अगली रात ।

सिद्धार्थ होटल में ।

अपने कमरे में सोया पड़ा अजय अचानक जाग गया । जागने की वजह तो एकाएक उसकी समझ में नहीं आ सकी । लेकिन दुस्साहसी स्वाभाव और बरसों से खतरों से खेलता आ रहा होने की वजह से उसके अन्दर पूर्णतया विकसित हो चुकी छठी इन्द्री उसे चेतावनी सी देती प्रतीत हो रही थी ।

वह आंखें खोले चुपचाप अंधेरे में पड़ा रहा । उसके कान पूर्णतया सतर्क थे और धीरे–धीरे रेंगकर स्वयंमेव तकिए के नीचे जा पहुंचा दायाँ हाथ वहां रखे रिवाल्वर के दस्ते पर कस चुका था ।

चंद क्षणोपरांत हल्की सी आहट सुनाई दी । वह समझ गया फायर एस्केप की ओर खुलने वाली खिड़की को खोलने की कोशिश की जा रही थी ।

उसने धीरे से उधर ही गरदन घुमा दी ।

बाहर अंधेरे में फायर एस्केप पर एक मानवाकृति मौजूद थी ।

सब कुछ समझ चुका अजय निश्चल पड़ा इन्तजार करता रहा ।

खट् की हल्की सी आवाज के साथ ज्योहि खिड़की खुलनी शुरू हुई अजय ने फौरन रजाई फेंककर रिवाल्वर सहित स्वयं को दूसरी ओर फर्श पर गिरा दिया ।

ठीक उसी क्षण फायर हुआ और एक गोली पलंग के सिरहाने वाली साइड में लगे मोटे प्लाईवुड में ठीक उसके सर के ऊपर जा घुसी । फिर लगातार तीन फायर और हुए । उन तीनों गोलियों का भी वही अंजाम हुआ ।

बन्द कमरे में फायरों को आवाजें इतनी जोर से गूंजी कि अजय को अपने कान सुन्न हो गए प्रतीत हुए ।

अजय ने पलंग की आड़ से सर तनिक ऊपर उठाकर खिड़की की दिशा में लगातार दो फापर झोंक दिए ।

बाहर मौजूद मानवाकृति ने भी जवाब में तुरन्त दो फायर किए ।

दोनों गोलियां अजय के सर से मात्र कुछ इंचों के फासले से गुजर कर दीवार में जा घुसी ।

अजय ने पलंग के पायत वाले हिस्से की ओर रेंगकर खिड़की की दिशा में देखा ।

बाहर मौजूद मानवाकृति खिड़की से परे हट चुकी थी ।

अजय समय समझ गया, वह फायर एस्केप से नीचे जाने वाला था । उसने फौरन अपना रिवाल्वर वाला हाथ ऊपर उठा कर ट्रीगर खींच दिया ।

फायर एस्केप पर मौजूद मानवाकृति के कंठ से घुटी–सी चीख निकली । वह करीब तीन फुट ऊंची रेलिंग से जा टकराया ।

संभलने की कोशिश करती मानवाकृति पर अजय ने एक और फायर झोंक दिया ।

मानवाकृति का संतुलन बिगड़ा । वह रेलिंग के ऊपर से नीचे उलट गई ।

अगले ही पल एक हृदय विदारक चीख उभरी फिर सब शांत हो गया ।

फायर एस्केप पर अब कोई नजर नहीं आ रहा था ।

अजय उसी तरह पड़ा खिड़की की ओर ताकता रहा । सब कुछ चंद ही सैकड़ों में और इतनी तेजी से हुआ था वह विश्वास नहीं कर पा रहा था ।

सहसा, उसके समस्त शरीर से तेज सिहरन गुजर गई–अगर वह सही समय पर नहीं जाग गया होता तो उसकी खोपड़ी के चिथड़े उड़ गए होते और इस वक्त उसकी लाश पलंग पर पड़ी होती ।

तभी दरवाजे पर जोर से दस्तक दी गई । साथ ही खिड़कियाँ, दरवाजे खुलने की आवाजें और विभिन्न स्वरों में कही गई । 'क्या हुआ ?' फायरों की आवाजें कहाँ से आ रही थी ? जैसी बातें उसे सुनाई दी ।

वह उठकर दरवाजे के पास पहुंचा ।

–'सिक्योरिटी इन्चार्ज ।' बाहर से कहा गया–'दरवाजा खोलो ।'

अजय ने दरवाजा खोल दिया ।

कारीडोर में होटल का सिक्योरिटी इन्चार्ज वर्दी पहने । रिवाल्वर हाथ लिए खड़ा था । सभी कमरों के दरवाजे खुले थे और उनमें ठहरे कस्टमर्स चेहरों पर भयमिश्रित उत्सुकतापूर्ण भाव लिए बाहर खड़े थे ।

–'क्या हो रहा था यहां पर ?' सिक्योरिटी इन्चार्ज ने अन्दर झांकते हुए पूछा ।

–'बाहर फायर एस्केप पर से कोई मुझे टारगेट बनाकर शूटिंग प्रैक्टिस कर रहा था । अजय ने कहा और लाइट स्विच ऑन करके पलंग की ओर गरदन हिलाकर संकेत कर दिया ।

सिक्योरिटी इन्चार्ज भीतर दाखिल हुआ । पलंग के पास पहुंचते ही वह सिसकारी सी लेकर रह गया ।

अजय ने भी पहली बार देखा । पलंग के सिरहाने बनी पुश्तमें चार सुराख बने हुए थे । दीवार में भी दो जगह से प्लास्टर उखड़ा नजर आ रहा था ।

–'कौन था ?' सिक्योरिटी इन्चार्ज ने अपनी रिवाल्वर होल्स्टर में रखते हुए पूछा ।

–'पता नहीं ।' अजय ने जवाब दिया ।

–'तुमने उसे देखा नहीं ?'

–'नहीं । क्योंकि में उल्लू नहीं, इंसान हूं ।'

–'मतलब ?'

–'मैं अन्धेरे में नहीं देख सकता ।' अजय उपहासपूर्वक बोला–'और वह इतना बदतमीज आदमी था कि खिड़की खोली और नाम–पता बताए बगैर ही गोलियां चलानी शुरू कर दी ।'

–'वह भाग गया ?'

–'नहीं, इतनी ज्यादा जल्दी में था कि सीधे ही नीचे छलांग दी ।

–'क्या ?' सिक्योरिटी इन्चार्ज बुरी तरह चौंका और तेजी से चलकर खिड़की के पास जा खड़ा हुआ ।

नीचे कोर्टयार्ड में छोटी सी भीड़ लगी हुई थी । पास ही हाथ पैर फैलाए एक आदमी औंधे मुंह पड़ा था । सिक्योरिटी इन्चार्ज पलटकर दरवाजे की ओर दौड़ा ।

–'वह मर गया लगता है ।' उसने कहा–'पुलिस को फोन कर दो ।' ओर तेजी से बाहर निकल गया ।

अजय ने हाथ में पकड़ी अपनी रिवाल्वर बिस्तर पर फेंक दी । ऑपरेटर के माध्यम से पुलिस हैडक्वार्टर्स से सम्बन्ध स्थापित करके सूचना देने लगा ।