करीब बारह बजे फोन की बैल बजी। देवराज चौहान की कछ देर पहले ही आंख खुली थी। सोहनलाल भी उठ चुका था। जगमोहन अभी नींद में था। देवराज चौहान फोन के पास पहुंचा।
"हैलो।" उसने रिसीवर उठाया।
"सलाप बाप। आपुन रुस्तम । "
"कहो। " देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।
"बाप आपुन के वहां से जाने के बाद कोई लफड़ा तो नेई होएला ?"
"नहीं।"
"पण बाप।" अम्भी आपुन के पास मोना चौधरी के आदमी पारसनाथ का फोन आएला है।
देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।
"आगे कहो। "
"बाप वो बोएला कि देवराज चौहान का कीमती हीरा मोना चौधरी के पास होएला। मोना चौधरी तुमसे बात करने के वास्ते आपुन से तुम्हारा फोन नंबर मांगेला है बाप।"
देवराज चौहान के माथे पर पड़े बल और गहरे हो गए। “उसे फोन नंबर दे दो।"
"ठीक है। पारसनाथ आधे घंटे कू आपुन को फोन करेला नंबर उसको देएला बाप। पण ये बात सच होएला कि तुम्हारा कीमती हीरा मोना चौधरी के पास पोंचेला बाप ?"
"कैसे?"
"रात को जेब गिर गया था। " देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा।
"बोत कीमती होएला बाप?"
"हां।"
"तो मोना चौधरी हीरे के वास्ते, फोन पर क्या बात करेला बाप । वो तो हीरा हजम करेला।"
"मोना चौधरी का फोन आने पर मालूम होगा कि वो क्या चाहती
"ठीक बाप आपुन फोन आने पर पारसनाथ को नंबर देएला। रात सोहनलाल तुम्हारे साथ होएला। बाप । आपुन को उसकी जरूरत है। इस बीच वो किधर को मिलेला बाप ?"
"मेरे पास है।"
“बाप उसको रोकेला खास काम है। वो तिजोरी खोलने को बोलना है उसकूं
"रुस्तम ।"
"बाप।"
"कर्मपाल सिंह को अपने साथ लेते आना।"
"तुम कर्मपाल को कैसे जानेला बाप ?"
“रात बांके ने मोना चौधरी के सामने उसका और बंगाली का जिक्र किया था। "
"समझेला बाप। खास बात होएला ?"
“हां।"
"आपुन कर्मपाल के साथ ही वहां पोंचेला। पारसनाथ का
फोन आने के पीछे, आपुन पोंचेला । "
देवराज चौहान ने रिसीवर रख दिया। पलटा तो जगमोहन और सोहनलाल को चंद कदम दूर खड़े पाया। उनकी प्रश्नभरी निगाह देवराज चौहान पर थी।
देवराज चौहान ने सारी बात उन्हें बताई।
"गड़बड़ है।" जगमोहन के होंठों से निकला।
"क्यों?" सोहनलाल ने उसे देखा।
"मोना चौधरी के पास कीमती हीरा है। उसे भाग जाना
चाहिए था। खिसक जाना चाहिए था। लेकिन वो तो बात करने के लिए हमारा फोन नंबर मांग रही है। " जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा- “वो इतनी शरीफ नहीं कि हीरे को हमारी अमानत समझ कर वापस कर दे।"
"बात तो ठीक है। " सोहनलाल ने फौरन सिर हिलाया।
देवराज चौहान मुस्कराया।
"तुम्हारा क्या ख्याल है।" जगमोहन ने देवराज चौहान से पूछा। "कम से कम वो हीरा लौटाने के लिए तो बात नहीं करना चाहती। " देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा- "मुझे देखकर वो जो भी कदम उठाती है, उसमें चालबाजी अवश्य होती है। "
“क्या करना चाहती होगी वो?"
"कह नहीं सकता। लेकिन रुस्तम से नंबर लेकर आज वो फोन पर बात अवश्य करेंगी। देखते हैं कि वो क्या कहना चाहती है। कोई तो खास बात करेगी ही। " देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
"मुझे आसार ठीक नजर नहीं आ रहे।" जगमोहन ने दांतों से होंठ काटते हुए कहा।
"हो सकता है, वो वास्तव में हीरा वापस करना चाहती हो।" सोहनलाल ने कहा।
देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाया फिर मुस्कराकर बोला।
"हर बात हो सकती है। लेकिन ये बात नहीं हो सकती। वो जो भी बात करेगी, उसमें उसका अपना मतलब होगा या फिर कोई चालबाजी होगी। जब पहले टकराव हुआ था तो हार जीत का फैसला नहीं हो सका था। इसलिए वो हर संभव चेष्टा करेगी कि मुझे जैसे भी हो हार का मुंह दिखा सके। "
कोई कुछ न बोला।
"हैदराबाद जाने वाले दिन रुस्तम राव मेरे पास आया था।" खामोशी को सोहनलाल ने तोड़ा- "बोल रहा था, तिजोरी खुलवानी है, लेकिन वो अभी उसके पास नहीं है। इसका मतलब जो तिजोरी यो ला रहा है, वो, वो ही तिजोरी होगी। मतलब कि इस काम पर वो और बांके देर से काम कर रहे हैं। " कहने के साथ ही सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई। कश लिया।
"देवा"
अगले ही पल सब चौंके।
आवाज की तरफ घूमे। उनके पीछे फकीर बाबा खड़ा था। चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी फकीर बाबा के आंखों में बेचैनी की झलक स्पष्ट नजर आ रही थी।
"बाबा" देवराज चौहान के होठों से निकला
"आप|"
"तू और मिन्नो फिर एक रास्ते पर आ ही गए।" फकीर बाबा की आवाज में गंभीरता थी।
"बाबा। मैंने आपकी पूरी बात मानी और-।"
"मैं जानता हूं देवा तुमने मेरी बात रखी। लेकिन तुम दोनों के लिए पंद्रह दिन भारी थे और अनजाने में तुम दो दिन पहले लौट आए। इसी को 'होनी' कहते हैं। जो अटल है। टल नहीं सकती। तुम दोनों के बीच होने वाली भयंकर लड़ाई का जन्म इन पंद्रह दिनों में होना था और वो हो गया। अब इस लड़ाई को कोई नहीं रोक सकता। कोशिश मैने की थी लेकिन कामयाब नहीं हो सका। " देवराज चौहान गंभीर निगाहों से फकीर बाबा को देखता रहा।
"बाबा" जगमोहन कह उठा— “तुम मोना चौधरी को क्यों
नहीं समझाते कि -।"
"मैं सबको समझा रहा हूं। देवा को भी मिन्नो को भी। मिन्नो को भी समझाया था। तीन जन्म हो गए। लेकिन मेरी बात सुनता ही कौन है। सबसे ज्यादा तकलीफ तो मैं भोग रहा हूं। श्राप ग्रस्त होकर तीन जन्मों से भटक रहा हूं। देवा और मिन्नो की दोस्ती ही, मेरी मुक्ति का रास्ता है। लेकिन ये अपनी दुश्मनी छोड़ते नहीं । "
"आपके पास तो बहुत शक्तियां शक्तियां हैं बाबा।" देवराज चौहान बोला- -"उन शक्तियों के दम पर आप यह लड़ाई खत्म करवा कर मुक्ति पा सकते हैं।"
"नहीं। गुरुवर का श्राप था कि देवा और मिन्नो की दोस्ती, मेरे दबाव की वजह से हुई तो फिर मुझे मुक्ति नहीं मिल सकेगी। इसलिए तुम दोनों की दोस्ती कराने के लिए मैं अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकता।" बाबा का स्वर गंभीर था— "तुम्हारे और मिन्नो के बीच लड़ाई की शुरुआत पड़ गई है जो कि बीतते वक्त के साथ गंभीर भयंकर रूप धारण कर लेगी। फिर भी मैं कोशिश करूंगा कि इस लड़ाई के निशान ज्यादा गहरें न हो सकें।" कहने के साथ ही फकीर बाबा हवा बनकर, उनके सामने ही गायब होता चला गया।
तीनों के चेहरों पर गंभीरता नजर आ रही थी। कोई कुछ न बोला।
***
शंकर भाई।
अब तो उसकी उम्र पंचपन बरस थी।
जब वह पंद्रह बरस का था। तब बिहार से दिल्ली कमाई करने आया था। कभी तो रिक्शा चलाना, तो कभी बोझा ढोना। दो बरस में ही इन सब कामों से वो थक गया था तो गरीब परिवार से, लेकिन उसकी सोचों की उड़ान, बहुत ऊंची थी। उस जैसे दो-चार लड़के और मिले और चोरी-चकारी का ग्रुप बना लिया। के हत्थे चढ़ा।
एक बार पुलिस से खूब डंडा-ठुकाई हुई और उसे बाल सुधार गृह में पहुंचा दिया गया।
वहां से दो लड़कों के साथ मौका पाकर भाग निकला वो जानता था कि अब दिल्ली में रहना ठीक नहीं। पुलिस फिर पकड़ सकती है। सीधा स्टेशन पहुंचा। जो भी ट्रेन खड़ी थी। रवाना होने वाली थी, उसमें चढ़ गया और वो ट्रेन उसे मुंबई ले आई। अपराधों की सीढ़ी पर तो उसने दिल्ली में ही कदम रख दिया था।
इसलिए मुंबई में उसे दूसरी सीढ़ी चढ़ने में कोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ी। स्टेशन पर ही जैबकतरों और सामान खिसकाने वाली टोली का मैंबर बन गया और अपराधों के गुर सीखता चला गया।
उसके बाद तो वो रुका नहीं।
उसकी इच्छा बड़ा बनने की थी और खतरनाक से खतरनाक काम करके बड़ा बनता चला गया। दिमाग उसका बचपन से ही तेज था। हिम्मत की उसमें कमी नहीं थी। बीस बरस की उम्र में उसने वर्ली के ऐसे दादा को चाकुओं से गोद डाला, जिसका इलाके में आतंक था। इसके बाद तो वो बड़ा दादा बनता चला गया। अंडरवर्ल्ड के लोगों की निगाहों में भी आ गया।
जहां वह आज था। यहां तक पहुंचने के लिए उसे बहुत पापड़ बेलने पड़े। यूं तो आज वह ऊंचे मुकाम पर था। परंतु मन को पूरी तसल्ली नहीं थी। वो मुंबई अंडरवर्ल्ड का बड़ा बनने की इच्छा रखता था और इसी दौड़ में दांव-पेंच लगाने में व्यस्त था।
रात जो उसके बंगले पर हुआ। उसकी खबर उसे आधे घंटे बाद ही मिल गई थी। उसने अपने आदमियों को फौरन बंगले पर रवाना कर दिया कि वहां की सफाई ऐसे कर दें कि जैसे कुछ हुआ ही न हो।" और जब वह खुद, सुबह बंगले पर पहुंचा तो सब कुछ ठीक-ठाक था। लाशें हटा दी गई थीं। जहां तक हो सका, गोलियों के निशानों को हटा दिया गया था। जहां निशान गहरे थे। फायरिंग से प्लास्टर उखड़ चुका था। वहां अभी भी लीपा-पोती की जा रही थी। शंकर भाई के साथ उसका सबसे खास आदमी द्वारका था। ही पहले उसे खबर दी कि बेडरूम से तिजोरी गायब है।
द्वारका ने शंकर भाई फौरन पहली मंजिल पर स्थित अपने बेडरूम की तरफ बढ़ गया।
शंकर भाई पचपन बरस का स्वस्थ व्यक्ति था। चेहरे पर एक भी झुर्री नहीं थी कि लगे उसकी उम्र होने लगी है। लंबाई सामान्य थी। कुर्ता-पायजामा ही अकसर वो पहनता था। पैंट-कमीज में उसे कम ही देखा जाता था। गले में सोने की चेन। हाथ की उंगलियों में हीरे के नगों वाली, सोने की तीन अंगूठियां। उसका चेहरा बताता था कि दिमागी तौर पर वो हर वक्त व्यस्त रहता था।
बेडरूम में पहुंचते ही शंकर भाई के होंठ सिकुड़ गए। उस जगह को देखता रहा, जहां तिजोरी बंद रहती थी। उस जगह का पल्ला खुला, झूल रहा था। कई जगह उसे खून नजर आ आया जो कि पाली के कंधे से बहा था। नज़रे बेडरूम की हालत पर फिरती रही।
पास खड़े द्वारका के चेहरे पर गंभीरता थी।
"द्वारका।" शंकर भाई शांत था— "ये सब साले पाटिल की करतूत है। तू बोलता था, पाटिल को मारने का आर्डर देकर मैंने अच्छा नहीं किया। ठीक किया मैंने। मरने से पहले वो पक्का किसी के सामने बक गया होगा कि तिजोरी में वो काली फाइल है। देखा-अब तिजोरी ही गायब है। खुली नहीं होगी उन लोगों से तो वे तिजोरी को ही साथ ले गए। छोटी थी ना ले गए उठाकर। अगर हमारा कोई दुश्मन होता तो इतना गदर करने के बाद तिजोरी ही ले जाता क्या वो दूसरा लोग था। " द्वारका ने गंभीरता से सिर हिलाया।
"लेकिन साला सोचने की बात है कि कौन लोग में इतनी हिम्मत आ गई, मेरे गिरेबान पर हाथ डालने की बोत हिम्मत वाला काम किया उन लोगों ने क्यों द्वारका, कौन लोग हैं वे?"
"मालूम नहीं शंकर भाई--।"
"मालूम नहीं तो मालूम कर खड़ा क्यों है। सारे काम छोड़ दे।" वो कोई दूसरा कर लेगा। तू मालूम कर कौन आया हमारे गिरेबान में हाथ डालने को अपने मुखबिर हर तरफ दौड़ा दो। पक्का कहीं से खबर मिलेगी।"
"जी".
शंकर भाई ने सिगरेट सुलगाई।
"और सुन, वो साली तिजोरी हमको जरूरी चाहिए।"
"तिजोरी।"
"कम सुनने लगा है क्या?"
"मेरा मतलब है, तिजोरी तो ले जाने वाले खाली कर चुके होंगेवो फाइल ले ली होगी। तिजोरी तो खाली करके कहीं
फेंक दी होगी उन लोगों ने। " द्वारका के होंठों से निकला।
“यहीं। हम जानते हैं कि ये ही हुआ होगा। यो खाली तिजोरी ढूंढो किसी कचरे में पड़ी होगी। उसे उठाकर लाओ। मेरे पास लेकर आओ। " शंकर भाई मुस्कराया।
"मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि खाली तिजोरी का आप क्या करेंगे। वो...।"
"तेरे को समझ नहीं आएगी। शंकर भाई के खेल निराले हैं निराले। मज़ा तो तब आएगा, जब खाली तिजोरी मेरे सामने होगी। फिर तेरे को खेल दिखाऊंगा। खेल। "
द्वारका के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।
"आपको उस फाइल की फिक्र नहीं, जो तिजोरी में थी।
जो-। "
"जो है ही हमारे पास, साली उसकी फिक्र हमें क्यों हो। " शंकर भाई हंस पड़ा।
"क्या?" द्वारका जोरों से चौंका- "फाइल आपके पास है।"
"हाँ। " शंकर भाई ने सिर हिलाया "हां द्वारका हां। मेरे को पहले से ही मालूम था कि पाटिल जैसा हरामी, कोई हरामी काम जरूर करेगा, फाइल को लेकर सो हमने पहले ही फाइल को तिजोरी में से निकालकर कहीं और रख दिया और तिजोरी में वैसी ही फाइल रख दी। में शंकर भाई ऐसे ही नहीं बना। कुछ बात तो हममें है ही द्वारका क्यों है ना?"
द्वारका सिर हिलाकर हौले से मुस्कराया ।
"आप बहुत दूर की सोच लेते हैं। "
बारह बजे राबर्ट के साथ "ठीक बोला तू। बहुत साल पहले ही हमने सोच लिया था कि हम क्या बनेंगे और वो ही बने। चल जा वक्त खराब मत कर अभी मेरे को सोना है! नींद आ रही है। मीटिंग है। वो स्मैक लाया है बाहर से उम्दा स्मैक है। खबर पहुंच चुकी है हमारे पास अगर सौदा बन गया करोड़ों का फायदा हो जाएगा और सुन, राबर्ट के लिए छोकरी का इंतजाम किया ?"
"हां महीपाल को सब समझा दिया है।"
"राबर्ट ऐसा है कि छोकरी के बिना बात ही नहीं करता। लोग बातचीत से पहले बोतल खोलते हैं और वो साला छोकरी खोलता है। खैर छोड़, तू जा । "
द्वारका जाने लगा तो शंकर भाई ने टोका।
"सुन।"
द्वारका ठिठका।
"कमिश्नर को फोन लगा देना बोलना सब ठीक है।
"अब तेरे को बाहर जाकर क्या करना है बता।"
"पहले तो यह मालूम करना है कि तिजोरी को कौन लोग ले गए। " द्वारका बोला।
"हां" शंकर भाई के चेहरे पर खतरनाक भाव आ ठहरे-"यह बात मालूम करते हुए भूलना मत कि हमारे बढ़िया बारह गनमैनों को चुन चुनकर मारा गया है। हमारे घर में हमारा गला पकड़ा गया है। ऐसे हिम्मत वाले को हम भी तो देखें। खैर, दूसरी बात बोल। आगे खाली तिजोरी तलाश करनी है। "
"ठीक उसे ढूंढना। हर तरफ अपने आदमी फैला दे, तिजोरी का हुलिया बताकर कबाड़ियों के यहां भी चैक करना। कोई टके का आदमी हुआ तो कबाड़ी को बेच देगा। जा, खबर करना मुझे और किसी को भेज यहां। बेडरूम का सत्यानाश हुआ पड़ा है। "
द्वारका बाहर निकल गया।
शंकर भाई ने कश लेकर पुनः बेडरूम में नजरें दौड़ाई।
तभी एक आदमी ने भीतर प्रवेश किया।
"सर बाहर लॉन में ये पर्स मिला है। " कहते हुए उसने पर्स आगे बढ़ाया।
"दिखा रे।" शंकर भाई पर्स थामता हुआ बोला- "देखें तो जरा, कितने नोट भरे पड़े हैं। शंकर भाई ने पर्स खोला। देखा। बीच में नोट, कुछ कागज और ड्राइविंग लायसेंस देखा।
जिस पर पाली की तस्वीर लगी थी।
शंकर भाई के होंठ सिकुड़े।
"जा। द्वारका को भेज। जल्दी कर। वो जाने वाला होगा।"
पर्स लाने वाला आदमी फौरन वहां से बाहर निकल गया।
तभी दो आदमियों ने भीतर प्रवेश किया।
“सर। यहां की सफाई करनी है। " एक ने सतर्क स्वर में कहा।
"करो। करों। बोत गंदा हो गया है कमरा।" कहने के साथ ही शंकर भाई बेडरूम से निकल कर बगल के ड्राईंग रूम में आ गया। एक हाथ में पर्स, दूसरे में पाली का ड्राइविंग लायसेंस था।
चौथे मिनट द्वारका आया।
"आ रे द्वारका " ये देख पर्स लॉन में पड़ा मिला है। बीच में ड्राइविंग लायसेंस है।"
द्वारका ने में ड्राइविंग लायसेंस लगी पाली की तस्वीर देखी। "इसे पहले कभी नहीं देखा। " द्वारका ने कहा।
"नहीं देखा तो देख ना जाकर पता भी साथ लिखा है।"
शंकर भोई क्रूर स्वर में कह उठा—"लॉन में पर्स होने का मतलब है, ये रात को आया था। ये भी उन लोगों में से एक था, जिसने यहां धावा बोला। अभी तक खड़ा है तू। गया नहीं।"
द्वारका फौरन बाहर निकल गया।
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