विक्रम ने माचिस की नई तीली जला ली ।



उसकी निगाहें जीवन की लाश पर जम गई ।



जीवन की हत्या की गयी थी और हत्यारे ने इतनी बारीकी से उसकी तलाशी ली थी कि खाली जेबें बाहर उलटने के साथ उसके कपड़ों की सींवन तक उधेड़ डाली थी ।



विक्रम के होंठों पर कटुतापूर्ण मुस्कराहट दौड़ गई ।



हत्यारे को जिस चीज की तलाश थी वो आकार में बहुत ही छोटी थी । वो चीज क्या थी ? विक्रम समझ चुका था । यह बात भी वह समझ चुका था कि वो चीज उसे मिली नहीं थी । हालात से जाहिर था, उस चीज को तलाशने की हर मुमकिन कोशिश की गई थी । साथ ही, यह भी कि उसके न मिलने की वजह से हत्यारे पर घोर निराशा मिश्रित खीज सवार हो गई थी । जिसका सबूत मृत जीवन के कोट पर साइड में मिट्टी के दागों के कोई दर्जन भर निशान थे । खास तरह के वे निशान मिट्टी से सने बूट की नोंक के थे । इसका मतलब उसे ठोकरें जमाई गई थीं ।



विक्रम ने तीलियों की रोशनी में घटनास्थल का यथासम्भव बारीकी से मुआयना किया ।



वहां बिखरी विभिन्न वस्तुओं में मजबूत प्लास्टिक के करीब दो-दो किलो वजन के तीन पैकेट भी पड़े थे । उनमें सफेद पाउडर भरा था। वो सफेद पाउडर क्या था । यह विक्रम को बखूबी मालूम था । वो हेरोइन थी । जिसकी तलाश में जीवन वहां आया था ।



लेकिन या तो जीवन उन्हें तलाश नहीं कर पाया था या फिर इतना मौका ही उसे नहीं मिल सका था ।



विक्रम के अनुमानानुसार वे पैकेट किसी और ने ही वहां पड़े कार्टन्स से निकालकर बाहर फेंके थे । और सम्भवतया उसे मालूम नहीं था कि वह ढूंढ़ क्या रहा था ।



विक्रम ने पुनः लाश पर निगाह डाली ।



मृत जीवन की एक आंख के नीचे गहरी खरोंच का निशान था और उसके होंठ कुचले गए से नजर आ रहे थे । उसके एक हाथ की उंगलियों के नाखूनों पर खून जमा हुआ था । जो प्रत्यक्षत: इस बात का प्रमाण था कि उसने काफी संघर्ष किया था । और इसी बात ने आखिरकार उसको जान ले ली थी ।



जीवन की हत्या के मामले में विक्रम एक ही निष्कर्ष पर पहुंच सका ।



हत्यारा मनोज कक्कड़ उर्फ करीम खान था । किसी तरह उसने पता लगा लिया था कि जीवन मिलन रेस्टोरेन्ट आया था । फिर वह भी यहां आ पहुंचा था या किसी तरह जीवन उसे कहीं टकरा गया था और फिर उसने जीवन का यहां तक पीछा किया था ।



लेकिन करीम खान नहीं जानता था कि उसका साबिका एक हेरोइन एडिक्ट से उस वक्त पड़ा था जबकि 'फिक्स' न मिल पाने के कारण उसकी हालत किसी अर्धविक्षिप्त जैसी थी । उधर जीवन को क्योंकि 'फिक्स' के लिए माल जुटाने के अलावा और कुछ नहीं सूझ रहा था इसलिए अपरिचित करीम खान द्वारा उत्पन्न किए गए विघ्न के जवाब में उसने मार-कुटाई शुरू कर दी । मगर जीवन हेरोइन एडिक्ट और मामूली बदमाश था । जबकि करीम खान बाकायदा ट्रेनिंगशुदा फील्ड एजेंट था । उसने जीवन को ज्यादा मौका देने की बजाय कराटे के भरपूर बार में उसकी गर्दन तोड डाली थी और जीवन यह जाने बगैर ही, कि असल चक्कर था क्या, इस संसार से कूंच कर गया था ।



जीवन की जेबों से निकली चीजें, विभिन्न वस्तुओं के बीच, एक छोटे-से ढेर की शक्ल में फर्श पर पड़ी थीं । लेकिन उनमें वो कैपसूल नहीं था जिसकी तलाश विक्रम को थी ।



वहां ठहरे रहने से कोई फायदा नहीं होने वाला था । विक्रम तय कर चुका था कि उसने क्या करना था । हेरोइन के तीनों पैकेटों को वहीं पडे एक ब्रीफकेस में पैक करके वह ऑफिस से निकला । रेस्टोरेंट के पिछले दरवाजे से बाहर आकर उसने दरवाजा पूर्ववत् बन्द कर दिया ।



ब्रीफकेस सहित गली से गुजरकर वह वापस टैक्सी के पास पहुंचा ।



जगतार उसी तरह बंधा पड़ा था और अभी तक बेहोश था ।



विक्रम टैक्सी में सवार होकर रेलवे स्टेशन की ओर ड्राइव करने लगा ।



रास्ते में एक सुनसान स्थान पर रुककर उसने बेहोश जगतार को बेरहमी से बाहर खींचकर, सड़क की साइड में पटका । फिर उसी के चाकू की नोंक से उसके दोनों गालों और माथे पर क्रॉस के तनिक गहरे निशान बना दिए । ताकि जख्म भरने के बाद भी निशान न मिट सके ।



चाकू को, दस्ते से रूमाल की सहायता से अपनी उंगलियों के निशान रगड़ कर छुड़ाने के बाद, वहीं नाले में फेंक दिया ।



जगतार कराहा तक नहीं । वह बेहोश ही रहा ।



विक्रम पुनः टैक्सी में सवार होकर स्टेशन की ओर ड्राइव करने लगा ।



रेलवे स्टेशन के बाहर टैक्सी छोड़कर वह क्लॉक-रूम में जा पहुंचा और एक फर्जी नाम-पते से ब्रीफकेस वहां जमा करा दिया । रेलवे स्टेशन की सीमा से चोरों की तरह बाहर आने के बाद करीब डेढ़ फर्लांग दूर जाकर उसने खाली आती एक टैक्सी रोकी और होटल विश्राम कहता हुआ उसकी पिछली सीट पर पसर गया ।



टैक्सी अपते गंतव्य की ओर भाग चली ।



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पुलिस विभाग में नौकरी कर चुकने की वजह से उस विभाग के आंकड़ों की खासी जानकारी विक्रम को थी ।



वह जानता था, तकरीबन आधे पुलिस केस इंफार्मर्स (मुखबिरों) की मदद के जरिए ही सुलझाये जाते हैं । इन्फार्मर्स आमतौर पर तीन किस्म के होते हैं ।



पहले, वे लोग जो पुलिस वालों की मेहरबानियां हासिल करने की नीयत से उन्हें सूचनायें देते हैं ।



दूसरे, वे होते हैं जो पुलिस द्वारा किसी तरह का दबाव डाले जाने पर मजबूरन अपना मुंह खोलते हैं ।



इन दोनों किस्म के लोगों से पुलिस वाले कमोबेस वाकिफ जरूर होते हैं ।



तीसरी किस्म के इनफार्मर्स वे होते हैं जो पुलिस को फोन, खत वगैरा द्वारा गुमनाम तरीके से जानकारी देते हैं । इसकी वजह अपने प्रतिद्वन्द्वी, शत्रु आदि को मुसीबत में फंसाकर उसे रास्ते से हटाना भी हो सकती है और किसी आम शहरी द्वारा खुद को पुलिस के झमेले से दूर । रखकर कानून की मदद भी ।



इनके अलावा एक किस्म और भी होती है । लेकिन उस किस्म के लोग प्रायः नहीं के बराबर ही होते हैं । उन्हें भी तमाम बातों की जानकारी तो होती है मगर उन जानकारियों पर वे खुद ही अमल करते हैं । उनके काम करने का ढंग अजीब और अक्सर गैरकानूनी नजर आने वाला होता है । इसकी वजह उनके सिद्धांत, मान्यताएं, हर बात को एक अलग खास नजरिए से देखना वगैरा होती हैं । हालांकि उनका असल मकसद भी कानून की मदद करना होता है । लेकिन वे पुलिस को कोई भी जानकारी तभी देते हैं । जब उनके पास ऐसा करने के अलावा अन्य कोई चारा नहीं रहता है ।



विक्रम स्वयं को इसी आखिरी किस्म के लोगों में समझता था ।



सहसा वह चौंका ।



टैक्सी होटल विश्राम के सम्मुख पहुंचकर रुक चुकी थी



उसने मीटर देख कर भाड़ा चुकाया और नीचे उतरकर प्रवेश-द्वार की ओर बढ़ गया ।



लाबी में दाखिल होते ही उसे पता चल गया कि डे स्टाफ द्वारा नाइट स्टाफ को रिलीव करने का वक्त हो रहा था ।



ललितराज भी रिसेप्शन काउंटर पर मौजूद था । और उसके चेहरे पर बड़े ही कड़वाहट भरे भाव थे । उसके पास इकहरे जिस्म का करीब पैंतालीस वर्षीय जो आदमी सिर झुकाए खड़ा था । वह अनुमानतः नाइट ड्यूटी असिस्टेंट मैनेजर था । उसके चेहरे पर फटकार बरस रही थी । और वह बार-बार ललितराज की ओर देख रहा था मानों हर बार और ज्यादा तगड़ी डांट पड़ने का अंदेशा था ।



संयोगवश, उस वक्त लॉबी खाली पड़ी थी । ज्योंही विक्रम रिसेप्शन के सामने से गुजरकर सीढ़ियों की ओर बढ़ा ललितराज ने उसे देख लिया ।



वह लपककर विक्रम के पास पहुंचा और उसे एक तरफ ले गया ।



"तुम्हारे कमरे में कोई गलत चीज है ?" उसने पूछा ।



विक्रम ने असमंजसतापूर्वक उसे देखा ।



"गलत चीज ?"



"हां, कोई ऐसी चीज जिसका तुम्हारे पास पाए जाना कानूनन जुर्म हो ।"



"नहीं । क्यों ?"



"एक बैलब्वॉय ने इस मरदूद को ।" ललितराज ने नाइट असिस्टेंट मैनेजर की ओर इशारा करते हुए कहा-"तुम्हारे कमरे में जाते देखा और मुझे बता दिया था । उसी बात को लेकर मैं इसकी खबर ले रहा था । यह या तो तुम्हारे बारे में जानने को उत्सुक था या फिर कुछ और इरादे इसके मन में थे ।"



विक्रम ने अपने पेट में ऐंठन-सी महसूस की ।



"सुनो...।"



"नहीं, फिक्र करने जैसी कोई बात नहीं है ।" ललितराज उसे रोक कर आश्वासन देता हुआ बोला-"यह आदतन थोड़ा मक्कार और लालची है । एक बार पहले भी एक और आदमी के साथ ऐसी ही हरकत कर चुका है । उस आदमी की पुलिस को तलाश थी । वह बचने की नीयत से यहां आ छुपा था । इसे किसी तरह पता चल गया तो यह दबाव डालकर उससे कुछ ऐंठने के लिए उसके पास जा पहुंचा था ।"



"ठीक है । मैं इसे सिखा दूँगा कि दबाव कैसे डाला जाता है ।"



"तुम किसी चक्कर में मत पड़ना । मैं इसे तगड़ी फटकार लगा चुका हूं । दोबारा तुम्हारे कमरे की ओर यह फटकेगा भी नहीं ।



"ओ. के. ।" विक्रम ने जवाब दिया ।



ललितराज पलटकर रिसेप्शन की ओर चला गया ।



विक्रम ने कड़ी निगाहों से काउंटर के पीछे खड़े उस आदमी को घूरा जो वार्तालाप का विषय बना रहा था ।



वह विक्रम की निगाहों का सामना नहीं कर सका । उसने फौरन बड़े ही नर्वस भाव से गरदन दूसरी ओर घुमा ली ।



विक्रम मन-ही-मन मुस्कराया और पलटकर सीढ़ियों की ओर बढ़ गया ।



वह अपने कमरे में पहुंचा ।



पहली निगाह डालते ही वह समझ गया कि बड़ी बारीकी से तलाशी ली गई थी । हालांकि उसका कोई सामान वहां नहीं था इसलिए तलाशी से किसी किस्म का नुकसान तो हुआ नहीं था । इसके बावजूद तलाशी ली जाने वाली हरकत उसे जरा भी पसन्द नहीं आयी थी । उसने फैसला कर लिया था कि मौका मिलने पर, तलाशी लेने वाले को, ऐसा सबक सिखाएगा कि आइन्दा वह ऐसी हरकत न कर सके ।



विक्रम ने दरवाजा बन्द करके लॉक कर दिया ।



वह टेलीफोन उपकरण के पास पहुंचा । उसने रिसीवर उठाकर रिसेप्शन से सम्बन्ध स्थापित किया ।



"यस ?" दूसरी ओर से, ललितराज की आवाज आती सुनाई दी ।



विक्रम को थोड़ा ताज्जुब हुआ ।



"तुम ?" उसने पूछा-"तुम यहां मैनेजर हो या टेलीफोन आपरेटर ?"



"मैं तो वही हूं जो पहले हुआ करता था । अलबत्ता रात में रिसेप्शनिस्टकम-टेलीफोन आप्रेटर की ड्यूटी असिस्टेंट मैनेजर को ही भुगतानी पड़ती है । यह कॉल मैंने सिर्फ इसलिए अटेंड की है कि आप्रेटर अभी आई नहीं है और मैं अभी यहीं हूं । बोलो, क्या चाहते हो ?"



विक्रम ने सुलेमान के मकान मालिक का फोन नम्बर बताकर सम्बन्ध स्थापित कराने के लिए कह दिया ।



"होल्ड ऑन !" ललित राज द्वारा कहा गया, फिर लाइन पर कनेक्शन जोड़ने की आवाज सुनाई दी और फिर कुछ ही क्षणोपरान्त घण्टी बजती सुनाई देने लगी । अन्त में चन्द सैकेंड घण्टी बजने के बाद एक परिचित पुरुष स्वर लाइन पर उभरा-"यस ?"



विक्रम ने पहचाना, वो आवाज सुलेमान के मकान मालिक की थी । उसने अपने परिचय को गोल रखते हुए विनीत स्वर में, सुलेमान को बुलाने की प्रार्थना की ।



जवाब में उसे होल्ड करने के लिए कह दिया गया ।



विक्रम रिसीवर थामे इंतजार करने लगा ।



लगभग डेढ़ मिनट बाद सुलेमान का उनींदा स्वर उसके कानों में पड़ा । विक्रम ने अपना परिचय देने के बाद संक्षेप में, अस्पताल से किरण वर्मा के अपहरण के बारे में, उसे बता दिया । साथ ही, यह भी समझा दिया कि वह क्या कराना चाहता था ।



सुलेमान ने आश्वासन दिया कि वह अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेगा ।



विक्रम सम्बन्ध विच्छेद करके जूते उतारकर बिस्तर पर फैल गया ।



कुछ ही देर बाद उसके खर्राटे गूंजने लगे ।