तो ऐसी बात लग रही है । बड़ी कुत्ती चीज हो, यार । सिर्फ अड़तालीस घन्टे मेरी निगाहों से ओझल रहे और कहीं टांका फिट कर भी आये ।"


“अड़तालीस घन्टे हो गये ?" - विकास नकली हैरानी जाहिर करता हुआ बोला ।


"हां, हां, तुम्हें क्यों महसूस होगा कितना वक्त हो गया हमें मिले ? प्यार तुम्हें थोड़े ही है । "


विकास खामोश रहा ।


"कौन है वो ?" - एकाएक शबनम ने पूछा । 


"कौन ?" - विकास हड़बड़ाया ।


"वह लड़की जिसके साथ तुम त्रिलोक दर्शन करके आये हो ?”


ड्रेसिंग टेबल पर एक ऐश ट्रे पड़ी थी । विकास उठाकर ड्रेसिंग टेबल के पास पहुंचा। उसने अपनी सिगरेट ऐश ट्रे में झोंक दिया और बड़ी विचारपूर्ण मुद्रा बनाये शबनम को देखने लगा ।


"एक बात कहूं ?" - वह बोली ।


"क्या ?"


“तुम हमारे धन्धे के सबसे उस्ताद ठग हो । तुम्हारा काम ही लोगों को बेवकूफ बनाना है। इसलिए तुम किसी को अपने मन की बात नहीं भांपने देते हो । ऐसा न करो तो तुम अपने ठगी के धन्धे में कामयाब न हो सको। लेकिन तुम्हारी यह उस्तादी मेरे साथ नहीं चल सकती। मैं तुम्हारे मन की बात अखबार पढने जैसी सहूलियत से भांप सकती हूं।"


"हम एक ही थैली के चट्टे- बट्टे जो ठहरे । "


“तुम बात को मजाक में उड़ाने की कोशिश कर रहे हो । लेकिन खातिर जमा रखो, मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि तुम कब किस औरत से कैसा रिश्ता रखते हो ।”


विकास ने नीचे झुककर अपने होंठों से शबनम के एक 

गाल को छुआ - “अब क्यों बात का बतंगड़ बना रही हो, शब्बो रानी ? मैं कबूल करता हूं कि मैं तुमसे कोई बात छुपा कर रखने में कामयाब नहीं हो सकता। अब छोड़ो यह किस्सा |"


बालों में चलता हुआ शबनम का हाथ रुक गया। वह विकास की तरफ घूमी । उसने फिर नजर उठाकर उसकी ओर देखा ।


“सॉरी” - वह बोली - ईर्ष्या मुझ पर हावी हो गई थी । तुम्हारे प्यार में गिरफ्तार होने से पहले ही मुझे मालूम था कि तुम किसी एक औरत से सन्तुष्ट हो जाने वाले आदमी नहीं हो लेकिन तुम इतनी जल्दी पलटा खा जाओगे यह मैंने नहीं सोचा था । सुन्दर तो है ?"


"इस बारे में बात करना क्या जरूरी है ?"


"नहीं | जरूरी तो नहीं है।" - वह फिर बालों में कंघी फिराने लगी- "ठीक है, तुम्हारे मौजूदा झमेले के बारे में बात करते हैं । मनोहर ने जिस बार के बारे में तुम्हें बताया था तुम वहां गये थे ?"


"हां ।” "कोई बात बनी ?”


"बनी भी और बिगड़ी भी। मैं वहां मरने से बाल-बाल बचा।"


"क्या ?" - वह हैरानी से बोली ।


"हां ।”


"क्या हुआ था ?"


विकास ने उसे पिछली रात की सारी कहानी कह सुनाई।


"यानी कि" - शबनम चिन्तित भाव से बोली- " अब तुम पुलिस से ही नहीं, बख्तावर सिंह के आदमियों से भी छुपते फिर रहे हो ।'


"हां । तुम्हारे और खलीफा के अलावा यहां हर कोई मेरी जान का दुश्मन मालूम होता है।”


उसने कंघी मेज पर रख दी । अब उसके बालों में रेशम जैसी चमक पैदा हो गई थी ।


"विकी" - वह बोली- "मैं जानती हूं तुम बात के जिक्र से भी बेजार हो रहे हो लेकिन मैं पूछे बिना रह नहीं सकती । अपने इतने झमेलों के बावजूद भी यह दूसरी लड़की फांसने के काबिल वक्त तुम्हें कब मिल गया ? क्या बख्तावर सिंह के आदमियों की पकड़ से भागने के बाद ?"


" शबनम, बात को समझने की कोशिश करो। मैं सड़क पर भटक रहा था । मुझे पनाह के लिए कोई जगह हासिल नहीं थी । होटल में मैं वापिस जा नहीं सकता था। ऐसे में इस बेचारी ने मुझे रात भर के लिए पनाह दे दी, यह क्या कम बात है ?"


"लेकिन वह बेचारी तुम्हें मिल कहां गई ? राह चलते?"


"मैं उसे पहले से जानता था। मैंने आधी रात को फोन करके उसे सोते से जगाया था।"


"ओह ! मैं तो भूल ही गई थी कि तुम तो कत्ल से पहले से इस शहर में मौजूद थे, कम से कम चौबीस घण्टे पहले से मौजूद थे। चौबीस घन्टों में तो तुम चौबीस नई लड़कियां फंसा कर दिखा सकते हो । शुक्र है, तुमने एक ही फंसाई । इतना तो मुझे बिना पूछे ही सूझ जाना चाहिए था । "


“शबनम” - विकास खिन्न स्वर में बोला- "तुम चाहती हो कि मैं यहां से चला जाऊं ?"


उसके व्यवहार में तुरन्त परिवर्तन आया । उसने विकास की बांह थाम ली और खेदपूर्ण स्वर में बोली - "सारी, यार । मैं वादा करती हूं कि मैं अपनी ईर्ष्या की भावना पर काबू करने की कोशिश करूंगी । अब बताओ तुम्हारे इरादे क्या हैं और मैं उन में क्या मदद कर सकती हूं ?"


"सबसे पहले तो मेरा हुलिया तब्दील करने में मेरी मदद करो । बख्तावर सिंह के आदमियों से बचने के लिए अब मैं यह आवारागर्दी जैसा हुलिया त्याग कर एक संभ्रान्त आदमी जैसी सूरत अख्तियार करना चाहता हूं।"


"लेकिन तुम्हारी संभ्रान्त आदमियों जैसी सूरत की भी पुलिस को वाकफियत है ।”


"ठीक । लेकिन इस वक्त ज्यादा खतरा मैं बख्तावर सिंह के आदमियों से महसूस कर रहा हूं। पुलिस मुझे पहचान लेगी तो गिरफ्तार ही तो कर लेगी लेकिन बख्तावर सिंह के आदमी तो मुझे पकड़ कर जान से मार डालेंगे।"


"ओह।"


"मेरा सूटकेस यहीं है न ?”


"हां"


"निकालो, कहां है ?"


शबनम ने पलंग के नीचे से घसीट कर उसका सूटकेस निकाला ।


विकास ने उसमें से एक नीले रंग का नया सूट निकाला


“एक तो तुम मुझे इसी रंग का हैट ला दो" - विकास बोला- "दूसरे शेव करने का सामान चाहिए मुझे।"


"ठीक है । "


" और पैसे अपने पास से ही खर्चने होंगे तुम्हें । इस बार मेरा पैसा स्टार होटल में रह गया है । "


"तुम तो शर्मिदा कर रहे हो यार" - वह शिकायत भरे स्वर में बोली- "तुम्हारे और मेरे पैसे में कोई फर्क है ?"


"थैंक्यू ।"


"बाद में तुम्हारा इरादा क्या है ? क्या महाजन की बीवी से मिलने जाना चाहते हो ?"


"नहीं ! मैं महाजन के घर जाना चाहता हूं लेकिन उसके बीवी से नहीं मिलना चाहता ।”


"मतलब ?"


"मैं चोरी छुपे महाजन के घर में घुसना चाहता हूं । और यह तभी हो सकता है जब सुनयना घर पर न हो।"


"ऐसा कैसे हो सकता है ?"


"खलीफा की मदद से हो सकता है उसे यहां बुलाओ


"ठीक है । "


शबनम ने मनोहर लाल को उसके होटल में फोन कर दिया।


"वह आ रहा है" - वह रिसीवर रखती हुई बोली - "मैं नीचे तुम्हारा सामान लेने जा रही हूं । हो सकता है वह मेरे लौटने से पहले यहां पहुंच जाये । वह दरवाजा यूं खटखटायेगा" - शबनम ने एक विशिष्ट अन्दाज से एक मेज पर दस्तक दी - " ऐसी नॉक सुनाई दे तो दरवाजा खोलना, नहीं तो नहीं खोलना समझ गये ?"


विकास ने सहमति में सिर हिलाया ।


"मैं जाती हूं।" - वह बोली ।


"ठीक है ।"


उसने अपना हैण्ड बैग उठाया और दरवाजे की तरफ बढी।


दरवाजे के पास से वह फिर वापिस लौट आई।


"देखो" - वह तनिक भराये स्वर में बोली - "अभी थोड़ी देर पहले जो ईर्ष्याभरी बातें मैंने तुम्हें कहीं थी, तुम उन्हें ख्याल में मत लाना । प्लीज ! मैं तो पागल हूं । खामखाह भौंकने लगती हूं । और मैं पहले ही कह चुकी हूं कि मैं प्यार के बदले में प्यार की उम्मीद नहीं करती । इसलिये तुम किसी और से कैसा रिश्ता रखते हो, इससे मुझे कोई मतलब नहीं । मैं अब तुम्हें दिल से चाहती हूं और तुम्हारे लिये अपनी जान दे सकती हूं।"


वह फौरन घूमी और लम्बे डग भरती हुई वहां से बाहर निकल गई ।


उसके घूमने से पहले विकास को यूं लगा जैसे उसने उसकी आंखों में आंसू तैरते देखे हों ।